Skip to content

सूरा अल-क़सस - Page: 5

Al-Qasas

(कहानियाँ)

४१

وَجَعَلْنٰهُمْ اَىِٕمَّةً يَّدْعُوْنَ اِلَى النَّارِۚ وَيَوْمَ الْقِيٰمَةِ لَا يُنْصَرُوْنَ ٤١

wajaʿalnāhum
وَجَعَلْنَٰهُمْ
और बनाया हमने उन्हें
a-immatan
أَئِمَّةً
इमाम/राहनुमा
yadʿūna
يَدْعُونَ
जो बुलाते थे
ilā
إِلَى
तरफ़ आग के
l-nāri
ٱلنَّارِۖ
तरफ़ आग के
wayawma
وَيَوْمَ
और दिन
l-qiyāmati
ٱلْقِيَٰمَةِ
क़यामत के
لَا
ना वो मदद दिए जाऐंगे
yunṣarūna
يُنصَرُونَ
ना वो मदद दिए जाऐंगे
और हमने उन्हें आग की ओर बुलानेवाले पेशवा बना दिया और क़ियामत के दिन उन्हें कोई सहायता प्राप्त न होगी ([२८] अल-क़सस: 41)
Tafseer (तफ़सीर )
४२

وَاَتْبَعْنٰهُمْ فِيْ هٰذِهِ الدُّنْيَا لَعْنَةً ۚوَيَوْمَ الْقِيٰمَةِ هُمْ مِّنَ الْمَقْبُوْحِيْنَ ࣖ ٤٢

wa-atbaʿnāhum
وَأَتْبَعْنَٰهُمْ
और पीछे लगा दी हमने उनके
فِى
इस दुनिया में
hādhihi
هَٰذِهِ
इस दुनिया में
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَا
इस दुनिया में
laʿnatan
لَعْنَةًۖ
लानत
wayawma
وَيَوْمَ
और दिन
l-qiyāmati
ٱلْقِيَٰمَةِ
क़यामत के
hum
هُم
वो
mina
مِّنَ
बदहाल लोगों में से होंगे
l-maqbūḥīna
ٱلْمَقْبُوحِينَ
बदहाल लोगों में से होंगे
और हमने इस दुनिया में उनके पीछे लानत लगा दी और क़ियामत दिन वही बदहाल होंगे ([२८] अल-क़सस: 42)
Tafseer (तफ़सीर )
४३

وَلَقَدْ اٰتَيْنَا مُوْسَى الْكِتٰبَ مِنْۢ بَعْدِ مَآ اَهْلَكْنَا الْقُرُوْنَ الْاُوْلٰى بَصَاۤىِٕرَ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَّرَحْمَةً لَّعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُوْنَ ٤٣

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
ātaynā
ءَاتَيْنَا
दी हमने
mūsā
مُوسَى
मूसा को
l-kitāba
ٱلْكِتَٰبَ
किताब
min
مِنۢ
इसके बाद कि
baʿdi
بَعْدِ
इसके बाद कि
مَآ
जो
ahlaknā
أَهْلَكْنَا
हलाक कर दिया हमने
l-qurūna
ٱلْقُرُونَ
पहली उम्मतों को
l-ūlā
ٱلْأُولَىٰ
पहली उम्मतों को
baṣāira
بَصَآئِرَ
खुले दलाइल थे
lilnnāsi
لِلنَّاسِ
लोगों के लिए
wahudan
وَهُدًى
और हिदायत
waraḥmatan
وَرَحْمَةً
और रहमत थी
laʿallahum
لَّعَلَّهُمْ
ताकि वो
yatadhakkarūna
يَتَذَكَّرُونَ
वो नसीहत पकड़ें
और अगली नस्लों को विनष्ट कर देने के पश्चात हमने मूसा को किताब प्रदान की, लोगों के लिए अन्तर्दृष्टियों की सामग्री, मार्गदर्शन और दयालुता बनाकर, ताकि वे ध्यान दें ([२८] अल-क़सस: 43)
Tafseer (तफ़सीर )
४४

وَمَا كُنْتَ بِجَانِبِ الْغَرْبِيِّ اِذْ قَضَيْنَآ اِلٰى مُوْسَى الْاَمْرَ وَمَا كُنْتَ مِنَ الشّٰهِدِيْنَ ۙ ٤٤

wamā
وَمَا
और ना
kunta
كُنتَ
थे आप
bijānibi
بِجَانِبِ
मग़रिबी जानिब(तूर की)
l-gharbiyi
ٱلْغَرْبِىِّ
मग़रिबी जानिब(तूर की)
idh
إِذْ
जब
qaḍaynā
قَضَيْنَآ
वही की हमने
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ मूसा के
mūsā
مُوسَى
तरफ़ मूसा के
l-amra
ٱلْأَمْرَ
हुक्म की
wamā
وَمَا
और ना
kunta
كُنتَ
थे आप
mina
مِنَ
हाज़िर होने वालों में से
l-shāhidīna
ٱلشَّٰهِدِينَ
हाज़िर होने वालों में से
तुम तो (नगर के) पश्चिमी किनारे पर नहीं थे, जब हमने मूसा को बात की निर्णित सूचना दी थी, और न तुम गवाहों में से थे ([२८] अल-क़सस: 44)
Tafseer (तफ़सीर )
४५

وَلٰكِنَّآ اَنْشَأْنَا قُرُوْنًا فَتَطَاوَلَ عَلَيْهِمُ الْعُمُرُۚ وَمَا كُنْتَ ثَاوِيًا فِيْٓ اَهْلِ مَدْيَنَ تَتْلُوْا عَلَيْهِمْ اٰيٰتِنَاۙ وَلٰكِنَّا كُنَّا مُرْسِلِيْنَ ٤٥

walākinnā
وَلَٰكِنَّآ
और लेकिन हम
anshanā
أَنشَأْنَا
उठाईं हमने
qurūnan
قُرُونًا
उम्मतें
fataṭāwala
فَتَطَاوَلَ
तो तवील हो गई
ʿalayhimu
عَلَيْهِمُ
उन पर
l-ʿumuru
ٱلْعُمُرُۚ
मुद्दत
wamā
وَمَا
और ना
kunta
كُنتَ
थे आप
thāwiyan
ثَاوِيًا
मुक़ीम
فِىٓ
अहले मदयन में
ahli
أَهْلِ
अहले मदयन में
madyana
مَدْيَنَ
अहले मदयन में
tatlū
تَتْلُوا۟
कि आप पढ़ते
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
āyātinā
ءَايَٰتِنَا
आयात हमारी
walākinnā
وَلَٰكِنَّا
और लेकिन हम
kunnā
كُنَّا
थे हम ही
mur'silīna
مُرْسِلِينَ
भेजने वाले
लेकिन हमने बहुत-सी नस्लें उठाईं और उनपर बहुत समय बीत गया। और न तुम मदयनवालों में रहते थे कि उन्हें हमारी आयतें सुना रहे होते, किन्तु रसूलों को भेजनेवाले हम ही रहे है ([२८] अल-क़सस: 45)
Tafseer (तफ़सीर )
४६

وَمَا كُنْتَ بِجَانِبِ الطُّوْرِ اِذْ نَادَيْنَا وَلٰكِنْ رَّحْمَةً مِّنْ رَّبِّكَ لِتُنْذِرَ قَوْمًا مَّآ اَتٰىهُمْ مِّنْ نَّذِيْرٍ مِّنْ قَبْلِكَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُوْنَ ٤٦

wamā
وَمَا
और ना
kunta
كُنتَ
थे आप
bijānibi
بِجَانِبِ
तूर की जानिब
l-ṭūri
ٱلطُّورِ
तूर की जानिब
idh
إِذْ
जब
nādaynā
نَادَيْنَا
पुकारा हमने (मूसा को)
walākin
وَلَٰكِن
और लेकिन
raḥmatan
رَّحْمَةً
ये रहमत है
min
مِّن
आपके रब की तरफ़ से
rabbika
رَّبِّكَ
आपके रब की तरफ़ से
litundhira
لِتُنذِرَ
ताकि आप डराऐं
qawman
قَوْمًا
एक क़ौम को
مَّآ
नहीं
atāhum
أَتَىٰهُم
आया उनके पास
min
مِّن
कोई डराने वाला
nadhīrin
نَّذِيرٍ
कोई डराने वाला
min
مِّن
आपसे पहले
qablika
قَبْلِكَ
आपसे पहले
laʿallahum
لَعَلَّهُمْ
शायद कि वो
yatadhakkarūna
يَتَذَكَّرُونَ
वो नसीहत पकड़ें
और तुम तूर के अंचल में भी उपस्थित न थे जब हमने पुकारा था, किन्तु यह तुम्हारे रब की दयालुता है - ताकि तुम ऐसे लोगों को सचेत कर दो जिनके पास तुमसे पहले कोई सचेत करनेवाला नहीं आया, ताकि वे ध्यान दें ([२८] अल-क़सस: 46)
Tafseer (तफ़सीर )
४७

وَلَوْلَآ اَنْ تُصِيْبَهُمْ مُّصِيْبَةٌ ۢبِمَا قَدَّمَتْ اَيْدِيْهِمْ فَيَقُوْلُوْا رَبَّنَا لَوْلَآ اَرْسَلْتَ اِلَيْنَا رَسُوْلًا فَنَتَّبِعَ اٰيٰتِكَ وَنَكُوْنَ مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ ٤٧

walawlā
وَلَوْلَآ
और अगर ना होता
an
أَن
ये कि
tuṣībahum
تُصِيبَهُم
पहुँचती उन्हें
muṣībatun
مُّصِيبَةٌۢ
कोई मुसीबत
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
qaddamat
قَدَّمَتْ
आगे भेजा
aydīhim
أَيْدِيهِمْ
उनके दोनों हाथों ने
fayaqūlū
فَيَقُولُوا۟
तो वो कहते
rabbanā
رَبَّنَا
ऐ हमारे रब
lawlā
لَوْلَآ
क्यों ना
arsalta
أَرْسَلْتَ
भेजा तू ने
ilaynā
إِلَيْنَا
हमारी तरफ़
rasūlan
رَسُولًا
कोई रसूल
fanattabiʿa
فَنَتَّبِعَ
तो हम पैरवी करते
āyātika
ءَايَٰتِكَ
तेरी आयात की
wanakūna
وَنَكُونَ
और हम हो जाते
mina
مِنَ
ईमान लाने वालों में से
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
ईमान लाने वालों में से
(हम रसूल बनाकर न भेजते) यदि यह बात न होती कि जो कुछ उनके हाथ आगे भेज चुके है उसके कारण जब उनपर कोई मुसीबत आए तो वे कहने लगें, 'ऐ हमारे रब, तूने क्यों न हमारी ओर कोई रसूल भेजा कि हम तेरी आयतों का (अनुसरण) करते और मोमिन होते?' ([२८] अल-क़सस: 47)
Tafseer (तफ़सीर )
४८

فَلَمَّا جَاۤءَهُمُ الْحَقُّ مِنْ عِنْدِنَا قَالُوْا لَوْلَآ اُوْتِيَ مِثْلَ مَآ اُوْتِيَ مُوْسٰىۗ اَوَلَمْ يَكْفُرُوْا بِمَآ اُوْتِيَ مُوْسٰى مِنْ قَبْلُۚ قَالُوْا سِحْرٰنِ تَظَاهَرَاۗ وَقَالُوْٓا اِنَّا بِكُلٍّ كٰفِرُوْنَ ٤٨

falammā
فَلَمَّا
तो जब
jāahumu
جَآءَهُمُ
पास आया उनके
l-ḥaqu
ٱلْحَقُّ
हक़
min
مِنْ
हमारे पास से
ʿindinā
عِندِنَا
हमारे पास से
qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
lawlā
لَوْلَآ
क्यों ना
ūtiya
أُوتِىَ
वो दिया गया
mith'la
مِثْلَ
मानिन्द
مَآ
उसके जो
ūtiya
أُوتِىَ
दिए गए
mūsā
مُوسَىٰٓۚ
मूसा
awalam
أَوَلَمْ
क्या भला नहीं
yakfurū
يَكْفُرُوا۟
कुफ़्र किया उन्होंने
bimā
بِمَآ
उसका जो
ūtiya
أُوتِىَ
दिए गए
mūsā
مُوسَىٰ
मूसा
min
مِن
इससे पहले
qablu
قَبْلُۖ
इससे पहले
qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
siḥ'rāni
سِحْرَانِ
दोनों जादू हैं
taẓāharā
تَظَٰهَرَا
एक दूसरे की मदद करते हैं
waqālū
وَقَالُوٓا۟
और उन्होंने कहा
innā
إِنَّا
बेशक हम
bikullin
بِكُلٍّ
हर एक के
kāfirūna
كَٰفِرُونَ
इन्कारी हैं
फिर जब उनके पास हमारे यहाँ से सत्य आ गया तो वे कहने लगे कि 'जो चीज़ मूसा को मिली थी उसी तरह की चीज़ इसे क्यों न मिली?' क्या वे उसका इनकार नहीं कर चुके है, जो इससे पहले मूसा को प्रदान किया गया था? उन्होंने कहा, 'दोनों जादू है जो एक-दूसरे की सहायता करते है।' और कहा, 'हम तो हरेक का इनकार करते है।' ([२८] अल-क़सस: 48)
Tafseer (तफ़सीर )
४९

قُلْ فَأْتُوْا بِكِتٰبٍ مِّنْ عِنْدِ اللّٰهِ هُوَ اَهْدٰى مِنْهُمَآ اَتَّبِعْهُ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ٤٩

qul
قُلْ
कह दीजिए
fatū
فَأْتُوا۟
पस ले आओ
bikitābin
بِكِتَٰبٍ
कोई किताब
min
مِّنْ
पास से
ʿindi
عِندِ
पास से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
huwa
هُوَ
वो
ahdā
أَهْدَىٰ
ज़्यादा हिदायत वाली हो
min'humā
مِنْهُمَآ
इन दोनों से
attabiʿ'hu
أَتَّبِعْهُ
मैं पैरवी कर लूँगा उसकी
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
ṣādiqīna
صَٰدِقِينَ
सच्चे
कहो, 'अच्छा तो लाओ अल्लाह के यहाँ से कोई ऐसी किताब, जो इन दोनों से बढ़कर मार्गदर्शन करनेवाली हो कि मैं उसका अनुसरण करूँ, यदि तुम सच्चे हो?' ([२८] अल-क़सस: 49)
Tafseer (तफ़सीर )
५०

فَاِنْ لَّمْ يَسْتَجِيْبُوْا لَكَ فَاعْلَمْ اَنَّمَا يَتَّبِعُوْنَ اَهْوَاۤءَهُمْۗ وَمَنْ اَضَلُّ مِمَّنِ اتَّبَعَ هَوٰىهُ بِغَيْرِ هُدًى مِّنَ اللّٰهِ ۗاِنَّ اللّٰهَ لَا يَهْدِى الْقَوْمَ الظّٰلِمِيْنَ ࣖ ٥٠

fa-in
فَإِن
फिर अगर
lam
لَّمْ
ना
yastajībū
يَسْتَجِيبُوا۟
उन्होंने क़ुबूल की
laka
لَكَ
आपकी (बात)
fa-iʿ'lam
فَٱعْلَمْ
तो जान लीजिए
annamā
أَنَّمَا
बेशक
yattabiʿūna
يَتَّبِعُونَ
वो पैरवी कर रहे हैं
ahwāahum
أَهْوَآءَهُمْۚ
अपनी ख़्वाहिशात की
waman
وَمَنْ
और कौन
aḍallu
أَضَلُّ
ज़्यादा गुमराह है
mimmani
مِمَّنِ
उससे जो
ittabaʿa
ٱتَّبَعَ
पैरवी करे
hawāhu
هَوَىٰهُ
अपनी ख़्वाहिशात की
bighayri
بِغَيْرِ
बग़ैर
hudan
هُدًى
हिदायत के
mina
مِّنَ
अल्लाह की तरफ़ से
l-lahi
ٱللَّهِۚ
अल्लाह की तरफ़ से
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
لَا
नहीं वो हिदायत देता
yahdī
يَهْدِى
नहीं वो हिदायत देता
l-qawma
ٱلْقَوْمَ
उन लोगों को
l-ẓālimīna
ٱلظَّٰلِمِينَ
जो ज़ालिम हैं
अब यदि वे तुम्हारी माँग पूरी न करें तो जान लो कि वे केवल अपनी इच्छाओं के पीछे चलते है। और उस व्यक्ति से बढ़कर भटका हुआ कौन होगा जो अल्लाह की ओर से किसी मार्गदर्शन के बिना अपनी इच्छा पर चले? निश्चय ही अल्लाह ज़ालिम लोगों को मार्ग नहीं दिखाता ([२८] अल-क़सस: 50)
Tafseer (तफ़सीर )