وَجَعَلْنٰهُمْ اَىِٕمَّةً يَّدْعُوْنَ اِلَى النَّارِۚ وَيَوْمَ الْقِيٰمَةِ لَا يُنْصَرُوْنَ ٤١
- wajaʿalnāhum
- وَجَعَلْنَٰهُمْ
- और बनाया हमने उन्हें
- a-immatan
- أَئِمَّةً
- इमाम/राहनुमा
- yadʿūna
- يَدْعُونَ
- जो बुलाते थे
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ आग के
- l-nāri
- ٱلنَّارِۖ
- तरफ़ आग के
- wayawma
- وَيَوْمَ
- और दिन
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِ
- क़यामत के
- lā
- لَا
- ना वो मदद दिए जाऐंगे
- yunṣarūna
- يُنصَرُونَ
- ना वो मदद दिए जाऐंगे
और हमने उन्हें आग की ओर बुलानेवाले पेशवा बना दिया और क़ियामत के दिन उन्हें कोई सहायता प्राप्त न होगी ([२८] अल-क़सस: 41)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَتْبَعْنٰهُمْ فِيْ هٰذِهِ الدُّنْيَا لَعْنَةً ۚوَيَوْمَ الْقِيٰمَةِ هُمْ مِّنَ الْمَقْبُوْحِيْنَ ࣖ ٤٢
- wa-atbaʿnāhum
- وَأَتْبَعْنَٰهُمْ
- और पीछे लगा दी हमने उनके
- fī
- فِى
- इस दुनिया में
- hādhihi
- هَٰذِهِ
- इस दुनिया में
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- इस दुनिया में
- laʿnatan
- لَعْنَةًۖ
- लानत
- wayawma
- وَيَوْمَ
- और दिन
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِ
- क़यामत के
- hum
- هُم
- वो
- mina
- مِّنَ
- बदहाल लोगों में से होंगे
- l-maqbūḥīna
- ٱلْمَقْبُوحِينَ
- बदहाल लोगों में से होंगे
और हमने इस दुनिया में उनके पीछे लानत लगा दी और क़ियामत दिन वही बदहाल होंगे ([२८] अल-क़सस: 42)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ اٰتَيْنَا مُوْسَى الْكِتٰبَ مِنْۢ بَعْدِ مَآ اَهْلَكْنَا الْقُرُوْنَ الْاُوْلٰى بَصَاۤىِٕرَ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَّرَحْمَةً لَّعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُوْنَ ٤٣
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- ātaynā
- ءَاتَيْنَا
- दी हमने
- mūsā
- مُوسَى
- मूसा को
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- min
- مِنۢ
- इसके बाद कि
- baʿdi
- بَعْدِ
- इसके बाद कि
- mā
- مَآ
- जो
- ahlaknā
- أَهْلَكْنَا
- हलाक कर दिया हमने
- l-qurūna
- ٱلْقُرُونَ
- पहली उम्मतों को
- l-ūlā
- ٱلْأُولَىٰ
- पहली उम्मतों को
- baṣāira
- بَصَآئِرَ
- खुले दलाइल थे
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- wahudan
- وَهُدًى
- और हिदायत
- waraḥmatan
- وَرَحْمَةً
- और रहमत थी
- laʿallahum
- لَّعَلَّهُمْ
- ताकि वो
- yatadhakkarūna
- يَتَذَكَّرُونَ
- वो नसीहत पकड़ें
और अगली नस्लों को विनष्ट कर देने के पश्चात हमने मूसा को किताब प्रदान की, लोगों के लिए अन्तर्दृष्टियों की सामग्री, मार्गदर्शन और दयालुता बनाकर, ताकि वे ध्यान दें ([२८] अल-क़सस: 43)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا كُنْتَ بِجَانِبِ الْغَرْبِيِّ اِذْ قَضَيْنَآ اِلٰى مُوْسَى الْاَمْرَ وَمَا كُنْتَ مِنَ الشّٰهِدِيْنَ ۙ ٤٤
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kunta
- كُنتَ
- थे आप
- bijānibi
- بِجَانِبِ
- मग़रिबी जानिब(तूर की)
- l-gharbiyi
- ٱلْغَرْبِىِّ
- मग़रिबी जानिब(तूर की)
- idh
- إِذْ
- जब
- qaḍaynā
- قَضَيْنَآ
- वही की हमने
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ मूसा के
- mūsā
- مُوسَى
- तरफ़ मूसा के
- l-amra
- ٱلْأَمْرَ
- हुक्म की
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kunta
- كُنتَ
- थे आप
- mina
- مِنَ
- हाज़िर होने वालों में से
- l-shāhidīna
- ٱلشَّٰهِدِينَ
- हाज़िर होने वालों में से
तुम तो (नगर के) पश्चिमी किनारे पर नहीं थे, जब हमने मूसा को बात की निर्णित सूचना दी थी, और न तुम गवाहों में से थे ([२८] अल-क़सस: 44)Tafseer (तफ़सीर )
وَلٰكِنَّآ اَنْشَأْنَا قُرُوْنًا فَتَطَاوَلَ عَلَيْهِمُ الْعُمُرُۚ وَمَا كُنْتَ ثَاوِيًا فِيْٓ اَهْلِ مَدْيَنَ تَتْلُوْا عَلَيْهِمْ اٰيٰتِنَاۙ وَلٰكِنَّا كُنَّا مُرْسِلِيْنَ ٤٥
- walākinnā
- وَلَٰكِنَّآ
- और लेकिन हम
- anshanā
- أَنشَأْنَا
- उठाईं हमने
- qurūnan
- قُرُونًا
- उम्मतें
- fataṭāwala
- فَتَطَاوَلَ
- तो तवील हो गई
- ʿalayhimu
- عَلَيْهِمُ
- उन पर
- l-ʿumuru
- ٱلْعُمُرُۚ
- मुद्दत
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kunta
- كُنتَ
- थे आप
- thāwiyan
- ثَاوِيًا
- मुक़ीम
- fī
- فِىٓ
- अहले मदयन में
- ahli
- أَهْلِ
- अहले मदयन में
- madyana
- مَدْيَنَ
- अहले मदयन में
- tatlū
- تَتْلُوا۟
- कि आप पढ़ते
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- āyātinā
- ءَايَٰتِنَا
- आयात हमारी
- walākinnā
- وَلَٰكِنَّا
- और लेकिन हम
- kunnā
- كُنَّا
- थे हम ही
- mur'silīna
- مُرْسِلِينَ
- भेजने वाले
लेकिन हमने बहुत-सी नस्लें उठाईं और उनपर बहुत समय बीत गया। और न तुम मदयनवालों में रहते थे कि उन्हें हमारी आयतें सुना रहे होते, किन्तु रसूलों को भेजनेवाले हम ही रहे है ([२८] अल-क़सस: 45)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَا كُنْتَ بِجَانِبِ الطُّوْرِ اِذْ نَادَيْنَا وَلٰكِنْ رَّحْمَةً مِّنْ رَّبِّكَ لِتُنْذِرَ قَوْمًا مَّآ اَتٰىهُمْ مِّنْ نَّذِيْرٍ مِّنْ قَبْلِكَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُوْنَ ٤٦
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kunta
- كُنتَ
- थे आप
- bijānibi
- بِجَانِبِ
- तूर की जानिब
- l-ṭūri
- ٱلطُّورِ
- तूर की जानिब
- idh
- إِذْ
- जब
- nādaynā
- نَادَيْنَا
- पुकारा हमने (मूसा को)
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- raḥmatan
- رَّحْمَةً
- ये रहमत है
- min
- مِّن
- आपके रब की तरफ़ से
- rabbika
- رَّبِّكَ
- आपके रब की तरफ़ से
- litundhira
- لِتُنذِرَ
- ताकि आप डराऐं
- qawman
- قَوْمًا
- एक क़ौम को
- mā
- مَّآ
- नहीं
- atāhum
- أَتَىٰهُم
- आया उनके पास
- min
- مِّن
- कोई डराने वाला
- nadhīrin
- نَّذِيرٍ
- कोई डराने वाला
- min
- مِّن
- आपसे पहले
- qablika
- قَبْلِكَ
- आपसे पहले
- laʿallahum
- لَعَلَّهُمْ
- शायद कि वो
- yatadhakkarūna
- يَتَذَكَّرُونَ
- वो नसीहत पकड़ें
और तुम तूर के अंचल में भी उपस्थित न थे जब हमने पुकारा था, किन्तु यह तुम्हारे रब की दयालुता है - ताकि तुम ऐसे लोगों को सचेत कर दो जिनके पास तुमसे पहले कोई सचेत करनेवाला नहीं आया, ताकि वे ध्यान दें ([२८] अल-क़सस: 46)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَوْلَآ اَنْ تُصِيْبَهُمْ مُّصِيْبَةٌ ۢبِمَا قَدَّمَتْ اَيْدِيْهِمْ فَيَقُوْلُوْا رَبَّنَا لَوْلَآ اَرْسَلْتَ اِلَيْنَا رَسُوْلًا فَنَتَّبِعَ اٰيٰتِكَ وَنَكُوْنَ مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ ٤٧
- walawlā
- وَلَوْلَآ
- और अगर ना होता
- an
- أَن
- ये कि
- tuṣībahum
- تُصِيبَهُم
- पहुँचती उन्हें
- muṣībatun
- مُّصِيبَةٌۢ
- कोई मुसीबत
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- qaddamat
- قَدَّمَتْ
- आगे भेजा
- aydīhim
- أَيْدِيهِمْ
- उनके दोनों हाथों ने
- fayaqūlū
- فَيَقُولُوا۟
- तो वो कहते
- rabbanā
- رَبَّنَا
- ऐ हमारे रब
- lawlā
- لَوْلَآ
- क्यों ना
- arsalta
- أَرْسَلْتَ
- भेजा तू ने
- ilaynā
- إِلَيْنَا
- हमारी तरफ़
- rasūlan
- رَسُولًا
- कोई रसूल
- fanattabiʿa
- فَنَتَّبِعَ
- तो हम पैरवी करते
- āyātika
- ءَايَٰتِكَ
- तेरी आयात की
- wanakūna
- وَنَكُونَ
- और हम हो जाते
- mina
- مِنَ
- ईमान लाने वालों में से
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- ईमान लाने वालों में से
(हम रसूल बनाकर न भेजते) यदि यह बात न होती कि जो कुछ उनके हाथ आगे भेज चुके है उसके कारण जब उनपर कोई मुसीबत आए तो वे कहने लगें, 'ऐ हमारे रब, तूने क्यों न हमारी ओर कोई रसूल भेजा कि हम तेरी आयतों का (अनुसरण) करते और मोमिन होते?' ([२८] अल-क़सस: 47)Tafseer (तफ़सीर )
فَلَمَّا جَاۤءَهُمُ الْحَقُّ مِنْ عِنْدِنَا قَالُوْا لَوْلَآ اُوْتِيَ مِثْلَ مَآ اُوْتِيَ مُوْسٰىۗ اَوَلَمْ يَكْفُرُوْا بِمَآ اُوْتِيَ مُوْسٰى مِنْ قَبْلُۚ قَالُوْا سِحْرٰنِ تَظَاهَرَاۗ وَقَالُوْٓا اِنَّا بِكُلٍّ كٰفِرُوْنَ ٤٨
- falammā
- فَلَمَّا
- तो जब
- jāahumu
- جَآءَهُمُ
- पास आया उनके
- l-ḥaqu
- ٱلْحَقُّ
- हक़
- min
- مِنْ
- हमारे पास से
- ʿindinā
- عِندِنَا
- हमारे पास से
- qālū
- قَالُوا۟
- उन्होंने कहा
- lawlā
- لَوْلَآ
- क्यों ना
- ūtiya
- أُوتِىَ
- वो दिया गया
- mith'la
- مِثْلَ
- मानिन्द
- mā
- مَآ
- उसके जो
- ūtiya
- أُوتِىَ
- दिए गए
- mūsā
- مُوسَىٰٓۚ
- मूसा
- awalam
- أَوَلَمْ
- क्या भला नहीं
- yakfurū
- يَكْفُرُوا۟
- कुफ़्र किया उन्होंने
- bimā
- بِمَآ
- उसका जो
- ūtiya
- أُوتِىَ
- दिए गए
- mūsā
- مُوسَىٰ
- मूसा
- min
- مِن
- इससे पहले
- qablu
- قَبْلُۖ
- इससे पहले
- qālū
- قَالُوا۟
- उन्होंने कहा
- siḥ'rāni
- سِحْرَانِ
- दोनों जादू हैं
- taẓāharā
- تَظَٰهَرَا
- एक दूसरे की मदद करते हैं
- waqālū
- وَقَالُوٓا۟
- और उन्होंने कहा
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- bikullin
- بِكُلٍّ
- हर एक के
- kāfirūna
- كَٰفِرُونَ
- इन्कारी हैं
फिर जब उनके पास हमारे यहाँ से सत्य आ गया तो वे कहने लगे कि 'जो चीज़ मूसा को मिली थी उसी तरह की चीज़ इसे क्यों न मिली?' क्या वे उसका इनकार नहीं कर चुके है, जो इससे पहले मूसा को प्रदान किया गया था? उन्होंने कहा, 'दोनों जादू है जो एक-दूसरे की सहायता करते है।' और कहा, 'हम तो हरेक का इनकार करते है।' ([२८] अल-क़सस: 48)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ فَأْتُوْا بِكِتٰبٍ مِّنْ عِنْدِ اللّٰهِ هُوَ اَهْدٰى مِنْهُمَآ اَتَّبِعْهُ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ٤٩
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- fatū
- فَأْتُوا۟
- पस ले आओ
- bikitābin
- بِكِتَٰبٍ
- कोई किताब
- min
- مِّنْ
- पास से
- ʿindi
- عِندِ
- पास से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- huwa
- هُوَ
- वो
- ahdā
- أَهْدَىٰ
- ज़्यादा हिदायत वाली हो
- min'humā
- مِنْهُمَآ
- इन दोनों से
- attabiʿ'hu
- أَتَّبِعْهُ
- मैं पैरवी कर लूँगा उसकी
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- ṣādiqīna
- صَٰدِقِينَ
- सच्चे
कहो, 'अच्छा तो लाओ अल्लाह के यहाँ से कोई ऐसी किताब, जो इन दोनों से बढ़कर मार्गदर्शन करनेवाली हो कि मैं उसका अनुसरण करूँ, यदि तुम सच्चे हो?' ([२८] अल-क़सस: 49)Tafseer (तफ़सीर )
فَاِنْ لَّمْ يَسْتَجِيْبُوْا لَكَ فَاعْلَمْ اَنَّمَا يَتَّبِعُوْنَ اَهْوَاۤءَهُمْۗ وَمَنْ اَضَلُّ مِمَّنِ اتَّبَعَ هَوٰىهُ بِغَيْرِ هُدًى مِّنَ اللّٰهِ ۗاِنَّ اللّٰهَ لَا يَهْدِى الْقَوْمَ الظّٰلِمِيْنَ ࣖ ٥٠
- fa-in
- فَإِن
- फिर अगर
- lam
- لَّمْ
- ना
- yastajībū
- يَسْتَجِيبُوا۟
- उन्होंने क़ुबूल की
- laka
- لَكَ
- आपकी (बात)
- fa-iʿ'lam
- فَٱعْلَمْ
- तो जान लीजिए
- annamā
- أَنَّمَا
- बेशक
- yattabiʿūna
- يَتَّبِعُونَ
- वो पैरवी कर रहे हैं
- ahwāahum
- أَهْوَآءَهُمْۚ
- अपनी ख़्वाहिशात की
- waman
- وَمَنْ
- और कौन
- aḍallu
- أَضَلُّ
- ज़्यादा गुमराह है
- mimmani
- مِمَّنِ
- उससे जो
- ittabaʿa
- ٱتَّبَعَ
- पैरवी करे
- hawāhu
- هَوَىٰهُ
- अपनी ख़्वाहिशात की
- bighayri
- بِغَيْرِ
- बग़ैर
- hudan
- هُدًى
- हिदायत के
- mina
- مِّنَ
- अल्लाह की तरफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِۚ
- अल्लाह की तरफ़ से
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं वो हिदायत देता
- yahdī
- يَهْدِى
- नहीं वो हिदायत देता
- l-qawma
- ٱلْقَوْمَ
- उन लोगों को
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- जो ज़ालिम हैं
अब यदि वे तुम्हारी माँग पूरी न करें तो जान लो कि वे केवल अपनी इच्छाओं के पीछे चलते है। और उस व्यक्ति से बढ़कर भटका हुआ कौन होगा जो अल्लाह की ओर से किसी मार्गदर्शन के बिना अपनी इच्छा पर चले? निश्चय ही अल्लाह ज़ालिम लोगों को मार्ग नहीं दिखाता ([२८] अल-क़सस: 50)Tafseer (तफ़सीर )