وَمَآ اَنْتَ بِهٰدِى الْعُمْيِ عَنْ ضَلٰلَتِهِمْۗ اِنْ تُسْمِعُ اِلَّا مَنْ يُّؤْمِنُ بِاٰيٰتِنَا فَهُمْ مُّسْلِمُوْنَ ٨١
- wamā
- وَمَآ
- और नहीं
- anta
- أَنتَ
- आप
- bihādī
- بِهَٰدِى
- हिदायत देने वाले
- l-ʿum'yi
- ٱلْعُمْىِ
- अँधों को
- ʿan
- عَن
- उनकी गुमराही से
- ḍalālatihim
- ضَلَٰلَتِهِمْۖ
- उनकी गुमराही से
- in
- إِن
- नहीं
- tus'miʿu
- تُسْمِعُ
- आप सुना सकते
- illā
- إِلَّا
- मगर
- man
- مَن
- उनको जो
- yu'minu
- يُؤْمِنُ
- ईमान लाते हैं
- biāyātinā
- بِـَٔايَٰتِنَا
- हमारी आयात पर
- fahum
- فَهُم
- फिर वो
- mus'limūna
- مُّسْلِمُونَ
- फ़रमाबरदार हैं
और न तुम अंधों को उनकी गुमराही से हटाकर राह पर ला सकते हो। तुम तो बस उन्हीं को सुना सकते हो, जो हमारी आयतों पर ईमान लाना चाहें। अतः वही आज्ञाकारी होते है ([२७] अन-नम्ल: 81)Tafseer (तफ़सीर )
۞ وَاِذَا وَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِمْ اَخْرَجْنَا لَهُمْ دَاۤبَّةً مِّنَ الْاَرْضِ تُكَلِّمُهُمْ اَنَّ النَّاسَ كَانُوْا بِاٰيٰتِنَا لَا يُوْقِنُوْنَ ࣖ ٨٢
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- waqaʿa
- وَقَعَ
- वाक़ेअ हो जाएगी
- l-qawlu
- ٱلْقَوْلُ
- बात
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- akhrajnā
- أَخْرَجْنَا
- निकालेंगे हम
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- dābbatan
- دَآبَّةً
- एक जानवर
- mina
- مِّنَ
- ज़मीन से
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन से
- tukallimuhum
- تُكَلِّمُهُمْ
- जो कलाम करेगा उनसे
- anna
- أَنَّ
- कि बेशक
- l-nāsa
- ٱلنَّاسَ
- लोग
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- biāyātinā
- بِـَٔايَٰتِنَا
- हमारी आयात पर
- lā
- لَا
- ना वो यक़ीन रखते
- yūqinūna
- يُوقِنُونَ
- ना वो यक़ीन रखते
और जब उनपर बात पूरी हो जाएगी, तो हम उनके लिए धरती का प्राणी सामने लाएँगे जो उनसे बातें करेगा कि 'लोग हमारी आयतों पर विश्वास नहीं करते थे' ([२७] अन-नम्ल: 82)Tafseer (तफ़सीर )
وَيَوْمَ نَحْشُرُ مِنْ كُلِّ اُمَّةٍ فَوْجًا مِّمَّنْ يُّكَذِّبُ بِاٰيٰتِنَا فَهُمْ يُوْزَعُوْنَ ٨٣
- wayawma
- وَيَوْمَ
- और जिस दिन
- naḥshuru
- نَحْشُرُ
- हम इकट्ठा करेंगे
- min
- مِن
- हर उम्मत में से
- kulli
- كُلِّ
- हर उम्मत में से
- ummatin
- أُمَّةٍ
- हर उम्मत में से
- fawjan
- فَوْجًا
- एक फ़ौज को
- mimman
- مِّمَّن
- उनमें से जो
- yukadhibu
- يُكَذِّبُ
- झुठलाते हैं
- biāyātinā
- بِـَٔايَٰتِنَا
- हमारी आयात को
- fahum
- فَهُمْ
- तो वो
- yūzaʿūna
- يُوزَعُونَ
- वो गिरोहों में तक़सीम किए जाऐंगे
और जिस दिन हम प्रत्येक समुदाय में से एक गिरोह, ऐसे लोगों का जो हमारी आयतों को झुठलाते है, घेर लाएँगे। फिर उनकी दर्जाबन्दी की जाएगी ([२७] अन-नम्ल: 83)Tafseer (तफ़सीर )
حَتّٰٓى اِذَا جَاۤءُوْ قَالَ اَكَذَّبْتُمْ بِاٰيٰتِيْ وَلَمْ تُحِيْطُوْا بِهَا عِلْمًا اَمَّاذَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ ٨٤
- ḥattā
- حَتَّىٰٓ
- यहाँ तक कि
- idhā
- إِذَا
- जब
- jāū
- جَآءُو
- वो आजाऐंगे
- qāla
- قَالَ
- वो फ़रमाएगा
- akadhabtum
- أَكَذَّبْتُم
- क्या झुठलाया तुम ने
- biāyātī
- بِـَٔايَٰتِى
- मेरी आयात को
- walam
- وَلَمْ
- हालाँकि नहीं
- tuḥīṭū
- تُحِيطُوا۟
- तुम ने अहाता किया था
- bihā
- بِهَا
- उनका
- ʿil'man
- عِلْمًا
- इल्म के ऐतबार से
- ammādhā
- أَمَّاذَا
- या क्या कुछ
- kuntum
- كُنتُمْ
- थे तुम
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते
यहाँ तक कि जब वे आ जाएँगे तो वह कहेगा, 'क्या तुमने मेरी आयतों को झुठलाया, हालाँकि अपने ज्ञान से तुम उनपर हावी न थे या फिर तुम क्या करते थे?' ([२७] अन-नम्ल: 84)Tafseer (तफ़सीर )
وَوَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِمْ بِمَا ظَلَمُوْا فَهُمْ لَا يَنْطِقُوْنَ ٨٥
- wawaqaʿa
- وَوَقَعَ
- और वाक़ेअ हो जाएगी
- l-qawlu
- ٱلْقَوْلُ
- बात
- ʿalayhim
- عَلَيْهِم
- उन पर
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- ẓalamū
- ظَلَمُوا۟
- उन्होंने ज़ुल्म किया
- fahum
- فَهُمْ
- तो वो
- lā
- لَا
- ना वो बोल सकेंगे
- yanṭiqūna
- يَنطِقُونَ
- ना वो बोल सकेंगे
और बात उनपर पूरी होकर रहेगी, इसलिए कि उन्होंने ज़ुल्म किया। अतः वे कुछ बोल न सकेंगे ([२७] अन-नम्ल: 85)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَمْ يَرَوْا اَنَّا جَعَلْنَا الَّيْلَ لِيَسْكُنُوْا فِيْهِ وَالنَّهَارَ مُبْصِرًاۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يُّؤْمِنُوْنَ ٨٦
- alam
- أَلَمْ
- क्या नहीं
- yaraw
- يَرَوْا۟
- उन्होंने देखा
- annā
- أَنَّا
- बेशक हम
- jaʿalnā
- جَعَلْنَا
- बनाया हमने
- al-layla
- ٱلَّيْلَ
- रात को
- liyaskunū
- لِيَسْكُنُوا۟
- ताकि वो सुकून पाऐं
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- wal-nahāra
- وَٱلنَّهَارَ
- और दिन को
- mub'ṣiran
- مُبْصِرًاۚ
- रौशन
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- fī
- فِى
- इसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसमें
- laāyātin
- لَءَايَٰتٍ
- अलबत्ता निशानियाँ हैं
- liqawmin
- لِّقَوْمٍ
- उन लोगों के लिए
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- जो ईमान लाते हैं
क्या उन्होंने देखा नहीं कि हमने रात को (अँधेरी) बनाया, ताकि वे उसमें शान्ति और चैन प्राप्त करें। और दिन को प्रकाशमान बनाया (कि उसमें काम करें)? निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है, जो ईमान ले आएँ ([२७] अन-नम्ल: 86)Tafseer (तफ़सीर )
وَيَوْمَ يُنْفَخُ فِى الصُّوْرِ فَفَزِعَ مَنْ فِى السَّمٰوٰتِ وَمَنْ فِى الْاَرْضِ اِلَّا مَنْ شَاۤءَ اللّٰهُ ۗوَكُلٌّ اَتَوْهُ دَاخِرِيْنَ ٨٧
- wayawma
- وَيَوْمَ
- और जिस दिन
- yunfakhu
- يُنفَخُ
- फूँका जाऐगा
- fī
- فِى
- सूर में
- l-ṣūri
- ٱلصُّورِ
- सूर में
- fafaziʿa
- فَفَزِعَ
- तो घबरा जाऐगा
- man
- مَن
- जो कोई
- fī
- فِى
- आसमानों में है
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों में है
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- fī
- فِى
- ज़मीन में है
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में है
- illā
- إِلَّا
- मगर
- man
- مَن
- जिसे
- shāa
- شَآءَ
- चाहे
- l-lahu
- ٱللَّهُۚ
- अल्लाह
- wakullun
- وَكُلٌّ
- और सब के सब
- atawhu
- أَتَوْهُ
- आऐंगे उसके पास
- dākhirīna
- دَٰخِرِينَ
- ज़लील हो कर
और ख़याल करो जिस दिन सूर (नरसिंघा) में फूँक मारी जाएगी और जो आकाशों और धरती में है, घबरा उठेंगे, सिवाय उनके जिन्हें अल्लाह चाहे - और सब कान दबाए उसके समक्ष उपस्थित हो जाएँगे ([२७] अन-नम्ल: 87)Tafseer (तफ़सीर )
وَتَرَى الْجِبَالَ تَحْسَبُهَا جَامِدَةً وَّهِيَ تَمُرُّ مَرَّ السَّحَابِۗ صُنْعَ اللّٰهِ الَّذِيْٓ اَتْقَنَ كُلَّ شَيْءٍۗ اِنَّهٗ خَبِيْرٌ ۢبِمَا تَفْعَلُوْنَ ٨٨
- watarā
- وَتَرَى
- और आप देखते हैं
- l-jibāla
- ٱلْجِبَالَ
- पहाड़ों को
- taḥsabuhā
- تَحْسَبُهَا
- आप समझते हैं उन्हें
- jāmidatan
- جَامِدَةً
- जामिद
- wahiya
- وَهِىَ
- हालाँकि वो
- tamurru
- تَمُرُّ
- वो चलते हैं
- marra
- مَرَّ
- चलना
- l-saḥābi
- ٱلسَّحَابِۚ
- बादलों का
- ṣun'ʿa
- صُنْعَ
- कारीगरी / सनअत है
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- alladhī
- ٱلَّذِىٓ
- वो जिसने
- atqana
- أَتْقَنَ
- मज़बूत बनाया
- kulla
- كُلَّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍۚ
- चीज़ को
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- khabīrun
- خَبِيرٌۢ
- ख़ूब ख़बर रखने वाला है
- bimā
- بِمَا
- उसकी जो
- tafʿalūna
- تَفْعَلُونَ
- तुम करते हो
और तुम पहाड़ों को देखकर समझते हो कि वे जमे हुए है, हालाँकि वे चल रहे होंगे, जिस प्रकार बादल चलते है। यह अल्लाह की कारीगरी है, जिसने हर चीज़ को सुदृढ़ किया। निस्संदेह वह उसकी ख़बर रखता है, जो कुछ तुम करते हो ([२७] अन-नम्ल: 88)Tafseer (तफ़सीर )
مَنْ جَاۤءَ بِالْحَسَنَةِ فَلَهٗ خَيْرٌ مِّنْهَاۚ وَهُمْ مِّنْ فَزَعٍ يَّوْمَىِٕذٍ اٰمِنُوْنَ ٨٩
- man
- مَن
- जो कोई
- jāa
- جَآءَ
- लाएगा
- bil-ḥasanati
- بِٱلْحَسَنَةِ
- नेकी को
- falahu
- فَلَهُۥ
- तो उसके लिए
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर है
- min'hā
- مِّنْهَا
- उससे
- wahum
- وَهُم
- और वो
- min
- مِّن
- घबराहट से
- fazaʿin
- فَزَعٍ
- घबराहट से
- yawma-idhin
- يَوْمَئِذٍ
- उस दिन
- āminūna
- ءَامِنُونَ
- अमन में होंगे
जो कोई सुचरित लेकर आया उसको उससे भी अच्छा प्राप्त होगा; और ऐसे लोग घबराहट से उस दिन निश्चिन्त होंगे ([२७] अन-नम्ल: 89)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَنْ جَاۤءَ بِالسَّيِّئَةِ فَكُبَّتْ وُجُوْهُهُمْ فِى النَّارِۗ هَلْ تُجْزَوْنَ اِلَّا مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ ٩٠
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- jāa
- جَآءَ
- लाएगा
- bil-sayi-ati
- بِٱلسَّيِّئَةِ
- बुराई को
- fakubbat
- فَكُبَّتْ
- तो औंधे डाले जाऐंगे
- wujūhuhum
- وُجُوهُهُمْ
- चेहरे उनके
- fī
- فِى
- आग में
- l-nāri
- ٱلنَّارِ
- आग में
- hal
- هَلْ
- नहीं
- tuj'zawna
- تُجْزَوْنَ
- तुम बदला दिए जाओगे
- illā
- إِلَّا
- मगर
- mā
- مَا
- उसका जो
- kuntum
- كُنتُمْ
- थे तुम
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते
और जो कुचरित लेकर आया तो ऐसे लोगों के मुँह आग में औधे होंगे। (और उनसे कहा जाएगा) 'क्या तुम उसके सिवा किसी और चीज़ का बदला पा रहे हो, जो तुम करते रहे हो?' ([२७] अन-नम्ल: 90)Tafseer (तफ़सीर )