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सूरा अन-नम्ल - Page: 6

An-Naml

(चींटियाँ)

५१

فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ مَكْرِهِمْ اَنَّا دَمَّرْنٰهُمْ وَقَوْمَهُمْ اَجْمَعِيْنَ ٥١

fa-unẓur
فَٱنظُرْ
पस देखिए
kayfa
كَيْفَ
कैसा
kāna
كَانَ
हुआ
ʿāqibatu
عَٰقِبَةُ
अंजाम
makrihim
مَكْرِهِمْ
उनकी चाल का
annā
أَنَّا
बेशक हम
dammarnāhum
دَمَّرْنَٰهُمْ
तबाह कर दिया हमने उन्हें
waqawmahum
وَقَوْمَهُمْ
और उनकी क़ौम को
ajmaʿīna
أَجْمَعِينَ
सब के सबको
अब देख लो, उनकी चाल का कैसा परिणाम हुआ! हमने उन्हें और उनकी क़ौम - सबको विनष्ट करके रख दिया ([२७] अन-नम्ल: 51)
Tafseer (तफ़सीर )
५२

فَتِلْكَ بُيُوْتُهُمْ خَاوِيَةً ۢبِمَا ظَلَمُوْاۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً لِّقَوْمٍ يَّعْلَمُوْنَ ٥٢

fatil'ka
فَتِلْكَ
तो ये
buyūtuhum
بُيُوتُهُمْ
उनके घर हैं
khāwiyatan
خَاوِيَةًۢ
गिरे हुए
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
ẓalamū
ظَلَمُوٓا۟ۗ
उन्होंने ज़ुल्म किया
inna
إِنَّ
यक़ीनन
فِى
इसमें
dhālika
ذَٰلِكَ
इसमें
laāyatan
لَءَايَةً
अलबत्ता एक निशानी है
liqawmin
لِّقَوْمٍ
उन लोगों के लिए
yaʿlamūna
يَعْلَمُونَ
जो इल्म रखते हैं
अब ये उनके घर उनके ज़ुल्म के कारण उजडें पड़े हुए है। निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है उन लोगों के लिए जो जानना चाहें ([२७] अन-नम्ल: 52)
Tafseer (तफ़सीर )
५३

وَاَنْجَيْنَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَكَانُوْا يَتَّقُوْنَ ٥٣

wa-anjaynā
وَأَنجَيْنَا
और निजात दी हमने
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन्हें जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
wakānū
وَكَانُوا۟
और थे वो
yattaqūna
يَتَّقُونَ
वो डरते
और हमने उन लोगों को बचा लिया, जो ईमान लाए और डर रखते थे ([२७] अन-नम्ल: 53)
Tafseer (तफ़सीर )
५४

وَلُوْطًا اِذْ قَالَ لِقَوْمِهٖٓ اَتَأْتُوْنَ الْفَاحِشَةَ وَاَنْتُمْ تُبْصِرُوْنَ ٥٤

walūṭan
وَلُوطًا
और लूत को
idh
إِذْ
जब
qāla
قَالَ
उसने कहा
liqawmihi
لِقَوْمِهِۦٓ
अपनी क़ौम से
atatūna
أَتَأْتُونَ
क्या तुम आते हो
l-fāḥishata
ٱلْفَٰحِشَةَ
बेहयाई को
wa-antum
وَأَنتُمْ
हालाँकि तुम
tub'ṣirūna
تُبْصِرُونَ
तुम देखते हो
और लूत को भी भेजा, जब उसने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, 'क्या तुम आँखों देखते हुए अश्लील कर्म करते हो? ([२७] अन-नम्ल: 54)
Tafseer (तफ़सीर )
५५

اَىِٕنَّكُمْ لَتَأْتُوْنَ الرِّجَالَ شَهْوَةً مِّنْ دُوْنِ النِّسَاۤءِ ۗبَلْ اَنْتُمْ قَوْمٌ تَجْهَلُوْنَ ٥٥

a-innakum
أَئِنَّكُمْ
क्या बेशक तुम
latatūna
لَتَأْتُونَ
अलबत्ता तुम आते हो
l-rijāla
ٱلرِّجَالَ
मर्दों के पास
shahwatan
شَهْوَةً
शहवत के लिए
min
مِّن
अलावा
dūni
دُونِ
अलावा
l-nisāi
ٱلنِّسَآءِۚ
औरतों के
bal
بَلْ
बल्कि
antum
أَنتُمْ
तुम
qawmun
قَوْمٌ
एक क़ौम हो
tajhalūna
تَجْهَلُونَ
तुम जिहालत बरतते हो
क्या तुम स्त्रियों को छोड़कर अपनी काम-तृप्ति के लिए पुरुषों के पास जाते हो? बल्कि बात यह है कि तुम बड़े ही जाहिल लोग हो।' ([२७] अन-नम्ल: 55)
Tafseer (तफ़सीर )
५६

۞ فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهٖٓ اِلَّآ اَنْ قَالُوْٓا اَخْرِجُوْٓا اٰلَ لُوْطٍ مِّنْ قَرْيَتِكُمْۙ اِنَّهُمْ اُنَاسٌ يَّتَطَهَّرُوْنَ ٥٦

famā
فَمَا
तो ना
kāna
كَانَ
था
jawāba
جَوَابَ
जवाब
qawmihi
قَوْمِهِۦٓ
उसकी क़ौम का
illā
إِلَّآ
मगर
an
أَن
ये कि
qālū
قَالُوٓا۟
उन्होंने कहा
akhrijū
أَخْرِجُوٓا۟
निकाल दो
āla
ءَالَ
आले लूत को
lūṭin
لُوطٍ
आले लूत को
min
مِّن
अपनी बस्ती से
qaryatikum
قَرْيَتِكُمْۖ
अपनी बस्ती से
innahum
إِنَّهُمْ
बेशक वो
unāsun
أُنَاسٌ
लोग
yataṭahharūna
يَتَطَهَّرُونَ
वो बहुत पाकबाज़ बनते हैं
परन्तु उसकी क़ौम के लोगों का उत्तर इसके सिवा कुछ न था कि उन्होंने कहा, 'निकाल बाहर करो लूत के घरवालों को अपनी बस्ती से। ये लोग सुथराई को बहुत पसन्द करते है!' ([२७] अन-नम्ल: 56)
Tafseer (तफ़सीर )
५७

فَاَنْجَيْنٰهُ وَاَهْلَهٗٓ اِلَّا امْرَاَتَهٗ قَدَّرْنٰهَا مِنَ الْغٰبِرِيْنَ ٥٧

fa-anjaynāhu
فَأَنجَيْنَٰهُ
तो निजात दी हमने उसे
wa-ahlahu
وَأَهْلَهُۥٓ
और उसके घर वालों को
illā
إِلَّا
सिवाए
im'ra-atahu
ٱمْرَأَتَهُۥ
उसकी बीवी के
qaddarnāhā
قَدَّرْنَٰهَا
मुक़द्दर कर दिया हमने उसे
mina
مِنَ
पीछे रहने वालों में से
l-ghābirīna
ٱلْغَٰبِرِينَ
पीछे रहने वालों में से
अन्ततः हमने उसे और उसके घरवालों को बचा लिया सिवाय उसकी स्त्री के। उसके लिए हमने नियत कर दिया था कि वह पीछे रह जानेवालों में से होगी ([२७] अन-नम्ल: 57)
Tafseer (तफ़सीर )
५८

وَاَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ مَّطَرًاۚ فَسَاۤءَ مَطَرُ الْمُنْذَرِيْنَ ࣖ ٥٨

wa-amṭarnā
وَأَمْطَرْنَا
और बरसाई हमने
ʿalayhim
عَلَيْهِم
उन पर
maṭaran
مَّطَرًاۖ
एक बारिश
fasāa
فَسَآءَ
तो बहुत बुरी थी
maṭaru
مَطَرُ
बारिश
l-mundharīna
ٱلْمُنذَرِينَ
डराए जाने वालों की
और हमने उनपर एक बरसात बरसाई और वह बहुत ही बुरी बरसात था उन लोगों के हक़ में, जिन्हें सचेत किया जा चुका था ([२७] अन-नम्ल: 58)
Tafseer (तफ़सीर )
५९

قُلِ الْحَمْدُ لِلّٰهِ وَسَلٰمٌ عَلٰى عِبَادِهِ الَّذِيْنَ اصْطَفٰىۗ ءٰۤاللّٰهُ خَيْرٌ اَمَّا يُشْرِكُوْنَ ۔ ٥٩

quli
قُلِ
कह दीजिए
l-ḥamdu
ٱلْحَمْدُ
सब तारीफ़
lillahi
لِلَّهِ
अल्लाह के लिए है
wasalāmun
وَسَلَٰمٌ
और सलाम है
ʿalā
عَلَىٰ
उसके उन बन्दों पर
ʿibādihi
عِبَادِهِ
उसके उन बन्दों पर
alladhīna
ٱلَّذِينَ
जिन्हें
iṣ'ṭafā
ٱصْطَفَىٰٓۗ
उसने चुन लिया
āllahu
ءَآللَّهُ
क्या अल्लाह
khayrun
خَيْرٌ
बेहतर है
ammā
أَمَّا
या जिन्हें
yush'rikūna
يُشْرِكُونَ
वो शरीक ठहराते हैं
कहो, 'प्रशंसा अल्लाह के लिए है और सलाम है उनके उन बन्दों पर जिन्हें उसने चुन लिया। क्या अल्लाह अच्छा है या वे जिन्हें वे साझी ठहरा रहे है? ([२७] अन-नम्ल: 59)
Tafseer (तफ़सीर )
६०

اَمَّنْ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ وَاَنْزَلَ لَكُمْ مِّنَ السَّمَاۤءِ مَاۤءً فَاَنْۢبَتْنَا بِهٖ حَدَاۤىِٕقَ ذَاتَ بَهْجَةٍۚ مَا كَانَ لَكُمْ اَنْ تُنْۢبِتُوْا شَجَرَهَاۗ ءَاِلٰهٌ مَّعَ اللّٰهِ ۗبَلْ هُمْ قَوْمٌ يَّعْدِلُوْنَ ۗ ٦٠

amman
أَمَّنْ
या कौन है जिसने
khalaqa
خَلَقَ
पैदा किया
l-samāwāti
ٱلسَّمَٰوَٰتِ
आसमानों
wal-arḍa
وَٱلْأَرْضَ
और ज़मीन को
wa-anzala
وَأَنزَلَ
और उसने उतारा
lakum
لَكُم
तुम्हारे लिए
mina
مِّنَ
आसमान से
l-samāi
ٱلسَّمَآءِ
आसमान से
māan
مَآءً
पानी
fa-anbatnā
فَأَنۢبَتْنَا
फिर उगाए हमने
bihi
بِهِۦ
साथ इसके
ḥadāiqa
حَدَآئِقَ
बाग़ात
dhāta
ذَاتَ
रौनक़ वाले
bahjatin
بَهْجَةٍ
रौनक़ वाले
مَّا
ना
kāna
كَانَ
था
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
an
أَن
कि
tunbitū
تُنۢبِتُوا۟
तुम उगा सको
shajarahā
شَجَرَهَآۗ
दरख़्त उनके
a-ilāhun
أَءِلَٰهٌ
क्या है कोई इलाह
maʿa
مَّعَ
साथ
l-lahi
ٱللَّهِۚ
अल्लाह के
bal
بَلْ
बल्कि
hum
هُمْ
वो
qawmun
قَوْمٌ
ऐसे लोग हैं
yaʿdilūna
يَعْدِلُونَ
जो(अल्लाह के) बराबर क़रार देते हैं
(तुम्हारे पूज्य अच्छे है) या वह जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया और तुम्हारे लिए आकाश से पानी बरसाया; उसके द्वारा हमने रमणीय उद्यान उगाए? तुम्हारे लिए सम्भव न था कि तुम उनके वृक्षों को उगाते। - क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु-पूज्य है? नहीं, बल्कि वही लोग मार्ग से हटकर चले जा रहे है! ([२७] अन-नम्ल: 60)
Tafseer (तफ़सीर )