قَالَ نَكِّرُوْا لَهَا عَرْشَهَا نَنْظُرْ اَتَهْتَدِيْٓ اَمْ تَكُوْنُ مِنَ الَّذِيْنَ لَا يَهْتَدُوْنَ ٤١
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- nakkirū
- نَكِّرُوا۟
- अनजाना कर दो
- lahā
- لَهَا
- उसके लिए
- ʿarshahā
- عَرْشَهَا
- तख़्त उसका
- nanẓur
- نَنظُرْ
- हम देखते हैं
- atahtadī
- أَتَهْتَدِىٓ
- क्या वो हिदायत पाती है
- am
- أَمْ
- या
- takūnu
- تَكُونُ
- होती है वो
- mina
- مِنَ
- उन में से जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन में से जो
- lā
- لَا
- नहीं वो हिदायत पाते
- yahtadūna
- يَهْتَدُونَ
- नहीं वो हिदायत पाते
उसने कहा, 'उसके पास उसके सिंहासन का रूप बदल दो। देंखे वह वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर रह जाती है, जो वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर जाती है, जो वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर रह जाती है, जो वास्तविकता को नहीं पाते।' ([२७] अन-नम्ल: 41)Tafseer (तफ़सीर )
فَلَمَّا جَاۤءَتْ قِيْلَ اَهٰكَذَا عَرْشُكِۗ قَالَتْ كَاَنَّهٗ هُوَۚ وَاُوْتِيْنَا الْعِلْمَ مِنْ قَبْلِهَا وَكُنَّا مُسْلِمِيْنَ ٤٢
- falammā
- فَلَمَّا
- तो जब
- jāat
- جَآءَتْ
- वो आ गई
- qīla
- قِيلَ
- कहा गया
- ahākadhā
- أَهَٰكَذَا
- क्या इसी तरह का है
- ʿarshuki
- عَرْشُكِۖ
- तख़्त तेरा
- qālat
- قَالَتْ
- वो बोली
- ka-annahu
- كَأَنَّهُۥ
- गोया कि वो
- huwa
- هُوَۚ
- वो ही है
- waūtīnā
- وَأُوتِينَا
- और दिए गए थे हम
- l-ʿil'ma
- ٱلْعِلْمَ
- इल्म
- min
- مِن
- इससे पहले ही
- qablihā
- قَبْلِهَا
- इससे पहले ही
- wakunnā
- وَكُنَّا
- और थे हम
- mus'limīna
- مُسْلِمِينَ
- फ़रमाबरदार
जब वह आई तो कहा गया, 'क्या तुम्हारा सिंहासन ऐसा ही है?' उसने कहा, 'यह तो जैसे वही है, और हमें तो इससे पहले ही ज्ञान प्राप्त हो चुका था; और हम आज्ञाकारी हो गए थे।' ([२७] अन-नम्ल: 42)Tafseer (तफ़सीर )
وَصَدَّهَا مَا كَانَتْ تَّعْبُدُ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ ۗاِنَّهَا كَانَتْ مِنْ قَوْمٍ كٰفِرِيْنَ ٤٣
- waṣaddahā
- وَصَدَّهَا
- और रोक रखा था उसे
- mā
- مَا
- जिसकी
- kānat
- كَانَت
- थी वो
- taʿbudu
- تَّعْبُدُ
- वो इबादत करती
- min
- مِن
- सिवाए
- dūni
- دُونِ
- सिवाए
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- अल्लाह के
- innahā
- إِنَّهَا
- बेशक वो
- kānat
- كَانَتْ
- थी वो
- min
- مِن
- क़ौम से
- qawmin
- قَوْمٍ
- क़ौम से
- kāfirīna
- كَٰفِرِينَ
- काफ़िरों की
अल्लाह से हटकर वह दूसरे को पूजती थी। इसी चीज़ ने उसे रोक रखा था। निस्संदेह वह एक इनकार करनेवाली क़ौम में से थी ([२७] अन-नम्ल: 43)Tafseer (तफ़सीर )
قِيْلَ لَهَا ادْخُلِى الصَّرْحَۚ فَلَمَّا رَاَتْهُ حَسِبَتْهُ لُجَّةً وَّكَشَفَتْ عَنْ سَاقَيْهَاۗ قَالَ اِنَّهٗ صَرْحٌ مُّمَرَّدٌ مِّنْ قَوَارِيْرَ ەۗ قَالَتْ رَبِّ اِنِّيْ ظَلَمْتُ نَفْسِيْ وَاَسْلَمْتُ مَعَ سُلَيْمٰنَ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ࣖ ٤٤
- qīla
- قِيلَ
- कहा गया
- lahā
- لَهَا
- उसे
- ud'khulī
- ٱدْخُلِى
- दाख़िल हो जाओ
- l-ṣarḥa
- ٱلصَّرْحَۖ
- महल में
- falammā
- فَلَمَّا
- तो जब
- ra-athu
- رَأَتْهُ
- उसने देखा उसे
- ḥasibathu
- حَسِبَتْهُ
- वो समझी उसे
- lujjatan
- لُجَّةً
- गहरा पानी
- wakashafat
- وَكَشَفَتْ
- और उसने खोल दीं
- ʿan
- عَن
- पिंडलियाँ अपनी
- sāqayhā
- سَاقَيْهَاۚ
- पिंडलियाँ अपनी
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- ṣarḥun
- صَرْحٌ
- महल है
- mumarradun
- مُّمَرَّدٌ
- चिकना
- min
- مِّن
- (बनाया गया) शीशों से
- qawārīra
- قَوَارِيرَۗ
- (बनाया गया) शीशों से
- qālat
- قَالَتْ
- वो कहने लगी
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- innī
- إِنِّى
- बेशक मैं
- ẓalamtu
- ظَلَمْتُ
- ज़ुल्म किया मैं ने
- nafsī
- نَفْسِى
- अपनी जान पर
- wa-aslamtu
- وَأَسْلَمْتُ
- और इस्लाम ले आई मैं
- maʿa
- مَعَ
- साथ
- sulaymāna
- سُلَيْمَٰنَ
- सुलैमान के
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह के लिए
- rabbi
- رَبِّ
- जो रब है
- l-ʿālamīna
- ٱلْعَٰلَمِينَ
- तमाम जहानों का
उससे कहा गया कि 'महल में प्रवेश करो।' तो जब उसने उसे देखा तो उसने उसको गहरा पानी समझा और उसने अपनी दोनों पिंडलियाँ खोल दी। उसने कहा, 'यह तो शीशे से निर्मित महल है।' बोली, 'ऐ मेरे रब! निश्चय ही मैंने अपने आपपर ज़ुल्म किया। अब मैंने सुलैमान के साथ अपने आपको अल्लाह के समर्पित कर दिया, जो सारे संसार का रब है।' ([२७] अन-नम्ल: 44)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ اَرْسَلْنَآ اِلٰى ثَمُوْدَ اَخَاهُمْ صٰلِحًا اَنِ اعْبُدُوا اللّٰهَ فَاِذَا هُمْ فَرِيْقٰنِ يَخْتَصِمُوْنَ ٤٥
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक
- arsalnā
- أَرْسَلْنَآ
- भेजा हमने
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ समूद के
- thamūda
- ثَمُودَ
- तरफ़ समूद के
- akhāhum
- أَخَاهُمْ
- उनके भाई
- ṣāliḥan
- صَٰلِحًا
- सालेह को
- ani
- أَنِ
- कि
- uʿ'budū
- ٱعْبُدُوا۟
- इबादत करो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह की
- fa-idhā
- فَإِذَا
- तो यकायक
- hum
- هُمْ
- वो
- farīqāni
- فَرِيقَانِ
- दो फ़रीक़ हो कर
- yakhtaṣimūna
- يَخْتَصِمُونَ
- वो झगड़ रहे थे
और समूद की ओर हमने उनके भाई सालेह को भेजा कि 'अल्लाह की बन्दगी करो।' तो क्या देखते है कि वे दो गिरोह होकर आपस में झगड़ने लगे ([२७] अन-नम्ल: 45)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ يٰقَوْمِ لِمَ تَسْتَعْجِلُوْنَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِۚ لَوْلَا تَسْتَغْفِرُوْنَ اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ ٤٦
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- yāqawmi
- يَٰقَوْمِ
- ऐ मेरी क़ौम
- lima
- لِمَ
- क्यों
- tastaʿjilūna
- تَسْتَعْجِلُونَ
- तुम जल्दी माँगते हो
- bil-sayi-ati
- بِٱلسَّيِّئَةِ
- बुराई को
- qabla
- قَبْلَ
- क़ब्ल
- l-ḥasanati
- ٱلْحَسَنَةِۖ
- भलाई से
- lawlā
- لَوْلَا
- क्यों नहीं
- tastaghfirūna
- تَسْتَغْفِرُونَ
- तुम बख़्शिश माँगते
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tur'ḥamūna
- تُرْحَمُونَ
- तुम रहम किए जाओ
उसने कहा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगों, तुम भलाई से पहले बुराई के लिए क्यों जल्दी मचा रहे हो? तुम अल्लाह से क्षमा याचना क्यों नहीं करते? कदाचित तुमपर दया की जाए।' ([२७] अन-नम्ल: 46)Tafseer (तफ़सीर )
قَالُوا اطَّيَّرْنَا بِكَ وَبِمَنْ مَّعَكَۗ قَالَ طٰۤىِٕرُكُمْ عِنْدَ اللّٰهِ بَلْ اَنْتُمْ قَوْمٌ تُفْتَنُوْنَ ٤٧
- qālū
- قَالُوا۟
- उन्होंने कहा
- iṭṭayyarnā
- ٱطَّيَّرْنَا
- बुरा शगून लिया हमने
- bika
- بِكَ
- तुझसे
- wabiman
- وَبِمَن
- और उनसे जो
- maʿaka
- مَّعَكَۚ
- साथ हैं तेरे
- qāla
- قَالَ
- कहा
- ṭāirukum
- طَٰٓئِرُكُمْ
- बदशगूनी तुम्हारी
- ʿinda
- عِندَ
- अल्लाह के पास है
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- अल्लाह के पास है
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- antum
- أَنتُمْ
- तुम
- qawmun
- قَوْمٌ
- ऐसे लोग हो
- tuf'tanūna
- تُفْتَنُونَ
- तुम आज़माए जा रहे हो
उन्होंने कहा, 'हमने तुम्हें और तुम्हारे साथवालों को अपशकुन पाया है।' उसने कहा, 'तुम्हारा शकुन-अपशकुन तो अल्लाह के पास है, बल्कि बात यह है कि तुम लोग आज़माए जा रहे हो।' ([२७] अन-नम्ल: 47)Tafseer (तफ़सीर )
وَكَانَ فِى الْمَدِيْنَةِ تِسْعَةُ رَهْطٍ يُّفْسِدُوْنَ فِى الْاَرْضِ وَلَا يُصْلِحُوْنَ ٤٨
- wakāna
- وَكَانَ
- और थे
- fī
- فِى
- शहर में
- l-madīnati
- ٱلْمَدِينَةِ
- शहर में
- tis'ʿatu
- تِسْعَةُ
- नौ
- rahṭin
- رَهْطٍ
- गिरोह
- yuf'sidūna
- يُفْسِدُونَ
- वो फ़साद करते थे
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- walā
- وَلَا
- और ना
- yuṣ'liḥūna
- يُصْلِحُونَ
- वो इस्लाह करते थे
नगर में नौ जत्थेदार थे जो धरती में बिगाड़ पैदा करते थे, सुधार का काम नहीं करते थे ([२७] अन-नम्ल: 48)Tafseer (तफ़सीर )
قَالُوْا تَقَاسَمُوْا بِاللّٰهِ لَنُبَيِّتَنَّهٗ وَاَهْلَهٗ ثُمَّ لَنَقُوْلَنَّ لِوَلِيِّهٖ مَا شَهِدْنَا مَهْلِكَ اَهْلِهٖ وَاِنَّا لَصٰدِقُوْنَ ٤٩
- qālū
- قَالُوا۟
- उन्होंने कहा
- taqāsamū
- تَقَاسَمُوا۟
- आपस में क़सम खाओ
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह की
- lanubayyitannahu
- لَنُبَيِّتَنَّهُۥ
- अलबत्ता हम ज़रूर रात को हमला करेंगे उस पर
- wa-ahlahu
- وَأَهْلَهُۥ
- और उसके घर वालों पर
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- lanaqūlanna
- لَنَقُولَنَّ
- अलबत्ता हम ज़रूर कहेंगे
- liwaliyyihi
- لِوَلِيِّهِۦ
- उसके सरपरस्त से
- mā
- مَا
- नहीं
- shahid'nā
- شَهِدْنَا
- मौजूद थे हम
- mahlika
- مَهْلِكَ
- हलाकत के वक़्त
- ahlihi
- أَهْلِهِۦ
- उसके ख़ानदान की
- wa-innā
- وَإِنَّا
- और बेशक हम
- laṣādiqūna
- لَصَٰدِقُونَ
- अलबत्ता सच्चे हैं
वे आपस में अल्लाह की क़समें खाकर बोले, 'हम अवश्य उसपर और उसके घरवालों पर रात को छापा मारेंगे। फिर उसके वली (परिजन) से कह देंगे कि हम उसके घरवालों के विनाश के अवसर पर मौजूद न थे। और हम बिलकुल सच्चे है।' ([२७] अन-नम्ल: 49)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَكَرُوْا مَكْرًا وَّمَكَرْنَا مَكْرًا وَّهُمْ لَا يَشْعُرُوْنَ ٥٠
- wamakarū
- وَمَكَرُوا۟
- और उन्होंने चाल चली
- makran
- مَكْرًا
- एक चाल
- wamakarnā
- وَمَكَرْنَا
- और तदबीर की हमने
- makran
- مَكْرًا
- एक तदबीर
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- lā
- لَا
- ना वो शऊर रखते थे
- yashʿurūna
- يَشْعُرُونَ
- ना वो शऊर रखते थे
वे एक चाल चले और हमने भी एक चाल चली और उन्हें ख़बर तक न हुई ([२७] अन-नम्ल: 50)Tafseer (तफ़सीर )