Skip to content

सूरा अन-नम्ल - Page: 5

An-Naml

(चींटियाँ)

४१

قَالَ نَكِّرُوْا لَهَا عَرْشَهَا نَنْظُرْ اَتَهْتَدِيْٓ اَمْ تَكُوْنُ مِنَ الَّذِيْنَ لَا يَهْتَدُوْنَ ٤١

qāla
قَالَ
उसने कहा
nakkirū
نَكِّرُوا۟
अनजाना कर दो
lahā
لَهَا
उसके लिए
ʿarshahā
عَرْشَهَا
तख़्त उसका
nanẓur
نَنظُرْ
हम देखते हैं
atahtadī
أَتَهْتَدِىٓ
क्या वो हिदायत पाती है
am
أَمْ
या
takūnu
تَكُونُ
होती है वो
mina
مِنَ
उन में से जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन में से जो
لَا
नहीं वो हिदायत पाते
yahtadūna
يَهْتَدُونَ
नहीं वो हिदायत पाते
उसने कहा, 'उसके पास उसके सिंहासन का रूप बदल दो। देंखे वह वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर रह जाती है, जो वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर जाती है, जो वास्तविकता को पा लेती है या उन लोगों में से होकर रह जाती है, जो वास्तविकता को नहीं पाते।' ([२७] अन-नम्ल: 41)
Tafseer (तफ़सीर )
४२

فَلَمَّا جَاۤءَتْ قِيْلَ اَهٰكَذَا عَرْشُكِۗ قَالَتْ كَاَنَّهٗ هُوَۚ وَاُوْتِيْنَا الْعِلْمَ مِنْ قَبْلِهَا وَكُنَّا مُسْلِمِيْنَ ٤٢

falammā
فَلَمَّا
तो जब
jāat
جَآءَتْ
वो आ गई
qīla
قِيلَ
कहा गया
ahākadhā
أَهَٰكَذَا
क्या इसी तरह का है
ʿarshuki
عَرْشُكِۖ
तख़्त तेरा
qālat
قَالَتْ
वो बोली
ka-annahu
كَأَنَّهُۥ
गोया कि वो
huwa
هُوَۚ
वो ही है
waūtīnā
وَأُوتِينَا
और दिए गए थे हम
l-ʿil'ma
ٱلْعِلْمَ
इल्म
min
مِن
इससे पहले ही
qablihā
قَبْلِهَا
इससे पहले ही
wakunnā
وَكُنَّا
और थे हम
mus'limīna
مُسْلِمِينَ
फ़रमाबरदार
जब वह आई तो कहा गया, 'क्या तुम्हारा सिंहासन ऐसा ही है?' उसने कहा, 'यह तो जैसे वही है, और हमें तो इससे पहले ही ज्ञान प्राप्त हो चुका था; और हम आज्ञाकारी हो गए थे।' ([२७] अन-नम्ल: 42)
Tafseer (तफ़सीर )
४३

وَصَدَّهَا مَا كَانَتْ تَّعْبُدُ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ ۗاِنَّهَا كَانَتْ مِنْ قَوْمٍ كٰفِرِيْنَ ٤٣

waṣaddahā
وَصَدَّهَا
और रोक रखा था उसे
مَا
जिसकी
kānat
كَانَت
थी वो
taʿbudu
تَّعْبُدُ
वो इबादत करती
min
مِن
सिवाए
dūni
دُونِ
सिवाए
l-lahi
ٱللَّهِۖ
अल्लाह के
innahā
إِنَّهَا
बेशक वो
kānat
كَانَتْ
थी वो
min
مِن
क़ौम से
qawmin
قَوْمٍ
क़ौम से
kāfirīna
كَٰفِرِينَ
काफ़िरों की
अल्लाह से हटकर वह दूसरे को पूजती थी। इसी चीज़ ने उसे रोक रखा था। निस्संदेह वह एक इनकार करनेवाली क़ौम में से थी ([२७] अन-नम्ल: 43)
Tafseer (तफ़सीर )
४४

قِيْلَ لَهَا ادْخُلِى الصَّرْحَۚ فَلَمَّا رَاَتْهُ حَسِبَتْهُ لُجَّةً وَّكَشَفَتْ عَنْ سَاقَيْهَاۗ قَالَ اِنَّهٗ صَرْحٌ مُّمَرَّدٌ مِّنْ قَوَارِيْرَ ەۗ قَالَتْ رَبِّ اِنِّيْ ظَلَمْتُ نَفْسِيْ وَاَسْلَمْتُ مَعَ سُلَيْمٰنَ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ࣖ ٤٤

qīla
قِيلَ
कहा गया
lahā
لَهَا
उसे
ud'khulī
ٱدْخُلِى
दाख़िल हो जाओ
l-ṣarḥa
ٱلصَّرْحَۖ
महल में
falammā
فَلَمَّا
तो जब
ra-athu
رَأَتْهُ
उसने देखा उसे
ḥasibathu
حَسِبَتْهُ
वो समझी उसे
lujjatan
لُجَّةً
गहरा पानी
wakashafat
وَكَشَفَتْ
और उसने खोल दीं
ʿan
عَن
पिंडलियाँ अपनी
sāqayhā
سَاقَيْهَاۚ
पिंडलियाँ अपनी
qāla
قَالَ
उसने कहा
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
ṣarḥun
صَرْحٌ
महल है
mumarradun
مُّمَرَّدٌ
चिकना
min
مِّن
(बनाया गया) शीशों से
qawārīra
قَوَارِيرَۗ
(बनाया गया) शीशों से
qālat
قَالَتْ
वो कहने लगी
rabbi
رَبِّ
ऐ मेरे रब
innī
إِنِّى
बेशक मैं
ẓalamtu
ظَلَمْتُ
ज़ुल्म किया मैं ने
nafsī
نَفْسِى
अपनी जान पर
wa-aslamtu
وَأَسْلَمْتُ
और इस्लाम ले आई मैं
maʿa
مَعَ
साथ
sulaymāna
سُلَيْمَٰنَ
सुलैमान के
lillahi
لِلَّهِ
अल्लाह के लिए
rabbi
رَبِّ
जो रब है
l-ʿālamīna
ٱلْعَٰلَمِينَ
तमाम जहानों का
उससे कहा गया कि 'महल में प्रवेश करो।' तो जब उसने उसे देखा तो उसने उसको गहरा पानी समझा और उसने अपनी दोनों पिंडलियाँ खोल दी। उसने कहा, 'यह तो शीशे से निर्मित महल है।' बोली, 'ऐ मेरे रब! निश्चय ही मैंने अपने आपपर ज़ुल्म किया। अब मैंने सुलैमान के साथ अपने आपको अल्लाह के समर्पित कर दिया, जो सारे संसार का रब है।' ([२७] अन-नम्ल: 44)
Tafseer (तफ़सीर )
४५

وَلَقَدْ اَرْسَلْنَآ اِلٰى ثَمُوْدَ اَخَاهُمْ صٰلِحًا اَنِ اعْبُدُوا اللّٰهَ فَاِذَا هُمْ فَرِيْقٰنِ يَخْتَصِمُوْنَ ٤٥

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक
arsalnā
أَرْسَلْنَآ
भेजा हमने
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ समूद के
thamūda
ثَمُودَ
तरफ़ समूद के
akhāhum
أَخَاهُمْ
उनके भाई
ṣāliḥan
صَٰلِحًا
सालेह को
ani
أَنِ
कि
uʿ'budū
ٱعْبُدُوا۟
इबादत करो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह की
fa-idhā
فَإِذَا
तो यकायक
hum
هُمْ
वो
farīqāni
فَرِيقَانِ
दो फ़रीक़ हो कर
yakhtaṣimūna
يَخْتَصِمُونَ
वो झगड़ रहे थे
और समूद की ओर हमने उनके भाई सालेह को भेजा कि 'अल्लाह की बन्दगी करो।' तो क्या देखते है कि वे दो गिरोह होकर आपस में झगड़ने लगे ([२७] अन-नम्ल: 45)
Tafseer (तफ़सीर )
४६

قَالَ يٰقَوْمِ لِمَ تَسْتَعْجِلُوْنَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِۚ لَوْلَا تَسْتَغْفِرُوْنَ اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ ٤٦

qāla
قَالَ
उसने कहा
yāqawmi
يَٰقَوْمِ
ऐ मेरी क़ौम
lima
لِمَ
क्यों
tastaʿjilūna
تَسْتَعْجِلُونَ
तुम जल्दी माँगते हो
bil-sayi-ati
بِٱلسَّيِّئَةِ
बुराई को
qabla
قَبْلَ
क़ब्ल
l-ḥasanati
ٱلْحَسَنَةِۖ
भलाई से
lawlā
لَوْلَا
क्यों नहीं
tastaghfirūna
تَسْتَغْفِرُونَ
तुम बख़्शिश माँगते
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tur'ḥamūna
تُرْحَمُونَ
तुम रहम किए जाओ
उसने कहा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगों, तुम भलाई से पहले बुराई के लिए क्यों जल्दी मचा रहे हो? तुम अल्लाह से क्षमा याचना क्यों नहीं करते? कदाचित तुमपर दया की जाए।' ([२७] अन-नम्ल: 46)
Tafseer (तफ़सीर )
४७

قَالُوا اطَّيَّرْنَا بِكَ وَبِمَنْ مَّعَكَۗ قَالَ طٰۤىِٕرُكُمْ عِنْدَ اللّٰهِ بَلْ اَنْتُمْ قَوْمٌ تُفْتَنُوْنَ ٤٧

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
iṭṭayyarnā
ٱطَّيَّرْنَا
बुरा शगून लिया हमने
bika
بِكَ
तुझसे
wabiman
وَبِمَن
और उनसे जो
maʿaka
مَّعَكَۚ
साथ हैं तेरे
qāla
قَالَ
कहा
ṭāirukum
طَٰٓئِرُكُمْ
बदशगूनी तुम्हारी
ʿinda
عِندَ
अल्लाह के पास है
l-lahi
ٱللَّهِۖ
अल्लाह के पास है
bal
بَلْ
बल्कि
antum
أَنتُمْ
तुम
qawmun
قَوْمٌ
ऐसे लोग हो
tuf'tanūna
تُفْتَنُونَ
तुम आज़माए जा रहे हो
उन्होंने कहा, 'हमने तुम्हें और तुम्हारे साथवालों को अपशकुन पाया है।' उसने कहा, 'तुम्हारा शकुन-अपशकुन तो अल्लाह के पास है, बल्कि बात यह है कि तुम लोग आज़माए जा रहे हो।' ([२७] अन-नम्ल: 47)
Tafseer (तफ़सीर )
४८

وَكَانَ فِى الْمَدِيْنَةِ تِسْعَةُ رَهْطٍ يُّفْسِدُوْنَ فِى الْاَرْضِ وَلَا يُصْلِحُوْنَ ٤٨

wakāna
وَكَانَ
और थे
فِى
शहर में
l-madīnati
ٱلْمَدِينَةِ
शहर में
tis'ʿatu
تِسْعَةُ
नौ
rahṭin
رَهْطٍ
गिरोह
yuf'sidūna
يُفْسِدُونَ
वो फ़साद करते थे
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
walā
وَلَا
और ना
yuṣ'liḥūna
يُصْلِحُونَ
वो इस्लाह करते थे
नगर में नौ जत्थेदार थे जो धरती में बिगाड़ पैदा करते थे, सुधार का काम नहीं करते थे ([२७] अन-नम्ल: 48)
Tafseer (तफ़सीर )
४९

قَالُوْا تَقَاسَمُوْا بِاللّٰهِ لَنُبَيِّتَنَّهٗ وَاَهْلَهٗ ثُمَّ لَنَقُوْلَنَّ لِوَلِيِّهٖ مَا شَهِدْنَا مَهْلِكَ اَهْلِهٖ وَاِنَّا لَصٰدِقُوْنَ ٤٩

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
taqāsamū
تَقَاسَمُوا۟
आपस में क़सम खाओ
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह की
lanubayyitannahu
لَنُبَيِّتَنَّهُۥ
अलबत्ता हम ज़रूर रात को हमला करेंगे उस पर
wa-ahlahu
وَأَهْلَهُۥ
और उसके घर वालों पर
thumma
ثُمَّ
फिर
lanaqūlanna
لَنَقُولَنَّ
अलबत्ता हम ज़रूर कहेंगे
liwaliyyihi
لِوَلِيِّهِۦ
उसके सरपरस्त से
مَا
नहीं
shahid'nā
شَهِدْنَا
मौजूद थे हम
mahlika
مَهْلِكَ
हलाकत के वक़्त
ahlihi
أَهْلِهِۦ
उसके ख़ानदान की
wa-innā
وَإِنَّا
और बेशक हम
laṣādiqūna
لَصَٰدِقُونَ
अलबत्ता सच्चे हैं
वे आपस में अल्लाह की क़समें खाकर बोले, 'हम अवश्य उसपर और उसके घरवालों पर रात को छापा मारेंगे। फिर उसके वली (परिजन) से कह देंगे कि हम उसके घरवालों के विनाश के अवसर पर मौजूद न थे। और हम बिलकुल सच्चे है।' ([२७] अन-नम्ल: 49)
Tafseer (तफ़सीर )
५०

وَمَكَرُوْا مَكْرًا وَّمَكَرْنَا مَكْرًا وَّهُمْ لَا يَشْعُرُوْنَ ٥٠

wamakarū
وَمَكَرُوا۟
और उन्होंने चाल चली
makran
مَكْرًا
एक चाल
wamakarnā
وَمَكَرْنَا
और तदबीर की हमने
makran
مَكْرًا
एक तदबीर
wahum
وَهُمْ
और वो
لَا
ना वो शऊर रखते थे
yashʿurūna
يَشْعُرُونَ
ना वो शऊर रखते थे
वे एक चाल चले और हमने भी एक चाल चली और उन्हें ख़बर तक न हुई ([२७] अन-नम्ल: 50)
Tafseer (तफ़सीर )