اَلَّا تَعْلُوْا عَلَيَّ وَأْتُوْنِيْ مُسْلِمِيْنَ ࣖ ٣١
- allā
- أَلَّا
- कि ना
- taʿlū
- تَعْلُوا۟
- तुम सरकशी करो
- ʿalayya
- عَلَىَّ
- मुझ पर
- watūnī
- وَأْتُونِى
- और आ जाओ मेरे पास
- mus'limīna
- مُسْلِمِينَ
- फ़रमाबरदार बन कर
यह कि मेरे मुक़ाबले में सरकशी न करो और आज्ञाकारी बनकर मेरे पास आओ।' ([२७] अन-नम्ल: 31)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَتْ يٰٓاَيُّهَا الْمَلَؤُا اَفْتُوْنِيْ فِيْٓ اَمْرِيْۚ مَا كُنْتُ قَاطِعَةً اَمْرًا حَتّٰى تَشْهَدُوْنِ ٣٢
- qālat
- قَالَتْ
- वो कहने लगी
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ
- l-mala-u
- ٱلْمَلَؤُا۟
- सरदारो
- aftūnī
- أَفْتُونِى
- जवाब दो मुझे
- fī
- فِىٓ
- मेरे मामले में
- amrī
- أَمْرِى
- मेरे मामले में
- mā
- مَا
- नहीं
- kuntu
- كُنتُ
- हूँ मैं
- qāṭiʿatan
- قَاطِعَةً
- क़तई फ़ैसला करने वाली
- amran
- أَمْرًا
- किसी काम का
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- tashhadūni
- تَشْهَدُونِ
- तुम मौजूद हो मेरे पास
उसने कहा, 'ऐ सरदारों! मेरे मामलें में मुझे परामर्श दो। मैं किसी मामले का फ़ैसला नहीं करती, जब तक कि तुम मेरे पास मौजूद न हो।' ([२७] अन-नम्ल: 32)Tafseer (तफ़सीर )
قَالُوْا نَحْنُ اُولُوْا قُوَّةٍ وَّاُولُوْا بَأْسٍ شَدِيْدٍ ەۙ وَّالْاَمْرُ اِلَيْكِ فَانْظُرِيْ مَاذَا تَأْمُرِيْنَ ٣٣
- qālū
- قَالُوا۟
- उन्होंने कहा
- naḥnu
- نَحْنُ
- हम
- ulū
- أُو۟لُوا۟
- क़ुव्वत वाले हैं
- quwwatin
- قُوَّةٍ
- क़ुव्वत वाले हैं
- wa-ulū
- وَأُو۟لُوا۟
- और जंगजू हैं
- basin
- بَأْسٍ
- और जंगजू हैं
- shadīdin
- شَدِيدٍ
- सख़्त
- wal-amru
- وَٱلْأَمْرُ
- और फ़ैसला
- ilayki
- إِلَيْكِ
- तुम्हारी तरफ़ है
- fa-unẓurī
- فَٱنظُرِى
- तो देखलो / ग़ौर कर लो
- mādhā
- مَاذَا
- क्या
- tamurīna
- تَأْمُرِينَ
- तुम हुक्म देती हो
उन्होंने कहा, 'हम शक्तिशाली है और हमें बड़ी युद्ध-क्षमता प्राप्त है। आगे मामले का अधिकार आपको है, अतः आप देख लें कि आपको क्या आदेश देना है।' ([२७] अन-नम्ल: 33)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَتْ اِنَّ الْمُلُوْكَ اِذَا دَخَلُوْا قَرْيَةً اَفْسَدُوْهَا وَجَعَلُوْٓا اَعِزَّةَ اَهْلِهَآ اَذِلَّةً ۚوَكَذٰلِكَ يَفْعَلُوْنَ ٣٤
- qālat
- قَالَتْ
- वो कहने लगी
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-mulūka
- ٱلْمُلُوكَ
- बादशाह
- idhā
- إِذَا
- जब
- dakhalū
- دَخَلُوا۟
- वो दाख़िल होते हैं
- qaryatan
- قَرْيَةً
- किसी बस्ती में
- afsadūhā
- أَفْسَدُوهَا
- वो तबाह कर देते हैं उसे
- wajaʿalū
- وَجَعَلُوٓا۟
- और वो कर देते हैं
- aʿizzata
- أَعِزَّةَ
- उसके मुअज़्ज़िज़ बाशिन्दों को
- ahlihā
- أَهْلِهَآ
- उसके मुअज़्ज़िज़ बाशिन्दों को
- adhillatan
- أَذِلَّةًۖ
- ज़लील
- wakadhālika
- وَكَذَٰلِكَ
- और इसी तरह
- yafʿalūna
- يَفْعَلُونَ
- ये करेंगे
उसने कहा, 'सम्राट जब किसी बस्ती में प्रवेश करते है, तो उसे ख़राब कर देते है और वहाँ के प्रभावशाली लोगों को अपमानित करके रहते है। और वे ऐसा ही करेंगे ([२७] अन-नम्ल: 34)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِنِّيْ مُرْسِلَةٌ اِلَيْهِمْ بِهَدِيَّةٍ فَنٰظِرَةٌ ۢبِمَ يَرْجِعُ الْمُرْسَلُوْنَ ٣٥
- wa-innī
- وَإِنِّى
- और बेशक मैं
- mur'silatun
- مُرْسِلَةٌ
- भेजने वाली हूँ
- ilayhim
- إِلَيْهِم
- तरफ़ उनके
- bihadiyyatin
- بِهَدِيَّةٍ
- एक हदिया
- fanāẓiratun
- فَنَاظِرَةٌۢ
- फिर देखने वाली हूँ
- bima
- بِمَ
- साथ किस चीज़ के
- yarjiʿu
- يَرْجِعُ
- लौटते हैं
- l-mur'salūna
- ٱلْمُرْسَلُونَ
- भेजे हुए (क़ासिद)
मैं उनके पास एक उपहार भेजती हूँ; फिर देखती हूँ कि दूत क्या उत्तर लेकर लौटते है।' ([२७] अन-नम्ल: 35)Tafseer (तफ़सीर )
فَلَمَّا جَاۤءَ سُلَيْمٰنَ قَالَ اَتُمِدُّوْنَنِ بِمَالٍ فَمَآ اٰتٰىنِ َۧ اللّٰهُ خَيْرٌ مِّمَّآ اٰتٰىكُمْۚ بَلْ اَنْتُمْ بِهَدِيَّتِكُمْ تَفْرَحُوْنَ ٣٦
- falammā
- فَلَمَّا
- तो जब
- jāa
- جَآءَ
- वो आया
- sulaymāna
- سُلَيْمَٰنَ
- सुलैमान के पास
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- atumiddūnani
- أَتُمِدُّونَنِ
- क्या तुम मदद देते हो मुझे
- bimālin
- بِمَالٍ
- साथ माल के
- famā
- فَمَآ
- तो जो
- ātāniya
- ءَاتَىٰنِۦَ
- अता किया मुझे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर है
- mimmā
- مِّمَّآ
- उससे जो
- ātākum
- ءَاتَىٰكُم
- उसने अता किया तुम्हें
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- antum
- أَنتُم
- तुम ही
- bihadiyyatikum
- بِهَدِيَّتِكُمْ
- साथ अपने हदिये के
- tafraḥūna
- تَفْرَحُونَ
- तुम ख़ुश होते हो
फिर जब वह सुलैमान के पास पहुँचा तो उसने (सुलैमान ने) कहा, 'क्या तुम माल से मेरी सहायता करोगे, तो जो कुछ अल्लाह ने मुझे दिया है वह उससे कहीं उत्तम है, जो उसने तुम्हें दिया है? बल्कि तुम्ही लोग हो जो अपने उपहार से प्रसन्न होते हो! ([२७] अन-नम्ल: 36)Tafseer (तफ़सीर )
اِرْجِعْ اِلَيْهِمْ فَلَنَأْتِيَنَّهُمْ بِجُنُوْدٍ لَّا قِبَلَ لَهُمْ بِهَا وَلَنُخْرِجَنَّهُمْ مِّنْهَآ اَذِلَّةً وَّهُمْ صَاغِرُوْنَ ٣٧
- ir'jiʿ
- ٱرْجِعْ
- लौट जाओ
- ilayhim
- إِلَيْهِمْ
- उनकी तरफ़
- falanatiyannahum
- فَلَنَأْتِيَنَّهُم
- पस अलबत्ता हम ज़रूर लाऐंगे उनके पास
- bijunūdin
- بِجُنُودٍ
- ऐसे लश्करों को
- lā
- لَّا
- नहीं कोई मुक़ाबला
- qibala
- قِبَلَ
- नहीं कोई मुक़ाबला
- lahum
- لَهُم
- उनके लिए
- bihā
- بِهَا
- उनका
- walanukh'rijannahum
- وَلَنُخْرِجَنَّهُم
- और अलबत्ता हम ज़रूर निकाल देंगे उन्हें
- min'hā
- مِّنْهَآ
- उससे
- adhillatan
- أَذِلَّةً
- ज़लील करके
- wahum
- وَهُمْ
- इस हाल में कि वो
- ṣāghirūna
- صَٰغِرُونَ
- ख़्वार होंगे
उनके पास वापस जाओ। हम उनपर ऐसी सेनाएँ लेकर आएँगे, जिनका मुक़ाबला वे न कर सकेंगे और हम उन्हें अपमानित करके वहाँ से निकाल देंगे कि वे पस्त होकर रहेंगे।' ([२७] अन-नम्ल: 37)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ يٰٓاَيُّهَا الْمَلَؤُا اَيُّكُمْ يَأْتِيْنِيْ بِعَرْشِهَا قَبْلَ اَنْ يَّأْتُوْنِيْ مُسْلِمِيْنَ ٣٨
- qāla
- قَالَ
- कहा
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ
- l-mala-u
- ٱلْمَلَؤُا۟
- सरदारो
- ayyukum
- أَيُّكُمْ
- कौन तुम में से
- yatīnī
- يَأْتِينِى
- लाएगा मेरे पास
- biʿarshihā
- بِعَرْشِهَا
- तख़्त उसका
- qabla
- قَبْلَ
- इससे पहले
- an
- أَن
- कि
- yatūnī
- يَأْتُونِى
- वो आ जाऐं मेरे पास
- mus'limīna
- مُسْلِمِينَ
- फ़रमाबरदार बन कर
उसने (सुलैमान ने) कहा, 'ऐ सरदारो! तुममें कौन उसका सिंहासन लेकर मेरे पास आता है, इससे पहले कि वे लोग आज्ञाकारी होकर मेरे पास आएँ?' ([२७] अन-नम्ल: 38)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ عِفْرِيْتٌ مِّنَ الْجِنِّ اَنَا۠ اٰتِيْكَ بِهٖ قَبْلَ اَنْ تَقُوْمَ مِنْ مَّقَامِكَۚ وَاِنِّيْ عَلَيْهِ لَقَوِيٌّ اَمِيْنٌ ٣٩
- qāla
- قَالَ
- कहा
- ʿif'rītun
- عِفْرِيتٌ
- एक देव ने
- mina
- مِّنَ
- जिन्नों में से
- l-jini
- ٱلْجِنِّ
- जिन्नों में से
- anā
- أَنَا۠
- मैं
- ātīka
- ءَاتِيكَ
- मैं ले आऊँगा आपके पास
- bihi
- بِهِۦ
- उसे
- qabla
- قَبْلَ
- इससे पहले
- an
- أَن
- कि
- taqūma
- تَقُومَ
- आप खड़े हों
- min
- مِن
- अपनी जगह से
- maqāmika
- مَّقَامِكَۖ
- अपनी जगह से
- wa-innī
- وَإِنِّى
- और बेशक मैं
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- इस पर
- laqawiyyun
- لَقَوِىٌّ
- अलबत्ता क़ुव्वत रखने वाला
- amīnun
- أَمِينٌ
- बहुत अमानतदार हूँ
जिन्नों में से एक बलिष्ठ निर्भीक ने कहा, 'मैं उसे आपके पास ले आऊँगा। इससे पहले कि आप अपने स्थान से उठे। मुझे इसकी शक्ति प्राप्त है और मैं अमानतदार भी हूँ।' ([२७] अन-नम्ल: 39)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ الَّذِيْ عِنْدَهٗ عِلْمٌ مِّنَ الْكِتٰبِ اَنَا۠ اٰتِيْكَ بِهٖ قَبْلَ اَنْ يَّرْتَدَّ اِلَيْكَ طَرْفُكَۗ فَلَمَّا رَاٰهُ مُسْتَقِرًّا عِنْدَهٗ قَالَ هٰذَا مِنْ فَضْلِ رَبِّيْۗ لِيَبْلُوَنِيْٓ ءَاَشْكُرُ اَمْ اَكْفُرُۗ وَمَنْ شَكَرَ فَاِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهٖۚ وَمَنْ كَفَرَ فَاِنَّ رَبِّيْ غَنِيٌّ كَرِيْمٌ ٤٠
- qāla
- قَالَ
- कहा
- alladhī
- ٱلَّذِى
- उसने
- ʿindahu
- عِندَهُۥ
- जिसके पास
- ʿil'mun
- عِلْمٌ
- इल्म था
- mina
- مِّنَ
- किताब का
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- किताब का
- anā
- أَنَا۠
- मैं
- ātīka
- ءَاتِيكَ
- मैं ले आऊँगा आपके पास
- bihi
- بِهِۦ
- उसे
- qabla
- قَبْلَ
- इससे पहले
- an
- أَن
- कि
- yartadda
- يَرْتَدَّ
- लौटे
- ilayka
- إِلَيْكَ
- आपकी तरफ़
- ṭarfuka
- طَرْفُكَۚ
- नज़र आपकी
- falammā
- فَلَمَّا
- फिर जब
- raāhu
- رَءَاهُ
- उसने देखा उसे
- mus'taqirran
- مُسْتَقِرًّا
- रखा हुआ
- ʿindahu
- عِندَهُۥ
- अपने पास
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- hādhā
- هَٰذَا
- ये
- min
- مِن
- फ़ज़ल से है
- faḍli
- فَضْلِ
- फ़ज़ल से है
- rabbī
- رَبِّى
- मेरे रब के
- liyabluwanī
- لِيَبْلُوَنِىٓ
- ताकि वो आज़माए मुझे
- a-ashkuru
- ءَأَشْكُرُ
- क्या मैं शुक्र करता हूँ
- am
- أَمْ
- या
- akfuru
- أَكْفُرُۖ
- मैं नाशुक्री करता हूँ
- waman
- وَمَن
- और जिसने
- shakara
- شَكَرَ
- शुक्र किया
- fa-innamā
- فَإِنَّمَا
- तो यक़ीनन
- yashkuru
- يَشْكُرُ
- वो शुक्र करेगा
- linafsihi
- لِنَفْسِهِۦۖ
- अपने ही लिए
- waman
- وَمَن
- और जिसने
- kafara
- كَفَرَ
- कुफ़्र किया
- fa-inna
- فَإِنَّ
- चो यक़ीनन
- rabbī
- رَبِّى
- मेरा रब
- ghaniyyun
- غَنِىٌّ
- बहुत बेनियाज़ है
- karīmun
- كَرِيمٌ
- निहायत इज़्ज़त वाला है
जिस व्यक्ति के पास किताब का ज्ञान था, उसने कहा, 'मैं आपकी पलक झपकने से पहले उसे आपके पास लाए देता हूँ।' फिर जब उसने उसे अपने पास रखा हुआ देखा तो कहा, 'यह मेरे रब का उदार अनुग्रह है, ताकि वह मेरी परीक्षा करे कि मैं कृतज्ञता दिखाता हूँ या कृतघ्न बनता हूँ। जो कृतज्ञता दिखलाता है तो वह अपने लिए ही कृतज्ञता दिखलाता है और वह जिसने कृतघ्नता दिखाई, तो मेरा रब निश्चय ही निस्पृह, बड़ा उदार है।' ([२७] अन-नम्ल: 40)Tafseer (तफ़सीर )