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सूरा अन-नम्ल - Page: 2

An-Naml

(चींटियाँ)

११

اِلَّا مَنْ ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسْنًاۢ بَعْدَ سُوْۤءٍ فَاِنِّيْ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ١١

illā
إِلَّا
मगर
man
مَن
जिसने
ẓalama
ظَلَمَ
ज़ुल्म किया
thumma
ثُمَّ
फिर
baddala
بَدَّلَ
उसने बदल दिया
ḥus'nan
حُسْنًۢا
नेकी से
baʿda
بَعْدَ
बाद
sūin
سُوٓءٍ
बुराई के
fa-innī
فَإِنِّى
तो बेशक मैं
ghafūrun
غَفُورٌ
बहुत बख़्शने वाला हूँ
raḥīmun
رَّحِيمٌ
निहायत रहम करने वाला हूँ
सिवाय उसके जिसने कोई ज़्यादती की हो। फिर बुराई के पश्चात उसे भलाई से बदल दिया, तो मैं भी बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान हूँ ([२७] अन-नम्ल: 11)
Tafseer (तफ़सीर )
१२

وَاَدْخِلْ يَدَكَ فِيْ جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاۤءَ مِنْ غَيْرِ سُوْۤءٍۙ فِيْ تِسْعِ اٰيٰتٍ اِلٰى فِرْعَوْنَ وَقَوْمِهٖۚ اِنَّهُمْ كَانُوْا قَوْمًا فٰسِقِيْنَ ١٢

wa-adkhil
وَأَدْخِلْ
और दाख़िल कर दे
yadaka
يَدَكَ
हाथ अपना
فِى
अपने गिरेबान में
jaybika
جَيْبِكَ
अपने गिरेबान में
takhruj
تَخْرُجْ
वो निकलेगा
bayḍāa
بَيْضَآءَ
सफ़ेद /चमकता हुआ
min
مِنْ
बग़ैर
ghayri
غَيْرِ
बग़ैर
sūin
سُوٓءٍۖ
मर्ज़ /तक्लीफ़ के
فِى
नौ निशानियों में से हैं
tis'ʿi
تِسْعِ
नौ निशानियों में से हैं
āyātin
ءَايَٰتٍ
नौ निशानियों में से हैं
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ फ़िरऔन
fir'ʿawna
فِرْعَوْنَ
तरफ़ फ़िरऔन
waqawmihi
وَقَوْمِهِۦٓۚ
और उसकी क़ौम के
innahum
إِنَّهُمْ
बेशक वो
kānū
كَانُوا۟
हैं वो
qawman
قَوْمًا
लोग
fāsiqīna
فَٰسِقِينَ
नाफ़रमान
अपना हाथ गिरेबान में डाल। वह बिना किसी ख़राबी के उज्जवल चमकता निकलेगा। ये नौ निशानियों में से है फ़िरऔन और उसकी क़ौम की ओर भेजने के लिए। निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग है।' ([२७] अन-नम्ल: 12)
Tafseer (तफ़सीर )
१३

فَلَمَّا جَاۤءَتْهُمْ اٰيٰتُنَا مُبْصِرَةً قَالُوْا هٰذَا سِحْرٌ مُّبِيْنٌ ۚ ١٣

falammā
فَلَمَّا
तो जब
jāathum
جَآءَتْهُمْ
आ गईं उनके पास
āyātunā
ءَايَٰتُنَا
निशानियाँ हमारी
mub'ṣiratan
مُبْصِرَةً
वाज़ेह
qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
hādhā
هَٰذَا
ये
siḥ'run
سِحْرٌ
जादू है
mubīnun
مُّبِينٌ
खुल्लम-खुल्ला
किन्तु जब आँखें खोल देनेवाली हमारी निशानियाँ उनके पास आई तो उन्होंने कहा, 'यह तो खुला हुआ जादू है।' ([२७] अन-नम्ल: 13)
Tafseer (तफ़सीर )
१४

وَجَحَدُوْا بِهَا وَاسْتَيْقَنَتْهَآ اَنْفُسُهُمْ ظُلْمًا وَّعُلُوًّاۗ فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُفْسِدِيْنَ ࣖ ١٤

wajaḥadū
وَجَحَدُوا۟
और उन्होंने इन्कार किया
bihā
بِهَا
उनका
wa-is'tayqanathā
وَٱسْتَيْقَنَتْهَآ
हालाँकि यक़ीन कर लिया था उसका
anfusuhum
أَنفُسُهُمْ
उनके दिलों ने
ẓul'man
ظُلْمًا
ज़ुल्म
waʿuluwwan
وَعُلُوًّاۚ
और सरकशी से
fa-unẓur
فَٱنظُرْ
तो देखो
kayfa
كَيْفَ
किस तरह
kāna
كَانَ
हुआ
ʿāqibatu
عَٰقِبَةُ
अनजाम
l-muf'sidīna
ٱلْمُفْسِدِينَ
फ़साद करने वालों का
उन्होंने ज़ुल्म और सरकशी से उनका इनकार कर दिया, हालाँकि उनके जी को उनका विश्वास हो चुका था। अब देख लो इन बिगाड़ पैदा करनेवालों का क्या परिणाम हुआ? ([२७] अन-नम्ल: 14)
Tafseer (तफ़सीर )
१५

وَلَقَدْ اٰتَيْنَا دَاوٗدَ وَسُلَيْمٰنَ عِلْمًاۗ وَقَالَا الْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِيْ فَضَّلَنَا عَلٰى كَثِيْرٍ مِّنْ عِبَادِهِ الْمُؤْمِنِيْنَ ١٥

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
ātaynā
ءَاتَيْنَا
दिया हमने
dāwūda
دَاوُۥدَ
दाऊद
wasulaymāna
وَسُلَيْمَٰنَ
और सुलैमान को
ʿil'man
عِلْمًاۖ
इल्म
waqālā
وَقَالَا
और उन दोनों ने कहा
l-ḥamdu
ٱلْحَمْدُ
सब तारीफ़
lillahi
لِلَّهِ
अल्लाह के लिए है
alladhī
ٱلَّذِى
जिसने
faḍḍalanā
فَضَّلَنَا
फ़ज़ीलत दी हमें
ʿalā
عَلَىٰ
अक्सरियत पर
kathīrin
كَثِيرٍ
अक्सरियत पर
min
مِّنْ
अपने बन्दों में से
ʿibādihi
عِبَادِهِ
अपने बन्दों में से
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
जो ईमान लाने वाले हैं
हमने दाऊद और सुलैमान को बड़ा ज्ञान प्रदान किया था, (उन्होंने उसके महत्व को जाना) और उन दोनों ने कहा, 'सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अपने बहुत-से ईमानवाले बन्दों के मुक़ाबले में श्रेष्ठता प्रदान की।' ([२७] अन-नम्ल: 15)
Tafseer (तफ़सीर )
१६

وَوَرِثَ سُلَيْمٰنُ دَاوٗدَ وَقَالَ يٰٓاَيُّهَا النَّاسُ عُلِّمْنَا مَنْطِقَ الطَّيْرِ وَاُوْتِيْنَا مِنْ كُلِّ شَيْءٍۗ اِنَّ هٰذَا لَهُوَ الْفَضْلُ الْمُبِيْنُ ١٦

wawaritha
وَوَرِثَ
और वारिस हुआ
sulaymānu
سُلَيْمَٰنُ
सुलैमान
dāwūda
دَاوُۥدَۖ
दाऊद का
waqāla
وَقَالَ
और उसने कहा
yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
l-nāsu
ٱلنَّاسُ
लोगो
ʿullim'nā
عُلِّمْنَا
सिखाए गए हम
manṭiqa
مَنطِقَ
बोली
l-ṭayri
ٱلطَّيْرِ
परिन्दों की
waūtīnā
وَأُوتِينَا
और दिए गए हम
min
مِن
हर
kulli
كُلِّ
हर
shayin
شَىْءٍۖ
चीज़ (ज़रूरत की)
inna
إِنَّ
बेशक
hādhā
هَٰذَا
ये
lahuwa
لَهُوَ
अलबत्ता वो
l-faḍlu
ٱلْفَضْلُ
फ़ज़ल है
l-mubīnu
ٱلْمُبِينُ
वाज़ेह
दाऊद का उत्तराधिकारी सुलैमान हुआ औऱ उसने कहा, 'ऐ लोगों! हमें पक्षियों की बोली सिखाई गई है और हमें हर चीज़ दी गई है। निस्संदेह वह स्पष्ट बड़ाई है।' ([२७] अन-नम्ल: 16)
Tafseer (तफ़सीर )
१७

وَحُشِرَ لِسُلَيْمٰنَ جُنُوْدُهٗ مِنَ الْجِنِّ وَالْاِنْسِ وَالطَّيْرِ فَهُمْ يُوْزَعُوْنَ ١٧

waḥushira
وَحُشِرَ
और इकट्ठा किए गए
lisulaymāna
لِسُلَيْمَٰنَ
सुलैमान के लिए
junūduhu
جُنُودُهُۥ
उसके लश्कर
mina
مِنَ
जिन्नों में से
l-jini
ٱلْجِنِّ
जिन्नों में से
wal-insi
وَٱلْإِنسِ
और इन्सानों
wal-ṭayri
وَٱلطَّيْرِ
और परिन्दों में से
fahum
فَهُمْ
तो वो
yūzaʿūna
يُوزَعُونَ
वो गिरोहों में तक़सीम किए जाते हैं
सुलैमान के लिए जिन्न और मनुष्य और पक्षियों मे से उसकी सेनाएँ एकत्र कर गई फिर उनकी दर्जाबन्दी की जा रही थी ([२७] अन-नम्ल: 17)
Tafseer (तफ़सीर )
१८

حَتّٰىٓ اِذَآ اَتَوْا عَلٰى وَادِ النَّمْلِۙ قَالَتْ نَمْلَةٌ يّٰٓاَيُّهَا النَّمْلُ ادْخُلُوْا مَسٰكِنَكُمْۚ لَا يَحْطِمَنَّكُمْ سُلَيْمٰنُ وَجُنُوْدُهٗۙ وَهُمْ لَا يَشْعُرُوْنَ ١٨

ḥattā
حَتَّىٰٓ
यहाँ तक कि
idhā
إِذَآ
जब
ataw
أَتَوْا۟
वो आए
ʿalā
عَلَىٰ
वादी पर
wādi
وَادِ
वादी पर
l-namli
ٱلنَّمْلِ
चींटीयों की
qālat
قَالَتْ
कहने लगी
namlatun
نَمْلَةٌ
एक चींटी
yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
l-namlu
ٱلنَّمْلُ
चींटियों
ud'khulū
ٱدْخُلُوا۟
दाख़िल हो जाओ
masākinakum
مَسَٰكِنَكُمْ
अपने घरों में
لَا
ना कुचल डालें तुम्हें
yaḥṭimannakum
يَحْطِمَنَّكُمْ
ना कुचल डालें तुम्हें
sulaymānu
سُلَيْمَٰنُ
सुलैमान
wajunūduhu
وَجُنُودُهُۥ
और लश्कर उसके
wahum
وَهُمْ
और वो
لَا
वो शऊर ना रखते हों
yashʿurūna
يَشْعُرُونَ
वो शऊर ना रखते हों
यहाँ तक कि जब वे चींटियों की घाटी में पहुँचे तो एक चींटी ने कहा, 'ऐ चींटियों! अपने घरों में प्रवेश कर जाओ। कहीं सुलैमान और उसकी सेनाएँ तुम्हें कुचल न डालें और उन्हें एहसास भी न हो।' ([२७] अन-नम्ल: 18)
Tafseer (तफ़सीर )
१९

فَتَبَسَّمَ ضَاحِكًا مِّنْ قَوْلِهَا وَقَالَ رَبِّ اَوْزِعْنِيْٓ اَنْ اَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِيْٓ اَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلٰى وَالِدَيَّ وَاَنْ اَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضٰىهُ وَاَدْخِلْنِيْ بِرَحْمَتِكَ فِيْ عِبَادِكَ الصّٰلِحِيْنَ ١٩

fatabassama
فَتَبَسَّمَ
तो वो मुस्करा दिया
ḍāḥikan
ضَاحِكًا
हँसते हुए
min
مِّن
उसकी बात से
qawlihā
قَوْلِهَا
उसकी बात से
waqāla
وَقَالَ
और उसने कहा
rabbi
رَبِّ
ऐ मेरे रब
awziʿ'nī
أَوْزِعْنِىٓ
तौफ़ीक़ दे मुझे
an
أَنْ
कि
ashkura
أَشْكُرَ
मैं शुक्र अदा करूँ
niʿ'mataka
نِعْمَتَكَ
तेरी नेअमत का
allatī
ٱلَّتِىٓ
वो जो
anʿamta
أَنْعَمْتَ
इनआम की तू ने
ʿalayya
عَلَىَّ
मुझ पर
waʿalā
وَعَلَىٰ
और ऊपर
wālidayya
وَٰلِدَىَّ
मेरे वालिदैन के
wa-an
وَأَنْ
और ये कि
aʿmala
أَعْمَلَ
मैं अमल करूँ
ṣāliḥan
صَٰلِحًا
नेक
tarḍāhu
تَرْضَىٰهُ
तू राज़ी हो जाए जिससे
wa-adkhil'nī
وَأَدْخِلْنِى
और दाख़िल कर मुझे
biraḥmatika
بِرَحْمَتِكَ
साथ अपनी रहमत के
فِى
अपने बन्दों में
ʿibādika
عِبَادِكَ
अपने बन्दों में
l-ṣāliḥīna
ٱلصَّٰلِحِينَ
जो नेक हैं
तो वह उसकी बात पर प्रसन्न होकर मुस्कराया और कहा, 'मेरे रब! मुझे संभाले रख कि मैं तेरी उस कृपा पर कृतज्ञता दिखाता रहूँ जो तूने मुझपर और मेरे माँ-बाप पर की है। और यह कि अच्छा कर्म करूँ जो तुझे पसन्द आए और अपनी दयालुता से मुझे अपने अच्छे बन्दों में दाखिल कर।' ([२७] अन-नम्ल: 19)
Tafseer (तफ़सीर )
२०

وَتَفَقَّدَ الطَّيْرَ فَقَالَ مَا لِيَ لَآ اَرَى الْهُدْهُدَۖ اَمْ كَانَ مِنَ الْغَاۤىِٕبِيْنَ ٢٠

watafaqqada
وَتَفَقَّدَ
और उसने जायज़ा लिया
l-ṭayra
ٱلطَّيْرَ
परिन्दों का
faqāla
فَقَالَ
फिर कहा
مَا
क्या है
liya
لِىَ
मुझे
لَآ
नहीं मैं देखता
arā
أَرَى
नहीं मैं देखता
l-hud'huda
ٱلْهُدْهُدَ
हुदहुद को
am
أَمْ
या
kāna
كَانَ
है वो
mina
مِنَ
ग़ायब होने वालों में से
l-ghāibīna
ٱلْغَآئِبِينَ
ग़ायब होने वालों में से
उसने पक्षियों की जाँच-पड़ताल की तो कहा, 'क्या बात है कि मैं हुदहुद को नहीं देख रहा हूँ, (वह यहीं कहीं है) या ग़ायब हो गया है? ([२७] अन-नम्ल: 20)
Tafseer (तफ़सीर )