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सूरा अस-शुआरा - Page: 7

Ash-Shu'ara

(कवि, शायर)

६१

فَلَمَّا تَرَاۤءَ الْجَمْعٰنِ قَالَ اَصْحٰبُ مُوْسٰٓى اِنَّا لَمُدْرَكُوْنَ ۚ ٦١

falammā
فَلَمَّا
फिर जब
tarāā
تَرَٰٓءَا
आमने सामने हुईं
l-jamʿāni
ٱلْجَمْعَانِ
दो जमाअतें
qāla
قَالَ
कहने लगे
aṣḥābu
أَصْحَٰبُ
साथी
mūsā
مُوسَىٰٓ
मूसा के
innā
إِنَّا
बेशक हम
lamud'rakūna
لَمُدْرَكُونَ
अलबत्ता पा लिए जाने वाले हैं
फिर जब दोनों गिरोहों ने एक-दूसरे को देख लिया तो मूसा के साथियों ने कहा, 'हम तो पकड़े गए!' ([२६] अस-शुआरा: 61)
Tafseer (तफ़सीर )
६२

قَالَ كَلَّاۗ اِنَّ مَعِيَ رَبِّيْ سَيَهْدِيْنِ ٦٢

qāla
قَالَ
उसने कहा
kallā
كَلَّآۖ
हरगिज़ नहीं
inna
إِنَّ
बेशक
maʿiya
مَعِىَ
मेरे साथ
rabbī
رَبِّى
मेरा रब है
sayahdīni
سَيَهْدِينِ
वो ज़रूर रहनुमाई करेगा मेरी
उसने कहा, 'कदापि नहीं, मेरे साथ मेरा रब है। वह अवश्य मेरा मार्गदर्शन करेगा।' ([२६] अस-शुआरा: 62)
Tafseer (तफ़सीर )
६३

فَاَوْحَيْنَآ اِلٰى مُوْسٰٓى اَنِ اضْرِبْ بِّعَصَاكَ الْبَحْرَۗ فَانْفَلَقَ فَكَانَ كُلُّ فِرْقٍ كَالطَّوْدِ الْعَظِيْمِ ۚ ٦٣

fa-awḥaynā
فَأَوْحَيْنَآ
तो वही की हमने
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ मूसा के
mūsā
مُوسَىٰٓ
तरफ़ मूसा के
ani
أَنِ
कि
iḍ'rib
ٱضْرِب
मारो
biʿaṣāka
بِّعَصَاكَ
अपने असा को
l-baḥra
ٱلْبَحْرَۖ
समुन्दर पर
fa-infalaqa
فَٱنفَلَقَ
तो वो फट गया
fakāna
فَكَانَ
फिर हो गया
kullu
كُلُّ
हर
fir'qin
فِرْقٍ
हिस्सा
kal-ṭawdi
كَٱلطَّوْدِ
जैसे पहाड़
l-ʿaẓīmi
ٱلْعَظِيمِ
बहुत बड़ा
तब हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, 'अपनी लाठी सागर पर मार।' ([२६] अस-शुआरा: 63)
Tafseer (तफ़सीर )
६४

وَاَزْلَفْنَا ثَمَّ الْاٰخَرِيْنَ ۚ ٦٤

wa-azlafnā
وَأَزْلَفْنَا
और क़रीब कर दिया हमने
thamma
ثَمَّ
उस जगह
l-ākharīna
ٱلْءَاخَرِينَ
दूसरों को
और हम दूसरों को भी निकट ले आए ([२६] अस-शुआरा: 64)
Tafseer (तफ़सीर )
६५

وَاَنْجَيْنَا مُوْسٰى وَمَنْ مَّعَهٗٓ اَجْمَعِيْنَ ۚ ٦٥

wa-anjaynā
وَأَنجَيْنَا
और निजात दी हमने
mūsā
مُوسَىٰ
मूसा को
waman
وَمَن
और जो
maʿahu
مَّعَهُۥٓ
उसके साथ थे
ajmaʿīna
أَجْمَعِينَ
सब के सब को
हमने मूसा को और उन सबको जो उसके साथ थे, बचा लिया ([२६] अस-शुआरा: 65)
Tafseer (तफ़सीर )
६६

ثُمَّ اَغْرَقْنَا الْاٰخَرِيْنَ ۗ ٦٦

thumma
ثُمَّ
फिर
aghraqnā
أَغْرَقْنَا
ग़र्क़ कर दिया हमने
l-ākharīna
ٱلْءَاخَرِينَ
दूसरों को
और दूसरों को डूबो दिया ([२६] अस-शुआरा: 66)
Tafseer (तफ़सीर )
६७

اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً ۗوَمَا كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ٦٧

inna
إِنَّ
बेशक
فِى
उसमें
dhālika
ذَٰلِكَ
उसमें
laāyatan
لَءَايَةًۖ
अलबत्ता एक निशानी है
wamā
وَمَا
और ना
kāna
كَانَ
थे
aktharuhum
أَكْثَرُهُم
अक्सर उनके
mu'minīna
مُّؤْمِنِينَ
ईमान लान वाले
निस्संदेह इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं ([२६] अस-शुआरा: 67)
Tafseer (तफ़सीर )
६८

وَاِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ ࣖ ٦٨

wa-inna
وَإِنَّ
और बेशक
rabbaka
رَبَّكَ
रब आपका
lahuwa
لَهُوَ
अलबत्ता वो ही है
l-ʿazīzu
ٱلْعَزِيزُ
बहुत ज़बरदस्त
l-raḥīmu
ٱلرَّحِيمُ
निहायत रहम करन वाला
और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है ([२६] अस-शुआरा: 68)
Tafseer (तफ़सीर )
६९

وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَاَ اِبْرٰهِيْمَ ۘ ٦٩

wa-ut'lu
وَٱتْلُ
और पढ़ सुनाइए
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन्हें
naba-a
نَبَأَ
ख़बर
ib'rāhīma
إِبْرَٰهِيمَ
इब्राहीम की
और उन्हें इबराहीम का वृत्तान्त सुनाओ, ([२६] अस-शुआरा: 69)
Tafseer (तफ़सीर )
७०

اِذْ قَالَ لِاَبِيْهِ وَقَوْمِهٖ مَا تَعْبُدُوْنَ ٧٠

idh
إِذْ
जब
qāla
قَالَ
उसने कहा
li-abīhi
لِأَبِيهِ
अपने बाप से
waqawmihi
وَقَوْمِهِۦ
और अपनी क़ौम से
مَا
किस की
taʿbudūna
تَعْبُدُونَ
तुम इबादत करते हो
जबकि उसने अपने बाप और अपनी क़ौंम के लोगों से कहा, 'तुम क्या पूजते हो?' ([२६] अस-शुआरा: 70)
Tafseer (तफ़सीर )