६१
فَلَمَّا تَرَاۤءَ الْجَمْعٰنِ قَالَ اَصْحٰبُ مُوْسٰٓى اِنَّا لَمُدْرَكُوْنَ ۚ ٦١
- falammā
- فَلَمَّا
- फिर जब
- tarāā
- تَرَٰٓءَا
- आमने सामने हुईं
- l-jamʿāni
- ٱلْجَمْعَانِ
- दो जमाअतें
- qāla
- قَالَ
- कहने लगे
- aṣḥābu
- أَصْحَٰبُ
- साथी
- mūsā
- مُوسَىٰٓ
- मूसा के
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- lamud'rakūna
- لَمُدْرَكُونَ
- अलबत्ता पा लिए जाने वाले हैं
फिर जब दोनों गिरोहों ने एक-दूसरे को देख लिया तो मूसा के साथियों ने कहा, 'हम तो पकड़े गए!' ([२६] अस-शुआरा: 61)Tafseer (तफ़सीर )
६२
قَالَ كَلَّاۗ اِنَّ مَعِيَ رَبِّيْ سَيَهْدِيْنِ ٦٢
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- kallā
- كَلَّآۖ
- हरगिज़ नहीं
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- maʿiya
- مَعِىَ
- मेरे साथ
- rabbī
- رَبِّى
- मेरा रब है
- sayahdīni
- سَيَهْدِينِ
- वो ज़रूर रहनुमाई करेगा मेरी
उसने कहा, 'कदापि नहीं, मेरे साथ मेरा रब है। वह अवश्य मेरा मार्गदर्शन करेगा।' ([२६] अस-शुआरा: 62)Tafseer (तफ़सीर )
६३
فَاَوْحَيْنَآ اِلٰى مُوْسٰٓى اَنِ اضْرِبْ بِّعَصَاكَ الْبَحْرَۗ فَانْفَلَقَ فَكَانَ كُلُّ فِرْقٍ كَالطَّوْدِ الْعَظِيْمِ ۚ ٦٣
- fa-awḥaynā
- فَأَوْحَيْنَآ
- तो वही की हमने
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ मूसा के
- mūsā
- مُوسَىٰٓ
- तरफ़ मूसा के
- ani
- أَنِ
- कि
- iḍ'rib
- ٱضْرِب
- मारो
- biʿaṣāka
- بِّعَصَاكَ
- अपने असा को
- l-baḥra
- ٱلْبَحْرَۖ
- समुन्दर पर
- fa-infalaqa
- فَٱنفَلَقَ
- तो वो फट गया
- fakāna
- فَكَانَ
- फिर हो गया
- kullu
- كُلُّ
- हर
- fir'qin
- فِرْقٍ
- हिस्सा
- kal-ṭawdi
- كَٱلطَّوْدِ
- जैसे पहाड़
- l-ʿaẓīmi
- ٱلْعَظِيمِ
- बहुत बड़ा
तब हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, 'अपनी लाठी सागर पर मार।' ([२६] अस-शुआरा: 63)Tafseer (तफ़सीर )
६४
وَاَزْلَفْنَا ثَمَّ الْاٰخَرِيْنَ ۚ ٦٤
- wa-azlafnā
- وَأَزْلَفْنَا
- और क़रीब कर दिया हमने
- thamma
- ثَمَّ
- उस जगह
- l-ākharīna
- ٱلْءَاخَرِينَ
- दूसरों को
और हम दूसरों को भी निकट ले आए ([२६] अस-शुआरा: 64)Tafseer (तफ़सीर )
६५
وَاَنْجَيْنَا مُوْسٰى وَمَنْ مَّعَهٗٓ اَجْمَعِيْنَ ۚ ٦٥
- wa-anjaynā
- وَأَنجَيْنَا
- और निजात दी हमने
- mūsā
- مُوسَىٰ
- मूसा को
- waman
- وَمَن
- और जो
- maʿahu
- مَّعَهُۥٓ
- उसके साथ थे
- ajmaʿīna
- أَجْمَعِينَ
- सब के सब को
हमने मूसा को और उन सबको जो उसके साथ थे, बचा लिया ([२६] अस-शुआरा: 65)Tafseer (तफ़सीर )
६६
ثُمَّ اَغْرَقْنَا الْاٰخَرِيْنَ ۗ ٦٦
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- aghraqnā
- أَغْرَقْنَا
- ग़र्क़ कर दिया हमने
- l-ākharīna
- ٱلْءَاخَرِينَ
- दूसरों को
और दूसरों को डूबो दिया ([२६] अस-शुआरा: 66)Tafseer (तफ़सीर )
६७
اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً ۗوَمَا كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ٦٧
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- fī
- فِى
- उसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- उसमें
- laāyatan
- لَءَايَةًۖ
- अलबत्ता एक निशानी है
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kāna
- كَانَ
- थे
- aktharuhum
- أَكْثَرُهُم
- अक्सर उनके
- mu'minīna
- مُّؤْمِنِينَ
- ईमान लान वाले
निस्संदेह इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं ([२६] अस-शुआरा: 67)Tafseer (तफ़सीर )
६८
وَاِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ ࣖ ٦٨
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- rabbaka
- رَبَّكَ
- रब आपका
- lahuwa
- لَهُوَ
- अलबत्ता वो ही है
- l-ʿazīzu
- ٱلْعَزِيزُ
- बहुत ज़बरदस्त
- l-raḥīmu
- ٱلرَّحِيمُ
- निहायत रहम करन वाला
और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है ([२६] अस-शुआरा: 68)Tafseer (तफ़सीर )
६९
وَاتْلُ عَلَيْهِمْ نَبَاَ اِبْرٰهِيْمَ ۘ ٦٩
- wa-ut'lu
- وَٱتْلُ
- और पढ़ सुनाइए
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन्हें
- naba-a
- نَبَأَ
- ख़बर
- ib'rāhīma
- إِبْرَٰهِيمَ
- इब्राहीम की
और उन्हें इबराहीम का वृत्तान्त सुनाओ, ([२६] अस-शुआरा: 69)Tafseer (तफ़सीर )
७०
اِذْ قَالَ لِاَبِيْهِ وَقَوْمِهٖ مَا تَعْبُدُوْنَ ٧٠
- idh
- إِذْ
- जब
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- li-abīhi
- لِأَبِيهِ
- अपने बाप से
- waqawmihi
- وَقَوْمِهِۦ
- और अपनी क़ौम से
- mā
- مَا
- किस की
- taʿbudūna
- تَعْبُدُونَ
- तुम इबादत करते हो
जबकि उसने अपने बाप और अपनी क़ौंम के लोगों से कहा, 'तुम क्या पूजते हो?' ([२६] अस-शुआरा: 70)Tafseer (तफ़सीर )