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सूरा अस-शुआरा - Page: 21

Ash-Shu'ara

(कवि, शायर)

२०१

لَا يُؤْمِنُوْنَ بِهٖ حَتّٰى يَرَوُا الْعَذَابَ الْاَلِيْمَ ٢٠١

لَا
नहीं वो ईमान लाऐंगे
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
नहीं वो ईमान लाऐंगे
bihi
بِهِۦ
उस पर
ḥattā
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
yarawū
يَرَوُا۟
वो देख लें
l-ʿadhāba
ٱلْعَذَابَ
अज़ाब
l-alīma
ٱلْأَلِيمَ
दर्दनाक
वे इसपर ईमान लाने को नहीं, जब तक कि दुखद यातना न देख लें ([२६] अस-शुआरा: 201)
Tafseer (तफ़सीर )
२०२

فَيَأْتِيَهُمْ بَغْتَةً وَّهُمْ لَا يَشْعُرُوْنَ ۙ ٢٠٢

fayatiyahum
فَيَأْتِيَهُم
तो वो आ जाएगा उन पर
baghtatan
بَغْتَةً
अचानक
wahum
وَهُمْ
और वो
لَا
ना वो शऊर रखते होंगे
yashʿurūna
يَشْعُرُونَ
ना वो शऊर रखते होंगे
फिर जब वह अचानक उनपर आ जाएगी और उन्हें ख़बर भी न होगी, ([२६] अस-शुआरा: 202)
Tafseer (तफ़सीर )
२०३

فَيَقُوْلُوْا هَلْ نَحْنُ مُنْظَرُوْنَ ۗ ٢٠٣

fayaqūlū
فَيَقُولُوا۟
फिर वो कहेंगे
hal
هَلْ
क्या
naḥnu
نَحْنُ
हम
munẓarūna
مُنظَرُونَ
मोहलत दिए जाने वाले हैं
तब वे कहेंगे, 'क्या हमें कुछ मुहलत मिल सकती है?' ([२६] अस-शुआरा: 203)
Tafseer (तफ़सीर )
२०४

اَفَبِعَذَابِنَا يَسْتَعْجِلُوْنَ ٢٠٤

afabiʿadhābinā
أَفَبِعَذَابِنَا
क्या फिर हमारे अज़ाब को
yastaʿjilūna
يَسْتَعْجِلُونَ
वो जल्दी माँगते हैं
तो क्या वे लोग हमारी यातना के लिए जल्दी मचा रहे है? ([२६] अस-शुआरा: 204)
Tafseer (तफ़सीर )
२०५

اَفَرَءَيْتَ اِنْ مَّتَّعْنٰهُمْ سِنِيْنَ ۙ ٢٠٥

afara-ayta
أَفَرَءَيْتَ
क्या भला देखा आपने
in
إِن
अगर
mattaʿnāhum
مَّتَّعْنَٰهُمْ
फ़ायदा दें हम उन्हें
sinīna
سِنِينَ
कई साल
क्या तुमने कुछ विचार किया? यदि हम उन्हें कुछ वर्षों तक सुख भोगने दें; ([२६] अस-शुआरा: 205)
Tafseer (तफ़सीर )
२०६

ثُمَّ جَاۤءَهُمْ مَّا كَانُوْا يُوْعَدُوْنَ ۙ ٢٠٦

thumma
ثُمَّ
फिर
jāahum
جَآءَهُم
आ जाए उनके पास
مَّا
जिसका
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yūʿadūna
يُوعَدُونَ
वो वादा दिए जाते
फिर उनपर वह चीज़ आ जाए, जिससे उन्हें डराया जाता रहा है; ([२६] अस-शुआरा: 206)
Tafseer (तफ़सीर )
२०७

مَآ اَغْنٰى عَنْهُمْ مَّا كَانُوْا يُمَتَّعُوْنَ ۗ ٢٠٧

مَآ
ना
aghnā
أَغْنَىٰ
काम आएगा
ʿanhum
عَنْهُم
उन्हें
مَّا
जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yumattaʿūna
يُمَتَّعُونَ
वो फ़ायदा दिए जाते
तो जो सुख उन्हें मिला होगा वह उनके कुछ काम न आएगा ([२६] अस-शुआरा: 207)
Tafseer (तफ़सीर )
२०८

وَمَآ اَهْلَكْنَا مِنْ قَرْيَةٍ اِلَّا لَهَا مُنْذِرُوْنَ ۖ ٢٠٨

wamā
وَمَآ
और नहीं
ahlaknā
أَهْلَكْنَا
हलाक किया हमने
min
مِن
किसी बस्ती को
qaryatin
قَرْيَةٍ
किसी बस्ती को
illā
إِلَّا
मगर
lahā
لَهَا
उसके लिए
mundhirūna
مُنذِرُونَ
डराने वाले थे
हमने किसी बस्ती को भी इसके बिना विनष्ट नहीं किया कि उसके लिए सचेत करनेवाले याददिहानी के लिए मौजूद रहे हैं। ([२६] अस-शुआरा: 208)
Tafseer (तफ़सीर )
२०९

ذِكْرٰىۚ وَمَا كُنَّا ظٰلِمِيْنَ ٢٠٩

dhik'rā
ذِكْرَىٰ
नसीहत के तौर पर
wamā
وَمَا
और ना
kunnā
كُنَّا
थे हम
ẓālimīna
ظَٰلِمِينَ
ज़ालिम
हम कोई ज़ालिम नहीं है ([२६] अस-शुआरा: 209)
Tafseer (तफ़सीर )
२१०

وَمَا تَنَزَّلَتْ بِهِ الشَّيٰطِيْنُ ٢١٠

wamā
وَمَا
और नहीं
tanazzalat
تَنَزَّلَتْ
उतरे
bihi
بِهِ
उसे लेकर
l-shayāṭīnu
ٱلشَّيَٰطِينُ
शयातीन
इसे शैतान लेकर नहीं उतरे हैं। ([२६] अस-शुआरा: 210)
Tafseer (तफ़सीर )