१४१
كَذَّبَتْ ثَمُوْدُ الْمُرْسَلِيْنَ ۖ ١٤١
- kadhabat
- كَذَّبَتْ
- झुठलाया
- thamūdu
- ثَمُودُ
- समूद ने
- l-mur'salīna
- ٱلْمُرْسَلِينَ
- रसूलों को
समूद ने रसूलों को झुठलाया, ([२६] अस-शुआरा: 141)Tafseer (तफ़सीर )
१४२
اِذْ قَالَ لَهُمْ اَخُوْهُمْ صٰلِحٌ اَلَا تَتَّقُوْنَ ۚ ١٤٢
- idh
- إِذْ
- जब
- qāla
- قَالَ
- कहा था
- lahum
- لَهُمْ
- उनसे
- akhūhum
- أَخُوهُمْ
- उनके भाई
- ṣāliḥun
- صَٰلِحٌ
- सालेह ने
- alā
- أَلَا
- क्या नहीं
- tattaqūna
- تَتَّقُونَ
- तुम डरते
जबकि उसके भाई सालेह ने उससे कहा, 'क्या तुम डर नहीं रखते? ([२६] अस-शुआरा: 142)Tafseer (तफ़सीर )
१४३
اِنِّيْ لَكُمْ رَسُوْلٌ اَمِيْنٌ ۙ ١٤٣
- innī
- إِنِّى
- बेशक मैं
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- rasūlun
- رَسُولٌ
- रसूल हूँ
- amīnun
- أَمِينٌ
- अमानतदार
निस्संदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ ([२६] अस-शुआरा: 143)Tafseer (तफ़सीर )
१४४
فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِ ۚ ١٤٤
- fa-ittaqū
- فَٱتَّقُوا۟
- पस डरो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- wa-aṭīʿūni
- وَأَطِيعُونِ
- और इताअत करो मेरी
अतः तुम अल्लाह का डर रखो और मेरी बात मानो ([२६] अस-शुआरा: 144)Tafseer (तफ़सीर )
१४५
وَمَآ اَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ اَجْرٍۚ اِنْ اَجْرِيَ اِلَّا عَلٰى رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ۗ ١٤٥
- wamā
- وَمَآ
- और नहीं
- asalukum
- أَسْـَٔلُكُمْ
- मैं सवाल करता तुम से
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- इस पर
- min
- مِنْ
- किसी अजर का
- ajrin
- أَجْرٍۖ
- किसी अजर का
- in
- إِنْ
- नहीं
- ajriya
- أَجْرِىَ
- अजर मेरा
- illā
- إِلَّا
- मगर
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर
- rabbi
- رَبِّ
- रब्बुल
- l-ʿālamīna
- ٱلْعَٰلَمِينَ
- आलमीन के
मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता। मेरा बदला तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है ([२६] अस-शुआरा: 145)Tafseer (तफ़सीर )
१४६
اَتُتْرَكُوْنَ فِيْ مَا هٰهُنَآ اٰمِنِيْنَ ۙ ١٤٦
- atut'rakūna
- أَتُتْرَكُونَ
- क्या तुम छोड़ दिए जाओगे
- fī
- فِى
- उनमें जो
- mā
- مَا
- उनमें जो
- hāhunā
- هَٰهُنَآ
- यहाँ हैं
- āminīna
- ءَامِنِينَ
- अमन से रहने वाले
क्या तुम यहाँ जो कुछ है उसके बीच, निश्चिन्त छोड़ दिए जाओगे, ([२६] अस-शुआरा: 146)Tafseer (तफ़सीर )
१४७
فِيْ جَنّٰتٍ وَّعُيُوْنٍ ۙ ١٤٧
- fī
- فِى
- बाग़ों में
- jannātin
- جَنَّٰتٍ
- बाग़ों में
- waʿuyūnin
- وَعُيُونٍ
- और चश्मों
बाग़ों और स्रोतों ([२६] अस-शुआरा: 147)Tafseer (तफ़सीर )
१४८
وَّزُرُوْعٍ وَّنَخْلٍ طَلْعُهَا هَضِيْمٌ ۚ ١٤٨
- wazurūʿin
- وَزُرُوعٍ
- और खेतों में
- wanakhlin
- وَنَخْلٍ
- और खजूर के दरख़्त
- ṭalʿuhā
- طَلْعُهَا
- ख़ोशे उनके
- haḍīmun
- هَضِيمٌ
- नर्म व नाज़ुक
और खेतों और उन खजूरों में जिनके गुच्छे तरो ताज़ा और गुँथे हुए है? ([२६] अस-शुआरा: 148)Tafseer (तफ़सीर )
१४९
وَتَنْحِتُوْنَ مِنَ الْجِبَالِ بُيُوْتًا فٰرِهِيْنَ ١٤٩
- watanḥitūna
- وَتَنْحِتُونَ
- और तुम तराश्ते हो
- mina
- مِنَ
- पहाड़ों में से
- l-jibāli
- ٱلْجِبَالِ
- पहाड़ों में से
- buyūtan
- بُيُوتًا
- घरों को
- fārihīna
- فَٰرِهِينَ
- ख़ूब माहिर बनकर
तुम पहाड़ों को काट-काटकर इतराते हुए घर बनाते हो? ([२६] अस-शुआरा: 149)Tafseer (तफ़सीर )
१५०
فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِ ۚ ١٥٠
- fa-ittaqū
- فَٱتَّقُوا۟
- पस डरो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- wa-aṭīʿūni
- وَأَطِيعُونِ
- और इताअत करो मेरी
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो ([२६] अस-शुआरा: 150)Tafseer (तफ़सीर )