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सूरा अस-शुआरा - Page: 14

Ash-Shu'ara

(कवि, शायर)

१३१

فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِۚ ١٣١

fa-ittaqū
فَٱتَّقُوا۟
पस डरो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
wa-aṭīʿūni
وَأَطِيعُونِ
और इताअत करो मेरी
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो ([२६] अस-शुआरा: 131)
Tafseer (तफ़सीर )
१३२

وَاتَّقُوا الَّذِيْٓ اَمَدَّكُمْ بِمَا تَعْلَمُوْنَ ۚ ١٣٢

wa-ittaqū
وَٱتَّقُوا۟
और डरो
alladhī
ٱلَّذِىٓ
उससे जिस ने
amaddakum
أَمَدَّكُم
मदद की तुम्हारी
bimā
بِمَا
साथ उसके जो
taʿlamūna
تَعْلَمُونَ
तुम जानते हो
उसका डर रखो जिसने तुम्हें वे चीज़े पहुँचाई जिनको तुम जानते हो ([२६] अस-शुआरा: 132)
Tafseer (तफ़सीर )
१३३

اَمَدَّكُمْ بِاَنْعَامٍ وَّبَنِيْنَۙ ١٣٣

amaddakum
أَمَدَّكُم
उसने मदद की तुम्हारी
bi-anʿāmin
بِأَنْعَٰمٍ
साथ मवेशियों
wabanīna
وَبَنِينَ
और बेटों के
उसने तुम्हारी सहायता की चौपायों और बेटों से, ([२६] अस-शुआरा: 133)
Tafseer (तफ़सीर )
१३४

وَجَنّٰتٍ وَّعُيُوْنٍۚ ١٣٤

wajannātin
وَجَنَّٰتٍ
और बाग़ों
waʿuyūnin
وَعُيُونٍ
और चश्मों के
और बाग़ो और स्रोतो से ([२६] अस-शुआरा: 134)
Tafseer (तफ़सीर )
१३५

اِنِّيْٓ اَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيْمٍ ۗ ١٣٥

innī
إِنِّىٓ
बेशक मैं
akhāfu
أَخَافُ
मैं डरता हूँ
ʿalaykum
عَلَيْكُمْ
तुम पर
ʿadhāba
عَذَابَ
अज़ाब से
yawmin
يَوْمٍ
बड़े दिन के
ʿaẓīmin
عَظِيمٍ
बड़े दिन के
निश्चय ही मुझे तुम्हारे बारे में एक बड़े दिन की यातना का भय है।' ([२६] अस-शुआरा: 135)
Tafseer (तफ़सीर )
१३६

قَالُوْا سَوَاۤءٌ عَلَيْنَآ اَوَعَظْتَ اَمْ لَمْ تَكُنْ مِّنَ الْوَاعِظِيْنَ ۙ ١٣٦

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
sawāon
سَوَآءٌ
बराबर है
ʿalaynā
عَلَيْنَآ
हम पर
awaʿaẓta
أَوَعَظْتَ
ख़्वाह नसीहत करे तू
am
أَمْ
या
lam
لَمْ
ना
takun
تَكُن
तू हो
mina
مِّنَ
नसीहत करने वालों में से
l-wāʿiẓīna
ٱلْوَٰعِظِينَ
नसीहत करने वालों में से
उन्होंने कहा, 'हमारे लिए बराबर है चाहे तुम नसीहत करो या नसीहत करने वाले न बनो। ([२६] अस-शुआरा: 136)
Tafseer (तफ़सीर )
१३७

اِنْ هٰذَآ اِلَّا خُلُقُ الْاَوَّلِيْنَ ۙ ١٣٧

in
إِنْ
नहीं है
hādhā
هَٰذَآ
ये
illā
إِلَّا
मगर
khuluqu
خُلُقُ
आदत
l-awalīna
ٱلْأَوَّلِينَ
पहलों की
यह तो बस पहले लोगों की पुरानी आदत है ([२६] अस-शुआरा: 137)
Tafseer (तफ़सीर )
१३८

وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِيْنَ ۚ ١٣٨

wamā
وَمَا
और नहीं हैं
naḥnu
نَحْنُ
हम
bimuʿadhabīna
بِمُعَذَّبِينَ
अज़ाब दिए जाने वाले
और हमें कदापि यातना न दी जाएगी।' ([२६] अस-शुआरा: 138)
Tafseer (तफ़सीर )
१३९

فَكَذَّبُوْهُ فَاَهْلَكْنٰهُمْۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً ۗوَمَا كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ١٣٩

fakadhabūhu
فَكَذَّبُوهُ
तो उन्होंने झुठलाया उसे
fa-ahlaknāhum
فَأَهْلَكْنَٰهُمْۗ
फिर हलाक कर दिया हमने उन्हें
inna
إِنَّ
यक़ीनन
فِى
इस में
dhālika
ذَٰلِكَ
इस में
laāyatan
لَءَايَةًۖ
अलबत्ता एक निशानी है
wamā
وَمَا
और ना
kāna
كَانَ
थे
aktharuhum
أَكْثَرُهُم
अक्सर उनके
mu'minīna
مُّؤْمِنِينَ
ईमान लाने वाले
अन्ततः उन्होंने उन्हें झुठला दिया जो हमने उनको विनष्ट कर दिया। बेशक इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं ([२६] अस-शुआरा: 139)
Tafseer (तफ़सीर )
१४०

وَاِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ ࣖ ١٤٠

wa-inna
وَإِنَّ
और बेशक
rabbaka
رَبَّكَ
रब आपका
lahuwa
لَهُوَ
अलबत्ता वो
l-ʿazīzu
ٱلْعَزِيزُ
बहुत ज़बरदस्त है
l-raḥīmu
ٱلرَّحِيمُ
निहायत रहम करने वाला है
और बेशक तुम्हारा रब ही है, जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है ([२६] अस-शुआरा: 140)
Tafseer (तफ़सीर )