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सूरा अस-शुआरा - Page: 11

Ash-Shu'ara

(कवि, शायर)

१०१

وَلَا صَدِيْقٍ حَمِيْمٍ ١٠١

walā
وَلَا
और ना
ṣadīqin
صَدِيقٍ
कोई दोस्त
ḥamīmin
حَمِيمٍ
गहरा
और न घनिष्ट मित्र ([२६] अस-शुआरा: 101)
Tafseer (तफ़सीर )
१०२

فَلَوْ اَنَّ لَنَا كَرَّةً فَنَكُوْنَ مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ ١٠٢

falaw
فَلَوْ
पस काश
anna
أَنَّ
ये कि (होता)
lanā
لَنَا
हमारे लिए
karratan
كَرَّةً
एक बार पलटना
fanakūna
فَنَكُونَ
तो हम होते
mina
مِنَ
ईमान लाने वालों में से
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
ईमान लाने वालों में से
क्या ही अच्छा होता कि हमें एक बार फिर पलटना होता, तो हम मोमिनों में से हो जाते!' ([२६] अस-शुआरा: 102)
Tafseer (तफ़सीर )
१०३

اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً ۗوَمَا كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ١٠٣

inna
إِنَّ
यक़ीनन
فِى
इसमें
dhālika
ذَٰلِكَ
इसमें
laāyatan
لَءَايَةًۖ
अलबत्ता एक निशानी है
wamā
وَمَا
और ना
kāna
كَانَ
थे
aktharuhum
أَكْثَرُهُم
अक्सर उनके
mu'minīna
مُّؤْمِنِينَ
ईमान लाने वाले
निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है। इसपर भी उनमें से अधिकरतर माननेवाले नहीं ([२६] अस-शुआरा: 103)
Tafseer (तफ़सीर )
१०४

وَاِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ ࣖ ١٠٤

wa-inna
وَإِنَّ
और बेशक
rabbaka
رَبَّكَ
रब आपका
lahuwa
لَهُوَ
अलबत्ता वो
l-ʿazīzu
ٱلْعَزِيزُ
बहुत ज़बरदस्त है
l-raḥīmu
ٱلرَّحِيمُ
निहायत रहम करने वाला है
और निस्संदेह तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है ([२६] अस-शुआरा: 104)
Tafseer (तफ़सीर )
१०५

كَذَّبَتْ قَوْمُ نُوْحِ ِۨالْمُرْسَلِيْنَ ۚ ١٠٥

kadhabat
كَذَّبَتْ
झुठलाया
qawmu
قَوْمُ
क़ौमे
nūḥin
نُوحٍ
नूह ने
l-mur'salīna
ٱلْمُرْسَلِينَ
रसूलों को
नूह की क़ौम ने रसूलों को झुठलाया; ([२६] अस-शुआरा: 105)
Tafseer (तफ़सीर )
१०६

اِذْ قَالَ لَهُمْ اَخُوْهُمْ نُوْحٌ اَلَا تَتَّقُوْنَ ۚ ١٠٦

idh
إِذْ
जब
qāla
قَالَ
कहा
lahum
لَهُمْ
उन्हें
akhūhum
أَخُوهُمْ
उनके भाई
nūḥun
نُوحٌ
नूह ने
alā
أَلَا
क्या नहीं
tattaqūna
تَتَّقُونَ
तुम डरते
जबकि उनसे उनके भाई नूह ने कहा, 'क्या तुम डर नहीं रखते? ([२६] अस-शुआरा: 106)
Tafseer (तफ़सीर )
१०७

اِنِّيْ لَكُمْ رَسُوْلٌ اَمِيْنٌ ۙ ١٠٧

innī
إِنِّى
बेशक मैं
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
rasūlun
رَسُولٌ
रसूल हूँ
amīnun
أَمِينٌ
अमानतदार
निस्संदेह मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ ([२६] अस-शुआरा: 107)
Tafseer (तफ़सीर )
१०८

فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِۚ ١٠٨

fa-ittaqū
فَٱتَّقُوا۟
पस डरो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
wa-aṭīʿūni
وَأَطِيعُونِ
और इताअत करो मेरी
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरा कहा मानो ([२६] अस-शुआरा: 108)
Tafseer (तफ़सीर )
१०९

وَمَآ اَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ اَجْرٍۚ اِنْ اَجْرِيَ اِلَّا عَلٰى رَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ۚ ١٠٩

wamā
وَمَآ
और नहीं
asalukum
أَسْـَٔلُكُمْ
मैं सवाल करता तुमसे
ʿalayhi
عَلَيْهِ
इस पर
min
مِنْ
किसी अजर का
ajrin
أَجْرٍۖ
किसी अजर का
in
إِنْ
नहीं
ajriya
أَجْرِىَ
अजर मेरा
illā
إِلَّا
मगर
ʿalā
عَلَىٰ
ऊपर
rabbi
رَبِّ
रब्बुल
l-ʿālamīna
ٱلْعَٰلَمِينَ
आलमीन के
मैं इस काम के बदले तुमसे कोई बदला नहीं माँगता। मेरा बदला तो बस सारे संसार के रब के ज़िम्मे है ([२६] अस-शुआरा: 109)
Tafseer (तफ़सीर )
११०

فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوْنِ ١١٠

fa-ittaqū
فَٱتَّقُوا۟
पस डरो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
wa-aṭīʿūni
وَأَطِيعُونِ
और इताअत करो मेरी
अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो।' ([२६] अस-शुआरा: 110)
Tafseer (तफ़सीर )