९१
وَبُرِّزَتِ الْجَحِيْمُ لِلْغٰوِيْنَ ۙ ٩١
- waburrizati
- وَبُرِّزَتِ
- और ज़ाहिर कर दी जाएगी
- l-jaḥīmu
- ٱلْجَحِيمُ
- जहन्नम
- lil'ghāwīna
- لِلْغَاوِينَ
- गुमराहों के लिए
और भडकती आग पथभ्रष्टि लोगों के लिए प्रकट कर दी जाएगी ([२६] अस-शुआरा: 91)Tafseer (तफ़सीर )
९२
وَقِيْلَ لَهُمْ اَيْنَ مَا كُنْتُمْ تَعْبُدُوْنَ ۙ ٩٢
- waqīla
- وَقِيلَ
- और कहा जाएगा
- lahum
- لَهُمْ
- उन्हें
- ayna
- أَيْنَ
- कहाँ हैं जिनकी
- mā
- مَا
- कहाँ हैं जिनकी
- kuntum
- كُنتُمْ
- थे तुम
- taʿbudūna
- تَعْبُدُونَ
- तुम इबादत करते
और उनसे कहा जाएगा, 'कहाँ है वे जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पूजते रहे हो? ([२६] अस-शुआरा: 92)Tafseer (तफ़सीर )
९३
مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ ۗهَلْ يَنْصُرُوْنَكُمْ اَوْ يَنْتَصِرُوْنَ ۗ ٩٣
- min
- مِن
- सिवाए
- dūni
- دُونِ
- सिवाए
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- hal
- هَلْ
- क्या
- yanṣurūnakum
- يَنصُرُونَكُمْ
- वो मदद कर सकते हैं तुम्हारी
- aw
- أَوْ
- या
- yantaṣirūna
- يَنتَصِرُونَ
- वो बदला ले सकते हैं
क्या वे तुम्हारी कुछ सहायता कर रहे है या अपना ही बचाव कर सकते है?' ([२६] अस-शुआरा: 93)Tafseer (तफ़सीर )
९४
فَكُبْكِبُوْا فِيْهَا هُمْ وَالْغَاوٗنَ ۙ ٩٤
- fakub'kibū
- فَكُبْكِبُوا۟
- तो वो औंधे मुँह गिराए जाऐंगे
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- hum
- هُمْ
- वो
- wal-ghāwūna
- وَٱلْغَاوُۥنَ
- और बहके हुए लोग
फिर वे उसमें औंधे झोक दिए जाएँगे, वे और बहके हुए लोग ([२६] अस-शुआरा: 94)Tafseer (तफ़सीर )
९५
وَجُنُوْدُ اِبْلِيْسَ اَجْمَعُوْنَ ۗ ٩٥
- wajunūdu
- وَجُنُودُ
- और लश्कर
- ib'līsa
- إِبْلِيسَ
- इब्लीस के
- ajmaʿūna
- أَجْمَعُونَ
- सब के सब
और इबलीस की सेनाएँ, सबके सब। ([२६] अस-शुआरा: 95)Tafseer (तफ़सीर )
९६
قَالُوْا وَهُمْ فِيْهَا يَخْتَصِمُوْنَ ٩٦
- qālū
- قَالُوا۟
- वो कहेंगे
- wahum
- وَهُمْ
- जबकि वो
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- yakhtaṣimūna
- يَخْتَصِمُونَ
- वो झगड़ रहे होंगे
वे वहाँ आपस में झगड़ते हुए कहेंगे, ([२६] अस-शुआरा: 96)Tafseer (तफ़सीर )
९७
تَاللّٰهِ اِنْ كُنَّا لَفِيْ ضَلٰلٍ مُّبِيْنٍ ۙ ٩٧
- tal-lahi
- تَٱللَّهِ
- क़सम अल्लाह की
- in
- إِن
- बेशक
- kunnā
- كُنَّا
- थे हम
- lafī
- لَفِى
- अलबत्ता गुमराही में
- ḍalālin
- ضَلَٰلٍ
- अलबत्ता गुमराही में
- mubīnin
- مُّبِينٍ
- खुली-खुली
'अल्लाह की क़सम! निश्चय ही हम खुली गुमराही में थे ([२६] अस-शुआरा: 97)Tafseer (तफ़सीर )
९८
اِذْ نُسَوِّيْكُمْ بِرَبِّ الْعٰلَمِيْنَ ٩٨
- idh
- إِذْ
- जब
- nusawwīkum
- نُسَوِّيكُم
- हम बराबर ठहरा रहे थे तुम्हें
- birabbi
- بِرَبِّ
- साथ रब्बुल
- l-ʿālamīna
- ٱلْعَٰلَمِينَ
- आलमीन के
जबकि हम तुम्हें सारे संसार के रब के बराबर ठहरा रहे थे ([२६] अस-शुआरा: 98)Tafseer (तफ़सीर )
९९
وَمَآ اَضَلَّنَآ اِلَّا الْمُجْرِمُوْنَ ٩٩
- wamā
- وَمَآ
- और नहीं
- aḍallanā
- أَضَلَّنَآ
- गुमराह किया हमें
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-muj'rimūna
- ٱلْمُجْرِمُونَ
- मुजरिमों ने
और हमें तो बस उन अपराधियों ने ही पथभ्रष्ट किया ([२६] अस-शुआरा: 99)Tafseer (तफ़सीर )
१००
فَمَا لَنَا مِنْ شَافِعِيْنَ ۙ ١٠٠
- famā
- فَمَا
- तो नहीं
- lanā
- لَنَا
- हमारे लिए
- min
- مِن
- कोई सिफ़ारिशियों में से
- shāfiʿīna
- شَٰفِعِينَ
- कोई सिफ़ारिशियों में से
अब न हमारा कोई सिफ़ारिशी है, ([२६] अस-शुआरा: 100)Tafseer (तफ़सीर )