१
२
تِلْكَ اٰيٰتُ الْكِتٰبِ الْمُبِيْنِ ٢
- til'ka
- تِلْكَ
- ये
- āyātu
- ءَايَٰتُ
- आयात हैं
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- वाज़ेह किताब की
- l-mubīni
- ٱلْمُبِينِ
- वाज़ेह किताब की
ये स्पष्ट किताब की आयतें है ([२६] अस-शुआरा: 2)Tafseer (तफ़सीर )
३
لَعَلَّكَ بَاخِعٌ نَّفْسَكَ اَلَّا يَكُوْنُوْا مُؤْمِنِيْنَ ٣
- laʿallaka
- لَعَلَّكَ
- शायद कि आप
- bākhiʿun
- بَٰخِعٌ
- हलाक करने वाले हैं
- nafsaka
- نَّفْسَكَ
- अपनी जान को
- allā
- أَلَّا
- कि नहीं
- yakūnū
- يَكُونُوا۟
- हैं वो
- mu'minīna
- مُؤْمِنِينَ
- ईमान लाने वाले
शायद इसपर कि वे ईमान नहीं लाते, तुम अपने प्राण ही खो बैठोगे ([२६] अस-शुआरा: 3)Tafseer (तफ़सीर )
४
اِنْ نَّشَأْ نُنَزِّلْ عَلَيْهِمْ مِّنَ السَّمَاۤءِ اٰيَةً فَظَلَّتْ اَعْنَاقُهُمْ لَهَا خَاضِعِيْنَ ٤
- in
- إِن
- अगर
- nasha
- نَّشَأْ
- हम चाहें
- nunazzil
- نُنَزِّلْ
- हम उतार दें
- ʿalayhim
- عَلَيْهِم
- उन पर
- mina
- مِّنَ
- आसमान से
- l-samāi
- ٱلسَّمَآءِ
- आसमान से
- āyatan
- ءَايَةً
- कोई निशानी
- faẓallat
- فَظَلَّتْ
- तो हो जाऐं
- aʿnāquhum
- أَعْنَٰقُهُمْ
- गर्दनें उनकी
- lahā
- لَهَا
- उसके लिए
- khāḍiʿīna
- خَٰضِعِينَ
- झुकने वाली
यदि हम चाहें तो उनपर आकाश से एक निशानी उतार दें। फिर उनकी गर्दनें उसके आगे झुकी रह जाएँ ([२६] अस-शुआरा: 4)Tafseer (तफ़सीर )
५
وَمَا يَأْتِيْهِمْ مِّنْ ذِكْرٍ مِّنَ الرَّحْمٰنِ مُحْدَثٍ اِلَّا كَانُوْا عَنْهُ مُعْرِضِيْنَ ٥
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- yatīhim
- يَأْتِيهِم
- आती उनके पास
- min
- مِّن
- कोई नसीहत
- dhik'rin
- ذِكْرٍ
- कोई नसीहत
- mina
- مِّنَ
- रहमान की तरफ़ से
- l-raḥmāni
- ٱلرَّحْمَٰنِ
- रहमान की तरफ़ से
- muḥ'dathin
- مُحْدَثٍ
- नई
- illā
- إِلَّا
- मगर
- kānū
- كَانُوا۟
- वो होते हैं
- ʿanhu
- عَنْهُ
- उससे
- muʿ'riḍīna
- مُعْرِضِينَ
- ऐराज़ करने वाले
उनके पास रहमान की ओर से जो नवीन अनुस्मृति भी आती है, वे उससे मुँह फेर ही लेते है ([२६] अस-शुआरा: 5)Tafseer (तफ़सीर )
६
فَقَدْ كَذَّبُوْا فَسَيَأْتِيْهِمْ اَنْۢبـٰۤؤُا مَا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ ٦
- faqad
- فَقَدْ
- पस तहक़ीक़
- kadhabū
- كَذَّبُوا۟
- उन्होंने झुठला दिया
- fasayatīhim
- فَسَيَأْتِيهِمْ
- तो अनक़रीब आऐंगी उनके पास
- anbāu
- أَنۢبَٰٓؤُا۟
- ख़बरें
- mā
- مَا
- उसकी जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- bihi
- بِهِۦ
- उसका
- yastahziūna
- يَسْتَهْزِءُونَ
- वो मज़ाक़ उड़ाते
अब जबकि वे झुठला चुके है, तो शीघ्र ही उन्हें उसकी हक़ीकत मालूम हो जाएगी, जिसका वे मज़ाक़ उड़ाते रहे है ([२६] अस-शुआरा: 6)Tafseer (तफ़सीर )
७
اَوَلَمْ يَرَوْا اِلَى الْاَرْضِ كَمْ اَنْۢبَتْنَا فِيْهَا مِنْ كُلِّ زَوْجٍ كَرِيْمٍ ٧
- awalam
- أَوَلَمْ
- क्या भला नहीं
- yaraw
- يَرَوْا۟
- उन्होंने देखा
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ ज़मीन के
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- तरफ़ ज़मीन के
- kam
- كَمْ
- कितने ही
- anbatnā
- أَنۢبَتْنَا
- उगाए हमने
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- min
- مِن
- हर क़िस्म के
- kulli
- كُلِّ
- हर क़िस्म के
- zawjin
- زَوْجٍ
- जोड़े
- karīmin
- كَرِيمٍ
- उमदा
क्या उन्होंने धरती को नहीं देखा कि हमने उसमें कितने ही प्रकार की उमदा चीज़ें पैदा की है? ([२६] अस-शुआरा: 7)Tafseer (तफ़सीर )
८
اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةًۗ وَمَا كَانَ اَكْثَرُهُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ٨
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- fī
- فِى
- इसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसमें
- laāyatan
- لَءَايَةًۖ
- अलबत्ता एक निशानी है
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- kāna
- كَانَ
- हैं
- aktharuhum
- أَكْثَرُهُم
- अक्सर उनके
- mu'minīna
- مُّؤْمِنِينَ
- ईमान लाने वाले
निश्चय ही इसमें एक बड़ी निशानी है, इसपर भी उनमें से अधिकतर माननेवाले नहीं ([२६] अस-शुआरा: 8)Tafseer (तफ़सीर )
९
وَاِنَّ رَبَّكَ لَهُوَ الْعَزِيْزُ الرَّحِيْمُ ࣖ ٩
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- rabbaka
- رَبَّكَ
- रब आपका
- lahuwa
- لَهُوَ
- अलबत्ता वो
- l-ʿazīzu
- ٱلْعَزِيزُ
- बहुत ज़बरदस्त है
- l-raḥīmu
- ٱلرَّحِيمُ
- निहायत रहम करने वाला है
और निश्चय ही तुम्हारा रब ही है जो बड़ा प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावान है ([२६] अस-शुआरा: 9)Tafseer (तफ़सीर )
१०
وَاِذْ نَادٰى رَبُّكَ مُوْسٰٓى اَنِ ائْتِ الْقَوْمَ الظّٰلِمِيْنَ ۙ ١٠
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- nādā
- نَادَىٰ
- पुकारा
- rabbuka
- رَبُّكَ
- आपके रब ने
- mūsā
- مُوسَىٰٓ
- मूसा को
- ani
- أَنِ
- कि
- i'ti
- ٱئْتِ
- आओ
- l-qawma
- ٱلْقَوْمَ
- उन लोगों की तरफ़
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- जो ज़ालिम हैं
और जबकि तुम्हारे रह ने मूसा को पुकारा कि 'ज़ालिम लोगों के पास जा - ([२६] अस-शुआरा: 10)Tafseer (तफ़सीर )