७१
وَمَنْ تَابَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَاِنَّهٗ يَتُوْبُ اِلَى اللّٰهِ مَتَابًا ٧١
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- tāba
- تَابَ
- तौबा करे
- waʿamila
- وَعَمِلَ
- और वो अमल करे
- ṣāliḥan
- صَٰلِحًا
- नेक
- fa-innahu
- فَإِنَّهُۥ
- तो बेशक वो
- yatūbu
- يَتُوبُ
- वो पलट आता है
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ अल्लाह के
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- तरफ़ अल्लाह के
- matāban
- مَتَابًا
- पलटना
और जिसने तौबा की और अच्छा कर्म किया, तो निश्चय ही वह अल्लाह की ओर पलटता है, जैसा कि पलटने का हक़ है ([२५] अल-फुरकान: 71)Tafseer (तफ़सीर )
७२
وَالَّذِيْنَ لَا يَشْهَدُوْنَ الزُّوْرَۙ وَاِذَا مَرُّوْا بِاللَّغْوِ مَرُّوْا كِرَامًا ٧٢
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वे जो
- lā
- لَا
- नहीं वो गवाह बनते
- yashhadūna
- يَشْهَدُونَ
- नहीं वो गवाह बनते
- l-zūra
- ٱلزُّورَ
- झूठ के
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- marrū
- مَرُّوا۟
- वो गुज़र ते है
- bil-laghwi
- بِٱللَّغْوِ
- लग़्व पर
- marrū
- مَرُّوا۟
- वो गुज़र जाते हैं
- kirāman
- كِرَامًا
- इज़्ज़त से
जो किसी झूठ और असत्य में सम्मिलित नहीं होते और जब किसी व्यर्थ के कामों के पास से गुज़रते है, तो श्रेष्ठतापूर्वक गुज़र जाते है, ([२५] अल-फुरकान: 72)Tafseer (तफ़सीर )
७३
وَالَّذِيْنَ اِذَا ذُكِّرُوْا بِاٰيٰتِ رَبِّهِمْ لَمْ يَخِرُّوْا عَلَيْهَا صُمًّا وَّعُمْيَانًا ٧٣
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो लोग जो
- idhā
- إِذَا
- जब
- dhukkirū
- ذُكِّرُوا۟
- वो नसीहत किए जाते हैं
- biāyāti
- بِـَٔايَٰتِ
- साथ आयात के
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- अपने रब की
- lam
- لَمْ
- नहीं
- yakhirrū
- يَخِرُّوا۟
- वो गिर पड़ते
- ʿalayhā
- عَلَيْهَا
- उन पर
- ṣumman
- صُمًّا
- बहरे
- waʿum'yānan
- وَعُمْيَانًا
- और अँधे बन कर
जो ऐसे हैं कि जब उनके रब की आयतों के द्वारा उन्हें याददिहानी कराई जाती है तो उन (आयतों) पर वे अंधे और बहरे होकर नहीं गिरते। ([२५] अल-फुरकान: 73)Tafseer (तफ़सीर )
७४
وَالَّذِيْنَ يَقُوْلُوْنَ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ اَزْوَاجِنَا وَذُرِّيّٰتِنَا قُرَّةَ اَعْيُنٍ وَّاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِيْنَ اِمَامًا ٧٤
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- yaqūlūna
- يَقُولُونَ
- कहते हैं
- rabbanā
- رَبَّنَا
- ऐ हमारे रब
- hab
- هَبْ
- अता कर
- lanā
- لَنَا
- हमें
- min
- مِنْ
- हमारी बीवियों से
- azwājinā
- أَزْوَٰجِنَا
- हमारी बीवियों से
- wadhurriyyātinā
- وَذُرِّيَّٰتِنَا
- और हमारी औलाद से
- qurrata
- قُرَّةَ
- ठंडक
- aʿyunin
- أَعْيُنٍ
- आँखों की
- wa-ij'ʿalnā
- وَٱجْعَلْنَا
- और बना हमें
- lil'muttaqīna
- لِلْمُتَّقِينَ
- मुत्तक़ी लोगों का
- imāman
- إِمَامًا
- इमाम / राहनुमा
और जो कहते है, 'ऐ हमारे रब! हमें हमारी अपनी पत्नियों और हमारी संतान से आँखों की ठंडक प्रदान कर और हमें डर रखनेवालों का नायक बना दे।' ([२५] अल-फुरकान: 74)Tafseer (तफ़सीर )
७५
اُولٰۤىِٕكَ يُجْزَوْنَ الْغُرْفَةَ بِمَا صَبَرُوْا وَيُلَقَّوْنَ فِيْهَا تَحِيَّةً وَّسَلٰمًا ۙ ٧٥
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- yuj'zawna
- يُجْزَوْنَ
- जो बदले में दिए जाऐंगे
- l-ghur'fata
- ٱلْغُرْفَةَ
- बालाख़ाने
- bimā
- بِمَا
- बवजह उसके जो
- ṣabarū
- صَبَرُوا۟
- उन्होंने सब्र किया
- wayulaqqawna
- وَيُلَقَّوْنَ
- और वो इस्तक़बाल किए जाऐंगे
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- taḥiyyatan
- تَحِيَّةً
- दुआए ख़ैर
- wasalāman
- وَسَلَٰمًا
- और सलाम से
यही वे लोग है जिन्हें, इसके बदले में कि वे जमे रहे, उच्च भवन प्राप्त होगा, तथा ज़िन्दाबाद और सलाम से उनका वहाँ स्वागत होगा ([२५] अल-फुरकान: 75)Tafseer (तफ़सीर )
७६
خٰلِدِيْنَ فِيْهَاۗ حَسُنَتْ مُسْتَقَرًّا وَّمُقَامًا ٧٦
- khālidīna
- خَٰلِدِينَ
- हमेशा रहने वाले हैं
- fīhā
- فِيهَاۚ
- उसमें
- ḥasunat
- حَسُنَتْ
- कितना अच्छा है
- mus'taqarran
- مُسْتَقَرًّا
- ठिकाना
- wamuqāman
- وَمُقَامًا
- और क़यामगाह
वहाँ वे सदैव रहेंगे। बहुत ही अच्छी है वह ठहरने की जगह और स्थान; ([२५] अल-फुरकान: 76)Tafseer (तफ़सीर )
७७
قُلْ مَا يَعْبَؤُا بِكُمْ رَبِّيْ لَوْلَا دُعَاۤؤُكُمْۚ فَقَدْ كَذَّبْتُمْ فَسَوْفَ يَكُوْنُ لِزَامًا ࣖ ٧٧
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- mā
- مَا
- ना
- yaʿba-u
- يَعْبَؤُا۟
- परवाह करता
- bikum
- بِكُمْ
- तुम्हारी
- rabbī
- رَبِّى
- रब मेरा
- lawlā
- لَوْلَا
- अगर ना होती
- duʿāukum
- دُعَآؤُكُمْۖ
- दुआ तुम्हारी
- faqad
- فَقَدْ
- तो तहक़ीक़
- kadhabtum
- كَذَّبْتُمْ
- झुठला दिया तुम ने
- fasawfa
- فَسَوْفَ
- तो अनक़रीब
- yakūnu
- يَكُونُ
- होगा
- lizāman
- لِزَامًۢا
- चिमट जाने वाला (अज़ाब)
कह दो, 'मेरे रब को तुम्हारी कोई परवाह नहीं अगर तुम (उसको) न पुकारो। अब जबकि तुम झुठला चुके हो, तो शीघ्र ही वह चीज़ चिमट जानेवाली होगी।' ([२५] अल-फुरकान: 77)Tafseer (तफ़सीर )