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सूरा अल-फुरकान - Page: 8

Al-Furqan

(मानक)

७१

وَمَنْ تَابَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَاِنَّهٗ يَتُوْبُ اِلَى اللّٰهِ مَتَابًا ٧١

waman
وَمَن
और जो कोई
tāba
تَابَ
तौबा करे
waʿamila
وَعَمِلَ
और वो अमल करे
ṣāliḥan
صَٰلِحًا
नेक
fa-innahu
فَإِنَّهُۥ
तो बेशक वो
yatūbu
يَتُوبُ
वो पलट आता है
ilā
إِلَى
तरफ़ अल्लाह के
l-lahi
ٱللَّهِ
तरफ़ अल्लाह के
matāban
مَتَابًا
पलटना
और जिसने तौबा की और अच्छा कर्म किया, तो निश्चय ही वह अल्लाह की ओर पलटता है, जैसा कि पलटने का हक़ है ([२५] अल-फुरकान: 71)
Tafseer (तफ़सीर )
७२

وَالَّذِيْنَ لَا يَشْهَدُوْنَ الزُّوْرَۙ وَاِذَا مَرُّوْا بِاللَّغْوِ مَرُّوْا كِرَامًا ٧٢

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वे जो
لَا
नहीं वो गवाह बनते
yashhadūna
يَشْهَدُونَ
नहीं वो गवाह बनते
l-zūra
ٱلزُّورَ
झूठ के
wa-idhā
وَإِذَا
और जब
marrū
مَرُّوا۟
वो गुज़र ते है
bil-laghwi
بِٱللَّغْوِ
लग़्व पर
marrū
مَرُّوا۟
वो गुज़र जाते हैं
kirāman
كِرَامًا
इज़्ज़त से
जो किसी झूठ और असत्य में सम्मिलित नहीं होते और जब किसी व्यर्थ के कामों के पास से गुज़रते है, तो श्रेष्ठतापूर्वक गुज़र जाते है, ([२५] अल-फुरकान: 72)
Tafseer (तफ़सीर )
७३

وَالَّذِيْنَ اِذَا ذُكِّرُوْا بِاٰيٰتِ رَبِّهِمْ لَمْ يَخِرُّوْا عَلَيْهَا صُمًّا وَّعُمْيَانًا ٧٣

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो लोग जो
idhā
إِذَا
जब
dhukkirū
ذُكِّرُوا۟
वो नसीहत किए जाते हैं
biāyāti
بِـَٔايَٰتِ
साथ आयात के
rabbihim
رَبِّهِمْ
अपने रब की
lam
لَمْ
नहीं
yakhirrū
يَخِرُّوا۟
वो गिर पड़ते
ʿalayhā
عَلَيْهَا
उन पर
ṣumman
صُمًّا
बहरे
waʿum'yānan
وَعُمْيَانًا
और अँधे बन कर
जो ऐसे हैं कि जब उनके रब की आयतों के द्वारा उन्हें याददिहानी कराई जाती है तो उन (आयतों) पर वे अंधे और बहरे होकर नहीं गिरते। ([२५] अल-फुरकान: 73)
Tafseer (तफ़सीर )
७४

وَالَّذِيْنَ يَقُوْلُوْنَ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ اَزْوَاجِنَا وَذُرِّيّٰتِنَا قُرَّةَ اَعْيُنٍ وَّاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِيْنَ اِمَامًا ٧٤

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जो
yaqūlūna
يَقُولُونَ
कहते हैं
rabbanā
رَبَّنَا
ऐ हमारे रब
hab
هَبْ
अता कर
lanā
لَنَا
हमें
min
مِنْ
हमारी बीवियों से
azwājinā
أَزْوَٰجِنَا
हमारी बीवियों से
wadhurriyyātinā
وَذُرِّيَّٰتِنَا
और हमारी औलाद से
qurrata
قُرَّةَ
ठंडक
aʿyunin
أَعْيُنٍ
आँखों की
wa-ij'ʿalnā
وَٱجْعَلْنَا
और बना हमें
lil'muttaqīna
لِلْمُتَّقِينَ
मुत्तक़ी लोगों का
imāman
إِمَامًا
इमाम / राहनुमा
और जो कहते है, 'ऐ हमारे रब! हमें हमारी अपनी पत्नियों और हमारी संतान से आँखों की ठंडक प्रदान कर और हमें डर रखनेवालों का नायक बना दे।' ([२५] अल-फुरकान: 74)
Tafseer (तफ़सीर )
७५

اُولٰۤىِٕكَ يُجْزَوْنَ الْغُرْفَةَ بِمَا صَبَرُوْا وَيُلَقَّوْنَ فِيْهَا تَحِيَّةً وَّسَلٰمًا ۙ ٧٥

ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
yuj'zawna
يُجْزَوْنَ
जो बदले में दिए जाऐंगे
l-ghur'fata
ٱلْغُرْفَةَ
बालाख़ाने
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
ṣabarū
صَبَرُوا۟
उन्होंने सब्र किया
wayulaqqawna
وَيُلَقَّوْنَ
और वो इस्तक़बाल किए जाऐंगे
fīhā
فِيهَا
उसमें
taḥiyyatan
تَحِيَّةً
दुआए ख़ैर
wasalāman
وَسَلَٰمًا
और सलाम से
यही वे लोग है जिन्हें, इसके बदले में कि वे जमे रहे, उच्च भवन प्राप्त होगा, तथा ज़िन्दाबाद और सलाम से उनका वहाँ स्वागत होगा ([२५] अल-फुरकान: 75)
Tafseer (तफ़सीर )
७६

خٰلِدِيْنَ فِيْهَاۗ حَسُنَتْ مُسْتَقَرًّا وَّمُقَامًا ٧٦

khālidīna
خَٰلِدِينَ
हमेशा रहने वाले हैं
fīhā
فِيهَاۚ
उसमें
ḥasunat
حَسُنَتْ
कितना अच्छा है
mus'taqarran
مُسْتَقَرًّا
ठिकाना
wamuqāman
وَمُقَامًا
और क़यामगाह
वहाँ वे सदैव रहेंगे। बहुत ही अच्छी है वह ठहरने की जगह और स्थान; ([२५] अल-फुरकान: 76)
Tafseer (तफ़सीर )
७७

قُلْ مَا يَعْبَؤُا بِكُمْ رَبِّيْ لَوْلَا دُعَاۤؤُكُمْۚ فَقَدْ كَذَّبْتُمْ فَسَوْفَ يَكُوْنُ لِزَامًا ࣖ ٧٧

qul
قُلْ
कह दीजिए
مَا
ना
yaʿba-u
يَعْبَؤُا۟
परवाह करता
bikum
بِكُمْ
तुम्हारी
rabbī
رَبِّى
रब मेरा
lawlā
لَوْلَا
अगर ना होती
duʿāukum
دُعَآؤُكُمْۖ
दुआ तुम्हारी
faqad
فَقَدْ
तो तहक़ीक़
kadhabtum
كَذَّبْتُمْ
झुठला दिया तुम ने
fasawfa
فَسَوْفَ
तो अनक़रीब
yakūnu
يَكُونُ
होगा
lizāman
لِزَامًۢا
चिमट जाने वाला (अज़ाब)
कह दो, 'मेरे रब को तुम्हारी कोई परवाह नहीं अगर तुम (उसको) न पुकारो। अब जबकि तुम झुठला चुके हो, तो शीघ्र ही वह चीज़ चिमट जानेवाली होगी।' ([२५] अल-फुरकान: 77)
Tafseer (तफ़सीर )