تَبٰرَكَ الَّذِيْ جَعَلَ فِى السَّمَاۤءِ بُرُوْجًا وَّجَعَلَ فِيْهَا سِرَاجًا وَّقَمَرًا مُّنِيْرًا ٦١
- tabāraka
- تَبَارَكَ
- बहुत बाबरकत है
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो जिसने
- jaʿala
- جَعَلَ
- बनाया
- fī
- فِى
- आसमान में
- l-samāi
- ٱلسَّمَآءِ
- आसमान में
- burūjan
- بُرُوجًا
- बुर्जों को
- wajaʿala
- وَجَعَلَ
- और बनाया
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- sirājan
- سِرَٰجًا
- चिराग़ / सूरज
- waqamaran
- وَقَمَرًا
- और चाँद को
- munīran
- مُّنِيرًا
- रौशन
बड़ी बरकतवाला है वह, जिसने आकाश में बुर्ज (नक्षत्र) बनाए और उसमें एक चिराग़ और एक चमकता चाँद बनाया ([२५] अल-फुरकान: 61)Tafseer (तफ़सीर )
وَهُوَ الَّذِيْ جَعَلَ الَّيْلَ وَالنَّهَارَ خِلْفَةً لِّمَنْ اَرَادَ اَنْ يَّذَّكَّرَ اَوْ اَرَادَ شُكُوْرًا ٦٢
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो ही है
- alladhī
- ٱلَّذِى
- जिसने
- jaʿala
- جَعَلَ
- बनाया
- al-layla
- ٱلَّيْلَ
- रात को
- wal-nahāra
- وَٱلنَّهَارَ
- और दिन को
- khil'fatan
- خِلْفَةً
- एक दूसरे के पीछे आने वाला
- liman
- لِّمَنْ
- उसके लिए जो
- arāda
- أَرَادَ
- इरादा करे
- an
- أَن
- कि
- yadhakkara
- يَذَّكَّرَ
- वो नसीहत पकड़े
- aw
- أَوْ
- या
- arāda
- أَرَادَ
- वो इरादा करे
- shukūran
- شُكُورًا
- शुक्रगुज़ारी का
और वही है जिसने रात और दिन को एक-दूसरे के पीछे आनेवाला बनाया, उस व्यक्ति के लिए (निशानी) जो चेतना चाहे या कृतज्ञ होना चाहे ([२५] अल-फुरकान: 62)Tafseer (तफ़सीर )
وَعِبَادُ الرَّحْمٰنِ الَّذِيْنَ يَمْشُوْنَ عَلَى الْاَرْضِ هَوْنًا وَّاِذَا خَاطَبَهُمُ الْجٰهِلُوْنَ قَالُوْا سَلٰمًا ٦٣
- waʿibādu
- وَعِبَادُ
- और बन्दे
- l-raḥmāni
- ٱلرَّحْمَٰنِ
- रहमान के
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो हैं जो
- yamshūna
- يَمْشُونَ
- चलते हैं
- ʿalā
- عَلَى
- ज़मीन पर
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन पर
- hawnan
- هَوْنًا
- आहिस्तगी से
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- khāṭabahumu
- خَاطَبَهُمُ
- मुख़ातिब होते हैं उनसे
- l-jāhilūna
- ٱلْجَٰهِلُونَ
- जाहिल लोग
- qālū
- قَالُوا۟
- वो कहते हैं
- salāman
- سَلَٰمًا
- सलाम
रहमान के (प्रिय) बन्दें वहीं है जो धरती पर नम्रतापूर्वक चलते है और जब जाहिल उनके मुँह आएँ तो कह देते है, 'तुमको सलाम!' ([२५] अल-फुरकान: 63)Tafseer (तफ़सीर )
وَالَّذِيْنَ يَبِيْتُوْنَ لِرَبِّهِمْ سُجَّدًا وَّقِيَامًا ٦٤
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- yabītūna
- يَبِيتُونَ
- रात गुज़ारते हैं
- lirabbihim
- لِرَبِّهِمْ
- अपने रब के लिए
- sujjadan
- سُجَّدًا
- सजदा करते हुए
- waqiyāman
- وَقِيَٰمًا
- और क़याम करते हुए
जो अपने रब के आगे सजदे में और खड़े रातें गुज़ारते है; ([२५] अल-फुरकान: 64)Tafseer (तफ़सीर )
وَالَّذِيْنَ يَقُوْلُوْنَ رَبَّنَا اصْرِفْ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَۖ اِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا ۖ ٦٥
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- yaqūlūna
- يَقُولُونَ
- कहते हैं
- rabbanā
- رَبَّنَا
- ऐ हमारे रब
- iṣ'rif
- ٱصْرِفْ
- फेर दे
- ʿannā
- عَنَّا
- हम से
- ʿadhāba
- عَذَابَ
- अज़ाब
- jahannama
- جَهَنَّمَۖ
- जहन्नम का
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- ʿadhābahā
- عَذَابَهَا
- अज़ाब उसका
- kāna
- كَانَ
- है
- gharāman
- غَرَامًا
- लाज़िम होने वाला
जो कहते है कि 'ऐ हमारे रब! जहन्नम की यातना को हमसे हटा दे।' निश्चय ही उनकी यातना चिमटकर रहनेवाली है ([२५] अल-फुरकान: 65)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّهَا سَاۤءَتْ مُسْتَقَرًّا وَّمُقَامًا ٦٦
- innahā
- إِنَّهَا
- बेशक वो
- sāat
- سَآءَتْ
- बहुत बुरा है
- mus'taqarran
- مُسْتَقَرًّا
- ठिकाना
- wamuqāman
- وَمُقَامًا
- और क़यामगाह
निश्चय ही वह जगह ठहरने की दृष्टि! से भी बुरी है और स्थान की दृष्टि से भी ([२५] अल-फुरकान: 66)Tafseer (तफ़सीर )
وَالَّذِيْنَ اِذَآ اَنْفَقُوْا لَمْ يُسْرِفُوْا وَلَمْ يَقْتُرُوْا وَكَانَ بَيْنَ ذٰلِكَ قَوَامًا ٦٧
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो लोग
- idhā
- إِذَآ
- जब
- anfaqū
- أَنفَقُوا۟
- वो ख़र्च करते हैं
- lam
- لَمْ
- ना
- yus'rifū
- يُسْرِفُوا۟
- वो इसराफ़ करते हैं
- walam
- وَلَمْ
- और ना
- yaqturū
- يَقْتُرُوا۟
- वो बुख़्ल करते हैं
- wakāna
- وَكَانَ
- और होता है
- bayna
- بَيْنَ
- दर्मियान उसके
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- दर्मियान उसके
- qawāman
- قَوَامًا
- मोअतदल (तरीक़ा)
जो ख़र्च करते है तो न अपव्यय करते है और न ही तंगी से काम लेते है, बल्कि वे इनके बीच मध्यमार्ग पर रहते है ([२५] अल-फुरकान: 67)Tafseer (तफ़सीर )
وَالَّذِيْنَ لَا يَدْعُوْنَ مَعَ اللّٰهِ اِلٰهًا اٰخَرَ وَلَا يَقْتُلُوْنَ النَّفْسَ الَّتِيْ حَرَّمَ اللّٰهُ اِلَّا بِالْحَقِّ وَلَا يَزْنُوْنَۚ وَمَنْ يَّفْعَلْ ذٰلِكَ يَلْقَ اَثَامًا ۙ ٦٨
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- lā
- لَا
- नहीं वो पुकारते
- yadʿūna
- يَدْعُونَ
- नहीं वो पुकारते
- maʿa
- مَعَ
- साथ
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- ilāhan
- إِلَٰهًا
- इलाह
- ākhara
- ءَاخَرَ
- दूसरा
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- yaqtulūna
- يَقْتُلُونَ
- वो क़त्ल करते
- l-nafsa
- ٱلنَّفْسَ
- किसी जान को
- allatī
- ٱلَّتِى
- वो जो
- ḥarrama
- حَرَّمَ
- हराम की
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- illā
- إِلَّا
- मगर
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّ
- साथ हक़ के
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- yaznūna
- يَزْنُونَۚ
- वो ज़िना करते
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yafʿal
- يَفْعَلْ
- करेगा
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ऐसा
- yalqa
- يَلْقَ
- वो पाएगा
- athāman
- أَثَامًا
- गुनाह (की सज़ा) को
जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे इष्ट-पूज्य को नहीं पुकारते और न नाहक़ किसी जीव को जिस (के क़त्ल) को अल्लाह ने हराम किया है, क़त्ल करते है। और न वे व्यभिचार करते है - जो कोई यह काम करे तो वह गुनाह के वबाल से दोचार होगा ([२५] अल-फुरकान: 68)Tafseer (तफ़सीर )
يُّضٰعَفْ لَهُ الْعَذَابُ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ وَيَخْلُدْ فِيْهٖ مُهَانًا ۙ ٦٩
- yuḍāʿaf
- يُضَٰعَفْ
- दोगुना किया जाएगा
- lahu
- لَهُ
- उसके लिए
- l-ʿadhābu
- ٱلْعَذَابُ
- अज़ाब
- yawma
- يَوْمَ
- दिन
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِ
- क़यामत के
- wayakhlud
- وَيَخْلُدْ
- और वो हमेशा रहेगा
- fīhi
- فِيهِۦ
- उसमें
- muhānan
- مُهَانًا
- ज़लील हो कर
क़ियामत के दिन उसकी यातना बढ़ती चली जाएगी॥ और वह उसी में अपमानित होकर स्थायी रूप से पड़ा रहेगा ([२५] अल-फुरकान: 69)Tafseer (तफ़सीर )
اِلَّا مَنْ تَابَ وَاٰمَنَ وَعَمِلَ عَمَلًا صَالِحًا فَاُولٰۤىِٕكَ يُبَدِّلُ اللّٰهُ سَيِّاٰتِهِمْ حَسَنٰتٍۗ وَكَانَ اللّٰهُ غَفُوْرًا رَّحِيْمًا ٧٠
- illā
- إِلَّا
- मगर
- man
- مَن
- जिसने
- tāba
- تَابَ
- तौबा की
- waāmana
- وَءَامَنَ
- और वो ईमान लाया
- waʿamila
- وَعَمِلَ
- और उसने अमल करे
- ʿamalan
- عَمَلًا
- अमल
- ṣāliḥan
- صَٰلِحًا
- नेक
- fa-ulāika
- فَأُو۟لَٰٓئِكَ
- तो यही लोग हैं
- yubaddilu
- يُبَدِّلُ
- बदल देगा
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- sayyiātihim
- سَيِّـَٔاتِهِمْ
- उनकी बुराइयों को
- ḥasanātin
- حَسَنَٰتٍۗ
- भलाइयों से
- wakāna
- وَكَانَ
- और है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- ghafūran
- غَفُورًا
- बहुत बख़शने वाला
- raḥīman
- رَّحِيمًا
- बहुत रहम करने वाला
सिवाय उसके जो पलट आया और ईमान लाया और अच्छा कर्म किया, तो ऐसे लोगों की बुराइयों को अल्लाह भलाइयों से बदल देगा। और अल्लाह है भी अत्यन्त क्षमाशील, दयावान ([२५] अल-फुरकान: 70)Tafseer (तफ़सीर )