وَكَذٰلِكَ جَعَلْنَا لِكُلِّ نَبِيٍّ عَدُوًّا مِّنَ الْمُجْرِمِيْنَۗ وَكَفٰى بِرَبِّكَ هَادِيًا وَّنَصِيْرًا ٣١
- wakadhālika
- وَكَذَٰلِكَ
- और इसी तरह
- jaʿalnā
- جَعَلْنَا
- बनाया हमने
- likulli
- لِكُلِّ
- हर नबी के लिए
- nabiyyin
- نَبِىٍّ
- हर नबी के लिए
- ʿaduwwan
- عَدُوًّا
- दुश्मन
- mina
- مِّنَ
- मुजरिमों में से
- l-muj'rimīna
- ٱلْمُجْرِمِينَۗ
- मुजरिमों में से
- wakafā
- وَكَفَىٰ
- और काफ़ी है
- birabbika
- بِرَبِّكَ
- आपका रब
- hādiyan
- هَادِيًا
- हिदायत देने वाला
- wanaṣīran
- وَنَصِيرًا
- और मदद करने वाला
और इसी तरह हमने अपराधियों में से प्रत्यॆक नबी के लिये शत्रु बनाया। मार्गदर्शन और सहायता कॆ लिए तॊ तुम्हारा रब ही काफ़ी है। ([२५] अल-फुरकान: 31)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَالَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لَوْلَا نُزِّلَ عَلَيْهِ الْقُرْاٰنُ جُمْلَةً وَّاحِدَةً ۛ كَذٰلِكَ ۛ لِنُثَبِّتَ بِهٖ فُؤَادَكَ وَرَتَّلْنٰهُ تَرْتِيْلًا ٣٢
- waqāla
- وَقَالَ
- और कहा
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों ने जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- lawlā
- لَوْلَا
- क्यों नहीं
- nuzzila
- نُزِّلَ
- नाज़िल किया गया
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उस पर
- l-qur'ānu
- ٱلْقُرْءَانُ
- क़ुरआन
- jum'latan
- جُمْلَةً
- इकट्ठा
- wāḥidatan
- وَٰحِدَةًۚ
- एक ही बार
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- linuthabbita
- لِنُثَبِّتَ
- ताकि हम मज़बूत कर दें
- bihi
- بِهِۦ
- साथ इसके
- fuādaka
- فُؤَادَكَۖ
- दिल आपका
- warattalnāhu
- وَرَتَّلْنَٰهُ
- और ठहर-ठहर कर पढ़ा हमने उसे
- tartīlan
- تَرْتِيلًا
- ठहर-ठहर कर पढ़ना
और जिन लोगों ने इनकार किया उनका कहना है कि 'उसपर पूरा क़ुरआन एक ही बार में क्यों नहीं उतारा?' ऐसा इसलिए किया गया ताकि हम इसके द्वारा तुम्हारे दिल को मज़बूत रखें और हमने इसे एक उचित क्रम में रखा ([२५] अल-फुरकान: 32)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا يَأْتُوْنَكَ بِمَثَلٍ اِلَّا جِئْنٰكَ بِالْحَقِّ وَاَحْسَنَ تَفْسِيْرًا ۗ ٣٣
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- yatūnaka
- يَأْتُونَكَ
- वो लाते आपके पास
- bimathalin
- بِمَثَلٍ
- कोई मिसाल
- illā
- إِلَّا
- मगर
- ji'nāka
- جِئْنَٰكَ
- लाते हैं हम आपके पास
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّ
- हक़ को
- wa-aḥsana
- وَأَحْسَنَ
- और बेहतरीन
- tafsīran
- تَفْسِيرًا
- तफ़सीर/ वज़ाहत को
और जब कभी भी वे तुम्हारे पास कोई आक्षेप की बात लेकर आएँगे तो हम तुम्हारे पास पक्की-सच्ची चीज़ लेकर आएँगे! इस दशा में कि वह स्पष्टीतकरण की स्पष्ट से उत्तम है ([२५] अल-फुरकान: 33)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَّذِيْنَ يُحْشَرُوْنَ عَلٰى وُجُوْهِهِمْ اِلٰى جَهَنَّمَۙ اُولٰۤىِٕكَ شَرٌّ مَّكَانًا وَّاَضَلُّ سَبِيْلًا ࣖ ٣٤
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- yuḥ'sharūna
- يُحْشَرُونَ
- इकट्ठे किए जाऐंगे
- ʿalā
- عَلَىٰ
- अपने चेहरों के बल
- wujūhihim
- وُجُوهِهِمْ
- अपने चेहरों के बल
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ जहन्नम के
- jahannama
- جَهَنَّمَ
- तरफ़ जहन्नम के
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग
- sharrun
- شَرٌّ
- बदतरीन हैं
- makānan
- مَّكَانًا
- मक़ाम के ऐतबार से
- wa-aḍallu
- وَأَضَلُّ
- और ज़्यादा भटके हुए
- sabīlan
- سَبِيلًا
- रास्ते के ऐतबार से
जो लोग औंधे मुँह जहन्नम की ओर ले जाए जाएँगे वही स्थान की दृष्टि से बहुत बुरे है, और मार्ग की दृष्टि से भी बहुत भटके हुए है ([२५] अल-फुरकान: 34)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ اٰتَيْنَا مُوْسَى الْكِتٰبَ وَجَعَلْنَا مَعَهٗٓ اَخَاهُ هٰرُوْنَ وَزِيْرًا ۚ ٣٥
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- ātaynā
- ءَاتَيْنَا
- दी हमने
- mūsā
- مُوسَى
- मूसा को
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- wajaʿalnā
- وَجَعَلْنَا
- और बनाया हमने
- maʿahu
- مَعَهُۥٓ
- साथ उसके
- akhāhu
- أَخَاهُ
- उसके भाई
- hārūna
- هَٰرُونَ
- हारून को
- wazīran
- وَزِيرًا
- मददगार
हमने मूसा को किताब प्रदान की और उसके भाई हारून को सहायक के रूप में उसके साथ किया ([२५] अल-फुरकान: 35)Tafseer (तफ़सीर )
فَقُلْنَا اذْهَبَآ اِلَى الْقَوْمِ الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَاۗ فَدَمَّرْنٰهُمْ تَدْمِيْرًا ۗ ٣٦
- faqul'nā
- فَقُلْنَا
- फिर कहा हमने
- idh'habā
- ٱذْهَبَآ
- दोनों जाओ
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ उस क़ौम के
- l-qawmi
- ٱلْقَوْمِ
- तरफ़ उस क़ौम के
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जिन्होंने
- kadhabū
- كَذَّبُوا۟
- झुठलाया
- biāyātinā
- بِـَٔايَٰتِنَا
- हमारी आयात को
- fadammarnāhum
- فَدَمَّرْنَٰهُمْ
- तो हलाक कर दिया हमने उन्हें
- tadmīran
- تَدْمِيرًا
- हलाक करना
और कहा कि 'तुम दोनों उन लोगों के पास जाओ जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया है।' अन्ततः हमने उन लोगों को विनष्ट करके रख दिया ([२५] अल-फुरकान: 36)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَوْمَ نُوْحٍ لَّمَّا كَذَّبُوا الرُّسُلَ اَغْرَقْنٰهُمْ وَجَعَلْنٰهُمْ لِلنَّاسِ اٰيَةًۗ وَاَعْتَدْنَا لِلظّٰلِمِيْنَ عَذَابًا اَلِيْمًا ۚ ٣٧
- waqawma
- وَقَوْمَ
- और क़ौमे
- nūḥin
- نُوحٍ
- नूह
- lammā
- لَّمَّا
- जब
- kadhabū
- كَذَّبُوا۟
- उन्होंने झुठलाया
- l-rusula
- ٱلرُّسُلَ
- रसूलों को
- aghraqnāhum
- أَغْرَقْنَٰهُمْ
- ग़र्क़ कर दिया हमने उन्हें
- wajaʿalnāhum
- وَجَعَلْنَٰهُمْ
- और बना दिया हमने उन्हें
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- āyatan
- ءَايَةًۖ
- एक निशानी
- wa-aʿtadnā
- وَأَعْتَدْنَا
- और तैयार कर रखा है हमने
- lilẓẓālimīna
- لِلظَّٰلِمِينَ
- ज़लिमों के लिए
- ʿadhāban
- عَذَابًا
- अज़ाब
- alīman
- أَلِيمًا
- दर्दनाक
और नूह की क़ौम को भी, जब उन्होंने रसूलों को झुठलाया तो हमने उन्हें डुबा दिया और लोगों के लिए उन्हें एक निशानी बना दिया, और उन ज़ालिमों के लिए हमने एक दुखद यातना तैयार कर रखी है ([२५] अल-फुरकान: 37)Tafseer (तफ़सीर )
وَعَادًا وَّثَمُوْدَا۟ وَاَصْحٰبَ الرَّسِّ وَقُرُوْنًاۢ بَيْنَ ذٰلِكَ كَثِيْرًا ٣٨
- waʿādan
- وَعَادًا
- और आद
- wathamūdā
- وَثَمُودَا۟
- और समूद
- wa-aṣḥāba
- وَأَصْحَٰبَ
- और कुएँ वाले
- l-rasi
- ٱلرَّسِّ
- और कुएँ वाले
- waqurūnan
- وَقُرُونًۢا
- और क़ौमें
- bayna
- بَيْنَ
- दर्मियान उनके
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- दर्मियान उनके
- kathīran
- كَثِيرًا
- बहुत सी
और आद और समूद और अर-रस्सवालों और उस बीच की बहुत-सी नस्लों को भी विनष्ट किया। ([२५] अल-फुरकान: 38)Tafseer (तफ़सीर )
وَكُلًّا ضَرَبْنَا لَهُ الْاَمْثَالَۖ وَكُلًّا تَبَّرْنَا تَتْبِيْرًا ٣٩
- wakullan
- وَكُلًّا
- और हर एक को
- ḍarabnā
- ضَرَبْنَا
- बयान कीं हमने
- lahu
- لَهُ
- उसके लिए
- l-amthāla
- ٱلْأَمْثَٰلَۖ
- मिसालें
- wakullan
- وَكُلًّا
- और हर एक को
- tabbarnā
- تَبَّرْنَا
- हलाक किया हमने
- tatbīran
- تَتْبِيرًا
- हलाक करना
प्रत्येक के लिए हमने मिसालें बयान कीं। अन्ततः प्रत्येक को हमने पूरी तरह विध्वस्त कर दिया ([२५] अल-फुरकान: 39)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ اَتَوْا عَلَى الْقَرْيَةِ الَّتِيْٓ اُمْطِرَتْ مَطَرَ السَّوْءِۗ اَفَلَمْ يَكُوْنُوْا يَرَوْنَهَاۚ بَلْ كَانُوْا لَا يَرْجُوْنَ نُشُوْرًا ٤٠
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- ataw
- أَتَوْا۟
- वो आ चुके
- ʿalā
- عَلَى
- उस बस्ती पर
- l-qaryati
- ٱلْقَرْيَةِ
- उस बस्ती पर
- allatī
- ٱلَّتِىٓ
- जिस पर
- um'ṭirat
- أُمْطِرَتْ
- बरसाई गई थी
- maṭara
- مَطَرَ
- बारिश
- l-sawi
- ٱلسَّوْءِۚ
- बुरी
- afalam
- أَفَلَمْ
- क्या भला नहीं
- yakūnū
- يَكُونُوا۟
- थे वो
- yarawnahā
- يَرَوْنَهَاۚ
- वो देखते उसे
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- lā
- لَا
- ना वो उम्मीद रखते
- yarjūna
- يَرْجُونَ
- ना वो उम्मीद रखते
- nushūran
- نُشُورًا
- जी उठने की
और उस बस्ती पर से तो वे हो आए है जिसपर बुरी वर्षा बरसी; तो क्या वे उसे देखते नहीं रहे हैं? नहीं, बल्कि वे दोबारा जीवित होकर उठने की आशा ही नहीं रखते रहे है ([२५] अल-फुरकान: 40)Tafseer (तफ़सीर )