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सूरा अन-नूर - Page: 6

An-Nur

(प्रकाश)

५१

اِنَّمَا كَانَ قَوْلَ الْمُؤْمِنِيْنَ اِذَا دُعُوْٓا اِلَى اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ اَنْ يَّقُوْلُوْا سَمِعْنَا وَاَطَعْنَاۗ وَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ ٥١

innamā
إِنَّمَا
बेशक
kāna
كَانَ
है
qawla
قَوْلَ
क़ौल
l-mu'minīna
ٱلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों का
idhā
إِذَا
जब
duʿū
دُعُوٓا۟
वो बुलाए जाते हैं
ilā
إِلَى
तरफ़ अल्लाह के
l-lahi
ٱللَّهِ
तरफ़ अल्लाह के
warasūlihi
وَرَسُولِهِۦ
और उसके रसूल के
liyaḥkuma
لِيَحْكُمَ
कि वो फ़ैसला करे
baynahum
بَيْنَهُمْ
दर्मियान उनके
an
أَن
कि
yaqūlū
يَقُولُوا۟
वो कहते हैं
samiʿ'nā
سَمِعْنَا
सुन लिया हमने
wa-aṭaʿnā
وَأَطَعْنَاۚ
और इताअत की हमने
wa-ulāika
وَأُو۟لَٰٓئِكَ
और यही लोग हैं
humu
هُمُ
वो
l-muf'liḥūna
ٱلْمُفْلِحُونَ
जो फ़लाह पाने वाले हैं
मोमिनों की बात तो बस यह होती है कि जब अल्लाह और उसके रसूल की ओर बुलाए जाएँ, ताकि वह उनके बीच फ़ैसला करे, तो वे कहें, 'हमने सुना और आज्ञापालन किया।' और वही सफलता प्राप्त करनेवाले हैं ([२४] अन-नूर: 51)
Tafseer (तफ़सीर )
५२

وَمَنْ يُّطِعِ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ وَيَخْشَ اللّٰهَ وَيَتَّقْهِ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْفَاۤىِٕزُوْنَ ٥٢

waman
وَمَن
और जो कोई
yuṭiʿi
يُطِعِ
इताअत करेगा
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह की
warasūlahu
وَرَسُولَهُۥ
और उसके रसूल की
wayakhsha
وَيَخْشَ
और वो डरेगा
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह से
wayattaqhi
وَيَتَّقْهِ
और वो तक़वा करेगा उसका
fa-ulāika
فَأُو۟لَٰٓئِكَ
तो यही लोग हैं
humu
هُمُ
वो
l-fāizūna
ٱلْفَآئِزُونَ
जो कामयाब होने वाले हैं
और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञा का पालन करे और अल्लाह से डरे और उसकी सीमाओं का ख़याल रखे, तो ऐसे ही लोग सफल है ([२४] अन-नूर: 52)
Tafseer (तफ़सीर )
५३

۞ وَاَقْسَمُوْا بِاللّٰهِ جَهْدَ اَيْمَانِهِمْ لَىِٕنْ اَمَرْتَهُمْ لَيَخْرُجُنَّۗ قُلْ لَّا تُقْسِمُوْاۚ طَاعَةٌ مَّعْرُوْفَةٌ ۗاِنَّ اللّٰهَ خَبِيْرٌۢ بِمَا تَعْمَلُوْنَ ٥٣

wa-aqsamū
وَأَقْسَمُوا۟
और उन्होंने क़समें खाईं
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह की
jahda
جَهْدَ
पक्की/पुख़्ता
aymānihim
أَيْمَٰنِهِمْ
क़समें अपनी
la-in
لَئِنْ
अलबत्ता अगर
amartahum
أَمَرْتَهُمْ
हुक्म दिया आपने उन्हें
layakhrujunna
لَيَخْرُجُنَّۖ
अलबत्ता वो ज़रूर निकलेंगे
qul
قُل
कह दीजिए
لَّا
ना तुम क़समें खाओ
tuq'simū
تُقْسِمُوا۟ۖ
ना तुम क़समें खाओ
ṭāʿatun
طَاعَةٌ
इताअत तो
maʿrūfatun
مَّعْرُوفَةٌۚ
जानी पहचानी है
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
khabīrun
خَبِيرٌۢ
ख़ूब ख़बर रखने वाला है
bimā
بِمَا
उसकी जो
taʿmalūna
تَعْمَلُونَ
तुम अमल करते हो
वे अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाते है कि यदि तुम उन्हें हुक्म दो तो वे अवश्य निकल खड़े होंगे। कह दो, 'क़समें न खाओ। सामान्य नियम के अनुसार आज्ञापालन ही वास्तकिव चीज़ है। तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसकी ख़बर रखता है।' ([२४] अन-नूर: 53)
Tafseer (तफ़सीर )
५४

قُلْ اَطِيْعُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوا الرَّسُوْلَۚ فَاِنْ تَوَلَّوْا فَاِنَّمَا عَلَيْهِ مَا حُمِّلَ وَعَلَيْكُمْ مَّا حُمِّلْتُمْۗ وَاِنْ تُطِيْعُوْهُ تَهْتَدُوْاۗ وَمَا عَلَى الرَّسُوْلِ اِلَّا الْبَلٰغُ الْمُبِيْنُ ٥٤

qul
قُلْ
कह दीजिए
aṭīʿū
أَطِيعُوا۟
इताअत करो
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह की
wa-aṭīʿū
وَأَطِيعُوا۟
और इताअत करो
l-rasūla
ٱلرَّسُولَۖ
रसूल की
fa-in
فَإِن
फिर अगर
tawallaw
تَوَلَّوْا۟
तुम मुँह फेरोगे
fa-innamā
فَإِنَّمَا
तो बेशक
ʿalayhi
عَلَيْهِ
इस( रसूल) पर है
مَا
जो
ḥummila
حُمِّلَ
बोझ वो डाला गया
waʿalaykum
وَعَلَيْكُم
और तुम पर है
مَّا
जो
ḥummil'tum
حُمِّلْتُمْۖ
बोझ डाले गए तुम
wa-in
وَإِن
और अगर
tuṭīʿūhu
تُطِيعُوهُ
तुम इताअत करोगे उसकी
tahtadū
تَهْتَدُوا۟ۚ
तुम हिदायत पा लोगे
wamā
وَمَا
और नहीं है
ʿalā
عَلَى
रसूल पर
l-rasūli
ٱلرَّسُولِ
रसूल पर
illā
إِلَّا
मगर
l-balāghu
ٱلْبَلَٰغُ
पहुँचा देना
l-mubīnu
ٱلْمُبِينُ
खुल्लम-खुल्ला
कहो, 'अल्लाह का आज्ञापालन करो और उसके रसूल का कहा मानो। परन्तु यदि तुम मुँह मोड़ते हो तो उसपर तो बस वही ज़िम्मेदारी है जिसका बोझ उसपर डाला गया है, और तुम उसके ज़िम्मेदार हो जिसका बोझ तुमपर डाला गया है। और यदि तुम आज्ञा का पालन करोगे तो मार्ग पा लोगे। और रसूल पर तो बस साफ़-साफ़ (संदेश) पहुँचा देने ही की ज़िम्मेदारी है ([२४] अन-नूर: 54)
Tafseer (तफ़सीर )
५५

وَعَدَ اللّٰهُ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مِنْكُمْ وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ لَيَسْتَخْلِفَنَّهُمْ فِى الْاَرْضِ كَمَا اسْتَخْلَفَ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْۖ وَلَيُمَكِّنَنَّ لَهُمْ دِيْنَهُمُ الَّذِى ارْتَضٰى لَهُمْ وَلَيُبَدِّلَنَّهُمْ مِّنْۢ بَعْدِ خَوْفِهِمْ اَمْنًاۗ يَعْبُدُوْنَنِيْ لَا يُشْرِكُوْنَ بِيْ شَيْـًٔاۗ وَمَنْ كَفَرَ بَعْدَ ذٰلِكَ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْفٰسِقُوْنَ ٥٥

waʿada
وَعَدَ
वादा किया
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन लोगों से जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
minkum
مِنكُمْ
तुम में से
waʿamilū
وَعَمِلُوا۟
और उन्होंने अमल किए
l-ṣāliḥāti
ٱلصَّٰلِحَٰتِ
नेक
layastakhlifannahum
لَيَسْتَخْلِفَنَّهُمْ
अलबत्ता वो ज़रूर जानशीन बनाएगा उन्हें
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
kamā
كَمَا
जैसा कि
is'takhlafa
ٱسْتَخْلَفَ
उसने जानशीन बनाया था
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन्हें जो
min
مِن
उनसे पहले थे
qablihim
قَبْلِهِمْ
उनसे पहले थे
walayumakkinanna
وَلَيُمَكِّنَنَّ
और वो ज़रूर जमा देगा
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
dīnahumu
دِينَهُمُ
दीन उनका
alladhī
ٱلَّذِى
वो जो
ir'taḍā
ٱرْتَضَىٰ
उसने पसंद किया है
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
walayubaddilannahum
وَلَيُبَدِّلَنَّهُم
और अलबत्ता वो ज़रूर बदल कर देगा उन्हें
min
مِّنۢ
बाद
baʿdi
بَعْدِ
बाद
khawfihim
خَوْفِهِمْ
उनके ख़ौफ़ के
amnan
أَمْنًاۚ
अमन
yaʿbudūnanī
يَعْبُدُونَنِى
वो इबादत करेंगे मेरी
لَا
ना वो शरीक करेंगे
yush'rikūna
يُشْرِكُونَ
ना वो शरीक करेंगे
بِى
मेरे साथ
shayan
شَيْـًٔاۚ
किसी चीज़ को
waman
وَمَن
और जो कोई
kafara
كَفَرَ
कुफ़्र करे
baʿda
بَعْدَ
बाद
dhālika
ذَٰلِكَ
इसके
fa-ulāika
فَأُو۟لَٰٓئِكَ
तो यही लोग हैं
humu
هُمُ
वो
l-fāsiqūna
ٱلْفَٰسِقُونَ
जो फ़ासिक़ हैं
अल्लाह ने उन लोगों से जो तुममें से ईमान लाए और उन्होने अच्छे कर्म किए, वादा किया है कि वह उन्हें धरती में अवश्य सत्ताधिकार प्रदान करेगा, जैसे उसने उनसे पहले के लोगों को सत्ताधिकार प्रदान किया था। औऱ उनके लिए अवश्य उनके उस धर्म को जमाव प्रदान करेगा जिसे उसने उनके लिए पसन्द किया है। और निश्चय ही उनके वर्तमान भय के पश्चात उसे उनके लिए शान्ति और निश्चिन्तता में बदल देगा। वे मेरी बन्दगी करते है, मेरे साथ किसी चीज़ को साझी नहीं बनाते। और जो कोई इसके पश्चात इनकार करे, तो ऐसे ही लोग अवज्ञाकारी है ([२४] अन-नूर: 55)
Tafseer (तफ़सीर )
५६

وَاَقِيْمُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتُوا الزَّكٰوةَ وَاَطِيْعُوا الرَّسُوْلَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ ٥٦

wa-aqīmū
وَأَقِيمُوا۟
और क़ायम करो
l-ṣalata
ٱلصَّلَوٰةَ
नमाज़
waātū
وَءَاتُوا۟
और अदा करो
l-zakata
ٱلزَّكَوٰةَ
ज़कात
wa-aṭīʿū
وَأَطِيعُوا۟
और इताअत करो
l-rasūla
ٱلرَّسُولَ
रसूल की
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tur'ḥamūna
تُرْحَمُونَ
तुम रहम किए जाओ
नमाज़ का आयोजन करो और ज़कात दो और रसूल की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर दया की जाए ([२४] अन-नूर: 56)
Tafseer (तफ़सीर )
५७

لَا تَحْسَبَنَّ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا مُعْجِزِيْنَ فِى الْاَرْضِۚ وَمَأْوٰىهُمُ النَّارُۗ وَلَبِئْسَ الْمَصِيْرُ ࣖ ٥٧

لَا
हरगिज़ ना समझिये आप
taḥsabanna
تَحْسَبَنَّ
हरगिज़ ना समझिये आप
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनको जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
muʿ'jizīna
مُعْجِزِينَ
कि वो आजिज़ करने वाले हैं
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِۚ
ज़मीन में
wamawāhumu
وَمَأْوَىٰهُمُ
और ठिकाना उनका
l-nāru
ٱلنَّارُۖ
आग है
walabi'sa
وَلَبِئْسَ
और यक़ीनन कितनी बुरी है
l-maṣīru
ٱلْمَصِيرُ
लौटने की जगह
यह कदापि न समझो कि इनकार की नीति अपनानेवाले धरती में क़ाबू से बाहर निकल जानेवाले है। उनका ठिकाना आग है, और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है ([२४] अन-नूर: 57)
Tafseer (तफ़सीर )
५८

يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لِيَسْتَأْذِنْكُمُ الَّذِيْنَ مَلَكَتْ اَيْمَانُكُمْ وَالَّذِيْنَ لَمْ يَبْلُغُوا الْحُلُمَ مِنْكُمْ ثَلٰثَ مَرّٰتٍۗ مِنْ قَبْلِ صَلٰوةِ الْفَجْرِ وَحِيْنَ تَضَعُوْنَ ثِيَابَكُمْ مِّنَ الظَّهِيْرَةِ وَمِنْۢ بَعْدِ صَلٰوةِ الْعِشَاۤءِۗ ثَلٰثُ عَوْرٰتٍ لَّكُمْۗ لَيْسَ عَلَيْكُمْ وَلَا عَلَيْهِمْ جُنَاحٌۢ بَعْدَهُنَّۗ طَوَّافُوْنَ عَلَيْكُمْ بَعْضُكُمْ عَلٰى بَعْضٍۗ كَذٰلِكَ يُبَيِّنُ اللّٰهُ لَكُمُ الْاٰيٰتِۗ وَاللّٰهُ عَلِيْمٌ حَكِيْمٌ ٥٨

yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
ऐ लोगो जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
ऐ लोगो जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए हो
liyastadhinkumu
لِيَسْتَـْٔذِنكُمُ
चाहिए कि इजाज़त तलब करें तुम से
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जिनके
malakat
مَلَكَتْ
मालिक हुए
aymānukum
أَيْمَٰنُكُمْ
दाऐं हाथ तुम्हारे
wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जो
lam
لَمْ
नहीं
yablughū
يَبْلُغُوا۟
वो पहुँचे
l-ḥuluma
ٱلْحُلُمَ
बुलूग़त को
minkum
مِنكُمْ
तुम में से
thalātha
ثَلَٰثَ
तीन
marrātin
مَرَّٰتٍۚ
बार
min
مِّن
पहले
qabli
قَبْلِ
पहले
ṣalati
صَلَوٰةِ
नमाज़े
l-fajri
ٱلْفَجْرِ
फ़ज्र से
waḥīna
وَحِينَ
और जिस वक़्त
taḍaʿūna
تَضَعُونَ
तुम उतार रखते हो
thiyābakum
ثِيَابَكُم
कपड़े अपने
mina
مِّنَ
दोपहर के वक़्त
l-ẓahīrati
ٱلظَّهِيرَةِ
दोपहर के वक़्त
wamin
وَمِنۢ
और बाद
baʿdi
بَعْدِ
और बाद
ṣalati
صَلَوٰةِ
नमाज़े
l-ʿishāi
ٱلْعِشَآءِۚ
इशा के
thalāthu
ثَلَٰثُ
तीन
ʿawrātin
عَوْرَٰتٍ
परदे के (वक़्त हैं)
lakum
لَّكُمْۚ
तुम्हारे लिए
laysa
لَيْسَ
नहीं
ʿalaykum
عَلَيْكُمْ
तुम पर
walā
وَلَا
और ना
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
junāḥun
جُنَاحٌۢ
कोई गुनाह
baʿdahunna
بَعْدَهُنَّۚ
बाद इन( औक़ात) के
ṭawwāfūna
طَوَّٰفُونَ
बकसरत आने जाने वाले हैं
ʿalaykum
عَلَيْكُم
तुम पर
baʿḍukum
بَعْضُكُمْ
बाज़ तुम्हारे
ʿalā
عَلَىٰ
बाज़ पर
baʿḍin
بَعْضٍۚ
बाज़ पर
kadhālika
كَذَٰلِكَ
इसी तरह
yubayyinu
يُبَيِّنُ
वाज़ेह करता है
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
lakumu
لَكُمُ
तुम्हारे लिए
l-āyāti
ٱلْءَايَٰتِۗ
आयात
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
ʿalīmun
عَلِيمٌ
ख़ूब इल्म वाला है
ḥakīmun
حَكِيمٌ
ख़ूब हिकमत वाला है
ऐ ईमान लानेवालो! जो तुम्हारी मिल्कियत में हो और तुममें जो अभी युवावस्था को नहीं पहुँचे है, उनको चाहिए कि तीन समयों में तुमसे अनुमति लेकर तुम्हारे पास आएँ: प्रभात काल की नमाज़ से पहले और जब दोपहर को तुम (आराम के लिए) अपने कपड़े उतार रखते हो और रात्रि की नमाज़ के पश्चात - ये तीन समय तुम्हारे लिए परदे के हैं। इनके पश्चात न तो तुमपर कोई गुनाह है और न उनपर। वे तुम्हारे पास अधिक चक्कर लगाते है। तुम्हारे ही कुछ अंश परस्पर कुछ अंश के पास आकर मिलते है। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्टप करता है। अल्लाह भली-भाँति जाननेवाला है, तत्वदर्शी है ([२४] अन-नूर: 58)
Tafseer (तफ़सीर )
५९

وَاِذَا بَلَغَ الْاَطْفَالُ مِنْكُمُ الْحُلُمَ فَلْيَسْتَأْذِنُوْا كَمَا اسْتَأْذَنَ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْۗ كَذٰلِكَ يُبَيِّنُ اللّٰهُ لَكُمْ اٰيٰتِهٖۗ وَاللّٰهُ عَلِيْمٌ حَكِيْمٌ ٥٩

wa-idhā
وَإِذَا
और जब
balagha
بَلَغَ
पहुँच जाऐं
l-aṭfālu
ٱلْأَطْفَٰلُ
बच्चे
minkumu
مِنكُمُ
तुम में से
l-ḥuluma
ٱلْحُلُمَ
बलूग़त को
falyastadhinū
فَلْيَسْتَـْٔذِنُوا۟
पस चाहिए कि वो इजाज़त लिया करें
kamā
كَمَا
जैसा कि
is'tadhana
ٱسْتَـْٔذَنَ
इजाज़त लेते थे
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
min
مِن
उनसे पहले थे
qablihim
قَبْلِهِمْۚ
उनसे पहले थे
kadhālika
كَذَٰلِكَ
इसी तरह
yubayyinu
يُبَيِّنُ
वाज़ेह करता है
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
āyātihi
ءَايَٰتِهِۦۗ
अपनी आयात को
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
ʿalīmun
عَلِيمٌ
ख़ूब इल्म वाला है
ḥakīmun
حَكِيمٌ
ख़ूब हिकमत वाला है
और जब तुममें से बच्चे युवावस्था को पहुँच जाएँ तो उन्हें चाहिए कि अनुमति ले लिया करें जैसे उनसे पहले लोग अनुमति लेते रहे है। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्ट करता है। अल्लाह भली-भाँति जाननेवाला, तत्वदर्शी है ([२४] अन-नूर: 59)
Tafseer (तफ़सीर )
६०

وَالْقَوَاعِدُ مِنَ النِّسَاۤءِ الّٰتِيْ لَا يَرْجُوْنَ نِكَاحًا فَلَيْسَ عَلَيْهِنَّ جُنَاحٌ اَنْ يَّضَعْنَ ثِيَابَهُنَّ غَيْرَ مُتَبَرِّجٰتٍۢ بِزِيْنَةٍۗ وَاَنْ يَّسْتَعْفِفْنَ خَيْرٌ لَّهُنَّۗ وَاللّٰهُ سَمِيْعٌ عَلِيْمٌ ٦٠

wal-qawāʿidu
وَٱلْقَوَٰعِدُ
और बैठ रहने वालियाँ
mina
مِنَ
औरतों में से
l-nisāi
ٱلنِّسَآءِ
औरतों में से
allātī
ٱلَّٰتِى
वो जो
لَا
नहीं वो उम्मीद रखतीं
yarjūna
يَرْجُونَ
नहीं वो उम्मीद रखतीं
nikāḥan
نِكَاحًا
निकाह की
falaysa
فَلَيْسَ
तो नहीं है
ʿalayhinna
عَلَيْهِنَّ
उन पर
junāḥun
جُنَاحٌ
कोई गुनाह
an
أَن
कि
yaḍaʿna
يَضَعْنَ
वो उतार रखें
thiyābahunna
ثِيَابَهُنَّ
कपड़े( हिजाब) अपने
ghayra
غَيْرَ
ना
mutabarrijātin
مُتَبَرِّجَٰتٍۭ
ज़ाहिर करने वालियाँ
bizīnatin
بِزِينَةٍۖ
ज़ीनत को
wa-an
وَأَن
और ये कि
yastaʿfif'na
يَسْتَعْفِفْنَ
वो एहतियात बरतें
khayrun
خَيْرٌ
बेहतर है
lahunna
لَّهُنَّۗ
उनके लिए
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
samīʿun
سَمِيعٌ
ख़ूब सुनने वाला है
ʿalīmun
عَلِيمٌ
ख़ूब जानने वाला है
जो स्त्रियाँ युवावस्था से गुज़रकर बैठ चुकी हों, जिन्हें विवाह की आशा न रह गई हो, उनपर कोई दोष नहीं कि वे अपने कपड़े (चादरें) उतारकर रख दें जबकि वे शृंगार का प्रदर्शन करनेवाली न हों। फिर भी वे इससे बचें तो उनके लिए अधिक अच्छा है। अल्लाह भली-भाँति सुनता, जानता है ([२४] अन-नूर: 60)
Tafseer (तफ़सीर )