اِنَّمَا كَانَ قَوْلَ الْمُؤْمِنِيْنَ اِذَا دُعُوْٓا اِلَى اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ اَنْ يَّقُوْلُوْا سَمِعْنَا وَاَطَعْنَاۗ وَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ ٥١
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- kāna
- كَانَ
- है
- qawla
- قَوْلَ
- क़ौल
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- मोमिनों का
- idhā
- إِذَا
- जब
- duʿū
- دُعُوٓا۟
- वो बुलाए जाते हैं
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ अल्लाह के
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- तरफ़ अल्लाह के
- warasūlihi
- وَرَسُولِهِۦ
- और उसके रसूल के
- liyaḥkuma
- لِيَحْكُمَ
- कि वो फ़ैसला करे
- baynahum
- بَيْنَهُمْ
- दर्मियान उनके
- an
- أَن
- कि
- yaqūlū
- يَقُولُوا۟
- वो कहते हैं
- samiʿ'nā
- سَمِعْنَا
- सुन लिया हमने
- wa-aṭaʿnā
- وَأَطَعْنَاۚ
- और इताअत की हमने
- wa-ulāika
- وَأُو۟لَٰٓئِكَ
- और यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-muf'liḥūna
- ٱلْمُفْلِحُونَ
- जो फ़लाह पाने वाले हैं
मोमिनों की बात तो बस यह होती है कि जब अल्लाह और उसके रसूल की ओर बुलाए जाएँ, ताकि वह उनके बीच फ़ैसला करे, तो वे कहें, 'हमने सुना और आज्ञापालन किया।' और वही सफलता प्राप्त करनेवाले हैं ([२४] अन-नूर: 51)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَنْ يُّطِعِ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ وَيَخْشَ اللّٰهَ وَيَتَّقْهِ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْفَاۤىِٕزُوْنَ ٥٢
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yuṭiʿi
- يُطِعِ
- इताअत करेगा
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह की
- warasūlahu
- وَرَسُولَهُۥ
- और उसके रसूल की
- wayakhsha
- وَيَخْشَ
- और वो डरेगा
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- wayattaqhi
- وَيَتَّقْهِ
- और वो तक़वा करेगा उसका
- fa-ulāika
- فَأُو۟لَٰٓئِكَ
- तो यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-fāizūna
- ٱلْفَآئِزُونَ
- जो कामयाब होने वाले हैं
और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञा का पालन करे और अल्लाह से डरे और उसकी सीमाओं का ख़याल रखे, तो ऐसे ही लोग सफल है ([२४] अन-नूर: 52)Tafseer (तफ़सीर )
۞ وَاَقْسَمُوْا بِاللّٰهِ جَهْدَ اَيْمَانِهِمْ لَىِٕنْ اَمَرْتَهُمْ لَيَخْرُجُنَّۗ قُلْ لَّا تُقْسِمُوْاۚ طَاعَةٌ مَّعْرُوْفَةٌ ۗاِنَّ اللّٰهَ خَبِيْرٌۢ بِمَا تَعْمَلُوْنَ ٥٣
- wa-aqsamū
- وَأَقْسَمُوا۟
- और उन्होंने क़समें खाईं
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह की
- jahda
- جَهْدَ
- पक्की/पुख़्ता
- aymānihim
- أَيْمَٰنِهِمْ
- क़समें अपनी
- la-in
- لَئِنْ
- अलबत्ता अगर
- amartahum
- أَمَرْتَهُمْ
- हुक्म दिया आपने उन्हें
- layakhrujunna
- لَيَخْرُجُنَّۖ
- अलबत्ता वो ज़रूर निकलेंगे
- qul
- قُل
- कह दीजिए
- lā
- لَّا
- ना तुम क़समें खाओ
- tuq'simū
- تُقْسِمُوا۟ۖ
- ना तुम क़समें खाओ
- ṭāʿatun
- طَاعَةٌ
- इताअत तो
- maʿrūfatun
- مَّعْرُوفَةٌۚ
- जानी पहचानी है
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- khabīrun
- خَبِيرٌۢ
- ख़ूब ख़बर रखने वाला है
- bimā
- بِمَا
- उसकी जो
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते हो
वे अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाते है कि यदि तुम उन्हें हुक्म दो तो वे अवश्य निकल खड़े होंगे। कह दो, 'क़समें न खाओ। सामान्य नियम के अनुसार आज्ञापालन ही वास्तकिव चीज़ है। तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसकी ख़बर रखता है।' ([२४] अन-नूर: 53)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ اَطِيْعُوا اللّٰهَ وَاَطِيْعُوا الرَّسُوْلَۚ فَاِنْ تَوَلَّوْا فَاِنَّمَا عَلَيْهِ مَا حُمِّلَ وَعَلَيْكُمْ مَّا حُمِّلْتُمْۗ وَاِنْ تُطِيْعُوْهُ تَهْتَدُوْاۗ وَمَا عَلَى الرَّسُوْلِ اِلَّا الْبَلٰغُ الْمُبِيْنُ ٥٤
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- aṭīʿū
- أَطِيعُوا۟
- इताअत करो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह की
- wa-aṭīʿū
- وَأَطِيعُوا۟
- और इताअत करो
- l-rasūla
- ٱلرَّسُولَۖ
- रसूल की
- fa-in
- فَإِن
- फिर अगर
- tawallaw
- تَوَلَّوْا۟
- तुम मुँह फेरोगे
- fa-innamā
- فَإِنَّمَا
- तो बेशक
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- इस( रसूल) पर है
- mā
- مَا
- जो
- ḥummila
- حُمِّلَ
- बोझ वो डाला गया
- waʿalaykum
- وَعَلَيْكُم
- और तुम पर है
- mā
- مَّا
- जो
- ḥummil'tum
- حُمِّلْتُمْۖ
- बोझ डाले गए तुम
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- tuṭīʿūhu
- تُطِيعُوهُ
- तुम इताअत करोगे उसकी
- tahtadū
- تَهْتَدُوا۟ۚ
- तुम हिदायत पा लोगे
- wamā
- وَمَا
- और नहीं है
- ʿalā
- عَلَى
- रसूल पर
- l-rasūli
- ٱلرَّسُولِ
- रसूल पर
- illā
- إِلَّا
- मगर
- l-balāghu
- ٱلْبَلَٰغُ
- पहुँचा देना
- l-mubīnu
- ٱلْمُبِينُ
- खुल्लम-खुल्ला
कहो, 'अल्लाह का आज्ञापालन करो और उसके रसूल का कहा मानो। परन्तु यदि तुम मुँह मोड़ते हो तो उसपर तो बस वही ज़िम्मेदारी है जिसका बोझ उसपर डाला गया है, और तुम उसके ज़िम्मेदार हो जिसका बोझ तुमपर डाला गया है। और यदि तुम आज्ञा का पालन करोगे तो मार्ग पा लोगे। और रसूल पर तो बस साफ़-साफ़ (संदेश) पहुँचा देने ही की ज़िम्मेदारी है ([२४] अन-नूर: 54)Tafseer (तफ़सीर )
وَعَدَ اللّٰهُ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مِنْكُمْ وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ لَيَسْتَخْلِفَنَّهُمْ فِى الْاَرْضِ كَمَا اسْتَخْلَفَ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْۖ وَلَيُمَكِّنَنَّ لَهُمْ دِيْنَهُمُ الَّذِى ارْتَضٰى لَهُمْ وَلَيُبَدِّلَنَّهُمْ مِّنْۢ بَعْدِ خَوْفِهِمْ اَمْنًاۗ يَعْبُدُوْنَنِيْ لَا يُشْرِكُوْنَ بِيْ شَيْـًٔاۗ وَمَنْ كَفَرَ بَعْدَ ذٰلِكَ فَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْفٰسِقُوْنَ ٥٥
- waʿada
- وَعَدَ
- वादा किया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन लोगों से जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- minkum
- مِنكُمْ
- तुम में से
- waʿamilū
- وَعَمِلُوا۟
- और उन्होंने अमल किए
- l-ṣāliḥāti
- ٱلصَّٰلِحَٰتِ
- नेक
- layastakhlifannahum
- لَيَسْتَخْلِفَنَّهُمْ
- अलबत्ता वो ज़रूर जानशीन बनाएगा उन्हें
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- kamā
- كَمَا
- जैसा कि
- is'takhlafa
- ٱسْتَخْلَفَ
- उसने जानशीन बनाया था
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन्हें जो
- min
- مِن
- उनसे पहले थे
- qablihim
- قَبْلِهِمْ
- उनसे पहले थे
- walayumakkinanna
- وَلَيُمَكِّنَنَّ
- और वो ज़रूर जमा देगा
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- dīnahumu
- دِينَهُمُ
- दीन उनका
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो जो
- ir'taḍā
- ٱرْتَضَىٰ
- उसने पसंद किया है
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- walayubaddilannahum
- وَلَيُبَدِّلَنَّهُم
- और अलबत्ता वो ज़रूर बदल कर देगा उन्हें
- min
- مِّنۢ
- बाद
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद
- khawfihim
- خَوْفِهِمْ
- उनके ख़ौफ़ के
- amnan
- أَمْنًاۚ
- अमन
- yaʿbudūnanī
- يَعْبُدُونَنِى
- वो इबादत करेंगे मेरी
- lā
- لَا
- ना वो शरीक करेंगे
- yush'rikūna
- يُشْرِكُونَ
- ना वो शरीक करेंगे
- bī
- بِى
- मेरे साथ
- shayan
- شَيْـًٔاۚ
- किसी चीज़ को
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- kafara
- كَفَرَ
- कुफ़्र करे
- baʿda
- بَعْدَ
- बाद
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसके
- fa-ulāika
- فَأُو۟لَٰٓئِكَ
- तो यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-fāsiqūna
- ٱلْفَٰسِقُونَ
- जो फ़ासिक़ हैं
अल्लाह ने उन लोगों से जो तुममें से ईमान लाए और उन्होने अच्छे कर्म किए, वादा किया है कि वह उन्हें धरती में अवश्य सत्ताधिकार प्रदान करेगा, जैसे उसने उनसे पहले के लोगों को सत्ताधिकार प्रदान किया था। औऱ उनके लिए अवश्य उनके उस धर्म को जमाव प्रदान करेगा जिसे उसने उनके लिए पसन्द किया है। और निश्चय ही उनके वर्तमान भय के पश्चात उसे उनके लिए शान्ति और निश्चिन्तता में बदल देगा। वे मेरी बन्दगी करते है, मेरे साथ किसी चीज़ को साझी नहीं बनाते। और जो कोई इसके पश्चात इनकार करे, तो ऐसे ही लोग अवज्ञाकारी है ([२४] अन-नूर: 55)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَقِيْمُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتُوا الزَّكٰوةَ وَاَطِيْعُوا الرَّسُوْلَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ ٥٦
- wa-aqīmū
- وَأَقِيمُوا۟
- और क़ायम करो
- l-ṣalata
- ٱلصَّلَوٰةَ
- नमाज़
- waātū
- وَءَاتُوا۟
- और अदा करो
- l-zakata
- ٱلزَّكَوٰةَ
- ज़कात
- wa-aṭīʿū
- وَأَطِيعُوا۟
- और इताअत करो
- l-rasūla
- ٱلرَّسُولَ
- रसूल की
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tur'ḥamūna
- تُرْحَمُونَ
- तुम रहम किए जाओ
नमाज़ का आयोजन करो और ज़कात दो और रसूल की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर दया की जाए ([२४] अन-नूर: 56)Tafseer (तफ़सीर )
لَا تَحْسَبَنَّ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا مُعْجِزِيْنَ فِى الْاَرْضِۚ وَمَأْوٰىهُمُ النَّارُۗ وَلَبِئْسَ الْمَصِيْرُ ࣖ ٥٧
- lā
- لَا
- हरगिज़ ना समझिये आप
- taḥsabanna
- تَحْسَبَنَّ
- हरगिज़ ना समझिये आप
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनको जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- muʿ'jizīna
- مُعْجِزِينَ
- कि वो आजिज़ करने वाले हैं
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِۚ
- ज़मीन में
- wamawāhumu
- وَمَأْوَىٰهُمُ
- और ठिकाना उनका
- l-nāru
- ٱلنَّارُۖ
- आग है
- walabi'sa
- وَلَبِئْسَ
- और यक़ीनन कितनी बुरी है
- l-maṣīru
- ٱلْمَصِيرُ
- लौटने की जगह
यह कदापि न समझो कि इनकार की नीति अपनानेवाले धरती में क़ाबू से बाहर निकल जानेवाले है। उनका ठिकाना आग है, और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है ([२४] अन-नूर: 57)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لِيَسْتَأْذِنْكُمُ الَّذِيْنَ مَلَكَتْ اَيْمَانُكُمْ وَالَّذِيْنَ لَمْ يَبْلُغُوا الْحُلُمَ مِنْكُمْ ثَلٰثَ مَرّٰتٍۗ مِنْ قَبْلِ صَلٰوةِ الْفَجْرِ وَحِيْنَ تَضَعُوْنَ ثِيَابَكُمْ مِّنَ الظَّهِيْرَةِ وَمِنْۢ بَعْدِ صَلٰوةِ الْعِشَاۤءِۗ ثَلٰثُ عَوْرٰتٍ لَّكُمْۗ لَيْسَ عَلَيْكُمْ وَلَا عَلَيْهِمْ جُنَاحٌۢ بَعْدَهُنَّۗ طَوَّافُوْنَ عَلَيْكُمْ بَعْضُكُمْ عَلٰى بَعْضٍۗ كَذٰلِكَ يُبَيِّنُ اللّٰهُ لَكُمُ الْاٰيٰتِۗ وَاللّٰهُ عَلِيْمٌ حَكِيْمٌ ٥٨
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- liyastadhinkumu
- لِيَسْتَـْٔذِنكُمُ
- चाहिए कि इजाज़त तलब करें तुम से
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जिनके
- malakat
- مَلَكَتْ
- मालिक हुए
- aymānukum
- أَيْمَٰنُكُمْ
- दाऐं हाथ तुम्हारे
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- lam
- لَمْ
- नहीं
- yablughū
- يَبْلُغُوا۟
- वो पहुँचे
- l-ḥuluma
- ٱلْحُلُمَ
- बुलूग़त को
- minkum
- مِنكُمْ
- तुम में से
- thalātha
- ثَلَٰثَ
- तीन
- marrātin
- مَرَّٰتٍۚ
- बार
- min
- مِّن
- पहले
- qabli
- قَبْلِ
- पहले
- ṣalati
- صَلَوٰةِ
- नमाज़े
- l-fajri
- ٱلْفَجْرِ
- फ़ज्र से
- waḥīna
- وَحِينَ
- और जिस वक़्त
- taḍaʿūna
- تَضَعُونَ
- तुम उतार रखते हो
- thiyābakum
- ثِيَابَكُم
- कपड़े अपने
- mina
- مِّنَ
- दोपहर के वक़्त
- l-ẓahīrati
- ٱلظَّهِيرَةِ
- दोपहर के वक़्त
- wamin
- وَمِنۢ
- और बाद
- baʿdi
- بَعْدِ
- और बाद
- ṣalati
- صَلَوٰةِ
- नमाज़े
- l-ʿishāi
- ٱلْعِشَآءِۚ
- इशा के
- thalāthu
- ثَلَٰثُ
- तीन
- ʿawrātin
- عَوْرَٰتٍ
- परदे के (वक़्त हैं)
- lakum
- لَّكُمْۚ
- तुम्हारे लिए
- laysa
- لَيْسَ
- नहीं
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- walā
- وَلَا
- और ना
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- junāḥun
- جُنَاحٌۢ
- कोई गुनाह
- baʿdahunna
- بَعْدَهُنَّۚ
- बाद इन( औक़ात) के
- ṭawwāfūna
- طَوَّٰفُونَ
- बकसरत आने जाने वाले हैं
- ʿalaykum
- عَلَيْكُم
- तुम पर
- baʿḍukum
- بَعْضُكُمْ
- बाज़ तुम्हारे
- ʿalā
- عَلَىٰ
- बाज़ पर
- baʿḍin
- بَعْضٍۚ
- बाज़ पर
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- yubayyinu
- يُبَيِّنُ
- वाज़ेह करता है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम्हारे लिए
- l-āyāti
- ٱلْءَايَٰتِۗ
- आयात
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब इल्म वाला है
- ḥakīmun
- حَكِيمٌ
- ख़ूब हिकमत वाला है
ऐ ईमान लानेवालो! जो तुम्हारी मिल्कियत में हो और तुममें जो अभी युवावस्था को नहीं पहुँचे है, उनको चाहिए कि तीन समयों में तुमसे अनुमति लेकर तुम्हारे पास आएँ: प्रभात काल की नमाज़ से पहले और जब दोपहर को तुम (आराम के लिए) अपने कपड़े उतार रखते हो और रात्रि की नमाज़ के पश्चात - ये तीन समय तुम्हारे लिए परदे के हैं। इनके पश्चात न तो तुमपर कोई गुनाह है और न उनपर। वे तुम्हारे पास अधिक चक्कर लगाते है। तुम्हारे ही कुछ अंश परस्पर कुछ अंश के पास आकर मिलते है। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्टप करता है। अल्लाह भली-भाँति जाननेवाला है, तत्वदर्शी है ([२४] अन-नूर: 58)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا بَلَغَ الْاَطْفَالُ مِنْكُمُ الْحُلُمَ فَلْيَسْتَأْذِنُوْا كَمَا اسْتَأْذَنَ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْۗ كَذٰلِكَ يُبَيِّنُ اللّٰهُ لَكُمْ اٰيٰتِهٖۗ وَاللّٰهُ عَلِيْمٌ حَكِيْمٌ ٥٩
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- balagha
- بَلَغَ
- पहुँच जाऐं
- l-aṭfālu
- ٱلْأَطْفَٰلُ
- बच्चे
- minkumu
- مِنكُمُ
- तुम में से
- l-ḥuluma
- ٱلْحُلُمَ
- बलूग़त को
- falyastadhinū
- فَلْيَسْتَـْٔذِنُوا۟
- पस चाहिए कि वो इजाज़त लिया करें
- kamā
- كَمَا
- जैसा कि
- is'tadhana
- ٱسْتَـْٔذَنَ
- इजाज़त लेते थे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- min
- مِن
- उनसे पहले थे
- qablihim
- قَبْلِهِمْۚ
- उनसे पहले थे
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- yubayyinu
- يُبَيِّنُ
- वाज़ेह करता है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- āyātihi
- ءَايَٰتِهِۦۗ
- अपनी आयात को
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब इल्म वाला है
- ḥakīmun
- حَكِيمٌ
- ख़ूब हिकमत वाला है
और जब तुममें से बच्चे युवावस्था को पहुँच जाएँ तो उन्हें चाहिए कि अनुमति ले लिया करें जैसे उनसे पहले लोग अनुमति लेते रहे है। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्ट करता है। अल्लाह भली-भाँति जाननेवाला, तत्वदर्शी है ([२४] अन-नूर: 59)Tafseer (तफ़सीर )
وَالْقَوَاعِدُ مِنَ النِّسَاۤءِ الّٰتِيْ لَا يَرْجُوْنَ نِكَاحًا فَلَيْسَ عَلَيْهِنَّ جُنَاحٌ اَنْ يَّضَعْنَ ثِيَابَهُنَّ غَيْرَ مُتَبَرِّجٰتٍۢ بِزِيْنَةٍۗ وَاَنْ يَّسْتَعْفِفْنَ خَيْرٌ لَّهُنَّۗ وَاللّٰهُ سَمِيْعٌ عَلِيْمٌ ٦٠
- wal-qawāʿidu
- وَٱلْقَوَٰعِدُ
- और बैठ रहने वालियाँ
- mina
- مِنَ
- औरतों में से
- l-nisāi
- ٱلنِّسَآءِ
- औरतों में से
- allātī
- ٱلَّٰتِى
- वो जो
- lā
- لَا
- नहीं वो उम्मीद रखतीं
- yarjūna
- يَرْجُونَ
- नहीं वो उम्मीद रखतीं
- nikāḥan
- نِكَاحًا
- निकाह की
- falaysa
- فَلَيْسَ
- तो नहीं है
- ʿalayhinna
- عَلَيْهِنَّ
- उन पर
- junāḥun
- جُنَاحٌ
- कोई गुनाह
- an
- أَن
- कि
- yaḍaʿna
- يَضَعْنَ
- वो उतार रखें
- thiyābahunna
- ثِيَابَهُنَّ
- कपड़े( हिजाब) अपने
- ghayra
- غَيْرَ
- ना
- mutabarrijātin
- مُتَبَرِّجَٰتٍۭ
- ज़ाहिर करने वालियाँ
- bizīnatin
- بِزِينَةٍۖ
- ज़ीनत को
- wa-an
- وَأَن
- और ये कि
- yastaʿfif'na
- يَسْتَعْفِفْنَ
- वो एहतियात बरतें
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर है
- lahunna
- لَّهُنَّۗ
- उनके लिए
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- samīʿun
- سَمِيعٌ
- ख़ूब सुनने वाला है
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
जो स्त्रियाँ युवावस्था से गुज़रकर बैठ चुकी हों, जिन्हें विवाह की आशा न रह गई हो, उनपर कोई दोष नहीं कि वे अपने कपड़े (चादरें) उतारकर रख दें जबकि वे शृंगार का प्रदर्शन करनेवाली न हों। फिर भी वे इससे बचें तो उनके लिए अधिक अच्छा है। अल्लाह भली-भाँति सुनता, जानता है ([२४] अन-नूर: 60)Tafseer (तफ़सीर )