اَلَمْ تَرَ اَنَّ اللّٰهَ يُسَبِّحُ لَهٗ مَنْ فِى السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَالطَّيْرُ صٰۤفّٰتٍۗ كُلٌّ قَدْ عَلِمَ صَلَاتَهٗ وَتَسْبِيْحَهٗۗ وَاللّٰهُ عَلِيْمٌۢ بِمَا يَفْعَلُوْنَ ٤١
- alam
- أَلَمْ
- क्या नहीं
- tara
- تَرَ
- आपने देखा
- anna
- أَنَّ
- कि बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yusabbiḥu
- يُسَبِّحُ
- तस्बीह करता है
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- man
- مَن
- जो कोई
- fī
- فِى
- आसमानों में
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों में
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِ
- और ज़मीन में है
- wal-ṭayru
- وَٱلطَّيْرُ
- और परिन्दे (भी)
- ṣāffātin
- صَٰٓفَّٰتٍۖ
- पर फैलाए
- kullun
- كُلٌّ
- हर एक ने
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- ʿalima
- عَلِمَ
- जान ली है
- ṣalātahu
- صَلَاتَهُۥ
- नमाज़ अपनी
- watasbīḥahu
- وَتَسْبِيحَهُۥۗ
- और तस्बीह अपनी
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ʿalīmun
- عَلِيمٌۢ
- ख़ूब जानने वाला है
- bimā
- بِمَا
- उसे जो
- yafʿalūna
- يَفْعَلُونَ
- वो कर रहे हैं
क्या तुमने नहीं देखा कि जो कोई भी आकाशों और धरती में है, अल्लाह की तसबीह (गुणगान) कर रहा है और पंख पसारे हुए पक्षी भी? हर एक अपनी नमाज़ और तसबीह से परिचित है। अल्लाह भली-भाँति जाना है जो कुछ वे करते है ([२४] अन-नूर: 41)Tafseer (तफ़सीर )
وَلِلّٰهِ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۚ وَاِلَى اللّٰهِ الْمَصِيْرُ ٤٢
- walillahi
- وَلِلَّهِ
- और अल्लाह ही के लिए है
- mul'ku
- مُلْكُ
- बादशाहत
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِۖ
- और ज़मीन की
- wa-ilā
- وَإِلَى
- और अल्लाह ही की तरफ़
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- और अल्लाह ही की तरफ़
- l-maṣīru
- ٱلْمَصِيرُ
- लौटना है
अल्लाह ही के लिए है आकाशों और धरती का राज्य। और अल्लाह ही की ओर लौटकर जाना है ([२४] अन-नूर: 42)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَمْ تَرَ اَنَّ اللّٰهَ يُزْجِيْ سَحَابًا ثُمَّ يُؤَلِّفُ بَيْنَهٗ ثُمَّ يَجْعَلُهٗ رُكَامًا فَتَرَى الْوَدْقَ يَخْرُجُ مِنْ خِلٰلِهٖۚ وَيُنَزِّلُ مِنَ السَّمَاۤءِ مِنْ جِبَالٍ فِيْهَا مِنْۢ بَرَدٍ فَيُصِيْبُ بِهٖ مَنْ يَّشَاۤءُ وَيَصْرِفُهٗ عَنْ مَّنْ يَّشَاۤءُۗ يَكَادُ سَنَا بَرْقِهٖ يَذْهَبُ بِالْاَبْصَارِ ۗ ٤٣
- alam
- أَلَمْ
- क्या नहीं
- tara
- تَرَ
- आपने देखा
- anna
- أَنَّ
- कि बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yuz'jī
- يُزْجِى
- वो चलाता है
- saḥāban
- سَحَابًا
- बादल को
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- yu-allifu
- يُؤَلِّفُ
- वो मिला देता है (उन्हें)
- baynahu
- بَيْنَهُۥ
- आपस में
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- yajʿaluhu
- يَجْعَلُهُۥ
- वो कर देता है उसे
- rukāman
- رُكَامًا
- तह ब तह
- fatarā
- فَتَرَى
- तो आप देखते हैं
- l-wadqa
- ٱلْوَدْقَ
- बारिश
- yakhruju
- يَخْرُجُ
- निकलती है
- min
- مِنْ
- उसके दर्मियान से
- khilālihi
- خِلَٰلِهِۦ
- उसके दर्मियान से
- wayunazzilu
- وَيُنَزِّلُ
- और वो उतारता है
- mina
- مِنَ
- आसमान से
- l-samāi
- ٱلسَّمَآءِ
- आसमान से
- min
- مِن
- पहाड़ों से
- jibālin
- جِبَالٍ
- पहाड़ों से
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- min
- مِنۢ
- कुछ ओले
- baradin
- بَرَدٍ
- कुछ ओले
- fayuṣību
- فَيُصِيبُ
- फिर वो पहुँचाता है
- bihi
- بِهِۦ
- उसे
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- wayaṣrifuhu
- وَيَصْرِفُهُۥ
- और वो फेर देता है उसे
- ʿan
- عَن
- जिस से
- man
- مَّن
- जिस से
- yashāu
- يَشَآءُۖ
- वो चाहता है
- yakādu
- يَكَادُ
- क़रीब है कि
- sanā
- سَنَا
- चमक
- barqihi
- بَرْقِهِۦ
- उसकी बिजली की
- yadhhabu
- يَذْهَبُ
- वो ले जाए
- bil-abṣāri
- بِٱلْأَبْصَٰرِ
- निगाहों को
क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह बादल को चलाता है। फिर उनको परस्पर मिलाता है। फिर उसे तह पर तह कर देता है। फिर तुम देखते हो कि उसके बीच से मेह बरसता है? और आकाश से- उसमें जो पहाड़ है (बादल जो पहाड़ जैसे प्रतीत होते है उनसे) - ओले बरसाता है। फिर जिस पर चाहता है, उसे हटा देता है। ऐसा प्रतीत होता है कि बिजली की चमक निगाहों को उचक ले जाएगी ([२४] अन-नूर: 43)Tafseer (तफ़सीर )
يُقَلِّبُ اللّٰهُ الَّيْلَ وَالنَّهَارَۗ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَعِبْرَةً لِّاُولِى الْاَبْصَارِ ٤٤
- yuqallibu
- يُقَلِّبُ
- उलट-पलट करता है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- al-layla
- ٱلَّيْلَ
- रात
- wal-nahāra
- وَٱلنَّهَارَۚ
- और दिन को
- inna
- إِنَّ
- यक़ीनन
- fī
- فِى
- इसमें
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसमें
- laʿib'ratan
- لَعِبْرَةً
- अलबत्ता इब्रत है
- li-ulī
- لِّأُو۟لِى
- अहले बसीरत के लिए
- l-abṣāri
- ٱلْأَبْصَٰرِ
- अहले बसीरत के लिए
अल्लाह ही रात और दिन का उलट-फेर करता है। निश्चय ही आँखें रखनेवालों के लिए इसमें एक शिक्षा है ([२४] अन-नूर: 44)Tafseer (तफ़सीर )
وَاللّٰهُ خَلَقَ كُلَّ دَاۤبَّةٍ مِّنْ مَّاۤءٍۚ فَمِنْهُمْ مَّنْ يَّمْشِيْ عَلٰى بَطْنِهٖۚ وَمِنْهُمْ مَّنْ يَّمْشِيْ عَلٰى رِجْلَيْنِۚ وَمِنْهُمْ مَّنْ يَّمْشِيْ عَلٰٓى اَرْبَعٍۗ يَخْلُقُ اللّٰهُ مَا يَشَاۤءُۗ اِنَّ اللّٰهَ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرٌ ٤٥
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह ने
- khalaqa
- خَلَقَ
- पैदा किया
- kulla
- كُلَّ
- हर
- dābbatin
- دَآبَّةٍ
- जानदार को
- min
- مِّن
- पानी से
- māin
- مَّآءٍۖ
- पानी से
- famin'hum
- فَمِنْهُم
- तो उनमें से कोई है
- man
- مَّن
- जो
- yamshī
- يَمْشِى
- चलता है
- ʿalā
- عَلَىٰ
- अपने पेट पर
- baṭnihi
- بَطْنِهِۦ
- अपने पेट पर
- wamin'hum
- وَمِنْهُم
- और उनमें से कोई है
- man
- مَّن
- जो
- yamshī
- يَمْشِى
- चलता है
- ʿalā
- عَلَىٰ
- दो पाँव पर
- rij'layni
- رِجْلَيْنِ
- दो पाँव पर
- wamin'hum
- وَمِنْهُم
- और उनमें से कोई है
- man
- مَّن
- जो
- yamshī
- يَمْشِى
- चलता है
- ʿalā
- عَلَىٰٓ
- चार (पाँव) पर
- arbaʿin
- أَرْبَعٍۚ
- चार (पाँव) पर
- yakhluqu
- يَخْلُقُ
- पैदा करता है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- mā
- مَا
- जो
- yashāu
- يَشَآءُۚ
- वो चाहता है
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर
- kulli
- كُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ के
- qadīrun
- قَدِيرٌ
- ख़ूब क़ुदरत रखने वाला है
अल्लाह ने हर जीवधारी को पानी से पैदा किया, तो उनमें से कोई अपने पेट के बल चलता है और कोई उनमें दो टाँगों पर चलता है और कोई चार (टाँगों) पर चलता है। अल्लाह जो चाहता है, पैदा करता है। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है ([२४] अन-नूर: 45)Tafseer (तफ़सीर )
لَقَدْ اَنْزَلْنَآ اٰيٰتٍ مُّبَيِّنٰتٍۗ وَاللّٰهُ يَهْدِيْ مَنْ يَّشَاۤءُ اِلٰى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيْمٍ ٤٦
- laqad
- لَّقَدْ
- अलबत्ता तहक़ीक़
- anzalnā
- أَنزَلْنَآ
- नाज़िल कीं हमने
- āyātin
- ءَايَٰتٍ
- आयात
- mubayyinātin
- مُّبَيِّنَٰتٍۚ
- वाज़ेह
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yahdī
- يَهْدِى
- वो हिदायत देता है
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ रास्ते
- ṣirāṭin
- صِرَٰطٍ
- तरफ़ रास्ते
- mus'taqīmin
- مُّسْتَقِيمٍ
- सीधे के
हमने सत्य को प्रकट कर देनेवाली आयतें उतार दी है। आगे अल्लाह जिसे चाहता है सीधे मार्ग की ओर लगा देता है ([२४] अन-नूर: 46)Tafseer (तफ़सीर )
وَيَقُوْلُوْنَ اٰمَنَّا بِاللّٰهِ وَبِالرَّسُوْلِ وَاَطَعْنَا ثُمَّ يَتَوَلّٰى فَرِيْقٌ مِّنْهُمْ مِّنْۢ بَعْدِ ذٰلِكَۗ وَمَآ اُولٰۤىِٕكَ بِالْمُؤْمِنِيْنَ ٤٧
- wayaqūlūna
- وَيَقُولُونَ
- और वो कहते हैं
- āmannā
- ءَامَنَّا
- ईमान लाए हम
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- wabil-rasūli
- وَبِٱلرَّسُولِ
- और रसूल पर
- wa-aṭaʿnā
- وَأَطَعْنَا
- और इताअत की हमने
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- yatawallā
- يَتَوَلَّىٰ
- मुँह फेर लेता है
- farīqun
- فَرِيقٌ
- एक गिरोह
- min'hum
- مِّنْهُم
- उनमें से
- min
- مِّنۢ
- बाद
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद
- dhālika
- ذَٰلِكَۚ
- इसके
- wamā
- وَمَآ
- और नहीं
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- ये लोग
- bil-mu'minīna
- بِٱلْمُؤْمِنِينَ
- ईमान लाने वाले
वे मुनाफ़िक लोग कहते है कि 'हम अल्लाह और रसूल पर ईमान लाए और हमने आज्ञापालन स्वीकार किया।' फिर इसके पश्चात उनमें से एक गिरोह मुँह मोड़ जाता है। ऐसे लोग मोमिन नहीं है ([२४] अन-नूर: 47)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا دُعُوْٓا اِلَى اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ اِذَا فَرِيْقٌ مِّنْهُمْ مُّعْرِضُوْنَ ٤٨
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- duʿū
- دُعُوٓا۟
- वो बुलाए जाते हैं
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ अल्लाह के
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- तरफ़ अल्लाह के
- warasūlihi
- وَرَسُولِهِۦ
- और उसके रसूल के
- liyaḥkuma
- لِيَحْكُمَ
- ताकि वो फ़ैसला करे
- baynahum
- بَيْنَهُمْ
- दर्मियान उनके
- idhā
- إِذَا
- तब
- farīqun
- فَرِيقٌ
- एक गिरोह (के लोग)
- min'hum
- مِّنْهُم
- उनमें से
- muʿ'riḍūna
- مُّعْرِضُونَ
- ऐराज़ करने वाले होते हैं
जब उन्हें अल्लाह और उसके रसूल की ओर बुलाया जाता है, ताकि वह उनके बीच फ़ैसला करें तो क्या देखते है कि उनमें से एक गिरोह कतरा जाता है; ([२४] अन-नूर: 48)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِنْ يَّكُنْ لَّهُمُ الْحَقُّ يَأْتُوْٓا اِلَيْهِ مُذْعِنِيْنَ ٤٩
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- yakun
- يَكُن
- हो
- lahumu
- لَّهُمُ
- उनके लिए
- l-ḥaqu
- ٱلْحَقُّ
- हक़
- yatū
- يَأْتُوٓا۟
- वो आते हैं
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ उसके
- mudh'ʿinīna
- مُذْعِنِينَ
- मुतीअ हो कर
किन्तु यदि हक़ उन्हें मिलनेवाला हो तो उसकी ओर बड़े आज्ञाकारी बनकर चले आएँ ([२४] अन-नूर: 49)Tafseer (तफ़सीर )
اَفِيْ قُلُوْبِهِمْ مَّرَضٌ اَمِ ارْتَابُوْٓا اَمْ يَخَافُوْنَ اَنْ يَّحِيْفَ اللّٰهُ عَلَيْهِمْ وَرَسُوْلُهٗ ۗبَلْ اُولٰۤىِٕكَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ ࣖ ٥٠
- afī
- أَفِى
- क्या उनके दिलों में
- qulūbihim
- قُلُوبِهِم
- क्या उनके दिलों में
- maraḍun
- مَّرَضٌ
- कोई बीमारी है
- ami
- أَمِ
- या
- ir'tābū
- ٱرْتَابُوٓا۟
- वो शक में पड़ गए हैं
- am
- أَمْ
- या
- yakhāfūna
- يَخَافُونَ
- वो डरते हैं
- an
- أَن
- कि
- yaḥīfa
- يَحِيفَ
- ज़ुल्म करेगा
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- warasūluhu
- وَرَسُولُهُۥۚ
- और उसका रसूल
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-ẓālimūna
- ٱلظَّٰلِمُونَ
- जो ज़ालिम हैं
क्या उनके दिलों में रोग है या वे सन्देह में पड़े हुए है या उनको यह डर है कि अल्लाह औऱ उसका रसूल उनके साथ अन्याय करेंगे? नहीं, बल्कि बात यह है कि वही लोग अत्याचारी हैं ([२४] अन-नूर: 50)Tafseer (तफ़सीर )