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सूरा अन-नूर - Page: 4

An-Nur

(प्रकाश)

३१

وَقُلْ لِّلْمُؤْمِنٰتِ يَغْضُضْنَ مِنْ اَبْصَارِهِنَّ وَيَحْفَظْنَ فُرُوْجَهُنَّ وَلَا يُبْدِيْنَ زِيْنَتَهُنَّ اِلَّا مَا ظَهَرَ مِنْهَا وَلْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلٰى جُيُوْبِهِنَّۖ وَلَا يُبْدِيْنَ زِيْنَتَهُنَّ اِلَّا لِبُعُوْلَتِهِنَّ اَوْ اٰبَاۤىِٕهِنَّ اَوْ اٰبَاۤءِ بُعُوْلَتِهِنَّ اَوْ اَبْنَاۤىِٕهِنَّ اَوْ اَبْنَاۤءِ بُعُوْلَتِهِنَّ اَوْ اِخْوَانِهِنَّ اَوْ بَنِيْٓ اِخْوَانِهِنَّ اَوْ بَنِيْٓ اَخَوٰتِهِنَّ اَوْ نِسَاۤىِٕهِنَّ اَوْ مَا مَلَكَتْ اَيْمَانُهُنَّ اَوِ التَّابِعِيْنَ غَيْرِ اُولِى الْاِرْبَةِ مِنَ الرِّجَالِ اَوِ الطِّفْلِ الَّذِيْنَ لَمْ يَظْهَرُوْا عَلٰى عَوْرٰتِ النِّسَاۤءِ ۖوَلَا يَضْرِبْنَ بِاَرْجُلِهِنَّ لِيُعْلَمَ مَا يُخْفِيْنَ مِنْ زِيْنَتِهِنَّۗ وَتُوْبُوْٓا اِلَى اللّٰهِ جَمِيْعًا اَيُّهَ الْمُؤْمِنُوْنَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ ٣١

waqul
وَقُل
और कह दीजिए
lil'mu'mināti
لِّلْمُؤْمِنَٰتِ
मोमिन औरतों से
yaghḍuḍ'na
يَغْضُضْنَ
वो पस्त रखें
min
مِنْ
अपनी निगाहों में से
abṣārihinna
أَبْصَٰرِهِنَّ
अपनी निगाहों में से
wayaḥfaẓna
وَيَحْفَظْنَ
और वो हिफ़ाज़त करें
furūjahunna
فُرُوجَهُنَّ
अपनी शर्मगाहों की
walā
وَلَا
और ना
yub'dīna
يُبْدِينَ
वो ज़ाहिर करें
zīnatahunna
زِينَتَهُنَّ
ज़ीनत अपनी
illā
إِلَّا
मगर
مَا
जो
ẓahara
ظَهَرَ
ज़हिर हो जाए
min'hā
مِنْهَاۖ
उस में से
walyaḍrib'na
وَلْيَضْرِبْنَ
और वो ज़रूर डालें
bikhumurihinna
بِخُمُرِهِنَّ
ओढ़नियाँ अपनी
ʿalā
عَلَىٰ
अपने गिरेबानों पर
juyūbihinna
جُيُوبِهِنَّۖ
अपने गिरेबानों पर
walā
وَلَا
और ना
yub'dīna
يُبْدِينَ
वो ज़ाहिर करें
zīnatahunna
زِينَتَهُنَّ
ज़ीनत अपनी
illā
إِلَّا
मगर
libuʿūlatihinna
لِبُعُولَتِهِنَّ
वास्ते अपने शौहरों को
aw
أَوْ
या
ābāihinna
ءَابَآئِهِنَّ
अपने बापों के
aw
أَوْ
या
ābāi
ءَابَآءِ
अपने शौहरों के बापों के
buʿūlatihinna
بُعُولَتِهِنَّ
अपने शौहरों के बापों के
aw
أَوْ
या
abnāihinna
أَبْنَآئِهِنَّ
अपने बेटों के
aw
أَوْ
या
abnāi
أَبْنَآءِ
अपने शौहरों के बेटों के
buʿūlatihinna
بُعُولَتِهِنَّ
अपने शौहरों के बेटों के
aw
أَوْ
या
ikh'wānihinna
إِخْوَٰنِهِنَّ
अपने भाईयों के
aw
أَوْ
या
banī
بَنِىٓ
अपने भाईयों के बेटों के
ikh'wānihinna
إِخْوَٰنِهِنَّ
अपने भाईयों के बेटों के
aw
أَوْ
या
banī
بَنِىٓ
अपनी बहनों के बेटों के
akhawātihinna
أَخَوَٰتِهِنَّ
अपनी बहनों के बेटों के
aw
أَوْ
या
nisāihinna
نِسَآئِهِنَّ
अपनी औरतों के
aw
أَوْ
या
مَا
जिनके
malakat
مَلَكَتْ
मालिक हुए
aymānuhunna
أَيْمَٰنُهُنَّ
उनके दाऐं हाथ
awi
أَوِ
या
l-tābiʿīna
ٱلتَّٰبِعِينَ
ज़ेरदस्त
ghayri
غَيْرِ
ना
ulī
أُو۟لِى
रखने वाले
l-ir'bati
ٱلْإِرْبَةِ
हाजत/ ख़्वाहिश
mina
مِنَ
मर्दों में से
l-rijāli
ٱلرِّجَالِ
मर्दों में से
awi
أَوِ
या
l-ṭif'li
ٱلطِّفْلِ
लड़के
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जो
lam
لَمْ
नहीं
yaẓharū
يَظْهَرُوا۟
वो वाक़िफ़ हुए
ʿalā
عَلَىٰ
छुपी बातों पर
ʿawrāti
عَوْرَٰتِ
छुपी बातों पर
l-nisāi
ٱلنِّسَآءِۖ
औरतों की
walā
وَلَا
और ना
yaḍrib'na
يَضْرِبْنَ
वो मारें
bi-arjulihinna
بِأَرْجُلِهِنَّ
पाँव अपने
liyuʿ'lama
لِيُعْلَمَ
कि जान लिया जाए
مَا
जो
yukh'fīna
يُخْفِينَ
वो छुपाती हैं
min
مِن
अपनी ज़ीनत में से
zīnatihinna
زِينَتِهِنَّۚ
अपनी ज़ीनत में से
watūbū
وَتُوبُوٓا۟
और तौबा करो
ilā
إِلَى
तरफ़ अल्लाह के
l-lahi
ٱللَّهِ
तरफ़ अल्लाह के
jamīʿan
جَمِيعًا
सब के सब
ayyuha
أَيُّهَ
l-mu'minūna
ٱلْمُؤْمِنُونَ
मोमिनो
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tuf'liḥūna
تُفْلِحُونَ
तुम फ़लाह पाओ
और ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वे भी अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। और अपने शृंगार प्रकट न करें, सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है। और अपने सीनों (वक्षस्थल) पर अपने दुपट्टे डाल रहें और अपना शृंगार किसी पर ज़ाहिर न करें सिवाय अपने पतियों के या अपने बापों के या अपने पतियों के बापों के या अपने बेटों के या अपने पतियों के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भांजों के या मेल-जोल की स्त्रियों के या जो उनकी अपनी मिल्कियत में हो उनके, या उन अधीनस्थ पुरुषों के जो उस अवस्था को पार कर चुके हों जिससें स्त्री की ज़रूरत होती है, या उन बच्चों के जो स्त्रियों के परदे की बातों से परिचित न हों। और स्त्रियाँ अपने पाँव धरती पर मारकर न चलें कि अपना जो शृंगार छिपा रखा हो, वह मालूम हो जाए। ऐ ईमानवालो! तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो ([२४] अन-नूर: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

وَاَنْكِحُوا الْاَيَامٰى مِنْكُمْ وَالصّٰلِحِيْنَ مِنْ عِبَادِكُمْ وَاِمَاۤىِٕكُمْۗ اِنْ يَّكُوْنُوْا فُقَرَاۤءَ يُغْنِهِمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖۗ وَاللّٰهُ وَاسِعٌ عَلِيْمٌ ٣٢

wa-ankiḥū
وَأَنكِحُوا۟
और निकाह कर दो
l-ayāmā
ٱلْأَيَٰمَىٰ
बेनिकाहों का
minkum
مِنكُمْ
तुम में से
wal-ṣāliḥīna
وَٱلصَّٰلِحِينَ
और जो नेक हों
min
مِنْ
तुम्हारे ग़ुलामों में से
ʿibādikum
عِبَادِكُمْ
तुम्हारे ग़ुलामों में से
wa-imāikum
وَإِمَآئِكُمْۚ
और तुम्हारी लौंडियों में से
in
إِن
अगर
yakūnū
يَكُونُوا۟
होंगे वो
fuqarāa
فُقَرَآءَ
मोहताज
yugh'nihimu
يُغْنِهِمُ
ग़नी कर देगा उन्हें
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
min
مِن
अपने फ़ज़ल से
faḍlihi
فَضْلِهِۦۗ
अपने फ़ज़ल से
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
wāsiʿun
وَٰسِعٌ
ख़ूब वुसअत वाला है
ʿalīmun
عَلِيمٌ
ख़ूब इल्म वाला है
तुममें जो बेजोड़े के हों और तुम्हारे ग़ुलामों और तुम्हारी लौंडियों मे जो नेक और योग्य हों, उनका विवाह कर दो। यदि वे ग़रीब होंगे तो अल्लाह अपने उदार अनुग्रह से उन्हें समृद्ध कर देगा। अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है ([२४] अन-नूर: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

وَلْيَسْتَعْفِفِ الَّذِيْنَ لَا يَجِدُوْنَ نِكَاحًا حَتّٰى يُغْنِيَهُمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖ ۗوَالَّذِيْنَ يَبْتَغُوْنَ الْكِتٰبَ مِمَّا مَلَكَتْ اَيْمَانُكُمْ فَكَاتِبُوْهُمْ اِنْ عَلِمْتُمْ فِيْهِمْ خَيْرًا وَّاٰتُوْهُمْ مِّنْ مَّالِ اللّٰهِ الَّذِيْٓ اٰتٰىكُمْ ۗوَلَا تُكْرِهُوْا فَتَيٰتِكُمْ عَلَى الْبِغَاۤءِ اِنْ اَرَدْنَ تَحَصُّنًا لِّتَبْتَغُوْا عَرَضَ الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا ۗوَمَنْ يُّكْرِهْهُّنَّ فَاِنَّ اللّٰهَ مِنْۢ بَعْدِ اِكْرَاهِهِنَّ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ٣٣

walyastaʿfifi
وَلْيَسْتَعْفِفِ
और ज़रूर पाकदामनी इख़्तियार करें
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जो
لَا
नहीं वो पाते(वुसअत)
yajidūna
يَجِدُونَ
नहीं वो पाते(वुसअत)
nikāḥan
نِكَاحًا
निकाह की
ḥattā
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
yugh'niyahumu
يُغْنِيَهُمُ
ग़नी कर दे उन्हें
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
min
مِن
अपने फ़ज़ल से
faḍlihi
فَضْلِهِۦۗ
अपने फ़ज़ल से
wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जो
yabtaghūna
يَبْتَغُونَ
चाहते हों
l-kitāba
ٱلْكِتَٰبَ
मुकातबत/आज़ादी की तहरीर
mimmā
مِمَّا
उनमें से जिनके
malakat
مَلَكَتْ
मालिक हैं
aymānukum
أَيْمَٰنُكُمْ
दाऐं हाथ तुम्हारे
fakātibūhum
فَكَاتِبُوهُمْ
तो मुकातबत कर लो उनसे
in
إِنْ
अगर
ʿalim'tum
عَلِمْتُمْ
जानो तुम
fīhim
فِيهِمْ
उनमें
khayran
خَيْرًاۖ
कोई भलाई
waātūhum
وَءَاتُوهُم
और दो उन्हें
min
مِّن
माल से
māli
مَّالِ
माल से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
alladhī
ٱلَّذِىٓ
वो जो
ātākum
ءَاتَىٰكُمْۚ
उसने दिया है तुम्हें
walā
وَلَا
और ना
tuk'rihū
تُكْرِهُوا۟
तुम मजबूर करो
fatayātikum
فَتَيَٰتِكُمْ
अपना बाँदियों को
ʿalā
عَلَى
बदकारी पर
l-bighāi
ٱلْبِغَآءِ
बदकारी पर
in
إِنْ
अगर
aradna
أَرَدْنَ
वो चाहें
taḥaṣṣunan
تَحَصُّنًا
पाकदामनी
litabtaghū
لِّتَبْتَغُوا۟
ताकि तुम तलाश करो
ʿaraḍa
عَرَضَ
सामान
l-ḥayati
ٱلْحَيَوٰةِ
ज़िन्दगी का
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَاۚ
दुनिया की
waman
وَمَن
और जो कोई
yuk'rihhunna
يُكْرِههُّنَّ
मजबूर करेगा उन्हें
fa-inna
فَإِنَّ
तो बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
min
مِنۢ
बाद
baʿdi
بَعْدِ
बाद
ik'rāhihinna
إِكْرَٰهِهِنَّ
उनको मजबूर करने के
ghafūrun
غَفُورٌ
बहुत बख़्शने वाला है
raḥīmun
رَّحِيمٌ
निहायत रहम करने वाला है
और जो विवाह का अवसर न पा रहे हो उन्हें चाहिए कि पाकदामनी अपनाए रहें, यहाँ तक कि अल्लाह अपने उदार अनुग्रह से उन्हें समृद्ध कर दे। और जिन लोगों पर तुम्हें स्वामित्व का अधिकार प्राप्त हो उनमें से जो लोग लिखा-पढ़ी के इच्छुक हो उनसे लिखा-पढ़ी कर लो, यदि तुम्हें मालूम हो कि उनमें भलाई है। और उन्हें अल्लाह के माल में से दो, जो उसने तुम्हें प्रदान किया है। और अपनी लौंडियों को सांसारिक जीवन-सामग्री की चाह में व्यविचार के लिए बाध्य न करो, जबकि वे पाकदामन रहना भी चाहती हों। औऱ इसके लिए जो कोई उन्हें बाध्य करेगा, तो निश्चय ही अल्लाह उनके बाध्य किए जाने के पश्चात अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है ([२४] अन-नूर: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

وَلَقَدْ اَنْزَلْنَآ اِلَيْكُمْ اٰيٰتٍ مُّبَيِّنٰتٍ وَّمَثَلًا مِّنَ الَّذِيْنَ خَلَوْا مِنْ قَبْلِكُمْ وَمَوْعِظَةً لِّلْمُتَّقِيْنَ ࣖ ٣٤

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
anzalnā
أَنزَلْنَآ
नाज़िल कीं हमने
ilaykum
إِلَيْكُمْ
तरफ़ तुम्हारे
āyātin
ءَايَٰتٍ
आयात
mubayyinātin
مُّبَيِّنَٰتٍ
वाज़ेह
wamathalan
وَمَثَلًا
और मिसाल
mina
مِّنَ
उन लोगों की जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन लोगों की जो
khalaw
خَلَوْا۟
गुज़र चुके
min
مِن
तुम से पहले
qablikum
قَبْلِكُمْ
तुम से पहले
wamawʿiẓatan
وَمَوْعِظَةً
और नसीहत
lil'muttaqīna
لِّلْمُتَّقِينَ
मुत्तक़ी लोगों के लिए
हमने तुम्हारी ओर खुली हुई आयतें उतार दी है और उन लोगों की मिशालें भी पेश कर दी हैं, जो तुमसे पहले गुज़रे है, और डर रखनेवालों के लिए नसीहत भी ([२४] अन-नूर: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

۞ اَللّٰهُ نُوْرُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِۗ مَثَلُ نُوْرِهٖ كَمِشْكٰوةٍ فِيْهَا مِصْبَاحٌۗ اَلْمِصْبَاحُ فِيْ زُجَاجَةٍۗ اَلزُّجَاجَةُ كَاَنَّهَا كَوْكَبٌ دُرِّيٌّ يُّوْقَدُ مِنْ شَجَرَةٍ مُّبٰرَكَةٍ زَيْتُوْنَةٍ لَّا شَرْقِيَّةٍ وَّلَا غَرْبِيَّةٍۙ يَّكَادُ زَيْتُهَا يُضِيْۤءُ وَلَوْ لَمْ تَمْسَسْهُ نَارٌۗ نُوْرٌ عَلٰى نُوْرٍۗ يَهْدِى اللّٰهُ لِنُوْرِهٖ مَنْ يَّشَاۤءُۗ وَيَضْرِبُ اللّٰهُ الْاَمْثَالَ لِلنَّاسِۗ وَاللّٰهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيْمٌ ۙ ٣٥

al-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
nūru
نُورُ
नूर है
l-samāwāti
ٱلسَّمَٰوَٰتِ
आसमानों
wal-arḍi
وَٱلْأَرْضِۚ
और ज़मीन का
mathalu
مَثَلُ
मिसाल
nūrihi
نُورِهِۦ
उसके नूर की
kamish'katin
كَمِشْكَوٰةٍ
मानिन्द ताक़ के
fīhā
فِيهَا
जिसमें
miṣ'bāḥun
مِصْبَاحٌۖ
एक चिराग़ है
l-miṣ'bāḥu
ٱلْمِصْبَاحُ
वो चिराग़
فِى
शीशे में है
zujājatin
زُجَاجَةٍۖ
शीशे में है
l-zujājatu
ٱلزُّجَاجَةُ
वो शीशा
ka-annahā
كَأَنَّهَا
गोया कि वो
kawkabun
كَوْكَبٌ
तारा है
durriyyun
دُرِّىٌّ
चमकता हुआ
yūqadu
يُوقَدُ
जो रौशन किया जाता है
min
مِن
एक दरख़्त से
shajaratin
شَجَرَةٍ
एक दरख़्त से
mubārakatin
مُّبَٰرَكَةٍ
बाबरकत
zaytūnatin
زَيْتُونَةٍ
ज़ैतून के
لَّا
ना मशरिक़ी है
sharqiyyatin
شَرْقِيَّةٍ
ना मशरिक़ी है
walā
وَلَا
और ना
gharbiyyatin
غَرْبِيَّةٍ
मग़रिबी
yakādu
يَكَادُ
क़रीब है कि
zaytuhā
زَيْتُهَا
तेल उसका
yuḍīu
يُضِىٓءُ
वो रौशन हो जाए
walaw
وَلَوْ
और अगरचे
lam
لَمْ
ना
tamsashu
تَمْسَسْهُ
छुए उसे
nārun
نَارٌۚ
कोई आग
nūrun
نُّورٌ
नूर है
ʿalā
عَلَىٰ
ऊपर नूर के
nūrin
نُورٍۗ
ऊपर नूर के
yahdī
يَهْدِى
रहनुमाई करता है
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
linūrihi
لِنُورِهِۦ
अपने नूर के लिए
man
مَن
जिसकी
yashāu
يَشَآءُۚ
वो चाहता है
wayaḍribu
وَيَضْرِبُ
और बयान करता है
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
l-amthāla
ٱلْأَمْثَٰلَ
मिसालें
lilnnāsi
لِلنَّاسِۗ
लोगों के लिए
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
bikulli
بِكُلِّ
हर
shayin
شَىْءٍ
चीज़ को
ʿalīmun
عَلِيمٌ
ख़ूब जानने वाला है
अल्लाह आकाशों और धरती का प्रकाश है। (मोमिनों के दिल में) उसके प्रकाश की मिसाल ऐसी है जैसे एक ताक़ है, जिसमें एक चिराग़ है - वह चिराग़ एक फ़ानूस में है। वह फ़ानूस ऐसा है मानो चमकता हुआ कोई तारा है। - वह चिराग़ ज़ैतून के एक बरकतवाले वृक्ष के तेल से जलाया जाता है, जो न पूर्वी है न पश्चिमी। उसका तेल आप है आप भड़का पड़ता है, यद्यपि आग उसे न भी छुए। प्रकाश पर प्रकाश! - अल्लाह जिसे चाहता है अपने प्रकाश के प्राप्त होने का मार्ग दिखा देता है। अल्लाह लोगों के लिए मिशालें प्रस्तुत करता है। अल्लाह तो हर चीज़ जानता है। ([२४] अन-नूर: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

فِيْ بُيُوْتٍ اَذِنَ اللّٰهُ اَنْ تُرْفَعَ وَيُذْكَرَ فِيْهَا اسْمُهٗۙ يُسَبِّحُ لَهٗ فِيْهَا بِالْغُدُوِّ وَالْاٰصَالِ ۙ ٣٦

فِى
घरों में
buyūtin
بُيُوتٍ
घरों में
adhina
أَذِنَ
हुक्म दिया
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
an
أَن
कि
tur'faʿa
تُرْفَعَ
बुलन्द किया जाए
wayudh'kara
وَيُذْكَرَ
और ज़िक्र किया जाए
fīhā
فِيهَا
उनमें
us'muhu
ٱسْمُهُۥ
नाम उसका
yusabbiḥu
يُسَبِّحُ
वो तस्बीह करते हैं
lahu
لَهُۥ
उसकी
fīhā
فِيهَا
उनमें
bil-ghuduwi
بِٱلْغُدُوِّ
सुबह
wal-āṣāli
وَٱلْءَاصَالِ
और शाम
उन घरों में जिनको ऊँचा करने और जिनमें अपने नाम के याद करने का अल्लाह ने हुक्म दिया है, ([२४] अन-नूर: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

رِجَالٌ لَّا تُلْهِيْهِمْ تِجَارَةٌ وَّلَا بَيْعٌ عَنْ ذِكْرِ اللّٰهِ وَاِقَامِ الصَّلٰوةِ وَاِيْتَاۤءِ الزَّكٰوةِ ۙيَخَافُوْنَ يَوْمًا تَتَقَلَّبُ فِيْهِ الْقُلُوْبُ وَالْاَبْصَارُ ۙ ٣٧

rijālun
رِجَالٌ
वो मर्द
لَّا
नहीं ग़ाफ़िल करती उन्हें
tul'hīhim
تُلْهِيهِمْ
नहीं ग़ाफ़िल करती उन्हें
tijāratun
تِجَٰرَةٌ
तिजारत
walā
وَلَا
और ना
bayʿun
بَيْعٌ
ख़रीदो फ़रोख़्त
ʿan
عَن
ज़िक्र से
dhik'ri
ذِكْرِ
ज़िक्र से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
wa-iqāmi
وَإِقَامِ
और क़ायम करने से
l-ṣalati
ٱلصَّلَوٰةِ
नमाज़ के
waītāi
وَإِيتَآءِ
और अदा करने से
l-zakati
ٱلزَّكَوٰةِۙ
ज़कात के
yakhāfūna
يَخَافُونَ
वो डरते हैं
yawman
يَوْمًا
उस दिन से
tataqallabu
تَتَقَلَّبُ
उलट-पलट हो जाऐंगे
fīhi
فِيهِ
जिसमें
l-qulūbu
ٱلْقُلُوبُ
दिल
wal-abṣāru
وَٱلْأَبْصَٰرُ
और निगाहें
उनमें ऐसे लोग प्रभात काल और संध्या समय उसकी तसबीह करते है जिन्हें अल्लाह की याद और नमाज क़ायम करने और ज़कात देने से न तो व्यापार ग़ाफ़िल करता है और न क्रय-विक्रय। वे उस दिन से डरते रहते है जिसमें दिल और आँखें विकल हो जाएँगी ([२४] अन-नूर: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

لِيَجْزِيَهُمُ اللّٰهُ اَحْسَنَ مَا عَمِلُوْا وَيَزِيْدَهُمْ مِّنْ فَضْلِهٖۗ وَاللّٰهُ يَرْزُقُ مَنْ يَّشَاۤءُ بِغَيْرِ حِسَابٍ ٣٨

liyajziyahumu
لِيَجْزِيَهُمُ
ताकि बदला दे उन्हें
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
aḥsana
أَحْسَنَ
बेहतरीन
مَا
उसका जो
ʿamilū
عَمِلُوا۟
उन्होंने अमल किए
wayazīdahum
وَيَزِيدَهُم
और ज़्यादा दे उन्हें
min
مِّن
अपने फ़ज़ल से
faḍlihi
فَضْلِهِۦۗ
अपने फ़ज़ल से
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
yarzuqu
يَرْزُقُ
वो रिज़्क़ देता है
man
مَن
जिसे
yashāu
يَشَآءُ
वो चाहता है
bighayri
بِغَيْرِ
बग़ैर
ḥisābin
حِسَابٍ
हिसाब के
ताकि अल्लाह उन्हें बदला प्रदान करे। उनके अच्छे से अच्छे कामों का, और अपने उदार अनुग्रह से उन्हें और अधिक प्रदान करें। अल्लाह जिसे चाहता है बेहिसाब देता है ([२४] अन-नूर: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

وَالَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اَعْمَالُهُمْ كَسَرَابٍۢ بِقِيْعَةٍ يَّحْسَبُهُ الظَّمْاٰنُ مَاۤءًۗ حَتّٰٓى اِذَا جَاۤءَهٗ لَمْ يَجِدْهُ شَيْـًٔا وَّوَجَدَ اللّٰهَ عِنْدَهٗ فَوَفّٰىهُ حِسَابَهٗ ۗ وَاللّٰهُ سَرِيْعُ الْحِسَابِ ۙ ٣٩

wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوٓا۟
कुफ़्र किया
aʿmāluhum
أَعْمَٰلُهُمْ
आमाल उनके
kasarābin
كَسَرَابٍۭ
मानिन्द सराब के हैं
biqīʿatin
بِقِيعَةٍ
चटियल मैदान में
yaḥsabuhu
يَحْسَبُهُ
समझता है उसे
l-ẓamānu
ٱلظَّمْـَٔانُ
सख़्त प्यासा
māan
مَآءً
पानी
ḥattā
حَتَّىٰٓ
यहाँ तक कि
idhā
إِذَا
जब
jāahu
جَآءَهُۥ
वो आता है उसके पास
lam
لَمْ
नहीं
yajid'hu
يَجِدْهُ
वो पाता उसे
shayan
شَيْـًٔا
कुछ भी
wawajada
وَوَجَدَ
और पाता है
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह को
ʿindahu
عِندَهُۥ
अपने पास
fawaffāhu
فَوَفَّىٰهُ
फिर वो पूरा-पूरा देता है उसे
ḥisābahu
حِسَابَهُۥۗ
हिसाब उसका
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
sarīʿu
سَرِيعُ
जल्द लेने वाला है
l-ḥisābi
ٱلْحِسَابِ
हिसाब
रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया उनके कर्म चटियल मैदान में मरीचिका की तरह है कि प्यासा उसे पानी समझता है, यहाँ तक कि जब वह उसके पास पहुँचा तो उसे कुछ भी न पाया। अलबत्ता अल्लाह ही को उसके पास पाया, जिसने उसका हिसाब पूरा-पूरा चुका दिया। और अल्लाह बहुत जल्द हिसाब करता है ([२४] अन-नूर: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

اَوْ كَظُلُمٰتٍ فِيْ بَحْرٍ لُّجِّيٍّ يَّغْشٰىهُ مَوْجٌ مِّنْ فَوْقِهٖ مَوْجٌ مِّنْ فَوْقِهٖ سَحَابٌۗ ظُلُمٰتٌۢ بَعْضُهَا فَوْقَ بَعْضٍۗ اِذَآ اَخْرَجَ يَدَهٗ لَمْ يَكَدْ يَرٰىهَاۗ وَمَنْ لَّمْ يَجْعَلِ اللّٰهُ لَهٗ نُوْرًا فَمَا لَهٗ مِنْ نُّوْرٍ ࣖ ٤٠

aw
أَوْ
या
kaẓulumātin
كَظُلُمَٰتٍ
मानिन्द अंधेरों के
فِى
समुन्दर में
baḥrin
بَحْرٍ
समुन्दर में
lujjiyyin
لُّجِّىٍّ
निहायत गहरे
yaghshāhu
يَغْشَىٰهُ
ढाँप लेती है उसे
mawjun
مَوْجٌ
मौज
min
مِّن
उसके ऊपर से
fawqihi
فَوْقِهِۦ
उसके ऊपर से
mawjun
مَوْجٌ
एक( और) मौज
min
مِّن
उसके ऊपर से
fawqihi
فَوْقِهِۦ
उसके ऊपर से
saḥābun
سَحَابٌۚ
बादल
ẓulumātun
ظُلُمَٰتٌۢ
अंधेरे हैं
baʿḍuhā
بَعْضُهَا
बाज़ उनके
fawqa
فَوْقَ
ऊपर हैं
baʿḍin
بَعْضٍ
बाज़ के
idhā
إِذَآ
जब
akhraja
أَخْرَجَ
वो निकाले
yadahu
يَدَهُۥ
हाथ अपना
lam
لَمْ
नहीं
yakad
يَكَدْ
वो क़रीब कि
yarāhā
يَرَىٰهَاۗ
वो देख सके उसे
waman
وَمَن
और वो जो
lam
لَّمْ
नहीं
yajʿali
يَجْعَلِ
बनाया
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
lahu
لَهُۥ
उसके लिए
nūran
نُورًا
कोई नूर
famā
فَمَا
तो नहीं
lahu
لَهُۥ
उसके लिए
min
مِن
कोई नूर
nūrin
نُّورٍ
कोई नूर
या फिर जैसे एक गहरे समुद्र में अँधेरे, लहर के ऊपर लहर छा रही हैं; उसके ऊपर बादल है, अँधेरे है एक पर एक। जब वह अपना हाथ निकाले तो उसे वह सुझाई देता प्रतीत न हो। जिसे अल्लाह ही प्रकाश न दे फिर उसके लिए कोई प्रकाश नहीं ([२४] अन-नूर: 40)
Tafseer (तफ़सीर )