وَلَوِ اتَّبَعَ الْحَقُّ اَهْوَاۤءَهُمْ لَفَسَدَتِ السَّمٰوٰتُ وَالْاَرْضُ وَمَنْ فِيْهِنَّۗ بَلْ اَتَيْنٰهُمْ بِذِكْرِهِمْ فَهُمْ عَنْ ذِكْرِهِمْ مُّعْرِضُوْنَ ۗ ٧١
- walawi
- وَلَوِ
- और अगर
- ittabaʿa
- ٱتَّبَعَ
- पैरवी करता
- l-ḥaqu
- ٱلْحَقُّ
- हक़
- ahwāahum
- أَهْوَآءَهُمْ
- उनकी ख़्वाहिशात की
- lafasadati
- لَفَسَدَتِ
- अलबत्ता बिगड़ जाते
- l-samāwātu
- ٱلسَّمَٰوَٰتُ
- आसमान
- wal-arḍu
- وَٱلْأَرْضُ
- और ज़मीन
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- fīhinna
- فِيهِنَّۚ
- उनमें है
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- ataynāhum
- أَتَيْنَٰهُم
- लाए हैं हम उनके पास
- bidhik'rihim
- بِذِكْرِهِمْ
- ज़िक्र उनका
- fahum
- فَهُمْ
- तो वो
- ʿan
- عَن
- अपने ही ज़िक्र से
- dhik'rihim
- ذِكْرِهِم
- अपने ही ज़िक्र से
- muʿ'riḍūna
- مُّعْرِضُونَ
- मुँह मोड़ने वाले हैं
और यदि सत्य कहीं उनकी इच्छाओं के पीछे चलता तो समस्त आकाश और धरती और जो भी उनमें है, सबमें बिगाड़ पैदा हो जाता। नहीं, बल्कि हम उनके पास उनके हिस्से की अनुस्मृति लाए है। किन्तु वे अपनी अनुस्मृति से कतरा रहे है ([२३] अल-मुमिनून: 71)Tafseer (तफ़सीर )
اَمْ تَسْـَٔلُهُمْ خَرْجًا فَخَرَاجُ رَبِّكَ خَيْرٌ ۖوَّهُوَ خَيْرُ الرّٰزِقِيْنَ ٧٢
- am
- أَمْ
- या
- tasaluhum
- تَسْـَٔلُهُمْ
- आप सवाल करते हैं उनसे
- kharjan
- خَرْجًا
- माल/अदायगी का
- fakharāju
- فَخَرَاجُ
- तो ख़िराज/अजरो सवाब
- rabbika
- رَبِّكَ
- आपके रब का
- khayrun
- خَيْرٌۖ
- बेहतर है
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो
- khayru
- خَيْرُ
- बेहतर है
- l-rāziqīna
- ٱلرَّٰزِقِينَ
- सब रिज़्क़ देने वालों से
या तुम उनसे कुथ शुल्क माँग रहे हो? तुम्हारे रब का दिया ही उत्तम है। और वह सबसे अच्छी रोज़ी देनेवाला है ([२३] अल-मुमिनून: 72)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِنَّكَ لَتَدْعُوْهُمْ اِلٰى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيْمٍ ٧٣
- wa-innaka
- وَإِنَّكَ
- और बेशक आप
- latadʿūhum
- لَتَدْعُوهُمْ
- अलबत्ता आप बुलाते हैं उन्हें
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ रास्ते
- ṣirāṭin
- صِرَٰطٍ
- तरफ़ रास्ते
- mus'taqīmin
- مُّسْتَقِيمٍ
- सीधे के
और वास्तव में तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुला रहे हो ([२३] अल-मुमिनून: 73)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِنَّ الَّذِيْنَ لَا يُؤْمِنُوْنَ بِالْاٰخِرَةِ عَنِ الصِّرَاطِ لَنَاكِبُوْنَ ٧٤
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- lā
- لَا
- नहीं वो ईमान लाते
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- नहीं वो ईमान लाते
- bil-ākhirati
- بِٱلْءَاخِرَةِ
- आख़िरत पर
- ʿani
- عَنِ
- रास्ते से
- l-ṣirāṭi
- ٱلصِّرَٰطِ
- रास्ते से
- lanākibūna
- لَنَٰكِبُونَ
- अलबत्ता हट जाने वाले हैं
किन्तु जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते वे इस मार्ग से हटकर चलना चाहते है ([२३] अल-मुमिनून: 74)Tafseer (तफ़सीर )
۞ وَلَوْ رَحِمْنٰهُمْ وَكَشَفْنَا مَا بِهِمْ مِّنْ ضُرٍّ لَّلَجُّوْا فِيْ طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُوْنَ ٧٥
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- raḥim'nāhum
- رَحِمْنَٰهُمْ
- रहम करें हम उन पर
- wakashafnā
- وَكَشَفْنَا
- और खोल दें हम
- mā
- مَا
- जो
- bihim
- بِهِم
- उन्हें है
- min
- مِّن
- तकलीफ़ में से
- ḍurrin
- ضُرٍّ
- तकलीफ़ में से
- lalajjū
- لَّلَجُّوا۟
- अलबत्ता वो अड़े रहेंगे
- fī
- فِى
- अपनी सरकशी में
- ṭugh'yānihim
- طُغْيَٰنِهِمْ
- अपनी सरकशी में
- yaʿmahūna
- يَعْمَهُونَ
- भटकते हुए
यदि हम (किसी आज़माइश में डालने के पश्चात) उनपर दया करते और जिस तकलीफ़ में वे होते उसे दूर कर देते तो भी वे अपनी सरकशी में हठात बहकते रहते ([२३] अल-मुमिनून: 75)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ اَخَذْنٰهُمْ بِالْعَذَابِ فَمَا اسْتَكَانُوْا لِرَبِّهِمْ وَمَا يَتَضَرَّعُوْنَ ٧٦
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- akhadhnāhum
- أَخَذْنَٰهُم
- पकड़ लिया हमने उन्हें
- bil-ʿadhābi
- بِٱلْعَذَابِ
- साथ अज़ाब के
- famā
- فَمَا
- पस ना
- is'takānū
- ٱسْتَكَانُوا۟
- उन्होंने आजिज़ी की
- lirabbihim
- لِرَبِّهِمْ
- अपने रब के लिए
- wamā
- وَمَا
- और ना
- yataḍarraʿūna
- يَتَضَرَّعُونَ
- वो गिड़गिड़ाए
यद्यपि हमने उन्हें यातना में पकड़ा, फिर भी वे अपने रब के आगे न तो झुके और न वे गिड़गिड़ाते ही थे ([२३] अल-मुमिनून: 76)Tafseer (तफ़सीर )
حَتّٰٓى اِذَا فَتَحْنَا عَلَيْهِمْ بَابًا ذَا عَذَابٍ شَدِيْدٍ اِذَا هُمْ فِيْهِ مُبْلِسُوْنَ ࣖ ٧٧
- ḥattā
- حَتَّىٰٓ
- यहाँ तक कि
- idhā
- إِذَا
- जब
- fataḥnā
- فَتَحْنَا
- खोल दिया हमने
- ʿalayhim
- عَلَيْهِم
- उन पर
- bāban
- بَابًا
- दरवाज़ा
- dhā
- ذَا
- सख़्त अज़ाब वाला
- ʿadhābin
- عَذَابٍ
- सख़्त अज़ाब वाला
- shadīdin
- شَدِيدٍ
- सख़्त अज़ाब वाला
- idhā
- إِذَا
- यकायक
- hum
- هُمْ
- वो
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- mub'lisūna
- مُبْلِسُونَ
- मायूस होने वाले थे
यहाँ तक कि जब हम उनपर कठोर यातना का द्वार खोल दें तो क्या देखेंगे कि वे उसमें निराश होकर रह गए है ([२३] अल-मुमिनून: 77)Tafseer (तफ़सीर )
وَهُوَ الَّذِيْٓ اَنْشَاَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْاَبْصَارَ وَالْاَفْـِٕدَةَۗ قَلِيْلًا مَّا تَشْكُرُوْنَ ٧٨
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो ही है
- alladhī
- ٱلَّذِىٓ
- जिसने
- ansha-a
- أَنشَأَ
- पैदा किए
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम्हारे लिए
- l-samʿa
- ٱلسَّمْعَ
- कान
- wal-abṣāra
- وَٱلْأَبْصَٰرَ
- और आँखें
- wal-afidata
- وَٱلْأَفْـِٔدَةَۚ
- और दिल
- qalīlan
- قَلِيلًا
- कितना कम
- mā
- مَّا
- कितना कम
- tashkurūna
- تَشْكُرُونَ
- तुम शुक्र अदा करते हो
और वही है जिसने तुम्हारे लिए कान और आँखे और दिल बनाए। तुम कृतज्ञता थोड़े ही दिखाते हो! ([२३] अल-मुमिनून: 78)Tafseer (तफ़सीर )
وَهُوَ الَّذِيْ ذَرَاَكُمْ فِى الْاَرْضِ وَاِلَيْهِ تُحْشَرُوْنَ ٧٩
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो ही है
- alladhī
- ٱلَّذِى
- जिसने
- dhara-akum
- ذَرَأَكُمْ
- फैला दिया तुम्हें
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- wa-ilayhi
- وَإِلَيْهِ
- और तरफ़ उसी के
- tuḥ'sharūna
- تُحْشَرُونَ
- तुम इकट्ठे किए जाओगे
वही है जिसने तुम्हें धरती में पैदा करके फैलाया और उसी की ओर तुम इकट्ठे होकर जाओगे ([२३] अल-मुमिनून: 79)Tafseer (तफ़सीर )
وَهُوَ الَّذِيْ يُحْيٖ وَيُمِيْتُ وَلَهُ اخْتِلَافُ الَّيْلِ وَالنَّهَارِۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ٨٠
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो ही है
- alladhī
- ٱلَّذِى
- जो
- yuḥ'yī
- يُحْىِۦ
- ज़िन्दा करता है
- wayumītu
- وَيُمِيتُ
- और वो मौत देता है
- walahu
- وَلَهُ
- और उसी के लिए है
- ikh'tilāfu
- ٱخْتِلَٰفُ
- आगे पीछे आना
- al-layli
- ٱلَّيْلِ
- रात
- wal-nahāri
- وَٱلنَّهَارِۚ
- और दिन का
- afalā
- أَفَلَا
- क्या फिर नहीं
- taʿqilūna
- تَعْقِلُونَ
- तुम अक़्ल से काम लेते
और वही है जो जीवन प्रदान करता और मृत्यु देता है और रात और दिन का उलट-फेर उसी के अधिकार में है। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? ([२३] अल-मुमिनून: 80)Tafseer (तफ़सीर )