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सूरा अल-मुमिनून - Page: 8

Al-Mu'minun

(आस्तिक)

७१

وَلَوِ اتَّبَعَ الْحَقُّ اَهْوَاۤءَهُمْ لَفَسَدَتِ السَّمٰوٰتُ وَالْاَرْضُ وَمَنْ فِيْهِنَّۗ بَلْ اَتَيْنٰهُمْ بِذِكْرِهِمْ فَهُمْ عَنْ ذِكْرِهِمْ مُّعْرِضُوْنَ ۗ ٧١

walawi
وَلَوِ
और अगर
ittabaʿa
ٱتَّبَعَ
पैरवी करता
l-ḥaqu
ٱلْحَقُّ
हक़
ahwāahum
أَهْوَآءَهُمْ
उनकी ख़्वाहिशात की
lafasadati
لَفَسَدَتِ
अलबत्ता बिगड़ जाते
l-samāwātu
ٱلسَّمَٰوَٰتُ
आसमान
wal-arḍu
وَٱلْأَرْضُ
और ज़मीन
waman
وَمَن
और जो कोई
fīhinna
فِيهِنَّۚ
उनमें है
bal
بَلْ
बल्कि
ataynāhum
أَتَيْنَٰهُم
लाए हैं हम उनके पास
bidhik'rihim
بِذِكْرِهِمْ
ज़िक्र उनका
fahum
فَهُمْ
तो वो
ʿan
عَن
अपने ही ज़िक्र से
dhik'rihim
ذِكْرِهِم
अपने ही ज़िक्र से
muʿ'riḍūna
مُّعْرِضُونَ
मुँह मोड़ने वाले हैं
और यदि सत्य कहीं उनकी इच्छाओं के पीछे चलता तो समस्त आकाश और धरती और जो भी उनमें है, सबमें बिगाड़ पैदा हो जाता। नहीं, बल्कि हम उनके पास उनके हिस्से की अनुस्मृति लाए है। किन्तु वे अपनी अनुस्मृति से कतरा रहे है ([२३] अल-मुमिनून: 71)
Tafseer (तफ़सीर )
७२

اَمْ تَسْـَٔلُهُمْ خَرْجًا فَخَرَاجُ رَبِّكَ خَيْرٌ ۖوَّهُوَ خَيْرُ الرّٰزِقِيْنَ ٧٢

am
أَمْ
या
tasaluhum
تَسْـَٔلُهُمْ
आप सवाल करते हैं उनसे
kharjan
خَرْجًا
माल/अदायगी का
fakharāju
فَخَرَاجُ
तो ख़िराज/अजरो सवाब
rabbika
رَبِّكَ
आपके रब का
khayrun
خَيْرٌۖ
बेहतर है
wahuwa
وَهُوَ
और वो
khayru
خَيْرُ
बेहतर है
l-rāziqīna
ٱلرَّٰزِقِينَ
सब रिज़्क़ देने वालों से
या तुम उनसे कुथ शुल्क माँग रहे हो? तुम्हारे रब का दिया ही उत्तम है। और वह सबसे अच्छी रोज़ी देनेवाला है ([२३] अल-मुमिनून: 72)
Tafseer (तफ़सीर )
७३

وَاِنَّكَ لَتَدْعُوْهُمْ اِلٰى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيْمٍ ٧٣

wa-innaka
وَإِنَّكَ
और बेशक आप
latadʿūhum
لَتَدْعُوهُمْ
अलबत्ता आप बुलाते हैं उन्हें
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ रास्ते
ṣirāṭin
صِرَٰطٍ
तरफ़ रास्ते
mus'taqīmin
مُّسْتَقِيمٍ
सीधे के
और वास्तव में तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुला रहे हो ([२३] अल-मुमिनून: 73)
Tafseer (तफ़सीर )
७४

وَاِنَّ الَّذِيْنَ لَا يُؤْمِنُوْنَ بِالْاٰخِرَةِ عَنِ الصِّرَاطِ لَنَاكِبُوْنَ ٧٤

wa-inna
وَإِنَّ
और बेशक
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जो
لَا
नहीं वो ईमान लाते
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
नहीं वो ईमान लाते
bil-ākhirati
بِٱلْءَاخِرَةِ
आख़िरत पर
ʿani
عَنِ
रास्ते से
l-ṣirāṭi
ٱلصِّرَٰطِ
रास्ते से
lanākibūna
لَنَٰكِبُونَ
अलबत्ता हट जाने वाले हैं
किन्तु जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते वे इस मार्ग से हटकर चलना चाहते है ([२३] अल-मुमिनून: 74)
Tafseer (तफ़सीर )
७५

۞ وَلَوْ رَحِمْنٰهُمْ وَكَشَفْنَا مَا بِهِمْ مِّنْ ضُرٍّ لَّلَجُّوْا فِيْ طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُوْنَ ٧٥

walaw
وَلَوْ
और अगर
raḥim'nāhum
رَحِمْنَٰهُمْ
रहम करें हम उन पर
wakashafnā
وَكَشَفْنَا
और खोल दें हम
مَا
जो
bihim
بِهِم
उन्हें है
min
مِّن
तकलीफ़ में से
ḍurrin
ضُرٍّ
तकलीफ़ में से
lalajjū
لَّلَجُّوا۟
अलबत्ता वो अड़े रहेंगे
فِى
अपनी सरकशी में
ṭugh'yānihim
طُغْيَٰنِهِمْ
अपनी सरकशी में
yaʿmahūna
يَعْمَهُونَ
भटकते हुए
यदि हम (किसी आज़माइश में डालने के पश्चात) उनपर दया करते और जिस तकलीफ़ में वे होते उसे दूर कर देते तो भी वे अपनी सरकशी में हठात बहकते रहते ([२३] अल-मुमिनून: 75)
Tafseer (तफ़सीर )
७६

وَلَقَدْ اَخَذْنٰهُمْ بِالْعَذَابِ فَمَا اسْتَكَانُوْا لِرَبِّهِمْ وَمَا يَتَضَرَّعُوْنَ ٧٦

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
akhadhnāhum
أَخَذْنَٰهُم
पकड़ लिया हमने उन्हें
bil-ʿadhābi
بِٱلْعَذَابِ
साथ अज़ाब के
famā
فَمَا
पस ना
is'takānū
ٱسْتَكَانُوا۟
उन्होंने आजिज़ी की
lirabbihim
لِرَبِّهِمْ
अपने रब के लिए
wamā
وَمَا
और ना
yataḍarraʿūna
يَتَضَرَّعُونَ
वो गिड़गिड़ाए
यद्यपि हमने उन्हें यातना में पकड़ा, फिर भी वे अपने रब के आगे न तो झुके और न वे गिड़गिड़ाते ही थे ([२३] अल-मुमिनून: 76)
Tafseer (तफ़सीर )
७७

حَتّٰٓى اِذَا فَتَحْنَا عَلَيْهِمْ بَابًا ذَا عَذَابٍ شَدِيْدٍ اِذَا هُمْ فِيْهِ مُبْلِسُوْنَ ࣖ ٧٧

ḥattā
حَتَّىٰٓ
यहाँ तक कि
idhā
إِذَا
जब
fataḥnā
فَتَحْنَا
खोल दिया हमने
ʿalayhim
عَلَيْهِم
उन पर
bāban
بَابًا
दरवाज़ा
dhā
ذَا
सख़्त अज़ाब वाला
ʿadhābin
عَذَابٍ
सख़्त अज़ाब वाला
shadīdin
شَدِيدٍ
सख़्त अज़ाब वाला
idhā
إِذَا
यकायक
hum
هُمْ
वो
fīhi
فِيهِ
उसमें
mub'lisūna
مُبْلِسُونَ
मायूस होने वाले थे
यहाँ तक कि जब हम उनपर कठोर यातना का द्वार खोल दें तो क्या देखेंगे कि वे उसमें निराश होकर रह गए है ([२३] अल-मुमिनून: 77)
Tafseer (तफ़सीर )
७८

وَهُوَ الَّذِيْٓ اَنْشَاَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْاَبْصَارَ وَالْاَفْـِٕدَةَۗ قَلِيْلًا مَّا تَشْكُرُوْنَ ٧٨

wahuwa
وَهُوَ
और वो ही है
alladhī
ٱلَّذِىٓ
जिसने
ansha-a
أَنشَأَ
पैदा किए
lakumu
لَكُمُ
तुम्हारे लिए
l-samʿa
ٱلسَّمْعَ
कान
wal-abṣāra
وَٱلْأَبْصَٰرَ
और आँखें
wal-afidata
وَٱلْأَفْـِٔدَةَۚ
और दिल
qalīlan
قَلِيلًا
कितना कम
مَّا
कितना कम
tashkurūna
تَشْكُرُونَ
तुम शुक्र अदा करते हो
और वही है जिसने तुम्हारे लिए कान और आँखे और दिल बनाए। तुम कृतज्ञता थोड़े ही दिखाते हो! ([२३] अल-मुमिनून: 78)
Tafseer (तफ़सीर )
७९

وَهُوَ الَّذِيْ ذَرَاَكُمْ فِى الْاَرْضِ وَاِلَيْهِ تُحْشَرُوْنَ ٧٩

wahuwa
وَهُوَ
और वो ही है
alladhī
ٱلَّذِى
जिसने
dhara-akum
ذَرَأَكُمْ
फैला दिया तुम्हें
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
wa-ilayhi
وَإِلَيْهِ
और तरफ़ उसी के
tuḥ'sharūna
تُحْشَرُونَ
तुम इकट्ठे किए जाओगे
वही है जिसने तुम्हें धरती में पैदा करके फैलाया और उसी की ओर तुम इकट्ठे होकर जाओगे ([२३] अल-मुमिनून: 79)
Tafseer (तफ़सीर )
८०

وَهُوَ الَّذِيْ يُحْيٖ وَيُمِيْتُ وَلَهُ اخْتِلَافُ الَّيْلِ وَالنَّهَارِۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ٨٠

wahuwa
وَهُوَ
और वो ही है
alladhī
ٱلَّذِى
जो
yuḥ'yī
يُحْىِۦ
ज़िन्दा करता है
wayumītu
وَيُمِيتُ
और वो मौत देता है
walahu
وَلَهُ
और उसी के लिए है
ikh'tilāfu
ٱخْتِلَٰفُ
आगे पीछे आना
al-layli
ٱلَّيْلِ
रात
wal-nahāri
وَٱلنَّهَارِۚ
और दिन का
afalā
أَفَلَا
क्या फिर नहीं
taʿqilūna
تَعْقِلُونَ
तुम अक़्ल से काम लेते
और वही है जो जीवन प्रदान करता और मृत्यु देता है और रात और दिन का उलट-फेर उसी के अधिकार में है। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? ([२३] अल-मुमिनून: 80)
Tafseer (तफ़सीर )