اُولٰۤىِٕكَ يُسَارِعُوْنَ فِى الْخَيْرٰتِ وَهُمْ لَهَا سٰبِقُوْنَ ٦١
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- yusāriʿūna
- يُسَٰرِعُونَ
- जो जल्दी करते हैं
- fī
- فِى
- भलाइयों में
- l-khayrāti
- ٱلْخَيْرَٰتِ
- भलाइयों में
- wahum
- وَهُمْ
- और वो ही
- lahā
- لَهَا
- उनके लिए
- sābiqūna
- سَٰبِقُونَ
- सबक़त करने वाले हैं
यही वे लोग है, जो भलाइयों में जल्दी करते है और यही उनके लिए अग्रसर रहनेवाले है। ([२३] अल-मुमिनून: 61)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا نُكَلِّفُ نَفْسًا اِلَّا وُسْعَهَاۖ وَلَدَيْنَا كِتٰبٌ يَّنْطِقُ بِالْحَقِّ وَهُمْ لَا يُظْلَمُوْنَ ٦٢
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- nukallifu
- نُكَلِّفُ
- हम तकलीफ़ देते
- nafsan
- نَفْسًا
- किसी नफ़्स को
- illā
- إِلَّا
- मगर
- wus'ʿahā
- وُسْعَهَاۖ
- उसकी वुसअत के मुताबिक़
- waladaynā
- وَلَدَيْنَا
- और हमारे पास
- kitābun
- كِتَٰبٌ
- एक किताब है
- yanṭiqu
- يَنطِقُ
- जो बोलती है
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّۚ
- साथ हक़ के
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- lā
- لَا
- ना वो ज़ुल्म किए जाऐंगे
- yuẓ'lamūna
- يُظْلَمُونَ
- ना वो ज़ुल्म किए जाऐंगे
हम किसी व्यक्ति पर उसकी समाई (क्षमता) से बढ़कर ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं डालते और हमारे पास एक किताब है, जो ठीक-ठीक बोलती है, और उनपर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा ([२३] अल-मुमिनून: 62)Tafseer (तफ़सीर )
بَلْ قُلُوْبُهُمْ فِيْ غَمْرَةٍ مِّنْ هٰذَا وَلَهُمْ اَعْمَالٌ مِّنْ دُوْنِ ذٰلِكَ هُمْ لَهَا عَامِلُوْنَ ٦٣
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- qulūbuhum
- قُلُوبُهُمْ
- दिल उनके
- fī
- فِى
- ग़फ़्लत में हैं
- ghamratin
- غَمْرَةٍ
- ग़फ़्लत में हैं
- min
- مِّنْ
- उस से
- hādhā
- هَٰذَا
- उस से
- walahum
- وَلَهُمْ
- और उनके लिए
- aʿmālun
- أَعْمَٰلٌ
- कई आमाल हैं
- min
- مِّن
- अलावा
- dūni
- دُونِ
- अलावा
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- उसके
- hum
- هُمْ
- वो
- lahā
- لَهَا
- उन्हें
- ʿāmilūna
- عَٰمِلُونَ
- करने वाले हैं
बल्कि उनके दिल इसकी (सत्य धर्म की) ओर से हटकर (वसवसों और गफ़लतों आदि के) भँवर में पडे हुए है और उससे (ईमानवालों की नीति से) हटकर उनके कुछ और ही काम है। वे उन्हीं को करते रहेंगे; ([२३] अल-मुमिनून: 63)Tafseer (तफ़सीर )
حَتّٰٓى اِذَآ اَخَذْنَا مُتْرَفِيْهِمْ بِالْعَذَابِ اِذَا هُمْ يَجْـَٔرُوْنَ ۗ ٦٤
- ḥattā
- حَتَّىٰٓ
- यहाँ तक कि
- idhā
- إِذَآ
- जब
- akhadhnā
- أَخَذْنَا
- पकड़ेंगे हम
- mut'rafīhim
- مُتْرَفِيهِم
- उनके ख़ुशहाल लोगों को
- bil-ʿadhābi
- بِٱلْعَذَابِ
- साथ अज़ाब के
- idhā
- إِذَا
- तब यकायक
- hum
- هُمْ
- वो
- yajarūna
- يَجْـَٔرُونَ
- वो चिल्लाने लगेंगे
यहाँ तक कि जब हम उनके खुशहाल लोगों को यातना में पकड़ेगे तो क्या देखते है कि वे विलाप और फ़रियाद कर रहे है ([२३] अल-मुमिनून: 64)Tafseer (तफ़सीर )
لَا تَجْـَٔرُوا الْيَوْمَۖ اِنَّكُمْ مِّنَّا لَا تُنْصَرُوْنَ ٦٥
- lā
- لَا
- ना तुम चिल्लाओ
- tajarū
- تَجْـَٔرُوا۟
- ना तुम चिल्लाओ
- l-yawma
- ٱلْيَوْمَۖ
- आज
- innakum
- إِنَّكُم
- बेशक तुम
- minnā
- مِّنَّا
- हमसे
- lā
- لَا
- ना तुम मदद किए जाओगे
- tunṣarūna
- تُنصَرُونَ
- ना तुम मदद किए जाओगे
(कहा जाएगा,) 'आज चिल्लाओ मत, तुम्हें हमारी ओर से कोई सहायता मिलनेवाली नहीं ([२३] अल-मुमिनून: 65)Tafseer (तफ़सीर )
قَدْ كَانَتْ اٰيٰتِيْ تُتْلٰى عَلَيْكُمْ فَكُنْتُمْ عَلٰٓى اَعْقَابِكُمْ تَنْكِصُوْنَ ۙ ٦٦
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- kānat
- كَانَتْ
- थीं
- āyātī
- ءَايَٰتِى
- मोरी आयात
- tut'lā
- تُتْلَىٰ
- पढ़ी जातीं
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- fakuntum
- فَكُنتُمْ
- तो थे तुम
- ʿalā
- عَلَىٰٓ
- अपनी एड़ियों पर
- aʿqābikum
- أَعْقَٰبِكُمْ
- अपनी एड़ियों पर
- tankiṣūna
- تَنكِصُونَ
- तुम फिर जाते
तुम्हें मेरी आयतें सुनाई जाती थीं, तो तुम अपनी एड़ियों के बल फिर जाते थे। ([२३] अल-मुमिनून: 66)Tafseer (तफ़सीर )
مُسْتَكْبِرِيْنَۙ بِهٖ سٰمِرًا تَهْجُرُوْنَ ٦٧
- mus'takbirīna
- مُسْتَكْبِرِينَ
- तकब्बुर करते हुए
- bihi
- بِهِۦ
- साथ उसके
- sāmiran
- سَٰمِرًا
- रात को बातें करते हुए
- tahjurūna
- تَهْجُرُونَ
- तुम बेहूदा गोई करते थे
हाल यह था कि इसके कारण स्वयं को बड़ा समझते थे, उसे एक कहानी कहनेवाला ठहराकर छोड़ चलते थे ([२३] अल-मुमिनून: 67)Tafseer (तफ़सीर )
اَفَلَمْ يَدَّبَّرُوا الْقَوْلَ اَمْ جَاۤءَهُمْ مَّا لَمْ يَأْتِ اٰبَاۤءَهُمُ الْاَوَّلِيْنَ ۖ ٦٨
- afalam
- أَفَلَمْ
- क्या भला नहीं
- yaddabbarū
- يَدَّبَّرُوا۟
- उन्होंने ग़ौरो फ़िक्र किया
- l-qawla
- ٱلْقَوْلَ
- कलाम में
- am
- أَمْ
- या
- jāahum
- جَآءَهُم
- आया है उनके पास
- mā
- مَّا
- जो
- lam
- لَمْ
- नहीं
- yati
- يَأْتِ
- आया
- ābāahumu
- ءَابَآءَهُمُ
- उनके आबा ओ अजदाद के पास
- l-awalīna
- ٱلْأَوَّلِينَ
- पहले
क्या उन्होंने इस वाणी पर विचार नहीं किया या उनके पास वह चीज़ आ गई जो उनके पहले बाप-दादा के पास न आई थी? ([२३] अल-मुमिनून: 68)Tafseer (तफ़सीर )
اَمْ لَمْ يَعْرِفُوْا رَسُوْلَهُمْ فَهُمْ لَهٗ مُنْكِرُوْنَ ۖ ٦٩
- am
- أَمْ
- या
- lam
- لَمْ
- नहीं
- yaʿrifū
- يَعْرِفُوا۟
- उन्होंने पहचाना
- rasūlahum
- رَسُولَهُمْ
- अपने रसूल को
- fahum
- فَهُمْ
- तो वो
- lahu
- لَهُۥ
- उसके
- munkirūna
- مُنكِرُونَ
- इन्कारी हैं
या उन्होंने अपने रसूल को पहचाना नहीं, इसलिए उसका इनकार कर रहे है? ([२३] अल-मुमिनून: 69)Tafseer (तफ़सीर )
اَمْ يَقُوْلُوْنَ بِهٖ جِنَّةٌ ۗ بَلْ جَاۤءَهُمْ بِالْحَقِّ وَاَكْثَرُهُمْ لِلْحَقِّ كٰرِهُوْنَ ٧٠
- am
- أَمْ
- या
- yaqūlūna
- يَقُولُونَ
- वो कहते हैं
- bihi
- بِهِۦ
- उसे
- jinnatun
- جِنَّةٌۢۚ
- जुनून है
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- jāahum
- جَآءَهُم
- वो लाया है उनके पास
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّ
- हक़
- wa-aktharuhum
- وَأَكْثَرُهُمْ
- और अक्सर उनके
- lil'ḥaqqi
- لِلْحَقِّ
- हक़ को
- kārihūna
- كَٰرِهُونَ
- नापसंद करने वाले हैं
या वे कहते है, 'उसे उन्माद हो गया है।' नहीं, बल्कि वह उनके पास सत्य लेकर आया है। किन्तु उनमें अधिकांश को सत्य अप्रिय है ([२३] अल-मुमिनून: 70)Tafseer (तफ़सीर )