५१
يٰٓاَيُّهَا الرُّسُلُ كُلُوْا مِنَ الطَّيِّبٰتِ وَاعْمَلُوْا صَالِحًاۗ اِنِّيْ بِمَا تَعْمَلُوْنَ عَلِيْمٌ ۗ ٥١
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ
- l-rusulu
- ٱلرُّسُلُ
- पैग़म्बरो
- kulū
- كُلُوا۟
- खाओ
- mina
- مِنَ
- पाकीज़ा चीज़ों में से
- l-ṭayibāti
- ٱلطَّيِّبَٰتِ
- पाकीज़ा चीज़ों में से
- wa-iʿ'malū
- وَٱعْمَلُوا۟
- और अमल करो
- ṣāliḥan
- صَٰلِحًاۖ
- नेक
- innī
- إِنِّى
- बेशक मैं
- bimā
- بِمَا
- उसे जो
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते हो
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला हूँ
'ऐ पैग़म्बरो! अच्छी पाक चीज़े खाओ और अच्छा कर्म करो। जो कुछ तुम करते हो उसे मैं जानता हूँ ([२३] अल-मुमिनून: 51)Tafseer (तफ़सीर )
५२
وَاِنَّ هٰذِهٖٓ اُمَّتُكُمْ اُمَّةً وَّاحِدَةً وَّاَنَا۠ رَبُّكُمْ فَاتَّقُوْنِ ٥٢
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- hādhihi
- هَٰذِهِۦٓ
- ये
- ummatukum
- أُمَّتُكُمْ
- उम्मत तुम्हारी
- ummatan
- أُمَّةً
- उम्मत है
- wāḥidatan
- وَٰحِدَةً
- एक ही
- wa-anā
- وَأَنَا۠
- और मैं
- rabbukum
- رَبُّكُمْ
- रब हूँ तुम्हारा
- fa-ittaqūni
- فَٱتَّقُونِ
- पस डरो मुझ से
और निश्चय ही यह तुम्हारा समुदाय, एक ही समुदाय है और मैं तुम्हारा रब हूँ। अतः मेरा डर रखो।' ([२३] अल-मुमिनून: 52)Tafseer (तफ़सीर )
५३
فَتَقَطَّعُوْٓا اَمْرَهُمْ بَيْنَهُمْ زُبُرًاۗ كُلُّ حِزْبٍۢ بِمَا لَدَيْهِمْ فَرِحُوْنَ ٥٣
- fataqaṭṭaʿū
- فَتَقَطَّعُوٓا۟
- तो उन्होंने जुदा-जुदा कर लिया
- amrahum
- أَمْرَهُم
- मामला अपना
- baynahum
- بَيْنَهُمْ
- आपस में
- zuburan
- زُبُرًاۖ
- टुकड़े-टुकड़े करके
- kullu
- كُلُّ
- हर फ़रीक़/ गिरोह( के लोग)
- ḥiz'bin
- حِزْبٍۭ
- हर फ़रीक़/ गिरोह( के लोग)
- bimā
- بِمَا
- उस पर जो
- ladayhim
- لَدَيْهِمْ
- उनके पास है
- fariḥūna
- فَرِحُونَ
- ख़ुश हैं
किन्तु उन्होंने स्वयं अपने मामले (धर्म) को परस्पर टुकड़े-टुकड़े कर डाला। हर गिरोह उसी पर खुश है, जो कुछ उसके पास है ([२३] अल-मुमिनून: 53)Tafseer (तफ़सीर )
५४
فَذَرْهُمْ فِيْ غَمْرَتِهِمْ حَتّٰى حِيْنٍ ٥٤
- fadharhum
- فَذَرْهُمْ
- तो छोड़ दीजिए उन्हें
- fī
- فِى
- उनकी ग़फ़्लत में
- ghamratihim
- غَمْرَتِهِمْ
- उनकी ग़फ़्लत में
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- एक वक़्त तक
- ḥīnin
- حِينٍ
- एक वक़्त तक
अच्छा तो उन्हें उनकी अपनी बेहोशी में डूबे हुए ही एक समय तक छोड़ दो ([२३] अल-मुमिनून: 54)Tafseer (तफ़सीर )
५५
اَيَحْسَبُوْنَ اَنَّمَا نُمِدُّهُمْ بِهٖ مِنْ مَّالٍ وَّبَنِيْنَ ۙ ٥٥
- ayaḥsabūna
- أَيَحْسَبُونَ
- क्या वो समझते हैं
- annamā
- أَنَّمَا
- कि बेशक
- numidduhum
- نُمِدُّهُم
- जो हम मदद दे रहे हैं उन्हें
- bihi
- بِهِۦ
- साथ किसी भी(चीज़) के
- min
- مِن
- माल से
- mālin
- مَّالٍ
- माल से
- wabanīna
- وَبَنِينَ
- और बेटों से
क्या वे समझते है कि हम जो उनकी धन और सन्तान से सहायता किए जा रहे है, ([२३] अल-मुमिनून: 55)Tafseer (तफ़सीर )
५६
نُسَارِعُ لَهُمْ فِى الْخَيْرٰتِۗ بَلْ لَّا يَشْعُرُوْنَ ٥٦
- nusāriʿu
- نُسَارِعُ
- कि हम जल्दी कर रहे हैं
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- fī
- فِى
- भलाइयों में
- l-khayrāti
- ٱلْخَيْرَٰتِۚ
- भलाइयों में
- bal
- بَل
- बल्कि
- lā
- لَّا
- नहीं वो शऊर रखते
- yashʿurūna
- يَشْعُرُونَ
- नहीं वो शऊर रखते
तो यह उनके भलाइयों में कोई जल्दी कर रहे है? ([२३] अल-मुमिनून: 56)Tafseer (तफ़सीर )
५७
اِنَّ الَّذِيْنَ هُمْ مِّنْ خَشْيَةِ رَبِّهِمْ مُّشْفِقُوْنَ ۙ ٥٧
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- hum
- هُم
- वो
- min
- مِّنْ
- ख़ौफ़ से
- khashyati
- خَشْيَةِ
- ख़ौफ़ से
- rabbihim
- رَبِّهِم
- अपने रब के
- mush'fiqūna
- مُّشْفِقُونَ
- डरने वाले हैं
नहीं, बल्कि उन्हें इसका एहसास नहीं है। निश्चय ही जो लोग अपने रब के भय से काँपते रहते हैं; ([२३] अल-मुमिनून: 57)Tafseer (तफ़सीर )
५८
وَالَّذِيْنَ هُمْ بِاٰيٰتِ رَبِّهِمْ يُؤْمِنُوْنَ ۙ ٥٨
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- hum
- هُم
- वो
- biāyāti
- بِـَٔايَٰتِ
- आयात पर
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- अपने रब की
- yu'minūna
- يُؤْمِنُونَ
- वो ईमान लाते हैं
और जो लोग अपने रब की आयतों पर ईमान लाते है; ([२३] अल-मुमिनून: 58)Tafseer (तफ़सीर )
५९
وَالَّذِيْنَ هُمْ بِرَبِّهِمْ لَا يُشْرِكُوْنَ ۙ ٥٩
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- hum
- هُم
- वो
- birabbihim
- بِرَبِّهِمْ
- अपने रब के साथ
- lā
- لَا
- नहीं वो शरीक करते
- yush'rikūna
- يُشْرِكُونَ
- नहीं वो शरीक करते
और जो लोग अपने रब के साथ किसी को साझी नहीं ठहराते; ([२३] अल-मुमिनून: 59)Tafseer (तफ़सीर )
६०
وَالَّذِيْنَ يُؤْتُوْنَ مَآ اٰتَوْا وَّقُلُوْبُهُمْ وَجِلَةٌ اَنَّهُمْ اِلٰى رَبِّهِمْ رٰجِعُوْنَ ۙ ٦٠
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- yu'tūna
- يُؤْتُونَ
- देते हैं
- mā
- مَآ
- जो कुछ
- ātaw
- ءَاتَوا۟
- वो देते हैं
- waqulūbuhum
- وَّقُلُوبُهُمْ
- जब कि दिल उनके
- wajilatun
- وَجِلَةٌ
- लरज़ते हैं
- annahum
- أَنَّهُمْ
- कि बेशक वो
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ अपने रब के
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- तरफ़ अपने रब के
- rājiʿūna
- رَٰجِعُونَ
- लौटने वाले हैं
और जो लोग देते है, जो कुछ देते है और हाल यह होता है कि दिल उनके काँप रहे होते है, इसलिए कि उन्हें अपने रब की ओर पलटना है; ([२३] अल-मुमिनून: 60)Tafseer (तफ़सीर )