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सूरा अल-मुमिनून - Page: 5

Al-Mu'minun

(आस्तिक)

४१

فَاَخَذَتْهُمُ الصَّيْحَةُ بِالْحَقِّ فَجَعَلْنٰهُمْ غُثَاۤءًۚ فَبُعْدًا لِّلْقَوْمِ الظّٰلِمِيْنَ ٤١

fa-akhadhathumu
فَأَخَذَتْهُمُ
तो पकड़ लिया उन्हें
l-ṣayḥatu
ٱلصَّيْحَةُ
चिंघाड़ ने
bil-ḥaqi
بِٱلْحَقِّ
साथ हक़ के
fajaʿalnāhum
فَجَعَلْنَٰهُمْ
तो कर दिया हमने उन्हें
ghuthāan
غُثَآءًۚ
कूड़ा-करकट
fabuʿ'dan
فَبُعْدًا
तो दूरी है
lil'qawmi
لِّلْقَوْمِ
उन लोगों के लिए
l-ẓālimīna
ٱلظَّٰلِمِينَ
जो ज़ालिम हैं
फिर घटित होनेवाली बात के अनुसार उन्हें एक प्रचंड आवाज़ ने आ लिया और हमने उन्हें कूड़ा-कर्कट बनाकर रख दिया। अतः फिटकार है, ऐसे अत्याचारी लोगों पर! ([२३] अल-मुमिनून: 41)
Tafseer (तफ़सीर )
४२

ثُمَّ اَنْشَأْنَا مِنْۢ بَعْدِهِمْ قُرُوْنًا اٰخَرِيْنَ ۗ ٤٢

thumma
ثُمَّ
फिर
anshanā
أَنشَأْنَا
उठाईं हमने
min
مِنۢ
उनके बाद
baʿdihim
بَعْدِهِمْ
उनके बाद
qurūnan
قُرُونًا
क़ौमें
ākharīna
ءَاخَرِينَ
दूसरी
फिर हमने उनके पश्चात दूसरी नस्लों को उठाया ([२३] अल-मुमिनून: 42)
Tafseer (तफ़सीर )
४३

مَا تَسْبِقُ مِنْ اُمَّةٍ اَجَلَهَا وَمَا يَسْتَأْخِرُوْنَ ۗ ٤٣

مَا
ना
tasbiqu
تَسْبِقُ
आगे बढ़ सकती है
min
مِنْ
कोई उम्मत
ummatin
أُمَّةٍ
कोई उम्मत
ajalahā
أَجَلَهَا
अपने मुक़र्रर वक़्त से
wamā
وَمَا
और ना
yastakhirūna
يَسْتَـْٔخِرُونَ
वो पीछे रह सकती
कोई समुदाय न तो अपने निर्धारित समय से आगे बढ़ सकता है और न पीछे रह सकता है ([२३] अल-मुमिनून: 43)
Tafseer (तफ़सीर )
४४

ثُمَّ اَرْسَلْنَا رُسُلَنَا تَتْرَاۗ كُلَّمَا جَاۤءَ اُمَّةً رَّسُوْلُهَا كَذَّبُوْهُ فَاَتْبَعْنَا بَعْضَهُمْ بَعْضًا وَّجَعَلْنٰهُمْ اَحَادِيْثَۚ فَبُعْدًا لِّقَوْمٍ لَّا يُؤْمِنُوْنَ ٤٤

thumma
ثُمَّ
फिर
arsalnā
أَرْسَلْنَا
भेजा हमने
rusulanā
رُسُلَنَا
अपने रसूलों को
tatrā
تَتْرَاۖ
पै- दर- पै
kulla
كُلَّ
जब कभी
مَا
जब कभी
jāa
جَآءَ
आया
ummatan
أُمَّةً
किसी उम्मत में
rasūluhā
رَّسُولُهَا
रसूल उसका
kadhabūhu
كَذَّبُوهُۚ
उन्होंने झुठला दिया उसे
fa-atbaʿnā
فَأَتْبَعْنَا
तो पीछे लाए हम
baʿḍahum
بَعْضَهُم
उनके बाज़ को
baʿḍan
بَعْضًا
बाज़ के
wajaʿalnāhum
وَجَعَلْنَٰهُمْ
और बना दिया हमने उन्हें
aḥādītha
أَحَادِيثَۚ
क़िस्से कहानियाँ
fabuʿ'dan
فَبُعْدًا
तो दूरी है
liqawmin
لِّقَوْمٍ
उन लोगों के लिए
لَّا
जो नहीं ईमान लाते
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
जो नहीं ईमान लाते
फिर हमने निरन्तर अपने रसूल भेजे। जब भी किसी समुदाय के पास उसका रसूल आया, तो उसके लोगों ने उसे झुठला दिया। अतः हम एक दूसरे के पीछे (विनाश के लिए) लगाते चले गए और हमने उन्हें ऐसा कर दिया कि वे कहानियाँ होकर रह गए। फिटकार हो उन लोगों पर जो ईमान न लाएँ ([२३] अल-मुमिनून: 44)
Tafseer (तफ़सीर )
४५

ثُمَّ اَرْسَلْنَا مُوْسٰى وَاَخَاهُ هٰرُوْنَ ەۙ بِاٰيٰتِنَا وَسُلْطٰنٍ مُّبِيْنٍۙ ٤٥

thumma
ثُمَّ
फिर
arsalnā
أَرْسَلْنَا
भेजा हमने
mūsā
مُوسَىٰ
मूसा को
wa-akhāhu
وَأَخَاهُ
और उसके भाई
hārūna
هَٰرُونَ
हारून को
biāyātinā
بِـَٔايَٰتِنَا
साथ अपनी निशानियों के
wasul'ṭānin
وَسُلْطَٰنٍ
और दलील
mubīnin
مُّبِينٍ
वाज़ेह के
फिर हमने मूसा और उसके भाई हारून को अपनी निशानियों और खुले प्रमाण के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों की ओर भेजा। ([२३] अल-मुमिनून: 45)
Tafseer (तफ़सीर )
४६

اِلٰى فِرْعَوْنَ وَمَلَا۟ىِٕهٖ فَاسْتَكْبَرُوْا وَكَانُوْا قَوْمًا عَالِيْنَ ۚ ٤٦

ilā
إِلَىٰ
तरफ़ फ़िरऔन
fir'ʿawna
فِرْعَوْنَ
तरफ़ फ़िरऔन
wamala-ihi
وَمَلَإِي۟هِۦ
और उसके सरदारों के
fa-is'takbarū
فَٱسْتَكْبَرُوا۟
तो उन्होंने तकब्बुर किया
wakānū
وَكَانُوا۟
और थे वो
qawman
قَوْمًا
लोग
ʿālīna
عَالِينَ
सरकश
किन्तु उन्होंने अहंकार किया। वे थे ही सरकश लोग ([२३] अल-मुमिनून: 46)
Tafseer (तफ़सीर )
४७

فَقَالُوْٓا اَنُؤْمِنُ لِبَشَرَيْنِ مِثْلِنَا وَقَوْمُهُمَا لَنَا عٰبِدُوْنَ ۚ ٤٧

faqālū
فَقَالُوٓا۟
तो वो कहने लगे
anu'minu
أَنُؤْمِنُ
क्या हम ईमान लाऐं
libasharayni
لِبَشَرَيْنِ
दो इन्सानों पर
mith'linā
مِثْلِنَا
अपने जैसे
waqawmuhumā
وَقَوْمُهُمَا
और क़ौम उन दोनों की
lanā
لَنَا
हमारे लिए
ʿābidūna
عَٰبِدُونَ
ताबेअदार है
तो व कहने लगे, 'क्या हम अपने ही जैसे दो मनुष्यों की बात मान लें, जबकि उनकी क़ौम हमारी ग़ुलाम भी है?' ([२३] अल-मुमिनून: 47)
Tafseer (तफ़सीर )
४८

فَكَذَّبُوْهُمَا فَكَانُوْا مِنَ الْمُهْلَكِيْنَ ٤٨

fakadhabūhumā
فَكَذَّبُوهُمَا
तो उन्होंने झुठला दिया उन दोनों को
fakānū
فَكَانُوا۟
तो हो गए वो
mina
مِنَ
हलाक होने वालों में से
l-muh'lakīna
ٱلْمُهْلَكِينَ
हलाक होने वालों में से
अतः उन्होंने उन दोनों को झुठला दिया और विनष्ट होनेवालों में सम्मिलित होकर रहे ([२३] अल-मुमिनून: 48)
Tafseer (तफ़सीर )
४९

وَلَقَدْ اٰتَيْنَا مُوْسَى الْكِتٰبَ لَعَلَّهُمْ يَهْتَدُوْنَ ٤٩

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
ātaynā
ءَاتَيْنَا
दी हमने
mūsā
مُوسَى
मूसा को
l-kitāba
ٱلْكِتَٰبَ
किताब
laʿallahum
لَعَلَّهُمْ
ताकि वो
yahtadūna
يَهْتَدُونَ
वो हिदायत पाऐं
और हमने मूसा को किताब प्रदान की, ताकि वे लोग मार्ग पा सकें ([२३] अल-मुमिनून: 49)
Tafseer (तफ़सीर )
५०

وَجَعَلْنَا ابْنَ مَرْيَمَ وَاُمَّهٗٓ اٰيَةً وَّاٰوَيْنٰهُمَآ اِلٰى رَبْوَةٍ ذَاتِ قَرَارٍ وَّمَعِيْنٍ ࣖ ٥٠

wajaʿalnā
وَجَعَلْنَا
और बनाया हमने
ib'na
ٱبْنَ
इब्ने मरियम
maryama
مَرْيَمَ
इब्ने मरियम
wa-ummahu
وَأُمَّهُۥٓ
और उसकी माँ को
āyatan
ءَايَةً
एक निशानी
waāwaynāhumā
وَءَاوَيْنَٰهُمَآ
और पनाह दी हमने उन दोनों को
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ बुलन्द जगह के
rabwatin
رَبْوَةٍ
तरफ़ बुलन्द जगह के
dhāti
ذَاتِ
क़रार/सुकून वाली
qarārin
قَرَارٍ
क़रार/सुकून वाली
wamaʿīnin
وَمَعِينٍ
और बहते चश्मे वाली
और मरयम के बेटे और उसकी माँ को हमने एक निशानी बनाया। और हमने उन्हें रहने योग्य स्रोतबाली ऊँची जगह शरण दी, ([२३] अल-मुमिनून: 50)
Tafseer (तफ़सीर )