وَاِنَّ لَكُمْ فِى الْاَنْعَامِ لَعِبْرَةًۗ نُسْقِيْكُمْ مِّمَّا فِيْ بُطُوْنِهَا وَلَكُمْ فِيْهَا مَنَافِعُ كَثِيْرَةٌ وَّمِنْهَا تَأْكُلُوْنَ ۙ ٢١
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- fī
- فِى
- मवेशियों में
- l-anʿāmi
- ٱلْأَنْعَٰمِ
- मवेशियों में
- laʿib'ratan
- لَعِبْرَةًۖ
- अलबत्ता इबरत/ सबक़ है
- nus'qīkum
- نُّسْقِيكُم
- हम पिलाते हैं तुम्हें
- mimmā
- مِّمَّا
- उस से जो
- fī
- فِى
- उनके पेटों में है
- buṭūnihā
- بُطُونِهَا
- उनके पेटों में है
- walakum
- وَلَكُمْ
- और तुम्हारे लिए
- fīhā
- فِيهَا
- उन में
- manāfiʿu
- مَنَٰفِعُ
- फ़ायदे हैं
- kathīratun
- كَثِيرَةٌ
- बहुत से
- wamin'hā
- وَمِنْهَا
- और उन में से
- takulūna
- تَأْكُلُونَ
- तुम खाते हो
और निश्चय ही तुम्हारे लिए चौपायों में भी एक शिक्षा है। उनके पेटों में जो कुछ है उसमें से हम तुम्हें पिलाते है। औऱ तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फ़ायदे है और उन्हें तुम खाते भी हो ([२३] अल-मुमिनून: 21)Tafseer (तफ़सीर )
وَعَلَيْهَا وَعَلَى الْفُلْكِ تُحْمَلُوْنَ ࣖ ٢٢
- waʿalayhā
- وَعَلَيْهَا
- और उन पर
- waʿalā
- وَعَلَى
- और कश्तियों पर
- l-ful'ki
- ٱلْفُلْكِ
- और कश्तियों पर
- tuḥ'malūna
- تُحْمَلُونَ
- तुम सवार किए जाते हो
और उनपर और नौकाओं पर तुम सवार होते हो ([२३] अल-मुमिनून: 22)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ اَرْسَلْنَا نُوْحًا اِلٰى قَوْمِهٖ فَقَالَ يٰقَوْمِ اعْبُدُوا اللّٰهَ مَا لَكُمْ مِّنْ اِلٰهٍ غَيْرُهٗۗ اَفَلَا تَتَّقُوْنَ ٢٣
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- arsalnā
- أَرْسَلْنَا
- भेजा हमने
- nūḥan
- نُوحًا
- नूह को
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ उसकी क़ौम के
- qawmihi
- قَوْمِهِۦ
- तरफ़ उसकी क़ौम के
- faqāla
- فَقَالَ
- तो उसने कहा
- yāqawmi
- يَٰقَوْمِ
- ऐ मेरी क़ौम
- uʿ'budū
- ٱعْبُدُوا۟
- इबादत करो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह की
- mā
- مَا
- नहीं
- lakum
- لَكُم
- तुम्हारे लिए
- min
- مِّنْ
- कोई इलाह ( बरहक़)
- ilāhin
- إِلَٰهٍ
- कोई इलाह ( बरहक़)
- ghayruhu
- غَيْرُهُۥٓۖ
- उसके सिवा
- afalā
- أَفَلَا
- क्या फिर नहीं
- tattaqūna
- تَتَّقُونَ
- तुम डरते
हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा तो उसने कहा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा और कोई इष्ट-पूज्य नहीं है तो क्या तुम डर नहीं रखते?' ([२३] अल-मुमिनून: 23)Tafseer (तफ़सीर )
فَقَالَ الْمَلَؤُا الَّذِيْنَ كَفَرُوْا مِنْ قَوْمِهٖ مَا هٰذَآ اِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْۙ يُرِيْدُ اَنْ يَّتَفَضَّلَ عَلَيْكُمْۗ وَلَوْ شَاۤءَ اللّٰهُ لَاَنْزَلَ مَلٰۤىِٕكَةً ۖمَّا سَمِعْنَا بِهٰذَا فِيْٓ اٰبَاۤىِٕنَا الْاَوَّلِيْنَ ۚ ٢٤
- faqāla
- فَقَالَ
- तो कहा
- l-mala-u
- ٱلْمَلَؤُا۟
- सरदारों ने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- min
- مِن
- उसकी क़ौम में से
- qawmihi
- قَوْمِهِۦ
- उसकी क़ौम में से
- mā
- مَا
- नहीं
- hādhā
- هَٰذَآ
- ये
- illā
- إِلَّا
- मगर
- basharun
- بَشَرٌ
- एक इन्सान
- mith'lukum
- مِّثْلُكُمْ
- तुम्हारे जैसा
- yurīdu
- يُرِيدُ
- जो चाहता है
- an
- أَن
- कि
- yatafaḍḍala
- يَتَفَضَّلَ
- वो फ़ज़ीलत हासिल कर ले
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- shāa
- شَآءَ
- चाहता
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- la-anzala
- لَأَنزَلَ
- अलबत्ता वो उतारता
- malāikatan
- مَلَٰٓئِكَةً
- फ़रिश्ते
- mā
- مَّا
- नहीं
- samiʿ'nā
- سَمِعْنَا
- सुना हमने
- bihādhā
- بِهَٰذَا
- इस बात को
- fī
- فِىٓ
- अपने आबा ओ अजदाद में
- ābāinā
- ءَابَآئِنَا
- अपने आबा ओ अजदाद में
- l-awalīna
- ٱلْأَوَّلِينَ
- पहले
इसपर उनकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया था, कहने लगे, 'यह तो बस तुम्हीं जैसा एक मनुष्य है। चाहता है कि तुमपर श्रेष्ठता प्राप्त करे।''अल्लाह यदि चाहता तो फ़रिश्ते उतार देता। यह बात तो हमने अपने अगले बाप-दादा के समयों से सुनी ही नहीं ([२३] अल-मुमिनून: 24)Tafseer (तफ़सीर )
اِنْ هُوَ اِلَّا رَجُلٌۢ بِهٖ جِنَّةٌ فَتَرَبَّصُوْا بِهٖ حَتّٰى حِيْنٍ ٢٥
- in
- إِنْ
- नहीं
- huwa
- هُوَ
- वो
- illā
- إِلَّا
- मगर
- rajulun
- رَجُلٌۢ
- एक शख़्स
- bihi
- بِهِۦ
- जिस को
- jinnatun
- جِنَّةٌ
- जुनून है
- fatarabbaṣū
- فَتَرَبَّصُوا۟
- तो इन्तज़ार करो
- bihi
- بِهِۦ
- साथ उसके
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- एक वक़्त तक
- ḥīnin
- حِينٍ
- एक वक़्त तक
यह तो बस एक उन्मादग्रस्त व्यक्ति है। अतः एक समय तक इसकी प्रतीक्षा कर लो।' ([२३] अल-मुमिनून: 25)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ رَبِّ انْصُرْنِيْ بِمَا كَذَّبُوْنِ ٢٦
- qāla
- قَالَ
- कहा
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- unṣur'nī
- ٱنصُرْنِى
- मदद फ़रमा मेरी
- bimā
- بِمَا
- उस वजह से जो
- kadhabūni
- كَذَّبُونِ
- उन्होंने झुठलाया मुझे
उसने कहा, 'ऐ मेरे रब! इन्होंने मुझे जो झुठलाया है, इसपर तू मेरी सहायता कर।' ([२३] अल-मुमिनून: 26)Tafseer (तफ़सीर )
فَاَوْحَيْنَآ اِلَيْهِ اَنِ اصْنَعِ الْفُلْكَ بِاَعْيُنِنَا وَوَحْيِنَا فَاِذَا جَاۤءَ اَمْرُنَا وَفَارَ التَّنُّوْرُۙ فَاسْلُكْ فِيْهَا مِنْ كُلٍّ زَوْجَيْنِ اثْنَيْنِ وَاَهْلَكَ اِلَّا مَنْ سَبَقَ عَلَيْهِ الْقَوْلُ مِنْهُمْۚ وَلَا تُخَاطِبْنِيْ فِى الَّذِيْنَ ظَلَمُوْاۚ اِنَّهُمْ مُّغْرَقُوْنَ ٢٧
- fa-awḥaynā
- فَأَوْحَيْنَآ
- पस वही की हम ने
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ उसके
- ani
- أَنِ
- कि
- iṣ'naʿi
- ٱصْنَعِ
- बना
- l-ful'ka
- ٱلْفُلْكَ
- कश्ती
- bi-aʿyuninā
- بِأَعْيُنِنَا
- हमारी निगाहों के सामने
- wawaḥyinā
- وَوَحْيِنَا
- और हमारी वही के मुताबिक़
- fa-idhā
- فَإِذَا
- फिर जब
- jāa
- جَآءَ
- आ जाए
- amrunā
- أَمْرُنَا
- हुक्म हमारा
- wafāra
- وَفَارَ
- और जोश मारे
- l-tanūru
- ٱلتَّنُّورُۙ
- तन्नूर
- fa-us'luk
- فَٱسْلُكْ
- तो दाख़िल कर ले
- fīhā
- فِيهَا
- उस में
- min
- مِن
- हर क़िस्म के
- kullin
- كُلٍّ
- हर क़िस्म के
- zawjayni
- زَوْجَيْنِ
- जोड़े (नर व मादा)
- ith'nayni
- ٱثْنَيْنِ
- दोनों
- wa-ahlaka
- وَأَهْلَكَ
- और अपने अहलो अयाल को
- illā
- إِلَّا
- मगर
- man
- مَن
- जो
- sabaqa
- سَبَقَ
- पहले हो चुकी
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उस पर
- l-qawlu
- ٱلْقَوْلُ
- बात
- min'hum
- مِنْهُمْۖ
- उनमें से
- walā
- وَلَا
- और ना
- tukhāṭib'nī
- تُخَٰطِبْنِى
- तुम बात करना मुझसे
- fī
- فِى
- उनके मामले में जिन्होंने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनके मामले में जिन्होंने
- ẓalamū
- ظَلَمُوٓا۟ۖ
- ज़ुल्म किया
- innahum
- إِنَّهُم
- बेशक वो
- mugh'raqūna
- مُّغْرَقُونَ
- ग़र्क़ किए जाने वाले हैं
तब हमने उसकी ओर प्रकाशना की कि 'हमारी आँखों के सामने और हमारी प्रकाशना के अनुसार नौका बना और फिर जब हमारा आदेश आ जाए और तूफ़ान उमड़ पड़े तो प्रत्येक प्रजाति में से एक-एक जोड़ा उसमें रख ले और अपने लोगों को भी, सिवाय उनके जिनके विरुद्ध पहले फ़ैसला हो चुका है। और अत्याचारियों के विषय में मुझसे बात न करना। वे तो डूबकर रहेंगे ([२३] अल-मुमिनून: 27)Tafseer (तफ़सीर )
فَاِذَا اسْتَوَيْتَ اَنْتَ وَمَنْ مَّعَكَ عَلَى الْفُلْكِ فَقُلِ الْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِيْ نَجّٰىنَا مِنَ الْقَوْمِ الظّٰلِمِيْنَ ٢٨
- fa-idhā
- فَإِذَا
- फिर जब
- is'tawayta
- ٱسْتَوَيْتَ
- सवार हो जाओ तुम
- anta
- أَنتَ
- तुम
- waman
- وَمَن
- और जो
- maʿaka
- مَّعَكَ
- तुम्हारे साथ हैं
- ʿalā
- عَلَى
- कश्ती पर
- l-ful'ki
- ٱلْفُلْكِ
- कश्ती पर
- faquli
- فَقُلِ
- तो कहना
- l-ḥamdu
- ٱلْحَمْدُ
- सब तारीफ़
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह के लिए है
- alladhī
- ٱلَّذِى
- जिस ने
- najjānā
- نَجَّىٰنَا
- निजात दी हमें
- mina
- مِنَ
- उन लोगों से
- l-qawmi
- ٱلْقَوْمِ
- उन लोगों से
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- जो ज़ालिम हैं
फिर जब तू नौका पर सवार हो जाए और तेरे साथी भी तो कह, प्रशंसा है अल्लाह की, जिसने हमें ज़ालिम लोगों से छुटकारा दिया ([२३] अल-मुमिनून: 28)Tafseer (तफ़सीर )
وَقُلْ رَّبِّ اَنْزِلْنِيْ مُنْزَلًا مُّبٰرَكًا وَّاَنْتَ خَيْرُ الْمُنْزِلِيْنَ ٢٩
- waqul
- وَقُل
- और कहना
- rabbi
- رَّبِّ
- ऐ मेरे रब
- anzil'nī
- أَنزِلْنِى
- उतार मुझे
- munzalan
- مُنزَلًا
- उतारने की जगह
- mubārakan
- مُّبَارَكًا
- बाबरकत
- wa-anta
- وَأَنتَ
- और तू
- khayru
- خَيْرُ
- बेहतर है
- l-munzilīna
- ٱلْمُنزِلِينَ
- सब उतारने वालों से
और कह, ऐ मेरे रब! मुझे बरकतवाली जगह उतार। और तू सबसे अच्छा मेज़बान है।' ([२३] अल-मुमिनून: 29)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيٰتٍ وَّاِنْ كُنَّا لَمُبْتَلِيْنَ ٣٠
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- fī
- فِى
- इस में
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इस में
- laāyātin
- لَءَايَٰتٍ
- अलबत्ता निशानियाँ हैं
- wa-in
- وَإِن
- और बेशक
- kunnā
- كُنَّا
- हैं हम
- lamub'talīna
- لَمُبْتَلِينَ
- अलबत्ता आज़माने वाले
निस्संदेह इसमें कितनी ही निशानियाँ हैं और परीक्षा तो हम करते ही है ([२३] अल-मुमिनून: 30)Tafseer (तफ़सीर )