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सूरा अल-मुमिनून - Page: 10

Al-Mu'minun

(आस्तिक)

९१

مَا اتَّخَذَ اللّٰهُ مِنْ وَّلَدٍ وَّمَا كَانَ مَعَهٗ مِنْ اِلٰهٍ اِذًا لَّذَهَبَ كُلُّ اِلٰهٍۢ بِمَا خَلَقَ وَلَعَلَا بَعْضُهُمْ عَلٰى بَعْضٍۗ سُبْحٰنَ اللّٰهِ عَمَّا يَصِفُوْنَ ۙ ٩١

مَا
नहीं
ittakhadha
ٱتَّخَذَ
बनाई
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
min
مِن
कोई औलाद
waladin
وَلَدٍ
कोई औलाद
wamā
وَمَا
और नहीं
kāna
كَانَ
है
maʿahu
مَعَهُۥ
साथ उसके
min
مِنْ
कोई इलाह
ilāhin
إِلَٰهٍۚ
कोई इलाह
idhan
إِذًا
तब
ladhahaba
لَّذَهَبَ
अलबत्ता ले जाता
kullu
كُلُّ
हर
ilāhin
إِلَٰهٍۭ
इलाह
bimā
بِمَا
उसे जो
khalaqa
خَلَقَ
उसने पैदा किया
walaʿalā
وَلَعَلَا
और अलबत्ता चढ़ाई करता
baʿḍuhum
بَعْضُهُمْ
बाज़ उनका
ʿalā
عَلَىٰ
बाज़ पर
baʿḍin
بَعْضٍۚ
बाज़ पर
sub'ḥāna
سُبْحَٰنَ
पाक है
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह
ʿammā
عَمَّا
उससे जो
yaṣifūna
يَصِفُونَ
वो बयान करते हैं
अल्लाह ने अपना कोई बेटा नहीं बनाया और न उसके साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु है। ऐसा होता तो प्रत्येक पूज्य-प्रभु अपनी सृष्टि को लेकर अलग हो जाता और उनमें से एक-दूसरे पर चढ़ाई कर देता। महान और उच्च है अल्लाह उन बातों से, जो वे बयान करते है; ([२३] अल-मुमिनून: 91)
Tafseer (तफ़सीर )
९२

عٰلِمِ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ فَتَعٰلٰى عَمَّا يُشْرِكُوْنَ ࣖ ٩٢

ʿālimi
عَٰلِمِ
जानने वाला है
l-ghaybi
ٱلْغَيْبِ
ग़ैब
wal-shahādati
وَٱلشَّهَٰدَةِ
और हाज़िर का
fataʿālā
فَتَعَٰلَىٰ
पस वो बहुत बुलन्द है
ʿammā
عَمَّا
उस से जो
yush'rikūna
يُشْرِكُونَ
वो शरीक करते हैं
जाननेवाला है छुपे और खुले का। सो वह उच्चतर है वह शिर्क से जो वे करते है! ([२३] अल-मुमिनून: 92)
Tafseer (तफ़सीर )
९३

قُلْ رَّبِّ اِمَّا تُرِيَنِّيْ مَا يُوْعَدُوْنَ ۙ ٩٣

qul
قُل
कह दीजिए
rabbi
رَّبِّ
ऐ मेरे रब
immā
إِمَّا
अगर
turiyannī
تُرِيَنِّى
तू दिखाए मुझे
مَا
जो
yūʿadūna
يُوعَدُونَ
वो वादा किए जाते हैं
कहो, 'ऐ मेरे रब! जिस चीज़ का वादा उनसे किया जा रहा है, वह यदि तू मुझे दिखाए ([२३] अल-मुमिनून: 93)
Tafseer (तफ़सीर )
९४

رَبِّ فَلَا تَجْعَلْنِيْ فِى الْقَوْمِ الظّٰلِمِيْنَ ٩٤

rabbi
رَبِّ
ऐ मेरे रब
falā
فَلَا
तो ना
tajʿalnī
تَجْعَلْنِى
तू करना मुझे
فِى
उन लोगों में
l-qawmi
ٱلْقَوْمِ
उन लोगों में
l-ẓālimīna
ٱلظَّٰلِمِينَ
जो ज़ालिम हैं
तो मेरे रब! मुझे उन अत्याचारी लोगों में सम्मिलित न करना।' ([२३] अल-मुमिनून: 94)
Tafseer (तफ़सीर )
९५

وَاِنَّا عَلٰٓى اَنْ نُّرِيَكَ مَا نَعِدُهُمْ لَقٰدِرُوْنَ ٩٥

wa-innā
وَإِنَّا
और बेशक हम
ʿalā
عَلَىٰٓ
इस( बात) पर
an
أَن
कि
nuriyaka
نُّرِيَكَ
हम दिखाऐं आपको
مَا
जिसका
naʿiduhum
نَعِدُهُمْ
हम वादा कर रहे हैं उनसे
laqādirūna
لَقَٰدِرُونَ
अलबत्ता क़ादिर हैं
निश्चय ही हमें इसकी सामर्थ्य प्राप्त है कि हम उनसे जो वादा कर रहे है, वह तुम्हें दिखा दें। ([२३] अल-मुमिनून: 95)
Tafseer (तफ़सीर )
९६

اِدْفَعْ بِالَّتِيْ هِيَ اَحْسَنُ السَّيِّئَةَۗ نَحْنُ اَعْلَمُ بِمَا يَصِفُوْنَ ٩٦

id'faʿ
ٱدْفَعْ
दूर कर दीजिए
bi-allatī
بِٱلَّتِى
उस (तरीक़े) से
hiya
هِىَ
वो (जो)
aḥsanu
أَحْسَنُ
ज़्यादा अच्छा है
l-sayi-ata
ٱلسَّيِّئَةَۚ
बुराई को
naḥnu
نَحْنُ
हम
aʿlamu
أَعْلَمُ
ख़ूब जानते हैं
bimā
بِمَا
उसे जो
yaṣifūna
يَصِفُونَ
वो बयान करते हैं
बुराई को उस ढंग से दूर करो, जो सबसे उत्तम हो। हम भली-भाँति जानते है जो कुछ बातें वे बनाते है ([२३] अल-मुमिनून: 96)
Tafseer (तफ़सीर )
९७

وَقُلْ رَّبِّ اَعُوْذُ بِكَ مِنْ هَمَزٰتِ الشَّيٰطِيْنِ ۙ ٩٧

waqul
وَقُل
और कह दीजिए
rabbi
رَّبِّ
ऐ मेरे रब
aʿūdhu
أَعُوذُ
मैं पनाह लेता हूँ तेरी
bika
بِكَ
मैं पनाह लेता हूँ तेरी
min
مِنْ
वसवसों से
hamazāti
هَمَزَٰتِ
वसवसों से
l-shayāṭīni
ٱلشَّيَٰطِينِ
शैतानों के
और कहो, 'ऐ मेरे रब! मैं शैतान की उकसाहटों से तेरी शरण चाहता हूँ ([२३] अल-मुमिनून: 97)
Tafseer (तफ़सीर )
९८

وَاَعُوْذُ بِكَ رَبِّ اَنْ يَّحْضُرُوْنِ ٩٨

wa-aʿūdhu
وَأَعُوذُ
और मैं पनाह लेता हूँ तेरी
bika
بِكَ
और मैं पनाह लेता हूँ तेरी
rabbi
رَبِّ
ऐ मेरे रब
an
أَن
इस से कि
yaḥḍurūni
يَحْضُرُونِ
वो हाज़िर हों मेरे पास
और मेरे रब! मैं इससे भी तेरी शरण चाहता हूँ कि वे मेरे पास आएँ।' - ([२३] अल-मुमिनून: 98)
Tafseer (तफ़सीर )
९९

حَتّٰٓى اِذَا جَاۤءَ اَحَدَهُمُ الْمَوْتُ قَالَ رَبِّ ارْجِعُوْنِ ۙ ٩٩

ḥattā
حَتَّىٰٓ
यहाँ तक कि
idhā
إِذَا
जब
jāa
جَآءَ
आ जाएगी
aḥadahumu
أَحَدَهُمُ
उनमें से एक को
l-mawtu
ٱلْمَوْتُ
मौत
qāla
قَالَ
कहेगा
rabbi
رَبِّ
ऐ मेरे रब
ir'jiʿūni
ٱرْجِعُونِ
वापस लौटा दो मुझे
यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मृत्यु आ गई तो वह कहेगा, 'ऐ मेरे रब! मुझे लौटा दे। - ताकि जिस (संसार) को मैं छोड़ आया हूँ ([२३] अल-मुमिनून: 99)
Tafseer (तफ़सीर )
१००

لَعَلِّيْٓ اَعْمَلُ صَالِحًا فِيْمَا تَرَكْتُ كَلَّاۗ اِنَّهَا كَلِمَةٌ هُوَ قَاۤىِٕلُهَاۗ وَمِنْ وَّرَاۤىِٕهِمْ بَرْزَخٌ اِلٰى يَوْمِ يُبْعَثُوْنَ ١٠٠

laʿallī
لَعَلِّىٓ
ताकि मैं
aʿmalu
أَعْمَلُ
मैं अमल करूँ
ṣāliḥan
صَٰلِحًا
नेक
fīmā
فِيمَا
उसमें जो
taraktu
تَرَكْتُۚ
छोड़ आया मैं
kallā
كَلَّآۚ
हरगिज़ नहीं
innahā
إِنَّهَا
बेशक वो
kalimatun
كَلِمَةٌ
एक बात है
huwa
هُوَ
वो
qāiluhā
قَآئِلُهَاۖ
कहने वाला है उसे
wamin
وَمِن
और आगे उनके
warāihim
وَرَآئِهِم
और आगे उनके
barzakhun
بَرْزَخٌ
बरज़ख़ है
ilā
إِلَىٰ
उस दिन तक
yawmi
يَوْمِ
उस दिन तक
yub'ʿathūna
يُبْعَثُونَ
वो सब उठाए जाऐंगे
उसमें अच्छा कर्म करूँ।' कुछ नहीं, यह तो बस एक (व्यर्थ) बात है जो वह कहेगा और उनके पीछे से लेकर उस दिन तक एक रोक लगी हुई है, जब वे दोबारा उठाए जाएँगे ([२३] अल-मुमिनून: 100)
Tafseer (तफ़सीर )