وَلِسُلَيْمٰنَ الرِّيْحَ عَاصِفَةً تَجْرِيْ بِاَمْرِهٖٓ اِلَى الْاَرْضِ الَّتِيْ بٰرَكْنَا فِيْهَاۗ وَكُنَّا بِكُلِّ شَيْءٍ عٰلِمِيْنَ ٨١
- walisulaymāna
- وَلِسُلَيْمَٰنَ
- और सुलैमान के लिए
- l-rīḥa
- ٱلرِّيحَ
- हवा (मुसख़्ख़र की)
- ʿāṣifatan
- عَاصِفَةً
- तुंदो तेज़ चलने वाली
- tajrī
- تَجْرِى
- वो चलती थी
- bi-amrihi
- بِأَمْرِهِۦٓ
- उसके हुक्म से
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ उस ज़मीन के
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- तरफ़ उस ज़मीन के
- allatī
- ٱلَّتِى
- वो जो
- bāraknā
- بَٰرَكْنَا
- बरकत रखी हमने
- fīhā
- فِيهَاۚ
- जिस में
- wakunnā
- وَكُنَّا
- और थे हम
- bikulli
- بِكُلِّ
- हर चीज़ को
- shayin
- شَىْءٍ
- हर चीज़ को
- ʿālimīna
- عَٰلِمِينَ
- जानने वाले
और सुलैमान के लिए हमने तेज वायु को वशीभूत कर दिया था, जो उसके आदेश से उस भूभाग की ओर चलती थी जिसे हमने बरकत दी थी। हम तो हर चीज़ का ज्ञान रखते है ([२१] अल-अम्बिया: 81)Tafseer (तफ़सीर )
وَمِنَ الشَّيٰطِيْنِ مَنْ يَّغُوْصُوْنَ لَهٗ وَيَعْمَلُوْنَ عَمَلًا دُوْنَ ذٰلِكَۚ وَكُنَّا لَهُمْ حٰفِظِيْنَ ۙ ٨٢
- wamina
- وَمِنَ
- और कुछ शयातीन
- l-shayāṭīni
- ٱلشَّيَٰطِينِ
- और कुछ शयातीन
- man
- مَن
- जो
- yaghūṣūna
- يَغُوصُونَ
- ग़ोता लगाते थे
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- wayaʿmalūna
- وَيَعْمَلُونَ
- और वो करते थे
- ʿamalan
- عَمَلًا
- कुछ काम
- dūna
- دُونَ
- अलावा
- dhālika
- ذَٰلِكَۖ
- उसके
- wakunnā
- وَكُنَّا
- और थे हम ही
- lahum
- لَهُمْ
- उनकी
- ḥāfiẓīna
- حَٰفِظِينَ
- निगरानी करने वाले
और कितने ही शैतानों को भी अधीन किया था, जो उसके लिए गोते लगाते और इसके अतिरिक्त दूसरा काम भी करते थे। और हम ही उनको संभालनेवाले थे ([२१] अल-अम्बिया: 82)Tafseer (तफ़सीर )
۞ وَاَيُّوْبَ اِذْ نَادٰى رَبَّهٗٓ اَنِّيْ مَسَّنِيَ الضُّرُّ وَاَنْتَ اَرْحَمُ الرَّاحِمِيْنَ ۚ ٨٣
- wa-ayyūba
- وَأَيُّوبَ
- और अय्यूब
- idh
- إِذْ
- जब
- nādā
- نَادَىٰ
- पुकारा उसने
- rabbahu
- رَبَّهُۥٓ
- अपने रब को
- annī
- أَنِّى
- कि बेशक मैं
- massaniya
- مَسَّنِىَ
- पहुँची है मुझे
- l-ḍuru
- ٱلضُّرُّ
- तक्लीफ़
- wa-anta
- وَأَنتَ
- और तू
- arḥamu
- أَرْحَمُ
- सबसे ज़्यादा रहम वाला है
- l-rāḥimīna
- ٱلرَّٰحِمِينَ
- सब रहम करने वालों से
और अय्यूब पर भी दया दर्शाई। याद करो जबकि उसने अपने रब को पुकारा कि 'मुझे बहुत तकलीफ़ पहुँची है, और तू सबसे बढ़कर दयावान है।' ([२१] अल-अम्बिया: 83)Tafseer (तफ़सीर )
فَاسْتَجَبْنَا لَهٗ فَكَشَفْنَا مَا بِهٖ مِنْ ضُرٍّ وَّاٰتَيْنٰهُ اَهْلَهٗ وَمِثْلَهُمْ مَّعَهُمْ رَحْمَةً مِّنْ عِنْدِنَا وَذِكْرٰى لِلْعٰبِدِيْنَ ۚ ٨٤
- fa-is'tajabnā
- فَٱسْتَجَبْنَا
- तो दुआ क़ुबूल कर ली हमने
- lahu
- لَهُۥ
- उसकी
- fakashafnā
- فَكَشَفْنَا
- तो दूर कर दी हमने
- mā
- مَا
- जो कुछ
- bihi
- بِهِۦ
- उसे
- min
- مِن
- तक्लीफ़ थी
- ḍurrin
- ضُرٍّۖ
- तक्लीफ़ थी
- waātaynāhu
- وَءَاتَيْنَٰهُ
- और दिए हमने उसे
- ahlahu
- أَهْلَهُۥ
- अहल व अयाल उसके
- wamith'lahum
- وَمِثْلَهُم
- और उनकी मानिन्द
- maʿahum
- مَّعَهُمْ
- साथ उसके
- raḥmatan
- رَحْمَةً
- बतौर ए रहमत
- min
- مِّنْ
- अपने पास से
- ʿindinā
- عِندِنَا
- अपने पास से
- wadhik'rā
- وَذِكْرَىٰ
- और नसीहत
- lil'ʿābidīna
- لِلْعَٰبِدِينَ
- इबादत करने वालों के लिए
अतः हमने उसकी सुन ली और जिस तकलीफ़ में वह पड़ा था उसको दूर कर दिया, और हमने उसे उसके परिवार के लोग दिए और उनके साथ उनके जैसे और भी दिए अपने यहाँ दयालुता के रूप में और एक याददिहानी के रूप में बन्दगी करनेवालों के लिए ([२१] अल-अम्बिया: 84)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِسْمٰعِيْلَ وَاِدْرِيْسَ وَذَا الْكِفْلِۗ كُلٌّ مِّنَ الصّٰبِرِيْنَ ۙ ٨٥
- wa-is'māʿīla
- وَإِسْمَٰعِيلَ
- और इस्माइल
- wa-id'rīsa
- وَإِدْرِيسَ
- और इदरीस
- wadhā
- وَذَا
- और ज़ुल किफ़्ल
- l-kif'li
- ٱلْكِفْلِۖ
- और ज़ुल किफ़्ल
- kullun
- كُلٌّ
- सब
- mina
- مِّنَ
- सब्र करने वालों में से थे
- l-ṣābirīna
- ٱلصَّٰبِرِينَ
- सब्र करने वालों में से थे
और इसमाईल और इदरीस और ज़ुलकिफ़्ल पर भी कृपा-स्पष्ट की। इनमें से प्रत्येक धैर्यवानों में से था ([२१] अल-अम्बिया: 85)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَدْخَلْنٰهُمْ فِيْ رَحْمَتِنَاۗ اِنَّهُمْ مِّنَ الصّٰلِحِيْنَ ٨٦
- wa-adkhalnāhum
- وَأَدْخَلْنَٰهُمْ
- और दाख़िल किया हमने उन्हें
- fī
- فِى
- अपनी रहमत में
- raḥmatinā
- رَحْمَتِنَآۖ
- अपनी रहमत में
- innahum
- إِنَّهُم
- यक़ीनन वो
- mina
- مِّنَ
- सालेह लोगों में से थे
- l-ṣāliḥīna
- ٱلصَّٰلِحِينَ
- सालेह लोगों में से थे
औऱ उन्हें हमने अपनी दयालुता में प्रवेश कराया। निस्संदेह वे सब अच्छे लोगों में से थे ([२१] अल-अम्बिया: 86)Tafseer (तफ़सीर )
وَذَا النُّوْنِ اِذْ ذَّهَبَ مُغَاضِبًا فَظَنَّ اَنْ لَّنْ نَّقْدِرَ عَلَيْهِ فَنَادٰى فِى الظُّلُمٰتِ اَنْ لَّآ اِلٰهَ اِلَّآ اَنْتَ سُبْحٰنَكَ اِنِّيْ كُنْتُ مِنَ الظّٰلِمِيْنَ ۚ ٨٧
- wadhā
- وَذَا
- और मछली वाला
- l-nūni
- ٱلنُّونِ
- और मछली वाला
- idh
- إِذ
- जब
- dhahaba
- ذَّهَبَ
- वो चला गया
- mughāḍiban
- مُغَٰضِبًا
- ग़ज़बनाक हो कर
- faẓanna
- فَظَنَّ
- तो उसने समझ लिया
- an
- أَن
- कि
- lan
- لَّن
- हरगिज़ नहीं
- naqdira
- نَّقْدِرَ
- हम क़ादिर होंगे
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उस पर
- fanādā
- فَنَادَىٰ
- तो उसने पुकारा
- fī
- فِى
- अँघेरों में
- l-ẓulumāti
- ٱلظُّلُمَٰتِ
- अँघेरों में
- an
- أَن
- कि
- lā
- لَّآ
- नहीं
- ilāha
- إِلَٰهَ
- कोई इलाह (बरहक़ )
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- anta
- أَنتَ
- तू ही
- sub'ḥānaka
- سُبْحَٰنَكَ
- पाक है तू
- innī
- إِنِّى
- बेशक मैं
- kuntu
- كُنتُ
- हूँ मैं
- mina
- مِنَ
- ज़लिमों में से
- l-ẓālimīna
- ٱلظَّٰلِمِينَ
- ज़लिमों में से
और ज़ुन्नून (मछलीवाले) पर भी दया दर्शाई। याद करो जबकि वह अत्यन्त क्रद्ध होकर चल दिया और समझा कि हम उसे तंगी में न डालेंगे। अन्त में उसनें अँधेरों में पुकारा, 'तेरे सिवा कोई इष्ट-पूज्य नहीं, महिमावान है तू! निस्संदेह मैं दोषी हूँ।' ([२१] अल-अम्बिया: 87)Tafseer (तफ़सीर )
فَاسْتَجَبْنَا لَهٗۙ وَنَجَّيْنٰهُ مِنَ الْغَمِّۗ وَكَذٰلِكَ نُـْۨجِى الْمُؤْمِنِيْنَ ٨٨
- fa-is'tajabnā
- فَٱسْتَجَبْنَا
- तो दुआ क़ुबूल कर ली हमने
- lahu
- لَهُۥ
- उसकी
- wanajjaynāhu
- وَنَجَّيْنَٰهُ
- और निजात दी हमने उसे
- mina
- مِنَ
- ग़म से
- l-ghami
- ٱلْغَمِّۚ
- ग़म से
- wakadhālika
- وَكَذَٰلِكَ
- और इसी तरह
- nunjī
- نُۨجِى
- हम निजात दिया करते हैं
- l-mu'minīna
- ٱلْمُؤْمِنِينَ
- ईमान वालों को
तब हमने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और उसे ग़म से छुटकारा दिया। इसी प्रकार तो हम मोमिनों को छुटकारा दिया करते है ([२१] अल-अम्बिया: 88)Tafseer (तफ़सीर )
وَزَكَرِيَّآ اِذْ نَادٰى رَبَّهٗ رَبِّ لَا تَذَرْنِيْ فَرْدًا وَّاَنْتَ خَيْرُ الْوٰرِثِيْنَ ۚ ٨٩
- wazakariyyā
- وَزَكَرِيَّآ
- और ज़करिया
- idh
- إِذْ
- जब
- nādā
- نَادَىٰ
- उसने पुकारा
- rabbahu
- رَبَّهُۥ
- अपने रब को
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- lā
- لَا
- ना तू छोड़ मुझे
- tadharnī
- تَذَرْنِى
- ना तू छोड़ मुझे
- fardan
- فَرْدًا
- अकेला
- wa-anta
- وَأَنتَ
- और तू ही
- khayru
- خَيْرُ
- बेहतर है
- l-wārithīna
- ٱلْوَٰرِثِينَ
- सब वारिसों में
और ज़करिया पर भी कृपा की। याद करो जबकि उसने अपने रब को पुकारा, 'ऐ मेरे रब! मुझे अकेला न छोड़ यूँ, सबसे अच्छा वारिस तो तू ही है।' ([२१] अल-अम्बिया: 89)Tafseer (तफ़सीर )
فَاسْتَجَبْنَا لَهٗ ۖوَوَهَبْنَا لَهٗ يَحْيٰى وَاَصْلَحْنَا لَهٗ زَوْجَهٗۗ اِنَّهُمْ كَانُوْا يُسٰرِعُوْنَ فِى الْخَيْرٰتِ وَيَدْعُوْنَنَا رَغَبًا وَّرَهَبًاۗ وَكَانُوْا لَنَا خٰشِعِيْنَ ٩٠
- fa-is'tajabnā
- فَٱسْتَجَبْنَا
- तो दुआ क़ुबूल कर ली हमने
- lahu
- لَهُۥ
- उसकी
- wawahabnā
- وَوَهَبْنَا
- और अता किया हमने
- lahu
- لَهُۥ
- उसे
- yaḥyā
- يَحْيَىٰ
- यहया
- wa-aṣlaḥnā
- وَأَصْلَحْنَا
- और दुरुस्त कर दी हमने
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- zawjahu
- زَوْجَهُۥٓۚ
- बीवी उसकी
- innahum
- إِنَّهُمْ
- यक़ीनन वो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- yusāriʿūna
- يُسَٰرِعُونَ
- वो जल्दी करते
- fī
- فِى
- नेकियों में
- l-khayrāti
- ٱلْخَيْرَٰتِ
- नेकियों में
- wayadʿūnanā
- وَيَدْعُونَنَا
- और वो पुकारते थे हमें
- raghaban
- رَغَبًا
- रग़बत
- warahaban
- وَرَهَبًاۖ
- और ख़ौफ़ से
- wakānū
- وَكَانُوا۟
- और थे वो
- lanā
- لَنَا
- हमारे ही लिए
- khāshiʿīna
- خَٰشِعِينَ
- ख़ुशूअ करने वाले
अतः हमने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और उसे याह्या् प्रदान किया और उसके लिए उसकी पत्नी को स्वस्थ कर दिया। निश्चय ही वे नेकी के कामों में एक-दूसरे के मुक़ाबले में जल्दी करते थे। और हमें ईप्सा (चाह) और भय के साथ पुकारते थे और हमारे आगे दबे रहते थे ([२१] अल-अम्बिया: 90)Tafseer (तफ़सीर )