وَنَجَّيْنٰهُ وَلُوْطًا اِلَى الْاَرْضِ الَّتِيْ بٰرَكْناَ فِيْهَا لِلْعٰلَمِيْنَ ٧١
- wanajjaynāhu
- وَنَجَّيْنَٰهُ
- और निजात दी हमने उसे
- walūṭan
- وَلُوطًا
- और लूत को
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ उस ज़मीन के
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- तरफ़ उस ज़मीन के
- allatī
- ٱلَّتِى
- वो जो
- bāraknā
- بَٰرَكْنَا
- बरकत रखी हमने
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- lil'ʿālamīna
- لِلْعَٰلَمِينَ
- तमाम जहान वालों के लिए
और हम उसे और लूत को बचाकर उस भूभाग की ओर निकाल ले गए, जिसमें हमने दुनियावालों के लिए बरकतें रखी थीं ([२१] अल-अम्बिया: 71)Tafseer (तफ़सीर )
وَوَهَبْنَا لَهٗٓ اِسْحٰقَ وَيَعْقُوْبَ نَافِلَةً ۗوَكُلًّا جَعَلْنَا صٰلِحِيْنَ ٧٢
- wawahabnā
- وَوَهَبْنَا
- और अता किया हमने
- lahu
- لَهُۥٓ
- उसे
- is'ḥāqa
- إِسْحَٰقَ
- इस्हाक़
- wayaʿqūba
- وَيَعْقُوبَ
- और याक़ूब
- nāfilatan
- نَافِلَةًۖ
- मज़ीद
- wakullan
- وَكُلًّا
- और सब को
- jaʿalnā
- جَعَلْنَا
- बनाया हमने
- ṣāliḥīna
- صَٰلِحِينَ
- सालेह/नेक
और हमने उसे इसहाक़ प्रदान किया और तदधिक याक़ूब भी। और प्रत्येक को हमने नेक बनाया ([२१] अल-अम्बिया: 72)Tafseer (तफ़सीर )
وَجَعَلْنٰهُمْ اَىِٕمَّةً يَّهْدُوْنَ بِاَمْرِنَا وَاَوْحَيْنَآ اِلَيْهِمْ فِعْلَ الْخَيْرٰتِ وَاِقَامَ الصَّلٰوةِ وَاِيْتَاۤءَ الزَّكٰوةِۚ وَكَانُوْا لَنَا عٰبِدِيْنَ ۙ ٧٣
- wajaʿalnāhum
- وَجَعَلْنَٰهُمْ
- और बनाया हमने उन्हें
- a-immatan
- أَئِمَّةً
- इमाम
- yahdūna
- يَهْدُونَ
- वो रहनुमाई करते थे
- bi-amrinā
- بِأَمْرِنَا
- हमारे हुक्म से
- wa-awḥaynā
- وَأَوْحَيْنَآ
- और वही की हमने
- ilayhim
- إِلَيْهِمْ
- तरफ़ उनके
- fiʿ'la
- فِعْلَ
- करने को
- l-khayrāti
- ٱلْخَيْرَٰتِ
- भलाइयाँ
- wa-iqāma
- وَإِقَامَ
- और क़ायम करना
- l-ṣalati
- ٱلصَّلَوٰةِ
- नमाज़ का
- waītāa
- وَإِيتَآءَ
- और अदा करना
- l-zakati
- ٱلزَّكَوٰةِۖ
- ज़कात का
- wakānū
- وَكَانُوا۟
- और थे वो
- lanā
- لَنَا
- हमारे लिए
- ʿābidīna
- عَٰبِدِينَ
- इबादत गुज़ार
और हमने उन्हें नायक बनाया कि वे हमारे आदेश से मार्ग दिखाते थे और हमने उनकी ओर नेक कामों के करने और नमाज़ की पाबन्दी करने और ज़कात देने की प्रकाशना की, और वे हमारी बन्दगी में लगे हुए थे ([२१] अल-अम्बिया: 73)Tafseer (तफ़सीर )
وَلُوْطًا اٰتَيْنٰهُ حُكْمًا وَّعِلْمًا وَّنَجَّيْنٰهُ مِنَ الْقَرْيَةِ الَّتِيْ كَانَتْ تَّعْمَلُ الْخَبٰۤىِٕثَ ۗاِنَّهُمْ كَانُوْا قَوْمَ سَوْءٍ فٰسِقِيْنَۙ ٧٤
- walūṭan
- وَلُوطًا
- और लूत
- ātaynāhu
- ءَاتَيْنَٰهُ
- अता किया हमने उसे
- ḥuk'man
- حُكْمًا
- हुक्म
- waʿil'man
- وَعِلْمًا
- और इल्म
- wanajjaynāhu
- وَنَجَّيْنَٰهُ
- और निजात दी हमने
- mina
- مِنَ
- उस बस्ती से
- l-qaryati
- ٱلْقَرْيَةِ
- उस बस्ती से
- allatī
- ٱلَّتِى
- वो जो
- kānat
- كَانَت
- थी
- taʿmalu
- تَّعْمَلُ
- वो करती
- l-khabāitha
- ٱلْخَبَٰٓئِثَۗ
- ख़बीस काम
- innahum
- إِنَّهُمْ
- यक़ीनन वो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- qawma
- قَوْمَ
- लोग
- sawin
- سَوْءٍ
- बुरे
- fāsiqīna
- فَٰسِقِينَ
- फ़ासिक़
और रहा लूत तो उसे हमने निर्णय-शक्ति और ज्ञान प्रदान किया और उसे उस बस्ती से छुटकारा दिया जो गन्दे कर्म करती थी। वास्तव में वह बहुत ही बुरी और अवज्ञाकारी क़ौम थी ([२१] अल-अम्बिया: 74)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَدْخَلْنٰهُ فِيْ رَحْمَتِنَاۗ اِنَّهٗ مِنَ الصّٰلِحِيْنَ ࣖ ٧٥
- wa-adkhalnāhu
- وَأَدْخَلْنَٰهُ
- और दाख़िल किया हमने उसे
- fī
- فِى
- अपनी रहमत में
- raḥmatinā
- رَحْمَتِنَآۖ
- अपनी रहमत में
- innahu
- إِنَّهُۥ
- यक़ीनन वो
- mina
- مِنَ
- नेक लोगों में से था
- l-ṣāliḥīna
- ٱلصَّٰلِحِينَ
- नेक लोगों में से था
और उसको हमने अपनी दयालुता में प्रवेश कराया। निस्संदेह वह अच्छे लोगों में से था ([२१] अल-अम्बिया: 75)Tafseer (तफ़सीर )
وَنُوْحًا اِذْ نَادٰى مِنْ قَبْلُ فَاسْتَجَبْنَا لَهٗ فَنَجَّيْنٰهُ وَاَهْلَهٗ مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيْمِ ۚ ٧٦
- wanūḥan
- وَنُوحًا
- और नूह
- idh
- إِذْ
- जब
- nādā
- نَادَىٰ
- उसने पुकारा
- min
- مِن
- इससे पहले
- qablu
- قَبْلُ
- इससे पहले
- fa-is'tajabnā
- فَٱسْتَجَبْنَا
- तो दुआ क़ुबूल कर ली हमने
- lahu
- لَهُۥ
- उसकी
- fanajjaynāhu
- فَنَجَّيْنَٰهُ
- तो निजात दी हमने उसे
- wa-ahlahu
- وَأَهْلَهُۥ
- और उसके घर वालों को
- mina
- مِنَ
- कर्ब/दुख से
- l-karbi
- ٱلْكَرْبِ
- कर्ब/दुख से
- l-ʿaẓīmi
- ٱلْعَظِيمِ
- बहुत बड़े
और नूह की भी चर्चा करो, जबकि उसने इससे पहले हमें पुकारा था, तो हमने उसकी सुन ली और हमने उसे और उसके लोगों को बड़े क्लेश से छुटकारा दिया ([२१] अल-अम्बिया: 76)Tafseer (तफ़सीर )
وَنَصَرْنٰهُ مِنَ الْقَوْمِ الَّذِيْنَ كَذَّبُوْا بِاٰيٰتِنَاۗ اِنَّهُمْ كَانُوْا قَوْمَ سَوْءٍ فَاَغْرَقْنٰهُمْ اَجْمَعِيْنَ ٧٧
- wanaṣarnāhu
- وَنَصَرْنَٰهُ
- और मदद की हमने उसकी
- mina
- مِنَ
- उन लोगों के मुक़ाबले में
- l-qawmi
- ٱلْقَوْمِ
- उन लोगों के मुक़ाबले में
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जिन्होंने
- kadhabū
- كَذَّبُوا۟
- झुठलाया
- biāyātinā
- بِـَٔايَٰتِنَآۚ
- हमारी आयात को
- innahum
- إِنَّهُمْ
- बेशक वो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- qawma
- قَوْمَ
- लोग
- sawin
- سَوْءٍ
- बुरे
- fa-aghraqnāhum
- فَأَغْرَقْنَٰهُمْ
- तो ग़र्क़ कर दिया हमने उनको
- ajmaʿīna
- أَجْمَعِينَ
- सब के सब को
औऱ उस क़ौम के मुक़ाबले में जिसने हमारी आयतों को झुठला दिया था, हमने उसकी सहायता की। वास्तव में वे बुरे लोग थे। अतः हमने उन सबको डूबो दिया ([२१] अल-अम्बिया: 77)Tafseer (तफ़सीर )
وَدَاوٗدَ وَسُلَيْمٰنَ اِذْ يَحْكُمٰنِ فِى الْحَرْثِ اِذْ نَفَشَتْ فِيْهِ غَنَمُ الْقَوْمِۚ وَكُنَّا لِحُكْمِهِمْ شٰهِدِيْنَ ۖ ٧٨
- wadāwūda
- وَدَاوُۥدَ
- और दाऊद
- wasulaymāna
- وَسُلَيْمَٰنَ
- और सुलैमान
- idh
- إِذْ
- जब
- yaḥkumāni
- يَحْكُمَانِ
- वो दोनों फ़ैसला कर रहे थे
- fī
- فِى
- खेत के मामले में
- l-ḥarthi
- ٱلْحَرْثِ
- खेत के मामले में
- idh
- إِذْ
- जब
- nafashat
- نَفَشَتْ
- रात को चर लिया था
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- ghanamu
- غَنَمُ
- बकरियों ने
- l-qawmi
- ٱلْقَوْمِ
- क़ौम की
- wakunnā
- وَكُنَّا
- और थे हम
- liḥuk'mihim
- لِحُكْمِهِمْ
- उनके फ़ैसले को
- shāhidīna
- شَٰهِدِينَ
- देखने वाले
औऱ दाऊद और सुलैमान पर भी हमने कृपा-स्पष्ट की। याद करो जबकि वे दोनों खेती के एक झगड़े का निबटारा कर रहे थे, जब रात को कुछ लोगों की बकरियाँ उसे रौंद गई थीं। और उनका (क़ौम के लोगों का) फ़ैसला हमारे सामने था ([२१] अल-अम्बिया: 78)Tafseer (तफ़सीर )
فَفَهَّمْنٰهَا سُلَيْمٰنَۚ وَكُلًّا اٰتَيْنَا حُكْمًا وَّعِلْمًاۖ وَّسَخَّرْنَا مَعَ دَاوٗدَ الْجِبَالَ يُسَبِّحْنَ وَالطَّيْرَۗ وَكُنَّا فٰعِلِيْنَ ٧٩
- fafahhamnāhā
- فَفَهَّمْنَٰهَا
- पस समझा दिया हमने ये(फ़ैसला)
- sulaymāna
- سُلَيْمَٰنَۚ
- सुलैमान को
- wakullan
- وَكُلًّا
- और हर एक को
- ātaynā
- ءَاتَيْنَا
- दिया हमने
- ḥuk'man
- حُكْمًا
- हुक्म
- waʿil'man
- وَعِلْمًاۚ
- और इल्म
- wasakharnā
- وَسَخَّرْنَا
- और मुसख़्ख़र किए हमने
- maʿa
- مَعَ
- साथ
- dāwūda
- دَاوُۥدَ
- दाऊद के
- l-jibāla
- ٱلْجِبَالَ
- पहाड़
- yusabbiḥ'na
- يُسَبِّحْنَ
- वो तस्बीह करते थे
- wal-ṭayra
- وَٱلطَّيْرَۚ
- और परिन्दे ( भी )
- wakunnā
- وَكُنَّا
- और थे हम ही
- fāʿilīna
- فَٰعِلِينَ
- करने वाले
तब हमने उसे सुलैमान को समझा दिया और यूँ तो हरेक को हमने निर्णय-शक्ति और ज्ञान प्रदान किया था। और दाऊद के साथ हमने पहाड़ों को वशीभूत कर दिया था, जो तसबीह करते थे, और पक्षियों को भी। और ऐसा करनेवाले हम भी थे ([२१] अल-अम्बिया: 79)Tafseer (तफ़सीर )
وَعَلَّمْنٰهُ صَنْعَةَ لَبُوْسٍ لَّكُمْ لِتُحْصِنَكُمْ مِّنْۢ بَأْسِكُمْۚ فَهَلْ اَنْتُمْ شَاكِرُوْنَ ٨٠
- waʿallamnāhu
- وَعَلَّمْنَٰهُ
- और सिखाया हमने उसे
- ṣanʿata
- صَنْعَةَ
- बनाना
- labūsin
- لَبُوسٍ
- लिबास का
- lakum
- لَّكُمْ
- तुम्हारे लिए
- lituḥ'ṣinakum
- لِتُحْصِنَكُم
- ताकि वो बचाए तुम्हें
- min
- مِّنۢ
- तुम्हारी जंग से
- basikum
- بَأْسِكُمْۖ
- तुम्हारी जंग से
- fahal
- فَهَلْ
- तो क्या
- antum
- أَنتُمْ
- तुम
- shākirūna
- شَٰكِرُونَ
- शुक्र गुज़ार हो
और हमने उसे तुम्हारे लिए एक परिधान (बनाने) की शिल्प-कला भी सिखाई थी, ताकि युद्ध में वह तुम्हारी रक्षा करे। फिर क्या तुम आभार मानते हो? ([२१] अल-अम्बिया: 80)Tafseer (तफ़सीर )