وَلَقَدِ اسْتُهْزِئَ بِرُسُلٍ مِّنْ قَبْلِكَ فَحَاقَ بِالَّذِيْنَ سَخِرُوْا مِنْهُمْ مَّا كَانُوْا بِهٖ يَسْتَهْزِءُوْنَ ࣖ ٤١
- walaqadi
- وَلَقَدِ
- अलबत्ता तहक़ीक़
- us'tuh'zi-a
- ٱسْتُهْزِئَ
- मज़ाक़ उड़ाया गया
- birusulin
- بِرُسُلٍ
- कई रसूलों का
- min
- مِّن
- आपसे पहले
- qablika
- قَبْلِكَ
- आपसे पहले
- faḥāqa
- فَحَاقَ
- तो घेर लिया
- bi-alladhīna
- بِٱلَّذِينَ
- उनको जिन्होंने
- sakhirū
- سَخِرُوا۟
- मज़ाक़ उड़ाया
- min'hum
- مِنْهُم
- उनमें से
- mā
- مَّا
- उसने जो
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- bihi
- بِهِۦ
- जिसका
- yastahziūna
- يَسْتَهْزِءُونَ
- वो मज़ाक उड़ाते
तुमसे पहले भी रसूलों की हँसी उड़ाई जा चुकी है, किन्तु उनमें से जिन लोगों ने उनकी हँसी उड़ाई थी उन्हें उसी चीज़ ने आ घेरा, जिसकी वे हँसी उड़ाते थे ([२१] अल-अम्बिया: 41)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ مَنْ يَّكْلَؤُكُمْ بِالَّيْلِ وَالنَّهَارِ مِنَ الرَّحْمٰنِۗ بَلْ هُمْ عَنْ ذِكْرِ رَبِّهِمْ مُّعْرِضُوْنَ ٤٢
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- man
- مَن
- कौन
- yakla-ukum
- يَكْلَؤُكُم
- निग्हबानी कर रहा है तुम्हारी
- bi-al-layli
- بِٱلَّيْلِ
- रात
- wal-nahāri
- وَٱلنَّهَارِ
- और दिन को
- mina
- مِنَ
- रहमान से
- l-raḥmāni
- ٱلرَّحْمَٰنِۗ
- रहमान से
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- hum
- هُمْ
- वो
- ʿan
- عَن
- ज़िक्र से
- dhik'ri
- ذِكْرِ
- ज़िक्र से
- rabbihim
- رَبِّهِم
- अपने रब के
- muʿ'riḍūna
- مُّعْرِضُونَ
- ऐराज़ करने वाले हैं
कहो कि 'कौन रहमान के मुक़ाबले में रात-दिन तुम्हारी रक्षा करेगा? बल्कि बात यह है कि वे अपने रब की याददिहानी से कतरा रहे है ([२१] अल-अम्बिया: 42)Tafseer (तफ़सीर )
اَمْ لَهُمْ اٰلِهَةٌ تَمْنَعُهُمْ مِّنْ دُوْنِنَاۗ لَا يَسْتَطِيْعُوْنَ نَصْرَ اَنْفُسِهِمْ وَلَا هُمْ مِّنَّا يُصْحَبُوْنَ ٤٣
- am
- أَمْ
- या
- lahum
- لَهُمْ
- उनके लिए
- ālihatun
- ءَالِهَةٌ
- कुछ इलाह हैं
- tamnaʿuhum
- تَمْنَعُهُم
- जो बचाते हैं उन्हें
- min
- مِّن
- हमारे सिवा
- dūninā
- دُونِنَاۚ
- हमारे सिवा
- lā
- لَا
- नहीं वो इस्तिताअत रखते
- yastaṭīʿūna
- يَسْتَطِيعُونَ
- नहीं वो इस्तिताअत रखते
- naṣra
- نَصْرَ
- मदद की
- anfusihim
- أَنفُسِهِمْ
- अपनी जानों की
- walā
- وَلَا
- और ना
- hum
- هُم
- वो
- minnā
- مِّنَّا
- हमारी तरफ़ से
- yuṣ'ḥabūna
- يُصْحَبُونَ
- वो साथ दिए जाते हैं
(क्या वे हमें नहीं जानते) या हमसे हटकर उनके और भी इष्ट-पूज्य है, जो उन्हें बचा ले? वे तो स्वयं अपनी ही सहायता नहीं कर सकते है और न हमारे मुक़ाबले में उनका कोई साथ ही दे सकता है ([२१] अल-अम्बिया: 43)Tafseer (तफ़सीर )
بَلْ مَتَّعْنَا هٰٓؤُلَاۤءِ وَاٰبَاۤءَهُمْ حَتّٰى طَالَ عَلَيْهِمُ الْعُمُرُۗ اَفَلَا يَرَوْنَ اَنَّا نَأْتِى الْاَرْضَ نَنْقُصُهَا مِنْ اَطْرَافِهَاۗ اَفَهُمُ الْغٰلِبُوْنَ ٤٤
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- mattaʿnā
- مَتَّعْنَا
- फायदा दिया हमने
- hāulāi
- هَٰٓؤُلَآءِ
- उन लोगों को
- waābāahum
- وَءَابَآءَهُمْ
- और उनके आबाओ अजदाद को
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- ṭāla
- طَالَ
- लम्बी होगई
- ʿalayhimu
- عَلَيْهِمُ
- उन पर
- l-ʿumuru
- ٱلْعُمُرُۗ
- उम्र
- afalā
- أَفَلَا
- क्या फिर नहीं
- yarawna
- يَرَوْنَ
- वो देखते
- annā
- أَنَّا
- कि बेशक हम
- natī
- نَأْتِى
- हम आते हैं
- l-arḍa
- ٱلْأَرْضَ
- ज़मीन को
- nanquṣuhā
- نَنقُصُهَا
- हम घटाते हैं उसे
- min
- مِنْ
- उसके किनारों से
- aṭrāfihā
- أَطْرَافِهَآۚ
- उसके किनारों से
- afahumu
- أَفَهُمُ
- क्या फिर वो
- l-ghālibūna
- ٱلْغَٰلِبُونَ
- ग़ालिब आने वाले हैं
बल्कि बात यह है कि हमने उन्हें और उनके बाप-दादा को सुख-सुविधा प्रदान की, यहाँ तक कि इसी दशा में एक लम्बी मुद्दत उनपर गुज़र गई, तो क्या वे देखते नहीं कि हम इस भूभाग को उसके चतुर्दिक से घटाते हुए बढ़ रहे है? फिर क्या वे अभिमानी रहेंगे? ([२१] अल-अम्बिया: 44)Tafseer (तफ़सीर )
قُلْ اِنَّمَآ اُنْذِرُكُمْ بِالْوَحْيِۖ وَلَا يَسْمَعُ الصُّمُّ الدُّعَاۤءَ اِذَا مَا يُنْذَرُوْنَ ٤٥
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- innamā
- إِنَّمَآ
- बेशक
- undhirukum
- أُنذِرُكُم
- मैं डराता हूँ तुम्हें
- bil-waḥyi
- بِٱلْوَحْىِۚ
- साथ वही के
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- yasmaʿu
- يَسْمَعُ
- सुना करते
- l-ṣumu
- ٱلصُّمُّ
- बहरे
- l-duʿāa
- ٱلدُّعَآءَ
- पुकार को
- idhā
- إِذَا
- जब कभी
- mā
- مَا
- जब कभी
- yundharūna
- يُنذَرُونَ
- वो डराए जाते हैं
कह दो, 'मैं तो बस प्रकाशना के आधार पर तुम्हें सावधान करता हूँ।' किन्तु बहरे पुकार को नहीं सुनते, जबकि उन्हें सावधान किया जाए ([२१] अल-अम्बिया: 45)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَىِٕنْ مَّسَّتْهُمْ نَفْحَةٌ مِّنْ عَذَابِ رَبِّكَ لَيَقُوْلُنَّ يٰوَيْلَنَآ اِنَّا كُنَّا ظٰلِمِيْنَ ٤٦
- wala-in
- وَلَئِن
- और अलबत्ता अगर
- massathum
- مَّسَّتْهُمْ
- छू जाए
- nafḥatun
- نَفْحَةٌ
- एक झोंका
- min
- مِّنْ
- अज़ाब से
- ʿadhābi
- عَذَابِ
- अज़ाब से
- rabbika
- رَبِّكَ
- आपके रब के
- layaqūlunna
- لَيَقُولُنَّ
- अलबत्ता वो ज़रूर कहेंगे
- yāwaylanā
- يَٰوَيْلَنَآ
- हाय अफ़सोस हम पर
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- kunnā
- كُنَّا
- थे हम ही
- ẓālimīna
- ظَٰلِمِينَ
- ज़लिम
और यदि तुम्हारे रब की यातना का कोई झोंका भी उन्हें छू जाए तो वे कहन लगे, 'हाय, हमारा दुर्भाग्य! निस्संदेह हम ज़ालिम थे।' ([२१] अल-अम्बिया: 46)Tafseer (तफ़सीर )
وَنَضَعُ الْمَوَازِيْنَ الْقِسْطَ لِيَوْمِ الْقِيٰمَةِ فَلَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْـًٔاۗ وَاِنْ كَانَ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِّنْ خَرْدَلٍ اَتَيْنَا بِهَاۗ وَكَفٰى بِنَا حَاسِبِيْنَ ٤٧
- wanaḍaʿu
- وَنَضَعُ
- और हम रख देंगे
- l-mawāzīna
- ٱلْمَوَٰزِينَ
- तराज़ू
- l-qis'ṭa
- ٱلْقِسْطَ
- इन्साफ़ वाले
- liyawmi
- لِيَوْمِ
- दिन
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِ
- क़यामत के
- falā
- فَلَا
- तो ना
- tuẓ'lamu
- تُظْلَمُ
- ज़ुल्म किया जाएगा
- nafsun
- نَفْسٌ
- किसी नफ़्स पर
- shayan
- شَيْـًٔاۖ
- कुछ भी
- wa-in
- وَإِن
- और अगरचे
- kāna
- كَانَ
- हो वो
- mith'qāla
- مِثْقَالَ
- बराबर
- ḥabbatin
- حَبَّةٍ
- दाने
- min
- مِّنْ
- राई के
- khardalin
- خَرْدَلٍ
- राई के
- ataynā
- أَتَيْنَا
- हम ले आऐंगे
- bihā
- بِهَاۗ
- उसे
- wakafā
- وَكَفَىٰ
- और काफ़ी हैं
- binā
- بِنَا
- हम
- ḥāsibīna
- حَٰسِبِينَ
- हिसाब लेने वाले
और हम बज़नी, अच्छे न्यायपूर्ण कामों को क़ियामत के दिन के लिए रख रहे है। फिर किसी व्यक्ति पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा, यद्यपि वह (कर्म) राई के दाने के बराबर हो, हम उसे ला उपस्थित करेंगे। और हिसाब करने के लिए हम काफ़ी है ([२१] अल-अम्बिया: 47)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَقَدْ اٰتَيْنَا مُوْسٰى وَهٰرُوْنَ الْفُرْقَانَ وَضِيَاۤءً وَّذِكْرًا لِّلْمُتَّقِيْنَ ۙ ٤٨
- walaqad
- وَلَقَدْ
- और अलबत्ता तहक़ीक़
- ātaynā
- ءَاتَيْنَا
- दिया हमने
- mūsā
- مُوسَىٰ
- मूसा
- wahārūna
- وَهَٰرُونَ
- और हारून को
- l-fur'qāna
- ٱلْفُرْقَانَ
- फ़ुरक़ान
- waḍiyāan
- وَضِيَآءً
- और रौशनी
- wadhik'ran
- وَذِكْرًا
- और ज़िक्र
- lil'muttaqīna
- لِّلْمُتَّقِينَ
- मुत्तक़ी लोगों के लिए
और हम मूसा और हारून को कसौटी और रौशनी और याददिहानी प्रदान कर चुके हैं, उन डर रखनेवालों के लिए ([२१] अल-अम्बिया: 48)Tafseer (तफ़सीर )
الَّذِيْنَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَيْبِ وَهُمْ مِّنَ السَّاعَةِ مُشْفِقُوْنَ ٤٩
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- yakhshawna
- يَخْشَوْنَ
- डरते हैं
- rabbahum
- رَبَّهُم
- अपने रब से
- bil-ghaybi
- بِٱلْغَيْبِ
- ग़ायबाना तौर पर
- wahum
- وَهُم
- और वो
- mina
- مِّنَ
- क़यामत से
- l-sāʿati
- ٱلسَّاعَةِ
- क़यामत से
- mush'fiqūna
- مُشْفِقُونَ
- डरने वाले हैं
जो परोक्ष में रहते हुए अपने रब से डरते है और उन्हें क़ियामत की घड़ी का भय लगा रहता है ([२१] अल-अम्बिया: 49)Tafseer (तफ़सीर )
وَهٰذَا ذِكْرٌ مُّبٰرَكٌ اَنْزَلْنٰهُۗ اَفَاَنْتُمْ لَهٗ مُنْكِرُوْنَ ࣖ ٥٠
- wahādhā
- وَهَٰذَا
- और ये है
- dhik'run
- ذِكْرٌ
- ज़िक्र
- mubārakun
- مُّبَارَكٌ
- बाबरकत
- anzalnāhu
- أَنزَلْنَٰهُۚ
- नाज़िल किया हमने उसे
- afa-antum
- أَفَأَنتُمْ
- क्या फिर तुम
- lahu
- لَهُۥ
- उसका
- munkirūna
- مُنكِرُونَ
- इन्कार करने वाले हो
और वह बरकतवाली अनुस्मृति है, जिसको हमने अवतरित किया है। तो क्या तुम्हें इससे इनकार है ([२१] अल-अम्बिया: 50)Tafseer (तफ़सीर )