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सूरा अल-अम्बिया - Page: 4

Al-Anbya

(इस्लामी पैग़म्बर|नबी)

३१

وَجَعَلْنَا فِى الْاَرْضِ رَوَاسِيَ اَنْ تَمِيْدَ بِهِمْۖ وَجَعَلْنَا فِيْهَا فِجَاجًا سُبُلًا لَّعَلَّهُمْ يَهْتَدُوْنَ ٣١

wajaʿalnā
وَجَعَلْنَا
और बनाया हमने
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
rawāsiya
رَوَٰسِىَ
पहाड़ों को
an
أَن
कि
tamīda
تَمِيدَ
वो ढुलक (ना) जाए
bihim
بِهِمْ
साथ उनके
wajaʿalnā
وَجَعَلْنَا
और बनाए हमने
fīhā
فِيهَا
उसमें
fijājan
فِجَاجًا
कुशादा
subulan
سُبُلًا
रास्ते
laʿallahum
لَّعَلَّهُمْ
ताकि वो
yahtadūna
يَهْتَدُونَ
वो राह पा जाऐं
और हमने धरती में अटल पहाड़ रख दिए, ताकि कहीं ऐसा न हो कि वह उन्हें लेकर ढुलक जाए और हमने उसमें ऐसे दर्रे बनाए कि रास्तों का काम देते है, ताकि वे मार्ग पाएँ ([२१] अल-अम्बिया: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

وَجَعَلْنَا السَّمَاۤءَ سَقْفًا مَّحْفُوْظًاۚ وَهُمْ عَنْ اٰيٰتِهَا مُعْرِضُوْنَ ٣٢

wajaʿalnā
وَجَعَلْنَا
और बनाया हमने
l-samāa
ٱلسَّمَآءَ
आसमान को
saqfan
سَقْفًا
छत
maḥfūẓan
مَّحْفُوظًاۖ
महफ़ूज़
wahum
وَهُمْ
और वो
ʿan
عَنْ
उसकी निशानियों से
āyātihā
ءَايَٰتِهَا
उसकी निशानियों से
muʿ'riḍūna
مُعْرِضُونَ
मूँह मोड़ने वाले हैं
और हमने आकाश को एक सुरक्षित छत बनाया, किन्तु वे है कि उसकी निशानियों से कतरा जाते है ([२१] अल-अम्बिया: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

وَهُوَ الَّذِيْ خَلَقَ الَّيْلَ وَالنَّهَارَ وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَۗ كُلٌّ فِيْ فَلَكٍ يَّسْبَحُوْنَ ٣٣

wahuwa
وَهُوَ
और वो ही है
alladhī
ٱلَّذِى
जिसने
khalaqa
خَلَقَ
बनाया
al-layla
ٱلَّيْلَ
रात
wal-nahāra
وَٱلنَّهَارَ
और दिन को
wal-shamsa
وَٱلشَّمْسَ
और सूरज
wal-qamara
وَٱلْقَمَرَۖ
और चाँद को
kullun
كُلٌّ
सब के सब
فِى
मदार में (अपने)
falakin
فَلَكٍ
मदार में (अपने)
yasbaḥūna
يَسْبَحُونَ
वो तैरते हैं
वही है जिसने रात और दिन बनाए और सूर्य और चन्द्र भी। प्रत्येक अपने-अपने कक्ष में तैर रहा है ([२१] अल-अम्बिया: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

وَمَا جَعَلْنَا لِبَشَرٍ مِّنْ قَبْلِكَ الْخُلْدَۗ اَفَا۟ىِٕنْ مِّتَّ فَهُمُ الْخٰلِدُوْنَ ٣٤

wamā
وَمَا
और नहीं
jaʿalnā
جَعَلْنَا
बनाई हमने
libasharin
لِبَشَرٍ
किसी इन्सान के लिए
min
مِّن
आपसे पहले
qablika
قَبْلِكَ
आपसे पहले
l-khul'da
ٱلْخُلْدَۖ
हमेशगी
afa-in
أَفَإِي۟ن
क्या फिर अगर
mitta
مِّتَّ
आप फ़ौत होगए
fahumu
فَهُمُ
तो वो
l-khālidūna
ٱلْخَٰلِدُونَ
हमेशा रहने वाले
हमने तुमसे पहले भी किसी आदमी के लिए अमरता नहीं रखी। फिर क्या यदि तुम मर गए तो वे सदैव रहनेवाले है? ([२१] अल-अम्बिया: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

كُلُّ نَفْسٍ ذَاۤىِٕقَةُ الْمَوْتِۗ وَنَبْلُوْكُمْ بِالشَّرِّ وَالْخَيْرِ فِتْنَةً ۗوَاِلَيْنَا تُرْجَعُوْنَ ٣٥

kullu
كُلُّ
हर नफ़्स
nafsin
نَفْسٍ
हर नफ़्स
dhāiqatu
ذَآئِقَةُ
चखने वाला है
l-mawti
ٱلْمَوْتِۗ
मौत को
wanablūkum
وَنَبْلُوكُم
और हम मुब्तिला करते हैं तुम्हें
bil-shari
بِٱلشَّرِّ
साथ बुराई
wal-khayri
وَٱلْخَيْرِ
और भलाई के
fit'natan
فِتْنَةًۖ
आज़माने के लिए
wa-ilaynā
وَإِلَيْنَا
और हमारी ही तरफ़
tur'jaʿūna
تُرْجَعُونَ
तुम लौटाए जाओगे
हर जीव को मौत का मज़ा चखना है और हम अच्छी और बुरी परिस्थितियों में डालकर तुम सबकी परीक्षा करते है। अन्ततः तुम्हें हमारी ही ओर पलटकर आना है ([२१] अल-अम्बिया: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

وَاِذَا رَاٰكَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اِنْ يَّتَّخِذُوْنَكَ اِلَّا هُزُوًاۗ اَهٰذَا الَّذِيْ يَذْكُرُ اٰلِهَتَكُمْۚ وَهُمْ بِذِكْرِ الرَّحْمٰنِ هُمْ كٰفِرُوْنَ ٣٦

wa-idhā
وَإِذَا
और जब
raāka
رَءَاكَ
देखते हैं आपको
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوٓا۟
कुफ़्र किया
in
إِن
नहीं
yattakhidhūnaka
يَتَّخِذُونَكَ
वो बनाते आपका
illā
إِلَّا
मगर
huzuwan
هُزُوًا
मज़ाक़
ahādhā
أَهَٰذَا
क्या ये है
alladhī
ٱلَّذِى
वो जो
yadhkuru
يَذْكُرُ
ज़िक्र करता है
ālihatakum
ءَالِهَتَكُمْ
तुम्हारे इलाहों का
wahum
وَهُم
हालाँकि वो
bidhik'ri
بِذِكْرِ
ज़िक्र से
l-raḥmāni
ٱلرَّحْمَٰنِ
रहमान के
hum
هُمْ
वो
kāfirūna
كَٰفِرُونَ
इन्कारी हैं
जिन लोगों ने इनकार किया वे जब तुम्हें देखते है तो तुम्हारा उपहास ही करते है। (कहते है,) 'क्या यही वह व्यक्ति है, जो तुम्हारे इष्ट -पूज्यों की बुराई के साथ चर्चा करता है?' और उनका अपना हाल यह है कि वे रहमान के ज़िक्र (स्मरण) से इनकार करते हैं ([२१] अल-अम्बिया: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

خُلِقَ الْاِنْسَانُ مِنْ عَجَلٍۗ سَاُورِيْكُمْ اٰيٰتِيْ فَلَا تَسْتَعْجِلُوْنِ ٣٧

khuliqa
خُلِقَ
पैदा किया गया
l-insānu
ٱلْإِنسَٰنُ
इन्सान
min
مِنْ
उजलत (के ख़मीर) से
ʿajalin
عَجَلٍۚ
उजलत (के ख़मीर) से
sa-urīkum
سَأُو۟رِيكُمْ
अनक़रीब मैं दिखाऊँगा तुम्हें
āyātī
ءَايَٰتِى
अपनी निशानियाँ
falā
فَلَا
पस ना
tastaʿjilūni
تَسْتَعْجِلُونِ
तुम जल्दी माँगो मुझसे
मनुष्य उतावला पैदा किया गया है। मैं तुम्हें शीघ्र ही अपनी निशानियाँ दिखाए देता हूँ। अतः तुम मुझसे जल्दी मत मचाओ ([२१] अल-अम्बिया: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

وَيَقُوْلُوْنَ مَتٰى هٰذَا الْوَعْدُ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ٣٨

wayaqūlūna
وَيَقُولُونَ
और वो कहते हैं
matā
مَتَىٰ
कब है
hādhā
هَٰذَا
ये
l-waʿdu
ٱلْوَعْدُ
वादा
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
ṣādiqīna
صَٰدِقِينَ
सच्चे
वे कहते है कि 'यह वादा कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?' ([२१] अल-अम्बिया: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

لَوْ يَعْلَمُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا حِيْنَ لَا يَكُفُّوْنَ عَنْ وُّجُوْهِهِمُ النَّارَ وَلَا عَنْ ظُهُوْرِهِمْ وَلَا هُمْ يُنْصَرُوْنَ ٣٩

law
لَوْ
अगर
yaʿlamu
يَعْلَمُ
जानलें
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
ḥīna
حِينَ
जिस वक़्त
لَا
ना वो रोक सकेंगे
yakuffūna
يَكُفُّونَ
ना वो रोक सकेंगे
ʿan
عَن
अपने चहरों से
wujūhihimu
وُجُوهِهِمُ
अपने चहरों से
l-nāra
ٱلنَّارَ
आग को
walā
وَلَا
और ना
ʿan
عَن
अपनी पुश्तों से
ẓuhūrihim
ظُهُورِهِمْ
अपनी पुश्तों से
walā
وَلَا
और ना
hum
هُمْ
वो
yunṣarūna
يُنصَرُونَ
वो मदद किए जाऐंगे
अगर इनकार करनेवालें उस समय को जानते, जबकि वे न तो अपने चहरों की ओर आग को रोक सकेंगे और न अपनी पीठों की ओर से और न उन्हें कोई सहायता ही पहुँच सकेगी तो (यातना की जल्दी न मचाते) ([२१] अल-अम्बिया: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

بَلْ تَأْتِيْهِمْ بَغْتَةً فَتَبْهَتُهُمْ فَلَا يَسْتَطِيْعُوْنَ رَدَّهَا وَلَا هُمْ يُنْظَرُوْنَ ٤٠

bal
بَلْ
बल्कि
tatīhim
تَأْتِيهِم
वो आ जाएगी उनके पास
baghtatan
بَغْتَةً
अचानक
fatabhatuhum
فَتَبْهَتُهُمْ
तो वो मबहूत/हैरान कर देगी उन्हें
falā
فَلَا
तो ना
yastaṭīʿūna
يَسْتَطِيعُونَ
वो इस्तिताअत रखते होंगे
raddahā
رَدَّهَا
उसको रद करने की
walā
وَلَا
और ना
hum
هُمْ
वो
yunẓarūna
يُنظَرُونَ
वो मोहलत दिए जाऐंगे
बल्कि वह अचानक उनपर आएगी और उन्हें स्तब्ध कर देगी। फिर न उसे वे फेर सकेंगे और न उन्हें मुहलत ही मिलेगी ([२१] अल-अम्बिया: 40)
Tafseer (तफ़सीर )