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सूरा अल-अम्बिया - शब्द द्वारा शब्द

Al-Anbya

(इस्लामी पैग़म्बर|नबी)

bismillaahirrahmaanirrahiim

اِقْتَرَبَ لِلنَّاسِ حِسَابُهُمْ وَهُمْ فِيْ غَفْلَةٍ مُّعْرِضُوْنَ ۚ ١

iq'taraba
ٱقْتَرَبَ
क़रीब आ गया
lilnnāsi
لِلنَّاسِ
लोगों के लिए
ḥisābuhum
حِسَابُهُمْ
हिसाब उनका
wahum
وَهُمْ
और वो
فِى
ग़फ़्लत में
ghaflatin
غَفْلَةٍ
ग़फ़्लत में
muʿ'riḍūna
مُّعْرِضُونَ
ऐराज़ करने वाले हैं
निकट आ गया लोगों का हिसाब और वे है कि असावधान कतराते जा रहे है ([२१] अल-अम्बिया: 1)
Tafseer (तफ़सीर )

مَا يَأْتِيْهِمْ مِّنْ ذِكْرٍ مِّنْ رَّبِّهِمْ مُّحْدَثٍ اِلَّا اسْتَمَعُوْهُ وَهُمْ يَلْعَبُوْنَ ۙ ٢

مَا
नहीं
yatīhim
يَأْتِيهِم
आता उनके पास
min
مِّن
कोई ज़िक्र
dhik'rin
ذِكْرٍ
कोई ज़िक्र
min
مِّن
उनके रब की तरफ़ से
rabbihim
رَّبِّهِم
उनके रब की तरफ़ से
muḥ'dathin
مُّحْدَثٍ
नया
illā
إِلَّا
मगर
is'tamaʿūhu
ٱسْتَمَعُوهُ
वो सुनते हैं उसे
wahum
وَهُمْ
जब कि वो
yalʿabūna
يَلْعَبُونَ
वो खैल रहे होते हैं
उनके पास जो ताज़ा अनुस्मृति भी उनके रब की ओर से आती है, उसे वे हँसी-खेल करते हुए ही सुनते है ([२१] अल-अम्बिया: 2)
Tafseer (तफ़सीर )

لَاهِيَةً قُلُوْبُهُمْۗ وَاَسَرُّوا النَّجْوَىۖ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْاۖ هَلْ هٰذَآ اِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْۚ اَفَتَأْتُوْنَ السِّحْرَ وَاَنْتُمْ تُبْصِرُوْنَ ٣

lāhiyatan
لَاهِيَةً
ग़ाफ़िल हैं
qulūbuhum
قُلُوبُهُمْۗ
दिल उनके
wa-asarrū
وَأَسَرُّوا۟
और चुपके-चुपके की
l-najwā
ٱلنَّجْوَى
सरगोशी
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन लोगों ने जिन्होंने
ẓalamū
ظَلَمُوا۟
ज़ुल्म किया
hal
هَلْ
नहीं
hādhā
هَٰذَآ
ये
illā
إِلَّا
मगर
basharun
بَشَرٌ
एक इन्सान
mith'lukum
مِّثْلُكُمْۖ
तुम्हारे जैसा
afatatūna
أَفَتَأْتُونَ
क्या फिर तुम आते हो
l-siḥ'ra
ٱلسِّحْرَ
जादू को
wa-antum
وَأَنتُمْ
जब कि तुम
tub'ṣirūna
تُبْصِرُونَ
तुम देखते हो
उनके दिल दिलचस्पियों में खोए हुए होते है। उन्होंने चुपके-चुपके कानाफूसी की - अर्थात अत्याचार की नीति अपनानेवालों ने कि 'यह तो बस तुम जैसा ही एक मनुष्य है। फिर क्या तुम देखते-बूझते जादू में फँस जाओगे?' ([२१] अल-अम्बिया: 3)
Tafseer (तफ़सीर )

قٰلَ رَبِّيْ يَعْلَمُ الْقَوْلَ فِى السَّمَاۤءِ وَالْاَرْضِۖ وَهُوَ السَّمِيْعُ الْعَلِيْمُ ٤

qāla
قَالَ
कहा
rabbī
رَبِّى
रब मेरा
yaʿlamu
يَعْلَمُ
जानता है
l-qawla
ٱلْقَوْلَ
हर बात को
فِى
आसमान में
l-samāi
ٱلسَّمَآءِ
आसमान में
wal-arḍi
وَٱلْأَرْضِۖ
और ज़मीन में
wahuwa
وَهُوَ
और वो
l-samīʿu
ٱلسَّمِيعُ
ख़ूब सुनने वाला है
l-ʿalīmu
ٱلْعَلِيمُ
ख़ूब जानने वाला है
उसने कहा, 'मेरा रब जानता है उस बात को जो आकाश और धरती में हो। और वह भली-भाँति सब कुछ सुनने, जाननेवाला है।' ([२१] अल-अम्बिया: 4)
Tafseer (तफ़सीर )

بَلْ قَالُوْٓا اَضْغَاثُ اَحْلَامٍۢ بَلِ افْتَرٰىهُ بَلْ هُوَ شَاعِرٌۚ فَلْيَأْتِنَا بِاٰيَةٍ كَمَآ اُرْسِلَ الْاَوَّلُوْنَ ٥

bal
بَلْ
बल्कि
qālū
قَالُوٓا۟
उन्होंने कहा
aḍghāthu
أَضْغَٰثُ
परेशान
aḥlāmin
أَحْلَٰمٍۭ
ख़्वाब हैं
bali
بَلِ
बल्कि
if'tarāhu
ٱفْتَرَىٰهُ
उसने गढ़ लिया है उसे
bal
بَلْ
बल्कि
huwa
هُوَ
वो
shāʿirun
شَاعِرٌ
शायर है
falyatinā
فَلْيَأْتِنَا
पस चाहिए कि लाए हमारे पास
biāyatin
بِـَٔايَةٍ
कोई निशानी
kamā
كَمَآ
जैसा कि
ur'sila
أُرْسِلَ
भेजे गए
l-awalūna
ٱلْأَوَّلُونَ
पहले (रसूल)
नहीं, बल्कि वे कहते है, 'ये तो संभ्रमित स्वप्नं है, बल्कि उसने इसे स्वयं ही घड़ लिया है, बल्कि वह एक कवि है! उसे तो हमारे पास कोई निशानी लानी चाहिए, जैसे कि (निशानियाँ लेकर) पहले के रसूल भेजे गए थे।' ([२१] अल-अम्बिया: 5)
Tafseer (तफ़सीर )

مَآ اٰمَنَتْ قَبْلَهُمْ مِّنْ قَرْيَةٍ اَهْلَكْنٰهَاۚ اَفَهُمْ يُؤْمِنُوْنَ ٦

مَآ
नहीं
āmanat
ءَامَنَتْ
ईमान लाई थी
qablahum
قَبْلَهُم
उनसे पहले
min
مِّن
कोई बस्ती
qaryatin
قَرْيَةٍ
कोई बस्ती
ahlaknāhā
أَهْلَكْنَٰهَآۖ
हलाक कर दिया हमने जिसे
afahum
أَفَهُمْ
क्या फिर वो
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
वो ईमान लाऐंगे
इनसे पहले कोई बस्ती भी, जिसको हमने विनष्ट किया, ईमान न लाई। फिर क्या ये ईमान लाएँगे? ([२१] अल-अम्बिया: 6)
Tafseer (तफ़सीर )

وَمَآ اَرْسَلْنَا قَبْلَكَ اِلَّا رِجَالًا نُّوْحِيْٓ اِلَيْهِمْ فَسْـَٔلُوْٓا اَهْلَ الذِّكْرِ اِنْ كُنْتُمْ لَا تَعْلَمُوْنَ ٧

wamā
وَمَآ
और नहीं
arsalnā
أَرْسَلْنَا
भेजा हमने
qablaka
قَبْلَكَ
आपसे पहले
illā
إِلَّا
मगर
rijālan
رِجَالًا
मर्दों को
nūḥī
نُّوحِىٓ
हम वही करते थे
ilayhim
إِلَيْهِمْۖ
तरफ़ उनके
fasalū
فَسْـَٔلُوٓا۟
पस पूछ लो
ahla
أَهْلَ
अहले ज़िक्र से
l-dhik'ri
ٱلذِّكْرِ
अहले ज़िक्र से
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
لَا
नहीं तुम जानते
taʿlamūna
تَعْلَمُونَ
नहीं तुम जानते
और तुमसे पहले भी हमने पुरुषों ही को रसूल बनाकर भेजा, जिनकी ओर हम प्रकाशना करते थे। - यदि तुम्हें मालूम न हो तो ज़िक्रवालों (किताबवालों) से पूछ लो। - ([२१] अल-अम्बिया: 7)
Tafseer (तफ़सीर )

وَمَا جَعَلْنٰهُمْ جَسَدًا لَّا يَأْكُلُوْنَ الطَّعَامَ وَمَا كَانُوْا خٰلِدِيْنَ ٨

wamā
وَمَا
और नहीं
jaʿalnāhum
جَعَلْنَٰهُمْ
बनाए हमने उनके
jasadan
جَسَدًا
ऐसे जिस्म
لَّا
कि ना वो खाते हों
yakulūna
يَأْكُلُونَ
कि ना वो खाते हों
l-ṭaʿāma
ٱلطَّعَامَ
खाना
wamā
وَمَا
और ना
kānū
كَانُوا۟
थे वो
khālidīna
خَٰلِدِينَ
हमेशा रहने वाले
उनको हमने कोई ऐसा शरीर नहीं दिया था कि वे भोजन न करते हों और न वे सदैव रहनेवाले ही थे ([२१] अल-अम्बिया: 8)
Tafseer (तफ़सीर )

ثُمَّ صَدَقْنٰهُمُ الْوَعْدَ فَاَنْجَيْنٰهُمْ وَمَنْ نَّشَاۤءُ وَاَهْلَكْنَا الْمُسْرِفِيْنَ ٩

thumma
ثُمَّ
फिर
ṣadaqnāhumu
صَدَقْنَٰهُمُ
सच्चा किया हमने उसे
l-waʿda
ٱلْوَعْدَ
वादा
fa-anjaynāhum
فَأَنجَيْنَٰهُمْ
पस निजात दी हमने उन्हें
waman
وَمَن
और जिसे
nashāu
نَّشَآءُ
हमने चाहा
wa-ahlaknā
وَأَهْلَكْنَا
और हलाक कर दिया हमने
l-mus'rifīna
ٱلْمُسْرِفِينَ
हद से बढ़ने वालों को
फिर हमने उनके साथ वादे को सच्चा कर दिखाया और उन्हें हमने छुटकारा दिया, और जिसे हम चाहें उसे छुटकारा मिलता है। और मर्यादाहीनों को हमने विनष्ट कर दिया ([२१] अल-अम्बिया: 9)
Tafseer (तफ़सीर )
१०

لَقَدْ اَنْزَلْنَآ اِلَيْكُمْ كِتٰبًا فِيْهِ ذِكْرُكُمْۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ࣖ ١٠

laqad
لَقَدْ
अलबत्ता तहक़ीक़
anzalnā
أَنزَلْنَآ
नाज़िल की हमने
ilaykum
إِلَيْكُمْ
तरफ़ तुम्हारे
kitāban
كِتَٰبًا
एक किताब
fīhi
فِيهِ
जिसमें
dhik'rukum
ذِكْرُكُمْۖ
ज़िक्र है तुम्हारा
afalā
أَفَلَا
क्या फिर नहीं
taʿqilūna
تَعْقِلُونَ
तुम अक़्ल से काम लेते
लो, हमने तुम्हारी ओर एक किताब अवतरित कर दी है, जिसमें तुम्हारे लिए याददिहानी है। तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? ([२१] अल-अम्बिया: 10)
Tafseer (तफ़सीर )