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सूरा अत-तहा - Page: 3

Taha

(ता हा)

२१

قَالَ خُذْهَا وَلَا تَخَفْۗ سَنُعِيْدُهَا سِيْرَتَهَا الْاُوْلٰى ٢١

qāla
قَالَ
फ़रमाया
khudh'hā
خُذْهَا
पकड़ लो इसे
walā
وَلَا
और ना
takhaf
تَخَفْۖ
तुम डरो
sanuʿīduhā
سَنُعِيدُهَا
अनक़रीब हम लौटा देंगे इसे
sīratahā
سِيرَتَهَا
इसकी हालत पर
l-ūlā
ٱلْأُولَىٰ
पहली
कहा, 'इसे पकड़ ले और डर मत। हम इसे इसकी पहली हालत पर लौटा देंगे ([२०] अत-तहा: 21)
Tafseer (तफ़सीर )
२२

وَاضْمُمْ يَدَكَ اِلٰى جَنَاحِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاۤءَ مِنْ غَيْرِ سُوْۤءٍ اٰيَةً اُخْرٰىۙ ٢٢

wa-uḍ'mum
وَٱضْمُمْ
और मिला लो
yadaka
يَدَكَ
अपने हाथ को
ilā
إِلَىٰ
अपने बाज़ू (पहलू) के साथ
janāḥika
جَنَاحِكَ
अपने बाज़ू (पहलू) के साथ
takhruj
تَخْرُجْ
वो निकलेगा
bayḍāa
بَيْضَآءَ
सफ़ेद/रोशन
min
مِنْ
बग़ैर
ghayri
غَيْرِ
बग़ैर
sūin
سُوٓءٍ
ऐब के
āyatan
ءَايَةً
निशानी
ukh'rā
أُخْرَىٰ
दूसरी
और अपने हाथ अपने बाज़ू की ओर समेट ले। वह बिना किसी ऐब के रौशन दूसरी निशानी के रूप में निकलेगा ([२०] अत-तहा: 22)
Tafseer (तफ़सीर )
२३

لِنُرِيَكَ مِنْ اٰيٰتِنَا الْكُبْرٰى ۚ ٢٣

linuriyaka
لِنُرِيَكَ
ताकि हम दिखाऐं तुझे
min
مِنْ
अपनी निशानियों से
āyātinā
ءَايَٰتِنَا
अपनी निशानियों से
l-kub'rā
ٱلْكُبْرَى
बड़ी-बड़ी
इसलिए कि हम तुझे अपनी बड़ी निशानियाँ दिखाएँ ([२०] अत-तहा: 23)
Tafseer (तफ़सीर )
२४

اِذْهَبْ اِلٰى فِرْعَوْنَ اِنَّهٗ طَغٰى ࣖ ٢٤

idh'hab
ٱذْهَبْ
जाओ
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ फ़िरऔन के
fir'ʿawna
فِرْعَوْنَ
तरफ़ फ़िरऔन के
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
ṭaghā
طَغَىٰ
सरकश हो गया है
तू फ़िरऔन के पास जा। वह बहुत सरकश हो गया है।' ([२०] अत-तहा: 24)
Tafseer (तफ़सीर )
२५

قَالَ رَبِّ اشْرَحْ لِيْ صَدْرِيْ ۙ ٢٥

qāla
قَالَ
कहा
rabbi
رَبِّ
ऐ मेरे रब
ish'raḥ
ٱشْرَحْ
खोल दे
لِى
मेरे लिए
ṣadrī
صَدْرِى
सीना मेरा
उसने निवेदन किया, 'मेरे रब! मेरा सीना मेरे लिए खोल दे ([२०] अत-तहा: 25)
Tafseer (तफ़सीर )
२६

وَيَسِّرْ لِيْٓ اَمْرِيْ ۙ ٢٦

wayassir
وَيَسِّرْ
और आसान कर दे
لِىٓ
मेरे लिए
amrī
أَمْرِى
काम मेरा
और मेरे काम को मेरे लिए आसान कर दे ([२०] अत-तहा: 26)
Tafseer (तफ़सीर )
२७

وَاحْلُلْ عُقْدَةً مِّنْ لِّسَانِيْ ۙ ٢٧

wa-uḥ'lul
وَٱحْلُلْ
और खोल दे
ʿuq'datan
عُقْدَةً
गिरह
min
مِّن
मेरी ज़बान की
lisānī
لِّسَانِى
मेरी ज़बान की
और मेरी ज़बान की गिरह खोल दे। ([२०] अत-तहा: 27)
Tafseer (तफ़सीर )
२८

يَفْقَهُوْا قَوْلِيْ ۖ ٢٨

yafqahū
يَفْقَهُوا۟
(ताकि) वो समझ जाऐं
qawlī
قَوْلِى
बात मेरी
कि वे मेरी बात समझ सकें ([२०] अत-तहा: 28)
Tafseer (तफ़सीर )
२९

وَاجْعَلْ لِّيْ وَزِيْرًا مِّنْ اَهْلِيْ ۙ ٢٩

wa-ij'ʿal
وَٱجْعَل
और बना दे
لِّى
मेरे लिए
wazīran
وَزِيرًا
वज़ीर/मददगार
min
مِّنْ
मेरे घर वालों में से
ahlī
أَهْلِى
मेरे घर वालों में से
और मेरे लिए अपने घरवालों में से एक सहायक नियुक्त कर दें, ([२०] अत-तहा: 29)
Tafseer (तफ़सीर )
३०

هٰرُوْنَ اَخِى ۙ ٣٠

hārūna
هَٰرُونَ
हारून
akhī
أَخِى
मेरे भाई को
हारून को, जो मेरा भाई है ([२०] अत-तहा: 30)
Tafseer (तफ़सीर )