२१
قَالَ خُذْهَا وَلَا تَخَفْۗ سَنُعِيْدُهَا سِيْرَتَهَا الْاُوْلٰى ٢١
- qāla
- قَالَ
- फ़रमाया
- khudh'hā
- خُذْهَا
- पकड़ लो इसे
- walā
- وَلَا
- और ना
- takhaf
- تَخَفْۖ
- तुम डरो
- sanuʿīduhā
- سَنُعِيدُهَا
- अनक़रीब हम लौटा देंगे इसे
- sīratahā
- سِيرَتَهَا
- इसकी हालत पर
- l-ūlā
- ٱلْأُولَىٰ
- पहली
कहा, 'इसे पकड़ ले और डर मत। हम इसे इसकी पहली हालत पर लौटा देंगे ([२०] अत-तहा: 21)Tafseer (तफ़सीर )
२२
وَاضْمُمْ يَدَكَ اِلٰى جَنَاحِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاۤءَ مِنْ غَيْرِ سُوْۤءٍ اٰيَةً اُخْرٰىۙ ٢٢
- wa-uḍ'mum
- وَٱضْمُمْ
- और मिला लो
- yadaka
- يَدَكَ
- अपने हाथ को
- ilā
- إِلَىٰ
- अपने बाज़ू (पहलू) के साथ
- janāḥika
- جَنَاحِكَ
- अपने बाज़ू (पहलू) के साथ
- takhruj
- تَخْرُجْ
- वो निकलेगा
- bayḍāa
- بَيْضَآءَ
- सफ़ेद/रोशन
- min
- مِنْ
- बग़ैर
- ghayri
- غَيْرِ
- बग़ैर
- sūin
- سُوٓءٍ
- ऐब के
- āyatan
- ءَايَةً
- निशानी
- ukh'rā
- أُخْرَىٰ
- दूसरी
और अपने हाथ अपने बाज़ू की ओर समेट ले। वह बिना किसी ऐब के रौशन दूसरी निशानी के रूप में निकलेगा ([२०] अत-तहा: 22)Tafseer (तफ़सीर )
२३
لِنُرِيَكَ مِنْ اٰيٰتِنَا الْكُبْرٰى ۚ ٢٣
- linuriyaka
- لِنُرِيَكَ
- ताकि हम दिखाऐं तुझे
- min
- مِنْ
- अपनी निशानियों से
- āyātinā
- ءَايَٰتِنَا
- अपनी निशानियों से
- l-kub'rā
- ٱلْكُبْرَى
- बड़ी-बड़ी
इसलिए कि हम तुझे अपनी बड़ी निशानियाँ दिखाएँ ([२०] अत-तहा: 23)Tafseer (तफ़सीर )
२४
اِذْهَبْ اِلٰى فِرْعَوْنَ اِنَّهٗ طَغٰى ࣖ ٢٤
- idh'hab
- ٱذْهَبْ
- जाओ
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ फ़िरऔन के
- fir'ʿawna
- فِرْعَوْنَ
- तरफ़ फ़िरऔन के
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- ṭaghā
- طَغَىٰ
- सरकश हो गया है
तू फ़िरऔन के पास जा। वह बहुत सरकश हो गया है।' ([२०] अत-तहा: 24)Tafseer (तफ़सीर )
२५
قَالَ رَبِّ اشْرَحْ لِيْ صَدْرِيْ ۙ ٢٥
- qāla
- قَالَ
- कहा
- rabbi
- رَبِّ
- ऐ मेरे रब
- ish'raḥ
- ٱشْرَحْ
- खोल दे
- lī
- لِى
- मेरे लिए
- ṣadrī
- صَدْرِى
- सीना मेरा
उसने निवेदन किया, 'मेरे रब! मेरा सीना मेरे लिए खोल दे ([२०] अत-तहा: 25)Tafseer (तफ़सीर )
२६
وَيَسِّرْ لِيْٓ اَمْرِيْ ۙ ٢٦
- wayassir
- وَيَسِّرْ
- और आसान कर दे
- lī
- لِىٓ
- मेरे लिए
- amrī
- أَمْرِى
- काम मेरा
और मेरे काम को मेरे लिए आसान कर दे ([२०] अत-तहा: 26)Tafseer (तफ़सीर )
२७
وَاحْلُلْ عُقْدَةً مِّنْ لِّسَانِيْ ۙ ٢٧
- wa-uḥ'lul
- وَٱحْلُلْ
- और खोल दे
- ʿuq'datan
- عُقْدَةً
- गिरह
- min
- مِّن
- मेरी ज़बान की
- lisānī
- لِّسَانِى
- मेरी ज़बान की
और मेरी ज़बान की गिरह खोल दे। ([२०] अत-तहा: 27)Tafseer (तफ़सीर )
२८
يَفْقَهُوْا قَوْلِيْ ۖ ٢٨
- yafqahū
- يَفْقَهُوا۟
- (ताकि) वो समझ जाऐं
- qawlī
- قَوْلِى
- बात मेरी
कि वे मेरी बात समझ सकें ([२०] अत-तहा: 28)Tafseer (तफ़सीर )
२९
وَاجْعَلْ لِّيْ وَزِيْرًا مِّنْ اَهْلِيْ ۙ ٢٩
- wa-ij'ʿal
- وَٱجْعَل
- और बना दे
- lī
- لِّى
- मेरे लिए
- wazīran
- وَزِيرًا
- वज़ीर/मददगार
- min
- مِّنْ
- मेरे घर वालों में से
- ahlī
- أَهْلِى
- मेरे घर वालों में से
और मेरे लिए अपने घरवालों में से एक सहायक नियुक्त कर दें, ([२०] अत-तहा: 29)Tafseer (तफ़सीर )
३०
هٰرُوْنَ اَخِى ۙ ٣٠
- hārūna
- هَٰرُونَ
- हारून
- akhī
- أَخِى
- मेरे भाई को
हारून को, जो मेरा भाई है ([२०] अत-तहा: 30)Tafseer (तफ़सीर )