قَالَ اِنَّهٗ يَقُوْلُ اِنَّهَا بَقَرَةٌ لَّا ذَلُوْلٌ تُثِيْرُ الْاَرْضَ وَلَا تَسْقِى الْحَرْثَۚ مُسَلَّمَةٌ لَّاشِيَةَ فِيْهَا ۗ قَالُوا الْـٰٔنَ جِئْتَ بِالْحَقِّ فَذَبَحُوْهَا وَمَا كَادُوْا يَفْعَلُوْنَ ࣖ ٧١
- qāla
- قَالَ
- कहा
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- yaqūlu
- يَقُولُ
- वो फ़रमाता है
- innahā
- إِنَّهَا
- बेशक वो
- baqaratun
- بَقَرَةٌ
- ऐसी गाय हो
- lā
- لَّا
- ना
- dhalūlun
- ذَلُولٌ
- जोती हुई हो
- tuthīru
- تُثِيرُ
- कि वो हल चलाती हो
- l-arḍa
- ٱلْأَرْضَ
- ज़मीन में
- walā
- وَلَا
- और ना
- tasqī
- تَسْقِى
- वो सैराब करती हो
- l-ḥartha
- ٱلْحَرْثَ
- खेती को
- musallamatun
- مُسَلَّمَةٌ
- सही सलामत हो
- lā
- لَّا
- ना हो
- shiyata
- شِيَةَ
- कोई दाग़
- fīhā
- فِيهَاۚ
- उसमें
- qālū
- قَالُوا۟
- उन्होंने कहा
- l-āna
- ٱلْـَٰٔنَ
- अब
- ji'ta
- جِئْتَ
- लाया है तू
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّۚ
- हक़ को
- fadhabaḥūhā
- فَذَبَحُوهَا
- फिर उन्होंने ज़िबाह किया उसे
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kādū
- كَادُوا۟
- वो क़रीब थे कि
- yafʿalūna
- يَفْعَلُونَ
- वो करते
उसने कहा, ' वह कहता हैं कि वह ऐसा गाय है जो सधाई हुई नहीं है कि भूमि जोतती हो, और न वह खेत को पानी देती है, ठीक-ठाक है, उसमें किसी दूसरे रंग की मिलावट नहीं है।' बोले, 'अब तुमने ठीक बात बताई है।' फिर उन्होंने उसे ज़ब्ह किया, जबकि वे करना नहीं चाहते थे ([२] अल बकराह: 71)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذْ قَتَلْتُمْ نَفْسًا فَادّٰرَءْتُمْ فِيْهَا ۗ وَاللّٰهُ مُخْرِجٌ مَّا كُنْتُمْ تَكْتُمُوْنَ ۚ ٧٢
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- qataltum
- قَتَلْتُمْ
- क़त्ल किया तुमने
- nafsan
- نَفْسًا
- एक नफ़्स को
- fa-iddāratum
- فَٱدَّٰرَْٰٔتُمْ
- फिर एक दूसरे पर डालने लगे तुम
- fīhā
- فِيهَاۖ
- उस (के बारे) में
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- mukh'rijun
- مُخْرِجٌ
- निकालने वाला था
- mā
- مَّا
- जो
- kuntum
- كُنتُمْ
- थे तुम
- taktumūna
- تَكْتُمُونَ
- तुम छुपाते
और याद करो जब तुमने एक व्यक्ति की हत्या कर दी, फिर उस सिलसिले में तुमने टाल-मटोल से काम लिया - जबकि जिसको तुम छिपा रहे थे, अल्लाह उसे खोल देनेवाला था ([२] अल बकराह: 72)Tafseer (तफ़सीर )
فَقُلْنَا اضْرِبُوْهُ بِبَعْضِهَاۗ كَذٰلِكَ يُحْيِ اللّٰهُ الْمَوْتٰى وَيُرِيْكُمْ اٰيٰتِهٖ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُوْنَ ٧٣
- faqul'nā
- فَقُلْنَا
- पस कहा हमने
- iḍ'ribūhu
- ٱضْرِبُوهُ
- मारो उसे
- bibaʿḍihā
- بِبَعْضِهَاۚ
- साथ उसके बाज़ हिस्से के
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- yuḥ'yī
- يُحْىِ
- ज़िन्दा करेगा
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- l-mawtā
- ٱلْمَوْتَىٰ
- मुर्दों को
- wayurīkum
- وَيُرِيكُمْ
- और वो दिखाता है तुम्हें
- āyātihi
- ءَايَٰتِهِۦ
- अपनी निशानियाँ
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- taʿqilūna
- تَعْقِلُونَ
- तुम अक़्ल से काम लो
तो हमने कहा, 'उसे उसके एक हिस्से से मारो।' इस प्रकार अल्लाह मुर्दों को जीवित करता है और तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है, ताकि तुम समझो ([२] अल बकराह: 73)Tafseer (तफ़सीर )
ثُمَّ قَسَتْ قُلُوْبُكُمْ مِّنْۢ بَعْدِ ذٰلِكَ فَهِيَ كَالْحِجَارَةِ اَوْ اَشَدُّ قَسْوَةً ۗ وَاِنَّ مِنَ الْحِجَارَةِ لَمَا يَتَفَجَّرُ مِنْهُ الْاَنْهٰرُ ۗ وَاِنَّ مِنْهَا لَمَا يَشَّقَّقُ فَيَخْرُجُ مِنْهُ الْمَاۤءُ ۗوَاِنَّ مِنْهَا لَمَا يَهْبِطُ مِنْ خَشْيَةِ اللّٰهِ ۗوَمَا اللّٰهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُوْنَ ٧٤
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- qasat
- قَسَتْ
- सख़्त हो गए
- qulūbukum
- قُلُوبُكُم
- दिल तुम्हारे
- min
- مِّنۢ
- बाद
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसके
- fahiya
- فَهِىَ
- तो वो
- kal-ḥijārati
- كَٱلْحِجَارَةِ
- पत्थरों की तरह हैं
- aw
- أَوْ
- या
- ashaddu
- أَشَدُّ
- ज़्यादा शदीद
- qaswatan
- قَسْوَةًۚ
- सख़्ती में
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- mina
- مِنَ
- बाज़ पत्थर
- l-ḥijārati
- ٱلْحِجَارَةِ
- बाज़ पत्थर
- lamā
- لَمَا
- अलबत्ता वो हैं जो
- yatafajjaru
- يَتَفَجَّرُ
- फूट पड़ती हैं
- min'hu
- مِنْهُ
- उनसे
- l-anhāru
- ٱلْأَنْهَٰرُۚ
- नहरें
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- min'hā
- مِنْهَا
- कुछ उनमें से
- lamā
- لَمَا
- अलबत्ता वो हैं जो
- yashaqqaqu
- يَشَّقَّقُ
- फट जाते हैं
- fayakhruju
- فَيَخْرُجُ
- फिर निकल आता है
- min'hu
- مِنْهُ
- उनसे
- l-māu
- ٱلْمَآءُۚ
- पानी
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- min'hā
- مِنْهَا
- कुछ उनमें से
- lamā
- لَمَا
- अलबत्ता वो हैं जो
- yahbiṭu
- يَهْبِطُ
- गिर पड़ते हैं
- min
- مِنْ
- ख़ौफ़ से
- khashyati
- خَشْيَةِ
- ख़ौफ़ से
- l-lahi
- ٱللَّهِۗ
- अल्लाह के
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- bighāfilin
- بِغَٰفِلٍ
- ग़ाफ़िल
- ʿammā
- عَمَّا
- उससे जो
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते हो
फिर इसके पश्चात भी तुम्हारे दिल कठोर हो गए, तो वे पत्थरों की तरह हो गए बल्कि उनसे भी अधिक कठोर; क्योंकि कुछ पत्थर ऐसे भी होते है जिनसे नहरें फूट निकलती है, और कुछ ऐसे भी होते है कि फट जाते है तो उनमें से पानी निकलने लगता है, और उनमें से कुछ ऐसे भी होते है जो अल्लाह के भय से गिर जाते है। और अल्लाह, जो कुछ तुम कर रहे हो, उससे बेखबर नहीं है ([२] अल बकराह: 74)Tafseer (तफ़सीर )
۞ اَفَتَطْمَعُوْنَ اَنْ يُّؤْمِنُوْا لَكُمْ وَقَدْ كَانَ فَرِيْقٌ مِّنْهُمْ يَسْمَعُوْنَ كَلَامَ اللّٰهِ ثُمَّ يُحَرِّفُوْنَهٗ مِنْۢ بَعْدِ مَا عَقَلُوْهُ وَهُمْ يَعْلَمُوْنَ ٧٥
- afataṭmaʿūna
- أَفَتَطْمَعُونَ
- क्या फिर तुम तमा रखते हो
- an
- أَن
- कि
- yu'minū
- يُؤْمِنُوا۟
- वो ईमान लाऐंगे
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- waqad
- وَقَدْ
- हालाँकि तहक़ीक़
- kāna
- كَانَ
- है
- farīqun
- فَرِيقٌ
- एक गिरोह (के लोग)
- min'hum
- مِّنْهُمْ
- उनमें से
- yasmaʿūna
- يَسْمَعُونَ
- वो सुनते हैं
- kalāma
- كَلَٰمَ
- कलाम
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह का
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- yuḥarrifūnahu
- يُحَرِّفُونَهُۥ
- वो तहरीफ़ कर डालते हैं उसमें
- min
- مِنۢ
- बाद उसके
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद उसके
- mā
- مَا
- जो
- ʿaqalūhu
- عَقَلُوهُ
- उन्होंने समझ लिया उसे
- wahum
- وَهُمْ
- जबकि वो
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- वो इल्म रखते हैं
तो क्या तुम इस लालच में हो कि वे तुम्हारी बात मान लेंगे, जबकि उनमें से कुछ लोग अल्लाह का कलाम सुनते रहे हैं, फिर उसे भली-भाँति समझ लेने के पश्चात जान-बूझकर उसमें परिवर्तन करते रहे? ([२] अल बकराह: 75)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا لَقُوا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا قَالُوْٓا اٰمَنَّاۚ وَاِذَا خَلَا بَعْضُهُمْ اِلٰى بَعْضٍ قَالُوْٓا اَتُحَدِّثُوْنَهُمْ بِمَا فَتَحَ اللّٰهُ عَلَيْكُمْ لِيُحَاۤجُّوْكُمْ بِهٖ عِنْدَ رَبِّكُمْ ۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ٧٦
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- laqū
- لَقُوا۟
- वो मुलाक़ात करते हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनसे जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- qālū
- قَالُوٓا۟
- वो कहते हैं
- āmannā
- ءَامَنَّا
- ईमान लाए हम
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- khalā
- خَلَا
- अलेहदा होते हैं
- baʿḍuhum
- بَعْضُهُمْ
- बाज़ उनके
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ बाज़ के
- baʿḍin
- بَعْضٍ
- तरफ़ बाज़ के
- qālū
- قَالُوٓا۟
- वो कहते हैं
- atuḥaddithūnahum
- أَتُحَدِّثُونَهُم
- क्या तुम बातें बताते हो उन्हें
- bimā
- بِمَا
- जो
- fataḥa
- فَتَحَ
- खोल दीं हैं
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- liyuḥājjūkum
- لِيُحَآجُّوكُم
- ताकि वो झगड़ा करें तुमसे
- bihi
- بِهِۦ
- साथ उसके
- ʿinda
- عِندَ
- पास
- rabbikum
- رَبِّكُمْۚ
- तुम्हारे रब के
- afalā
- أَفَلَا
- क्या फिर नहीं
- taʿqilūna
- تَعْقِلُونَ
- तुम अक़्ल से काम लेते
और जब वे ईमान लानेवाले से मिलते है तो कहते हैं, 'हम भी ईमान रखते हैं', और जब आपस में एक-दूसरे से एकान्त में मिलते है तो कहते है, 'क्या तुम उन्हें वे बातें, जो अल्लाह ने तुम पर खोली, बता देते हो कि वे उनके द्वारा तुम्हारे रब के यहाँ हुज्जत में तुम्हारा मुक़ाबिला करें? तो क्या तुम समझते नहीं!' ([२] अल बकराह: 76)Tafseer (तफ़सीर )
اَوَلَا يَعْلَمُوْنَ اَنَّ اللّٰهَ يَعْلَمُ مَا يُسِرُّوْنَ وَمَا يُعْلِنُوْنَ ٧٧
- awalā
- أَوَلَا
- क्या भला नहीं
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- वो इल्म रखते
- anna
- أَنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yaʿlamu
- يَعْلَمُ
- जानता है
- mā
- مَا
- जो
- yusirrūna
- يُسِرُّونَ
- वो छुपाते हैं
- wamā
- وَمَا
- और जो
- yuʿ'linūna
- يُعْلِنُونَ
- वो ज़ाहिर करते हैं
क्या वे जानते नहीं कि अल्लाह वह सब कुछ जानता है, जो कुछ वे छिपाते और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं? ([२] अल बकराह: 77)Tafseer (तफ़सीर )
وَمِنْهُمْ اُمِّيُّوْنَ لَا يَعْلَمُوْنَ الْكِتٰبَ اِلَّآ اَمَانِيَّ وَاِنْ هُمْ اِلَّا يَظُنُّوْنَ ٧٨
- wamin'hum
- وَمِنْهُمْ
- और उनमें से कुछ
- ummiyyūna
- أُمِّيُّونَ
- अनपढ़ हैं
- lā
- لَا
- नहीं वो इल्म रखते
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- नहीं वो इल्म रखते
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब का
- illā
- إِلَّآ
- सिवाय
- amāniyya
- أَمَانِىَّ
- तमन्नाओं के
- wa-in
- وَإِنْ
- और नहीं
- hum
- هُمْ
- वो
- illā
- إِلَّا
- मगर
- yaẓunnūna
- يَظُنُّونَ
- वो गुमान करते
और उनमें सामान्य बेपढ़े भी हैं जिन्हें किताब का ज्ञान नहीं है, बस कुछ कामनाओं एवं आशाओं को धर्म जानते हैं, और वे तो बस अटकल से काम लेते हैं ([२] अल बकराह: 78)Tafseer (तफ़सीर )
فَوَيْلٌ لِّلَّذِيْنَ يَكْتُبُوْنَ الْكِتٰبَ بِاَيْدِيْهِمْ ثُمَّ يَقُوْلُوْنَ هٰذَا مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ لِيَشْتَرُوْا بِهٖ ثَمَنًا قَلِيْلًا ۗفَوَيْلٌ لَّهُمْ مِّمَّا كَتَبَتْ اَيْدِيْهِمْ وَوَيْلٌ لَّهُمْ مِّمَّا يَكْسِبُوْنَ ٧٩
- fawaylun
- فَوَيْلٌ
- पस हलाकत है
- lilladhīna
- لِّلَّذِينَ
- उनके लिए जो
- yaktubūna
- يَكْتُبُونَ
- वो लिखते हैं
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब को
- bi-aydīhim
- بِأَيْدِيهِمْ
- अपने हाथों से
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- yaqūlūna
- يَقُولُونَ
- वो कहते हैं
- hādhā
- هَٰذَا
- ये
- min
- مِنْ
- पास से है
- ʿindi
- عِندِ
- पास से है
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- liyashtarū
- لِيَشْتَرُوا۟
- ताकि वो ले लें
- bihi
- بِهِۦ
- बदले उसके
- thamanan
- ثَمَنًا
- क़ीमत
- qalīlan
- قَلِيلًاۖ
- थोड़ी
- fawaylun
- فَوَيْلٌ
- पस हलाकत है
- lahum
- لَّهُم
- उनके लिए
- mimmā
- مِّمَّا
- बवजह उसके जो
- katabat
- كَتَبَتْ
- लिखा
- aydīhim
- أَيْدِيهِمْ
- उनके हाथों ने
- wawaylun
- وَوَيْلٌ
- और हलाकत है
- lahum
- لَّهُم
- उनके लिए
- mimmā
- مِّمَّا
- बवजह उसके जो
- yaksibūna
- يَكْسِبُونَ
- वो कमाते हैं
तो विनाश और तबाही है उन लोगों के लिए जो अपने हाथों से किताब लिखते हैं फिर कहते हैं, 'यह अल्लाह की ओर से है', ताकि उसके द्वारा थोड़ा मूल्य प्राप्त कर लें। तो तबाही है उनके हाथों ने लिखा और तबाही है उनके लिए उसके कारण जो वे कमा रहे हैं ([२] अल बकराह: 79)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَالُوْا لَنْ تَمَسَّنَا النَّارُ اِلَّآ اَيَّامًا مَّعْدُوْدَةً ۗ قُلْ اَتَّخَذْتُمْ عِنْدَ اللّٰهِ عَهْدًا فَلَنْ يُّخْلِفَ اللّٰهُ عَهْدَهٗٓ اَمْ تَقُوْلُوْنَ عَلَى اللّٰهِ مَا لَا تَعْلَمُوْنَ ٨٠
- waqālū
- وَقَالُوا۟
- और उन्होंने कहा
- lan
- لَن
- हरगिज़ नहीं
- tamassanā
- تَمَسَّنَا
- छुएगी हमें
- l-nāru
- ٱلنَّارُ
- आग
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- ayyāman
- أَيَّامًا
- दिन
- maʿdūdatan
- مَّعْدُودَةًۚ
- गिने चुने
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- attakhadhtum
- أَتَّخَذْتُمْ
- क्या ले रखा है तुमने
- ʿinda
- عِندَ
- पास
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- ʿahdan
- عَهْدًا
- कोई अहद
- falan
- فَلَن
- तो हरगिज़ नहीं
- yukh'lifa
- يُخْلِفَ
- ख़िलाफ़ करेगा
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- ʿahdahu
- عَهْدَهُۥٓۖ
- अपने अहद के
- am
- أَمْ
- या
- taqūlūna
- تَقُولُونَ
- तुम कहते हो
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- mā
- مَا
- जो
- lā
- لَا
- नहीं तुम इल्म रखते
- taʿlamūna
- تَعْلَمُونَ
- नहीं तुम इल्म रखते
वे कहते है, 'जहन्नम की आग हमें नहीं छू सकती, हाँ, कुछ गिने-चुने दिनों की बात और है।' कहो, 'क्या तुमने अल्लाह से कोई वचन ले रखा है? फिर तो अल्लाह कदापि अपने वचन के विरुद्ध नहीं जा सकता? या तुम अल्लाह के ज़िम्मे डालकर ऐसी बात कहते हो जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं? ([२] अल बकराह: 80)Tafseer (तफ़सीर )