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सूरा अल बकराह - Page: 7

Al-Baqarah

(गाय)

६१

وَاِذْ قُلْتُمْ يٰمُوْسٰى لَنْ نَّصْبِرَ عَلٰى طَعَامٍ وَّاحِدٍ فَادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُخْرِجْ لَنَا مِمَّا تُنْۢبِتُ الْاَرْضُ مِنْۢ بَقْلِهَا وَقِثَّاۤىِٕهَا وَفُوْمِهَا وَعَدَسِهَا وَبَصَلِهَا ۗ قَالَ اَتَسْتَبْدِلُوْنَ الَّذِيْ هُوَ اَدْنٰى بِالَّذِيْ هُوَ خَيْرٌ ۗ اِهْبِطُوْا مِصْرًا فَاِنَّ لَكُمْ مَّا سَاَلْتُمْ ۗ وَضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ الذِّلَّةُ وَالْمَسْكَنَةُ وَبَاۤءُوْ بِغَضَبٍ مِّنَ اللّٰهِ ۗ ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ كَانُوْا يَكْفُرُوْنَ بِاٰيٰتِ اللّٰهِ وَيَقْتُلُوْنَ النَّبِيّٖنَ بِغَيْرِ الْحَقِّ ۗ ذٰلِكَ بِمَا عَصَوْا وَّكَانُوْا يَعْتَدُوْنَ ࣖ ٦١

wa-idh
وَإِذْ
और जब
qul'tum
قُلْتُمْ
कहा तुमने
yāmūsā
يَٰمُوسَىٰ
ऐ मूसा
lan
لَن
हरगिज़ नहीं
naṣbira
نَّصْبِرَ
हम सब्र करेंगे
ʿalā
عَلَىٰ
खाने पर
ṭaʿāmin
طَعَامٍ
खाने पर
wāḥidin
وَٰحِدٍ
एक ही
fa-ud'ʿu
فَٱدْعُ
पस दुआ करो
lanā
لَنَا
हमारे लिए
rabbaka
رَبَّكَ
अपने रब से
yukh'rij
يُخْرِجْ
वो निकाले
lanā
لَنَا
हमारे लिए
mimmā
مِمَّا
उसमें से जो
tunbitu
تُنۢبِتُ
उगाती है
l-arḍu
ٱلْأَرْضُ
ज़मीन
min
مِنۢ
सब्ज़ी अपनी
baqlihā
بَقْلِهَا
सब्ज़ी अपनी
waqithāihā
وَقِثَّآئِهَا
और ककड़ी अपनी
wafūmihā
وَفُومِهَا
और गन्दुम अपनी
waʿadasihā
وَعَدَسِهَا
और मसूर अपने
wabaṣalihā
وَبَصَلِهَاۖ
और प्याज़ अपने
qāla
قَالَ
कहा
atastabdilūna
أَتَسْتَبْدِلُونَ
क्या तुम बदलना चाहते हो
alladhī
ٱلَّذِى
उसे जो
huwa
هُوَ
वो
adnā
أَدْنَىٰ
कमतर है
bi-alladhī
بِٱلَّذِى
बदले उसके जो
huwa
هُوَ
वो
khayrun
خَيْرٌۚ
बेहतर है
ih'biṭū
ٱهْبِطُوا۟
उतर जाओ
miṣ'ran
مِصْرًا
शहर में
fa-inna
فَإِنَّ
तो बेशक
lakum
لَكُم
तुम्हारे लिए है
مَّا
जो
sa-altum
سَأَلْتُمْۗ
माँगा तुमने
waḍuribat
وَضُرِبَتْ
और मार दी गई
ʿalayhimu
عَلَيْهِمُ
उन पर
l-dhilatu
ٱلذِّلَّةُ
ज़िल्लत
wal-maskanatu
وَٱلْمَسْكَنَةُ
और मोहताजी
wabāū
وَبَآءُو
और वो पलटे
bighaḍabin
بِغَضَبٍ
साथ ग़ज़ब के
mina
مِّنَ
अल्लाह की तरफ़ से
l-lahi
ٱللَّهِۗ
अल्लाह की तरफ़ से
dhālika
ذَٰلِكَ
ये
bi-annahum
بِأَنَّهُمْ
बवजह उसके जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yakfurūna
يَكْفُرُونَ
वो कुफ़्र करते
biāyāti
بِـَٔايَٰتِ
साथ आयात के
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह की
wayaqtulūna
وَيَقْتُلُونَ
और वो क़त्ल करते थे
l-nabiyīna
ٱلنَّبِيِّۦنَ
नबियों को
bighayri
بِغَيْرِ
बग़ैर
l-ḥaqi
ٱلْحَقِّۗ
हक़ के
dhālika
ذَٰلِكَ
ये
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
ʿaṣaw
عَصَوا۟
उन्होंने नाफ़रमानी की
wakānū
وَّكَانُوا۟
और थे वो
yaʿtadūna
يَعْتَدُونَ
वो हद से निकल जाते
और याद करो जब तुमने कहा था, 'ऐ मूसा, हम एक ही प्रकार के खाने पर कदापि संतोष नहीं कर सकते, अतः हमारे लिए अपने रब से प्रार्थना करो कि हमारे वास्ते धरती की उपज से साग-पात और ककड़ियाँ और लहसुन और मसूर और प्याज़ निकाले।' और मूसा ने कहा, 'क्या तुम जो घटिया चीज़ है उसको उससे बदलकर लेना चाहते हो जो उत्तम है? किसी नगर में उतरो, फिर जो कुछ तुमने माँगा हैं, तुम्हें मिल जाएगा' - और उनपर अपमान और हीन दशा थोप दी गई, और अल्लाह के प्रकोप के भागी हुए। यह इसलिए कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते रहे और नबियों की अकारण हत्या करते थे। यह इसलिए कि उन्होंने अवज्ञा की और वे सीमा का उल्लंघन करते रहे ([२] अल बकराह: 61)
Tafseer (तफ़सीर )
६२

اِنَّ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَالَّذِيْنَ هَادُوْا وَالنَّصٰرٰى وَالصَّابِــِٕيْنَ مَنْ اٰمَنَ بِاللّٰهِ وَالْيَوْمِ الْاٰخِرِ وَعَمِلَ صَالِحًا فَلَهُمْ اَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْۚ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُوْنَ ٦٢

inna
إِنَّ
बेशक
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
wa-alladhīna
وَٱلَّذِينَ
और वो जो
hādū
هَادُوا۟
यहूदी बन गए
wal-naṣārā
وَٱلنَّصَٰرَىٰ
और नस्रानी
wal-ṣābiīna
وَٱلصَّٰبِـِٔينَ
और साबी
man
مَنْ
जो कोई
āmana
ءَامَنَ
ईमान लाया
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह पर
wal-yawmi
وَٱلْيَوْمِ
और आख़िरी दिन पर
l-ākhiri
ٱلْءَاخِرِ
और आख़िरी दिन पर
waʿamila
وَعَمِلَ
और उसने अमल किया
ṣāliḥan
صَٰلِحًا
नेक
falahum
فَلَهُمْ
तो उनके लिए
ajruhum
أَجْرُهُمْ
अजर है उनका
ʿinda
عِندَ
पास
rabbihim
رَبِّهِمْ
उनके रब के
walā
وَلَا
और ना
khawfun
خَوْفٌ
कोई ख़ौफ़ होगा
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
उन पर
walā
وَلَا
और ना
hum
هُمْ
वो
yaḥzanūna
يَحْزَنُونَ
वो ग़मगीन होंगे
निस्संदेह, ईमानवाले और जो यहूदी हुए और ईसाई और साबिई, जो भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाया और अच्छा कर्म किया तो ऐसे लोगों का उनके अपने रब के पास (अच्छा) बदला है, उनको न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे - ([२] अल बकराह: 62)
Tafseer (तफ़सीर )
६३

وَاِذْ اَخَذْنَا مِيْثَاقَكُمْ وَرَفَعْنَا فَوْقَكُمُ الطُّوْرَۗ خُذُوْا مَآ اٰتَيْنٰكُمْ بِقُوَّةٍ وَّاذْكُرُوْا مَا فِيْهِ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُوْنَ ٦٣

wa-idh
وَإِذْ
और जब
akhadhnā
أَخَذْنَا
लिया हमने
mīthāqakum
مِيثَٰقَكُمْ
पुख़्ता अहद तुम से
warafaʿnā
وَرَفَعْنَا
और उठाया हमने
fawqakumu
فَوْقَكُمُ
ऊपर तुम्हारे
l-ṭūra
ٱلطُّورَ
तूर को
khudhū
خُذُوا۟
पकड़ो
مَآ
जो
ātaynākum
ءَاتَيْنَٰكُم
दिया हमने तुम्हें
biquwwatin
بِقُوَّةٍ
साथ क़ुव्वत के
wa-udh'kurū
وَٱذْكُرُوا۟
और याद करो
مَا
जो
fīhi
فِيهِ
उसमें है
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tattaqūna
تَتَّقُونَ
तुम बच जाओ
और याद करो जब हमने इस हाल में कि तूर पर्वत को तुम्हारे ऊपर ऊँचा कर रखा था, तुमसे दृढ़ वचन लिया था, 'जो चीज़ हमने तुम्हें दी हैं उसे मजबूती के साथ पकड़ो और जो कुछ उसमें हैं उसे याद रखो ताकि तुम बच सको।' ([२] अल बकराह: 63)
Tafseer (तफ़सीर )
६४

ثُمَّ تَوَلَّيْتُمْ مِّنْۢ بَعْدِ ذٰلِكَ فَلَوْلَا فَضْلُ اللّٰهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهٗ لَكُنْتُمْ مِّنَ الْخٰسِرِيْنَ ٦٤

thumma
ثُمَّ
फिर
tawallaytum
تَوَلَّيْتُم
फिर गए तुम
min
مِّنۢ
बाद
baʿdi
بَعْدِ
बाद
dhālika
ذَٰلِكَۖ
उसके
falawlā
فَلَوْلَا
पस अगर ना होता
faḍlu
فَضْلُ
फ़ज़ल
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह का
ʿalaykum
عَلَيْكُمْ
तुम पर
waraḥmatuhu
وَرَحْمَتُهُۥ
और रहमत उसकी
lakuntum
لَكُنتُم
अलबत्ता होते तुम
mina
مِّنَ
ख़सारा पाने वालों में से
l-khāsirīna
ٱلْخَٰسِرِينَ
ख़सारा पाने वालों में से
फिर इसके पश्चात भी तुम फिर गए, तो यदि अल्लाह की कृपा और उसकी दयालुता तुम पर न होती, तो तुम घाटे में पड़ गए होते ([२] अल बकराह: 64)
Tafseer (तफ़सीर )
६५

وَلَقَدْ عَلِمْتُمُ الَّذِيْنَ اعْتَدَوْا مِنْكُمْ فِى السَّبْتِ فَقُلْنَا لَهُمْ كُوْنُوْا قِرَدَةً خَاسِـِٕيْنَ ٦٥

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
ʿalim'tumu
عَلِمْتُمُ
जान लिया तुमने
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनको जो
iʿ'tadaw
ٱعْتَدَوْا۟
हद से निकल गए
minkum
مِنكُمْ
तुम में से
فِى
सब्त (हफ़्ते के दिन) में
l-sabti
ٱلسَّبْتِ
सब्त (हफ़्ते के दिन) में
faqul'nā
فَقُلْنَا
तो कहा हमने
lahum
لَهُمْ
उनसे
kūnū
كُونُوا۟
हो जाओ
qiradatan
قِرَدَةً
बन्दर
khāsiīna
خَٰسِـِٔينَ
ज़लील व ख़्वार
और तुम उन लोगों के विषय में तो जानते ही हो जिन्होंने तुममें से 'सब्त' के दिन के मामले में मर्यादा का उल्लंघन किया था, तो हमने उनसे कह दिया, 'बन्दर हो जाओ, धिक्कारे और फिटकारे हुए!' ([२] अल बकराह: 65)
Tafseer (तफ़सीर )
६६

فَجَعَلْنٰهَا نَكَالًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهَا وَمَا خَلْفَهَا وَمَوْعِظَةً لِّلْمُتَّقِيْنَ ٦٦

fajaʿalnāhā
فَجَعَلْنَٰهَا
तो बना दिया हमने इस (वाक़्ये) को
nakālan
نَكَٰلًا
इबरत
limā
لِّمَا
उनके लिए जो
bayna
بَيْنَ
सामने थे उनके
yadayhā
يَدَيْهَا
सामने थे उनके
wamā
وَمَا
और जो
khalfahā
خَلْفَهَا
पीछे (बाद) होंगे उनके
wamawʿiẓatan
وَمَوْعِظَةً
और नसीहत
lil'muttaqīna
لِّلْمُتَّقِينَ
मुत्तक़ी लोगों के लिए
फिर हमने इसे सामनेवालों और बाद के लोगों के लिए शिक्षा-सामग्री और डर रखनेवालों के लिए नसीहत बनाकर छोड़ा ([२] अल बकराह: 66)
Tafseer (तफ़सीर )
६७

وَاِذْ قَالَ مُوْسٰى لِقَوْمِهٖٓ اِنَّ اللّٰهَ يَأْمُرُكُمْ اَنْ تَذْبَحُوْا بَقَرَةً ۗ قَالُوْٓا اَتَتَّخِذُنَا هُزُوًا ۗ قَالَ اَعُوْذُ بِاللّٰهِ اَنْ اَكُوْنَ مِنَ الْجٰهِلِيْنَ ٦٧

wa-idh
وَإِذْ
और जब
qāla
قَالَ
कहा
mūsā
مُوسَىٰ
मूसा ने
liqawmihi
لِقَوْمِهِۦٓ
अपनी क़ौम से
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
yamurukum
يَأْمُرُكُمْ
हुक्म देता है तुम्हें
an
أَن
कि
tadhbaḥū
تَذْبَحُوا۟
तुम ज़िबाह करो
baqaratan
بَقَرَةًۖ
एक गाय
qālū
قَالُوٓا۟
उन्होंने कहा
atattakhidhunā
أَتَتَّخِذُنَا
क्या तुम बनाते हो हमें
huzuwan
هُزُوًاۖ
मज़ाक़
qāla
قَالَ
उसने कहा
aʿūdhu
أَعُوذُ
मैं पनाह लेता हूँ
bil-lahi
بِٱللَّهِ
अल्लाह की
an
أَنْ
कि
akūna
أَكُونَ
मैं हो जाऊँ
mina
مِنَ
जाहिलों में से
l-jāhilīna
ٱلْجَٰهِلِينَ
जाहिलों में से
और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, 'निश्चय ही अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि एक गाय जब्ह करो।' कहने लगे, 'क्या तुम हमसे परिहास करते हो?' उसने कहा, 'मैं इससे अल्लाह की पनाह माँगता हूँ कि जाहिल बनूँ।' ([२] अल बकराह: 67)
Tafseer (तफ़सीर )
६८

قَالُوا ادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّنْ لَّنَا مَا هِيَ ۗ قَالَ اِنَّهٗ يَقُوْلُ اِنَّهَا بَقَرَةٌ لَّا فَارِضٌ وَّلَا بِكْرٌۗ عَوَانٌۢ بَيْنَ ذٰلِكَ ۗ فَافْعَلُوْا مَا تُؤْمَرُوْنَ ٦٨

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
ud'ʿu
ٱدْعُ
दुआ करो
lanā
لَنَا
हमारे लिए
rabbaka
رَبَّكَ
अपने रब से
yubayyin
يُبَيِّن
वो वाज़ेह कर दे
lanā
لَّنَا
हमारे लिए
مَا
कैसी हो
hiya
هِىَۚ
वो
qāla
قَالَ
कहा
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
yaqūlu
يَقُولُ
वो फ़रमाता है
innahā
إِنَّهَا
बेशक वो
baqaratun
بَقَرَةٌ
गाय
لَّا
ना बूढ़ी हो
fāriḍun
فَارِضٌ
ना बूढ़ी हो
walā
وَلَا
और ना
bik'run
بِكْرٌ
छोटी
ʿawānun
عَوَانٌۢ
औसत उम्र की हो
bayna
بَيْنَ
दर्मियान
dhālika
ذَٰلِكَۖ
इसके
fa-if'ʿalū
فَٱفْعَلُوا۟
तो करो
مَا
जो
tu'marūna
تُؤْمَرُونَ
तुम हुक्म दिए जाते हो
बोले, 'हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हम पर स्पष्टा कर दे कि वह गाय कौन-सी है?' उसने कहा, 'वह कहता है कि वह ऐसी गाय है जो न बूढ़ी है, न बछिया, इनके बीच की रास है; तो जो तुम्हें हुक्म दिया जा रहा है, करो।' ([२] अल बकराह: 68)
Tafseer (तफ़सीर )
६९

قَالُوا ادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّنْ لَّنَا مَا لَوْنُهَا ۗ قَالَ اِنَّهٗ يَقُوْلُ اِنَّهَا بَقَرَةٌ صَفْرَاۤءُ فَاقِعٌ لَّوْنُهَا تَسُرُّ النّٰظِرِيْنَ ٦٩

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
ud'ʿu
ٱدْعُ
दुआ करो
lanā
لَنَا
हमारे लिए
rabbaka
رَبَّكَ
अपने रब से
yubayyin
يُبَيِّن
वो वाज़ेह कर दे
lanā
لَّنَا
हमारे लिए
مَا
कैसा हो
lawnuhā
لَوْنُهَاۚ
रंग उसका
qāla
قَالَ
कहा
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
yaqūlu
يَقُولُ
वो फ़रमाता है
innahā
إِنَّهَا
बेशक वो
baqaratun
بَقَرَةٌ
गाय हो
ṣafrāu
صَفْرَآءُ
ज़र्द रंग की
fāqiʿun
فَاقِعٌ
ख़ूब गहरा हो
lawnuhā
لَّوْنُهَا
रंग उसका
tasurru
تَسُرُّ
ख़ुश करती हो
l-nāẓirīna
ٱلنَّٰظِرِينَ
देखने वालों को
कहने लगे, 'हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि उसका रंग कैसा है?' कहा, 'वह कहता है कि वह गाय सुनहरी है, गहरे चटकीले रंग की कि देखनेवालों को प्रसन्न कर देती है।' ([२] अल बकराह: 69)
Tafseer (तफ़सीर )
७०

قَالُوا ادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّنْ لَّنَا مَا هِيَۙ اِنَّ الْبَقَرَ تَشٰبَهَ عَلَيْنَاۗ وَاِنَّآ اِنْ شَاۤءَ اللّٰهُ لَمُهْتَدُوْنَ ٧٠

qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
ud'ʿu
ٱدْعُ
दुआ करो
lanā
لَنَا
हमारे लिए
rabbaka
رَبَّكَ
अपने रब से
yubayyin
يُبَيِّن
वो वाज़ेह कर दे
lanā
لَّنَا
हमारे लिए
مَا
कैसी हो
hiya
هِىَ
वो
inna
إِنَّ
बेशक
l-baqara
ٱلْبَقَرَ
गाय
tashābaha
تَشَٰبَهَ
मुश्तबा हो गई है
ʿalaynā
عَلَيْنَا
हम पर
wa-innā
وَإِنَّآ
और बेशक हम
in
إِن
अगर
shāa
شَآءَ
चाहा
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
lamuh'tadūna
لَمُهْتَدُونَ
अलबत्ता राह पा लेने वाले हैं
बोले, 'हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि वह कौन-सी है, गायों का निर्धारण हमारे लिए संदिग्ध हो रहा है। यदि अल्लाह ने चाहा तो हम अवश्य। पता लगा लेंगे।' ([२] अल बकराह: 70)
Tafseer (तफ़सीर )