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सूरा अल बकराह - Page: 6

Al-Baqarah

(गाय)

५१

وَاِذْ وٰعَدْنَا مُوْسٰىٓ اَرْبَعِيْنَ لَيْلَةً ثُمَّ اتَّخَذْتُمُ الْعِجْلَ مِنْۢ بَعْدِهٖ وَاَنْتُمْ ظٰلِمُوْنَ ٥١

wa-idh
وَإِذْ
और जब
wāʿadnā
وَٰعَدْنَا
वादा किया हमने
mūsā
مُوسَىٰٓ
मूसा से
arbaʿīna
أَرْبَعِينَ
चालीस
laylatan
لَيْلَةً
रातों का
thumma
ثُمَّ
फिर
ittakhadhtumu
ٱتَّخَذْتُمُ
बना लिया तुमने
l-ʿij'la
ٱلْعِجْلَ
बछड़े को (माबूद)
min
مِنۢ
बाद इसके
baʿdihi
بَعْدِهِۦ
बाद इसके
wa-antum
وَأَنتُمْ
और तुम
ẓālimūna
ظَٰلِمُونَ
ज़ालिम थे
और याद करो जब हमने मूसा से चालीस रातों का वादा ठहराया तो उसके पीछे तुम बछड़े को अपना देवता बना बैठे, तुम अत्याचारी थे ([२] अल बकराह: 51)
Tafseer (तफ़सीर )
५२

ثُمَّ عَفَوْنَا عَنْكُمْ مِّنْۢ بَعْدِ ذٰلِكَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ٥٢

thumma
ثُمَّ
फिर
ʿafawnā
عَفَوْنَا
दरगुज़र किया हमने
ʿankum
عَنكُم
तुम से
min
مِّنۢ
बाद
baʿdi
بَعْدِ
बाद
dhālika
ذَٰلِكَ
इसके
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tashkurūna
تَشْكُرُونَ
तुम शुक्र अदा करो
फिर इसके पश्चात भी हमने तुम्हें क्षमा किया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखालाओ ([२] अल बकराह: 52)
Tafseer (तफ़सीर )
५३

وَاِذْ اٰتَيْنَا مُوْسَى الْكِتٰبَ وَالْفُرْقَانَ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُوْنَ ٥٣

wa-idh
وَإِذْ
और जब
ātaynā
ءَاتَيْنَا
दी हमने
mūsā
مُوسَى
मूसा को
l-kitāba
ٱلْكِتَٰبَ
किताब
wal-fur'qāna
وَٱلْفُرْقَانَ
और फ़ुरक़ान
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tahtadūna
تَهْتَدُونَ
तुम हिदायत पा जाओ
और याद करो जब मूसा को हमने किताब और कसौटी प्रदान की, ताकि तुम मार्ग पा सको ([२] अल बकराह: 53)
Tafseer (तफ़सीर )
५४

وَاِذْ قَالَ مُوْسٰى لِقَوْمِهٖ يٰقَوْمِ اِنَّكُمْ ظَلَمْتُمْ اَنْفُسَكُمْ بِاتِّخَاذِكُمُ الْعِجْلَ فَتُوْبُوْٓا اِلٰى بَارِىِٕكُمْ فَاقْتُلُوْٓا اَنْفُسَكُمْۗ ذٰلِكُمْ خَيْرٌ لَّكُمْ عِنْدَ بَارِىِٕكُمْۗ فَتَابَ عَلَيْكُمْ ۗ اِنَّهٗ هُوَ التَّوَّابُ الرَّحِيْمُ ٥٤

wa-idh
وَإِذْ
और जब
qāla
قَالَ
कहा
mūsā
مُوسَىٰ
मूसा ने
liqawmihi
لِقَوْمِهِۦ
अपनी क़ौम से
yāqawmi
يَٰقَوْمِ
ऐ मेरी क़ौम
innakum
إِنَّكُمْ
बेशक तुम
ẓalamtum
ظَلَمْتُمْ
ज़ुल्म किया तुमने
anfusakum
أَنفُسَكُم
अपने नफ़्सों पर
bi-ittikhādhikumu
بِٱتِّخَاذِكُمُ
बवजह बनाने के तुम्हारे
l-ʿij'la
ٱلْعِجْلَ
बछड़े को (माबूद)
fatūbū
فَتُوبُوٓا۟
पस तौबा करो
ilā
إِلَىٰ
तरफ़
bāri-ikum
بَارِئِكُمْ
अपने पैदा करने वाले के
fa-uq'tulū
فَٱقْتُلُوٓا۟
तो क़त्ल करो
anfusakum
أَنفُسَكُمْ
अपने नफ़्सों को
dhālikum
ذَٰلِكُمْ
ये
khayrun
خَيْرٌ
बेहतर है
lakum
لَّكُمْ
तुम्हारे लिए
ʿinda
عِندَ
नज़दीक
bāri-ikum
بَارِئِكُمْ
तुम्हारे पैदा करने वाले के
fatāba
فَتَابَ
फिर वो मेहरबान हुआ
ʿalaykum
عَلَيْكُمْۚ
तुम पर
innahu
إِنَّهُۥ
बेशक वो
huwa
هُوَ
वो ही है
l-tawābu
ٱلتَّوَّابُ
बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला
l-raḥīmu
ٱلرَّحِيمُ
निहायत रहम करने वाला
और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, 'ऐ मेरी कौम के लोगो! बछड़े को देवता बनाकर तुमने अपने ऊपर ज़ुल्म किया है, तो तुम अपने पैदा करनेवाले की ओर पलटो, अतः अपने लोगों को स्वयं क़त्ल करो। यही तुम्हारे पैदा करनेवाले की स्पष्ट में तुम्हारे लिए अच्छा है, फिर उसने तुम्हारी तौबा क़बूल कर ली। निस्संदेह वह बड़ी तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।' ([२] अल बकराह: 54)
Tafseer (तफ़सीर )
५५

وَاِذْ قُلْتُمْ يٰمُوْسٰى لَنْ نُّؤْمِنَ لَكَ حَتّٰى نَرَى اللّٰهَ جَهْرَةً فَاَخَذَتْكُمُ الصّٰعِقَةُ وَاَنْتُمْ تَنْظُرُوْنَ ٥٥

wa-idh
وَإِذْ
और जब
qul'tum
قُلْتُمْ
कहा तुमने
yāmūsā
يَٰمُوسَىٰ
ऐ मूसा
lan
لَن
हरगिज़ नहीं
nu'mina
نُّؤْمِنَ
हम ईमान लाऐंगे
laka
لَكَ
तुझ पर
ḥattā
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
narā
نَرَى
हम देख लें
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह को
jahratan
جَهْرَةً
रू-ब-रू/सामने
fa-akhadhatkumu
فَأَخَذَتْكُمُ
फिर पकड़ लिया तुम्हें
l-ṣāʿiqatu
ٱلصَّٰعِقَةُ
बिजली की कड़क ने
wa-antum
وَأَنتُمْ
और तुम
tanẓurūna
تَنظُرُونَ
तुम देख रहे थे
और याद करो जब तुमने कहा था, 'ऐ मूसा, हम तुमपर ईमान नहीं लाएँगे जब तक अल्लाह को खुल्लम-खुल्ला न देख लें।' फिर एक कड़क ने तुम्हें आ दबोचा, तुम देखते रहे ([२] अल बकराह: 55)
Tafseer (तफ़सीर )
५६

ثُمَّ بَعَثْنٰكُمْ مِّنْۢ بَعْدِ مَوْتِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ٥٦

thumma
ثُمَّ
फिर
baʿathnākum
بَعَثْنَٰكُم
उठा लिया हमने तुम्हें
min
مِّنۢ
बाद
baʿdi
بَعْدِ
बाद
mawtikum
مَوْتِكُمْ
तुम्हारी मौत के
laʿallakum
لَعَلَّكُمْ
ताकि तुम
tashkurūna
تَشْكُرُونَ
तुम शुक्र अदा करो
फिर तुम्हारे निर्जीव हो जाने के पश्चात हमने तुम्हें जिला उठाया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ ([२] अल बकराह: 56)
Tafseer (तफ़सीर )
५७

وَظَلَّلْنَا عَلَيْكُمُ الْغَمَامَ وَاَنْزَلْنَا عَلَيْكُمُ الْمَنَّ وَالسَّلْوٰى ۗ كُلُوْا مِنْ طَيِّبٰتِ مَا رَزَقْنٰكُمْ ۗ وَمَا ظَلَمُوْنَا وَلٰكِنْ كَانُوْٓا اَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُوْنَ ٥٧

waẓallalnā
وَظَلَّلْنَا
और साया किया हमने
ʿalaykumu
عَلَيْكُمُ
तुम पर
l-ghamāma
ٱلْغَمَامَ
बादलों का
wa-anzalnā
وَأَنزَلْنَا
और उतारा हमने
ʿalaykumu
عَلَيْكُمُ
तुम पर
l-mana
ٱلْمَنَّ
मन्न
wal-salwā
وَٱلسَّلْوَىٰۖ
और सलवा
kulū
كُلُوا۟
खाओ
min
مِن
इन पाकीज़ा चीज़ों से
ṭayyibāti
طَيِّبَٰتِ
इन पाकीज़ा चीज़ों से
مَا
जो
razaqnākum
رَزَقْنَٰكُمْۖ
रिज़्क़ दिया हमने तुम्हें
wamā
وَمَا
और नहीं
ẓalamūnā
ظَلَمُونَا
उन्होंने ज़ुल्म किया हम पर
walākin
وَلَٰكِن
और लेकिन
kānū
كَانُوٓا۟
थे वो
anfusahum
أَنفُسَهُمْ
अपने नफ़्सों ही पर
yaẓlimūna
يَظْلِمُونَ
वो ज़ुल्म करते
और हमने तुमपर बादलों की छाया की और तुमपर 'मन्न' और 'सलबा' उतारा - 'खाओ, जो अच्छी पाक चीजें हमने तुम्हें प्रदान की है।' उन्होंने हमारा तो कुछ भी नहीं बिगाड़ा, बल्कि वे अपने ही ऊपर अत्याचार करते रहे ([२] अल बकराह: 57)
Tafseer (तफ़सीर )
५८

وَاِذْ قُلْنَا ادْخُلُوْا هٰذِهِ الْقَرْيَةَ فَكُلُوْا مِنْهَا حَيْثُ شِئْتُمْ رَغَدًا وَّادْخُلُوا الْبَابَ سُجَّدًا وَّقُوْلُوْا حِطَّةٌ نَّغْفِرْ لَكُمْ خَطٰيٰكُمْ ۗ وَسَنَزِيْدُ الْمُحْسِنِيْنَ ٥٨

wa-idh
وَإِذْ
और जब
qul'nā
قُلْنَا
कहा हमने
ud'khulū
ٱدْخُلُوا۟
दाख़िल हो जाओ
hādhihi
هَٰذِهِ
इस
l-qaryata
ٱلْقَرْيَةَ
बस्ती में
fakulū
فَكُلُوا۟
फिर खाओ
min'hā
مِنْهَا
उसमें से
ḥaythu
حَيْثُ
जहाँ से
shi'tum
شِئْتُمْ
चाहो तुम
raghadan
رَغَدًا
फ़राग़त से
wa-ud'khulū
وَٱدْخُلُوا۟
और दाख़िल हो जाओ
l-bāba
ٱلْبَابَ
दरवाज़े से
sujjadan
سُجَّدًا
सजदा करते हुए
waqūlū
وَقُولُوا۟
और कहो
ḥiṭṭatun
حِطَّةٌ
हित्तातुन (बख़्श दे)
naghfir
نَّغْفِرْ
हम बख़्श देंगे
lakum
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
khaṭāyākum
خَطَٰيَٰكُمْۚ
ख़ताऐं तुम्हारी
wasanazīdu
وَسَنَزِيدُ
और अनक़रीब हम ज़्यादा देंगे
l-muḥ'sinīna
ٱلْمُحْسِنِينَ
एहसान करने वालों को
और जब हमने कहा था, 'इस बस्ती में प्रवेश करो फिर उसमें से जहाँ से चाहो जी भर खाओ, और बस्ती के द्वार में सजदागुज़ार बनकर प्रवेश करो और कहो, 'छूट हैं।' हम तुम्हारी खताओं को क्षमा कर देंगे और अच्छे से अच्छा काम करनेवालों पर हम और अधिक अनुग्रह करेंगे।' ([२] अल बकराह: 58)
Tafseer (तफ़सीर )
५९

فَبَدَّلَ الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا قَوْلًا غَيْرَ الَّذِيْ قِيْلَ لَهُمْ فَاَنْزَلْنَا عَلَى الَّذِيْنَ ظَلَمُوْا رِجْزًا مِّنَ السَّمَاۤءِ بِمَا كَانُوْا يَفْسُقُوْنَ ࣖ ٥٩

fabaddala
فَبَدَّلَ
तो बदल डाला
alladhīna
ٱلَّذِينَ
जिन्होंने
ẓalamū
ظَلَمُوا۟
ज़ुल्म किया
qawlan
قَوْلًا
बात को
ghayra
غَيْرَ
सिवाय
alladhī
ٱلَّذِى
उसके जो
qīla
قِيلَ
कही गई थी
lahum
لَهُمْ
उनसे
fa-anzalnā
فَأَنزَلْنَا
तो उतारा हमने
ʿalā
عَلَى
उन पर जिन्होंने
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उन पर जिन्होंने
ẓalamū
ظَلَمُوا۟
ज़ुल्म किया था
rij'zan
رِجْزًا
अज़ाब
mina
مِّنَ
आसमान से
l-samāi
ٱلسَّمَآءِ
आसमान से
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kānū
كَانُوا۟
थे वो
yafsuqūna
يَفْسُقُونَ
वो नाफ़रमानी करते
फिर जो बात उनसे कहीं गई थी ज़ालिमों ने उसे दूसरी बात से बदल दिया। अन्ततः ज़ालिमों पर हमने, जो अवज्ञा वे कर रहे थे उसके कारण, आकाश से यातना उतारी ([२] अल बकराह: 59)
Tafseer (तफ़सीर )
६०

۞ وَاِذِ اسْتَسْقٰى مُوْسٰى لِقَوْمِهٖ فَقُلْنَا اضْرِبْ بِّعَصَاكَ الْحَجَرَۗ فَانْفَجَرَتْ مِنْهُ اثْنَتَا عَشْرَةَ عَيْنًا ۗ قَدْ عَلِمَ كُلُّ اُنَاسٍ مَّشْرَبَهُمْ ۗ كُلُوْا وَاشْرَبُوْا مِنْ رِّزْقِ اللّٰهِ وَلَا تَعْثَوْا فِى الْاَرْضِ مُفْسِدِيْنَ ٦٠

wa-idhi
وَإِذِ
और जब
is'tasqā
ٱسْتَسْقَىٰ
पानी माँगा
mūsā
مُوسَىٰ
मूसा ने
liqawmihi
لِقَوْمِهِۦ
अपनी क़ौम के लिए
faqul'nā
فَقُلْنَا
तो कहा हमने
iḍ'rib
ٱضْرِب
मारो
biʿaṣāka
بِّعَصَاكَ
अपने असा को
l-ḥajara
ٱلْحَجَرَۖ
इस पत्थर पर
fa-infajarat
فَٱنفَجَرَتْ
तो फूट पड़े
min'hu
مِنْهُ
उससे
ith'natā
ٱثْنَتَا
बारह
ʿashrata
عَشْرَةَ
बारह
ʿaynan
عَيْنًاۖ
चश्मे
qad
قَدْ
तहक़ीक़
ʿalima
عَلِمَ
जान लिया
kullu
كُلُّ
सब
unāsin
أُنَاسٍ
लोगों ने
mashrabahum
مَّشْرَبَهُمْۖ
घाट अपना
kulū
كُلُوا۟
खाओ
wa-ish'rabū
وَٱشْرَبُوا۟
और पियो
min
مِن
रिज़्क़ से
riz'qi
رِّزْقِ
रिज़्क़ से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
walā
وَلَا
और ना
taʿthaw
تَعْثَوْا۟
तुम फ़साद करो
فِى
ज़मीन में
l-arḍi
ٱلْأَرْضِ
ज़मीन में
muf'sidīna
مُفْسِدِينَ
मुफ़सिद बन कर
और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिए पानी की प्रार्थना को तो हमने कहा, 'चट्टान पर अपनी लाठी मारो,' तो उससे बारह स्रोत फूट निकले और हर गिरोह ने अपना-अपना घाट जान लिया - 'खाओ और पियो अल्लाह का दिया और धरती में बिगाड़ फैलाते न फिरो।' ([२] अल बकराह: 60)
Tafseer (तफ़सीर )