Skip to content

सूरा अल बकराह - Page: 5

Al-Baqarah

(गाय)

४१

وَاٰمِنُوْا بِمَآ اَنْزَلْتُ مُصَدِّقًا لِّمَا مَعَكُمْ وَلَا تَكُوْنُوْٓا اَوَّلَ كَافِرٍۢ بِهٖ ۖ وَلَا تَشْتَرُوْا بِاٰيٰتِيْ ثَمَنًا قَلِيْلًا ۖوَّاِيَّايَ فَاتَّقُوْنِ ٤١

waāminū
وَءَامِنُوا۟
और ईमान लाओ
bimā
بِمَآ
उस पर जो
anzaltu
أَنزَلْتُ
नाज़िल किया मैंने
muṣaddiqan
مُصَدِّقًا
तसदीक़ करने वाला
limā
لِّمَا
उसके लिए जो
maʿakum
مَعَكُمْ
तुम्हारे पास है
walā
وَلَا
और ना
takūnū
تَكُونُوٓا۟
तुम हो जाओ
awwala
أَوَّلَ
सबसे पहला (गिरोह)
kāfirin
كَافِرٍۭ
इन्कार करने वाला
bihi
بِهِۦۖ
उसका
walā
وَلَا
और ना
tashtarū
تَشْتَرُوا۟
तुम लो
biāyātī
بِـَٔايَٰتِى
मेरी आयात के बदले
thamanan
ثَمَنًا
क़ीमत
qalīlan
قَلِيلًا
थोड़ी
wa-iyyāya
وَإِيَّٰىَ
और सिर्फ़ मुझ ही से
fa-ittaqūni
فَٱتَّقُونِ
पस डरो मुझ से
और ईमान लाओ उस चीज़ पर जो मैंने उतारी है, जो उसकी पुष्टि में है, जो तुम्हारे पास है, और सबसे पहले तुम ही उसके इनकार करनेवाले न बनो। और मेरी आयतों को थोड़ा मूल्य प्राप्त करने का साधन न बनाओ, मुझसे ही तुम डरो ([२] अल बकराह: 41)
Tafseer (तफ़सीर )
४२

وَلَا تَلْبِسُوا الْحَقَّ بِالْبَاطِلِ وَتَكْتُمُوا الْحَقَّ وَاَنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ ٤٢

walā
وَلَا
और ना
talbisū
تَلْبِسُوا۟
तुम मिलाओ
l-ḥaqa
ٱلْحَقَّ
हक़ को
bil-bāṭili
بِٱلْبَٰطِلِ
साथ बातिल के
wataktumū
وَتَكْتُمُوا۟
और (ना) तुम छुपाओ
l-ḥaqa
ٱلْحَقَّ
हक़ को
wa-antum
وَأَنتُمْ
हालाँकि तुम
taʿlamūna
تَعْلَمُونَ
तुम इल्म रखते हो
और सत्य में असत्य का घाल-मेल न करो और जानते-बुझते सत्य को छिपाओ मत ([२] अल बकराह: 42)
Tafseer (तफ़सीर )
४३

وَاَقِيْمُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتُوا الزَّكٰوةَ وَارْكَعُوْا مَعَ الرَّاكِعِيْنَ ٤٣

wa-aqīmū
وَأَقِيمُوا۟
और क़ायम करो
l-ṣalata
ٱلصَّلَوٰةَ
नमाज़
waātū
وَءَاتُوا۟
और अदा करो
l-zakata
ٱلزَّكَوٰةَ
ज़कात
wa-ir'kaʿū
وَٱرْكَعُوا۟
और रुकू करो
maʿa
مَعَ
साथ
l-rākiʿīna
ٱلرَّٰكِعِينَ
रुकू करने वालों के
और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो और (मेरे समक्ष) झुकनेवालों के साथ झुको ([२] अल बकराह: 43)
Tafseer (तफ़सीर )
४४

۞ اَتَأْمُرُوْنَ النَّاسَ بِالْبِرِّ وَتَنْسَوْنَ اَنْفُسَكُمْ وَاَنْتُمْ تَتْلُوْنَ الْكِتٰبَ ۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ٤٤

atamurūna
أَتَأْمُرُونَ
क्या तुम हुक्म देते हो
l-nāsa
ٱلنَّاسَ
लोगों को
bil-biri
بِٱلْبِرِّ
नेकी का
watansawna
وَتَنسَوْنَ
और तुम भूल जाते हो
anfusakum
أَنفُسَكُمْ
अपने नफ़्सों को
wa-antum
وَأَنتُمْ
हालाँकि तुम
tatlūna
تَتْلُونَ
तुम तिलावत करते हो
l-kitāba
ٱلْكِتَٰبَۚ
किताब की
afalā
أَفَلَا
क्या फिर नहीं
taʿqilūna
تَعْقِلُونَ
तुम अक़्ल से काम लेते
क्या तुम लोगों को तो नेकी और एहसान का उपदेश देते हो और अपने आपको भूल जाते हो, हालाँकि तुम किताब भी पढ़ते हो? फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? ([२] अल बकराह: 44)
Tafseer (तफ़सीर )
४५

وَاسْتَعِيْنُوْا بِالصَّبْرِ وَالصَّلٰوةِ ۗ وَاِنَّهَا لَكَبِيْرَةٌ اِلَّا عَلَى الْخٰشِعِيْنَۙ ٤٥

wa-is'taʿīnū
وَٱسْتَعِينُوا۟
और मदद तलब करो
bil-ṣabri
بِٱلصَّبْرِ
साथ सब्र
wal-ṣalati
وَٱلصَّلَوٰةِۚ
और नमाज़ के
wa-innahā
وَإِنَّهَا
और बेशक वो
lakabīratun
لَكَبِيرَةٌ
अलबत्ता बड़ी (भारी) है
illā
إِلَّا
मगर
ʿalā
عَلَى
ऊपर
l-khāshiʿīna
ٱلْخَٰشِعِينَ
ख़ुशू करने वालों के
धैर्य और नमाज़ से मदद लो, और निस्संदेह यह (नमाज) बहुत कठिन है, किन्तु उन लोगों के लिए नहीं जिनके दिल पिघले हुए हो; ([२] अल बकराह: 45)
Tafseer (तफ़सीर )
४६

الَّذِيْنَ يَظُنُّوْنَ اَنَّهُمْ مُّلٰقُوْا رَبِّهِمْ وَاَنَّهُمْ اِلَيْهِ رٰجِعُوْنَ ࣖ ٤٦

alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो जो
yaẓunnūna
يَظُنُّونَ
यक़ीन रखते हैं
annahum
أَنَّهُم
बेशक वो
mulāqū
مُّلَٰقُوا۟
मुलाक़ात करने वाले हैं
rabbihim
رَبِّهِمْ
अपने रब से
wa-annahum
وَأَنَّهُمْ
और बेशक वो
ilayhi
إِلَيْهِ
तरफ़ उसके
rājiʿūna
رَٰجِعُونَ
लौटने वाले हैं
जो समझते है कि उन्हें अपने रब से मिलना हैं और उसी की ओर उन्हें पलटकर जाना है ([२] अल बकराह: 46)
Tafseer (तफ़सीर )
४७

يٰبَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ اذْكُرُوْا نِعْمَتِيَ الَّتِيْٓ اَنْعَمْتُ عَلَيْكُمْ وَاَنِّيْ فَضَّلْتُكُمْ عَلَى الْعٰلَمِيْنَ ٤٧

yābanī
يَٰبَنِىٓ
ऐ बनी इस्राईल
is'rāīla
إِسْرَٰٓءِيلَ
ऐ बनी इस्राईल
udh'kurū
ٱذْكُرُوا۟
याद करो
niʿ'matiya
نِعْمَتِىَ
मेरी नेअमत
allatī
ٱلَّتِىٓ
वो जो
anʿamtu
أَنْعَمْتُ
इनाम की मैंने
ʿalaykum
عَلَيْكُمْ
तुम पर
wa-annī
وَأَنِّى
और बेशक मैं
faḍḍaltukum
فَضَّلْتُكُمْ
फ़ज़ीलत दी मैंने तुम्हें
ʿalā
عَلَى
तमाम जहानों पर
l-ʿālamīna
ٱلْعَٰلَمِينَ
तमाम जहानों पर
ऐ इसराईल की सन्तान! याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया और इसे भी कि मैंने तुम्हें सारे संसार पर श्रेष्ठता प्रदान की थी; ([२] अल बकराह: 47)
Tafseer (तफ़सीर )
४८

وَاتَّقُوْا يَوْمًا لَّا تَجْزِيْ نَفْسٌ عَنْ نَّفْسٍ شَيْـًٔا وَّلَا يُقْبَلُ مِنْهَا شَفَاعَةٌ وَّلَا يُؤْخَذُ مِنْهَا عَدْلٌ وَّلَا هُمْ يُنْصَرُوْنَ ٤٨

wa-ittaqū
وَٱتَّقُوا۟
और डरो
yawman
يَوْمًا
उस दिन से
لَّا
ना काम आएगा
tajzī
تَجْزِى
ना काम आएगा
nafsun
نَفْسٌ
कोई नफ़्स
ʿan
عَن
किसी नफ़्स के
nafsin
نَّفْسٍ
किसी नफ़्स के
shayan
شَيْـًٔا
कुछ भी
walā
وَلَا
और ना
yuq'balu
يُقْبَلُ
क़ुबूल की जाएगी
min'hā
مِنْهَا
उससे
shafāʿatun
شَفَٰعَةٌ
कोई सिफ़ारिश
walā
وَلَا
और ना
yu'khadhu
يُؤْخَذُ
लिया जाएगा
min'hā
مِنْهَا
उससे
ʿadlun
عَدْلٌ
कोई बदला
walā
وَلَا
और ना
hum
هُمْ
वो
yunṣarūna
يُنصَرُونَ
वो मदद किए जाऐंगे
और डरो उस दिन से जब न कोई किसी भी ओर से कुछ तावान भरेगा और न किसी की ओर से कोई सिफ़ारिश ही क़बूल की जाएगी और न किसी की ओर से कोई फ़िद्‌या (अर्थदंड) लिया जाएगा और न वे सहायता ही पा सकेंगे। ([२] अल बकराह: 48)
Tafseer (तफ़सीर )
४९

وَاِذْ نَجَّيْنٰكُمْ مِّنْ اٰلِ فِرْعَوْنَ يَسُوْمُوْنَكُمْ سُوْۤءَ الْعَذَابِ يُذَبِّحُوْنَ اَبْنَاۤءَكُمْ وَيَسْتَحْيُوْنَ نِسَاۤءَكُمْ ۗ وَفِيْ ذٰلِكُمْ بَلَاۤءٌ مِّنْ رَّبِّكُمْ عَظِيْمٌ ٤٩

wa-idh
وَإِذْ
और जब
najjaynākum
نَجَّيْنَٰكُم
निजात दी हमने तुम्हें
min
مِّنْ
आले फ़िरऔन से
āli
ءَالِ
आले फ़िरऔन से
fir'ʿawna
فِرْعَوْنَ
आले फ़िरऔन से
yasūmūnakum
يَسُومُونَكُمْ
वो तकलीफ़ देते थे तुम्हें
sūa
سُوٓءَ
बुरे
l-ʿadhābi
ٱلْعَذَابِ
अज़ाब की
yudhabbiḥūna
يُذَبِّحُونَ
वो ख़ूब ज़िबाह करते थे
abnāakum
أَبْنَآءَكُمْ
तुम्हारे बेटों को
wayastaḥyūna
وَيَسْتَحْيُونَ
और वो ज़िन्दा छोड़ देते थे
nisāakum
نِسَآءَكُمْۚ
तुम्हारी औरतों को
wafī
وَفِى
और इसमें
dhālikum
ذَٰلِكُم
और इसमें
balāon
بَلَآءٌ
आज़माइश थी
min
مِّن
तुम्हारे रब की तरफ़ से
rabbikum
رَّبِّكُمْ
तुम्हारे रब की तरफ़ से
ʿaẓīmun
عَظِيمٌ
बहुत बड़ी
और याद करो जब हमने तुम्हें फ़िरऔनियों से छुटकारा दिलाया जो तुम्हें अत्यन्त बुरी यातना देते थे, तुम्हारे बेटों को मार डालते थे और तुम्हारी स्त्रियों को जीवित रहने देते थे; और इसमं तुम्हारे रब की ओर से बड़ी परीक्षा थी ([२] अल बकराह: 49)
Tafseer (तफ़सीर )
५०

وَاِذْ فَرَقْنَا بِكُمُ الْبَحْرَ فَاَنْجَيْنٰكُمْ وَاَغْرَقْنَآ اٰلَ فِرْعَوْنَ وَاَنْتُمْ تَنْظُرُوْنَ ٥٠

wa-idh
وَإِذْ
और जब
faraqnā
فَرَقْنَا
फाड़ा हमने
bikumu
بِكُمُ
तुम्हारे लिए
l-baḥra
ٱلْبَحْرَ
समुन्दर को
fa-anjaynākum
فَأَنجَيْنَٰكُمْ
फिर निजात दी हमने तुम्हें
wa-aghraqnā
وَأَغْرَقْنَآ
और ग़र्क़ कर दिया हमने
āla
ءَالَ
आले फ़िरऔन को
fir'ʿawna
فِرْعَوْنَ
आले फ़िरऔन को
wa-antum
وَأَنتُمْ
और तुम
tanẓurūna
تَنظُرُونَ
तुम देख रहे थे
याद करो जब हमने तुम्हें सागर में अलग-अलग चौड़े रास्ते से ले जाकर छुटकारा दिया और फ़िरऔनियों को तुम्हारी आँखों के सामने डूबो दिया ([२] अल बकराह: 50)
Tafseer (तफ़सीर )