وَاٰمِنُوْا بِمَآ اَنْزَلْتُ مُصَدِّقًا لِّمَا مَعَكُمْ وَلَا تَكُوْنُوْٓا اَوَّلَ كَافِرٍۢ بِهٖ ۖ وَلَا تَشْتَرُوْا بِاٰيٰتِيْ ثَمَنًا قَلِيْلًا ۖوَّاِيَّايَ فَاتَّقُوْنِ ٤١
- waāminū
- وَءَامِنُوا۟
- और ईमान लाओ
- bimā
- بِمَآ
- उस पर जो
- anzaltu
- أَنزَلْتُ
- नाज़िल किया मैंने
- muṣaddiqan
- مُصَدِّقًا
- तसदीक़ करने वाला
- limā
- لِّمَا
- उसके लिए जो
- maʿakum
- مَعَكُمْ
- तुम्हारे पास है
- walā
- وَلَا
- और ना
- takūnū
- تَكُونُوٓا۟
- तुम हो जाओ
- awwala
- أَوَّلَ
- सबसे पहला (गिरोह)
- kāfirin
- كَافِرٍۭ
- इन्कार करने वाला
- bihi
- بِهِۦۖ
- उसका
- walā
- وَلَا
- और ना
- tashtarū
- تَشْتَرُوا۟
- तुम लो
- biāyātī
- بِـَٔايَٰتِى
- मेरी आयात के बदले
- thamanan
- ثَمَنًا
- क़ीमत
- qalīlan
- قَلِيلًا
- थोड़ी
- wa-iyyāya
- وَإِيَّٰىَ
- और सिर्फ़ मुझ ही से
- fa-ittaqūni
- فَٱتَّقُونِ
- पस डरो मुझ से
और ईमान लाओ उस चीज़ पर जो मैंने उतारी है, जो उसकी पुष्टि में है, जो तुम्हारे पास है, और सबसे पहले तुम ही उसके इनकार करनेवाले न बनो। और मेरी आयतों को थोड़ा मूल्य प्राप्त करने का साधन न बनाओ, मुझसे ही तुम डरो ([२] अल बकराह: 41)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا تَلْبِسُوا الْحَقَّ بِالْبَاطِلِ وَتَكْتُمُوا الْحَقَّ وَاَنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ ٤٢
- walā
- وَلَا
- और ना
- talbisū
- تَلْبِسُوا۟
- तुम मिलाओ
- l-ḥaqa
- ٱلْحَقَّ
- हक़ को
- bil-bāṭili
- بِٱلْبَٰطِلِ
- साथ बातिल के
- wataktumū
- وَتَكْتُمُوا۟
- और (ना) तुम छुपाओ
- l-ḥaqa
- ٱلْحَقَّ
- हक़ को
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- हालाँकि तुम
- taʿlamūna
- تَعْلَمُونَ
- तुम इल्म रखते हो
और सत्य में असत्य का घाल-मेल न करो और जानते-बुझते सत्य को छिपाओ मत ([२] अल बकराह: 42)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَقِيْمُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتُوا الزَّكٰوةَ وَارْكَعُوْا مَعَ الرَّاكِعِيْنَ ٤٣
- wa-aqīmū
- وَأَقِيمُوا۟
- और क़ायम करो
- l-ṣalata
- ٱلصَّلَوٰةَ
- नमाज़
- waātū
- وَءَاتُوا۟
- और अदा करो
- l-zakata
- ٱلزَّكَوٰةَ
- ज़कात
- wa-ir'kaʿū
- وَٱرْكَعُوا۟
- और रुकू करो
- maʿa
- مَعَ
- साथ
- l-rākiʿīna
- ٱلرَّٰكِعِينَ
- रुकू करने वालों के
और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो और (मेरे समक्ष) झुकनेवालों के साथ झुको ([२] अल बकराह: 43)Tafseer (तफ़सीर )
۞ اَتَأْمُرُوْنَ النَّاسَ بِالْبِرِّ وَتَنْسَوْنَ اَنْفُسَكُمْ وَاَنْتُمْ تَتْلُوْنَ الْكِتٰبَ ۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ٤٤
- atamurūna
- أَتَأْمُرُونَ
- क्या तुम हुक्म देते हो
- l-nāsa
- ٱلنَّاسَ
- लोगों को
- bil-biri
- بِٱلْبِرِّ
- नेकी का
- watansawna
- وَتَنسَوْنَ
- और तुम भूल जाते हो
- anfusakum
- أَنفُسَكُمْ
- अपने नफ़्सों को
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- हालाँकि तुम
- tatlūna
- تَتْلُونَ
- तुम तिलावत करते हो
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَۚ
- किताब की
- afalā
- أَفَلَا
- क्या फिर नहीं
- taʿqilūna
- تَعْقِلُونَ
- तुम अक़्ल से काम लेते
क्या तुम लोगों को तो नेकी और एहसान का उपदेश देते हो और अपने आपको भूल जाते हो, हालाँकि तुम किताब भी पढ़ते हो? फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? ([२] अल बकराह: 44)Tafseer (तफ़सीर )
وَاسْتَعِيْنُوْا بِالصَّبْرِ وَالصَّلٰوةِ ۗ وَاِنَّهَا لَكَبِيْرَةٌ اِلَّا عَلَى الْخٰشِعِيْنَۙ ٤٥
- wa-is'taʿīnū
- وَٱسْتَعِينُوا۟
- और मदद तलब करो
- bil-ṣabri
- بِٱلصَّبْرِ
- साथ सब्र
- wal-ṣalati
- وَٱلصَّلَوٰةِۚ
- और नमाज़ के
- wa-innahā
- وَإِنَّهَا
- और बेशक वो
- lakabīratun
- لَكَبِيرَةٌ
- अलबत्ता बड़ी (भारी) है
- illā
- إِلَّا
- मगर
- ʿalā
- عَلَى
- ऊपर
- l-khāshiʿīna
- ٱلْخَٰشِعِينَ
- ख़ुशू करने वालों के
धैर्य और नमाज़ से मदद लो, और निस्संदेह यह (नमाज) बहुत कठिन है, किन्तु उन लोगों के लिए नहीं जिनके दिल पिघले हुए हो; ([२] अल बकराह: 45)Tafseer (तफ़सीर )
الَّذِيْنَ يَظُنُّوْنَ اَنَّهُمْ مُّلٰقُوْا رَبِّهِمْ وَاَنَّهُمْ اِلَيْهِ رٰجِعُوْنَ ࣖ ٤٦
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- yaẓunnūna
- يَظُنُّونَ
- यक़ीन रखते हैं
- annahum
- أَنَّهُم
- बेशक वो
- mulāqū
- مُّلَٰقُوا۟
- मुलाक़ात करने वाले हैं
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- अपने रब से
- wa-annahum
- وَأَنَّهُمْ
- और बेशक वो
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ उसके
- rājiʿūna
- رَٰجِعُونَ
- लौटने वाले हैं
जो समझते है कि उन्हें अपने रब से मिलना हैं और उसी की ओर उन्हें पलटकर जाना है ([२] अल बकराह: 46)Tafseer (तफ़सीर )
يٰبَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ اذْكُرُوْا نِعْمَتِيَ الَّتِيْٓ اَنْعَمْتُ عَلَيْكُمْ وَاَنِّيْ فَضَّلْتُكُمْ عَلَى الْعٰلَمِيْنَ ٤٧
- yābanī
- يَٰبَنِىٓ
- ऐ बनी इस्राईल
- is'rāīla
- إِسْرَٰٓءِيلَ
- ऐ बनी इस्राईल
- udh'kurū
- ٱذْكُرُوا۟
- याद करो
- niʿ'matiya
- نِعْمَتِىَ
- मेरी नेअमत
- allatī
- ٱلَّتِىٓ
- वो जो
- anʿamtu
- أَنْعَمْتُ
- इनाम की मैंने
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- wa-annī
- وَأَنِّى
- और बेशक मैं
- faḍḍaltukum
- فَضَّلْتُكُمْ
- फ़ज़ीलत दी मैंने तुम्हें
- ʿalā
- عَلَى
- तमाम जहानों पर
- l-ʿālamīna
- ٱلْعَٰلَمِينَ
- तमाम जहानों पर
ऐ इसराईल की सन्तान! याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया और इसे भी कि मैंने तुम्हें सारे संसार पर श्रेष्ठता प्रदान की थी; ([२] अल बकराह: 47)Tafseer (तफ़सीर )
وَاتَّقُوْا يَوْمًا لَّا تَجْزِيْ نَفْسٌ عَنْ نَّفْسٍ شَيْـًٔا وَّلَا يُقْبَلُ مِنْهَا شَفَاعَةٌ وَّلَا يُؤْخَذُ مِنْهَا عَدْلٌ وَّلَا هُمْ يُنْصَرُوْنَ ٤٨
- wa-ittaqū
- وَٱتَّقُوا۟
- और डरो
- yawman
- يَوْمًا
- उस दिन से
- lā
- لَّا
- ना काम आएगा
- tajzī
- تَجْزِى
- ना काम आएगा
- nafsun
- نَفْسٌ
- कोई नफ़्स
- ʿan
- عَن
- किसी नफ़्स के
- nafsin
- نَّفْسٍ
- किसी नफ़्स के
- shayan
- شَيْـًٔا
- कुछ भी
- walā
- وَلَا
- और ना
- yuq'balu
- يُقْبَلُ
- क़ुबूल की जाएगी
- min'hā
- مِنْهَا
- उससे
- shafāʿatun
- شَفَٰعَةٌ
- कोई सिफ़ारिश
- walā
- وَلَا
- और ना
- yu'khadhu
- يُؤْخَذُ
- लिया जाएगा
- min'hā
- مِنْهَا
- उससे
- ʿadlun
- عَدْلٌ
- कोई बदला
- walā
- وَلَا
- और ना
- hum
- هُمْ
- वो
- yunṣarūna
- يُنصَرُونَ
- वो मदद किए जाऐंगे
और डरो उस दिन से जब न कोई किसी भी ओर से कुछ तावान भरेगा और न किसी की ओर से कोई सिफ़ारिश ही क़बूल की जाएगी और न किसी की ओर से कोई फ़िद्या (अर्थदंड) लिया जाएगा और न वे सहायता ही पा सकेंगे। ([२] अल बकराह: 48)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذْ نَجَّيْنٰكُمْ مِّنْ اٰلِ فِرْعَوْنَ يَسُوْمُوْنَكُمْ سُوْۤءَ الْعَذَابِ يُذَبِّحُوْنَ اَبْنَاۤءَكُمْ وَيَسْتَحْيُوْنَ نِسَاۤءَكُمْ ۗ وَفِيْ ذٰلِكُمْ بَلَاۤءٌ مِّنْ رَّبِّكُمْ عَظِيْمٌ ٤٩
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- najjaynākum
- نَجَّيْنَٰكُم
- निजात दी हमने तुम्हें
- min
- مِّنْ
- आले फ़िरऔन से
- āli
- ءَالِ
- आले फ़िरऔन से
- fir'ʿawna
- فِرْعَوْنَ
- आले फ़िरऔन से
- yasūmūnakum
- يَسُومُونَكُمْ
- वो तकलीफ़ देते थे तुम्हें
- sūa
- سُوٓءَ
- बुरे
- l-ʿadhābi
- ٱلْعَذَابِ
- अज़ाब की
- yudhabbiḥūna
- يُذَبِّحُونَ
- वो ख़ूब ज़िबाह करते थे
- abnāakum
- أَبْنَآءَكُمْ
- तुम्हारे बेटों को
- wayastaḥyūna
- وَيَسْتَحْيُونَ
- और वो ज़िन्दा छोड़ देते थे
- nisāakum
- نِسَآءَكُمْۚ
- तुम्हारी औरतों को
- wafī
- وَفِى
- और इसमें
- dhālikum
- ذَٰلِكُم
- और इसमें
- balāon
- بَلَآءٌ
- आज़माइश थी
- min
- مِّن
- तुम्हारे रब की तरफ़ से
- rabbikum
- رَّبِّكُمْ
- तुम्हारे रब की तरफ़ से
- ʿaẓīmun
- عَظِيمٌ
- बहुत बड़ी
और याद करो जब हमने तुम्हें फ़िरऔनियों से छुटकारा दिलाया जो तुम्हें अत्यन्त बुरी यातना देते थे, तुम्हारे बेटों को मार डालते थे और तुम्हारी स्त्रियों को जीवित रहने देते थे; और इसमं तुम्हारे रब की ओर से बड़ी परीक्षा थी ([२] अल बकराह: 49)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذْ فَرَقْنَا بِكُمُ الْبَحْرَ فَاَنْجَيْنٰكُمْ وَاَغْرَقْنَآ اٰلَ فِرْعَوْنَ وَاَنْتُمْ تَنْظُرُوْنَ ٥٠
- wa-idh
- وَإِذْ
- और जब
- faraqnā
- فَرَقْنَا
- फाड़ा हमने
- bikumu
- بِكُمُ
- तुम्हारे लिए
- l-baḥra
- ٱلْبَحْرَ
- समुन्दर को
- fa-anjaynākum
- فَأَنجَيْنَٰكُمْ
- फिर निजात दी हमने तुम्हें
- wa-aghraqnā
- وَأَغْرَقْنَآ
- और ग़र्क़ कर दिया हमने
- āla
- ءَالَ
- आले फ़िरऔन को
- fir'ʿawna
- فِرْعَوْنَ
- आले फ़िरऔन को
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- और तुम
- tanẓurūna
- تَنظُرُونَ
- तुम देख रहे थे
याद करो जब हमने तुम्हें सागर में अलग-अलग चौड़े रास्ते से ले जाकर छुटकारा दिया और फ़िरऔनियों को तुम्हारी आँखों के सामने डूबो दिया ([२] अल बकराह: 50)Tafseer (तफ़सीर )