وَاتَّقُوْا يَوْمًا تُرْجَعُوْنَ فِيْهِ اِلَى اللّٰهِ ۗثُمَّ تُوَفّٰى كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُوْنَ ࣖ ٢٨١
- wa-ittaqū
- وَٱتَّقُوا۟
- और डरो
- yawman
- يَوْمًا
- उस दिन से
- tur'jaʿūna
- تُرْجَعُونَ
- तुम लौटाए जाओगे
- fīhi
- فِيهِ
- जिस में
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ अल्लाह के
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- तरफ़ अल्लाह के
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- tuwaffā
- تُوَفَّىٰ
- पूरा पूरा दिया जाएगा
- kullu
- كُلُّ
- हर
- nafsin
- نَفْسٍ
- नफ़्स को
- mā
- مَّا
- जो
- kasabat
- كَسَبَتْ
- उसने कमाया
- wahum
- وَهُمْ
- और वो
- lā
- لَا
- ज़ुल्म ना किए जाऐंगे
- yuẓ'lamūna
- يُظْلَمُونَ
- ज़ुल्म ना किए जाऐंगे
और उस दिन का डर रखो जबकि तुम अल्लाह की ओर लौटोगे, फिर प्रत्येक व्यक्ति को जो कुछ उसने कमाया पूरा-पूरा मिल जाएगा और उनके साथ कदापि कोई अन्याय न होगा ([२] अल बकराह: 281)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اِذَا تَدَايَنْتُمْ بِدَيْنٍ اِلٰٓى اَجَلٍ مُّسَمًّى فَاكْتُبُوْهُۗ وَلْيَكْتُبْ بَّيْنَكُمْ كَاتِبٌۢ بِالْعَدْلِۖ وَلَا يَأْبَ كَاتِبٌ اَنْ يَّكْتُبَ كَمَا عَلَّمَهُ اللّٰهُ فَلْيَكْتُبْۚ وَلْيُمْلِلِ الَّذِيْ عَلَيْهِ الْحَقُّ وَلْيَتَّقِ اللّٰهَ رَبَّهٗ وَلَا يَبْخَسْ مِنْهُ شَيْـًٔاۗ فَاِنْ كَانَ الَّذِيْ عَلَيْهِ الْحَقُّ سَفِيْهًا اَوْ ضَعِيْفًا اَوْ لَا يَسْتَطِيْعُ اَنْ يُّمِلَّ هُوَ فَلْيُمْلِلْ وَلِيُّهٗ بِالْعَدْلِۗ وَاسْتَشْهِدُوْا شَهِيْدَيْنِ مِنْ رِّجَالِكُمْۚ فَاِنْ لَّمْ يَكُوْنَا رَجُلَيْنِ فَرَجُلٌ وَّامْرَاَتٰنِ مِمَّنْ تَرْضَوْنَ مِنَ الشُّهَدَۤاءِ اَنْ تَضِلَّ اِحْدٰىهُمَا فَتُذَكِّرَ اِحْدٰىهُمَا الْاُخْرٰىۗ وَلَا يَأْبَ الشُّهَدَۤاءُ اِذَا مَا دُعُوْا ۗ وَلَا تَسْـَٔمُوْٓا اَنْ تَكْتُبُوْهُ صَغِيْرًا اَوْ كَبِيْرًا اِلٰٓى اَجَلِهٖۗ ذٰلِكُمْ اَقْسَطُ عِنْدَ اللّٰهِ وَاَقْوَمُ لِلشَّهَادَةِ وَاَدْنٰىٓ اَلَّا تَرْتَابُوْٓا اِلَّآ اَنْ تَكُوْنَ تِجَارَةً حَاضِرَةً تُدِيْرُوْنَهَا بَيْنَكُمْ فَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ اَلَّا تَكْتُبُوْهَاۗ وَاَشْهِدُوْٓا اِذَا تَبَايَعْتُمْ ۖ وَلَا يُضَاۤرَّ كَاتِبٌ وَّلَا شَهِيْدٌ ەۗ وَاِنْ تَفْعَلُوْا فَاِنَّهٗ فُسُوْقٌۢ بِكُمْ ۗ وَاتَّقُوا اللّٰهَ ۗ وَيُعَلِّمُكُمُ اللّٰهُ ۗ وَاللّٰهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيْمٌ ٢٨٢
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوٓا۟
- ईमान लाए हो
- idhā
- إِذَا
- जब
- tadāyantum
- تَدَايَنتُم
- तुम बाहम लेन-देन करो
- bidaynin
- بِدَيْنٍ
- क़र्ज़ का
- ilā
- إِلَىٰٓ
- एक मुक़र्ररह वक़्त तक
- ajalin
- أَجَلٍ
- एक मुक़र्ररह वक़्त तक
- musamman
- مُّسَمًّى
- एक मुक़र्ररह वक़्त तक
- fa-uk'tubūhu
- فَٱكْتُبُوهُۚ
- तो लिख लो उसे
- walyaktub
- وَلْيَكْتُب
- और चाहिए कि लिखे
- baynakum
- بَّيْنَكُمْ
- दर्मियान तुम्हारे
- kātibun
- كَاتِبٌۢ
- एक लिखने वाला
- bil-ʿadli
- بِٱلْعَدْلِۚ
- साथ अदल के
- walā
- وَلَا
- और ना
- yaba
- يَأْبَ
- इन्कार करे
- kātibun
- كَاتِبٌ
- लिखने वाला
- an
- أَن
- कि
- yaktuba
- يَكْتُبَ
- वो लिखे
- kamā
- كَمَا
- जैसा कि
- ʿallamahu
- عَلَّمَهُ
- सिखाया उसे
- l-lahu
- ٱللَّهُۚ
- अल्लाह ने
- falyaktub
- فَلْيَكْتُبْ
- पस चाहिए कि वो लिखे
- walyum'lili
- وَلْيُمْلِلِ
- और चाहिए कि इमला कराए
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो शख़्स
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- जिस पर
- l-ḥaqu
- ٱلْحَقُّ
- हक़ है
- walyattaqi
- وَلْيَتَّقِ
- और चाहिए कि वो डरे
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- rabbahu
- رَبَّهُۥ
- जो रब है उसका
- walā
- وَلَا
- और ना
- yabkhas
- يَبْخَسْ
- वो कमी करे
- min'hu
- مِنْهُ
- उसमें से
- shayan
- شَيْـًٔاۚ
- किसी चीज़ की
- fa-in
- فَإِن
- फिर अगर
- kāna
- كَانَ
- हो
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो शख़्स
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- जिस पर
- l-ḥaqu
- ٱلْحَقُّ
- हक़ है
- safīhan
- سَفِيهًا
- नादान
- aw
- أَوْ
- या
- ḍaʿīfan
- ضَعِيفًا
- कमज़ोर
- aw
- أَوْ
- या
- lā
- لَا
- नहीं वो इस्तिताअत रखता
- yastaṭīʿu
- يَسْتَطِيعُ
- नहीं वो इस्तिताअत रखता
- an
- أَن
- कि
- yumilla
- يُمِلَّ
- इमला कराए
- huwa
- هُوَ
- वो
- falyum'lil
- فَلْيُمْلِلْ
- पस चाहिए कि इमला कराए
- waliyyuhu
- وَلِيُّهُۥ
- सरपरस्त उसका
- bil-ʿadli
- بِٱلْعَدْلِۚ
- साथ अदल के
- wa-is'tashhidū
- وَٱسْتَشْهِدُوا۟
- और गवाह बना लो
- shahīdayni
- شَهِيدَيْنِ
- दो गवाह
- min
- مِن
- अपने मर्दों में से
- rijālikum
- رِّجَالِكُمْۖ
- अपने मर्दों में से
- fa-in
- فَإِن
- फिर अगर
- lam
- لَّمْ
- ना
- yakūnā
- يَكُونَا
- हों वो दोनों
- rajulayni
- رَجُلَيْنِ
- दो मर्द
- farajulun
- فَرَجُلٌ
- तो एक मर्द
- wa-im'ra-atāni
- وَٱمْرَأَتَانِ
- और दो औरतें
- mimman
- مِمَّن
- उनमें से जिन्हें
- tarḍawna
- تَرْضَوْنَ
- तुम पसंद करते हो
- mina
- مِنَ
- गवाहों में से
- l-shuhadāi
- ٱلشُّهَدَآءِ
- गवाहों में से
- an
- أَن
- कि
- taḍilla
- تَضِلَّ
- भूल जाए
- iḥ'dāhumā
- إِحْدَىٰهُمَا
- उन दोनों में से एक
- fatudhakkira
- فَتُذَكِّرَ
- तो याद दिहानी करा दे
- iḥ'dāhumā
- إِحْدَىٰهُمَا
- उन दोनों में से एक
- l-ukh'rā
- ٱلْأُخْرَىٰۚ
- दूसरी को
- walā
- وَلَا
- और ना
- yaba
- يَأْبَ
- इन्कार करें
- l-shuhadāu
- ٱلشُّهَدَآءُ
- गवाह
- idhā
- إِذَا
- जब भी
- mā
- مَا
- जब भी
- duʿū
- دُعُوا۟ۚ
- वो बुलाए जाऐं
- walā
- وَلَا
- और ना
- tasamū
- تَسْـَٔمُوٓا۟
- तुम उकताहट महसूस करो
- an
- أَن
- कि
- taktubūhu
- تَكْتُبُوهُ
- तुम लिख लो उसे
- ṣaghīran
- صَغِيرًا
- छोटा हो
- aw
- أَوْ
- या
- kabīran
- كَبِيرًا
- बड़ा हो
- ilā
- إِلَىٰٓ
- उसके मुक़र्रर वक़्त तक
- ajalihi
- أَجَلِهِۦۚ
- उसके मुक़र्रर वक़्त तक
- dhālikum
- ذَٰلِكُمْ
- ये
- aqsaṭu
- أَقْسَطُ
- ज़्यादा इन्साफ़ वाला है
- ʿinda
- عِندَ
- नज़दीक
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- wa-aqwamu
- وَأَقْوَمُ
- और ज़्यादा दुरुस्त है
- lilshahādati
- لِلشَّهَٰدَةِ
- गवाही के लिए
- wa-adnā
- وَأَدْنَىٰٓ
- और ज़्यादा क़रीब है
- allā
- أَلَّا
- कि ना
- tartābū
- تَرْتَابُوٓا۟ۖ
- तुम शक में पड़ो
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- an
- أَن
- ये कि
- takūna
- تَكُونَ
- हो
- tijāratan
- تِجَٰرَةً
- तिजारत
- ḥāḍiratan
- حَاضِرَةً
- हाज़िर
- tudīrūnahā
- تُدِيرُونَهَا
- तुम लेन-देन करते हो जिसका
- baynakum
- بَيْنَكُمْ
- आपस में
- falaysa
- فَلَيْسَ
- तो नहीं है
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- junāḥun
- جُنَاحٌ
- कोई गुनाह
- allā
- أَلَّا
- कि ना
- taktubūhā
- تَكْتُبُوهَاۗ
- तुम लिखो उसे
- wa-ashhidū
- وَأَشْهِدُوٓا۟
- और गवाह बना लो
- idhā
- إِذَا
- जब
- tabāyaʿtum
- تَبَايَعْتُمْۚ
- बाहम ख़रीदो फ़रोख़्त करो तुम
- walā
- وَلَا
- और ना
- yuḍārra
- يُضَآرَّ
- नुक़सान पहुँचाए / पहुँचाया जाए
- kātibun
- كَاتِبٌ
- कातिब
- walā
- وَلَا
- और ना
- shahīdun
- شَهِيدٌۚ
- गवाह
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- tafʿalū
- تَفْعَلُوا۟
- तुम (ऐसा) करोगे
- fa-innahu
- فَإِنَّهُۥ
- तो बेशक वो
- fusūqun
- فُسُوقٌۢ
- नाफ़रमानी है
- bikum
- بِكُمْۗ
- तुम्हारी
- wa-ittaqū
- وَٱتَّقُوا۟
- और डरो
- l-laha
- ٱللَّهَۖ
- अल्लाह से
- wayuʿallimukumu
- وَيُعَلِّمُكُمُ
- और सिखाता है तुम्हें
- l-lahu
- ٱللَّهُۗ
- अल्लाह
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- bikulli
- بِكُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ को
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
ऐ ईमान लानेवालो! जब किसी निश्चित अवधि के लिए आपस में ऋण का लेन-देन करो तो उसे लिख लिया करो और चाहिए कि कोई लिखनेवाला तुम्हारे बीच न्यायपूर्वक (दस्तावेज़) लिख दे। और लिखनेवाला लिखने से इनकार न करे; जिस प्रकार अल्लाह ने उसे सिखाया है, उसी प्रकार वह दूसरों के लिए लिखने के काम आए और बोलकर वह लिखाए जिसके ज़िम्मे हक़ की अदायगी हो। और उसे अल्लाह का, जो उसका रब है, डर रखना चाहिए और उसमें कोई कमी न करनी चाहिए। फिर यदि वह व्यक्ति जिसके ज़िम्मे हक़ की अदायगी हो, कम समझ या कमज़ोर हो या वह बोलकर न लिखा सकता हो तो उसके संरक्षक को चाहिए कि न्यायपूर्वक बोलकर लिखा दे। और अपने पुरुषों में से दो गवाहो को गवाह बना लो और यदि दो पुरुष न हों तो एक पुरुष और दो स्त्रियाँ, जिन्हें तुम गवाह के लिए पसन्द करो, गवाह हो जाएँ (दो स्त्रियाँ इसलिए रखी गई है) ताकि यदि एक भूल जाए तो दूसरी उसे याद दिला दे। और गवाहों को जब बुलाया जाए तो आने से इनकार न करें। मामला चाहे छोटा हो या बड़ा एक निर्धारित अवधि तक के लिए है, तो उसे लिखने में सुस्ती से काम न लो। यह अल्लाह की स्पष्ट से अधिक न्यायसंगत बात है और इससे गवाही भी अधिक ठीक रहती है। और इससे अधि क संभावना है कि तुम किसी संदेह में नहीं पड़ोगे। हाँ, यदि कोई सौदा नक़द हो, जिसका लेन-देन तुम आपस में कर रहे हो, तो तुम्हारे उसके न लिखने में तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं। और जब आपम में क्रय-विक्रय का मामला करो तो उस समय भी गवाह कर लिया करो, और न किसी लिखनेवाले को हानि पहुँचाए जाए और न किसी गवाह को। और यदि ऐसा करोगे तो यह तुम्हारे लिए अवज्ञा की बात होगी। और अल्लाह का डर रखो। अल्लाह तुम्हें शिक्षा दे रहा है। और अल्लाह हर चीज़ को जानता है ([२] अल बकराह: 282)Tafseer (तफ़सीर )
۞ وَاِنْ كُنْتُمْ عَلٰى سَفَرٍ وَّلَمْ تَجِدُوْا كَاتِبًا فَرِهٰنٌ مَّقْبُوْضَةٌ ۗفَاِنْ اَمِنَ بَعْضُكُمْ بَعْضًا فَلْيُؤَدِّ الَّذِى اؤْتُمِنَ اَمَانَتَهٗ وَلْيَتَّقِ اللّٰهَ رَبَّهٗ ۗ وَلَا تَكْتُمُوا الشَّهَادَةَۗ وَمَنْ يَّكْتُمْهَا فَاِنَّهٗٓ اٰثِمٌ قَلْبُهٗ ۗ وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ عَلِيْمٌ ࣖ ٢٨٣
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- ʿalā
- عَلَىٰ
- सफ़र पर
- safarin
- سَفَرٍ
- सफ़र पर
- walam
- وَلَمْ
- और ना
- tajidū
- تَجِدُوا۟
- तुम पाओ
- kātiban
- كَاتِبًا
- कोई कातिब
- farihānun
- فَرِهَٰنٌ
- तो रहन रखना है
- maqbūḍatun
- مَّقْبُوضَةٌۖ
- क़ब्ज़ा में दी हुई (चीज़)
- fa-in
- فَإِنْ
- फिर अगर
- amina
- أَمِنَ
- ऐतबार करे
- baʿḍukum
- بَعْضُكُم
- बाज़ तुम्हारा
- baʿḍan
- بَعْضًا
- बाज़ पर
- falyu-addi
- فَلْيُؤَدِّ
- तो चाहिए कि अदा करे
- alladhī
- ٱلَّذِى
- वो जो
- u'tumina
- ٱؤْتُمِنَ
- अमीन बनाया गया
- amānatahu
- أَمَٰنَتَهُۥ
- उसकी अमानत को
- walyattaqi
- وَلْيَتَّقِ
- और चाहिए कि वो डरे
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- rabbahu
- رَبَّهُۥۗ
- जो रब है उसका
- walā
- وَلَا
- और ना
- taktumū
- تَكْتُمُوا۟
- तुम छुपाओ
- l-shahādata
- ٱلشَّهَٰدَةَۚ
- गवाही को
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yaktum'hā
- يَكْتُمْهَا
- छुपाएगा उसे
- fa-innahu
- فَإِنَّهُۥٓ
- तो बेशक वो
- āthimun
- ءَاثِمٌ
- गुनाहगार है
- qalbuhu
- قَلْبُهُۥۗ
- दिल उसका
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- bimā
- بِمَا
- उसे जो
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते हो
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
और यदि तुम किसी सफ़र में हो और किसी लिखनेवाले को न पा सको, तो गिरवी रखकर मामला करो। फिर यदि तुममें से एक-दूसरे पर भरोसा के, तो जिस पर भरोसा किया है उसे चाहिए कि वह यह सच कर दिखाए कि वह विश्वासपात्र है और अल्लाह का, जो उसका रब है, डर रखे। और गवाही को न छिपाओ। जो उसे छिपाता है तो निश्चय ही उसका दिल गुनाहगार है, और तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है ([२] अल बकराह: 283)Tafseer (तफ़सीर )
لِلّٰهِ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الْاَرْضِ ۗ وَاِنْ تُبْدُوْا مَا فِيْٓ اَنْفُسِكُمْ اَوْ تُخْفُوْهُ يُحَاسِبْكُمْ بِهِ اللّٰهُ ۗ فَيَغْفِرُ لِمَنْ يَّشَاۤءُ وَيُعَذِّبُ مَنْ يَّشَاۤءُ ۗ وَاللّٰهُ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرٌ ٢٨٤
- lillahi
- لِّلَّهِ
- अल्लाह ही के लिए है
- mā
- مَا
- जो
- fī
- فِى
- आसमानों में है
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों में है
- wamā
- وَمَا
- और जो
- fī
- فِى
- ज़मीन में है
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِۗ
- ज़मीन में है
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- tub'dū
- تُبْدُوا۟
- तुम ज़ाहिर करोगे
- mā
- مَا
- जो
- fī
- فِىٓ
- तुम्हारे नफ़्सों में है
- anfusikum
- أَنفُسِكُمْ
- तुम्हारे नफ़्सों में है
- aw
- أَوْ
- या
- tukh'fūhu
- تُخْفُوهُ
- तुम छुपाओगे उसे
- yuḥāsib'kum
- يُحَاسِبْكُم
- मुहासबा करेगा तुम्हारा
- bihi
- بِهِ
- साथ उसके
- l-lahu
- ٱللَّهُۖ
- अल्लाह
- fayaghfiru
- فَيَغْفِرُ
- फिर वो बख़्श देगा
- liman
- لِمَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहेगा
- wayuʿadhibu
- وَيُعَذِّبُ
- और वो अज़ाब देगा
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُۗ
- वो चाहेगा
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर
- kulli
- كُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ के
- qadīrun
- قَدِيرٌ
- बहुत क़ुदरत रखने वाला है
अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और जो कुछ तुम्हारे मन है, यदि तुम उसे व्यक्त करो या छिपाओं, अल्लाह तुमसे उसका हिसाब लेगा। फिर वह जिसे चाहे क्षमा कर दे और जिसे चाहे यातना दे। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है ([२] अल बकराह: 284)Tafseer (तफ़सीर )
اٰمَنَ الرَّسُوْلُ بِمَآ اُنْزِلَ اِلَيْهِ مِنْ رَّبِّهٖ وَالْمُؤْمِنُوْنَۗ كُلٌّ اٰمَنَ بِاللّٰهِ وَمَلٰۤىِٕكَتِهٖ وَكُتُبِهٖ وَرُسُلِهٖۗ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ اَحَدٍ مِّنْ رُّسُلِهٖ ۗ وَقَالُوْا سَمِعْنَا وَاَطَعْنَا غُفْرَانَكَ رَبَّنَا وَاِلَيْكَ الْمَصِيْرُ ٢٨٥
- āmana
- ءَامَنَ
- ईमान लाया
- l-rasūlu
- ٱلرَّسُولُ
- रसूल
- bimā
- بِمَآ
- उस पर जो
- unzila
- أُنزِلَ
- नाज़िल किया गया
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ उसके
- min
- مِن
- उसके रब की तरफ़ से
- rabbihi
- رَّبِّهِۦ
- उसके रब की तरफ़ से
- wal-mu'minūna
- وَٱلْمُؤْمِنُونَۚ
- और सारे मोमिन (भी)
- kullun
- كُلٌّ
- हर एक
- āmana
- ءَامَنَ
- ईमान लाया
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- wamalāikatihi
- وَمَلَٰٓئِكَتِهِۦ
- और उसके फ़रिश्तों पर
- wakutubihi
- وَكُتُبِهِۦ
- और उसकी किताबों पर
- warusulihi
- وَرُسُلِهِۦ
- और उसके रसूलों पर
- lā
- لَا
- नहीं हम फ़र्क़ करते
- nufarriqu
- نُفَرِّقُ
- नहीं हम फ़र्क़ करते
- bayna
- بَيْنَ
- दर्मियान
- aḥadin
- أَحَدٍ
- किसी एक के
- min
- مِّن
- उसके रसूलों में से
- rusulihi
- رُّسُلِهِۦۚ
- उसके रसूलों में से
- waqālū
- وَقَالُوا۟
- और उन्होंने कहा
- samiʿ'nā
- سَمِعْنَا
- सुना हमने
- wa-aṭaʿnā
- وَأَطَعْنَاۖ
- और इताअत की हमने
- ghuf'rānaka
- غُفْرَانَكَ
- तेरी मग़फ़िरत (चाहते हैं)
- rabbanā
- رَبَّنَا
- ऐ हमारे रब
- wa-ilayka
- وَإِلَيْكَ
- और तेरी ही तरफ़
- l-maṣīru
- ٱلْمَصِيرُ
- पलटना है
रसूल उसपर, जो कुछ उसके रब की ओर से उसकी ओर उतरा, ईमान लाया और ईमानवाले भी, प्रत्येक, अल्लाह पर, उसके फ़रिश्तों पर, उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर ईमान लाया। (और उनका कहना यह है,) 'हम उसके रसूलों में से किसी को दूसरे रसूलों से अलग नहीं करते।' और उनका कहना है, 'हमने सुना और आज्ञाकारी हुए। हमारे रब! हम तेरी क्षमा के इच्छुक है और तेरी ही ओर लौटना है।' ([२] अल बकराह: 285)Tafseer (तफ़सीर )
لَا يُكَلِّفُ اللّٰهُ نَفْسًا اِلَّا وُسْعَهَا ۗ لَهَا مَا كَسَبَتْ وَعَلَيْهَا مَا اكْتَسَبَتْ ۗ رَبَّنَا لَا تُؤَاخِذْنَآ اِنْ نَّسِيْنَآ اَوْ اَخْطَأْنَا ۚ رَبَّنَا وَلَا تَحْمِلْ عَلَيْنَآ اِصْرًا كَمَا حَمَلْتَهٗ عَلَى الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِنَا ۚ رَبَّنَا وَلَا تُحَمِّلْنَا مَا لَا طَاقَةَ لَنَا بِهٖۚ وَاعْفُ عَنَّاۗ وَاغْفِرْ لَنَاۗ وَارْحَمْنَا ۗ اَنْتَ مَوْلٰىنَا فَانْصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكٰفِرِيْنَ ࣖ ٢٨٦
- lā
- لَا
- नहीं तकलीफ़ देता
- yukallifu
- يُكَلِّفُ
- नहीं तकलीफ़ देता
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- nafsan
- نَفْسًا
- किसी नफ़्स को
- illā
- إِلَّا
- मगर
- wus'ʿahā
- وُسْعَهَاۚ
- उसकी वुसअत भर
- lahā
- لَهَا
- उसी के लिए है
- mā
- مَا
- जो
- kasabat
- كَسَبَتْ
- उसने (नेकी) कमाई
- waʿalayhā
- وَعَلَيْهَا
- और उसके ज़िम्मा है
- mā
- مَا
- जो
- ik'tasabat
- ٱكْتَسَبَتْۗ
- उसने (बुराई) कमाई
- rabbanā
- رَبَّنَا
- ऐ हमारे रब
- lā
- لَا
- ना तू मुआख़ज़ा करना हमारा
- tuākhidh'nā
- تُؤَاخِذْنَآ
- ना तू मुआख़ज़ा करना हमारा
- in
- إِن
- अगर
- nasīnā
- نَّسِينَآ
- भूल जाऐं हम
- aw
- أَوْ
- या
- akhṭanā
- أَخْطَأْنَاۚ
- ख़ता करें हम
- rabbanā
- رَبَّنَا
- ऐ हमारे रब
- walā
- وَلَا
- और ना
- taḥmil
- تَحْمِلْ
- तू डाल
- ʿalaynā
- عَلَيْنَآ
- हम पर
- iṣ'ran
- إِصْرًا
- ऐसा बोझ
- kamā
- كَمَا
- जैसा कि
- ḥamaltahu
- حَمَلْتَهُۥ
- डाला तूने उसे
- ʿalā
- عَلَى
- उन पर जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन पर जो
- min
- مِن
- हमसे पहले थे
- qablinā
- قَبْلِنَاۚ
- हमसे पहले थे
- rabbanā
- رَبَّنَا
- ऐ हमारे रब
- walā
- وَلَا
- और ना
- tuḥammil'nā
- تُحَمِّلْنَا
- तू उठवा हमसे
- mā
- مَا
- वो जो
- lā
- لَا
- नहीं ताक़त
- ṭāqata
- طَاقَةَ
- नहीं ताक़त
- lanā
- لَنَا
- हमारे लिए
- bihi
- بِهِۦۖ
- जिसकी
- wa-uʿ'fu
- وَٱعْفُ
- और दरगुज़र फ़रमा
- ʿannā
- عَنَّا
- हमसे
- wa-igh'fir
- وَٱغْفِرْ
- और बख़्श दे
- lanā
- لَنَا
- हमें
- wa-ir'ḥamnā
- وَٱرْحَمْنَآۚ
- और रहम फ़रमा हम पर
- anta
- أَنتَ
- तू
- mawlānā
- مَوْلَىٰنَا
- मौला है हमारा
- fa-unṣur'nā
- فَٱنصُرْنَا
- पस मदद फ़रमा हमारी
- ʿalā
- عَلَى
- उन लोगों पर
- l-qawmi
- ٱلْقَوْمِ
- उन लोगों पर
- l-kāfirīna
- ٱلْكَٰفِرِينَ
- जो काफ़िर हैं
अल्लाह किसी जीव पर बस उसकी सामर्थ्य और समाई के अनुसार ही दायित्व का भार डालता है। उसका है जो उसने कमाया और उसी पर उसका वबाल (आपदा) भी है जो उसने किया। 'हमारे रब! यदि हम भूलें या चूक जाएँ तो हमें न पकड़ना। हमारे रब! और हम पर ऐसा बोझ न डाल जैसा तूने हमसे पहले के लोगों पर डाला था। हमारे रब! और हमसे वह बोझ न उठवा, जिसकी हमें शक्ति नहीं। और हमें क्षमा कर और हमें ढाँक ले, और हमपर दया कर। तू ही हमारा संरक्षक है, अतएव इनकार करनेवालों के मुक़ाबले में हमारी सहायता कर।' ([२] अल बकराह: 286)Tafseer (तफ़सीर )