مَثَلُ الَّذِيْنَ يُنْفِقُوْنَ اَمْوَالَهُمْ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ كَمَثَلِ حَبَّةٍ اَنْۢبَتَتْ سَبْعَ سَنَابِلَ فِيْ كُلِّ سُنْۢبُلَةٍ مِّائَةُ حَبَّةٍ ۗ وَاللّٰهُ يُضٰعِفُ لِمَنْ يَّشَاۤءُ ۗوَاللّٰهُ وَاسِعٌ عَلِيْمٌ ٢٦١
- mathalu
- مَّثَلُ
- मिसाल
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनकी जो
- yunfiqūna
- يُنفِقُونَ
- ख़र्च करते हैं
- amwālahum
- أَمْوَٰلَهُمْ
- अपने मालों को
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते में
- kamathali
- كَمَثَلِ
- मानिन्द मिसाल
- ḥabbatin
- حَبَّةٍ
- एक दाने के है
- anbatat
- أَنۢبَتَتْ
- उसने उगाईं
- sabʿa
- سَبْعَ
- सात
- sanābila
- سَنَابِلَ
- बालियाँ
- fī
- فِى
- हर बाली में
- kulli
- كُلِّ
- हर बाली में
- sunbulatin
- سُنۢبُلَةٍ
- हर बाली में
- mi-atu
- مِّا۟ئَةُ
- सौ
- ḥabbatin
- حَبَّةٍۗ
- दाने
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yuḍāʿifu
- يُضَٰعِفُ
- बढ़ाता है
- liman
- لِمَن
- जिसके लिए
- yashāu
- يَشَآءُۗ
- वो चाहता है
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- wāsiʿun
- وَٰسِعٌ
- वुसअत वाला है
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
जो लोग अपने माल अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते है, उनकी उपमा ऐसी है, जैसे एक दाना हो, जिससे सात बालें निकलें और प्रत्येक बाल में सौ दाने हो। अल्लाह जिसे चाहता है बढ़ोतरी प्रदान करता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, जाननेवाला है ([२] अल बकराह: 261)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَّذِيْنَ يُنْفِقُوْنَ اَمْوَالَهُمْ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ ثُمَّ لَا يُتْبِعُوْنَ مَآ اَنْفَقُوْا مَنًّا وَّلَآ اَذًىۙ لَّهُمْ اَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْۚ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُوْنَ ٢٦٢
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- yunfiqūna
- يُنفِقُونَ
- ख़र्च करते हैं
- amwālahum
- أَمْوَٰلَهُمْ
- अपने मालों को
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते में
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- lā
- لَا
- नहीं वो पीछे लाते
- yut'biʿūna
- يُتْبِعُونَ
- नहीं वो पीछे लाते
- mā
- مَآ
- उसके जो
- anfaqū
- أَنفَقُوا۟
- उन्होंने ख़र्च किया
- mannan
- مَنًّا
- एहसान को
- walā
- وَلَآ
- और ना
- adhan
- أَذًىۙ
- अज़ियत को
- lahum
- لَّهُمْ
- उनके लिए है
- ajruhum
- أَجْرُهُمْ
- अजर उनका
- ʿinda
- عِندَ
- पास
- rabbihim
- رَبِّهِمْ
- उनके रब के
- walā
- وَلَا
- और ना
- khawfun
- خَوْفٌ
- कोई ख़ौफ़ होगा
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- walā
- وَلَا
- और ना
- hum
- هُمْ
- वो
- yaḥzanūna
- يَحْزَنُونَ
- वो ग़मगीन होंगे
जो लोग अपने माल अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते है, फिर ख़र्च करके उसका न एहसान जताते है और न दिल दुखाते है, उनका बदला उनके अपने रब के पास है। और न तो उनके लिए कोई भय होगा और न वे दुखी होंगे ([२] अल बकराह: 262)Tafseer (तफ़सीर )
۞ قَوْلٌ مَّعْرُوْفٌ وَّمَغْفِرَةٌ خَيْرٌ مِّنْ صَدَقَةٍ يَّتْبَعُهَآ اَذًى ۗ وَاللّٰهُ غَنِيٌّ حَلِيْمٌ ٢٦٣
- qawlun
- قَوْلٌ
- बात
- maʿrūfun
- مَّعْرُوفٌ
- अच्छी (कहना)
- wamaghfiratun
- وَمَغْفِرَةٌ
- और माफ़ करना
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर है
- min
- مِّن
- उस सदक़े से
- ṣadaqatin
- صَدَقَةٍ
- उस सदक़े से
- yatbaʿuhā
- يَتْبَعُهَآ
- पीछे आए जिसके
- adhan
- أَذًىۗ
- कोई अज़ियत
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ghaniyyun
- غَنِىٌّ
- बड़ा बेनियाज़ है
- ḥalīmun
- حَلِيمٌ
- बहुत बुर्दबार है
एक भली बात कहनी और क्षमा से काम लेना उस सदक़े से अच्छा है, जिसके पीछे दुख हो। और अल्लाह अत्यन्कृत निस्पृह (बेनियाज़), सहनशील है ([२] अल बकराह: 263)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تُبْطِلُوْا صَدَقٰتِكُمْ بِالْمَنِّ وَالْاَذٰىۙ كَالَّذِيْ يُنْفِقُ مَالَهٗ رِئَاۤءَ النَّاسِ وَلَا يُؤْمِنُ بِاللّٰهِ وَالْيَوْمِ الْاٰخِرِۗ فَمَثَلُهٗ كَمَثَلِ صَفْوَانٍ عَلَيْهِ تُرَابٌ فَاَصَابَهٗ وَابِلٌ فَتَرَكَهٗ صَلْدًا ۗ لَا يَقْدِرُوْنَ عَلٰى شَيْءٍ مِّمَّا كَسَبُوْا ۗ وَاللّٰهُ لَا يَهْدِى الْقَوْمَ الْكٰفِرِيْنَ ٢٦٤
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- lā
- لَا
- ना तुम ज़ाया करो
- tub'ṭilū
- تُبْطِلُوا۟
- ना तुम ज़ाया करो
- ṣadaqātikum
- صَدَقَٰتِكُم
- अपने सदक़ात को
- bil-mani
- بِٱلْمَنِّ
- साथ एहसान
- wal-adhā
- وَٱلْأَذَىٰ
- और अज़ियत के
- ka-alladhī
- كَٱلَّذِى
- उसकी तरह जो
- yunfiqu
- يُنفِقُ
- ख़र्च करता है
- mālahu
- مَالَهُۥ
- माल अपना
- riāa
- رِئَآءَ
- दिखाने के लिए
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोगों को
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- yu'minu
- يُؤْمِنُ
- वो ईमान लाता
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- wal-yawmi
- وَٱلْيَوْمِ
- और आख़िरी दिन पर
- l-ākhiri
- ٱلْءَاخِرِۖ
- और आख़िरी दिन पर
- famathaluhu
- فَمَثَلُهُۥ
- तो मिसाल उसकी
- kamathali
- كَمَثَلِ
- मानिन्द मिसाल
- ṣafwānin
- صَفْوَانٍ
- चिकने पत्थर के है
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- जिस पर
- turābun
- تُرَابٌ
- मिट्टी हो
- fa-aṣābahu
- فَأَصَابَهُۥ
- तो पहुँचे उसे
- wābilun
- وَابِلٌ
- तेज़ बारिश
- fatarakahu
- فَتَرَكَهُۥ
- तो वो छोड़ दे उसे
- ṣaldan
- صَلْدًاۖ
- साफ़ चट्टान
- lā
- لَّا
- नहीं वो क़ुदरत रखते होंगे
- yaqdirūna
- يَقْدِرُونَ
- नहीं वो क़ुदरत रखते होंगे
- ʿalā
- عَلَىٰ
- किसी चीज़ पर
- shayin
- شَىْءٍ
- किसी चीज़ पर
- mimmā
- مِّمَّا
- उसमें से जो
- kasabū
- كَسَبُوا۟ۗ
- उन्होंने कमाई की
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं वो हिदायत देता
- yahdī
- يَهْدِى
- नहीं वो हिदायत देता
- l-qawma
- ٱلْقَوْمَ
- उन लोगों को
- l-kāfirīna
- ٱلْكَٰفِرِينَ
- जो काफ़िर हैं
ऐ ईमानवालो! अपने सदक़ो को एहसान जताकर और दुख देकर उस व्यक्ति की तरह नष्ट न करो जो लोगों को दिखाने के लिए अपना माल ख़र्च करता है और अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान नहीं रखता। तो उसकी हालत उस चट्टान जैसी है जिसपर कुछ मिट्टी पड़ी हुई थी, फिर उस पर ज़ोर की वर्षा हुई और उसे साफ़ चट्टान की दशा में छोड़ गई। ऐसे लोग अपनी कमाई कुछ भी प्राप्त नहीं करते। और अल्लाह इनकार की नीति अपनानेवालों को मार्ग नहीं दिखाता ([२] अल बकराह: 264)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَثَلُ الَّذِيْنَ يُنْفِقُوْنَ اَمْوَالَهُمُ ابْتِغَاۤءَ مَرْضَاتِ اللّٰهِ وَتَثْبِيْتًا مِّنْ اَنْفُسِهِمْ كَمَثَلِ جَنَّةٍۢ بِرَبْوَةٍ اَصَابَهَا وَابِلٌ فَاٰتَتْ اُكُلَهَا ضِعْفَيْنِۚ فَاِنْ لَّمْ يُصِبْهَا وَابِلٌ فَطَلٌّ ۗوَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ بَصِيْرٌ ٢٦٥
- wamathalu
- وَمَثَلُ
- और मिसाल
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनकी जो
- yunfiqūna
- يُنفِقُونَ
- ख़र्च करते है
- amwālahumu
- أَمْوَٰلَهُمُ
- अपने माल
- ib'tighāa
- ٱبْتِغَآءَ
- चाहने के लिए
- marḍāti
- مَرْضَاتِ
- रज़ामन्दी
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- watathbītan
- وَتَثْبِيتًا
- और पुख़्तगी के लिए
- min
- مِّنْ
- अपने नफ़्सों की
- anfusihim
- أَنفُسِهِمْ
- अपने नफ़्सों की
- kamathali
- كَمَثَلِ
- मानिन्द मिसाल
- jannatin
- جَنَّةٍۭ
- एक बाग़ के है
- birabwatin
- بِرَبْوَةٍ
- ऊँची जगह पर
- aṣābahā
- أَصَابَهَا
- पहुँचे उसे
- wābilun
- وَابِلٌ
- तेज़ बारिश
- faātat
- فَـَٔاتَتْ
- तो वो दे
- ukulahā
- أُكُلَهَا
- फल अपना
- ḍiʿ'fayni
- ضِعْفَيْنِ
- दोगुना
- fa-in
- فَإِن
- फिर अगर
- lam
- لَّمْ
- ना
- yuṣib'hā
- يُصِبْهَا
- पहुँचे उसे
- wābilun
- وَابِلٌ
- तेज़ बारिश
- faṭallun
- فَطَلٌّۗ
- तो फुहार (ही काफ़ी है)
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- bimā
- بِمَا
- उसे जो
- taʿmalūna
- تَعْمَلُونَ
- तुम अमल करते हो
- baṣīrun
- بَصِيرٌ
- ख़ूब देखने वाला है
और जो लोग अपने माल अल्लाह की प्रसन्नता के संसाधनों की तलब में और अपने दिलों को जमाव प्रदान करने के कारण ख़र्च करते है उनकी हालत उस बाग़़ की तरह है जो किसी अच्छी और उर्वर भूमि पर हो। उस पर घोर वर्षा हुई तो उसमें दुगुने फल आए। फिर यदि घोर वर्षा उस पर नहीं हुई, तो फुहार ही पर्याप्त होगी। तुम जो कुछ भी करते हो अल्लाह उसे देख रहा है ([२] अल बकराह: 265)Tafseer (तफ़सीर )
اَيَوَدُّ اَحَدُكُمْ اَنْ تَكُوْنَ لَهٗ جَنَّةٌ مِّنْ نَّخِيْلٍ وَّاَعْنَابٍ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُۙ لَهٗ فِيْهَا مِنْ كُلِّ الثَّمَرٰتِۙ وَاَصَابَهُ الْكِبَرُ وَلَهٗ ذُرِّيَّةٌ ضُعَفَاۤءُۚ فَاَصَابَهَآ اِعْصَارٌ فِيْهِ نَارٌ فَاحْتَرَقَتْ ۗ كَذٰلِكَ يُبَيِّنُ اللّٰهُ لَكُمُ الْاٰيٰتِ لَعَلَّكُمْ تَتَفَكَّرُوْنَ ࣖ ٢٦٦
- ayawaddu
- أَيَوَدُّ
- क्या चाहता है
- aḥadukum
- أَحَدُكُمْ
- कोई एक तुम में से
- an
- أَن
- कि
- takūna
- تَكُونَ
- हो
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- jannatun
- جَنَّةٌ
- एक बाग़
- min
- مِّن
- खजूरों का
- nakhīlin
- نَّخِيلٍ
- खजूरों का
- wa-aʿnābin
- وَأَعْنَابٍ
- और अँगूरों का
- tajrī
- تَجْرِى
- बहती हों
- min
- مِن
- उसके नीचे से
- taḥtihā
- تَحْتِهَا
- उसके नीचे से
- l-anhāru
- ٱلْأَنْهَٰرُ
- नहरें
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- fīhā
- فِيهَا
- उस में
- min
- مِن
- हर तरह के
- kulli
- كُلِّ
- हर तरह के
- l-thamarāti
- ٱلثَّمَرَٰتِ
- फल हों
- wa-aṣābahu
- وَأَصَابَهُ
- और पहुँचे उसे
- l-kibaru
- ٱلْكِبَرُ
- बुढ़ापा
- walahu
- وَلَهُۥ
- और उसकी
- dhurriyyatun
- ذُرِّيَّةٌ
- औलाद हो
- ḍuʿafāu
- ضُعَفَآءُ
- कमज़ोर (छोटी)
- fa-aṣābahā
- فَأَصَابَهَآ
- फिर पहुँचे उसे
- iʿ'ṣārun
- إِعْصَارٌ
- एक बगोला
- fīhi
- فِيهِ
- जिसमें
- nārun
- نَارٌ
- आग हो
- fa-iḥ'taraqat
- فَٱحْتَرَقَتْۗ
- पस वो जल जाए
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- yubayyinu
- يُبَيِّنُ
- वाज़ेह करता है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम्हारे लिए
- l-āyāti
- ٱلْءَايَٰتِ
- निशानियाँ
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tatafakkarūna
- تَتَفَكَّرُونَ
- तुम ग़ौरो फ़िक्र करो
क्या तुममें से कोई यह चाहेगा कि उसके पास ख़जूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो, जिसके नीचे नहरें बह रही हो, वहाँ उसे हर प्रकार के फल प्राप्त हो और उसका बुढ़ापा आ गया हो और उसके बच्चे अभी कमज़ोर ही हों कि उस बाग़ पर एक आग भरा बगूला आ गया, और वह जलकर रह गया? इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे सामने आयतें खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि सोच-विचार करो ([२] अल बकराह: 266)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اَنْفِقُوْا مِنْ طَيِّبٰتِ مَا كَسَبْتُمْ وَمِمَّآ اَخْرَجْنَا لَكُمْ مِّنَ الْاَرْضِ ۗ وَلَا تَيَمَّمُوا الْخَبِيْثَ مِنْهُ تُنْفِقُوْنَ وَلَسْتُمْ بِاٰخِذِيْهِ اِلَّآ اَنْ تُغْمِضُوْا فِيْهِ ۗ وَاعْلَمُوْٓا اَنَّ اللّٰهَ غَنِيٌّ حَمِيْدٌ ٢٦٧
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوٓا۟
- ईमान लाए हो
- anfiqū
- أَنفِقُوا۟
- ख़र्च करो
- min
- مِن
- पाकीज़ा चीज़ों में से
- ṭayyibāti
- طَيِّبَٰتِ
- पाकीज़ा चीज़ों में से
- mā
- مَا
- जो
- kasabtum
- كَسَبْتُمْ
- कमाईं तुमने
- wamimmā
- وَمِمَّآ
- और उसमें से जो
- akhrajnā
- أَخْرَجْنَا
- निकाला हमने
- lakum
- لَكُم
- तुम्हारे लिए
- mina
- مِّنَ
- ज़मीन से
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِۖ
- ज़मीन से
- walā
- وَلَا
- और ना
- tayammamū
- تَيَمَّمُوا۟
- तुम इरादा करो
- l-khabītha
- ٱلْخَبِيثَ
- नापाक का
- min'hu
- مِنْهُ
- उसमें से जो
- tunfiqūna
- تُنفِقُونَ
- तुम ख़र्च करते हो
- walastum
- وَلَسْتُم
- हालाँकि नहीं तुम
- biākhidhīhi
- بِـَٔاخِذِيهِ
- लेने वाले उसे
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- an
- أَن
- ये कि
- tugh'miḍū
- تُغْمِضُوا۟
- तुम चश्म पोशी कर जाओ
- fīhi
- فِيهِۚ
- उसमें
- wa-iʿ'lamū
- وَٱعْلَمُوٓا۟
- और जान लो
- anna
- أَنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- ghaniyyun
- غَنِىٌّ
- बहुत बेनियाज़ है
- ḥamīdun
- حَمِيدٌ
- बहुत तारीफ़ वाला है
ऐ ईमान लानेवालो! अपनी कमाई को पाक और अच्छी चीज़ों में से ख़र्च करो और उन चीज़ों में से भी जो हमने धरती से तुम्हारे लिए निकाली है। और देने के लिए उसके ख़राब हिस्से (के देने) का इरादा न करो, जबकि तुम स्वयं उसे कभी न लोगे। यह और बात है कि उसको लेने में देखी-अनदेखी कर जाओ। और जान लो कि अल्लाह निस्पृह, प्रशंसनीय है ([२] अल बकराह: 267)Tafseer (तफ़सीर )
اَلشَّيْطٰنُ يَعِدُكُمُ الْفَقْرَ وَيَأْمُرُكُمْ بِالْفَحْشَاۤءِ ۚ وَاللّٰهُ يَعِدُكُمْ مَّغْفِرَةً مِّنْهُ وَفَضْلًا ۗ وَاللّٰهُ وَاسِعٌ عَلِيْمٌ ۖ ٢٦٨
- al-shayṭānu
- ٱلشَّيْطَٰنُ
- शैतान
- yaʿidukumu
- يَعِدُكُمُ
- डराता है तुम्हें
- l-faqra
- ٱلْفَقْرَ
- फ़क़्र से
- wayamurukum
- وَيَأْمُرُكُم
- और वो हुक्म देता है तुम्हें
- bil-faḥshāi
- بِٱلْفَحْشَآءِۖ
- बेहयाई का
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yaʿidukum
- يَعِدُكُم
- वादा करता है तुमसे
- maghfiratan
- مَّغْفِرَةً
- बख़्शिश का
- min'hu
- مِّنْهُ
- अपनी तरफ़ से
- wafaḍlan
- وَفَضْلًاۗ
- और फ़ज़ल का
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- wāsiʿun
- وَٰسِعٌ
- वुसअत वाला है
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
शैतान तुम्हें निर्धनता से डराता है और निर्लज्जता के कामों पर उभारता है, जबकि अल्लाह अपनी क्षमा और उदार कृपा का तुम्हें वचन देता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है ([२] अल बकराह: 268)Tafseer (तफ़सीर )
يُّؤْتِى الْحِكْمَةَ مَنْ يَّشَاۤءُ ۚ وَمَنْ يُّؤْتَ الْحِكْمَةَ فَقَدْ اُوْتِيَ خَيْرًا كَثِيْرًا ۗ وَمَا يَذَّكَّرُ اِلَّآ اُولُوا الْاَلْبَابِ ٢٦٩
- yu'tī
- يُؤْتِى
- वो देता है
- l-ḥik'mata
- ٱلْحِكْمَةَ
- हिकमत को
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُۚ
- वो चाहता है
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yu'ta
- يُؤْتَ
- दिया गया
- l-ḥik'mata
- ٱلْحِكْمَةَ
- हिकमत
- faqad
- فَقَدْ
- तो तहक़ीक़
- ūtiya
- أُوتِىَ
- वो दिया गया
- khayran
- خَيْرًا
- ख़ैर
- kathīran
- كَثِيرًاۗ
- कसीर/बहुत ज़्यादा
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- yadhakkaru
- يَذَّكَّرُ
- नसीहत पकड़ते
- illā
- إِلَّآ
- मगर
- ulū
- أُو۟لُوا۟
- अक़्ल वाले
- l-albābi
- ٱلْأَلْبَٰبِ
- अक़्ल वाले
वह जिसे चाहता है तत्वदर्शिता प्रदान करता है और जिसे तत्वदर्शिता प्राप्त हुई उसे बड़ी दौलत मिल गई। किन्तु चेतते वही है जो बुद्धि और समझवाले है ([२] अल बकराह: 269)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَآ اَنْفَقْتُمْ مِّنْ نَّفَقَةٍ اَوْ نَذَرْتُمْ مِّنْ نَّذْرٍ فَاِنَّ اللّٰهَ يَعْلَمُهٗ ۗ وَمَا لِلظّٰلِمِيْنَ مِنْ اَنْصَارٍ ٢٧٠
- wamā
- وَمَآ
- और जो
- anfaqtum
- أَنفَقْتُم
- ख़र्च किया तुमने
- min
- مِّن
- कोई ख़र्च
- nafaqatin
- نَّفَقَةٍ
- कोई ख़र्च
- aw
- أَوْ
- या
- nadhartum
- نَذَرْتُم
- नज़र मानी तुमने
- min
- مِّن
- कोई नज़र
- nadhrin
- نَّذْرٍ
- कोई नज़र
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- yaʿlamuhu
- يَعْلَمُهُۥۗ
- जानता है उसे
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- lilẓẓālimīna
- لِلظَّٰلِمِينَ
- ज़ालिमों के लिए
- min
- مِنْ
- मददगारों में से कोई
- anṣārin
- أَنصَارٍ
- मददगारों में से कोई
और तुमने जो कुछ भी ख़र्च किया और जो कुछ भी नज़र (मन्नत) की हो, निस्सन्देह अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है। और अत्याचारियों का कोई सहायक न होगा ([२] अल बकराह: 270)Tafseer (तफ़सीर )