سَلْ بَنِيْٓ اِسْرَاۤءِيْلَ كَمْ اٰتَيْنٰهُمْ مِّنْ اٰيَةٍ ۢ بَيِّنَةٍ ۗ وَمَنْ يُّبَدِّلْ نِعْمَةَ اللّٰهِ مِنْۢ بَعْدِ مَا جَاۤءَتْهُ فَاِنَّ اللّٰهَ شَدِيْدُ الْعِقَابِ ٢١١
- sal
- سَلْ
- पूछ लीजिए
- banī
- بَنِىٓ
- बनी इस्राईल से
- is'rāīla
- إِسْرَٰٓءِيلَ
- बनी इस्राईल से
- kam
- كَمْ
- कितनी
- ātaynāhum
- ءَاتَيْنَٰهُم
- दीं हमने उन्हें
- min
- مِّنْ
- निशानियाँ
- āyatin
- ءَايَةٍۭ
- निशानियाँ
- bayyinatin
- بَيِّنَةٍۗ
- वाज़ेह
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yubaddil
- يُبَدِّلْ
- बदल देगा
- niʿ'mata
- نِعْمَةَ
- नेअमत को
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- min
- مِنۢ
- बाद इसके
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद इसके
- mā
- مَا
- जो
- jāathu
- جَآءَتْهُ
- आ गई उसके पास
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- shadīdu
- شَدِيدُ
- सख़्त
- l-ʿiqābi
- ٱلْعِقَابِ
- सज़ा वाला है
इसराईल की सन्तान से पूछो, हमने उन्हें कितनी खुली-खुली निशानियाँ प्रदान की। और जो अल्लाह की नेमत को इसके बाद कि वह उसे पहुँच चुकी हो बदल डाले, तो निस्संदेह अल्लाह भी कठोर दंड देनेवाला है ([२] अल बकराह: 211)Tafseer (तफ़सीर )
زُيِّنَ لِلَّذِيْنَ كَفَرُوا الْحَيٰوةُ الدُّنْيَا وَيَسْخَرُوْنَ مِنَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا ۘ وَالَّذِيْنَ اتَّقَوْا فَوْقَهُمْ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ ۗ وَاللّٰهُ يَرْزُقُ مَنْ يَّشَاۤءُ بِغَيْرِ حِسَابٍ ٢١٢
- zuyyina
- زُيِّنَ
- मुज़य्यन कर दी गई
- lilladhīna
- لِلَّذِينَ
- उनके लिए जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- l-ḥayatu
- ٱلْحَيَوٰةُ
- ज़िन्दगी
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया की
- wayaskharūna
- وَيَسْخَرُونَ
- और वो मज़ाक़ करते हैं
- mina
- مِنَ
- उनसे जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनसे जो
- āmanū
- ءَامَنُواۘ
- ईमान लाए
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जिन्होंने
- ittaqaw
- ٱتَّقَوْا۟
- तक़वा किया
- fawqahum
- فَوْقَهُمْ
- ऊपर होंगे उनके
- yawma
- يَوْمَ
- दिन
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِۗ
- क़यामत के
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yarzuqu
- يَرْزُقُ
- रिज़्क़ देता है
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- bighayri
- بِغَيْرِ
- बग़ैर
- ḥisābin
- حِسَابٍ
- हिसाब के
इनकार करनेवाले सांसारिक जीवन पर रीझे हुए है और ईमानवालों का उपहास करते है, जबकि जो लोग अल्लाह का डर रखते है, वे क़ियामत के दिन उनसे ऊपर होंगे। अल्लाह जिस चाहता है बेहिसाब देता है ([२] अल बकराह: 212)Tafseer (तफ़सीर )
كَانَ النَّاسُ اُمَّةً وَّاحِدَةً ۗ فَبَعَثَ اللّٰهُ النَّبِيّٖنَ مُبَشِّرِيْنَ وَمُنْذِرِيْنَ ۖ وَاَنْزَلَ مَعَهُمُ الْكِتٰبَ بِالْحَقِّ لِيَحْكُمَ بَيْنَ النَّاسِ فِيْمَا اخْتَلَفُوْا فِيْهِ ۗ وَمَا اخْتَلَفَ فِيْهِ اِلَّا الَّذِيْنَ اُوْتُوْهُ مِنْۢ بَعْدِ مَا جَاۤءَتْهُمُ الْبَيِّنٰتُ بَغْيًا ۢ بَيْنَهُمْ ۚ فَهَدَى اللّٰهُ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لِمَا اخْتَلَفُوْا فِيْهِ مِنَ الْحَقِّ بِاِذْنِهٖ ۗ وَاللّٰهُ يَهْدِيْ مَنْ يَّشَاۤءُ اِلٰى صِرَاطٍ مُّسْتَقِيْمٍ ٢١٣
- kāna
- كَانَ
- थे
- l-nāsu
- ٱلنَّاسُ
- लोग
- ummatan
- أُمَّةً
- उम्मत
- wāḥidatan
- وَٰحِدَةً
- एक ही
- fabaʿatha
- فَبَعَثَ
- फिर भेजा
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- l-nabiyīna
- ٱلنَّبِيِّۦنَ
- नबियों को
- mubashirīna
- مُبَشِّرِينَ
- ख़ुशख़बरी देने वाले
- wamundhirīna
- وَمُنذِرِينَ
- और डराने वाले (बना कर)
- wa-anzala
- وَأَنزَلَ
- और उसने नाज़िल की
- maʿahumu
- مَعَهُمُ
- उनके साथ
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّ
- साथ हक़ के
- liyaḥkuma
- لِيَحْكُمَ
- ताकि वो फ़ैसला करे
- bayna
- بَيْنَ
- दर्मियान
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोगों के
- fīmā
- فِيمَا
- उसमें जो
- ikh'talafū
- ٱخْتَلَفُوا۟
- उन्होंने इख़्तिलाफ़ किया
- fīhi
- فِيهِۚ
- जिसमें
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- ikh'talafa
- ٱخْتَلَفَ
- इख़्तिलाफ़ किया
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- illā
- إِلَّا
- मगर
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन्होंने जो
- ūtūhu
- أُوتُوهُ
- दिए गए थे उसे
- min
- مِنۢ
- बाद इसके
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद इसके
- mā
- مَا
- जो
- jāathumu
- جَآءَتْهُمُ
- आईं उनके पास
- l-bayinātu
- ٱلْبَيِّنَٰتُ
- वाज़ेह निशानियाँ
- baghyan
- بَغْيًۢا
- बवजह ज़िद के
- baynahum
- بَيْنَهُمْۖ
- आपस में
- fahadā
- فَهَدَى
- तो हिदायत दी
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन्हें जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- limā
- لِمَا
- उसकी जो
- ikh'talafū
- ٱخْتَلَفُوا۟
- उन्होंने इख़्तिलाफ़ किया
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- mina
- مِنَ
- हक़ में से
- l-ḥaqi
- ٱلْحَقِّ
- हक़ में से
- bi-idh'nihi
- بِإِذْنِهِۦۗ
- अपने हुक्म से
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yahdī
- يَهْدِى
- हिदायत देता है
- man
- مَن
- जिसे
- yashāu
- يَشَآءُ
- वो चाहता है
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़
- ṣirāṭin
- صِرَٰطٍ
- रास्ते
- mus'taqīmin
- مُّسْتَقِيمٍ
- सीधे के
सारे मनुष्य एक ही समुदाय थे (उन्होंने विभेद किया) तो अल्लाह ने नबियों को भेजा, जो शुभ-सूचना देनेवाले और डरानवाले थे; और उनके साथ हक़ पर आधारित किताब उतारी, ताकि लोगों में उन बातों का जिनमें वे विभेद कर रहे है, फ़ैसला कर दे। इसमें विभेद तो बस उन्हीं लोगों ने, जिन्हें वह मिली थी, परस्पर ज़्यादती करने के लिए इसके पश्चात किया, जबकि खुली निशानियाँ उनके पास आ चुकी थी। अतः ईमानवालों को अल्लाह ने अपनी अनूज्ञा से उस सत्य के विषय में मार्गदर्शन किया, जिसमें उन्होंने विभेद किया था। अल्लाह जिसे चाहता है, सीधे मार्ग पर चलाता है ([२] अल बकराह: 213)Tafseer (तफ़सीर )
اَمْ حَسِبْتُمْ اَنْ تَدْخُلُوا الْجَنَّةَ وَلَمَّا يَأْتِكُمْ مَّثَلُ الَّذِيْنَ خَلَوْا مِنْ قَبْلِكُمْ ۗ مَسَّتْهُمُ الْبَأْسَاۤءُ وَالضَّرَّاۤءُ وَزُلْزِلُوْا حَتّٰى يَقُوْلَ الرَّسُوْلُ وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مَعَهٗ مَتٰى نَصْرُ اللّٰهِ ۗ اَلَآ اِنَّ نَصْرَ اللّٰهِ قَرِيْبٌ ٢١٤
- am
- أَمْ
- क्या
- ḥasib'tum
- حَسِبْتُمْ
- ख़्याल किया तुमने
- an
- أَن
- कि
- tadkhulū
- تَدْخُلُوا۟
- तुम दाख़िल हो जाओगे
- l-janata
- ٱلْجَنَّةَ
- जन्नत में
- walammā
- وَلَمَّا
- हालाँकि नहीं
- yatikum
- يَأْتِكُم
- आई तुम्हारे पास
- mathalu
- مَّثَلُ
- मिसाल
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनकी जो
- khalaw
- خَلَوْا۟
- गुज़र चुके
- min
- مِن
- तुमसे पहले
- qablikum
- قَبْلِكُمۖ
- तुमसे पहले
- massathumu
- مَّسَّتْهُمُ
- पहुँचीं उन्हें
- l-basāu
- ٱلْبَأْسَآءُ
- सख़्तियाँ
- wal-ḍarāu
- وَٱلضَّرَّآءُ
- और मुसीबतें
- wazul'zilū
- وَزُلْزِلُوا۟
- और वो हिला दिए गए
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- yaqūla
- يَقُولَ
- कहने लगा
- l-rasūlu
- ٱلرَّسُولُ
- रसूल
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- maʿahu
- مَعَهُۥ
- साथ उसके
- matā
- مَتَىٰ
- कब (आएगी)
- naṣru
- نَصْرُ
- मदद
- l-lahi
- ٱللَّهِۗ
- अल्लाह की
- alā
- أَلَآ
- ख़बरदार
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- naṣra
- نَصْرَ
- मदद
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- qarībun
- قَرِيبٌ
- क़रीब है
क्या तुमने यह समझ रखा है कि जन्नत में प्रवेश पा जाओगे, जबकि अभी तुम पर वह सब कुछ नहीं बीता है जो तुमसे पहले के लोगों पर बीत चुका? उनपर तंगियाँ और तकलीफ़े आई और उन्हें हिला मारा गया यहाँ तक कि रसूल बोल उठे और उनके साथ ईमानवाले भी कि अल्लाह की सहायता कब आएगी? जान लो! अल्लाह की सहायता निकट है ([२] अल बकराह: 214)Tafseer (तफ़सीर )
يَسْـَٔلُوْنَكَ مَاذَا يُنْفِقُوْنَ ۗ قُلْ مَآ اَنْفَقْتُمْ مِّنْ خَيْرٍ فَلِلْوَالِدَيْنِ وَالْاَقْرَبِيْنَ وَالْيَتٰمٰى وَالْمَسٰكِيْنِ وَابْنِ السَّبِيْلِ ۗ وَمَا تَفْعَلُوْا مِنْ خَيْرٍ فَاِنَّ اللّٰهَ بِهٖ عَلِيْمٌ ٢١٥
- yasalūnaka
- يَسْـَٔلُونَكَ
- वो सवाल करते हैं आपसे
- mādhā
- مَاذَا
- क्या कुछ
- yunfiqūna
- يُنفِقُونَۖ
- वो ख़र्च करें
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- mā
- مَآ
- जो
- anfaqtum
- أَنفَقْتُم
- ख़र्च करो तुम
- min
- مِّنْ
- माल में से
- khayrin
- خَيْرٍ
- माल में से
- falil'wālidayni
- فَلِلْوَٰلِدَيْنِ
- तो वालिदैन के लिए है
- wal-aqrabīna
- وَٱلْأَقْرَبِينَ
- और क़राबतदारों
- wal-yatāmā
- وَٱلْيَتَٰمَىٰ
- और यतीमों
- wal-masākīni
- وَٱلْمَسَٰكِينِ
- और मिस्कीनों
- wa-ib'ni
- وَٱبْنِ
- और मुसाफ़िर के लिए है
- l-sabīli
- ٱلسَّبِيلِۗ
- और मुसाफ़िर के लिए है
- wamā
- وَمَا
- और जो भी
- tafʿalū
- تَفْعَلُوا۟
- तुम करोगे
- min
- مِنْ
- नेकी में से
- khayrin
- خَيْرٍ
- नेकी में से
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- bihi
- بِهِۦ
- उसे
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
वे तुमसे पूछते है, 'कितना ख़र्च करें?' कहो, '(पहले यह समझ लो कि) जो माल भी तुमने ख़र्च किया है, वह तो माँ-बाप, नातेदारों और अनाथों, और मुहताजों और मुसाफ़िरों के लिए ख़र्च हुआ है। और जो भलाई भी तुम करो, निस्संदेह अल्लाह उसे भली-भाँति जान लेगा। ([२] अल बकराह: 215)Tafseer (तफ़सीर )
كُتِبَ عَلَيْكُمُ الْقِتَالُ وَهُوَ كُرْهٌ لَّكُمْ ۚ وَعَسٰٓى اَنْ تَكْرَهُوْا شَيْـًٔا وَّهُوَ خَيْرٌ لَّكُمْ ۚ وَعَسٰٓى اَنْ تُحِبُّوْا شَيْـًٔا وَّهُوَ شَرٌّ لَّكُمْ ۗ وَاللّٰهُ يَعْلَمُ وَاَنْتُمْ لَا تَعْلَمُوْنَ ࣖ ٢١٦
- kutiba
- كُتِبَ
- लिख दिया गया
- ʿalaykumu
- عَلَيْكُمُ
- तुम पर
- l-qitālu
- ٱلْقِتَالُ
- जंग करना
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो
- kur'hun
- كُرْهٌ
- नापसंदीदा है
- lakum
- لَّكُمْۖ
- तुम्हारे लिए
- waʿasā
- وَعَسَىٰٓ
- और हो सकता है
- an
- أَن
- कि
- takrahū
- تَكْرَهُوا۟
- तुम नापसंद करो
- shayan
- شَيْـًٔا
- किसी चीज़ को
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर हो
- lakum
- لَّكُمْۖ
- तुम्हारे लिए
- waʿasā
- وَعَسَىٰٓ
- और हो सकता है
- an
- أَن
- कि
- tuḥibbū
- تُحِبُّوا۟
- तुम पसंद करो
- shayan
- شَيْـًٔا
- किसी चीज़ को
- wahuwa
- وَهُوَ
- और वो
- sharrun
- شَرٌّ
- बुरी हो
- lakum
- لَّكُمْۗ
- तुम्हारे लिए
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yaʿlamu
- يَعْلَمُ
- जानता है
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- और तुम
- lā
- لَا
- नहीं जानते
- taʿlamūna
- تَعْلَمُونَ
- नहीं जानते
तुम पर युद्ध अनिवार्य किया गया और वह तुम्हें अप्रिय है, और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें अप्रिय हो और वह तुम्हारे लिए अच्छी हो। और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें प्रिय हो और वह तुम्हारे लिए बुरी हो। और जानता अल्लाह है, और तुम नहीं जानते।' ([२] अल बकराह: 216)Tafseer (तफ़सीर )
يَسْـَٔلُوْنَكَ عَنِ الشَّهْرِ الْحَرَامِ قِتَالٍ فِيْهِۗ قُلْ قِتَالٌ فِيْهِ كَبِيْرٌ ۗ وَصَدٌّ عَنْ سَبِيْلِ اللّٰهِ وَكُفْرٌۢ بِهٖ وَالْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَاِخْرَاجُ اَهْلِهٖ مِنْهُ اَكْبَرُ عِنْدَ اللّٰهِ ۚ وَالْفِتْنَةُ اَكْبَرُ مِنَ الْقَتْلِ ۗ وَلَا يَزَالُوْنَ يُقَاتِلُوْنَكُمْ حَتّٰى يَرُدُّوْكُمْ عَنْ دِيْنِكُمْ اِنِ اسْتَطَاعُوْا ۗ وَمَنْ يَّرْتَدِدْ مِنْكُمْ عَنْ دِيْنِهٖ فَيَمُتْ وَهُوَ كَافِرٌ فَاُولٰۤىِٕكَ حَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْ فِى الدُّنْيَا وَالْاٰخِرَةِ ۚ وَاُولٰۤىِٕكَ اَصْحٰبُ النَّارِۚ هُمْ فِيْهَا خٰلِدُوْنَ ٢١٧
- yasalūnaka
- يَسْـَٔلُونَكَ
- वो सवाल करते हैं आपसे
- ʿani
- عَنِ
- हराम महीने के बारे में
- l-shahri
- ٱلشَّهْرِ
- हराम महीने के बारे में
- l-ḥarāmi
- ٱلْحَرَامِ
- हराम महीने के बारे में
- qitālin
- قِتَالٍ
- जंग करना
- fīhi
- فِيهِۖ
- उसमें (कैसा है)
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- qitālun
- قِتَالٌ
- जंग करना
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- kabīrun
- كَبِيرٌۖ
- बड़ा (गुनाह है)
- waṣaddun
- وَصَدٌّ
- और रोकना
- ʿan
- عَن
- अल्लाह के रास्ते से
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते से
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते से
- wakuf'run
- وَكُفْرٌۢ
- और कुफ़्र करना
- bihi
- بِهِۦ
- उसका
- wal-masjidi
- وَٱلْمَسْجِدِ
- और (रोकना) मस्जिदे हराम से
- l-ḥarāmi
- ٱلْحَرَامِ
- और (रोकना) मस्जिदे हराम से
- wa-ikh'rāju
- وَإِخْرَاجُ
- और निकालना
- ahlihi
- أَهْلِهِۦ
- उसके रहने वालों को
- min'hu
- مِنْهُ
- उससे
- akbaru
- أَكْبَرُ
- ज़्यादा बड़ा (गुनाह) है
- ʿinda
- عِندَ
- अल्लाह के नज़दीक
- l-lahi
- ٱللَّهِۚ
- अल्लाह के नज़दीक
- wal-fit'natu
- وَٱلْفِتْنَةُ
- और फ़ितना
- akbaru
- أَكْبَرُ
- ज़्यादा बड़ा है
- mina
- مِنَ
- क़त्ल से
- l-qatli
- ٱلْقَتْلِۗ
- क़त्ल से
- walā
- وَلَا
- और वो हमेशा रहेंगे
- yazālūna
- يَزَالُونَ
- और वो हमेशा रहेंगे
- yuqātilūnakum
- يُقَٰتِلُونَكُمْ
- जंग करते तुमसे
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- yaruddūkum
- يَرُدُّوكُمْ
- वो फेर दें तुम्हें
- ʿan
- عَن
- तुम्हारे दीन से
- dīnikum
- دِينِكُمْ
- तुम्हारे दीन से
- ini
- إِنِ
- अगर
- is'taṭāʿū
- ٱسْتَطَٰعُوا۟ۚ
- वो इस्तिताअत रखें
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- yartadid
- يَرْتَدِدْ
- फिर जाए
- minkum
- مِنكُمْ
- तुममें से
- ʿan
- عَن
- अपने दीन से
- dīnihi
- دِينِهِۦ
- अपने दीन से
- fayamut
- فَيَمُتْ
- फिर वो मर जाए
- wahuwa
- وَهُوَ
- इस हाल में कि वो
- kāfirun
- كَافِرٌ
- काफ़िर हो
- fa-ulāika
- فَأُو۟لَٰٓئِكَ
- तो यही लोग हैं
- ḥabiṭat
- حَبِطَتْ
- ज़ाया हो गए
- aʿmāluhum
- أَعْمَٰلُهُمْ
- आमाल उनके
- fī
- فِى
- दुनिया में
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया में
- wal-ākhirati
- وَٱلْءَاخِرَةِۖ
- और आख़िरत में
- wa-ulāika
- وَأُو۟لَٰٓئِكَ
- और यही लोग हैं
- aṣḥābu
- أَصْحَٰبُ
- साथी
- l-nāri
- ٱلنَّارِۖ
- आग के
- hum
- هُمْ
- वो
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- khālidūna
- خَٰلِدُونَ
- हमेशा रहने वाले हैं
वे तुमसे आदरणीय महीने में युद्ध के विषय में पूछते है। कहो, 'उसमें लड़ना बड़ी गम्भीर बात है, परन्तु अल्लाह के मार्ग से रोकना, उसके साथ अविश्वास करना, मस्जिदे हराम (काबा) से रोकना और उसके लोगों को उससे निकालना, अल्लाह की स्पष्ट में इससे भी अधिक गम्भीर है और फ़ितना (उत्पीड़न), रक्तपात से भी बुरा है।' और उसका बस चले तो वे तो तुमसे बराबर लड़ते रहे, ताकि तुम्हें तुम्हारे दीन (धर्म) से फेर दें। और तुममे से जो कोई अपने दीन से फिर जाए और अविश्वासी होकर मरे, तो ऐसे ही लोग है जिनके कर्म दुनिया और आख़िरत में नष्ट हो गए, और वही आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है, वे उसी में सदैव रहेंगे ([२] अल बकराह: 217)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَالَّذِيْنَ هَاجَرُوْا وَجَاهَدُوْا فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ ۙ اُولٰۤىِٕكَ يَرْجُوْنَ رَحْمَتَ اللّٰهِ ۗوَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ٢١٨
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जिन्होंने
- hājarū
- هَاجَرُوا۟
- हिजरत की
- wajāhadū
- وَجَٰهَدُوا۟
- और जिहाद किया
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते में
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- yarjūna
- يَرْجُونَ
- जो उम्मीद रखते हैं
- raḥmata
- رَحْمَتَ
- अल्लाह की रहमत की
- l-lahi
- ٱللَّهِۚ
- अल्लाह की रहमत की
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- ghafūrun
- غَفُورٌ
- बहुत बख़्शने वाला
- raḥīmun
- رَّحِيمٌ
- निहायत रहम करने वाला है
रहे वे लोग जो ईमान लाए और जिन्होंने अल्लाह के मार्ग में घर-बार छोड़ा और जिहाद किया, वहीं अल्लाह की दयालुता की आशा रखते है। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है ([२] अल बकराह: 218)Tafseer (तफ़सीर )
۞ يَسْـَٔلُوْنَكَ عَنِ الْخَمْرِ وَالْمَيْسِرِۗ قُلْ فِيْهِمَآ اِثْمٌ كَبِيْرٌ وَّمَنَافِعُ لِلنَّاسِۖ وَاِثْمُهُمَآ اَكْبَرُ مِنْ نَّفْعِهِمَاۗ وَيَسْـَٔلُوْنَكَ مَاذَا يُنْفِقُوْنَ ەۗ قُلِ الْعَفْوَۗ كَذٰلِكَ يُبَيِّنُ اللّٰهُ لَكُمُ الْاٰيٰتِ لَعَلَّكُمْ تَتَفَكَّرُوْنَۙ ٢١٩
- yasalūnaka
- يَسْـَٔلُونَكَ
- वो सवाल करते हैं आपसे
- ʿani
- عَنِ
- शराब (नशे) के बारे में
- l-khamri
- ٱلْخَمْرِ
- शराब (नशे) के बारे में
- wal-maysiri
- وَٱلْمَيْسِرِۖ
- और जुए के
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- fīhimā
- فِيهِمَآ
- इन दोनों में
- ith'mun
- إِثْمٌ
- गुनाह है
- kabīrun
- كَبِيرٌ
- बहुत बड़ा
- wamanāfiʿu
- وَمَنَٰفِعُ
- और कुछ फ़ायदे हैं
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- wa-ith'muhumā
- وَإِثْمُهُمَآ
- और गुनाह इन दोनों का
- akbaru
- أَكْبَرُ
- ज़्यादा बड़ा है
- min
- مِن
- इन दोनों के फ़ायदे से
- nafʿihimā
- نَّفْعِهِمَاۗ
- इन दोनों के फ़ायदे से
- wayasalūnaka
- وَيَسْـَٔلُونَكَ
- और वो सवाल करते हैं आपसे
- mādhā
- مَاذَا
- क्या कुछ
- yunfiqūna
- يُنفِقُونَ
- वो ख़र्च करें
- quli
- قُلِ
- कह दीजिए
- l-ʿafwa
- ٱلْعَفْوَۗ
- ज़ाइद अज़ ज़रुरत
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- yubayyinu
- يُبَيِّنُ
- वाज़ेह करता है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम्हारे लिए
- l-āyāti
- ٱلْءَايَٰتِ
- आयात
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tatafakkarūna
- تَتَفَكَّرُونَ
- तुम ग़ौरो फ़िक्र करो
तुमसे शराब और जुए के विषय में पूछते है। कहो, 'उन दोनों चीज़ों में बड़ा गुनाह है, यद्यपि लोगों के लिए कुछ फ़ायदे भी है, परन्तु उनका गुनाह उनके फ़ायदे से कहीं बढकर है।' और वे तुमसे पूछते है, 'कितना ख़र्च करें?' कहो, 'जो आवश्यकता से अधिक हो।' इस प्रकार अल्लाह दुनिया और आख़िरत के विषय में तुम्हारे लिए अपनी आयते खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम सोच-विचार करो। ([२] अल बकराह: 219)Tafseer (तफ़सीर )
فِى الدُّنْيَا وَالْاٰخِرَةِ ۗ وَيَسْـَٔلُوْنَكَ عَنِ الْيَتٰمٰىۗ قُلْ اِصْلَاحٌ لَّهُمْ خَيْرٌ ۗ وَاِنْ تُخَالِطُوْهُمْ فَاِخْوَانُكُمْ ۗ وَاللّٰهُ يَعْلَمُ الْمُفْسِدَ مِنَ الْمُصْلِحِ ۗ وَلَوْ شَاۤءَ اللّٰهُ لَاَعْنَتَكُمْ اِنَّ اللّٰهَ عَزِيْزٌ حَكِيْمٌ ٢٢٠
- fī
- فِى
- दुनिया में
- l-dun'yā
- ٱلدُّنْيَا
- दुनिया में
- wal-ākhirati
- وَٱلْءَاخِرَةِۗ
- और आख़िरत में
- wayasalūnaka
- وَيَسْـَٔلُونَكَ
- और वो सवाल करते हैं आपसे
- ʿani
- عَنِ
- यतीमों के बारे में
- l-yatāmā
- ٱلْيَتَٰمَىٰۖ
- यतीमों के बारे में
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- iṣ'lāḥun
- إِصْلَاحٌ
- इस्लाह करना
- lahum
- لَّهُمْ
- उनकी
- khayrun
- خَيْرٌۖ
- बेहतर है
- wa-in
- وَإِن
- और अगर
- tukhāliṭūhum
- تُخَالِطُوهُمْ
- तुम मिला लो उन्हें
- fa-ikh'wānukum
- فَإِخْوَٰنُكُمْۚ
- तो वो भाई हैं तुम्हारे
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- yaʿlamu
- يَعْلَمُ
- जानता है
- l-muf'sida
- ٱلْمُفْسِدَ
- फ़साद करने वाले को
- mina
- مِنَ
- इस्लाह करने वाले से
- l-muṣ'liḥi
- ٱلْمُصْلِحِۚ
- इस्लाह करने वाले से
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- shāa
- شَآءَ
- चाहता
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- la-aʿnatakum
- لَأَعْنَتَكُمْۚ
- अलबत्ता वो मुश्किल में डाल देता तुम्हें
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- ʿazīzun
- عَزِيزٌ
- बहुत ज़बरदस्त है
- ḥakīmun
- حَكِيمٌ
- ख़ूब हिकमत वाला है
और वे तुमसे अनाथों के विषय में पूछते है। कहो, 'उनके सुधार की जो रीति अपनाई जाए अच्छी है। और यदि तुम उन्हें अपने साथ सम्मिलित कर लो तो वे तुम्हारे भाई-बन्धु ही हैं। और अल्लाह बिगाड़ पैदा करनेवाले को बचाव पैदा करनेवाले से अलग पहचानता है। और यदि अल्लाह चाहता तो तुमको ज़हमत (कठिनाई) में डाल देता। निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।' ([२] अल बकराह: 220)Tafseer (तफ़सीर )