وَاِذَا قِيْلَ لَهُمْ لَا تُفْسِدُوْا فِى الْاَرْضِۙ قَالُوْٓا اِنَّمَا نَحْنُ مُصْلِحُوْنَ ١١
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- qīla
- قِيلَ
- कहा जाता है
- lahum
- لَهُمْ
- उन्हें
- lā
- لَا
- ना तुम फ़साद करो
- tuf'sidū
- تُفْسِدُوا۟
- ना तुम फ़साद करो
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- qālū
- قَالُوٓا۟
- वो कहते हैं
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- naḥnu
- نَحْنُ
- हम तो
- muṣ'liḥūna
- مُصْلِحُونَ
- इस्लाह करने वाले हैं
और जब उनसे कहा जाता है कि 'ज़मीन में बिगाड़ पैदा न करो', तो कहते हैं, 'हम तो केवल सुधारक है।'' ([२] अल बकराह: 11)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَآ اِنَّهُمْ هُمُ الْمُفْسِدُوْنَ وَلٰكِنْ لَّا يَشْعُرُوْنَ ١٢
- alā
- أَلَآ
- ख़बरदार
- innahum
- إِنَّهُمْ
- बेशक वो
- humu
- هُمُ
- वो ही
- l-muf'sidūna
- ٱلْمُفْسِدُونَ
- फ़साद करने वाले हैं
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- lā
- لَّا
- नहीं वो शऊर रखते
- yashʿurūna
- يَشْعُرُونَ
- नहीं वो शऊर रखते
जान लो! वही हैं जो बिगाड़ पैदा करते हैं, परन्तु उन्हें एहसास नहीं होता ([२] अल बकराह: 12)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا قِيْلَ لَهُمْ اٰمِنُوْا كَمَآ اٰمَنَ النَّاسُ قَالُوْٓا اَنُؤْمِنُ كَمَآ اٰمَنَ السُّفَهَاۤءُ ۗ اَلَآ اِنَّهُمْ هُمُ السُّفَهَاۤءُ وَلٰكِنْ لَّا يَعْلَمُوْنَ ١٣
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- qīla
- قِيلَ
- कहा जाता है
- lahum
- لَهُمْ
- उन्हें
- āminū
- ءَامِنُوا۟
- ईमान ले आओ
- kamā
- كَمَآ
- जैसा कि
- āmana
- ءَامَنَ
- ईमान लाए
- l-nāsu
- ٱلنَّاسُ
- लोग
- qālū
- قَالُوٓا۟
- वो कहते हैं
- anu'minu
- أَنُؤْمِنُ
- क्या हम ईमान लाऐं
- kamā
- كَمَآ
- जैसा कि
- āmana
- ءَامَنَ
- ईमान लाए
- l-sufahāu
- ٱلسُّفَهَآءُۗ
- बेवक़ूफ़
- alā
- أَلَآ
- ख़बरदार
- innahum
- إِنَّهُمْ
- बेशक वो
- humu
- هُمُ
- वो ही
- l-sufahāu
- ٱلسُّفَهَآءُ
- बेवक़ूफ़ हैं
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- lā
- لَّا
- नहीं वो इल्म रखते
- yaʿlamūna
- يَعْلَمُونَ
- नहीं वो इल्म रखते
और जब उनसे कहा जाता है, 'ईमान लाओ जैसे लोग ईमान लाए हैं', कहते हैं, 'क्या हम ईमान लाए जैसे कम समझ लोग ईमान लाए हैं?' जान लो, वही कम समझ हैं परन्तु जानते नहीं ([२] अल बकराह: 13)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا لَقُوا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا قَالُوْٓا اٰمَنَّا ۚ وَاِذَا خَلَوْا اِلٰى شَيٰطِيْنِهِمْ ۙ قَالُوْٓا اِنَّا مَعَكُمْ ۙاِنَّمَا نَحْنُ مُسْتَهْزِءُوْنَ ١٤
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- laqū
- لَقُوا۟
- वो मुलाक़ात करते हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनसे जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए
- qālū
- قَالُوٓا۟
- वो कहते हैं
- āmannā
- ءَامَنَّا
- ईमान लाए हम
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- khalaw
- خَلَوْا۟
- वो अकेले होते हैं
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़
- shayāṭīnihim
- شَيَٰطِينِهِمْ
- अपने शैतानों के
- qālū
- قَالُوٓا۟
- वो कहते हैं
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- maʿakum
- مَعَكُمْ
- तुम्हारे साथ हैं
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- naḥnu
- نَحْنُ
- हम तो
- mus'tahziūna
- مُسْتَهْزِءُونَ
- मज़ाक़ उड़ाने वाले हैं
और जब ईमान लानेवालों से मिलते हैं तो कहते, 'हम भी ईमान लाए हैं,' और जब एकान्त में अपने शैतानों के पास पहुँचते हैं, तो कहते हैं, 'हम तो तुम्हारे साथ हैं और यह तो हम केवल परिहास कर रहे हैं।' ([२] अल बकराह: 14)Tafseer (तफ़सीर )
اَللّٰهُ يَسْتَهْزِئُ بِهِمْ وَيَمُدُّهُمْ فِيْ طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُوْنَ ١٥
- al-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- yastahzi-u
- يَسْتَهْزِئُ
- मज़ाक़ उड़ाता है
- bihim
- بِهِمْ
- उनका
- wayamudduhum
- وَيَمُدُّهُمْ
- और वो ढील दे रहा है उन्हें
- fī
- فِى
- उनकी सरकशी में
- ṭugh'yānihim
- طُغْيَٰنِهِمْ
- उनकी सरकशी में
- yaʿmahūna
- يَعْمَهُونَ
- वो भटकते फिरते हैं
अल्लाह उनके साथ परिहास कर रहा है और उन्हें उनकी सरकशी में ढील दिए जाता है, वे भटकते फिर रहे हैं ([२] अल बकराह: 15)Tafseer (तफ़सीर )
اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ اشْتَرَوُا الضَّلٰلَةَ بِالْهُدٰىۖ فَمَا رَبِحَتْ تِّجَارَتُهُمْ وَمَا كَانُوْا مُهْتَدِيْنَ ١٦
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जिन्होंने
- ish'tarawū
- ٱشْتَرَوُا۟
- ख़रीद ली
- l-ḍalālata
- ٱلضَّلَٰلَةَ
- गुमराही
- bil-hudā
- بِٱلْهُدَىٰ
- बदले हिदायत के
- famā
- فَمَا
- तो ना
- rabiḥat
- رَبِحَت
- फ़ायदामंद हुई
- tijāratuhum
- تِّجَٰرَتُهُمْ
- तिजारत उनकी
- wamā
- وَمَا
- और ना
- kānū
- كَانُوا۟
- थे वो
- muh'tadīna
- مُهْتَدِينَ
- हिदायत पाने वाले
यही वे लोग हैं, जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले में गुमराही मोल ली, किन्तु उनके इस व्यापार में न कोई लाभ पहुँचाया, और न ही वे सीधा मार्ग पा सके ([२] अल बकराह: 16)Tafseer (तफ़सीर )
مَثَلُهُمْ كَمَثَلِ الَّذِى اسْتَوْقَدَ نَارًا ۚ فَلَمَّآ اَضَاۤءَتْ مَا حَوْلَهٗ ذَهَبَ اللّٰهُ بِنُوْرِهِمْ وَتَرَكَهُمْ فِيْ ظُلُمٰتٍ لَّا يُبْصِرُوْنَ ١٧
- mathaluhum
- مَثَلُهُمْ
- मिसाल उनकी
- kamathali
- كَمَثَلِ
- जैसे मिसाल
- alladhī
- ٱلَّذِى
- उसकी जिसने
- is'tawqada
- ٱسْتَوْقَدَ
- जलाई
- nāran
- نَارًا
- आग
- falammā
- فَلَمَّآ
- फिर जब
- aḍāat
- أَضَآءَتْ
- उसने रोशन कर दिया
- mā
- مَا
- माहौल उसका
- ḥawlahu
- حَوْلَهُۥ
- माहौल उसका
- dhahaba
- ذَهَبَ
- ले गया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- binūrihim
- بِنُورِهِمْ
- नूर उनका
- watarakahum
- وَتَرَكَهُمْ
- और उसने छोड़ दिया उन्हें
- fī
- فِى
- अँधेरों में
- ẓulumātin
- ظُلُمَٰتٍ
- अँधेरों में
- lā
- لَّا
- नहीं वो देख पाते
- yub'ṣirūna
- يُبْصِرُونَ
- नहीं वो देख पाते
उनकी मिसाल ऐसी हैं जैसे किसी व्यक्ति ने आग जलाई, फिर जब उसने उसके वातावरण को प्रकाशित कर दिया, तो अल्लाह ने उसका प्रकाश ही छीन लिया और उन्हें अँधेरों में छोड़ दिया जिससे उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहा हैं ([२] अल बकराह: 17)Tafseer (तफ़सीर )
صُمٌّ ۢ بُكْمٌ عُمْيٌ فَهُمْ لَا يَرْجِعُوْنَۙ ١٨
- ṣummun
- صُمٌّۢ
- बहरे हैं
- buk'mun
- بُكْمٌ
- गूँगे हैं
- ʿum'yun
- عُمْىٌ
- अँधे हैं
- fahum
- فَهُمْ
- पस वो
- lā
- لَا
- नहीं वो लौटते
- yarjiʿūna
- يَرْجِعُونَ
- नहीं वो लौटते
वे बहरे हैं, गूँगें हैं, अन्धे हैं, अब वे लौटने के नहीं ([२] अल बकराह: 18)Tafseer (तफ़सीर )
اَوْ كَصَيِّبٍ مِّنَ السَّمَاۤءِ فِيْهِ ظُلُمٰتٌ وَّرَعْدٌ وَّبَرْقٌۚ يَجْعَلُوْنَ اَصَابِعَهُمْ فِيْٓ اٰذَانِهِمْ مِّنَ الصَّوَاعِقِ حَذَرَ الْمَوْتِۗ وَاللّٰهُ مُحِيْطٌۢ بِالْكٰفِرِيْنَ ١٩
- aw
- أَوْ
- या
- kaṣayyibin
- كَصَيِّبٍ
- जैसे ज़ोरदार बारिश
- mina
- مِّنَ
- आसमान से
- l-samāi
- ٱلسَّمَآءِ
- आसमान से
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- ẓulumātun
- ظُلُمَٰتٌ
- अँधेरे
- waraʿdun
- وَرَعْدٌ
- और गरज
- wabarqun
- وَبَرْقٌ
- और बिजली है
- yajʿalūna
- يَجْعَلُونَ
- वो डाल लेते हैं
- aṣābiʿahum
- أَصَٰبِعَهُمْ
- उँगलियाँ
- fī
- فِىٓ
- अपने कानों में
- ādhānihim
- ءَاذَانِهِم
- अपने कानों में
- mina
- مِّنَ
- बिजली के कड़ाकों से
- l-ṣawāʿiqi
- ٱلصَّوَٰعِقِ
- बिजली के कड़ाकों से
- ḥadhara
- حَذَرَ
- बचने के लिए
- l-mawti
- ٱلْمَوْتِۚ
- मौत से
- wal-lahu
- وَٱللَّهُ
- और अल्लाह
- muḥīṭun
- مُحِيطٌۢ
- घेरने वाला है
- bil-kāfirīna
- بِٱلْكَٰفِرِينَ
- काफ़िरों को
या (उनकी मिसाल ऐसी है) जैसे आकाश से वर्षा हो रही हो जिसके साथ अँधेरे हों और गरज और चमक भी हो, वे बिजली की कड़क के कारण मृत्यु के भय से अपने कानों में उँगलियाँ दे ले रहे हों - और अल्लाह ने तो इनकार करनेवालों को घेर रखा हैं ([२] अल बकराह: 19)Tafseer (तफ़सीर )
يَكَادُ الْبَرْقُ يَخْطَفُ اَبْصَارَهُمْ ۗ كُلَّمَآ اَضَاۤءَ لَهُمْ مَّشَوْا فِيْهِ ۙ وَاِذَآ اَظْلَمَ عَلَيْهِمْ قَامُوْا ۗوَلَوْ شَاۤءَ اللّٰهُ لَذَهَبَ بِسَمْعِهِمْ وَاَبْصَارِهِمْ ۗ اِنَّ اللّٰهَ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيْرٌ ࣖ ٢٠
- yakādu
- يَكَادُ
- क़रीब है
- l-barqu
- ٱلْبَرْقُ
- बिजली की चमक
- yakhṭafu
- يَخْطَفُ
- कि वो उचक ले
- abṣārahum
- أَبْصَٰرَهُمْۖ
- निगाहें उनकी
- kullamā
- كُلَّمَآ
- जब कभी
- aḍāa
- أَضَآءَ
- वो रोशनी करती है
- lahum
- لَهُم
- उनके लिए
- mashaw
- مَّشَوْا۟
- वो चल पड़ते हैं
- fīhi
- فِيهِ
- उसमें
- wa-idhā
- وَإِذَآ
- और जब
- aẓlama
- أَظْلَمَ
- वो अँधेरा कर देती है
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर
- qāmū
- قَامُوا۟ۚ
- वो खड़े हो जाते हैं
- walaw
- وَلَوْ
- और अगर
- shāa
- شَآءَ
- चाहे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- ladhahaba
- لَذَهَبَ
- अलबत्ता वो ले जाए
- bisamʿihim
- بِسَمْعِهِمْ
- कान उनके
- wa-abṣārihim
- وَأَبْصَٰرِهِمْۚ
- और आँखें उनकी
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर
- kulli
- كُلِّ
- हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ के
- qadīrun
- قَدِيرٌ
- बहुत क़ुदरत रखने वाला है
मानो शीघ्र ही बिजली उनकी आँखों की रौशनी उचक लेने को है; जब भी उनपर चमकती हो, वे चल पड़ते हो और जब उनपर अँधेरा छा जाता हैं तो खड़े हो जाते हो; अगर अल्लाह चाहता तो उनकी सुनने और देखने की शक्ति बिलकुल ही छीन लेता। निस्सन्देह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है ([२] अल बकराह: 20)Tafseer (तफ़सीर )