فَمَنْۢ بَدَّلَهٗ بَعْدَمَا سَمِعَهٗ فَاِنَّمَآ اِثْمُهٗ عَلَى الَّذِيْنَ يُبَدِّلُوْنَهٗ ۗ اِنَّ اللّٰهَ سَمِيْعٌ عَلِيْمٌ ۗ ١٨١
- faman
- فَمَنۢ
- तो जो कोई
- baddalahu
- بَدَّلَهُۥ
- बदल दे उसे
- baʿdamā
- بَعْدَمَا
- बाद उसके जो
- samiʿahu
- سَمِعَهُۥ
- उसने सुना उसे
- fa-innamā
- فَإِنَّمَآ
- तो बेशक
- ith'muhu
- إِثْمُهُۥ
- गुनाह उसका
- ʿalā
- عَلَى
- उन पर है जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन पर है जो
- yubaddilūnahu
- يُبَدِّلُونَهُۥٓۚ
- बदल देते हैं उसे
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- samīʿun
- سَمِيعٌ
- ख़ूब सुनने वाला है
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
तो जो कोई उसके सुनने के पश्चात उसे बदल डाले तो उसका गुनाह उन्हीं लोगों पर होगा जो इसे बदलेंगे। निस्संदेह अल्लाह सब कुछ सुननेवाला और जाननेवाला है ([२] अल बकराह: 181)Tafseer (तफ़सीर )
فَمَنْ خَافَ مِنْ مُّوْصٍ جَنَفًا اَوْ اِثْمًا فَاَصْلَحَ بَيْنَهُمْ فَلَآ اِثْمَ عَلَيْهِ ۗ اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ࣖ ١٨٢
- faman
- فَمَنْ
- तो जो कोई
- khāfa
- خَافَ
- ख़ौफ़ करे
- min
- مِن
- वसीयत करने वाले से
- mūṣin
- مُّوصٍ
- वसीयत करने वाले से
- janafan
- جَنَفًا
- तरफ़दारी का
- aw
- أَوْ
- या
- ith'man
- إِثْمًا
- गुनाह का
- fa-aṣlaḥa
- فَأَصْلَحَ
- तो वो इस्लाह करा दे
- baynahum
- بَيْنَهُمْ
- दर्मियान उनके
- falā
- فَلَآ
- तो नहीं
- ith'ma
- إِثْمَ
- कोई गुनाह
- ʿalayhi
- عَلَيْهِۚ
- उस पर
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- ghafūrun
- غَفُورٌ
- बहुत बख़्शने वाला है
- raḥīmun
- رَّحِيمٌ
- निहायत रहम करने वाला है
फिर जिस किसी वसीयत करनेवाले को न्याय से किसी प्रकार के हटने या हक़़ मारने की आशंका हो, इस कारण उनके (वारिसों के) बीच सुधार की व्यवस्था कर दें, तो उसपर कोई गुनाह नहीं। निस्संदेह अल्लाह क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है ([२] अल बकराह: 182)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُوْنَۙ ١٨٣
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- kutiba
- كُتِبَ
- लिख दिया गया
- ʿalaykumu
- عَلَيْكُمُ
- तुम पर
- l-ṣiyāmu
- ٱلصِّيَامُ
- रोज़ा रखना
- kamā
- كَمَا
- जैसा कि
- kutiba
- كُتِبَ
- लिख दिया गया
- ʿalā
- عَلَى
- उन पर जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उन पर जो
- min
- مِن
- तुमसे पहले थे
- qablikum
- قَبْلِكُمْ
- तुमसे पहले थे
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tattaqūna
- تَتَّقُونَ
- मुत्तक़ी बन जाओ
ऐ ईमान लानेवालो! तुमपर रोज़े अनिवार्य किए गए, जिस प्रकार तुमसे पहले के लोगों पर किए गए थे, ताकि तुम डर रखनेवाले बन जाओ ([२] अल बकराह: 183)Tafseer (तफ़सीर )
اَيَّامًا مَّعْدُوْدٰتٍۗ فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ مَّرِيْضًا اَوْ عَلٰى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِّنْ اَيَّامٍ اُخَرَ ۗ وَعَلَى الَّذِيْنَ يُطِيْقُوْنَهٗ فِدْيَةٌ طَعَامُ مِسْكِيْنٍۗ فَمَنْ تَطَوَّعَ خَيْرًا فَهُوَ خَيْرٌ لَّهٗ ۗ وَاَنْ تَصُوْمُوْا خَيْرٌ لَّكُمْ اِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ ١٨٤
- ayyāman
- أَيَّامًا
- दिन हैं
- maʿdūdātin
- مَّعْدُودَٰتٍۚ
- गिने चुने
- faman
- فَمَن
- तो जो कोई
- kāna
- كَانَ
- हो
- minkum
- مِنكُم
- तुममें से
- marīḍan
- مَّرِيضًا
- मरीज़
- aw
- أَوْ
- या
- ʿalā
- عَلَىٰ
- सफ़र पर
- safarin
- سَفَرٍ
- सफ़र पर
- faʿiddatun
- فَعِدَّةٌ
- तो गिनती पूरी करना है
- min
- مِّنْ
- दिनों से
- ayyāmin
- أَيَّامٍ
- दिनों से
- ukhara
- أُخَرَۚ
- दूसरे
- waʿalā
- وَعَلَى
- और उन पर जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- और उन पर जो
- yuṭīqūnahu
- يُطِيقُونَهُۥ
- ताक़त रखते हों उसकी
- fid'yatun
- فِدْيَةٌ
- फ़िदया है
- ṭaʿāmu
- طَعَامُ
- खाना
- mis'kīnin
- مِسْكِينٍۖ
- एक मिस्कीन का
- faman
- فَمَن
- फिर जो कोई
- taṭawwaʿa
- تَطَوَّعَ
- ख़ुशी से करे
- khayran
- خَيْرًا
- कोई नेकी
- fahuwa
- فَهُوَ
- तो वो
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर है
- lahu
- لَّهُۥۚ
- उसके लिए
- wa-an
- وَأَن
- और ये कि
- taṣūmū
- تَصُومُوا۟
- तुम रोज़ा रखो
- khayrun
- خَيْرٌ
- बेहतर है
- lakum
- لَّكُمْۖ
- तुम्हारे लिए
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- taʿlamūna
- تَعْلَمُونَ
- तुम इल्म रखते
गिनती के कुछ दिनों के लिए - इसपर भी तुममें कोई बीमार हो, या सफ़र में हो तो दूसरे दिनों में संख्या पूरी कर ले। और जिन (बीमार और मुसाफ़िरों) को इसकी (मुहताजों को खिलाने की) सामर्थ्य हो, उनके ज़िम्मे बदलें में एक मुहताज का खाना है। फिर जो अपनी ख़ुशी से कुछ और नेकी करे तो यह उसी के लिए अच्छा है और यह कि तुम रोज़ा रखो तो तुम्हारे लिए अधिक उत्तम है, यदि तुम जानो ([२] अल बकराह: 184)Tafseer (तफ़सीर )
شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِيْٓ اُنْزِلَ فِيْهِ الْقُرْاٰنُ هُدًى لِّلنَّاسِ وَبَيِّنٰتٍ مِّنَ الْهُدٰى وَالْفُرْقَانِۚ فَمَنْ شَهِدَ مِنْكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ ۗ وَمَنْ كَانَ مَرِيْضًا اَوْ عَلٰى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِّنْ اَيَّامٍ اُخَرَ ۗ يُرِيْدُ اللّٰهُ بِكُمُ الْيُسْرَ وَلَا يُرِيْدُ بِكُمُ الْعُسْرَ ۖ وَلِتُكْمِلُوا الْعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُوا اللّٰهَ عَلٰى مَا هَدٰىكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ١٨٥
- shahru
- شَهْرُ
- महीना
- ramaḍāna
- رَمَضَانَ
- रमज़ान का
- alladhī
- ٱلَّذِىٓ
- वो है जो
- unzila
- أُنزِلَ
- नाज़िल किया गया
- fīhi
- فِيهِ
- इसमें
- l-qur'ānu
- ٱلْقُرْءَانُ
- क़ुरआन
- hudan
- هُدًى
- हिदायत है
- lilnnāsi
- لِّلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- wabayyinātin
- وَبَيِّنَٰتٍ
- और वाज़ेह निशानियाँ हैं
- mina
- مِّنَ
- हिदायत की
- l-hudā
- ٱلْهُدَىٰ
- हिदायत की
- wal-fur'qāni
- وَٱلْفُرْقَانِۚ
- और फ़ुरक़ान की
- faman
- فَمَن
- तो जो कोई
- shahida
- شَهِدَ
- हाज़िर /मौजूद हो
- minkumu
- مِنكُمُ
- तुममें से
- l-shahra
- ٱلشَّهْرَ
- इस महीने में
- falyaṣum'hu
- فَلْيَصُمْهُۖ
- पस ज़रूर रोज़े रखे इसके
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- kāna
- كَانَ
- हो
- marīḍan
- مَرِيضًا
- मरीज़
- aw
- أَوْ
- या
- ʿalā
- عَلَىٰ
- सफ़र पर
- safarin
- سَفَرٍ
- सफ़र पर
- faʿiddatun
- فَعِدَّةٌ
- तो गिनती पूरी करना है
- min
- مِّنْ
- दिनों से
- ayyāmin
- أَيَّامٍ
- दिनों से
- ukhara
- أُخَرَۗ
- दूसरे
- yurīdu
- يُرِيدُ
- चाहता है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- bikumu
- بِكُمُ
- साथ तुम्हारे
- l-yus'ra
- ٱلْيُسْرَ
- आसानी
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- yurīdu
- يُرِيدُ
- चाहता
- bikumu
- بِكُمُ
- साथ तुम्हारे
- l-ʿus'ra
- ٱلْعُسْرَ
- तंगी
- walituk'milū
- وَلِتُكْمِلُوا۟
- और ताकि तुम मुकम्मल करो
- l-ʿidata
- ٱلْعِدَّةَ
- गिनती को
- walitukabbirū
- وَلِتُكَبِّرُوا۟
- और ताकि तुम बड़ाई बयान करो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह की
- ʿalā
- عَلَىٰ
- ऊपर
- mā
- مَا
- उसके जो
- hadākum
- هَدَىٰكُمْ
- उसने हिदायत दी तुम्हें
- walaʿallakum
- وَلَعَلَّكُمْ
- और ताकि तुम
- tashkurūna
- تَشْكُرُونَ
- तुम शुक्र अदा को
रमज़ान का महीना जिसमें कुरआन उतारा गया लोगों के मार्गदर्शन के लिए, और मार्गदर्शन और सत्य-असत्य के अन्तर के प्रमाणों के साथा। अतः तुममें जो कोई इस महीने में मौजूद हो उसे चाहिए कि उसके रोज़े रखे और जो बीमार हो या सफ़र में हो तो दूसरे दिनों में गिनती पूरी कर ले। अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, वह तुम्हारे साथ सख़्ती और कठिनाई नहीं चाहता, (वह तुम्हारे लिए आसानी पैदा कर रहा है) और चाहता है कि तुम संख्या पूरी कर लो और जो सीधा मार्ग तुम्हें दिखाया गया है, उस पर अल्लाह की बड़ाई प्रकट करो और ताकि तुम कृतज्ञ बनो ([२] अल बकराह: 185)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا سَاَلَكَ عِبَادِيْ عَنِّيْ فَاِنِّيْ قَرِيْبٌ ۗ اُجِيْبُ دَعْوَةَ الدَّاعِ اِذَا دَعَانِۙ فَلْيَسْتَجِيْبُوْا لِيْ وَلْيُؤْمِنُوْا بِيْ لَعَلَّهُمْ يَرْشُدُوْنَ ١٨٦
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- sa-alaka
- سَأَلَكَ
- सवाल करें आपसे
- ʿibādī
- عِبَادِى
- मेरे बन्दे
- ʿannī
- عَنِّى
- मेरे बारे में
- fa-innī
- فَإِنِّى
- तो बेशक मैं
- qarībun
- قَرِيبٌۖ
- क़रीब हूँ
- ujību
- أُجِيبُ
- मैं जवाब देता हूँ
- daʿwata
- دَعْوَةَ
- दुआ का
- l-dāʿi
- ٱلدَّاعِ
- दुआ करने वाले की
- idhā
- إِذَا
- जब
- daʿāni
- دَعَانِۖ
- वो दुआ करे मुझसे
- falyastajībū
- فَلْيَسْتَجِيبُوا۟
- पस ज़रूर वो हुक्म मानें
- lī
- لِى
- मेरा
- walyu'minū
- وَلْيُؤْمِنُوا۟
- और ज़रूर वो ईमान लाऐं
- bī
- بِى
- मुझ पर
- laʿallahum
- لَعَلَّهُمْ
- ताकि वो
- yarshudūna
- يَرْشُدُونَ
- वो हिदायत पाऐं
और जब तुमसे मेरे बन्दे मेरे सम्बन्ध में पूछें, तो मैं तो निकट ही हूँ, पुकार का उत्तर देता हूँ, जब वह मुझे पुकारता है, तो उन्हें चाहिए कि वे मेरा हुक्म मानें और मुझपर ईमान रखें, ताकि वे सीधा मार्ग पा लें ([२] अल बकराह: 186)Tafseer (तफ़सीर )
اُحِلَّ لَكُمْ لَيْلَةَ الصِّيَامِ الرَّفَثُ اِلٰى نِسَاۤىِٕكُمْ ۗ هُنَّ لِبَاسٌ لَّكُمْ وَاَنْتُمْ لِبَاسٌ لَّهُنَّ ۗ عَلِمَ اللّٰهُ اَنَّكُمْ كُنْتُمْ تَخْتَانُوْنَ اَنْفُسَكُمْ فَتَابَ عَلَيْكُمْ وَعَفَا عَنْكُمْ ۚ فَالْـٰٔنَ بَاشِرُوْهُنَّ وَابْتَغُوْا مَا كَتَبَ اللّٰهُ لَكُمْ ۗ وَكُلُوْا وَاشْرَبُوْا حَتّٰى يَتَبَيَّنَ لَكُمُ الْخَيْطُ الْاَبْيَضُ مِنَ الْخَيْطِ الْاَسْوَدِ مِنَ الْفَجْرِۖ ثُمَّ اَتِمُّوا الصِّيَامَ اِلَى الَّيْلِۚ وَلَا تُبَاشِرُوْهُنَّ وَاَنْتُمْ عَاكِفُوْنَۙ فِى الْمَسٰجِدِ ۗ تِلْكَ حُدُوْدُ اللّٰهِ فَلَا تَقْرَبُوْهَاۗ كَذٰلِكَ يُبَيِّنُ اللّٰهُ اٰيٰتِهٖ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَّقُوْنَ ١٨٧
- uḥilla
- أُحِلَّ
- हलाल किया गया
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- laylata
- لَيْلَةَ
- रात में
- l-ṣiyāmi
- ٱلصِّيَامِ
- रोज़े की
- l-rafathu
- ٱلرَّفَثُ
- रग़बत करना
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़
- nisāikum
- نِسَآئِكُمْۚ
- अपनी औरतों के
- hunna
- هُنَّ
- वो
- libāsun
- لِبَاسٌ
- लिबास हैं
- lakum
- لَّكُمْ
- तुम्हारे लिए
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- और तुम
- libāsun
- لِبَاسٌ
- लिबास हो
- lahunna
- لَّهُنَّۗ
- उनके लिए
- ʿalima
- عَلِمَ
- जान लिया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- annakum
- أَنَّكُمْ
- बेशक तुम
- kuntum
- كُنتُمْ
- थे तुम
- takhtānūna
- تَخْتَانُونَ
- तुम ख़यानत करते
- anfusakum
- أَنفُسَكُمْ
- अपने नफ़्सों से
- fatāba
- فَتَابَ
- तो वो मेहरबान हुआ
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- waʿafā
- وَعَفَا
- और उसने दरगुज़र किया
- ʿankum
- عَنكُمْۖ
- तुमसे
- fal-āna
- فَٱلْـَٰٔنَ
- पस अब
- bāshirūhunna
- بَٰشِرُوهُنَّ
- मुबाशरत करो उनसे
- wa-ib'taghū
- وَٱبْتَغُوا۟
- और तलाश करो
- mā
- مَا
- जो
- kataba
- كَتَبَ
- लिखा
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- lakum
- لَكُمْۚ
- तुम्हारे लिए
- wakulū
- وَكُلُوا۟
- और खाओ
- wa-ish'rabū
- وَٱشْرَبُوا۟
- और पियो
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- yatabayyana
- يَتَبَيَّنَ
- वाज़ेह हो जाए
- lakumu
- لَكُمُ
- तुम्हारे लिए
- l-khayṭu
- ٱلْخَيْطُ
- धागा
- l-abyaḍu
- ٱلْأَبْيَضُ
- सफ़ेद
- mina
- مِنَ
- स्याह धागे से
- l-khayṭi
- ٱلْخَيْطِ
- स्याह धागे से
- l-aswadi
- ٱلْأَسْوَدِ
- स्याह धागे से
- mina
- مِنَ
- फ़ज्र के (वक़्त)
- l-fajri
- ٱلْفَجْرِۖ
- फ़ज्र के (वक़्त)
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- atimmū
- أَتِمُّوا۟
- तुम पूरा करो
- l-ṣiyāma
- ٱلصِّيَامَ
- रोज़े को
- ilā
- إِلَى
- रात तक
- al-layli
- ٱلَّيْلِۚ
- रात तक
- walā
- وَلَا
- और ना
- tubāshirūhunna
- تُبَٰشِرُوهُنَّ
- तुम मुबाशरत करो उनसे
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- इस हाल में कि तुम
- ʿākifūna
- عَٰكِفُونَ
- एतेकाफ़ करने वाले हो
- fī
- فِى
- मस्जिदों में
- l-masājidi
- ٱلْمَسَٰجِدِۗ
- मस्जिदों में
- til'ka
- تِلْكَ
- ये
- ḥudūdu
- حُدُودُ
- हुदूद हैं
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- falā
- فَلَا
- तो ना
- taqrabūhā
- تَقْرَبُوهَاۗ
- तुम क़रीब जाओ उनके
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- yubayyinu
- يُبَيِّنُ
- वाज़ेह करता है
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- āyātihi
- ءَايَٰتِهِۦ
- आयात अपनी
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- laʿallahum
- لَعَلَّهُمْ
- ताकि वो
- yattaqūna
- يَتَّقُونَ
- वो बच जाऐं
तुम्हारे लिए रोज़ो की रातों में अपनी औरतों के पास जाना जायज़ (वैध) हुआ। वे तुम्हारे परिधान (लिबास) हैं और तुम उनका परिधान हो। अल्लाह को मालूम हो गया कि तुम लोग अपने-आपसे कपट कर रहे थे, तो उसने तुमपर कृपा की और तुम्हें क्षमा कर दिया। तो अब तुम उनसे मिलो-जुलो और अल्लाह ने जो कुछ तुम्हारे लिए लिख रखा है, उसे तलब करो। और खाओ और पियो यहाँ तक कि तुम्हें उषाकाल की सफ़ेद धारी (रात की) काली धारी से स्पष्टा दिखाई दे जाए। फिर रात तक रोज़ा पूरा करो और जब तुम मस्जिदों में 'एतकाफ़' की हालत में हो, तो तुम उनसे न मिलो। ये अल्लाह की सीमाएँ हैं। अतः इनके निकट न जाना। इस प्रकार अल्लाह अपनी आयतें लोगों के लिए खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि वे डर रखनेवाले बनें ([२] अल बकराह: 187)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا تَأْكُلُوْٓا اَمْوَالَكُمْ بَيْنَكُمْ بِالْبَاطِلِ وَتُدْلُوْا بِهَآ اِلَى الْحُكَّامِ لِتَأْكُلُوْا فَرِيْقًا مِّنْ اَمْوَالِ النَّاسِ بِالْاِثْمِ وَاَنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ ࣖ ١٨٨
- walā
- وَلَا
- और ना
- takulū
- تَأْكُلُوٓا۟
- तुम खाओ
- amwālakum
- أَمْوَٰلَكُم
- अपने मालों को
- baynakum
- بَيْنَكُم
- आपस में
- bil-bāṭili
- بِٱلْبَٰطِلِ
- बातिल (तरीक़े) से
- watud'lū
- وَتُدْلُوا۟
- और (ना) तुम पहुँचाओ
- bihā
- بِهَآ
- उन्हें
- ilā
- إِلَى
- तरफ़ हाकिमों के
- l-ḥukāmi
- ٱلْحُكَّامِ
- तरफ़ हाकिमों के
- litakulū
- لِتَأْكُلُوا۟
- ताकि तुम खाओ
- farīqan
- فَرِيقًا
- एक हिस्सा
- min
- مِّنْ
- मालों मे से
- amwāli
- أَمْوَٰلِ
- मालों मे से
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- लोगों के
- bil-ith'mi
- بِٱلْإِثْمِ
- साथ गुनाह के
- wa-antum
- وَأَنتُمْ
- हालाँकि तुम
- taʿlamūna
- تَعْلَمُونَ
- तुम जानते हो
और आपस में तुम एक-दूसरे के माल को अवैध रूप से न खाओ, और न उन्हें हाकिमों के आगे ले जाओ कि (हक़ मारकर) लोगों के कुछ माल जानते-बूझते हड़प सको ([२] अल बकराह: 188)Tafseer (तफ़सीर )
۞ يَسـَٔلُوْنَكَ عَنِ الْاَهِلَّةِ ۗ قُلْ هِيَ مَوَاقِيْتُ لِلنَّاسِ وَالْحَجِّ ۗ وَلَيْسَ الْبِرُّ بِاَنْ تَأْتُوا الْبُيُوْتَ مِنْ ظُهُوْرِهَا وَلٰكِنَّ الْبِرَّ مَنِ اتَّقٰىۚ وَأْتُوا الْبُيُوْتَ مِنْ اَبْوَابِهَا ۖ وَاتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ ١٨٩
- yasalūnaka
- يَسْـَٔلُونَكَ
- वो सवाल करते हैं आपसे
- ʿani
- عَنِ
- नए चाँदों के बारे में
- l-ahilati
- ٱلْأَهِلَّةِۖ
- नए चाँदों के बारे में
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- hiya
- هِىَ
- वो
- mawāqītu
- مَوَٰقِيتُ
- औक़ात मुक़र्ररह हैं
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- वास्ते लोगों के
- wal-ḥaji
- وَٱلْحَجِّۗ
- और हज के
- walaysa
- وَلَيْسَ
- और नहीं है
- l-biru
- ٱلْبِرُّ
- नेकी
- bi-an
- بِأَن
- ये कि
- tatū
- تَأْتُوا۟
- तुम आओ
- l-buyūta
- ٱلْبُيُوتَ
- घरों को
- min
- مِن
- उनकी पिछली तरफ़ से
- ẓuhūrihā
- ظُهُورِهَا
- उनकी पिछली तरफ़ से
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- l-bira
- ٱلْبِرَّ
- नेकी (उसकी है)
- mani
- مَنِ
- जो
- ittaqā
- ٱتَّقَىٰۗ
- तक़वा करे
- watū
- وَأْتُوا۟
- और आओ तुम
- l-buyūta
- ٱلْبُيُوتَ
- घरों को
- min
- مِنْ
- उनके दरवाज़ों से
- abwābihā
- أَبْوَٰبِهَاۚ
- उनके दरवाज़ों से
- wa-ittaqū
- وَٱتَّقُوا۟
- और डरो
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह से
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tuf'liḥūna
- تُفْلِحُونَ
- तुम फ़लाह पा जाओ
वे तुमसे (प्रतिष्ठित) महीनों के विषय में पूछते है। कहो, 'वे तो लोगों के लिए और हज के लिए नियत है। और यह कोई ख़ूबी और नेकी नहीं हैं कि तुम घरों में उनके पीछे से आओ, बल्कि नेकी तो उसकी है जो (अल्लाह का) डर रखे। तुम घरों में उनके दरवाड़ों से आओ और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो ([२] अल बकराह: 189)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَاتِلُوْا فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ الَّذِيْنَ يُقَاتِلُوْنَكُمْ وَلَا تَعْتَدُوْا ۗ اِنَّ اللّٰهَ لَا يُحِبُّ الْمُعْتَدِيْنَ ١٩٠
- waqātilū
- وَقَٰتِلُوا۟
- और जंग करो
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते में
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनसे जो
- yuqātilūnakum
- يُقَٰتِلُونَكُمْ
- जंग करते हैं तुमसे
- walā
- وَلَا
- और ना
- taʿtadū
- تَعْتَدُوٓا۟ۚ
- तुम ज़्यादती करो
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- lā
- لَا
- नहीं पसंद करता
- yuḥibbu
- يُحِبُّ
- नहीं पसंद करता
- l-muʿ'tadīna
- ٱلْمُعْتَدِينَ
- ज़्यादती करने वालों को
और अल्लाह के मार्ग में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़े, किन्तु ज़्यादती न करो। निस्संदेह अल्लाह ज़्यादती करनेवालों को पसन्द नहीं करता ([२] अल बकराह: 190)Tafseer (तफ़सीर )