وَمَثَلُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا كَمَثَلِ الَّذِيْ يَنْعِقُ بِمَا لَا يَسْمَعُ اِلَّا دُعَاۤءً وَّنِدَاۤءً ۗ صُمٌّ ۢ بُكْمٌ عُمْيٌ فَهُمْ لَا يَعْقِلُوْنَ ١٧١
- wamathalu
- وَمَثَلُ
- और मिसाल
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनकी जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- kamathali
- كَمَثَلِ
- मानिन्द मिसाल
- alladhī
- ٱلَّذِى
- उसके है जो
- yanʿiqu
- يَنْعِقُ
- चीख़ कर पुकारता है
- bimā
- بِمَا
- उसे जो
- lā
- لَا
- नहीं सुनता
- yasmaʿu
- يَسْمَعُ
- नहीं सुनता
- illā
- إِلَّا
- मगर
- duʿāan
- دُعَآءً
- पुकार
- wanidāan
- وَنِدَآءًۚ
- और आवाज़
- ṣummun
- صُمٌّۢ
- बहरे
- buk'mun
- بُكْمٌ
- गूँगे
- ʿum'yun
- عُمْىٌ
- अँधे हैं
- fahum
- فَهُمْ
- पस वो
- lā
- لَا
- नहीं वो अक़्ल रखते
- yaʿqilūna
- يَعْقِلُونَ
- नहीं वो अक़्ल रखते
इन इनकार करनेवालों की मिसाल ऐसी है जैसे कोई ऐसी चीज़ों को पुकारे जो पुकार और आवाज़ के सिवा कुछ न सुनती और समझती हो। ये बहरे हैं, गूँगें हैं, अन्धें हैं; इसलिए ये कुछ भी नहीं समझ सकते ([२] अल बकराह: 171)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا كُلُوْا مِنْ طَيِّبٰتِ مَا رَزَقْنٰكُمْ وَاشْكُرُوْا لِلّٰهِ اِنْ كُنْتُمْ اِيَّاهُ تَعْبُدُوْنَ ١٧٢
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- kulū
- كُلُوا۟
- खाओ तुम
- min
- مِن
- पाकीज़ा चीज़ों में से
- ṭayyibāti
- طَيِّبَٰتِ
- पाकीज़ा चीज़ों में से
- mā
- مَا
- जो
- razaqnākum
- رَزَقْنَٰكُمْ
- अता कीं हमने तुम्हें
- wa-ush'kurū
- وَٱشْكُرُوا۟
- और शुक्र करो
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह का
- in
- إِن
- अगर
- kuntum
- كُنتُمْ
- हो तुम
- iyyāhu
- إِيَّاهُ
- सिर्फ़ उसी की
- taʿbudūna
- تَعْبُدُونَ
- तुम इबादत करते
ऐ ईमान लानेवालो! जो अच्छी-सुथरी चीज़ें हमने तुम्हें प्रदान की हैं उनमें से खाओ और अल्लाह के आगे कृतज्ञता दिखलाओ, यदि तुम उसी की बन्दगी करते हो ([२] अल बकराह: 172)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةَ وَالدَّمَ وَلَحْمَ الْخِنْزِيْرِ وَمَآ اُهِلَّ بِهٖ لِغَيْرِ اللّٰهِ ۚ فَمَنِ اضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍ وَّلَا عَادٍ فَلَآ اِثْمَ عَلَيْهِ ۗ اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ١٧٣
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- ḥarrama
- حَرَّمَ
- उसने हराम किया है
- ʿalaykumu
- عَلَيْكُمُ
- तुम पर
- l-maytata
- ٱلْمَيْتَةَ
- मुरदार
- wal-dama
- وَٱلدَّمَ
- और ख़ून
- walaḥma
- وَلَحْمَ
- और गोश्त
- l-khinzīri
- ٱلْخِنزِيرِ
- ख़िन्ज़ीर का
- wamā
- وَمَآ
- और जो
- uhilla
- أُهِلَّ
- पुकारा गया
- bihi
- بِهِۦ
- उसको
- lighayri
- لِغَيْرِ
- वास्ते ग़ैर
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- अल्लाह के
- famani
- فَمَنِ
- तो जो कोई
- uḍ'ṭurra
- ٱضْطُرَّ
- मजबूर किया गया
- ghayra
- غَيْرَ
- ना
- bāghin
- بَاغٍ
- सरकशी करने वाला हो
- walā
- وَلَا
- और ना
- ʿādin
- عَادٍ
- हद से बढ़ने वाला हो
- falā
- فَلَآ
- तो नहीं
- ith'ma
- إِثْمَ
- कोई गुनाह
- ʿalayhi
- عَلَيْهِۚ
- उस पर
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- ghafūrun
- غَفُورٌ
- बहुत बख़्शने वाला है
- raḥīmun
- رَّحِيمٌ
- निहायत रहम करने वाला है
उसने तो तुमपर केवल मुर्दार और ख़ून और सूअर का माँस और जिस पर अल्लाह के अतिरिक्त किसी और का नाम लिया गया हो, हराम ठहराया है। इसपर भी जो बहुत मजबूर और विवश हो जाए, वह अवज्ञा करनेवाला न हो और न सीमा से आगे बढ़नेवाला हो तो उसपर कोई गुनाह नहीं। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है ([२] अल बकराह: 173)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ يَكْتُمُوْنَ مَآ اَنْزَلَ اللّٰهُ مِنَ الْكِتٰبِ وَيَشْتَرُوْنَ بِهٖ ثَمَنًا قَلِيْلًاۙ اُولٰۤىِٕكَ مَا يَأْكُلُوْنَ فِيْ بُطُوْنِهِمْ اِلَّا النَّارَ وَلَا يُكَلِّمُهُمُ اللّٰهُ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ وَلَا يُزَكِّيْهِمْ ۚوَلَهُمْ عَذَابٌ اَلِيْمٌ ١٧٤
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- yaktumūna
- يَكْتُمُونَ
- छुपाते हैं
- mā
- مَآ
- उसे जो
- anzala
- أَنزَلَ
- नाज़िल किया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- mina
- مِنَ
- किताब में से
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- किताब में से
- wayashtarūna
- وَيَشْتَرُونَ
- और वो ले लेते हैं
- bihi
- بِهِۦ
- बदले उसके
- thamanan
- ثَمَنًا
- क़ीमत
- qalīlan
- قَلِيلًاۙ
- बहुत थोड़ी
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही लोग हैं
- mā
- مَا
- नहीं
- yakulūna
- يَأْكُلُونَ
- वो खाते
- fī
- فِى
- अपने पेटों में
- buṭūnihim
- بُطُونِهِمْ
- अपने पेटों में
- illā
- إِلَّا
- सिवाय
- l-nāra
- ٱلنَّارَ
- आग के
- walā
- وَلَا
- और नहीं
- yukallimuhumu
- يُكَلِّمُهُمُ
- कलाम करेगा उनसे
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- yawma
- يَوْمَ
- दिन
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِ
- क़यामत के
- walā
- وَلَا
- और ना
- yuzakkīhim
- يُزَكِّيهِمْ
- वो पाक करेगा उन्हें
- walahum
- وَلَهُمْ
- और उनके लिए
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब है
- alīmun
- أَلِيمٌ
- दर्दनाक
जो लोग उस चीज़ को छिपाते है जो अल्लाह ने अपनी किताब में से उतारी है और उसके बदले थोड़े मूल्य का सौदा करते है, वे तो बस आग खाकर अपने पेट भर रहे है; और क़ियामत के दिन अल्लाह न तो उनसे बात करेगा और न उन्हें निखारेगा; और उनके लिए दुखद यातना है ([२] अल बकराह: 174)Tafseer (तफ़सीर )
اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ اشْتَرَوُا الضَّلٰلَةَ بِالْهُدٰى وَالْعَذَابَ بِالْمَغْفِرَةِ ۚ فَمَآ اَصْبَرَهُمْ عَلَى النَّارِ ١٧٥
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही वो लोग हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जिन्होंने
- ish'tarawū
- ٱشْتَرَوُا۟
- ख़रीद लिया
- l-ḍalālata
- ٱلضَّلَٰلَةَ
- गुमराही को
- bil-hudā
- بِٱلْهُدَىٰ
- बदले हिदायत के
- wal-ʿadhāba
- وَٱلْعَذَابَ
- और अज़ाब को
- bil-maghfirati
- بِٱلْمَغْفِرَةِۚ
- बदले मग़फ़िरत के
- famā
- فَمَآ
- तो कितना सब्र है उनका
- aṣbarahum
- أَصْبَرَهُمْ
- तो कितना सब्र है उनका
- ʿalā
- عَلَى
- आग पर
- l-nāri
- ٱلنَّارِ
- आग पर
यहीं लोग हैं जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले पथभ्रष्टका मोल ली; और क्षमा के बदले यातना के ग्राहक बने। तो आग को सहन करने के लिए उनका उत्साह कितना बढ़ा हुआ है! ([२] अल बकराह: 175)Tafseer (तफ़सीर )
ذٰلِكَ بِاَنَّ اللّٰهَ نَزَّلَ الْكِتٰبَ بِالْحَقِّ ۗ وَاِنَّ الَّذِيْنَ اخْتَلَفُوْا فِى الْكِتٰبِ لَفِيْ شِقَاقٍۢ بَعِيْدٍ ࣖ ١٧٦
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- bi-anna
- بِأَنَّ
- बवजह इसके कि
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह ने
- nazzala
- نَزَّلَ
- नाज़िल किया
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब को
- bil-ḥaqi
- بِٱلْحَقِّۗ
- साथ हक़ के
- wa-inna
- وَإِنَّ
- और बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- ikh'talafū
- ٱخْتَلَفُوا۟
- इख़्तिलाफ़ किया
- fī
- فِى
- किताब में
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِ
- किताब में
- lafī
- لَفِى
- अलबत्ता मुख़ालिफ़त में हैं
- shiqāqin
- شِقَاقٍۭ
- अलबत्ता मुख़ालिफ़त में हैं
- baʿīdin
- بَعِيدٍ
- दूर की
वह (यातना) इसलिए होगी कि अल्लाह ने तो हक़ के साथ किताब उतारी, किन्तु जिन लोगों ने किताब के मामले में विभेद किया वे हठ और विरोध में बहुत दूर निकल गए ([२] अल बकराह: 176)Tafseer (तफ़सीर )
۞ لَيْسَ الْبِرَّاَنْ تُوَلُّوْا وُجُوْهَكُمْ قِبَلَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ وَلٰكِنَّ الْبِرَّ مَنْ اٰمَنَ بِاللّٰهِ وَالْيَوْمِ الْاٰخِرِ وَالْمَلٰۤىِٕكَةِ وَالْكِتٰبِ وَالنَّبِيّٖنَ ۚ وَاٰتَى الْمَالَ عَلٰى حُبِّهٖ ذَوِى الْقُرْبٰى وَالْيَتٰمٰى وَالْمَسٰكِيْنَ وَابْنَ السَّبِيْلِۙ وَالسَّاۤىِٕلِيْنَ وَفىِ الرِّقَابِۚ وَاَقَامَ الصَّلٰوةَ وَاٰتَى الزَّكٰوةَ ۚ وَالْمُوْفُوْنَ بِعَهْدِهِمْ اِذَا عَاهَدُوْا ۚ وَالصّٰبِرِيْنَ فِى الْبَأْسَاۤءِ وَالضَّرَّاۤءِ وَحِيْنَ الْبَأْسِۗ اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ صَدَقُوْا ۗوَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُتَّقُوْنَ ١٧٧
- laysa
- لَّيْسَ
- नहीं है
- l-bira
- ٱلْبِرَّ
- नेकी
- an
- أَن
- कि
- tuwallū
- تُوَلُّوا۟
- तुम फेर लो
- wujūhakum
- وُجُوهَكُمْ
- अपने चेहरों को
- qibala
- قِبَلَ
- तरफ़
- l-mashriqi
- ٱلْمَشْرِقِ
- मशरिक़
- wal-maghribi
- وَٱلْمَغْرِبِ
- और मग़रिब के
- walākinna
- وَلَٰكِنَّ
- और लेकिन
- l-bira
- ٱلْبِرَّ
- नेकी (उसकी है)
- man
- مَنْ
- जो
- āmana
- ءَامَنَ
- ईमान लाए
- bil-lahi
- بِٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- wal-yawmi
- وَٱلْيَوْمِ
- और आख़िरी दिन पर
- l-ākhiri
- ٱلْءَاخِرِ
- और आख़िरी दिन पर
- wal-malāikati
- وَٱلْمَلَٰٓئِكَةِ
- और फ़रिश्तों पर
- wal-kitābi
- وَٱلْكِتَٰبِ
- और किताब पर
- wal-nabiyīna
- وَٱلنَّبِيِّۦنَ
- और नबियों पर
- waātā
- وَءَاتَى
- और वो दे
- l-māla
- ٱلْمَالَ
- माल
- ʿalā
- عَلَىٰ
- उसकी मोहब्बत में
- ḥubbihi
- حُبِّهِۦ
- उसकी मोहब्बत में
- dhawī
- ذَوِى
- क़राबतदारों को
- l-qur'bā
- ٱلْقُرْبَىٰ
- क़राबतदारों को
- wal-yatāmā
- وَٱلْيَتَٰمَىٰ
- और यतीमों को
- wal-masākīna
- وَٱلْمَسَٰكِينَ
- और मिस्कीनों को
- wa-ib'na
- وَٱبْنَ
- और मुसाफ़िरों को
- l-sabīli
- ٱلسَّبِيلِ
- और मुसाफ़िरों को
- wal-sāilīna
- وَٱلسَّآئِلِينَ
- और सवाल करने वालों को
- wafī
- وَفِى
- और गर्दनें (छुड़ाने) में
- l-riqābi
- ٱلرِّقَابِ
- और गर्दनें (छुड़ाने) में
- wa-aqāma
- وَأَقَامَ
- और वो क़ायम करे
- l-ṣalata
- ٱلصَّلَوٰةَ
- नमाज़
- waātā
- وَءَاتَى
- और वो अदा करे
- l-zakata
- ٱلزَّكَوٰةَ
- ज़कात
- wal-mūfūna
- وَٱلْمُوفُونَ
- और जो पूरा करने वाले हैं
- biʿahdihim
- بِعَهْدِهِمْ
- अपने अहद को
- idhā
- إِذَا
- जब
- ʿāhadū
- عَٰهَدُوا۟ۖ
- वो अहद करें
- wal-ṣābirīna
- وَٱلصَّٰبِرِينَ
- और जो सब्र करने वाले हैं
- fī
- فِى
- तंगदस्ती में
- l-basāi
- ٱلْبَأْسَآءِ
- तंगदस्ती में
- wal-ḍarāi
- وَٱلضَّرَّآءِ
- और तकलीफ़ में
- waḥīna
- وَحِينَ
- और वक़्त
- l-basi
- ٱلْبَأْسِۗ
- जंग के
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही वो लोग हैं
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- जिन्होंने
- ṣadaqū
- صَدَقُوا۟ۖ
- सच कहा
- wa-ulāika
- وَأُو۟لَٰٓئِكَ
- और यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-mutaqūna
- ٱلْمُتَّقُونَ
- जो मुत्तक़ी हैं
नेकी केवल यह नहीं है कि तुम अपने मुँह पूरब और पश्चिम की ओर कर लो, बल्कि नेकी तो उसकी नेकी है जो अल्लाह अन्तिम दिन, फ़रिश्तों, किताब और नबियों पर ईमान लाया और माल, उसके प्रति प्रेम के बावजूद नातेदारों, अनाथों, मुहताजों, मुसाफ़िरों और माँगनेवालों को दिया और गर्दनें छुड़ाने में भी, और नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी और अपने वचन को ऐसे लोग पूरा करनेवाले है जब वचन दें; और तंगी और विशेष रूप से शारीरिक कष्टों में और लड़ाई के समय में जमनेवाले हैं, तो ऐसे ही लोग है जो सच्चे सिद्ध हुए और वही लोग डर रखनेवाले हैं ([२] अल बकराह: 177)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الْقِصَاصُ فِى الْقَتْلٰىۗ اَلْحُرُّ بِالْحُرِّ وَالْعَبْدُ بِالْعَبْدِ وَالْاُنْثٰى بِالْاُنْثٰىۗ فَمَنْ عُفِيَ لَهٗ مِنْ اَخِيْهِ شَيْءٌ فَاتِّبَاعٌ ۢبِالْمَعْرُوْفِ وَاَدَاۤءٌ اِلَيْهِ بِاِحْسَانٍ ۗ ذٰلِكَ تَخْفِيْفٌ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَرَحْمَةٌ ۗفَمَنِ اعْتَدٰى بَعْدَ ذٰلِكَ فَلَهٗ عَذَابٌ اَلِيْمٌ ١٧٨
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- kutiba
- كُتِبَ
- लिख दिया गया
- ʿalaykumu
- عَلَيْكُمُ
- तुम पर
- l-qiṣāṣu
- ٱلْقِصَاصُ
- बदला लेना
- fī
- فِى
- मक़तूलों (के बारे) में
- l-qatlā
- ٱلْقَتْلَىۖ
- मक़तूलों (के बारे) में
- l-ḥuru
- ٱلْحُرُّ
- आज़ाद
- bil-ḥuri
- بِٱلْحُرِّ
- बदले आज़ाद के
- wal-ʿabdu
- وَٱلْعَبْدُ
- और ग़ुलाम
- bil-ʿabdi
- بِٱلْعَبْدِ
- बदले ग़ुलाम के
- wal-unthā
- وَٱلْأُنثَىٰ
- और औरत
- bil-unthā
- بِٱلْأُنثَىٰۚ
- बदले औरत के
- faman
- فَمَنْ
- तो जो कोई
- ʿufiya
- عُفِىَ
- माफ़ कर दिया गया
- lahu
- لَهُۥ
- उसको
- min
- مِنْ
- उसके भाई (की तरफ़) से
- akhīhi
- أَخِيهِ
- उसके भाई (की तरफ़) से
- shayon
- شَىْءٌ
- कुछ भी
- fa-ittibāʿun
- فَٱتِّبَاعٌۢ
- तो पैरवी करना है
- bil-maʿrūfi
- بِٱلْمَعْرُوفِ
- साथ भले तरीक़े के
- wa-adāon
- وَأَدَآءٌ
- और अदा करना है
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ उसके
- bi-iḥ'sānin
- بِإِحْسَٰنٍۗ
- साथ एहसान के
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये
- takhfīfun
- تَخْفِيفٌ
- तख़्फ़ीफ़ / रिआयत है
- min
- مِّن
- तुम्हारे रब की तरफ़ से
- rabbikum
- رَّبِّكُمْ
- तुम्हारे रब की तरफ़ से
- waraḥmatun
- وَرَحْمَةٌۗ
- और रहमत है
- famani
- فَمَنِ
- तो जो कोई
- iʿ'tadā
- ٱعْتَدَىٰ
- ज़्यादती करे
- baʿda
- بَعْدَ
- बाद
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- इसके
- falahu
- فَلَهُۥ
- तो उसके लिए
- ʿadhābun
- عَذَابٌ
- अज़ाब है
- alīmun
- أَلِيمٌ
- दर्दनाक
ऐ ईमान लानेवालो! मारे जानेवालों के विषय में हत्यादंड (क़िसास) तुमपर अनिवार्य किया गया, स्वतंत्र-स्वतंत्र बराबर है और ग़़ुलाम-ग़ुलाम बराबर है और औरत-औरत बराबर है। फिर यदि किसी को उसके भाई की ओर से कुछ छूट मिल जाए तो सामान्य रीति का पालन करना चाहिए; और भले तरीके से उसे अदा करना चाहिए। यह तुम्हारें रब की ओर से एक छूट और दयालुता है। फिर इसके बाद भो जो ज़्यादती करे तो उसके लिए दुखद यातना है ([२] अल बकराह: 178)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَكُمْ فِى الْقِصَاصِ حَيٰوةٌ يّٰٓاُولِى الْاَلْبَابِ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُوْنَ ١٧٩
- walakum
- وَلَكُمْ
- और तुम्हारे लिए
- fī
- فِى
- बदला लेने में
- l-qiṣāṣi
- ٱلْقِصَاصِ
- बदला लेने में
- ḥayatun
- حَيَوٰةٌ
- ज़िन्दगी है
- yāulī
- يَٰٓأُو۟لِى
- ऐ अक़्ल वालो
- l-albābi
- ٱلْأَلْبَٰبِ
- ऐ अक़्ल वालो
- laʿallakum
- لَعَلَّكُمْ
- ताकि तुम
- tattaqūna
- تَتَّقُونَ
- तुम बच जाओ
ऐ बुद्धि और समझवालों! तुम्हारे लिए हत्यादंड (क़िसास) में जीवन है, ताकि तुम बचो ([२] अल बकराह: 179)Tafseer (तफ़सीर )
كُتِبَ عَلَيْكُمْ اِذَا حَضَرَ اَحَدَكُمُ الْمَوْتُ اِنْ تَرَكَ خَيْرًا ۖ ۨالْوَصِيَّةُ لِلْوَالِدَيْنِ وَالْاَقْرَبِيْنَ بِالْمَعْرُوْفِۚ حَقًّا عَلَى الْمُتَّقِيْنَ ۗ ١٨٠
- kutiba
- كُتِبَ
- लिख दिया गया
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- idhā
- إِذَا
- जब
- ḥaḍara
- حَضَرَ
- आ जाए
- aḥadakumu
- أَحَدَكُمُ
- तुममें से किसी एक को
- l-mawtu
- ٱلْمَوْتُ
- मौत
- in
- إِن
- अगर
- taraka
- تَرَكَ
- वो छोड़ जाए
- khayran
- خَيْرًا
- माल को
- l-waṣiyatu
- ٱلْوَصِيَّةُ
- वसीयत करना
- lil'wālidayni
- لِلْوَٰلِدَيْنِ
- वालिदैन के लिए
- wal-aqrabīna
- وَٱلْأَقْرَبِينَ
- और कराबतदारों के लिए
- bil-maʿrūfi
- بِٱلْمَعْرُوفِۖ
- भले तरीक़े से
- ḥaqqan
- حَقًّا
- ये हक़ है
- ʿalā
- عَلَى
- ऊपर
- l-mutaqīna
- ٱلْمُتَّقِينَ
- मुत्तक़ी लोगों के
जब तुममें से किसी की मृत्यु का समय आ जाए, यदि वह कुछ माल छोड़ रहा हो, तो माँ-बाप और नातेदारों को भलाई की वसीयत करना तुमपर अनिवार्य किया गया। यह हक़ है डर रखनेवालों पर ([२] अल बकराह: 180)Tafseer (तफ़सीर )