اِنَّ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا وَمَاتُوْا وَهُمْ كُفَّارٌ اُولٰۤىِٕكَ عَلَيْهِمْ لَعْنَةُ اللّٰهِ وَالْمَلٰۤىِٕكَةِ وَالنَّاسِ اَجْمَعِيْنَۙ ١٦١
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- kafarū
- كَفَرُوا۟
- कुफ़्र किया
- wamātū
- وَمَاتُوا۟
- और वो मर गए
- wahum
- وَهُمْ
- इस हाल में कि वो
- kuffārun
- كُفَّارٌ
- काफ़िर थे
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही वो लोग हैं
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- उन पर है
- laʿnatu
- لَعْنَةُ
- लानत
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह की
- wal-malāikati
- وَٱلْمَلَٰٓئِكَةِ
- और फ़रिश्तों की
- wal-nāsi
- وَٱلنَّاسِ
- और लोगों की
- ajmaʿīna
- أَجْمَعِينَ
- सब के सब की
जिन लोगों ने कुफ़्र किया और काफ़िर (इनकार करनेवाले) ही रहकर मरे, वही हैं जिनपर अल्लाह की, फ़रिश्तों की और सारे मनुष्यों की, सबकी फिटकार है ([२] अल बकराह: 161)Tafseer (तफ़सीर )
خٰلِدِيْنَ فِيْهَا ۚ لَا يُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ وَلَا هُمْ يُنْظَرُوْنَ ١٦٢
- khālidīna
- خَٰلِدِينَ
- हमेशा रहने वाले हैं
- fīhā
- فِيهَاۖ
- उसमें
- lā
- لَا
- ना हल्का किया जाएगा
- yukhaffafu
- يُخَفَّفُ
- ना हल्का किया जाएगा
- ʿanhumu
- عَنْهُمُ
- उनसे
- l-ʿadhābu
- ٱلْعَذَابُ
- अज़ाब
- walā
- وَلَا
- और ना
- hum
- هُمْ
- वो
- yunẓarūna
- يُنظَرُونَ
- वो मोहलत दिए जाऐंगे
इसी दशा में वे सदैव रहेंगे, न उनकी यातना हल्की की जाएगी और न उन्हें मुहलत ही मिलेगी ([२] अल बकराह: 162)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِلٰهُكُمْ اِلٰهٌ وَّاحِدٌۚ لَآاِلٰهَ اِلَّا هُوَ الرَّحْمٰنُ الرَّحِيْمُ ࣖ ١٦٣
- wa-ilāhukum
- وَإِلَٰهُكُمْ
- और इलाह तुम्हारा
- ilāhun
- إِلَٰهٌ
- इलाह है
- wāḥidun
- وَٰحِدٌۖ
- एक ही
- lā
- لَّآ
- नहीं
- ilāha
- إِلَٰهَ
- कोई इलाह (बरहक़)
- illā
- إِلَّا
- मगर
- huwa
- هُوَ
- वो ही
- l-raḥmānu
- ٱلرَّحْمَٰنُ
- जो बहुत मेहरबान है
- l-raḥīmu
- ٱلرَّحِيمُ
- निहायत रहम करने वाला है
तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला पूज्य-प्रभु है, उस कृपाशील और दयावान के अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं ([२] अल बकराह: 163)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ فِيْ خَلْقِ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَاخْتِلَافِ الَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَالْفُلْكِ الَّتِيْ تَجْرِيْ فِى الْبَحْرِ بِمَا يَنْفَعُ النَّاسَ وَمَآ اَنْزَلَ اللّٰهُ مِنَ السَّمَاۤءِ مِنْ مَّاۤءٍ فَاَحْيَا بِهِ الْاَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا وَبَثَّ فِيْهَا مِنْ كُلِّ دَاۤبَّةٍ ۖ وَّتَصْرِيْفِ الرِّيٰحِ وَالسَّحَابِ الْمُسَخَّرِ بَيْنَ السَّمَاۤءِ وَالْاَرْضِ لَاٰيٰتٍ لِّقَوْمٍ يَّعْقِلُوْنَ ١٦٤
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- fī
- فِى
- पैदा करने में
- khalqi
- خَلْقِ
- पैदा करने में
- l-samāwāti
- ٱلسَّمَٰوَٰتِ
- आसमानों
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِ
- और ज़मीन के
- wa-ikh'tilāfi
- وَٱخْتِلَٰفِ
- और इख़्तिलाफ़ में
- al-layli
- ٱلَّيْلِ
- रात
- wal-nahāri
- وَٱلنَّهَارِ
- और दिन के
- wal-ful'ki
- وَٱلْفُلْكِ
- और कश्तियों में
- allatī
- ٱلَّتِى
- वो जो
- tajrī
- تَجْرِى
- चलती हैं
- fī
- فِى
- समुन्दर में
- l-baḥri
- ٱلْبَحْرِ
- समुन्दर में
- bimā
- بِمَا
- साथ उसके जो
- yanfaʿu
- يَنفَعُ
- नफ़ा देता है
- l-nāsa
- ٱلنَّاسَ
- लोगों को
- wamā
- وَمَآ
- और उसमें जो
- anzala
- أَنزَلَ
- नाज़िल किया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- mina
- مِنَ
- आसमान से
- l-samāi
- ٱلسَّمَآءِ
- आसमान से
- min
- مِن
- पानी में से
- māin
- مَّآءٍ
- पानी में से
- fa-aḥyā
- فَأَحْيَا
- फिर उसने ज़िन्दा किया
- bihi
- بِهِ
- साथ उसके
- l-arḍa
- ٱلْأَرْضَ
- ज़मीन को
- baʿda
- بَعْدَ
- बाद
- mawtihā
- مَوْتِهَا
- उसकी मौत के
- wabatha
- وَبَثَّ
- और उसने फैला दी
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- min
- مِن
- हर क़िस्म की जानदार मख़लूक़
- kulli
- كُلِّ
- हर क़िस्म की जानदार मख़लूक़
- dābbatin
- دَآبَّةٍ
- हर क़िस्म की जानदार मख़लूक़
- wataṣrīfi
- وَتَصْرِيفِ
- और फेरने में
- l-riyāḥi
- ٱلرِّيَٰحِ
- हवाओं के
- wal-saḥābi
- وَٱلسَّحَابِ
- और बादलों में
- l-musakhari
- ٱلْمُسَخَّرِ
- जो मुसख़्ख़र किए गए हैं
- bayna
- بَيْنَ
- दर्मियान
- l-samāi
- ٱلسَّمَآءِ
- आसमान
- wal-arḍi
- وَٱلْأَرْضِ
- और ज़मीन के
- laāyātin
- لَءَايَٰتٍ
- यक़ीनन निशानियाँ हैं
- liqawmin
- لِّقَوْمٍ
- उन लोगों के लिए
- yaʿqilūna
- يَعْقِلُونَ
- जो अक़्ल रखते हैं
निस्संदेह आकाशों और धरती की संरचना में, और रात और दिन की अदला-बदली में, और उन नौकाओं में जो लोगों की लाभप्रद चीज़े लेकर समुद्र (और नदी) में चलती है, और उस पानी में जिसे अल्लाह ने आकाश से उतारा, फिर जिसके द्वारा धरती को उसके निर्जीव हो जाने के पश्चात जीवित किया और उसमें हर एक (प्रकार के) जीवधारी को फैलाया और हवाओं को गर्दिश देने में और उन बादलों में जो आकाश और धरती के बीच (काम पर) नियुक्त होते है, उन लोगों के लिए कितनी ही निशानियाँ है जो बुद्धि से काम लें ([२] अल बकराह: 164)Tafseer (तफ़सीर )
وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَّتَّخِذُ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ اَنْدَادًا يُّحِبُّوْنَهُمْ كَحُبِّ اللّٰهِ ۗ وَالَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اَشَدُّ حُبًّا لِّلّٰهِ ۙوَلَوْ يَرَى الَّذِيْنَ ظَلَمُوْٓا اِذْ يَرَوْنَ الْعَذَابَۙ اَنَّ الْقُوَّةَ لِلّٰهِ جَمِيْعًا ۙوَّاَنَّ اللّٰهَ شَدِيْدُ الْعَذَابِ ١٦٥
- wamina
- وَمِنَ
- और बाज़ लोग हैं
- l-nāsi
- ٱلنَّاسِ
- और बाज़ लोग हैं
- man
- مَن
- जो
- yattakhidhu
- يَتَّخِذُ
- बना लेते हैं
- min
- مِن
- सिवाय
- dūni
- دُونِ
- सिवाय
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के
- andādan
- أَندَادًا
- कई शरीक
- yuḥibbūnahum
- يُحِبُّونَهُمْ
- वो मोहब्बत करते हैं उनसे
- kaḥubbi
- كَحُبِّ
- जैसी मोहब्बत करना
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- अल्लाह से
- wa-alladhīna
- وَٱلَّذِينَ
- और वो जो
- āmanū
- ءَامَنُوٓا۟
- ईमान लाए
- ashaddu
- أَشَدُّ
- ज़्यादा शदीद हैं
- ḥubban
- حُبًّا
- मोहब्बत करने में
- lillahi
- لِّلَّهِۗ
- अल्लाह से
- walaw
- وَلَوْ
- और काश
- yarā
- يَرَى
- देख लें
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- ẓalamū
- ظَلَمُوٓا۟
- ज़ुल्म किया
- idh
- إِذْ
- जब
- yarawna
- يَرَوْنَ
- वो देखेंगे
- l-ʿadhāba
- ٱلْعَذَابَ
- अज़ाब को
- anna
- أَنَّ
- बेशक
- l-quwata
- ٱلْقُوَّةَ
- क़ुव्वत
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह ही के लिए है
- jamīʿan
- جَمِيعًا
- सारी की सारी
- wa-anna
- وَأَنَّ
- और बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- shadīdu
- شَدِيدُ
- सख़्त है
- l-ʿadhābi
- ٱلْعَذَابِ
- अज़ाब (देने में)
कुछ लोग ऐसे भी है जो अल्लाह से हटकर दूसरों को उसके समकक्ष ठहराते है, उनसे ऐसा प्रेम करते है जैसा अल्लाह से प्रेम करना चाहिए। और कुछ ईमानवाले है उन्हें सबसे बढ़कर अल्लाह से प्रेम होता है। और ये अत्याचारी (बहुदेववादी) जबकि यातना देखते है, यदि इस तथ्य को जान लेते कि शक्ति सारी की सारी अल्लाह ही को प्राप्त हो और यह कि अल्लाह अत्यन्त कठोर यातना देनेवाला है (तो इनकी नीति कुछ और होती) ([२] अल बकराह: 165)Tafseer (तफ़सीर )
اِذْ تَبَرَّاَ الَّذِيْنَ اتُّبِعُوْا مِنَ الَّذِيْنَ اتَّبَعُوْا وَرَاَوُا الْعَذَابَ وَتَقَطَّعَتْ بِهِمُ الْاَسْبَابُ ١٦٦
- idh
- إِذْ
- जब
- tabarra-a
- تَبَرَّأَ
- बेज़ार होंगे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जो
- ittubiʿū
- ٱتُّبِعُوا۟
- पैरवी किए गए
- mina
- مِنَ
- उनसे जिन्होंने
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनसे जिन्होंने
- ittabaʿū
- ٱتَّبَعُوا۟
- पैरवी की
- wara-awū
- وَرَأَوُا۟
- और वो देख लेंगे
- l-ʿadhāba
- ٱلْعَذَابَ
- अज़ाब
- wataqaṭṭaʿat
- وَتَقَطَّعَتْ
- और कट जाऐंगे
- bihimu
- بِهِمُ
- उनके
- l-asbābu
- ٱلْأَسْبَابُ
- तमाम असबाब
जब वे लोग जिनके पीछे वे चलते थे, यातना को देखकर अपने अनुयायियों से विरक्त हो जाएँगे और उनके सम्बन्ध और सम्पर्क टूट जाएँगे ([२] अल बकराह: 166)Tafseer (तफ़सीर )
وَقَالَ الَّذِيْنَ اتَّبَعُوْا لَوْ اَنَّ لَنَا كَرَّةً فَنَتَبَرَّاَ مِنْهُمْ ۗ كَمَا تَبَرَّءُوْا مِنَّا ۗ كَذٰلِكَ يُرِيْهِمُ اللّٰهُ اَعْمَالَهُمْ حَسَرٰتٍ عَلَيْهِمْ ۗ وَمَا هُمْ بِخَارِجِيْنَ مِنَ النَّارِ ࣖ ١٦٧
- waqāla
- وَقَالَ
- और कहेंगे
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो जिन्होंने
- ittabaʿū
- ٱتَّبَعُوا۟
- पैरवी की
- law
- لَوْ
- काश
- anna
- أَنَّ
- कि
- lanā
- لَنَا
- हमारे लिए होता
- karratan
- كَرَّةً
- एक मर्तबा लौटना
- fanatabarra-a
- فَنَتَبَرَّأَ
- तो हम बेज़ार होते
- min'hum
- مِنْهُمْ
- उनसे
- kamā
- كَمَا
- जैसा कि
- tabarraū
- تَبَرَّءُوا۟
- वो बेज़ार हुए
- minnā
- مِنَّاۗ
- हमसे
- kadhālika
- كَذَٰلِكَ
- इसी तरह
- yurīhimu
- يُرِيهِمُ
- दिखाएगा उन्हें
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- aʿmālahum
- أَعْمَٰلَهُمْ
- आमाल उनके
- ḥasarātin
- حَسَرَٰتٍ
- हसरतें बनाकर
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْۖ
- उन पर
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- hum
- هُم
- वो
- bikhārijīna
- بِخَٰرِجِينَ
- निकलने वाले
- mina
- مِنَ
- आग से
- l-nāri
- ٱلنَّارِ
- आग से
वे लोग जो उनके पीछे चले थे कहेंगे, 'काश! हमें एक बार (फिर संसार में लौटना होता तो जिस तरह आज ये हमसे विरक्त हो रहे हैं, हम भी इनसे विरक्त हो जाते।' इस प्रकार अल्लाह उनके लिए संताप बनाकर उन्हें कर्म दिखाएगा और वे आग (जहन्नम) से निकल न सकेंगे ([२] अल बकराह: 167)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا النَّاسُ كُلُوْا مِمَّا فِى الْاَرْضِ حَلٰلًا طَيِّبًا ۖوَّلَا تَتَّبِعُوْا خُطُوٰتِ الشَّيْطٰنِۗ اِنَّهٗ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِيْنٌ ١٦٨
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो
- l-nāsu
- ٱلنَّاسُ
- ऐ लोगो
- kulū
- كُلُوا۟
- खाओ
- mimmā
- مِمَّا
- उससे जो
- fī
- فِى
- ज़मीन में है
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में है
- ḥalālan
- حَلَٰلًا
- हलाल
- ṭayyiban
- طَيِّبًا
- पाकीज़ा
- walā
- وَلَا
- और ना
- tattabiʿū
- تَتَّبِعُوا۟
- तुम पैरवी करो
- khuṭuwāti
- خُطُوَٰتِ
- क़दमों की
- l-shayṭāni
- ٱلشَّيْطَٰنِۚ
- शैतान के
- innahu
- إِنَّهُۥ
- बेशक वो
- lakum
- لَكُمْ
- तुम्हारे लिए
- ʿaduwwun
- عَدُوٌّ
- दुश्मन है
- mubīnun
- مُّبِينٌ
- खुल्लम-खुल्ला
ऐ लोगों! धरती में जो हलाल और अच्छी-सुथरी चीज़ें हैं उन्हें खाओ और शैतान के पदचिन्हों पर न चलो। निस्संदेह वह तुम्हारा खुला शत्रु है ([२] अल बकराह: 168)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّمَا يَأْمُرُكُمْ بِالسُّوْۤءِ وَالْفَحْشَاۤءِ وَاَنْ تَقُوْلُوْا عَلَى اللّٰهِ مَا لَا تَعْلَمُوْنَ ١٦٩
- innamā
- إِنَّمَا
- बेशक
- yamurukum
- يَأْمُرُكُم
- वो हुक्म देता है तुम्हें
- bil-sūi
- بِٱلسُّوٓءِ
- बुराई का
- wal-faḥshāi
- وَٱلْفَحْشَآءِ
- और बेहयाई का
- wa-an
- وَأَن
- और ये कि
- taqūlū
- تَقُولُوا۟
- तुम कहो
- ʿalā
- عَلَى
- अल्लाह पर
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह पर
- mā
- مَا
- जो
- lā
- لَا
- नहीं
- taʿlamūna
- تَعْلَمُونَ
- तुम जानते
वह तो बस तुम्हें बुराई और अश्लीलता पर उकसाता है और इसपर कि तुम अल्लाह पर थोपकर वे बातें कहो जो तुम नहीं जानते ([२] अल बकराह: 169)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَا قِيْلَ لَهُمُ اتَّبِعُوْا مَآ اَنْزَلَ اللّٰهُ قَالُوْا بَلْ نَتَّبِعُ مَآ اَلْفَيْنَا عَلَيْهِ اٰبَاۤءَنَا ۗ اَوَلَوْ كَانَ اٰبَاۤؤُهُمْ لَا يَعْقِلُوْنَ شَيْـًٔا وَّلَا يَهْتَدُوْنَ ١٧٠
- wa-idhā
- وَإِذَا
- और जब
- qīla
- قِيلَ
- कहा जाता है
- lahumu
- لَهُمُ
- उन्हें
- ittabiʿū
- ٱتَّبِعُوا۟
- पैरवी करो
- mā
- مَآ
- उसकी जो
- anzala
- أَنزَلَ
- नाज़िल किया
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह ने
- qālū
- قَالُوا۟
- वो कहते हैं
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- nattabiʿu
- نَتَّبِعُ
- हम पैरवी करेंगे
- mā
- مَآ
- उसकी जो
- alfaynā
- أَلْفَيْنَا
- पाया हमने
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- जिस पर
- ābāanā
- ءَابَآءَنَآۗ
- अपने आबा ओ अजदाद को
- awalaw
- أَوَلَوْ
- क्या भला अगरचे
- kāna
- كَانَ
- हों
- ābāuhum
- ءَابَآؤُهُمْ
- आबा ओ अजदाद उनके
- lā
- لَا
- ना वो अक़्ल रखते
- yaʿqilūna
- يَعْقِلُونَ
- ना वो अक़्ल रखते
- shayan
- شَيْـًٔا
- कुछ भी
- walā
- وَلَا
- और ना
- yahtadūna
- يَهْتَدُونَ
- वो हिदायत याफ़्ता हों
और जब उनसे कहा जाता है, 'अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उसका अनुसरण करो।' तो कहते है, 'नहीं बल्कि हम तो उसका अनुसरण करेंगे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।' क्या उस दशा में भी जबकि उनके बाप-दादा कुछ भी बुद्धि से काम न लेते रहे हों और न सीधे मार्ग पर रहे हों? ([२] अल बकराह: 170)Tafseer (तफ़सीर )