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सूरा अल बकराह - Page: 16

Al-Baqarah

(गाय)

१५१

كَمَآ اَرْسَلْنَا فِيْكُمْ رَسُوْلًا مِّنْكُمْ يَتْلُوْا عَلَيْكُمْ اٰيٰتِنَا وَيُزَكِّيْكُمْ وَيُعَلِّمُكُمُ الْكِتٰبَ وَالْحِكْمَةَ وَيُعَلِّمُكُمْ مَّا لَمْ تَكُوْنُوْا تَعْلَمُوْنَۗ ١٥١

kamā
كَمَآ
जैसा कि
arsalnā
أَرْسَلْنَا
भेजा हमने
fīkum
فِيكُمْ
तुम में
rasūlan
رَسُولًا
एक रसूल
minkum
مِّنكُمْ
तुममें से
yatlū
يَتْلُوا۟
वो तिलावत करता है
ʿalaykum
عَلَيْكُمْ
तुम पर
āyātinā
ءَايَٰتِنَا
आयात हमारी
wayuzakkīkum
وَيُزَكِّيكُمْ
और वो पाक करता है तुम्हें
wayuʿallimukumu
وَيُعَلِّمُكُمُ
और वो तालीम देता है तुम्हें
l-kitāba
ٱلْكِتَٰبَ
किताब
wal-ḥik'mata
وَٱلْحِكْمَةَ
और हिकमत की
wayuʿallimukum
وَيُعَلِّمُكُم
और वो तालीम देता है तुम्हें
مَّا
उसकी जो
lam
لَمْ
ना
takūnū
تَكُونُوا۟
थे तुम
taʿlamūna
تَعْلَمُونَ
तुम इल्म रखते
जैसाकि हमने तुम्हारे बीच एक रसूल तुम्हीं में से भेजा जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाता है, तुम्हें निखारता है, और तुम्हें किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) की शिक्षा देता है और तुम्हें वह कुछ सिखाता है, जो तुम जानते न थे ([२] अल बकराह: 151)
Tafseer (तफ़सीर )
१५२

فَاذْكُرُوْنِيْٓ اَذْكُرْكُمْ وَاشْكُرُوْا لِيْ وَلَا تَكْفُرُوْنِ ࣖ ١٥٢

fa-udh'kurūnī
فَٱذْكُرُونِىٓ
पस याद करो मुझे
adhkur'kum
أَذْكُرْكُمْ
मैं याद करुँगा तुम्हें
wa-ush'kurū
وَٱشْكُرُوا۟
और शुक्र करो मेरा
لِى
और शुक्र करो मेरा
walā
وَلَا
और ना
takfurūni
تَكْفُرُونِ
तुम नाशुक्री करो मेरी
अतः तुम मुझे याद रखो, मैं भी तुम्हें याद रखूँगा। और मेरा आभार स्वीकार करते रहना, मेरे प्रति अकृतज्ञता न दिखलाना ([२] अल बकराह: 152)
Tafseer (तफ़सीर )
१५३

يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوا اسْتَعِيْنُوْا بِالصَّبْرِ وَالصَّلٰوةِ ۗ اِنَّ اللّٰهَ مَعَ الصّٰبِرِيْنَ ١٥٣

yāayyuhā
يَٰٓأَيُّهَا
ऐ लोगो जो
alladhīna
ٱلَّذِينَ
ऐ लोगो जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए हो
is'taʿīnū
ٱسْتَعِينُوا۟
तुम मदद माँगो
bil-ṣabri
بِٱلصَّبْرِ
साथ सब्र के
wal-ṣalati
وَٱلصَّلَوٰةِۚ
और नमाज़ के
inna
إِنَّ
बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
maʿa
مَعَ
साथ है
l-ṣābirīna
ٱلصَّٰبِرِينَ
सब्र करने वालों के
ऐ ईमान लानेवालो! धैर्य और नमाज़ से मदद प्राप्त। करो। निस्संदेह अल्लाह उन लोगों के साथ है जो धैर्य और दृढ़ता से काम लेते है ([२] अल बकराह: 153)
Tafseer (तफ़सीर )
१५४

وَلَا تَقُوْلُوْا لِمَنْ يُّقْتَلُ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ اَمْوَاتٌ ۗ بَلْ اَحْيَاۤءٌ وَّلٰكِنْ لَّا تَشْعُرُوْنَ ١٥٤

walā
وَلَا
और ना
taqūlū
تَقُولُوا۟
तुम कहो
liman
لِمَن
उन्हें जो
yuq'talu
يُقْتَلُ
क़त्ल कर दिए जाऐं
فِى
अल्लाह के रास्ते में
sabīli
سَبِيلِ
अल्लाह के रास्ते में
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के रास्ते में
amwātun
أَمْوَٰتٌۢۚ
कि मुर्दा हैं
bal
بَلْ
बल्कि
aḥyāon
أَحْيَآءٌ
ज़िन्दा हैं (वो)
walākin
وَلَٰكِن
और लेकिन
لَّا
नहीं तुम शऊर रखते
tashʿurūna
تَشْعُرُونَ
नहीं तुम शऊर रखते
और जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाएँ उन्हें मुर्दा न कहो, बल्कि वे जीवित है, परन्तु तुम्हें एहसास नहीं होता ([२] अल बकराह: 154)
Tafseer (तफ़सीर )
१५५

وَلَنَبْلُوَنَّكُمْ بِشَيْءٍ مِّنَ الْخَوْفِ وَالْجُوْعِ وَنَقْصٍ مِّنَ الْاَمْوَالِ وَالْاَنْفُسِ وَالثَّمَرٰتِۗ وَبَشِّرِ الصّٰبِرِيْنَ ١٥٥

walanabluwannakum
وَلَنَبْلُوَنَّكُم
और अलबत्ता हम ज़रूर आज़माऐंगे
bishayin
بِشَىْءٍ
साथ किसी भी चीज़ के
mina
مِّنَ
ख़ौफ़ से
l-khawfi
ٱلْخَوْفِ
ख़ौफ़ से
wal-jūʿi
وَٱلْجُوعِ
और भूख से
wanaqṣin
وَنَقْصٍ
और कमी (करके)
mina
مِّنَ
मालों से
l-amwāli
ٱلْأَمْوَٰلِ
मालों से
wal-anfusi
وَٱلْأَنفُسِ
और जानों से
wal-thamarāti
وَٱلثَّمَرَٰتِۗ
और फलों से
wabashiri
وَبَشِّرِ
और ख़ुशख़बरी दे दीजिए
l-ṣābirīna
ٱلصَّٰبِرِينَ
सब्र करने वालों को
और हम अवश्य ही कुछ भय से, और कुछ भूख से, और कुछ जान-माल और पैदावार की कमी से तुम्हारी परीक्षा लेंगे। और धैर्य से काम लेनेवालों को शुभ-सूचना दे दो ([२] अल बकराह: 155)
Tafseer (तफ़सीर )
१५६

اَلَّذِيْنَ اِذَآ اَصَابَتْهُمْ مُّصِيْبَةٌ ۗ قَالُوْٓا اِنَّا لِلّٰهِ وَاِنَّآ اِلَيْهِ رٰجِعُوْنَۗ ١٥٦

alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
idhā
إِذَآ
जब
aṣābathum
أَصَٰبَتْهُم
पहुँचती है उन्हें
muṣībatun
مُّصِيبَةٌ
कोई मुसीबत
qālū
قَالُوٓا۟
वो कहते हैं
innā
إِنَّا
बेशक हम
lillahi
لِلَّهِ
अल्लाह ही के लिए हैं
wa-innā
وَإِنَّآ
और बेशक हम
ilayhi
إِلَيْهِ
तरफ़ उसी के
rājiʿūna
رَٰجِعُونَ
लौटने वाले हैं
जो लोग उस समय, जबकि उनपर कोई मुसीबत आती है, कहते है, 'निस्संदेह हम अल्लाह ही के है और हम उसी की ओर लौटने वाले है।' ([२] अल बकराह: 156)
Tafseer (तफ़सीर )
१५७

اُولٰۤىِٕكَ عَلَيْهِمْ صَلَوٰتٌ مِّنْ رَّبِّهِمْ وَرَحْمَةٌ ۗوَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُهْتَدُوْنَ ١٥٧

ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही वो लोग हैं
ʿalayhim
عَلَيْهِمْ
जिन पर
ṣalawātun
صَلَوَٰتٌ
नवाज़िशें/इनायतें हैं
min
مِّن
उनके रब की तरफ़ से
rabbihim
رَّبِّهِمْ
उनके रब की तरफ़ से
waraḥmatun
وَرَحْمَةٌۖ
और रहमत है
wa-ulāika
وَأُو۟لَٰٓئِكَ
और यही लोग हैं
humu
هُمُ
वो
l-muh'tadūna
ٱلْمُهْتَدُونَ
जो हिदायत याफ़्ता हैं
यही लोग है जिनपर उनके रब की विशेष कृपाएँ है और दयालुता भी; और यही लोग है जो सीधे मार्ग पर हैं ([२] अल बकराह: 157)
Tafseer (तफ़सीर )
१५८

۞ اِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِنْ شَعَاۤىِٕرِ اللّٰهِ ۚ فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ اَوِ اعْتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِ اَنْ يَّطَّوَّفَ بِهِمَا ۗ وَمَنْ تَطَوَّعَ خَيْرًاۙ فَاِنَّ اللّٰهَ شَاكِرٌ عَلِيْمٌ ١٥٨

inna
إِنَّ
बेशक
l-ṣafā
ٱلصَّفَا
सफ़ा
wal-marwata
وَٱلْمَرْوَةَ
और मरवा
min
مِن
निशानियों में से हैं
shaʿāiri
شَعَآئِرِ
निशानियों में से हैं
l-lahi
ٱللَّهِۖ
अल्लाह की
faman
فَمَنْ
पस जो कोई
ḥajja
حَجَّ
हज करे
l-bayta
ٱلْبَيْتَ
बैतुल्लाह का
awi
أَوِ
या
iʿ'tamara
ٱعْتَمَرَ
उमरा करे
falā
فَلَا
तो नहीं
junāḥa
جُنَاحَ
कोई गुनाह
ʿalayhi
عَلَيْهِ
उस पर
an
أَن
कि
yaṭṭawwafa
يَطَّوَّفَ
वो तवाफ़ (सई) करे
bihimā
بِهِمَاۚ
उन दोनों का
waman
وَمَن
और जो कोई
taṭawwaʿa
تَطَوَّعَ
ख़ुशी से करे
khayran
خَيْرًا
कोई नेकी
fa-inna
فَإِنَّ
तो बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
shākirun
شَاكِرٌ
क़द्रदान है
ʿalīmun
عَلِيمٌ
ख़ूब जानने वाला है
निस्संदेह सफ़ा और मरवा अल्लाह की विशेष निशानियों में से हैं; अतः जो इस घर (काबा) का हज या उमपा करे, उसके लिए इसमें कोई दोष नहीं कि वह इन दोनों (पहाडियों) के बीच फेरा लगाए। और जो कोई स्वेच्छा और रुचि से कोई भलाई का कार्य करे तो अल्लाह भी गुणग्राहक, सर्वज्ञ है ([२] अल बकराह: 158)
Tafseer (तफ़सीर )
१५९

اِنَّ الَّذِيْنَ يَكْتُمُوْنَ مَآ اَنْزَلْنَا مِنَ الْبَيِّنٰتِ وَالْهُدٰى مِنْۢ بَعْدِ مَا بَيَّنّٰهُ لِلنَّاسِ فِى الْكِتٰبِۙ اُولٰۤىِٕكَ يَلْعَنُهُمُ اللّٰهُ وَيَلْعَنُهُمُ اللّٰعِنُوْنَۙ ١٥٩

inna
إِنَّ
बेशक
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
yaktumūna
يَكْتُمُونَ
छुपाते हैं
مَآ
उसे जो
anzalnā
أَنزَلْنَا
नाज़िल किया हमने
mina
مِنَ
वाज़ेह निशानियों में से
l-bayināti
ٱلْبَيِّنَٰتِ
वाज़ेह निशानियों में से
wal-hudā
وَٱلْهُدَىٰ
और हिदायत में से
min
مِنۢ
बाद उसके
baʿdi
بَعْدِ
बाद उसके
مَا
जो
bayyannāhu
بَيَّنَّٰهُ
वाज़ेह कर दिया हमने उसे
lilnnāsi
لِلنَّاسِ
लोगों के लिए
فِى
किताब में
l-kitābi
ٱلْكِتَٰبِۙ
किताब में
ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही वो लोग हैं
yalʿanuhumu
يَلْعَنُهُمُ
लानत करता है उन पर
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
wayalʿanuhumu
وَيَلْعَنُهُمُ
और लानत करते हैं उन पर
l-lāʿinūna
ٱللَّٰعِنُونَ
लानत करने वाले
जो लोग हमारी उतारी हुई खुली निशानियों और मार्गदर्शन को छिपाते है, इसके बाद कि हम उन्हें लोगों के लिए किताब में स्पष्ट कर चुके है; वही है जिन्हें अल्लाह धिक्कारता है - और सभी धिक्कारने वाले भी उन्हें धिक्कारते है ([२] अल बकराह: 159)
Tafseer (तफ़सीर )
१६०

اِلَّا الَّذِيْنَ تَابُوْا وَاَصْلَحُوْا وَبَيَّنُوْا فَاُولٰۤىِٕكَ اَتُوْبُ عَلَيْهِمْ ۚ وَاَنَا التَّوَّابُ الرَّحِيْمُ ١٦٠

illā
إِلَّا
सिवाय
alladhīna
ٱلَّذِينَ
उनके जिन्होंने
tābū
تَابُوا۟
तौबा की
wa-aṣlaḥū
وَأَصْلَحُوا۟
और इस्लाह की
wabayyanū
وَبَيَّنُوا۟
और वाज़ेह कर दिया
fa-ulāika
فَأُو۟لَٰٓئِكَ
तो यही वो लोग हैं
atūbu
أَتُوبُ
मैं मेहरबान होता हूँ
ʿalayhim
عَلَيْهِمْۚ
उन पर
wa-anā
وَأَنَا
और मैं
l-tawābu
ٱلتَّوَّابُ
बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला हूँ
l-raḥīmu
ٱلرَّحِيمُ
निहायत रहम करने वाला हूँ
सिवाय उनके जिन्होंने तौबा कर ली और सुधार कर लिया, और साफ़-साफ़ बयान कर दिया, तो उनकी तौबा मैं क़बूल करूँगा; मैं बड़ा तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान हूँ ([२] अल बकराह: 160)
Tafseer (तफ़सीर )