كَمَآ اَرْسَلْنَا فِيْكُمْ رَسُوْلًا مِّنْكُمْ يَتْلُوْا عَلَيْكُمْ اٰيٰتِنَا وَيُزَكِّيْكُمْ وَيُعَلِّمُكُمُ الْكِتٰبَ وَالْحِكْمَةَ وَيُعَلِّمُكُمْ مَّا لَمْ تَكُوْنُوْا تَعْلَمُوْنَۗ ١٥١
- kamā
- كَمَآ
- जैसा कि
- arsalnā
- أَرْسَلْنَا
- भेजा हमने
- fīkum
- فِيكُمْ
- तुम में
- rasūlan
- رَسُولًا
- एक रसूल
- minkum
- مِّنكُمْ
- तुममें से
- yatlū
- يَتْلُوا۟
- वो तिलावत करता है
- ʿalaykum
- عَلَيْكُمْ
- तुम पर
- āyātinā
- ءَايَٰتِنَا
- आयात हमारी
- wayuzakkīkum
- وَيُزَكِّيكُمْ
- और वो पाक करता है तुम्हें
- wayuʿallimukumu
- وَيُعَلِّمُكُمُ
- और वो तालीम देता है तुम्हें
- l-kitāba
- ٱلْكِتَٰبَ
- किताब
- wal-ḥik'mata
- وَٱلْحِكْمَةَ
- और हिकमत की
- wayuʿallimukum
- وَيُعَلِّمُكُم
- और वो तालीम देता है तुम्हें
- mā
- مَّا
- उसकी जो
- lam
- لَمْ
- ना
- takūnū
- تَكُونُوا۟
- थे तुम
- taʿlamūna
- تَعْلَمُونَ
- तुम इल्म रखते
जैसाकि हमने तुम्हारे बीच एक रसूल तुम्हीं में से भेजा जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाता है, तुम्हें निखारता है, और तुम्हें किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) की शिक्षा देता है और तुम्हें वह कुछ सिखाता है, जो तुम जानते न थे ([२] अल बकराह: 151)Tafseer (तफ़सीर )
فَاذْكُرُوْنِيْٓ اَذْكُرْكُمْ وَاشْكُرُوْا لِيْ وَلَا تَكْفُرُوْنِ ࣖ ١٥٢
- fa-udh'kurūnī
- فَٱذْكُرُونِىٓ
- पस याद करो मुझे
- adhkur'kum
- أَذْكُرْكُمْ
- मैं याद करुँगा तुम्हें
- wa-ush'kurū
- وَٱشْكُرُوا۟
- और शुक्र करो मेरा
- lī
- لِى
- और शुक्र करो मेरा
- walā
- وَلَا
- और ना
- takfurūni
- تَكْفُرُونِ
- तुम नाशुक्री करो मेरी
अतः तुम मुझे याद रखो, मैं भी तुम्हें याद रखूँगा। और मेरा आभार स्वीकार करते रहना, मेरे प्रति अकृतज्ञता न दिखलाना ([२] अल बकराह: 152)Tafseer (तफ़सीर )
يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوا اسْتَعِيْنُوْا بِالصَّبْرِ وَالصَّلٰوةِ ۗ اِنَّ اللّٰهَ مَعَ الصّٰبِرِيْنَ ١٥٣
- yāayyuhā
- يَٰٓأَيُّهَا
- ऐ लोगो जो
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- ऐ लोगो जो
- āmanū
- ءَامَنُوا۟
- ईमान लाए हो
- is'taʿīnū
- ٱسْتَعِينُوا۟
- तुम मदद माँगो
- bil-ṣabri
- بِٱلصَّبْرِ
- साथ सब्र के
- wal-ṣalati
- وَٱلصَّلَوٰةِۚ
- और नमाज़ के
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- maʿa
- مَعَ
- साथ है
- l-ṣābirīna
- ٱلصَّٰبِرِينَ
- सब्र करने वालों के
ऐ ईमान लानेवालो! धैर्य और नमाज़ से मदद प्राप्त। करो। निस्संदेह अल्लाह उन लोगों के साथ है जो धैर्य और दृढ़ता से काम लेते है ([२] अल बकराह: 153)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَا تَقُوْلُوْا لِمَنْ يُّقْتَلُ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ اَمْوَاتٌ ۗ بَلْ اَحْيَاۤءٌ وَّلٰكِنْ لَّا تَشْعُرُوْنَ ١٥٤
- walā
- وَلَا
- और ना
- taqūlū
- تَقُولُوا۟
- तुम कहो
- liman
- لِمَن
- उन्हें जो
- yuq'talu
- يُقْتَلُ
- क़त्ल कर दिए जाऐं
- fī
- فِى
- अल्लाह के रास्ते में
- sabīli
- سَبِيلِ
- अल्लाह के रास्ते में
- l-lahi
- ٱللَّهِ
- अल्लाह के रास्ते में
- amwātun
- أَمْوَٰتٌۢۚ
- कि मुर्दा हैं
- bal
- بَلْ
- बल्कि
- aḥyāon
- أَحْيَآءٌ
- ज़िन्दा हैं (वो)
- walākin
- وَلَٰكِن
- और लेकिन
- lā
- لَّا
- नहीं तुम शऊर रखते
- tashʿurūna
- تَشْعُرُونَ
- नहीं तुम शऊर रखते
और जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाएँ उन्हें मुर्दा न कहो, बल्कि वे जीवित है, परन्तु तुम्हें एहसास नहीं होता ([२] अल बकराह: 154)Tafseer (तफ़सीर )
وَلَنَبْلُوَنَّكُمْ بِشَيْءٍ مِّنَ الْخَوْفِ وَالْجُوْعِ وَنَقْصٍ مِّنَ الْاَمْوَالِ وَالْاَنْفُسِ وَالثَّمَرٰتِۗ وَبَشِّرِ الصّٰبِرِيْنَ ١٥٥
- walanabluwannakum
- وَلَنَبْلُوَنَّكُم
- और अलबत्ता हम ज़रूर आज़माऐंगे
- bishayin
- بِشَىْءٍ
- साथ किसी भी चीज़ के
- mina
- مِّنَ
- ख़ौफ़ से
- l-khawfi
- ٱلْخَوْفِ
- ख़ौफ़ से
- wal-jūʿi
- وَٱلْجُوعِ
- और भूख से
- wanaqṣin
- وَنَقْصٍ
- और कमी (करके)
- mina
- مِّنَ
- मालों से
- l-amwāli
- ٱلْأَمْوَٰلِ
- मालों से
- wal-anfusi
- وَٱلْأَنفُسِ
- और जानों से
- wal-thamarāti
- وَٱلثَّمَرَٰتِۗ
- और फलों से
- wabashiri
- وَبَشِّرِ
- और ख़ुशख़बरी दे दीजिए
- l-ṣābirīna
- ٱلصَّٰبِرِينَ
- सब्र करने वालों को
और हम अवश्य ही कुछ भय से, और कुछ भूख से, और कुछ जान-माल और पैदावार की कमी से तुम्हारी परीक्षा लेंगे। और धैर्य से काम लेनेवालों को शुभ-सूचना दे दो ([२] अल बकराह: 155)Tafseer (तफ़सीर )
اَلَّذِيْنَ اِذَآ اَصَابَتْهُمْ مُّصِيْبَةٌ ۗ قَالُوْٓا اِنَّا لِلّٰهِ وَاِنَّآ اِلَيْهِ رٰجِعُوْنَۗ ١٥٦
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- idhā
- إِذَآ
- जब
- aṣābathum
- أَصَٰبَتْهُم
- पहुँचती है उन्हें
- muṣībatun
- مُّصِيبَةٌ
- कोई मुसीबत
- qālū
- قَالُوٓا۟
- वो कहते हैं
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- lillahi
- لِلَّهِ
- अल्लाह ही के लिए हैं
- wa-innā
- وَإِنَّآ
- और बेशक हम
- ilayhi
- إِلَيْهِ
- तरफ़ उसी के
- rājiʿūna
- رَٰجِعُونَ
- लौटने वाले हैं
जो लोग उस समय, जबकि उनपर कोई मुसीबत आती है, कहते है, 'निस्संदेह हम अल्लाह ही के है और हम उसी की ओर लौटने वाले है।' ([२] अल बकराह: 156)Tafseer (तफ़सीर )
اُولٰۤىِٕكَ عَلَيْهِمْ صَلَوٰتٌ مِّنْ رَّبِّهِمْ وَرَحْمَةٌ ۗوَاُولٰۤىِٕكَ هُمُ الْمُهْتَدُوْنَ ١٥٧
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही वो लोग हैं
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْ
- जिन पर
- ṣalawātun
- صَلَوَٰتٌ
- नवाज़िशें/इनायतें हैं
- min
- مِّن
- उनके रब की तरफ़ से
- rabbihim
- رَّبِّهِمْ
- उनके रब की तरफ़ से
- waraḥmatun
- وَرَحْمَةٌۖ
- और रहमत है
- wa-ulāika
- وَأُو۟لَٰٓئِكَ
- और यही लोग हैं
- humu
- هُمُ
- वो
- l-muh'tadūna
- ٱلْمُهْتَدُونَ
- जो हिदायत याफ़्ता हैं
यही लोग है जिनपर उनके रब की विशेष कृपाएँ है और दयालुता भी; और यही लोग है जो सीधे मार्ग पर हैं ([२] अल बकराह: 157)Tafseer (तफ़सीर )
۞ اِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِنْ شَعَاۤىِٕرِ اللّٰهِ ۚ فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ اَوِ اعْتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِ اَنْ يَّطَّوَّفَ بِهِمَا ۗ وَمَنْ تَطَوَّعَ خَيْرًاۙ فَاِنَّ اللّٰهَ شَاكِرٌ عَلِيْمٌ ١٥٨
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- l-ṣafā
- ٱلصَّفَا
- सफ़ा
- wal-marwata
- وَٱلْمَرْوَةَ
- और मरवा
- min
- مِن
- निशानियों में से हैं
- shaʿāiri
- شَعَآئِرِ
- निशानियों में से हैं
- l-lahi
- ٱللَّهِۖ
- अल्लाह की
- faman
- فَمَنْ
- पस जो कोई
- ḥajja
- حَجَّ
- हज करे
- l-bayta
- ٱلْبَيْتَ
- बैतुल्लाह का
- awi
- أَوِ
- या
- iʿ'tamara
- ٱعْتَمَرَ
- उमरा करे
- falā
- فَلَا
- तो नहीं
- junāḥa
- جُنَاحَ
- कोई गुनाह
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उस पर
- an
- أَن
- कि
- yaṭṭawwafa
- يَطَّوَّفَ
- वो तवाफ़ (सई) करे
- bihimā
- بِهِمَاۚ
- उन दोनों का
- waman
- وَمَن
- और जो कोई
- taṭawwaʿa
- تَطَوَّعَ
- ख़ुशी से करे
- khayran
- خَيْرًا
- कोई नेकी
- fa-inna
- فَإِنَّ
- तो बेशक
- l-laha
- ٱللَّهَ
- अल्लाह
- shākirun
- شَاكِرٌ
- क़द्रदान है
- ʿalīmun
- عَلِيمٌ
- ख़ूब जानने वाला है
निस्संदेह सफ़ा और मरवा अल्लाह की विशेष निशानियों में से हैं; अतः जो इस घर (काबा) का हज या उमपा करे, उसके लिए इसमें कोई दोष नहीं कि वह इन दोनों (पहाडियों) के बीच फेरा लगाए। और जो कोई स्वेच्छा और रुचि से कोई भलाई का कार्य करे तो अल्लाह भी गुणग्राहक, सर्वज्ञ है ([२] अल बकराह: 158)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّ الَّذِيْنَ يَكْتُمُوْنَ مَآ اَنْزَلْنَا مِنَ الْبَيِّنٰتِ وَالْهُدٰى مِنْۢ بَعْدِ مَا بَيَّنّٰهُ لِلنَّاسِ فِى الْكِتٰبِۙ اُولٰۤىِٕكَ يَلْعَنُهُمُ اللّٰهُ وَيَلْعَنُهُمُ اللّٰعِنُوْنَۙ ١٥٩
- inna
- إِنَّ
- बेशक
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- वो लोग जो
- yaktumūna
- يَكْتُمُونَ
- छुपाते हैं
- mā
- مَآ
- उसे जो
- anzalnā
- أَنزَلْنَا
- नाज़िल किया हमने
- mina
- مِنَ
- वाज़ेह निशानियों में से
- l-bayināti
- ٱلْبَيِّنَٰتِ
- वाज़ेह निशानियों में से
- wal-hudā
- وَٱلْهُدَىٰ
- और हिदायत में से
- min
- مِنۢ
- बाद उसके
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद उसके
- mā
- مَا
- जो
- bayyannāhu
- بَيَّنَّٰهُ
- वाज़ेह कर दिया हमने उसे
- lilnnāsi
- لِلنَّاسِ
- लोगों के लिए
- fī
- فِى
- किताब में
- l-kitābi
- ٱلْكِتَٰبِۙ
- किताब में
- ulāika
- أُو۟لَٰٓئِكَ
- यही वो लोग हैं
- yalʿanuhumu
- يَلْعَنُهُمُ
- लानत करता है उन पर
- l-lahu
- ٱللَّهُ
- अल्लाह
- wayalʿanuhumu
- وَيَلْعَنُهُمُ
- और लानत करते हैं उन पर
- l-lāʿinūna
- ٱللَّٰعِنُونَ
- लानत करने वाले
जो लोग हमारी उतारी हुई खुली निशानियों और मार्गदर्शन को छिपाते है, इसके बाद कि हम उन्हें लोगों के लिए किताब में स्पष्ट कर चुके है; वही है जिन्हें अल्लाह धिक्कारता है - और सभी धिक्कारने वाले भी उन्हें धिक्कारते है ([२] अल बकराह: 159)Tafseer (तफ़सीर )
اِلَّا الَّذِيْنَ تَابُوْا وَاَصْلَحُوْا وَبَيَّنُوْا فَاُولٰۤىِٕكَ اَتُوْبُ عَلَيْهِمْ ۚ وَاَنَا التَّوَّابُ الرَّحِيْمُ ١٦٠
- illā
- إِلَّا
- सिवाय
- alladhīna
- ٱلَّذِينَ
- उनके जिन्होंने
- tābū
- تَابُوا۟
- तौबा की
- wa-aṣlaḥū
- وَأَصْلَحُوا۟
- और इस्लाह की
- wabayyanū
- وَبَيَّنُوا۟
- और वाज़ेह कर दिया
- fa-ulāika
- فَأُو۟لَٰٓئِكَ
- तो यही वो लोग हैं
- atūbu
- أَتُوبُ
- मैं मेहरबान होता हूँ
- ʿalayhim
- عَلَيْهِمْۚ
- उन पर
- wa-anā
- وَأَنَا
- और मैं
- l-tawābu
- ٱلتَّوَّابُ
- बहुत तौबा क़ुबूल करने वाला हूँ
- l-raḥīmu
- ٱلرَّحِيمُ
- निहायत रहम करने वाला हूँ
सिवाय उनके जिन्होंने तौबा कर ली और सुधार कर लिया, और साफ़-साफ़ बयान कर दिया, तो उनकी तौबा मैं क़बूल करूँगा; मैं बड़ा तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान हूँ ([२] अल बकराह: 160)Tafseer (तफ़सीर )