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सूरा अल बकराह - Page: 10

Al-Baqarah

(गाय)

९१

وَاِذَا قِيْلَ لَهُمْ اٰمِنُوْا بِمَآ اَنْزَلَ اللّٰهُ قَالُوْا نُؤْمِنُ بِمَآ اُنْزِلَ عَلَيْنَا وَيَكْفُرُوْنَ بِمَا وَرَاۤءَهٗ وَهُوَ الْحَقُّ مُصَدِّقًا لِّمَا مَعَهُمْ ۗ قُلْ فَلِمَ تَقْتُلُوْنَ اَنْۢبِيَاۤءَ اللّٰهِ مِنْ قَبْلُ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ٩١

wa-idhā
وَإِذَا
और जब
qīla
قِيلَ
कहा जाता है
lahum
لَهُمْ
उन्हें
āminū
ءَامِنُوا۟
ईमान लाओ
bimā
بِمَآ
उस पर जो
anzala
أَنزَلَ
नाज़िल किया
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
qālū
قَالُوا۟
वो कहते हैं
nu'minu
نُؤْمِنُ
हम ईमान लाऐंगे
bimā
بِمَآ
उस पर जो
unzila
أُنزِلَ
नाज़िल किया गया
ʿalaynā
عَلَيْنَا
हम पर
wayakfurūna
وَيَكْفُرُونَ
और वो कुफ़्र करते हैं
bimā
بِمَا
साथ उसके जो
warāahu
وَرَآءَهُۥ
अलावा है इसके
wahuwa
وَهُوَ
हालाँकि वो ही
l-ḥaqu
ٱلْحَقُّ
हक़ है
muṣaddiqan
مُصَدِّقًا
तस्दीक़ करने वाला है
limā
لِّمَا
उसकी जो
maʿahum
مَعَهُمْۗ
पास है उनके
qul
قُلْ
कह दीजिए
falima
فَلِمَ
तो क्यों
taqtulūna
تَقْتُلُونَ
तुम क़त्ल करते रहे
anbiyāa
أَنۢبِيَآءَ
नबियों को
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के
min
مِن
इससे पहले
qablu
قَبْلُ
इससे पहले
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُم
हो तुम
mu'minīna
مُّؤْمِنِينَ
ईमान लाने वाले
जब उनसे कहा जाता है, 'अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उस पर ईमान लाओ', तो कहते है, 'हम तो उसपर ईमान रखते है जो हम पर उतरा है,' और उसे मानने से इनकार करते हैं जो उसके पीछे है, जबकि वही सत्य है, उसकी पुष्टि करता है जो उसके पास है। कहो, 'अच्छा तो इससे पहले अल्लाह के पैग़म्बरों की हत्या क्यों करते रहे हो, यदि तुम ईमानवाले हो?' ([२] अल बकराह: 91)
Tafseer (तफ़सीर )
९२

۞ وَلَقَدْ جَاۤءَكُمْ مُّوْسٰى بِالْبَيِّنٰتِ ثُمَّ اتَّخَذْتُمُ الْعِجْلَ مِنْۢ بَعْدِهٖ وَاَنْتُمْ ظٰلِمُوْنَ ٩٢

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
jāakum
جَآءَكُم
आया तुम्हारे पास
mūsā
مُّوسَىٰ
मूसा
bil-bayināti
بِٱلْبَيِّنَٰتِ
साथ वाज़ेह निशानियों के
thumma
ثُمَّ
फिर
ittakhadhtumu
ٱتَّخَذْتُمُ
बना लिया तुमने
l-ʿij'la
ٱلْعِجْلَ
बछड़े को (माबूद)
min
مِنۢ
बाद उसके
baʿdihi
بَعْدِهِۦ
बाद उसके
wa-antum
وَأَنتُمْ
और तुम
ẓālimūna
ظَٰلِمُونَ
ज़ालिम हो
तुम्हारे पास मूसा खुली-खुली निशानियाँ लेकर आया, फिर भी उसके बाद तुम ज़ालिम बनकर बछड़े को देवता बना बैठे ([२] अल बकराह: 92)
Tafseer (तफ़सीर )
९३

وَاِذْ اَخَذْنَا مِيْثَاقَكُمْ وَرَفَعْنَا فَوْقَكُمُ الطُّوْرَۗ خُذُوْا مَآ اٰتَيْنٰكُمْ بِقُوَّةٍ وَّاسْمَعُوْا ۗ قَالُوْا سَمِعْنَا وَعَصَيْنَا وَاُشْرِبُوْا فِيْ قُلُوْبِهِمُ الْعِجْلَ بِكُفْرِهِمْ ۗ قُلْ بِئْسَمَا يَأْمُرُكُمْ بِهٖٓ اِيْمَانُكُمْ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ٩٣

wa-idh
وَإِذْ
और जब
akhadhnā
أَخَذْنَا
लिया हमने
mīthāqakum
مِيثَٰقَكُمْ
पुख़्ता अहद तुम से
warafaʿnā
وَرَفَعْنَا
और बुलन्द किया हमने
fawqakumu
فَوْقَكُمُ
ऊपर तुम्हारे
l-ṭūra
ٱلطُّورَ
तूर को
khudhū
خُذُوا۟
पकड़ो
مَآ
जो
ātaynākum
ءَاتَيْنَٰكُم
दिया हमने तुम्हें
biquwwatin
بِقُوَّةٍ
साथ क़ुव्वत के
wa-is'maʿū
وَٱسْمَعُوا۟ۖ
और सुनो
qālū
قَالُوا۟
उन्होंने कहा
samiʿ'nā
سَمِعْنَا
सुना हमने
waʿaṣaynā
وَعَصَيْنَا
और नाफ़रमानी की हमने
wa-ush'ribū
وَأُشْرِبُوا۟
और वो पिला दिए गए
فِى
अपने दिलों में
qulūbihimu
قُلُوبِهِمُ
अपने दिलों में
l-ʿij'la
ٱلْعِجْلَ
बछड़े की (मोहब्बत)
bikuf'rihim
بِكُفْرِهِمْۚ
बवजह अपने कुफ़्र के
qul
قُلْ
कह दीजिए
bi'samā
بِئْسَمَا
कितना बुरा है जो
yamurukum
يَأْمُرُكُم
हुक्म देता है तुम्हें
bihi
بِهِۦٓ
जिस का
īmānukum
إِيمَٰنُكُمْ
ईमान तुम्हारा
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُم
हो तुम
mu'minīna
مُّؤْمِنِينَ
मोमिन
कहो, 'यदि अल्लाह के निकट आख़िरत का घर सारे इनसानों को छोड़कर केवल तुम्हारे ही लिए है, फिर तो मृत्यु की कामना करो, यदि तुम सच्चे हो।' ([२] अल बकराह: 93)
Tafseer (तफ़सीर )
९४

قُلْ اِنْ كَانَتْ لَكُمُ الدَّارُ الْاٰخِرَةُ عِنْدَ اللّٰهِ خَالِصَةً مِّنْ دُوْنِ النَّاسِ فَتَمَنَّوُا الْمَوْتَ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِيْنَ ٩٤

qul
قُلْ
कह दीजिए
in
إِن
अगर
kānat
كَانَتْ
है
lakumu
لَكُمُ
तुम्हारे लिए
l-dāru
ٱلدَّارُ
घर
l-ākhiratu
ٱلْءَاخِرَةُ
आख़िरत का
ʿinda
عِندَ
पास अल्लाह के
l-lahi
ٱللَّهِ
पास अल्लाह के
khāliṣatan
خَالِصَةً
ख़ास/मख़सूस
min
مِّن
अलावा
dūni
دُونِ
अलावा
l-nāsi
ٱلنَّاسِ
लोगों के
fatamannawū
فَتَمَنَّوُا۟
तो तुम तमन्ना करो
l-mawta
ٱلْمَوْتَ
मौत की
in
إِن
अगर
kuntum
كُنتُمْ
हो तुम
ṣādiqīna
صَٰدِقِينَ
सच्चे
अपने हाथों इन्होंने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण वे कदापि उसकी कामना न करेंगे; अल्लाह तो ज़ालिमों को भली-भाँति जानता है ([२] अल बकराह: 94)
Tafseer (तफ़सीर )
९५

وَلَنْ يَّتَمَنَّوْهُ اَبَدًاۢ بِمَا قَدَّمَتْ اَيْدِيْهِمْ ۗ وَاللّٰهُ عَلِيْمٌ ۢ بِالظّٰلِمِيْنَ ٩٥

walan
وَلَن
और हरगिज़ नहीं
yatamannawhu
يَتَمَنَّوْهُ
वो तमन्ना करेंगे उसकी
abadan
أَبَدًۢا
कभी भी
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
qaddamat
قَدَّمَتْ
आगे भेजा
aydīhim
أَيْدِيهِمْۗ
उनके हाथों ने
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
ʿalīmun
عَلِيمٌۢ
ख़ूब जानने वाला है
bil-ẓālimīna
بِٱلظَّٰلِمِينَ
ज़ालिमों को
अपने हाथों इन्होंने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण वे कदापि उसकी कामना न करेंगे; अल्लाह तो जालिमों को भली-भाँति जानता है ([२] अल बकराह: 95)
Tafseer (तफ़सीर )
९६

وَلَتَجِدَنَّهُمْ اَحْرَصَ النَّاسِ عَلٰى حَيٰوةٍ ۛوَمِنَ الَّذِيْنَ اَشْرَكُوْا ۛيَوَدُّ اَحَدُهُمْ لَوْ يُعَمَّرُ اَلْفَ سَنَةٍۚ وَمَا هُوَ بِمُزَحْزِحِهٖ مِنَ الْعَذَابِ اَنْ يُّعَمَّرَۗ وَاللّٰهُ بَصِيْرٌۢ بِمَا يَعْمَلُوْنَ ࣖ ٩٦

walatajidannahum
وَلَتَجِدَنَّهُمْ
और अलबत्ता तुम ज़रूर पाओगे उन्हें
aḥraṣa
أَحْرَصَ
सब से ज़्यादा हरीस
l-nāsi
ٱلنَّاسِ
लोगों में
ʿalā
عَلَىٰ
ज़िन्दगी पर
ḥayatin
حَيَوٰةٍ
ज़िन्दगी पर
wamina
وَمِنَ
और उनसे भी जिन्होंने
alladhīna
ٱلَّذِينَ
और उनसे भी जिन्होंने
ashrakū
أَشْرَكُوا۟ۚ
शिर्क किया
yawaddu
يَوَدُّ
चाहता है
aḥaduhum
أَحَدُهُمْ
हर एक उनका
law
لَوْ
काश
yuʿammaru
يُعَمَّرُ
वो उम्र दिया जाए
alfa
أَلْفَ
हज़ार
sanatin
سَنَةٍ
साल
wamā
وَمَا
हालाँकि नहीं
huwa
هُوَ
वो (उम्र का मिलना)
bimuzaḥziḥihi
بِمُزَحْزِحِهِۦ
बचाने वाला उसे
mina
مِنَ
अज़ाब से
l-ʿadhābi
ٱلْعَذَابِ
अज़ाब से
an
أَن
अगरचे
yuʿammara
يُعَمَّرَۗ
वो उम्र दिया जाए
wal-lahu
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
baṣīrun
بَصِيرٌۢ
ख़ूब देखने वाला है
bimā
بِمَا
उसे जो
yaʿmalūna
يَعْمَلُونَ
वो अमल करते हैं
तुम उन्हें सब लोगों से बढ़कर जीवन का लोभी पाओगे, यहाँ तक कि वे इस सम्बन्ध में शिर्क करनेवालो से भी बढ़े हुए है। उनका तो प्रत्येक व्यक्ति यह इच्छा रखता है कि क्या ही अच्छा होता कि उस हज़ार वर्ष की आयु मिले, जबकि यदि उसे यह आयु प्राप्त भी जाए, तो भी वह अपने आपको यातना से नहीं बचा सकता। अल्लाह देख रहा है, जो कुछ वे कर रहे है ([२] अल बकराह: 96)
Tafseer (तफ़सीर )
९७

قُلْ مَنْ كَانَ عَدُوًّا لِّجِبْرِيْلَ فَاِنَّهٗ نَزَّلَهٗ عَلٰى قَلْبِكَ بِاِذْنِ اللّٰهِ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ وَهُدًى وَّبُشْرٰى لِلْمُؤْمِنِيْنَ ٩٧

qul
قُلْ
कह दीजिए
man
مَن
जो
kāna
كَانَ
है
ʿaduwwan
عَدُوًّا
दुश्मन
lijib'rīla
لِّجِبْرِيلَ
जिब्राईल का
fa-innahu
فَإِنَّهُۥ
तो बेशक वो
nazzalahu
نَزَّلَهُۥ
उसने नाज़िल किया उसे
ʿalā
عَلَىٰ
आपके दिल पर
qalbika
قَلْبِكَ
आपके दिल पर
bi-idh'ni
بِإِذْنِ
अल्लाह के इज़्न से
l-lahi
ٱللَّهِ
अल्लाह के इज़्न से
muṣaddiqan
مُصَدِّقًا
तस्दीक़ करने वाला है
limā
لِّمَا
उसकी जो
bayna
بَيْنَ
इससे पहले है
yadayhi
يَدَيْهِ
इससे पहले है
wahudan
وَهُدًى
और हिदायत
wabush'rā
وَبُشْرَىٰ
और ख़ुशख़बरी है
lil'mu'minīna
لِلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों के लिए
कहो, 'जो कोई जिबरील का शत्रु हो, (तो वह अल्लाह का शत्रु है) क्योंकि उसने तो उसे अल्लाह ही के हुक्म से तम्हारे दिल पर उतारा है, जो उन (भविष्यवाणियों) के सर्वथा अनुकूल है जो उससे पहले से मौजूद हैं; और ईमानवालों के लिए मार्गदर्शन और शुभ-सूचना है ([२] अल बकराह: 97)
Tafseer (तफ़सीर )
९८

مَنْ كَانَ عَدُوًّا لِّلّٰهِ وَمَلٰۤىِٕكَتِهٖ وَرُسُلِهٖ وَجِبْرِيْلَ وَمِيْكٰىلَ فَاِنَّ اللّٰهَ عَدُوٌّ لِّلْكٰفِرِيْنَ ٩٨

man
مَن
जो कोई
kāna
كَانَ
है
ʿaduwwan
عَدُوًّا
दुश्मन
lillahi
لِّلَّهِ
अल्लाह का
wamalāikatihi
وَمَلَٰٓئِكَتِهِۦ
और उसके फ़रिश्तों का
warusulihi
وَرُسُلِهِۦ
और उसके रसूलों का
wajib'rīla
وَجِبْرِيلَ
और जिब्राईल का
wamīkāla
وَمِيكَىٰلَ
और मीकाईल का
fa-inna
فَإِنَّ
तो बेशक
l-laha
ٱللَّهَ
अल्लाह
ʿaduwwun
عَدُوٌّ
दुश्मन है
lil'kāfirīna
لِّلْكَٰفِرِينَ
काफ़िरों का
जो कोई अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों और जिबरील और मीकाईल का शत्रु हो, तो ऐसे इनकार करनेवालों का अल्लाह शत्रु है।' ([२] अल बकराह: 98)
Tafseer (तफ़सीर )
९९

وَلَقَدْ اَنْزَلْنَآ اِلَيْكَ اٰيٰتٍۢ بَيِّنٰتٍۚ وَمَا يَكْفُرُ بِهَآ اِلَّا الْفٰسِقُوْنَ ٩٩

walaqad
وَلَقَدْ
और अलबत्ता तहक़ीक़
anzalnā
أَنزَلْنَآ
नाज़िल कीं हमने
ilayka
إِلَيْكَ
तरफ़ आपके
āyātin
ءَايَٰتٍۭ
आयात
bayyinātin
بَيِّنَٰتٍۖ
वाज़ेह
wamā
وَمَا
और नहीं
yakfuru
يَكْفُرُ
कुफ़्र करते
bihā
بِهَآ
उनका
illā
إِلَّا
मगर
l-fāsiqūna
ٱلْفَٰسِقُونَ
जो फ़ासिक़ हैं
और हमने तुम्हारी ओर खुली-खुली आयतें उतारी है और उनका इनकार तो बस वही लोग करते हैस जो उल्लंघनकारी हैं ([२] अल बकराह: 99)
Tafseer (तफ़सीर )
१००

اَوَكُلَّمَا عٰهَدُوْا عَهْدًا نَّبَذَهٗ فَرِيْقٌ مِّنْهُمْ ۗ بَلْ اَكْثَرُهُمْ لَا يُؤْمِنُوْنَ ١٠٠

awakullamā
أَوَكُلَّمَا
क्या और जब कभी
ʿāhadū
عَٰهَدُوا۟
उन्होंने अहद किया
ʿahdan
عَهْدًا
कोई अहद
nabadhahu
نَّبَذَهُۥ
फेंक दिया उसे
farīqun
فَرِيقٌ
एक गिरोह ने
min'hum
مِّنْهُمۚ
उनमें से
bal
بَلْ
बल्कि
aktharuhum
أَكْثَرُهُمْ
अक्सर उनके
لَا
नहीं वो ईमान लाते
yu'minūna
يُؤْمِنُونَ
नहीं वो ईमान लाते
क्या यह एक निश्चित नीति है कि जब कि उन्होंने कोई वचन दिया तो उनके एक गिरोह ने उसे उठा फेंका? बल्कि उनमें अधिकतर ईमान ही नहीं रखते ([२] अल बकराह: 100)
Tafseer (तफ़सीर )