فَاَرَدْنَآ اَنْ يُّبْدِلَهُمَا رَبُّهُمَا خَيْرًا مِّنْهُ زَكٰوةً وَّاَقْرَبَ رُحْمًا ٨١
- fa-aradnā
- فَأَرَدْنَآ
- तो इरादा किया हमने
- an
- أَن
- कि
- yub'dilahumā
- يُبْدِلَهُمَا
- बदल कर दे उन दोनों को
- rabbuhumā
- رَبُّهُمَا
- रब उन दोनों का
- khayran
- خَيْرًا
- बेहतर
- min'hu
- مِّنْهُ
- उससे
- zakatan
- زَكَوٰةً
- पाकीज़गी में
- wa-aqraba
- وَأَقْرَبَ
- और ज़्यादा क़रीब
- ruḥ'man
- رُحْمًا
- रहमत में
इसलिए हमने चाहा कि उनका रब उन्हें इसके बदले दूसरी संतान दे, जो आत्मविकास में इससे अच्छा हो और दया-करूणा से अधिक निकट हो ([१८] अल कहफ़: 81)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَمَّا الْجِدَارُ فَكَانَ لِغُلٰمَيْنِ يَتِيْمَيْنِ فِى الْمَدِيْنَةِ وَكَانَ تَحْتَهٗ كَنْزٌ لَّهُمَا وَكَانَ اَبُوْهُمَا صَالِحًا ۚفَاَرَادَ رَبُّكَ اَنْ يَّبْلُغَآ اَشُدَّهُمَا وَيَسْتَخْرِجَا كَنْزَهُمَا رَحْمَةً مِّنْ رَّبِّكَۚ وَمَا فَعَلْتُهٗ عَنْ اَمْرِيْۗ ذٰلِكَ تَأْوِيْلُ مَا لَمْ تَسْطِعْ عَّلَيْهِ صَبْرًاۗ ࣖ ٨٢
- wa-ammā
- وَأَمَّا
- और रही
- l-jidāru
- ٱلْجِدَارُ
- दीवार
- fakāna
- فَكَانَ
- पस वो थी
- lighulāmayni
- لِغُلَٰمَيْنِ
- दो लड़कों की
- yatīmayni
- يَتِيمَيْنِ
- जो दोनों यतीम थे
- fī
- فِى
- शहर में
- l-madīnati
- ٱلْمَدِينَةِ
- शहर में
- wakāna
- وَكَانَ
- और था
- taḥtahu
- تَحْتَهُۥ
- नीचे उसके
- kanzun
- كَنزٌ
- एक ख़ज़ाना
- lahumā
- لَّهُمَا
- उन दोनों का
- wakāna
- وَكَانَ
- और था
- abūhumā
- أَبُوهُمَا
- उन दोनों का बाप
- ṣāliḥan
- صَٰلِحًا
- नेक
- fa-arāda
- فَأَرَادَ
- तो इरादा किया
- rabbuka
- رَبُّكَ
- तेरे रब ने
- an
- أَن
- कि
- yablughā
- يَبْلُغَآ
- वो दोनों पहुँचें
- ashuddahumā
- أَشُدَّهُمَا
- अपनी जवानी को
- wayastakhrijā
- وَيَسْتَخْرِجَا
- और वो दोनों निकालें
- kanzahumā
- كَنزَهُمَا
- अपने ख़ज़ाने को
- raḥmatan
- رَحْمَةً
- बतौरे रहमत
- min
- مِّن
- तेरे रब की तरफ़ से
- rabbika
- رَّبِّكَۚ
- तेरे रब की तरफ़ से
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- faʿaltuhu
- فَعَلْتُهُۥ
- किया मैंने उसे
- ʿan
- عَنْ
- अपनी राय से
- amrī
- أَمْرِىۚ
- अपनी राय से
- dhālika
- ذَٰلِكَ
- ये है
- tawīlu
- تَأْوِيلُ
- हक़ीक़त
- mā
- مَا
- उसकी जो
- lam
- لَمْ
- नहीं
- tasṭiʿ
- تَسْطِع
- तुम कर सके
- ʿalayhi
- عَّلَيْهِ
- जिस पर
- ṣabran
- صَبْرًا
- सब्र
और रही यह दीवार तो यह दो अनाथ बालकों की है जो इस नगर में रहते है। और इसके नीचे उनका ख़जाना मौजूद है। और उनका बाप नेक था, इसलिए तुम्हारे रब ने चाहा कि वे अपनी युवावस्था को पहुँच जाएँ और अपना ख़जाना निकाल लें। यह तुम्हारे रब की दयालुता के कारण हुआ। मैंने तो अपने अधिकार से कुछ नहीं किया। यह है वास्तविकता उसकी जिसपर तुम धैर्य न रख सके।' ([१८] अल कहफ़: 82)Tafseer (तफ़सीर )
وَيَسْـَٔلُوْنَكَ عَنْ ذِى الْقَرْنَيْنِۗ قُلْ سَاَتْلُوْا عَلَيْكُمْ مِّنْهُ ذِكْرًا ۗ ٨٣
- wayasalūnaka
- وَيَسْـَٔلُونَكَ
- और वो सवाल करते हैं आपसे
- ʿan
- عَن
- ज़ुलक़रनैन के बारे में
- dhī
- ذِى
- ज़ुलक़रनैन के बारे में
- l-qarnayni
- ٱلْقَرْنَيْنِۖ
- ज़ुलक़रनैन के बारे में
- qul
- قُلْ
- कह दीजिए
- sa-atlū
- سَأَتْلُوا۟
- अनक़रीब मैं पढ़ूँगा
- ʿalaykum
- عَلَيْكُم
- तुम पर
- min'hu
- مِّنْهُ
- उसका
- dhik'ran
- ذِكْرًا
- कुछ हाल
वे तुमसे ज़ुलक़रनैन के विषय में पूछते हैं। कह दो, 'मैं तुम्हें उसका कुछ वृतान्त सुनाता हूँ।' ([१८] अल कहफ़: 83)Tafseer (तफ़सीर )
اِنَّا مَكَّنَّا لَهٗ فِى الْاَرْضِ وَاٰتَيْنٰهُ مِنْ كُلِّ شَيْءٍ سَبَبًا ۙ ٨٤
- innā
- إِنَّا
- बेशक हम
- makkannā
- مَكَّنَّا
- इक़्तिदार दिया हमने
- lahu
- لَهُۥ
- उसे
- fī
- فِى
- ज़मीन में
- l-arḍi
- ٱلْأَرْضِ
- ज़मीन में
- waātaynāhu
- وَءَاتَيْنَٰهُ
- और दिए हमने उसे
- min
- مِن
- हर चीज़ से
- kulli
- كُلِّ
- हर चीज़ से
- shayin
- شَىْءٍ
- हर चीज़ से
- sababan
- سَبَبًا
- असबाब
हमने उसे धरती में सत्ता प्रदान की थी और उसे हर प्रकार के संसाधन दिए थे ([१८] अल कहफ़: 84)Tafseer (तफ़सीर )
فَاَتْبَعَ سَبَبًا ٨٥
- fa-atbaʿa
- فَأَتْبَعَ
- तो उसने पीछे लगाया
- sababan
- سَبَبًا
- असबाब को
अतएव उसने एक अभियान का आयोजन किया ([१८] अल कहफ़: 85)Tafseer (तफ़सीर )
حَتّٰىٓ اِذَا بَلَغَ مَغْرِبَ الشَّمْسِ وَجَدَهَا تَغْرُبُ فِيْ عَيْنٍ حَمِئَةٍ وَّوَجَدَ عِنْدَهَا قَوْمًا ەۗ قُلْنَا يٰذَا الْقَرْنَيْنِ اِمَّآ اَنْ تُعَذِّبَ وَاِمَّآ اَنْ تَتَّخِذَ فِيْهِمْ حُسْنًا ٨٦
- ḥattā
- حَتَّىٰٓ
- यहाँ तक कि
- idhā
- إِذَا
- जब
- balagha
- بَلَغَ
- वो पहुँच गया
- maghriba
- مَغْرِبَ
- ग़ुरूब होने की जगह
- l-shamsi
- ٱلشَّمْسِ
- सूरज के
- wajadahā
- وَجَدَهَا
- उसने पाया उसे
- taghrubu
- تَغْرُبُ
- वो ग़ुरूब हो रहा है
- fī
- فِى
- एक चश्मे में
- ʿaynin
- عَيْنٍ
- एक चश्मे में
- ḥami-atin
- حَمِئَةٍ
- स्याह कीचड़ वाले
- wawajada
- وَوَجَدَ
- और उसने पाया
- ʿindahā
- عِندَهَا
- पास उसके
- qawman
- قَوْمًاۗ
- एक क़ौम को
- qul'nā
- قُلْنَا
- कहा हमने
- yādhā
- يَٰذَا
- ऐ ज़ुलक़रनैन
- l-qarnayni
- ٱلْقَرْنَيْنِ
- ऐ ज़ुलक़रनैन
- immā
- إِمَّآ
- ख़्वाह
- an
- أَن
- ये कि
- tuʿadhiba
- تُعَذِّبَ
- तू सज़ा दे
- wa-immā
- وَإِمَّآ
- और ख़्वाह
- an
- أَن
- ये कि
- tattakhidha
- تَتَّخِذَ
- तू इख़्तियार करे
- fīhim
- فِيهِمْ
- उनके मामले में
- ḥus'nan
- حُسْنًا
- भलाई
यहाँ तक कि जब वह सूर्यास्त-स्थल तक पहुँचा तो उसे मटमैले काले पानी के एक स्रोत में डूबते हुए पाया और उसके निकट उसे एक क़ौम मिली। हमने कहा, 'ऐ ज़ुलक़रनैन! तुझे अधिकार है कि चाहे तकलीफ़ पहुँचाए और चाहे उनके साथ अच्छा व्यवहार करे।' ([१८] अल कहफ़: 86)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ اَمَّا مَنْ ظَلَمَ فَسَوْفَ نُعَذِّبُهٗ ثُمَّ يُرَدُّ اِلٰى رَبِّهٖ فَيُعَذِّبُهٗ عَذَابًا نُّكْرًا ٨٧
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- ammā
- أَمَّا
- रहा वो
- man
- مَن
- जिसने
- ẓalama
- ظَلَمَ
- ज़ुल्म किया
- fasawfa
- فَسَوْفَ
- तो अनक़रीब
- nuʿadhibuhu
- نُعَذِّبُهُۥ
- हम सज़ा देंगे उसे
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- yuraddu
- يُرَدُّ
- वो लौटाया जाएगा
- ilā
- إِلَىٰ
- तरफ़ अपने रब के
- rabbihi
- رَبِّهِۦ
- तरफ़ अपने रब के
- fayuʿadhibuhu
- فَيُعَذِّبُهُۥ
- तो वो अजाब देगा उसे
- ʿadhāban
- عَذَابًا
- अज़ाब
- nuk'ran
- نُّكْرًا
- सख़्त
उसने कहा, 'जो कोई ज़ुल्म करेगा उसे तो हम दंड देंगे। फिर वह अपने रब की ओर पलटेगा और वह उसे कठोर यातना देगा ([१८] अल कहफ़: 87)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَمَّا مَنْ اٰمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَلَهٗ جَزَاۤءً ۨالْحُسْنٰىۚ وَسَنَقُوْلُ لَهٗ مِنْ اَمْرِنَا يُسْرًا ۗ ٨٨
- wa-ammā
- وَأَمَّا
- और रहा
- man
- مَنْ
- वो जो
- āmana
- ءَامَنَ
- ईमान लाया
- waʿamila
- وَعَمِلَ
- और उसने अमल किए
- ṣāliḥan
- صَٰلِحًا
- नेक
- falahu
- فَلَهُۥ
- तो उसके लिए
- jazāan
- جَزَآءً
- जज़ा है
- l-ḥus'nā
- ٱلْحُسْنَىٰۖ
- अच्छी
- wasanaqūlu
- وَسَنَقُولُ
- और अनक़रीब हम कहेंगे
- lahu
- لَهُۥ
- उसे
- min
- مِنْ
- अपने काम में से
- amrinā
- أَمْرِنَا
- अपने काम में से
- yus'ran
- يُسْرًا
- आसान
किन्तु जो कोई ईमान लाया औऱ अच्छा कर्म किया, उसके लिए तो अच्छा बदला है और हम उसे अपना सहज एवं मृदुल आदेश देंगे।' ([१८] अल कहफ़: 88)Tafseer (तफ़सीर )
ثُمَّ اَتْبَعَ سَبَبًا ٨٩
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- atbaʿa
- أَتْبَعَ
- उसने पीछे लगाया
- sababan
- سَبَبًا
- असबाब को
फिर उसने एक और अभियान का आयोजन किया ([१८] अल कहफ़: 89)Tafseer (तफ़सीर )
حَتّٰىٓ اِذَا بَلَغَ مَطْلِعَ الشَّمْسِ وَجَدَهَا تَطْلُعُ عَلٰى قَوْمٍ لَّمْ نَجْعَلْ لَّهُمْ مِّنْ دُوْنِهَا سِتْرًا ۙ ٩٠
- ḥattā
- حَتَّىٰٓ
- यहाँ तक कि
- idhā
- إِذَا
- जब
- balagha
- بَلَغَ
- वो पहुँच गया
- maṭliʿa
- مَطْلِعَ
- तुलूअ होने की जगह
- l-shamsi
- ٱلشَّمْسِ
- सूरज के
- wajadahā
- وَجَدَهَا
- उसने पाया उसे
- taṭluʿu
- تَطْلُعُ
- कि वो तुलूअ हो रहा है
- ʿalā
- عَلَىٰ
- उन लोगों पर
- qawmin
- قَوْمٍ
- उन लोगों पर
- lam
- لَّمْ
- नहीं
- najʿal
- نَجْعَل
- बनाया हमने
- lahum
- لَّهُم
- उनके लिए
- min
- مِّن
- उस (सूरज) के आगे
- dūnihā
- دُونِهَا
- उस (सूरज) के आगे
- sit'ran
- سِتْرًا
- कोई परदा/ओट
यहाँ तक कि जब वह सूर्योदय स्थल पर जा पहुँचा तो उसने उसे ऐसे लोगों पर उदित होते पाया जिनके लिए हमने सूर्य के मुक़ाबले में कोई ओट नहीं रखी थी ([१८] अल कहफ़: 90)Tafseer (तफ़सीर )