فَانْطَلَقَاۗ حَتّٰٓى اِذَا رَكِبَا فِى السَّفِيْنَةِ خَرَقَهَاۗ قَالَ اَخَرَقْتَهَا لِتُغْرِقَ اَهْلَهَاۚ لَقَدْ جِئْتَ شَيْـًٔا اِمْرًا ٧١
- fa-inṭalaqā
- فَٱنطَلَقَا
- तो दोनों चल दिए
- ḥattā
- حَتَّىٰٓ
- यहाँ तक कि
- idhā
- إِذَا
- जब
- rakibā
- رَكِبَا
- वो दोनों सवार हुए
- fī
- فِى
- कश्ती में
- l-safīnati
- ٱلسَّفِينَةِ
- कश्ती में
- kharaqahā
- خَرَقَهَاۖ
- तो उसने सूराख़ कर दिया उसमें
- qāla
- قَالَ
- कहा
- akharaqtahā
- أَخَرَقْتَهَا
- क्या सूराख़ कर दिया तुमने इसमें
- litugh'riqa
- لِتُغْرِقَ
- ताकि तुम ग़र्क़ करो
- ahlahā
- أَهْلَهَا
- उसके मालिकों (सवारों) को
- laqad
- لَقَدْ
- अलबत्ता तहक़ीक़
- ji'ta
- جِئْتَ
- लाए हो तुम
- shayan
- شَيْـًٔا
- एक चीज़
- im'ran
- إِمْرًا
- बड़ी अजीब
अन्ततः दोनों चले, यहाँ तक कि जब नौका में सवार हुए तो उसने उसमें दरार डाल दी। (मूसा ने) कहा, 'आपने इसमें दरार डाल दी, ताकि उसके सवारों को डुबो दें? आपने तो एक अनोखी हरकत कर डाली।' ([१८] अल कहफ़: 71)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ اَلَمْ اَقُلْ اِنَّكَ لَنْ تَسْتَطِيْعَ مَعِيَ صَبْرًا ٧٢
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- alam
- أَلَمْ
- क्या नहीं
- aqul
- أَقُلْ
- मैंने कहा था
- innaka
- إِنَّكَ
- बेशक तुम
- lan
- لَن
- हरगिज़ ना
- tastaṭīʿa
- تَسْتَطِيعَ
- तुम इस्तिताअत रखोगे
- maʿiya
- مَعِىَ
- मेरे साथ
- ṣabran
- صَبْرًا
- सब्र की
उसने कहा, 'क्या मैंने कहा नहीं था कि तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोंगे?' ([१८] अल कहफ़: 72)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ لَا تُؤَاخِذْنِيْ بِمَا نَسِيْتُ وَلَا تُرْهِقْنِيْ مِنْ اَمْرِيْ عُسْرًا ٧٣
- qāla
- قَالَ
- कहा
- lā
- لَا
- ना तुम मुआख़ज़ा करो मेरा
- tuākhidh'nī
- تُؤَاخِذْنِى
- ना तुम मुआख़ज़ा करो मेरा
- bimā
- بِمَا
- उस पर जो
- nasītu
- نَسِيتُ
- भूल गया मैं
- walā
- وَلَا
- और ना
- tur'hiq'nī
- تُرْهِقْنِى
- छा जा मुझपर
- min
- مِنْ
- मेरे मामले में
- amrī
- أَمْرِى
- मेरे मामले में
- ʿus'ran
- عُسْرًا
- तँगी करके
कहा, 'जो भूल-चूक मुझसे हो गई उसपर मुझे न पकड़िए और मेरे मामलें में मुझे तंगी में न डालिए।' ([१८] अल कहफ़: 73)Tafseer (तफ़सीर )
فَانْطَلَقَا ۗحَتّٰٓى اِذَا لَقِيَا غُلٰمًا فَقَتَلَهٗ ۙقَالَ اَقَتَلْتَ نَفْسًا زَكِيَّةً؈ۢبِغَيْرِ نَفْسٍۗ لَقَدْ جِئْتَ شَيْـًٔا نُكْرًا ۔ ٧٤
- fa-inṭalaqā
- فَٱنطَلَقَا
- तो दोनों चल दिए
- ḥattā
- حَتَّىٰٓ
- यहाँ तक कि
- idhā
- إِذَا
- जब
- laqiyā
- لَقِيَا
- वो दोनों मिले
- ghulāman
- غُلَٰمًا
- एक लड़के को
- faqatalahu
- فَقَتَلَهُۥ
- तो उसने क़त्ल कर दिया उसे
- qāla
- قَالَ
- कहा
- aqatalta
- أَقَتَلْتَ
- क्या क़त्ल कर दिया तुमने
- nafsan
- نَفْسًا
- एक जान को
- zakiyyatan
- زَكِيَّةًۢ
- जो पाक थी
- bighayri
- بِغَيْرِ
- बग़ैर
- nafsin
- نَفْسٍ
- किसी जान के (बदले)
- laqad
- لَّقَدْ
- अलबत्ता तहक़ीक़
- ji'ta
- جِئْتَ
- लाए हो तुम
- shayan
- شَيْـًٔا
- एक चीज़
- nuk'ran
- نُّكْرًا
- इन्तिहाई नापसंदीदा
फिर वे दोनों चले, यहाँ तक कि जब वे एक लड़के से मिले तो उसने उसे मार डाला। कहा, 'क्या आपने एक अच्छी-भली जान की हत्या कर दी, बिना इसके कि किसी की हत्या का बदला लेना अभीष्ट हो? यह तो आपने बहुत ही बुरा किया!' ([१८] अल कहफ़: 74)Tafseer (तफ़सीर )
۞ قَالَ اَلَمْ اَقُلْ لَّكَ اِنَّكَ لَنْ تَسْتَطِيْعَ مَعِيَ صَبْرًا ٧٥
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- alam
- أَلَمْ
- क्या नहीं
- aqul
- أَقُل
- मैंने कहा था
- laka
- لَّكَ
- तुम्हें
- innaka
- إِنَّكَ
- बेशक तुम
- lan
- لَن
- हरगिज़ नहीं
- tastaṭīʿa
- تَسْتَطِيعَ
- तुम इस्तिताअत रखोगे
- maʿiya
- مَعِىَ
- मेरे साथ
- ṣabran
- صَبْرًا
- सब्र की
उसने कहा, 'क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था कि तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोगे?' ([१८] अल कहफ़: 75)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ اِنْ سَاَلْتُكَ عَنْ شَيْءٍۢ بَعْدَهَا فَلَا تُصٰحِبْنِيْۚ قَدْ بَلَغْتَ مِنْ لَّدُنِّيْ عُذْرًا ٧٦
- qāla
- قَالَ
- कहा (मूसा ने)
- in
- إِن
- अगर
- sa-altuka
- سَأَلْتُكَ
- सवाल करूँ मैं तुमसे
- ʿan
- عَن
- किसी चीज़ के बारे में
- shayin
- شَىْءٍۭ
- किसी चीज़ के बारे में
- baʿdahā
- بَعْدَهَا
- बाद इसके
- falā
- فَلَا
- तो ना
- tuṣāḥib'nī
- تُصَٰحِبْنِىۖ
- तुम साथ रखना मुझे
- qad
- قَدْ
- तहक़ीक़
- balaghta
- بَلَغْتَ
- पहुँच गए तुम
- min
- مِن
- मेरी तरफ़ से
- ladunnī
- لَّدُنِّى
- मेरी तरफ़ से
- ʿudh'ran
- عُذْرًا
- उज़र को
कहा, 'इसके बाद यदि मैं आपसे कुछ पूछूँ तो आप मुझे साथ न रखें। अब तो मेरी ओर से आप पूरी तरह उज़ को पहुँच चुके है।' ([१८] अल कहफ़: 76)Tafseer (तफ़सीर )
فَانْطَلَقَا ۗحَتّٰىٓ اِذَآ اَتَيَآ اَهْلَ قَرْيَةِ ِۨاسْتَطْعَمَآ اَهْلَهَا فَاَبَوْا اَنْ يُّضَيِّفُوْهُمَا فَوَجَدَا فِيْهَا جِدَارًا يُّرِيْدُ اَنْ يَّنْقَضَّ فَاَقَامَهٗ ۗقَالَ لَوْ شِئْتَ لَتَّخَذْتَ عَلَيْهِ اَجْرًا ٧٧
- fa-inṭalaqā
- فَٱنطَلَقَا
- पस वो दोनों चल दिए
- ḥattā
- حَتَّىٰٓ
- यहाँ तक कि
- idhā
- إِذَآ
- जब
- atayā
- أَتَيَآ
- वो दोनों आए
- ahla
- أَهْلَ
- एक बस्ती वालों के पास
- qaryatin
- قَرْيَةٍ
- एक बस्ती वालों के पास
- is'taṭʿamā
- ٱسْتَطْعَمَآ
- उन दोनों ने खाना माँगा
- ahlahā
- أَهْلَهَا
- उसके रहने वालों से
- fa-abaw
- فَأَبَوْا۟
- तो उन्होंने इन्कार कर दिया
- an
- أَن
- कि
- yuḍayyifūhumā
- يُضَيِّفُوهُمَا
- वो मेहमान बनाऐं उन्हें
- fawajadā
- فَوَجَدَا
- तो उन दोनों ने पाई
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- jidāran
- جِدَارًا
- एक दीवार
- yurīdu
- يُرِيدُ
- वो चाहती थी
- an
- أَن
- कि
- yanqaḍḍa
- يَنقَضَّ
- वो टूट गिरे
- fa-aqāmahu
- فَأَقَامَهُۥۖ
- तो उसने सीधा खड़ा कर दिया उसे
- qāla
- قَالَ
- उसने कहा
- law
- لَوْ
- अगर
- shi'ta
- شِئْتَ
- चाहते तुम
- lattakhadhta
- لَتَّخَذْتَ
- अलबत्ता ले लेते तुम
- ʿalayhi
- عَلَيْهِ
- उस पर
- ajran
- أَجْرًا
- कोई उजरत
फिर वे दोनों चले, यहाँ तक कि जब वे एक बस्तीवालों के पास पहुँचे और उनसे भोजन माँगा, किन्तु उन्होंने उनके आतिथ्य से इनकार कर दिया। फिर वहाँ उन्हें एक दीवार मिली जो गिरा चाहती थी, तो उस व्यक्ति ने उसको खड़ा कर दिया। (मूसा ने) कहा, 'यदि आप चाहते तो इसकी कुछ मज़दूरी ले सकते थे।' ([१८] अल कहफ़: 77)Tafseer (तफ़सीर )
قَالَ هٰذَا فِرَاقُ بَيْنِيْ وَبَيْنِكَۚ سَاُنَبِّئُكَ بِتَأْوِيْلِ مَا لَمْ تَسْتَطِعْ عَّلَيْهِ صَبْرًا ٧٨
- qāla
- قَالَ
- कहा
- hādhā
- هَٰذَا
- ये है
- firāqu
- فِرَاقُ
- जुदाई
- baynī
- بَيْنِى
- दर्मियान मेरे
- wabaynika
- وَبَيْنِكَۚ
- और दर्मियान तुम्हारे
- sa-unabbi-uka
- سَأُنَبِّئُكَ
- अनक़रीब मैं बताऊँगा तुम्हें
- bitawīli
- بِتَأْوِيلِ
- हक़ीक़त
- mā
- مَا
- उसकी जो
- lam
- لَمْ
- नहीं
- tastaṭiʿ
- تَسْتَطِع
- तुम कर सके
- ʿalayhi
- عَّلَيْهِ
- जिस पर
- ṣabran
- صَبْرًا
- सब्र
उसने कहा, 'यह मेरे और तुम्हारे बीच जुदाई का अवसर है। अब मैं तुमको उसकी वास्तविकता बताए दे रहा हूँ, जिसपर तुम धैर्य से काम न ले सके।' ([१८] अल कहफ़: 78)Tafseer (तफ़सीर )
اَمَّا السَّفِيْنَةُ فَكَانَتْ لِمَسٰكِيْنَ يَعْمَلُوْنَ فِى الْبَحْرِ فَاَرَدْتُّ اَنْ اَعِيْبَهَاۗ وَكَانَ وَرَاۤءَهُمْ مَّلِكٌ يَّأْخُذُ كُلَّ سَفِيْنَةٍ غَصْبًا ٧٩
- ammā
- أَمَّا
- रही
- l-safīnatu
- ٱلسَّفِينَةُ
- कश्ती
- fakānat
- فَكَانَتْ
- तो थी वो
- limasākīna
- لِمَسَٰكِينَ
- मिस्कीनों की
- yaʿmalūna
- يَعْمَلُونَ
- जो काम करते थे
- fī
- فِى
- दरिया में
- l-baḥri
- ٱلْبَحْرِ
- दरिया में
- fa-aradttu
- فَأَرَدتُّ
- तो चाहा मैंने
- an
- أَنْ
- कि
- aʿībahā
- أَعِيبَهَا
- मैं ऐबदार कर दूँ उसे
- wakāna
- وَكَانَ
- और था
- warāahum
- وَرَآءَهُم
- आगे उनके
- malikun
- مَّلِكٌ
- एक बादशाह
- yakhudhu
- يَأْخُذُ
- जो ले रहा था
- kulla
- كُلَّ
- हर
- safīnatin
- سَفِينَةٍ
- कश्ती को
- ghaṣban
- غَصْبًا
- ज़ुल्म/जबर से
वह जो नौका थी, कुछ निर्धन लोगों की थी जो दरिया में काम करते थे, तो मैंने चाहा कि उसे ऐबदार कर दूँ, क्योंकि आगे उनके परे एक सम्राट था, जो प्रत्येक नौका को ज़बरदस्ती छीन लेता था ([१८] अल कहफ़: 79)Tafseer (तफ़सीर )
وَاَمَّا الْغُلٰمُ فَكَانَ اَبَوَاهُ مُؤْمِنَيْنِ فَخَشِيْنَآ اَنْ يُّرْهِقَهُمَا طُغْيَانًا وَّكُفْرًا ۚ ٨٠
- wa-ammā
- وَأَمَّا
- और रहा
- l-ghulāmu
- ٱلْغُلَٰمُ
- लड़का
- fakāna
- فَكَانَ
- तो थे
- abawāhu
- أَبَوَاهُ
- वालिदैन उसके
- mu'minayni
- مُؤْمِنَيْنِ
- दोनों मोमिन
- fakhashīnā
- فَخَشِينَآ
- तो डर हुआ हमें
- an
- أَن
- कि
- yur'hiqahumā
- يُرْهِقَهُمَا
- वो तकलीफ़ देगा उन्हें
- ṭugh'yānan
- طُغْيَٰنًا
- सरकशी
- wakuf'ran
- وَكُفْرًا
- और कुफ़्र से
और रहा वह लड़का, तो उसके माँ-बाप ईमान पर थे। हमें आशंका हुई कि वह सरकशी और कुफ़्र से उन्हें तंग करेगा ([१८] अल कहफ़: 80)Tafseer (तफ़सीर )