Skip to content

सूरा अल कहफ़ - Page: 7

Al-Kahf

(गुफ़ा)

६१

فَلَمَّا بَلَغَا مَجْمَعَ بَيْنِهِمَا نَسِيَا حُوْتَهُمَا فَاتَّخَذَ سَبِيْلَهٗ فِى الْبَحْرِ سَرَبًا ٦١

falammā
فَلَمَّا
तो जब
balaghā
بَلَغَا
वो दोनों पहुँचे
majmaʿa
مَجْمَعَ
जमा होने की जगह
baynihimā
بَيْنِهِمَا
दर्मियान उन दो (समुन्दरों) के
nasiyā
نَسِيَا
तो दोनों भूल गए
ḥūtahumā
حُوتَهُمَا
अपनी मछली
fa-ittakhadha
فَٱتَّخَذَ
पस उसने बना लिया
sabīlahu
سَبِيلَهُۥ
रास्ता अपना
فِى
समुन्दर में
l-baḥri
ٱلْبَحْرِ
समुन्दर में
saraban
سَرَبًا
सुरंग की तरह
फिर जब वे दोनों संगम पर पहुँचे तो वे अपनी मछली से ग़ाफ़िल हो गए और उस (मछली) ने दरिया में सुरंह बनाती अपनी राह ली ([१८] अल कहफ़: 61)
Tafseer (तफ़सीर )
६२

فَلَمَّا جَاوَزَا قَالَ لِفَتٰىهُ اٰتِنَا غَدَاۤءَنَاۖ لَقَدْ لَقِيْنَا مِنْ سَفَرِنَا هٰذَا نَصَبًا ٦٢

falammā
فَلَمَّا
तो जब
jāwazā
جَاوَزَا
वो दोनों आगे बढ़े
qāla
قَالَ
उसने कहा
lifatāhu
لِفَتَىٰهُ
अपने नौजवान से
ātinā
ءَاتِنَا
दो हमें
ghadāanā
غَدَآءَنَا
खाना हमारा
laqad
لَقَدْ
अलबत्ता तहक़ीक़
laqīnā
لَقِينَا
पाई हमने
min
مِن
अपने इस सफ़र में
safarinā
سَفَرِنَا
अपने इस सफ़र में
hādhā
هَٰذَا
अपने इस सफ़र में
naṣaban
نَصَبًا
थकावट
फिर जब वे वहाँ से आगे बढ़ गए तो उसने अपने सेवक से कहा, 'लाओ, हमारा नाश्ता। अपने इस सफ़र में तो हमें बड़ी थकान पहुँची है।' ([१८] अल कहफ़: 62)
Tafseer (तफ़सीर )
६३

قَالَ اَرَاَيْتَ اِذْ اَوَيْنَآ اِلَى الصَّخْرَةِ فَاِنِّيْ نَسِيْتُ الْحُوْتَۖ وَمَآ اَنْسٰىنِيْهُ اِلَّا الشَّيْطٰنُ اَنْ اَذْكُرَهٗۚ وَاتَّخَذَ سَبِيْلَهٗ فِى الْبَحْرِ عَجَبًا ٦٣

qāla
قَالَ
उसने कहा
ara-ayta
أَرَءَيْتَ
क्या देखा तुमने
idh
إِذْ
जब
awaynā
أَوَيْنَآ
पनाह ली थी हमने
ilā
إِلَى
तरफ़ चट्टान के
l-ṣakhrati
ٱلصَّخْرَةِ
तरफ़ चट्टान के
fa-innī
فَإِنِّى
तो बेशक मैं
nasītu
نَسِيتُ
भूल गया था मैं
l-ḥūta
ٱلْحُوتَ
मछली को
wamā
وَمَآ
और नहीं
ansānīhu
أَنسَىٰنِيهُ
भुलाया मुझे उसको
illā
إِلَّا
मगर
l-shayṭānu
ٱلشَّيْطَٰنُ
शैतान ने
an
أَنْ
कि
adhkurahu
أَذْكُرَهُۥۚ
मैं ज़िक्र करूँ उसका
wa-ittakhadha
وَٱتَّخَذَ
और उसने बना लिया था
sabīlahu
سَبِيلَهُۥ
रास्ता अपना
فِى
समुन्दर में
l-baḥri
ٱلْبَحْرِ
समुन्दर में
ʿajaban
عَجَبًا
अजीब तरह से
उसने कहा, 'ज़रा देखिए तो सही, जब हम उस चट्टान के पास ठहरे हुए थे तो मैं मछली को भूल ही गया - और शैतान ही ने उसको याद रखने से मुझे ग़ाफ़िल कर दिया - और उसने आश्चर्य रूप से दरिया में अपनी राह ली।' ([१८] अल कहफ़: 63)
Tafseer (तफ़सीर )
६४

قَالَ ذٰلِكَ مَا كُنَّا نَبْغِۖ فَارْتَدَّا عَلٰٓى اٰثَارِهِمَا قَصَصًاۙ ٦٤

qāla
قَالَ
कहा
dhālika
ذَٰلِكَ
यही है
مَا
जो
kunnā
كُنَّا
थे हम
nabghi
نَبْغِۚ
हम चाहते
fa-ir'taddā
فَٱرْتَدَّا
तो वो दोनों पलटे
ʿalā
عَلَىٰٓ
अपने निशानाते क़दम पर
āthārihimā
ءَاثَارِهِمَا
अपने निशानाते क़दम पर
qaṣaṣan
قَصَصًا
इत्तिबा करते हुए
(मूसा ने) कहा, 'यही तो है जिसे हम तलाश कर रहे थे।' फिर वे दोनों अपने पदचिन्हों को देखते हुए वापस हुए ([१८] अल कहफ़: 64)
Tafseer (तफ़सीर )
६५

فَوَجَدَا عَبْدًا مِّنْ عِبَادِنَآ اٰتَيْنٰهُ رَحْمَةً مِّنْ عِنْدِنَا وَعَلَّمْنٰهُ مِنْ لَّدُنَّا عِلْمًا ٦٥

fawajadā
فَوَجَدَا
तो दोनों ने पाया
ʿabdan
عَبْدًا
एक बन्दे को
min
مِّنْ
हमारे बन्दों में से
ʿibādinā
عِبَادِنَآ
हमारे बन्दों में से
ātaynāhu
ءَاتَيْنَٰهُ
दी थी हमने उसे
raḥmatan
رَحْمَةً
रहमत
min
مِّنْ
अपने पास से
ʿindinā
عِندِنَا
अपने पास से
waʿallamnāhu
وَعَلَّمْنَٰهُ
और सिखाया था हमने उसे
min
مِن
अपने पास से
ladunnā
لَّدُنَّا
अपने पास से
ʿil'man
عِلْمًا
एक (ख़ास) इल्म
फिर उन्होंने हमारे बन्दों में से एक बन्दे को पाया, जिसे हमने अपने पास से दयालुता प्रदान की थी और जिसे अपने पास से ज्ञान प्रदान किया था ([१८] अल कहफ़: 65)
Tafseer (तफ़सीर )
६६

قَالَ لَهٗ مُوسٰى هَلْ اَتَّبِعُكَ عَلٰٓى اَنْ تُعَلِّمَنِ مِمَّا عُلِّمْتَ رُشْدًا ٦٦

qāla
قَالَ
कहा
lahu
لَهُۥ
उसे
mūsā
مُوسَىٰ
मूसा ने
hal
هَلْ
क्या
attabiʿuka
أَتَّبِعُكَ
मैं पैरवी करूँ तुम्हारी
ʿalā
عَلَىٰٓ
उस पर
an
أَن
कि
tuʿallimani
تُعَلِّمَنِ
तुम सिखाओ मुझे
mimmā
مِمَّا
उसमें से जो
ʿullim'ta
عُلِّمْتَ
तुम सिखाए गए
rush'dan
رُشْدًا
हिदायत (समझ बूझ)
मूसा ने उससे कहा, 'क्या मैं आपके पीछे चलूँ, ताकि आप मुझे उस ज्ञान औऱ विवेक की शिक्षा दें, जो आपको दी गई है?' ([१८] अल कहफ़: 66)
Tafseer (तफ़सीर )
६७

قَالَ اِنَّكَ لَنْ تَسْتَطِيْعَ مَعِيَ صَبْرًا ٦٧

qāla
قَالَ
उसने कहा
innaka
إِنَّكَ
बेशक तुम
lan
لَن
हरगिज़ ना
tastaṭīʿa
تَسْتَطِيعَ
तुम इस्तिताअत रखोगे
maʿiya
مَعِىَ
मेरे साथ
ṣabran
صَبْرًا
सब्र की
उसने कहा, 'तुम मेरे साथ धैर्य न रख सकोगे, ([१८] अल कहफ़: 67)
Tafseer (तफ़सीर )
६८

وَكَيْفَ تَصْبِرُ عَلٰى مَا لَمْ تُحِطْ بِهٖ خُبْرًا ٦٨

wakayfa
وَكَيْفَ
और किस तरह
taṣbiru
تَصْبِرُ
तुम सब्र कर सकते हो
ʿalā
عَلَىٰ
उस पर
مَا
जो
lam
لَمْ
नहीं
tuḥiṭ
تُحِطْ
तुमने अहाता किया
bihi
بِهِۦ
जिसका
khub'ran
خُبْرًا
इल्म से
और जो चीज़ तुम्हारे ज्ञान-परिधि से बाहर हो, उस पर तुम धैर्य कैसे रख सकते हो?' ([१८] अल कहफ़: 68)
Tafseer (तफ़सीर )
६९

قَالَ سَتَجِدُنِيْٓ اِنْ شَاۤءَ اللّٰهُ صَابِرًا وَّلَآ اَعْصِيْ لَكَ اَمْرًا ٦٩

qāla
قَالَ
उसने कहा
satajidunī
سَتَجِدُنِىٓ
यक़ीनन तुम पाओगे मुझे
in
إِن
अगर
shāa
شَآءَ
चाहा
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
ṣābiran
صَابِرًا
सब्र करने वाला
walā
وَلَآ
और नहीं
aʿṣī
أَعْصِى
मैं नाफ़रमानी करूँगा
laka
لَكَ
तुम्हारी
amran
أَمْرًا
किसी हुक्म में
(मूसा ने) कहा, 'यदि अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे धैर्यवान पाएँगे। और मैं किसी मामले में भी आपकी अवज्ञा नहीं करूँगा।' ([१८] अल कहफ़: 69)
Tafseer (तफ़सीर )
७०

قَالَ فَاِنِ اتَّبَعْتَنِيْ فَلَا تَسْـَٔلْنِيْ عَنْ شَيْءٍ حَتّٰٓى اُحْدِثَ لَكَ مِنْهُ ذِكْرًا ࣖ ٧٠

qāla
قَالَ
कहा
fa-ini
فَإِنِ
फिर अगर
ittabaʿtanī
ٱتَّبَعْتَنِى
पैरवी करो तुम मेरी
falā
فَلَا
पस ना
tasalnī
تَسْـَٔلْنِى
तुम सवाल करना मुझसे
ʿan
عَن
किसी चीज़ के बारे में
shayin
شَىْءٍ
किसी चीज़ के बारे में
ḥattā
حَتَّىٰٓ
यहाँ तक कि
uḥ'ditha
أُحْدِثَ
मैं बयान करूँ
laka
لَكَ
तुम्हारे लिए
min'hu
مِنْهُ
उसका
dhik'ran
ذِكْرًا
ज़िक्र
उसने कहा, 'अच्छा, यदि तुम मेरे साथ चलते हो तो मुझसे किसी चीज़ के विषय में न पूछना, यहाँ तक कि मैं स्वयं ही तुमसे उसकी चर्चा करूँ।' ([१८] अल कहफ़: 70)
Tafseer (तफ़सीर )