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सूरा अल कहफ़ - Page: 4

Al-Kahf

(गुफ़ा)

३१

اُولٰۤىِٕكَ لَهُمْ جَنّٰتُ عَدْنٍ تَجْرِيْ مِنْ تَحْتِهِمُ الْاَنْهٰرُ يُحَلَّوْنَ فِيْهَا مِنْ اَسَاوِرَ مِنْ ذَهَبٍ وَّيَلْبَسُوْنَ ثِيَابًا خُضْرًا مِّنْ سُنْدُسٍ وَّاِسْتَبْرَقٍ مُّتَّكِىِٕيْنَ فِيْهَا عَلَى الْاَرَاۤىِٕكِۗ نِعْمَ الثَّوَابُۗ وَحَسُنَتْ مُرْتَفَقًا ٣١

ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही लोग हैं
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
jannātu
جَنَّٰتُ
बाग़ात हैं
ʿadnin
عَدْنٍ
हमेशगी के
tajrī
تَجْرِى
बहती हैं
min
مِن
उनके नीचे से
taḥtihimu
تَحْتِهِمُ
उनके नीचे से
l-anhāru
ٱلْأَنْهَٰرُ
नहरें
yuḥallawna
يُحَلَّوْنَ
वो पहनाए जाऐंगे
fīhā
فِيهَا
उनमें
min
مِنْ
कंगन
asāwira
أَسَاوِرَ
कंगन
min
مِن
सोने के
dhahabin
ذَهَبٍ
सोने के
wayalbasūna
وَيَلْبَسُونَ
और वो पहनेंगे
thiyāban
ثِيَابًا
लिबास
khuḍ'ran
خُضْرًا
सब्ज़
min
مِّن
बारीक रेशम के
sundusin
سُندُسٍ
बारीक रेशम के
wa-is'tabraqin
وَإِسْتَبْرَقٍ
और मोटे रेशम के
muttakiīna
مُّتَّكِـِٔينَ
तकिया लगाए होंगे
fīhā
فِيهَا
उनमें
ʿalā
عَلَى
तख़्तों पर
l-arāiki
ٱلْأَرَآئِكِۚ
तख़्तों पर
niʿ'ma
نِعْمَ
कितना अच्छा है
l-thawābu
ٱلثَّوَابُ
बदला
waḥasunat
وَحَسُنَتْ
और कितनी अच्छी है
mur'tafaqan
مُرْتَفَقًا
आरामगाह
ऐसे ही लोगों के लिए सदाबहार बाग़ है। उनके नीचे नहरें बह रही होंगी। वहाँ उन्हें सोने के कंगन पहनाए जाएँगे और वे हरे पतले और गाढ़े रेशमी कपड़े पहनेंगे और ऊँचे तख़्तों पर तकिया लगाए होंगे। क्या ही अच्छा बदला है और क्या ही अच्छा विश्रामस्थल! ([१८] अल कहफ़: 31)
Tafseer (तफ़सीर )
३२

۞ وَاضْرِبْ لَهُمْ مَّثَلًا رَّجُلَيْنِ جَعَلْنَا لِاَحَدِهِمَا جَنَّتَيْنِ مِنْ اَعْنَابٍ وَّحَفَفْنٰهُمَا بِنَخْلٍ وَّجَعَلْنَا بَيْنَهُمَا زَرْعًاۗ ٣٢

wa-iḍ'rib
وَٱضْرِبْ
और बयान कीजिए
lahum
لَهُم
उनके लिए
mathalan
مَّثَلًا
मिसाल
rajulayni
رَّجُلَيْنِ
दो आदमियों की
jaʿalnā
جَعَلْنَا
बनाए हमने
li-aḥadihimā
لِأَحَدِهِمَا
उन दोनों में से एक के
jannatayni
جَنَّتَيْنِ
दो बाग़
min
مِنْ
अँगूरों के
aʿnābin
أَعْنَٰبٍ
अँगूरों के
waḥafafnāhumā
وَحَفَفْنَٰهُمَا
और घेर लिया हमने उन दोनों को
binakhlin
بِنَخْلٍ
खजूर के दरख़्तों से
wajaʿalnā
وَجَعَلْنَا
और बनाए हमने
baynahumā
بَيْنَهُمَا
दर्मियान उन दोनों के
zarʿan
زَرْعًا
खेत
उनके समक्ष एक उपमा प्रस्तुत करो, दो व्यक्ति है। उनमें से एक को हमने अंगूरों के दो बाग़ दिए और उनके चारों ओर हमने खजूरो के वृक्षो की बाड़ लगाई और उन दोनों के बीच हमने खेती-बाड़ी रखी ([१८] अल कहफ़: 32)
Tafseer (तफ़सीर )
३३

كِلْتَا الْجَنَّتَيْنِ اٰتَتْ اُكُلَهَا وَلَمْ تَظْلِمْ مِّنْهُ شَيْـًٔاۙ وَّفَجَّرْنَا خِلٰلَهُمَا نَهَرًاۙ ٣٣

kil'tā
كِلْتَا
दोनों
l-janatayni
ٱلْجَنَّتَيْنِ
बाग़ों ने
ātat
ءَاتَتْ
दिया
ukulahā
أُكُلَهَا
फल अपना
walam
وَلَمْ
और ना
taẓlim
تَظْلِم
कमी की
min'hu
مِّنْهُ
उसमें
shayan
شَيْـًٔاۚ
कुछ भी
wafajjarnā
وَفَجَّرْنَا
और जारी कर दी हमने
khilālahumā
خِلَٰلَهُمَا
उन दोनों के बीच
naharan
نَهَرًا
एक नहर
दोनों में से प्रत्येक बाग़ अपने फल लाया और इसमें कोई कमी नहीं की। और उन दोनों के बीच हमने एक नहर भी प्रवाहित कर दी ([१८] अल कहफ़: 33)
Tafseer (तफ़सीर )
३४

وَّكَانَ لَهٗ ثَمَرٌۚ فَقَالَ لِصَاحِبِهٖ وَهُوَ يُحَاوِرُهٗٓ اَنَا۠ اَكْثَرُ مِنْكَ مَالًا وَّاَعَزُّ نَفَرًا ٣٤

wakāna
وَكَانَ
और हुआ
lahu
لَهُۥ
उसके लिए
thamarun
ثَمَرٌ
फल
faqāla
فَقَالَ
तो उसने कहा
liṣāḥibihi
لِصَٰحِبِهِۦ
अपने साथी से
wahuwa
وَهُوَ
जब कि वो
yuḥāwiruhu
يُحَاوِرُهُۥٓ
वो उससे बात चीत कर रहा था
anā
أَنَا۠
मैं
aktharu
أَكْثَرُ
ज़्यादा हूँ
minka
مِنكَ
तुझसे
mālan
مَالًا
माल में
wa-aʿazzu
وَأَعَزُّ
और ज़्यादा इज़्ज़त वाला हूँ
nafaran
نَفَرًا
जत्थे में
उसे ख़ूब फल और पैदावार प्राप्त हुई। इसपर वह अपने साथी से, जबकि वह उससे बातचीत कर रहा था, कहने लगा, 'मैं तुझसे माल और दौलत में बढ़कर हूँ और मुझे जनशक्ति भी अधिक प्राप्त है।' ([१८] अल कहफ़: 34)
Tafseer (तफ़सीर )
३५

وَدَخَلَ جَنَّتَهٗ وَهُوَ ظَالِمٌ لِّنَفْسِهٖۚ قَالَ مَآ اَظُنُّ اَنْ تَبِيْدَ هٰذِهٖٓ اَبَدًاۙ ٣٥

wadakhala
وَدَخَلَ
और वो दाख़िल हुआ
jannatahu
جَنَّتَهُۥ
अपने बाग़ में
wahuwa
وَهُوَ
इस हाल में कि वो
ẓālimun
ظَالِمٌ
ज़ुल्म करने वाला था
linafsihi
لِّنَفْسِهِۦ
अपनी जान पर
qāla
قَالَ
कहने लगा
مَآ
नहीं
aẓunnu
أَظُنُّ
मैं गुमान करता
an
أَن
कि
tabīda
تَبِيدَ
बर्बाद होगा
hādhihi
هَٰذِهِۦٓ
ये (बाग़)
abadan
أَبَدًا
कभी भी
वह अपने हकड में ज़ालिम बनकर बाग़ में प्रविष्ट हुआ। कहने लगा, 'मैं ऐसा नहीं समझता कि वह कभी विनष्ट होगा ([१८] अल कहफ़: 35)
Tafseer (तफ़सीर )
३६

وَّمَآ اَظُنُّ السَّاعَةَ قَاۤىِٕمَةً وَّلَىِٕنْ رُّدِدْتُّ اِلٰى رَبِّيْ لَاَجِدَنَّ خَيْرًا مِّنْهَا مُنْقَلَبًا ٣٦

wamā
وَمَآ
और नहीं
aẓunnu
أَظُنُّ
मैं गुमान करता कि
l-sāʿata
ٱلسَّاعَةَ
क़यामत
qāimatan
قَآئِمَةً
क़ायम होने वाली है
wala-in
وَلَئِن
और अलबत्ता अगर
rudidttu
رُّدِدتُّ
मैं लौटाया गया
ilā
إِلَىٰ
तरफ़ अपने रब के
rabbī
رَبِّى
तरफ़ अपने रब के
la-ajidanna
لَأَجِدَنَّ
अलबत्ता मैं ज़रूर पाऊँगा
khayran
خَيْرًا
बेहतर
min'hā
مِّنْهَا
उससे
munqalaban
مُنقَلَبًا
लौटने की जगह/अंजाम
और मैं नहीं समझता कि वह (क़ियामत की) घड़ी कभी आएगी। और यदि मैं वास्तव में अपने रब के पास पलटा भी तो निश्चय ही पलटने की जगह इससे भी उत्तम पाऊँगा।' ([१८] अल कहफ़: 36)
Tafseer (तफ़सीर )
३७

قَالَ لَهٗ صَاحِبُهٗ وَهُوَ يُحَاوِرُهٗٓ اَكَفَرْتَ بِالَّذِيْ خَلَقَكَ مِنْ تُرَابٍ ثُمَّ مِنْ نُّطْفَةٍ ثُمَّ سَوّٰىكَ رَجُلًاۗ ٣٧

qāla
قَالَ
कहा
lahu
لَهُۥ
उसे
ṣāḥibuhu
صَاحِبُهُۥ
उसके साथी ने
wahuwa
وَهُوَ
जब कि वो
yuḥāwiruhu
يُحَاوِرُهُۥٓ
वो उससे बात चीत कर रहा था
akafarta
أَكَفَرْتَ
क्या इन्कार करता है तू
bi-alladhī
بِٱلَّذِى
उसका जिसने
khalaqaka
خَلَقَكَ
पैदा किया तुझे
min
مِن
मिट्टी से
turābin
تُرَابٍ
मिट्टी से
thumma
ثُمَّ
फिर
min
مِن
नुत्फ़े से
nuṭ'fatin
نُّطْفَةٍ
नुत्फ़े से
thumma
ثُمَّ
फिर
sawwāka
سَوَّىٰكَ
दुरुस्त बनाया तुझे
rajulan
رَجُلًا
एक मर्द
उसके साथी ने उससे बातचीत करते हुए कहा, 'क्या तू उस सत्ता के साथ कुफ़्र करता है जिसने तुझे मिट्टी से, फिर वीर्य से पैदा किया, फिर तुझे एक पूरा आदमी बनाया? ([१८] अल कहफ़: 37)
Tafseer (तफ़सीर )
३८

لٰكِنَّا۠ هُوَ اللّٰهُ رَبِّيْ وَلَآ اُشْرِكُ بِرَبِّيْٓ اَحَدًا ٣٨

lākinnā
لَّٰكِنَّا۠
लेकिन
huwa
هُوَ
वो
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह
rabbī
رَبِّى
मेरा रब है
walā
وَلَآ
और नहीं
ush'riku
أُشْرِكُ
मैं शरीक ठहराता
birabbī
بِرَبِّىٓ
साथ अपने रब के
aḥadan
أَحَدًا
किसी एक को
लेकिन मेरा रब तो वही अल्लाह है और मैं किसी को अपने रब के साथ साझीदार नहीं बनाता ([१८] अल कहफ़: 38)
Tafseer (तफ़सीर )
३९

وَلَوْلَآ اِذْ دَخَلْتَ جَنَّتَكَ قُلْتَ مَا شَاۤءَ اللّٰهُ ۙ لَا قُوَّةَ اِلَّا بِاللّٰهِ ۚاِنْ تَرَنِ اَنَا۠ اَقَلَّ مِنْكَ مَالًا وَّوَلَدًاۚ ٣٩

walawlā
وَلَوْلَآ
और क्यों ना
idh
إِذْ
जब
dakhalta
دَخَلْتَ
दाख़िल हुआ तू
jannataka
جَنَّتَكَ
अपने बाग़ में
qul'ta
قُلْتَ
कहा तूने
مَا
जो
shāa
شَآءَ
चाहा
l-lahu
ٱللَّهُ
अल्लाह ने
لَا
नहीं कोई क़ुव्वत
quwwata
قُوَّةَ
नहीं कोई क़ुव्वत
illā
إِلَّا
मगर
bil-lahi
بِٱللَّهِۚ
अल्लाह की (तौफ़ीक़) से
in
إِن
अगर
tarani
تَرَنِ
तू देखता है मुझे
anā
أَنَا۠
कि मैं
aqalla
أَقَلَّ
कमतर हूँ
minka
مِنكَ
तुझसे
mālan
مَالًا
माल में
wawaladan
وَوَلَدًا
और औलाद में
और ऐसा क्यों न हुआ कि जब तूने अपने बाग़ में प्रवेश किया तो कहता, 'जो अल्लाह चाहे, बिना अल्लाह के कोई शक्ति नहीं?' यदि तू देखता है कि मैं धन और संतति में तुझसे कम हूँ, ([१८] अल कहफ़: 39)
Tafseer (तफ़सीर )
४०

فَعَسٰى رَبِّيْٓ اَنْ يُّؤْتِيَنِ خَيْرًا مِّنْ جَنَّتِكَ وَيُرْسِلَ عَلَيْهَا حُسْبَانًا مِّنَ السَّمَاۤءِ فَتُصْبِحَ صَعِيْدًا زَلَقًاۙ ٤٠

faʿasā
فَعَسَىٰ
तो उम्मीद है
rabbī
رَبِّىٓ
मेरा रब
an
أَن
कि
yu'tiyani
يُؤْتِيَنِ
वो दे दे मुझे
khayran
خَيْرًا
बेहतर
min
مِّن
तेरे बाग़ से
jannatika
جَنَّتِكَ
तेरे बाग़ से
wayur'sila
وَيُرْسِلَ
और वो भेजे
ʿalayhā
عَلَيْهَا
उस पर
ḥus'bānan
حُسْبَانًا
कोई अज़ाब
mina
مِّنَ
आसमान से
l-samāi
ٱلسَّمَآءِ
आसमान से
fatuṣ'biḥa
فَتُصْبِحَ
तो वो हो जाए
ṣaʿīdan
صَعِيدًا
मैदान
zalaqan
زَلَقًا
साफ़/चटियल
तो आशा है कि मेरा रब मुझे तेरे बाग़ से अच्छा प्रदान करें और तेरे इस बाग़ पर आकाश से कोई क़ुर्क़ी (आपदा) भेज दे। फिर वह साफ़ मैदान होकर रह जाए ([१८] अल कहफ़: 40)
Tafseer (तफ़सीर )