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सूरा अल कहफ़ - Page: 11

Al-Kahf

(गुफ़ा)

१०१

ۨالَّذِيْنَ كَانَتْ اَعْيُنُهُمْ فِيْ غِطَاۤءٍ عَنْ ذِكْرِيْ وَكَانُوْا لَا يَسْتَطِيْعُوْنَ سَمْعًا ࣖ ١٠١

alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
kānat
كَانَتْ
थीं
aʿyunuhum
أَعْيُنُهُمْ
आँखें उनकी
فِى
पर्दे में
ghiṭāin
غِطَآءٍ
पर्दे में
ʿan
عَن
मेरे ज़िक्र से
dhik'rī
ذِكْرِى
मेरे ज़िक्र से
wakānū
وَكَانُوا۟
और थे वो
لَا
ना वो इस्तिताअत रखते
yastaṭīʿūna
يَسْتَطِيعُونَ
ना वो इस्तिताअत रखते
samʿan
سَمْعًا
सुनने की
जिनके नेत्र मेरी अनुस्मृति की ओर से परदे में थे और जो कुछ सुन भी नहीं सकते थे ([१८] अल कहफ़: 101)
Tafseer (तफ़सीर )
१०२

اَفَحَسِبَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْٓا اَنْ يَّتَّخِذُوْا عِبَادِيْ مِنْ دُوْنِيْٓ اَوْلِيَاۤءَ ۗاِنَّآ اَعْتَدْنَا جَهَنَّمَ لِلْكٰفِرِيْنَ نُزُلًا ١٠٢

afaḥasiba
أَفَحَسِبَ
क्या फिर गुमान करते हैं
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوٓا۟
कुफ़्र किया
an
أَن
कि
yattakhidhū
يَتَّخِذُوا۟
वो बना लेंगे
ʿibādī
عِبَادِى
मेरे बन्दों को
min
مِن
मेरे सिवा
dūnī
دُونِىٓ
मेरे सिवा
awliyāa
أَوْلِيَآءَۚ
हिमायती/दोस्त
innā
إِنَّآ
बेशक हम
aʿtadnā
أَعْتَدْنَا
तैयार कर रखा है हमने
jahannama
جَهَنَّمَ
जहन्नम को
lil'kāfirīna
لِلْكَٰفِرِينَ
काफ़िरों के लिए
nuzulan
نُزُلًا
बतौरे मेहमानी के
तो क्या इनकार करनेवाले इस ख़याल में हैं कि मुझसे हटकर मेरे बन्दों को अपना हिमायती बना लें? हमने ऐसे इनकार करनेवालों के आतिथ्य-सत्कार के लिए जहन्नम तैयार कर रखा है ([१८] अल कहफ़: 102)
Tafseer (तफ़सीर )
१०३

قُلْ هَلْ نُنَبِّئُكُمْ بِالْاَخْسَرِيْنَ اَعْمَالًا ۗ ١٠٣

qul
قُلْ
कह दीजिए
hal
هَلْ
क्या
nunabbi-ukum
نُنَبِّئُكُم
हम बताऐं तुम्हें
bil-akhsarīna
بِٱلْأَخْسَرِينَ
सबसे ज़्यादा ख़सारा वाले
aʿmālan
أَعْمَٰلًا
आमाल में
कहो, 'क्या हम तुम्हें उन लोगों की ख़बर दें, जो अपने कर्मों की स्पष्ट से सबसे बढ़कर घाटा उठानेवाले हैं? ([१८] अल कहफ़: 103)
Tafseer (तफ़सीर )
१०४

اَلَّذِيْنَ ضَلَّ سَعْيُهُمْ فِى الْحَيٰوةِ الدُّنْيَا وَهُمْ يَحْسَبُوْنَ اَنَّهُمْ يُحْسِنُوْنَ صُنْعًا ١٠٤

alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
ḍalla
ضَلَّ
ज़ाया हो गई
saʿyuhum
سَعْيُهُمْ
कोशिश उनकी
فِى
ज़िन्दगी में
l-ḥayati
ٱلْحَيَوٰةِ
ज़िन्दगी में
l-dun'yā
ٱلدُّنْيَا
दुनिया की
wahum
وَهُمْ
और वो
yaḥsabūna
يَحْسَبُونَ
वो समझते हैं
annahum
أَنَّهُمْ
कि बेशक वो
yuḥ'sinūna
يُحْسِنُونَ
वो अच्छे कर रहे हैं
ṣun'ʿan
صُنْعًا
काम
यो वे लोग है जिनका प्रयास सांसारिक जीवन में अकारथ गया और वे यही समझते है कि वे बहुत अच्छा कर्म कर रहे है ([१८] अल कहफ़: 104)
Tafseer (तफ़सीर )
१०५

اُولٰۤىِٕكَ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا بِاٰيٰتِ رَبِّهِمْ وَلِقَاۤىِٕهٖ فَحَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْ فَلَا نُقِيْمُ لَهُمْ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ وَزْنًا ١٠٥

ulāika
أُو۟لَٰٓئِكَ
यही वो लोग हैं
alladhīna
ٱلَّذِينَ
जिन्होंने
kafarū
كَفَرُوا۟
कुफ़्र किया
biāyāti
بِـَٔايَٰتِ
साथ आयात के
rabbihim
رَبِّهِمْ
अपने रब की
waliqāihi
وَلِقَآئِهِۦ
और उसकी मुलाक़ात की
faḥabiṭat
فَحَبِطَتْ
तो ज़ाया हो गए
aʿmāluhum
أَعْمَٰلُهُمْ
आमाल उनके
falā
فَلَا
तो नहीं
nuqīmu
نُقِيمُ
हम क़ायम करेंगे
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
yawma
يَوْمَ
दिन
l-qiyāmati
ٱلْقِيَٰمَةِ
क़यामत के
waznan
وَزْنًا
कोई वज़न
यही वे लोग है जिन्होंने अपने रब की आयतों का और उससे मिलन का इनकार किया। अतः उनके कर्म जान को लागू हुए, तो हम क़ियामत के दिन उन्हें कोई वज़न न देंगे ([१८] अल कहफ़: 105)
Tafseer (तफ़सीर )
१०६

ذٰلِكَ جَزَاۤؤُهُمْ جَهَنَّمُ بِمَا كَفَرُوْا وَاتَّخَذُوْٓا اٰيٰتِيْ وَرُسُلِيْ هُزُوًا ١٠٦

dhālika
ذَٰلِكَ
ये है
jazāuhum
جَزَآؤُهُمْ
बदला उनका
jahannamu
جَهَنَّمُ
जहन्नम
bimā
بِمَا
बवजह उसके जो
kafarū
كَفَرُوا۟
उन्होंने कुफ़्र किया
wa-ittakhadhū
وَٱتَّخَذُوٓا۟
और उन्होंने बना लिया
āyātī
ءَايَٰتِى
मेरी आयात को
warusulī
وَرُسُلِى
और मेरे रसूलों को
huzuwan
هُزُوًا
मज़ाक़
उनका बदला वही जहन्नम है, इसलिए कि उन्होंने कुफ़्र की नीति अपनाई और मेरी आयतों और मेरे रसूलों का उपहास किया ([१८] अल कहफ़: 106)
Tafseer (तफ़सीर )
१०७

اِنَّ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ كَانَتْ لَهُمْ جَنّٰتُ الْفِرْدَوْسِ نُزُلًا ۙ ١٠٧

inna
إِنَّ
बेशक
alladhīna
ٱلَّذِينَ
वो लोग जो
āmanū
ءَامَنُوا۟
ईमान लाए
waʿamilū
وَعَمِلُوا۟
और उन्होंने अमल किए
l-ṣāliḥāti
ٱلصَّٰلِحَٰتِ
नेक
kānat
كَانَتْ
हैं
lahum
لَهُمْ
उनके लिए
jannātu
جَنَّٰتُ
बाग़ात
l-fir'dawsi
ٱلْفِرْدَوْسِ
फ़िरदौस के
nuzulan
نُزُلًا
बतौरे मेहमनी
निश्चय ही जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके आतिथ्य के लिए फ़िरदौस के बाग़ होंगे, ([१८] अल कहफ़: 107)
Tafseer (तफ़सीर )
१०८

خٰلِدِيْنَ فِيْهَا لَا يَبْغُوْنَ عَنْهَا حِوَلًا ١٠٨

khālidīna
خَٰلِدِينَ
हमेशा रहने वाले हैं
fīhā
فِيهَا
उनमें
لَا
ना वो चाहेंगे
yabghūna
يَبْغُونَ
ना वो चाहेंगे
ʿanhā
عَنْهَا
उनसे
ḥiwalan
حِوَلًا
फिरना
जिनमें वे सदैव रहेंगे, वहाँ से हटना न चाहेंगे।' ([१८] अल कहफ़: 108)
Tafseer (तफ़सीर )
१०९

قُلْ لَّوْ كَانَ الْبَحْرُ مِدَادًا لِّكَلِمٰتِ رَبِّيْ لَنَفِدَ الْبَحْرُ قَبْلَ اَنْ تَنْفَدَ كَلِمٰتُ رَبِّيْ وَلَوْ جِئْنَا بِمِثْلِهٖ مَدَدًا ١٠٩

qul
قُل
कह दीजिए
law
لَّوْ
अगर
kāna
كَانَ
हो जाए
l-baḥru
ٱلْبَحْرُ
समन्दर (का पानी)
midādan
مِدَادًا
रोशनाई
likalimāti
لِّكَلِمَٰتِ
कलिमात के लिए
rabbī
رَبِّى
मेरे रब के
lanafida
لَنَفِدَ
अलबत्ता ख़त्म हो जाए
l-baḥru
ٱلْبَحْرُ
समन्दर (का पानी)
qabla
قَبْلَ
इससे पहले
an
أَن
कि
tanfada
تَنفَدَ
ख़त्म हों
kalimātu
كَلِمَٰتُ
कलिमात
rabbī
رَبِّى
मेरे रब के
walaw
وَلَوْ
और अगरचे
ji'nā
جِئْنَا
लाऐं हम
bimith'lihi
بِمِثْلِهِۦ
मानिन्द इसके
madadan
مَدَدًا
मदद (मज़ीद)
कहो, 'यदि समुद्र मेरे रब के बोल को लिखने के लिए रोशनाई हो जाए तो इससे पहले कि मेरे रब के बोल समाप्त हों, समुद्र ही समाप्त हो जाएगा। यद्यपि हम उसके सदृश्य एक और भी समुद्र उसके साथ ला मिलाएँ।' ([१८] अल कहफ़: 109)
Tafseer (तफ़सीर )
११०

قُلْ اِنَّمَآ اَنَا۠ بَشَرٌ مِّثْلُكُمْ يُوْحٰٓى اِلَيَّ اَنَّمَآ اِلٰهُكُمْ اِلٰهٌ وَّاحِدٌۚ فَمَنْ كَانَ يَرْجُوْا لِقَاۤءَ رَبِّهٖ فَلْيَعْمَلْ عَمَلًا صَالِحًا وَّلَا يُشْرِكْ بِعِبَادَةِ رَبِّهٖٓ اَحَدًا ࣖ ١١٠

qul
قُلْ
कह दीजिए
innamā
إِنَّمَآ
बेशक
anā
أَنَا۠
मैं
basharun
بَشَرٌ
एक इन्सान हूँ
mith'lukum
مِّثْلُكُمْ
तुम जैसा
yūḥā
يُوحَىٰٓ
वही की जाती है
ilayya
إِلَىَّ
मेरी तरफ़
annamā
أَنَّمَآ
बेशक
ilāhukum
إِلَٰهُكُمْ
इलाह तुम्हारा
ilāhun
إِلَٰهٌ
इलाह है
wāḥidun
وَٰحِدٌۖ
एक ही
faman
فَمَن
तो जो कोई
kāna
كَانَ
हो वो
yarjū
يَرْجُوا۟
वो उम्मीद रखता
liqāa
لِقَآءَ
मुलाक़ात की
rabbihi
رَبِّهِۦ
अपने रब से
falyaʿmal
فَلْيَعْمَلْ
पस चाहिए कि वो अमल करे
ʿamalan
عَمَلًا
अमल
ṣāliḥan
صَٰلِحًا
नेक
walā
وَلَا
और ना
yush'rik
يُشْرِكْ
वो शरीक ठहराए
biʿibādati
بِعِبَادَةِ
इबादत में
rabbihi
رَبِّهِۦٓ
अपने रब की
aḥadan
أَحَدًۢا
किसी एक को
कह दो, 'मैं तो केवल तुम्हीं जैसा मनुष्य हूँ। मेरी ओर प्रकाशना की जाती है कि तुम्हारा पूज्य-प्रभु बस अकेला पूज्य-प्रभु है। अतः जो कोई अपने रब से मिलन की आशा रखता हो, उसे चाहिए कि अच्छा कर्म करे और अपने रब की बन्दगी में किसी को साझी न बनाए।' ([१८] अल कहफ़: 110)
Tafseer (तफ़सीर )