وَيَدْعُ الْاِنْسَانُ بِالشَّرِّ دُعَاۤءَهٗ بِالْخَيْرِۗ وَكَانَ الْاِنْسَانُ عَجُوْلًا ١١
- wayadʿu
- وَيَدْعُ
- और दुआ करता है
- l-insānu
- ٱلْإِنسَٰنُ
- इन्सान
- bil-shari
- بِٱلشَّرِّ
- शर/बुराई की
- duʿāahu
- دُعَآءَهُۥ
- (जैसा) दुआ करना उसका
- bil-khayri
- بِٱلْخَيْرِۖ
- ख़ैर/भलाई की
- wakāna
- وَكَانَ
- और है
- l-insānu
- ٱلْإِنسَٰنُ
- इन्सान
- ʿajūlan
- عَجُولًا
- बहुत जल्द बाज़
मनुष्य उस प्रकार बुराई माँगता है जिस प्रकार उसकी प्रार्थना भलाई के लिए होनी चाहिए। मनुष्य है ही बड़ा उतावला! ([१७] अल इस्रा: 11)Tafseer (तफ़सीर )
وَجَعَلْنَا الَّيْلَ وَالنَّهَارَ اٰيَتَيْنِ فَمَحَوْنَآ اٰيَةَ الَّيْلِ وَجَعَلْنَآ اٰيَةَ النَّهَارِ مُبْصِرَةً لِّتَبْتَغُوْا فَضْلًا مِّنْ رَّبِّكُمْ وَلِتَعْلَمُوْا عَدَدَ السِّنِيْنَ وَالْحِسَابَۗ وَكُلَّ شَيْءٍ فَصَّلْنٰهُ تَفْصِيْلًا ١٢
- wajaʿalnā
- وَجَعَلْنَا
- और बनाया हमने
- al-layla
- ٱلَّيْلَ
- रात
- wal-nahāra
- وَٱلنَّهَارَ
- और दिन को
- āyatayni
- ءَايَتَيْنِۖ
- दो निशानियाँ
- famaḥawnā
- فَمَحَوْنَآ
- तो मिटा दी हमने
- āyata
- ءَايَةَ
- निशानी
- al-layli
- ٱلَّيْلِ
- रात की
- wajaʿalnā
- وَجَعَلْنَآ
- और बनाई हमने
- āyata
- ءَايَةَ
- निशानी
- l-nahāri
- ٱلنَّهَارِ
- दिन की
- mub'ṣiratan
- مُبْصِرَةً
- रौशन
- litabtaghū
- لِّتَبْتَغُوا۟
- ताकि तुम तलाश करो
- faḍlan
- فَضْلًا
- फ़ज़ल
- min
- مِّن
- अपने रब का
- rabbikum
- رَّبِّكُمْ
- अपने रब का
- walitaʿlamū
- وَلِتَعْلَمُوا۟
- और ताकि तुम जान लो
- ʿadada
- عَدَدَ
- गिनती
- l-sinīna
- ٱلسِّنِينَ
- सालों की
- wal-ḥisāba
- وَٱلْحِسَابَۚ
- और हिसाब
- wakulla
- وَكُلَّ
- और हर
- shayin
- شَىْءٍ
- चीज़ को
- faṣṣalnāhu
- فَصَّلْنَٰهُ
- खोल कर बयान किया हमने उसे
- tafṣīlan
- تَفْصِيلًا
- खोल कर बयान करना
हमने रात और दिन को दो निशानियाँ बनाई है। फिर रात की निशानी को हमने मिटी हुई (प्रकाशहीन) बनाया और दिन की निशानी को हमने प्रकाशमान बनाया, ताकि तुम अपने रब का अनुग्रह (रोज़ी) ढूँढो और ताकि तुम वर्षो की गणना और हिसाब मालूम कर सको, और हर चीज़ को हमने अलग-अलग स्पष्ट कर रखा है ([१७] अल इस्रा: 12)Tafseer (तफ़सीर )
وَكُلَّ اِنْسَانٍ اَلْزَمْنٰهُ طٰۤىِٕرَهٗ فِيْ عُنُقِهٖۗ وَنُخْرِجُ لَهٗ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ كِتٰبًا يَّلْقٰىهُ مَنْشُوْرًا ١٣
- wakulla
- وَكُلَّ
- और हर
- insānin
- إِنسَٰنٍ
- इन्सान को
- alzamnāhu
- أَلْزَمْنَٰهُ
- लाज़िम कर दिया हमने उसको
- ṭāirahu
- طَٰٓئِرَهُۥ
- शगून उसका
- fī
- فِى
- उसकी गर्दन में
- ʿunuqihi
- عُنُقِهِۦۖ
- उसकी गर्दन में
- wanukh'riju
- وَنُخْرِجُ
- और हम निकालेंगे
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- yawma
- يَوْمَ
- दिन
- l-qiyāmati
- ٱلْقِيَٰمَةِ
- क़यामत के
- kitāban
- كِتَٰبًا
- एक किताब
- yalqāhu
- يَلْقَىٰهُ
- वो पाएगा उसे
- manshūran
- مَنشُورًا
- नशर किया हुआ/खुला हुआ
हमने प्रत्येक मनुष्य का शकुन-अपशकुन उसकी अपनी गरदन से बाँध दिया है और क़ियामत के दिन हम उसके लिए एक किताब निकालेंगे, जिसको वह खुला हुआ पाएगा ([१७] अल इस्रा: 13)Tafseer (तफ़सीर )
اِقْرَأْ كِتَابَكَۗ كَفٰى بِنَفْسِكَ الْيَوْمَ عَلَيْكَ حَسِيْبًاۗ ١٤
- iq'ra
- ٱقْرَأْ
- पढ़ो
- kitābaka
- كِتَٰبَكَ
- किताब अपनी
- kafā
- كَفَىٰ
- काफ़ी है
- binafsika
- بِنَفْسِكَ
- तेरा नफ़्स ही
- l-yawma
- ٱلْيَوْمَ
- आज
- ʿalayka
- عَلَيْكَ
- तुझ पर
- ḥasīban
- حَسِيبًا
- हिसाब लेने वाला
'पढ़ ले अपनी किताब (कर्मपत्र)! आज तू स्वयं ही अपना हिसाब लेने के लिए काफ़ी है।' ([१७] अल इस्रा: 14)Tafseer (तफ़सीर )
مَنِ اهْتَدٰى فَاِنَّمَا يَهْتَدِيْ لِنَفْسِهٖۚ وَمَنْ ضَلَّ فَاِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَاۗ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِّزْرَ اُخْرٰىۗ وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِيْنَ حَتّٰى نَبْعَثَ رَسُوْلًا ١٥
- mani
- مَّنِ
- जो
- ih'tadā
- ٱهْتَدَىٰ
- हिदायत पाए
- fa-innamā
- فَإِنَّمَا
- तो बेशक
- yahtadī
- يَهْتَدِى
- वो हिदायत पाता है
- linafsihi
- لِنَفْسِهِۦۖ
- अपने ही नफ़्स के लिए
- waman
- وَمَن
- और जो
- ḍalla
- ضَلَّ
- गुमराह हुआ/भटका
- fa-innamā
- فَإِنَّمَا
- तो बेशक
- yaḍillu
- يَضِلُّ
- वो भटकता है
- ʿalayhā
- عَلَيْهَاۚ
- अपने ही ख़िलाफ़
- walā
- وَلَا
- और ना
- taziru
- تَزِرُ
- बोझ उठाएगी
- wāziratun
- وَازِرَةٌ
- कोई बोझ उठाने वाली
- wiz'ra
- وِزْرَ
- बोझ
- ukh'rā
- أُخْرَىٰۗ
- दूसरी का
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- kunnā
- كُنَّا
- हैं हम
- muʿadhibīna
- مُعَذِّبِينَ
- अज़ाब देने वाले
- ḥattā
- حَتَّىٰ
- यहाँ तक कि
- nabʿatha
- نَبْعَثَ
- हम भेजें
- rasūlan
- رَسُولًا
- कोई रसूल
जो कोई सीधा मार्ग अपनाए तो उसने अपने ही लिए सीधा मार्ग अपनाया और जो पथभ्रष्टो हुआ, तो वह अपने ही बुरे के लिए भटका। और कोई भी बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। और हम लोगों को यातना नहीं देते जब तक कोई रसूल न भेज दें ([१७] अल इस्रा: 15)Tafseer (तफ़सीर )
وَاِذَآ اَرَدْنَآ اَنْ نُّهْلِكَ قَرْيَةً اَمَرْنَا مُتْرَفِيْهَا فَفَسَقُوْا فِيْهَا فَحَقَّ عَلَيْهَا الْقَوْلُ فَدَمَّرْنٰهَا تَدْمِيْرًا ١٦
- wa-idhā
- وَإِذَآ
- और जब
- aradnā
- أَرَدْنَآ
- इरादा करते हैं हम
- an
- أَن
- कि
- nuh'lika
- نُّهْلِكَ
- हम हलाक कर दें
- qaryatan
- قَرْيَةً
- किसी बस्ती को
- amarnā
- أَمَرْنَا
- हुक्म देते हैं हम
- mut'rafīhā
- مُتْرَفِيهَا
- उसके ख़ुशहाल लोगों को
- fafasaqū
- فَفَسَقُوا۟
- तो वो नाफ़रमानी करते हैं
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- faḥaqqa
- فَحَقَّ
- तो साबित हो जाती है
- ʿalayhā
- عَلَيْهَا
- उस पर
- l-qawlu
- ٱلْقَوْلُ
- बात
- fadammarnāhā
- فَدَمَّرْنَٰهَا
- तो तबाह कर देते हैं हम उसे
- tadmīran
- تَدْمِيرًا
- तबाह कर देना
और जब हम किसी बस्ती को विनष्ट करने का इरादा कर लेते है तो उसके सुखभोगी लोगों को आदेश देते है तो (आदेश मानने के बजाए) वे वहाँ अवज्ञा करने लग जाते है, तब उनपर बात पूरी हो जाती है, फिर हम उन्हें बिलकुल उखाड़ फेकते है ([१७] अल इस्रा: 16)Tafseer (तफ़सीर )
وَكَمْ اَهْلَكْنَا مِنَ الْقُرُوْنِ مِنْۢ بَعْدِ نُوْحٍۗ وَكَفٰى بِرَبِّكَ بِذُنُوْبِ عِبَادِهٖ خَبِيْرًاۢ بَصِيْرًا ١٧
- wakam
- وَكَمْ
- और कितनी ही
- ahlaknā
- أَهْلَكْنَا
- हलाक कीं हमने
- mina
- مِنَ
- उम्मतें/बस्तियाँ
- l-qurūni
- ٱلْقُرُونِ
- उम्मतें/बस्तियाँ
- min
- مِنۢ
- बाद
- baʿdi
- بَعْدِ
- बाद
- nūḥin
- نُوحٍۗ
- नूह के
- wakafā
- وَكَفَىٰ
- और काफ़ी है
- birabbika
- بِرَبِّكَ
- रब आपका
- bidhunūbi
- بِذُنُوبِ
- गुनाहों की
- ʿibādihi
- عِبَادِهِۦ
- अपने बन्दों के
- khabīran
- خَبِيرًۢا
- ख़ूब ख़बर रखने वाला
- baṣīran
- بَصِيرًا
- ख़ूब देखने वाला
हमने नूह के पश्चात कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर दिया। तुम्हारा रब अपने बन्दों के गुनाहों की ख़बर रखने, देखने के लिए काफ़ी है ([१७] अल इस्रा: 17)Tafseer (तफ़सीर )
مَنْ كَانَ يُرِيْدُ الْعَاجِلَةَ عَجَّلْنَا لَهٗ فِيْهَا مَا نَشَاۤءُ لِمَنْ نُّرِيْدُ ثُمَّ جَعَلْنَا لَهٗ جَهَنَّمَۚ يَصْلٰىهَا مَذْمُوْمًا مَّدْحُوْرًا ١٨
- man
- مَّن
- जो कोई
- kāna
- كَانَ
- है
- yurīdu
- يُرِيدُ
- चाहता
- l-ʿājilata
- ٱلْعَاجِلَةَ
- जल्द मिलने वाली चीज़ को
- ʿajjalnā
- عَجَّلْنَا
- जल्द देते हैं हम
- lahu
- لَهُۥ
- उसे
- fīhā
- فِيهَا
- उसमें
- mā
- مَا
- जो
- nashāu
- نَشَآءُ
- हम चाहते हैं
- liman
- لِمَن
- जिसके लिए
- nurīdu
- نُّرِيدُ
- हम चाहते हैं
- thumma
- ثُمَّ
- फिर
- jaʿalnā
- جَعَلْنَا
- बना देते हैं हम
- lahu
- لَهُۥ
- उसके लिए
- jahannama
- جَهَنَّمَ
- जहन्नम को
- yaṣlāhā
- يَصْلَىٰهَا
- वो जलेगा उसमें
- madhmūman
- مَذْمُومًا
- मज़म्मत किया हुआ
- madḥūran
- مَّدْحُورًا
- रहमत से दूर किया हुआ
जो कोई शीघ्र प्राप्त, होनेवाली को चाहता है उसके लिए हम उसी में जो कुछ किसी के लिए चाहते है शीघ्र प्रदान कर देते है। फिर उसके लिए हमने जहन्नम तैयार कर रखा है जिसमें वह अपयशग्रस्त और ठुकराया हुआ प्रवेश करेगा ([१७] अल इस्रा: 18)Tafseer (तफ़सीर )
وَمَنْ اَرَادَ الْاٰخِرَةَ وَسَعٰى لَهَا سَعْيَهَا وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَاُولٰۤىِٕكَ كَانَ سَعْيُهُمْ مَّشْكُوْرًا ١٩
- waman
- وَمَنْ
- और जो
- arāda
- أَرَادَ
- चाहे
- l-ākhirata
- ٱلْءَاخِرَةَ
- आख़िरत को
- wasaʿā
- وَسَعَىٰ
- और वो कोशिश करे
- lahā
- لَهَا
- उसके लिए
- saʿyahā
- سَعْيَهَا
- (ज़रूरी) कोशिश उसकी
- wahuwa
- وَهُوَ
- जबकि वो
- mu'minun
- مُؤْمِنٌ
- मोमिन हो
- fa-ulāika
- فَأُو۟لَٰٓئِكَ
- तो यही लोग हैं
- kāna
- كَانَ
- है
- saʿyuhum
- سَعْيُهُم
- कोशिश उनकी
- mashkūran
- مَّشْكُورًا
- क़ाबिले क़द्र
और जो आख़िरत चाहता हो और उसके लिए ऐसा प्रयास भी करे जैसा कि उसके लिए प्रयास करना चाहिए और वह हो मोमिन, तो ऐसे ही लोग है जिनके प्रयास की क़द्र की जाएगी ([१७] अल इस्रा: 19)Tafseer (तफ़सीर )
كُلًّا نُّمِدُّ هٰٓؤُلَاۤءِ وَهٰٓؤُلَاۤءِ مِنْ عَطَاۤءِ رَبِّكَ ۗوَمَا كَانَ عَطَاۤءُ رَبِّكَ مَحْظُوْرًا ٢٠
- kullan
- كُلًّا
- हर एक को
- numiddu
- نُّمِدُّ
- हम मदद देते हैं
- hāulāi
- هَٰٓؤُلَآءِ
- इनको (भी)
- wahāulāi
- وَهَٰٓؤُلَآءِ
- और उनको (भी)
- min
- مِنْ
- अता में से
- ʿaṭāi
- عَطَآءِ
- अता में से
- rabbika
- رَبِّكَۚ
- आपके रब की
- wamā
- وَمَا
- और नहीं
- kāna
- كَانَ
- है
- ʿaṭāu
- عَطَآءُ
- अता
- rabbika
- رَبِّكَ
- आपके रब की
- maḥẓūran
- مَحْظُورًا
- रोकी गई
इन्हें भी और इनको भी, प्रत्येक को हम तुम्हारे रब की देन में से सहायता पहुँचाए जा रहे है, और तुम्हारे रब की देन बन्द नहीं है ([१७] अल इस्रा: 20)Tafseer (तफ़सीर )