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सूरा अल इस्रा - Page: 2

Al-Isra

(इस्रा और मेराज, The Night Journey, The Children of Israel)

११

وَيَدْعُ الْاِنْسَانُ بِالشَّرِّ دُعَاۤءَهٗ بِالْخَيْرِۗ وَكَانَ الْاِنْسَانُ عَجُوْلًا ١١

wayadʿu
وَيَدْعُ
और दुआ करता है
l-insānu
ٱلْإِنسَٰنُ
इन्सान
bil-shari
بِٱلشَّرِّ
शर/बुराई की
duʿāahu
دُعَآءَهُۥ
(जैसा) दुआ करना उसका
bil-khayri
بِٱلْخَيْرِۖ
ख़ैर/भलाई की
wakāna
وَكَانَ
और है
l-insānu
ٱلْإِنسَٰنُ
इन्सान
ʿajūlan
عَجُولًا
बहुत जल्द बाज़
मनुष्य उस प्रकार बुराई माँगता है जिस प्रकार उसकी प्रार्थना भलाई के लिए होनी चाहिए। मनुष्य है ही बड़ा उतावला! ([१७] अल इस्रा: 11)
Tafseer (तफ़सीर )
१२

وَجَعَلْنَا الَّيْلَ وَالنَّهَارَ اٰيَتَيْنِ فَمَحَوْنَآ اٰيَةَ الَّيْلِ وَجَعَلْنَآ اٰيَةَ النَّهَارِ مُبْصِرَةً لِّتَبْتَغُوْا فَضْلًا مِّنْ رَّبِّكُمْ وَلِتَعْلَمُوْا عَدَدَ السِّنِيْنَ وَالْحِسَابَۗ وَكُلَّ شَيْءٍ فَصَّلْنٰهُ تَفْصِيْلًا ١٢

wajaʿalnā
وَجَعَلْنَا
और बनाया हमने
al-layla
ٱلَّيْلَ
रात
wal-nahāra
وَٱلنَّهَارَ
और दिन को
āyatayni
ءَايَتَيْنِۖ
दो निशानियाँ
famaḥawnā
فَمَحَوْنَآ
तो मिटा दी हमने
āyata
ءَايَةَ
निशानी
al-layli
ٱلَّيْلِ
रात की
wajaʿalnā
وَجَعَلْنَآ
और बनाई हमने
āyata
ءَايَةَ
निशानी
l-nahāri
ٱلنَّهَارِ
दिन की
mub'ṣiratan
مُبْصِرَةً
रौशन
litabtaghū
لِّتَبْتَغُوا۟
ताकि तुम तलाश करो
faḍlan
فَضْلًا
फ़ज़ल
min
مِّن
अपने रब का
rabbikum
رَّبِّكُمْ
अपने रब का
walitaʿlamū
وَلِتَعْلَمُوا۟
और ताकि तुम जान लो
ʿadada
عَدَدَ
गिनती
l-sinīna
ٱلسِّنِينَ
सालों की
wal-ḥisāba
وَٱلْحِسَابَۚ
और हिसाब
wakulla
وَكُلَّ
और हर
shayin
شَىْءٍ
चीज़ को
faṣṣalnāhu
فَصَّلْنَٰهُ
खोल कर बयान किया हमने उसे
tafṣīlan
تَفْصِيلًا
खोल कर बयान करना
हमने रात और दिन को दो निशानियाँ बनाई है। फिर रात की निशानी को हमने मिटी हुई (प्रकाशहीन) बनाया और दिन की निशानी को हमने प्रकाशमान बनाया, ताकि तुम अपने रब का अनुग्रह (रोज़ी) ढूँढो और ताकि तुम वर्षो की गणना और हिसाब मालूम कर सको, और हर चीज़ को हमने अलग-अलग स्पष्ट कर रखा है ([१७] अल इस्रा: 12)
Tafseer (तफ़सीर )
१३

وَكُلَّ اِنْسَانٍ اَلْزَمْنٰهُ طٰۤىِٕرَهٗ فِيْ عُنُقِهٖۗ وَنُخْرِجُ لَهٗ يَوْمَ الْقِيٰمَةِ كِتٰبًا يَّلْقٰىهُ مَنْشُوْرًا ١٣

wakulla
وَكُلَّ
और हर
insānin
إِنسَٰنٍ
इन्सान को
alzamnāhu
أَلْزَمْنَٰهُ
लाज़िम कर दिया हमने उसको
ṭāirahu
طَٰٓئِرَهُۥ
शगून उसका
فِى
उसकी गर्दन में
ʿunuqihi
عُنُقِهِۦۖ
उसकी गर्दन में
wanukh'riju
وَنُخْرِجُ
और हम निकालेंगे
lahu
لَهُۥ
उसके लिए
yawma
يَوْمَ
दिन
l-qiyāmati
ٱلْقِيَٰمَةِ
क़यामत के
kitāban
كِتَٰبًا
एक किताब
yalqāhu
يَلْقَىٰهُ
वो पाएगा उसे
manshūran
مَنشُورًا
नशर किया हुआ/खुला हुआ
हमने प्रत्येक मनुष्य का शकुन-अपशकुन उसकी अपनी गरदन से बाँध दिया है और क़ियामत के दिन हम उसके लिए एक किताब निकालेंगे, जिसको वह खुला हुआ पाएगा ([१७] अल इस्रा: 13)
Tafseer (तफ़सीर )
१४

اِقْرَأْ كِتَابَكَۗ كَفٰى بِنَفْسِكَ الْيَوْمَ عَلَيْكَ حَسِيْبًاۗ ١٤

iq'ra
ٱقْرَأْ
पढ़ो
kitābaka
كِتَٰبَكَ
किताब अपनी
kafā
كَفَىٰ
काफ़ी है
binafsika
بِنَفْسِكَ
तेरा नफ़्स ही
l-yawma
ٱلْيَوْمَ
आज
ʿalayka
عَلَيْكَ
तुझ पर
ḥasīban
حَسِيبًا
हिसाब लेने वाला
'पढ़ ले अपनी किताब (कर्मपत्र)! आज तू स्वयं ही अपना हिसाब लेने के लिए काफ़ी है।' ([१७] अल इस्रा: 14)
Tafseer (तफ़सीर )
१५

مَنِ اهْتَدٰى فَاِنَّمَا يَهْتَدِيْ لِنَفْسِهٖۚ وَمَنْ ضَلَّ فَاِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَاۗ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِّزْرَ اُخْرٰىۗ وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِيْنَ حَتّٰى نَبْعَثَ رَسُوْلًا ١٥

mani
مَّنِ
जो
ih'tadā
ٱهْتَدَىٰ
हिदायत पाए
fa-innamā
فَإِنَّمَا
तो बेशक
yahtadī
يَهْتَدِى
वो हिदायत पाता है
linafsihi
لِنَفْسِهِۦۖ
अपने ही नफ़्स के लिए
waman
وَمَن
और जो
ḍalla
ضَلَّ
गुमराह हुआ/भटका
fa-innamā
فَإِنَّمَا
तो बेशक
yaḍillu
يَضِلُّ
वो भटकता है
ʿalayhā
عَلَيْهَاۚ
अपने ही ख़िलाफ़
walā
وَلَا
और ना
taziru
تَزِرُ
बोझ उठाएगी
wāziratun
وَازِرَةٌ
कोई बोझ उठाने वाली
wiz'ra
وِزْرَ
बोझ
ukh'rā
أُخْرَىٰۗ
दूसरी का
wamā
وَمَا
और नहीं
kunnā
كُنَّا
हैं हम
muʿadhibīna
مُعَذِّبِينَ
अज़ाब देने वाले
ḥattā
حَتَّىٰ
यहाँ तक कि
nabʿatha
نَبْعَثَ
हम भेजें
rasūlan
رَسُولًا
कोई रसूल
जो कोई सीधा मार्ग अपनाए तो उसने अपने ही लिए सीधा मार्ग अपनाया और जो पथभ्रष्टो हुआ, तो वह अपने ही बुरे के लिए भटका। और कोई भी बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। और हम लोगों को यातना नहीं देते जब तक कोई रसूल न भेज दें ([१७] अल इस्रा: 15)
Tafseer (तफ़सीर )
१६

وَاِذَآ اَرَدْنَآ اَنْ نُّهْلِكَ قَرْيَةً اَمَرْنَا مُتْرَفِيْهَا فَفَسَقُوْا فِيْهَا فَحَقَّ عَلَيْهَا الْقَوْلُ فَدَمَّرْنٰهَا تَدْمِيْرًا ١٦

wa-idhā
وَإِذَآ
और जब
aradnā
أَرَدْنَآ
इरादा करते हैं हम
an
أَن
कि
nuh'lika
نُّهْلِكَ
हम हलाक कर दें
qaryatan
قَرْيَةً
किसी बस्ती को
amarnā
أَمَرْنَا
हुक्म देते हैं हम
mut'rafīhā
مُتْرَفِيهَا
उसके ख़ुशहाल लोगों को
fafasaqū
فَفَسَقُوا۟
तो वो नाफ़रमानी करते हैं
fīhā
فِيهَا
उसमें
faḥaqqa
فَحَقَّ
तो साबित हो जाती है
ʿalayhā
عَلَيْهَا
उस पर
l-qawlu
ٱلْقَوْلُ
बात
fadammarnāhā
فَدَمَّرْنَٰهَا
तो तबाह कर देते हैं हम उसे
tadmīran
تَدْمِيرًا
तबाह कर देना
और जब हम किसी बस्ती को विनष्ट करने का इरादा कर लेते है तो उसके सुखभोगी लोगों को आदेश देते है तो (आदेश मानने के बजाए) वे वहाँ अवज्ञा करने लग जाते है, तब उनपर बात पूरी हो जाती है, फिर हम उन्हें बिलकुल उखाड़ फेकते है ([१७] अल इस्रा: 16)
Tafseer (तफ़सीर )
१७

وَكَمْ اَهْلَكْنَا مِنَ الْقُرُوْنِ مِنْۢ بَعْدِ نُوْحٍۗ وَكَفٰى بِرَبِّكَ بِذُنُوْبِ عِبَادِهٖ خَبِيْرًاۢ بَصِيْرًا ١٧

wakam
وَكَمْ
और कितनी ही
ahlaknā
أَهْلَكْنَا
हलाक कीं हमने
mina
مِنَ
उम्मतें/बस्तियाँ
l-qurūni
ٱلْقُرُونِ
उम्मतें/बस्तियाँ
min
مِنۢ
बाद
baʿdi
بَعْدِ
बाद
nūḥin
نُوحٍۗ
नूह के
wakafā
وَكَفَىٰ
और काफ़ी है
birabbika
بِرَبِّكَ
रब आपका
bidhunūbi
بِذُنُوبِ
गुनाहों की
ʿibādihi
عِبَادِهِۦ
अपने बन्दों के
khabīran
خَبِيرًۢا
ख़ूब ख़बर रखने वाला
baṣīran
بَصِيرًا
ख़ूब देखने वाला
हमने नूह के पश्चात कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर दिया। तुम्हारा रब अपने बन्दों के गुनाहों की ख़बर रखने, देखने के लिए काफ़ी है ([१७] अल इस्रा: 17)
Tafseer (तफ़सीर )
१८

مَنْ كَانَ يُرِيْدُ الْعَاجِلَةَ عَجَّلْنَا لَهٗ فِيْهَا مَا نَشَاۤءُ لِمَنْ نُّرِيْدُ ثُمَّ جَعَلْنَا لَهٗ جَهَنَّمَۚ يَصْلٰىهَا مَذْمُوْمًا مَّدْحُوْرًا ١٨

man
مَّن
जो कोई
kāna
كَانَ
है
yurīdu
يُرِيدُ
चाहता
l-ʿājilata
ٱلْعَاجِلَةَ
जल्द मिलने वाली चीज़ को
ʿajjalnā
عَجَّلْنَا
जल्द देते हैं हम
lahu
لَهُۥ
उसे
fīhā
فِيهَا
उसमें
مَا
जो
nashāu
نَشَآءُ
हम चाहते हैं
liman
لِمَن
जिसके लिए
nurīdu
نُّرِيدُ
हम चाहते हैं
thumma
ثُمَّ
फिर
jaʿalnā
جَعَلْنَا
बना देते हैं हम
lahu
لَهُۥ
उसके लिए
jahannama
جَهَنَّمَ
जहन्नम को
yaṣlāhā
يَصْلَىٰهَا
वो जलेगा उसमें
madhmūman
مَذْمُومًا
मज़म्मत किया हुआ
madḥūran
مَّدْحُورًا
रहमत से दूर किया हुआ
जो कोई शीघ्र प्राप्त, होनेवाली को चाहता है उसके लिए हम उसी में जो कुछ किसी के लिए चाहते है शीघ्र प्रदान कर देते है। फिर उसके लिए हमने जहन्नम तैयार कर रखा है जिसमें वह अपयशग्रस्त और ठुकराया हुआ प्रवेश करेगा ([१७] अल इस्रा: 18)
Tafseer (तफ़सीर )
१९

وَمَنْ اَرَادَ الْاٰخِرَةَ وَسَعٰى لَهَا سَعْيَهَا وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَاُولٰۤىِٕكَ كَانَ سَعْيُهُمْ مَّشْكُوْرًا ١٩

waman
وَمَنْ
और जो
arāda
أَرَادَ
चाहे
l-ākhirata
ٱلْءَاخِرَةَ
आख़िरत को
wasaʿā
وَسَعَىٰ
और वो कोशिश करे
lahā
لَهَا
उसके लिए
saʿyahā
سَعْيَهَا
(ज़रूरी) कोशिश उसकी
wahuwa
وَهُوَ
जबकि वो
mu'minun
مُؤْمِنٌ
मोमिन हो
fa-ulāika
فَأُو۟لَٰٓئِكَ
तो यही लोग हैं
kāna
كَانَ
है
saʿyuhum
سَعْيُهُم
कोशिश उनकी
mashkūran
مَّشْكُورًا
क़ाबिले क़द्र
और जो आख़िरत चाहता हो और उसके लिए ऐसा प्रयास भी करे जैसा कि उसके लिए प्रयास करना चाहिए और वह हो मोमिन, तो ऐसे ही लोग है जिनके प्रयास की क़द्र की जाएगी ([१७] अल इस्रा: 19)
Tafseer (तफ़सीर )
२०

كُلًّا نُّمِدُّ هٰٓؤُلَاۤءِ وَهٰٓؤُلَاۤءِ مِنْ عَطَاۤءِ رَبِّكَ ۗوَمَا كَانَ عَطَاۤءُ رَبِّكَ مَحْظُوْرًا ٢٠

kullan
كُلًّا
हर एक को
numiddu
نُّمِدُّ
हम मदद देते हैं
hāulāi
هَٰٓؤُلَآءِ
इनको (भी)
wahāulāi
وَهَٰٓؤُلَآءِ
और उनको (भी)
min
مِنْ
अता में से
ʿaṭāi
عَطَآءِ
अता में से
rabbika
رَبِّكَۚ
आपके रब की
wamā
وَمَا
और नहीं
kāna
كَانَ
है
ʿaṭāu
عَطَآءُ
अता
rabbika
رَبِّكَ
आपके रब की
maḥẓūran
مَحْظُورًا
रोकी गई
इन्हें भी और इनको भी, प्रत्येक को हम तुम्हारे रब की देन में से सहायता पहुँचाए जा रहे है, और तुम्हारे रब की देन बन्द नहीं है ([१७] अल इस्रा: 20)
Tafseer (तफ़सीर )